RBSE Solutions for Class 9 Science Chapter 8 सजीवों की प्रमुख क्रियाएँ are part of RBSE Solutions for Class 9 Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 9 Science Chapter 8 सजीवों की प्रमुख क्रियाएँ।
Board | RBSE |
Textbook | SIERT, Rajasthan |
Class | Class 9 |
Subject | Science |
Chapter | Chapter 8 |
Chapter Name | सजीवों की प्रमुख क्रियाएँ |
Number of Questions Solved | 150 |
Category | RBSE Solutions |
Rajasthan Board RBSE Class 9 Science Chapter 8 सजीवों की प्रमुख क्रियाएँ
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
पादपों में जल का संवहन होता है
(अ) फ्लोएम द्वारा
(ब) जाइलम द्वारा
(स) चालनी नलिका द्वारा
(द) अधिचर्म द्वारा।
उत्तर:
(ब) जाइलम द्वारा
प्रश्न 2.
पौधों को जो जल प्राप्त होता है, वह है
(अ) आर्द्रताग्राही जल
(ब) गुरुत्व जल
(स) बिन्द साव से प्राप्त जल
(द) केशिका जल।
उत्तर:
(द) केशिका जल।
प्रश्न 3.
रन्ध्रों द्वारा विनिमय होता है
(अ) जल वाष्प एवं गैसों का
(ब) ऑक्सीजन एवं कार्बोहाइड्रेट का
(स) ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन का
(द) नाइट्रोजन एवं जलवाष्प का।
उत्तर:
(अ) जल वाष्प एवं गैसों का
प्रश्न 4.
खाद्य पदार्थों का संवहन निम्न के द्वारा होता है
(अ) जाइलम।
(ब) फ्लोएम्।
(स) वातरन्ध्र
(द) अधिचर्म।
उत्तर:
(च) फ्लोएम्।
प्रश्न 5.
श्वसन वर्णक है
(अ) लालरक्त कणिका
(ब) श्वेतरक्त कणिका
(स) हीमोग्लोबिन
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) हीमोग्लोबिन
प्रश्न 6.
सामान्यतः शरीर का प्रकुंचन दाब कितना होता है?
(अ) 120 ruin Hg
(ब) 90 mm Hg
(स) 140 tim H
(द) 80 mm Hg.
उत्तर:
(अ) 120 ruin Hg
प्रश्न 7.
आमाशय का कार्य नहीं हैं
(अ) भोजन का संग्रहण
(ब) अवशोषण
(स) पाचन
(द) वसा का पूर्ण पाचन।
उत्तर:
(द) वसा का पूर्ण पाचन।
प्रश्न 8.
विखण्डन का प्रमुख उदाहरण हैं
(अ) स्पाइरोगायरा
(च) प्रायोफिल्लम
(स) यीस्ट
(द) अमीबा
उत्तर:
(अ) स्पाइरोगायरा
प्रश्न 9.
राइजोपस में जनन की प्रमुख विधि हैं
(अ) द्वि विखण्डन
(ब) मुकुलन
(स) बीजाणुजनन
(द) बहु विखण्डन्।
उत्तर:
(स) बीजाणुजनन
प्रश्न 10.
बीजाण्ड अवस्थित होते हैं
(अ) अण्डाशय में
(ब) वर्तिका में
(स) पुंकेसर में
(द) भ्रूणपोष में।
उत्तर:
(अ) अण्डाशय में
प्रश्न 11.
पादपों की उपापचय क्रिया मुख्यतः आधारित है
(अ) प्रोटीन पर
(ब) वसा पर
(स) कार्बोहाइड्रेट पर
(द) विटामिन ‘पर।
उत्तर:
(स) कार्बोहाइड्रेट पर
प्रश्न 12.
जल रन्ध्र पाये जाते हैं
(अ) जड़ में
(ब) तने में
(स) पत्ती में
(द) फूल में।
उत्तर:
(स) पत्ती में
प्रश्न 13.
बिन्दु स्राव देखा जा सकता है जब
(अ) श्वसन अधिक होता है।
(ब) अधिक अवशोषण एवं कम वाष्पोत्सर्जन
(स) प्रकाश संश्लेषण अधिक होता है।
(द) विसरण अधिक होता हैं।
उत्तर:
(ब) अधिक अवशोषण एवं कम वाष्पोत्सर्जन
प्रश्न 14.
यूरियोटेलिक उत्सर्जन पाया जाता है
(अ) अमीबा व मेंढक में
(ब) पक्षी व मछली में
(स) मछली व सर्प में
(द) मानव व मेंढक में।
उत्तर:
(द) मानव व मेंढक में।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जलीय पौधों में उत्सर्जन किस विधि द्वारा होता है?
उत्तर:
विसरण (Diffusion) द्वारा।
प्रश्न 2.
द्वार कोशिकाओं का क्या कार्य है ?
उत्तर:
पर्ण रन्ध्रों की द्वार कोशिकाएँ रन्ध्र (Stomata) को खोलने व बन्द करने का कार्य करती हैं। जब यह स्फीत (turrid) होती हैं जो रन्ध्र खुल जाता है व इनके पिचकने (flaccid) पर रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।
प्रश्न 3.
यूरिकोटेलिक उत्सर्जन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब उपापचयी क्रियाओं में बने यूरिक अम्ल का उत्सर्जी पदार्थ के रूप में उत्सर्जन होता है तब इसे यूरिकोटैलिक उत्सर्जन कहते हैं। जैसे-पक्षी, छिपकली आदि।
प्रश्न 4.
पौधे के मुख्य दो भाग बताइए।
उत्तर:
- जड़ तन्त्र या मूल तन्त्र,
- प्ररोह तन्त्र (तना, शाखाएँ, पत्तियाँ व पुष्प)।
प्रश्न 5.
जड़ से जल पत्तियों तक कौन-से संवहन ऊतक द्वारा पहुँचता है ?
उत्तर:
जाइलम द्वारा।
प्रश्न 6.
फ्लोएम का क्या कार्य है ?
उत्तर:
फ्लोएम नामक संवहन ऊतक का कार्य प्रकाश संश्लेषण
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जलीय पौधों में उत्सर्जन किस विधि द्वारा होता है?
उत्तर:
विसरण (Diffusion) द्वारा।
प्रश्न 2.
द्वार कोशिकाओं का क्या कार्य है ?
उत्तर:
पर्ण रन्ध्रों की द्वार कोशिकाएँ रन्ध्र (Stomata) को खोलने व बन्द करने का कार्य करती हैं। जब यह स्फीत (turrid) होती हैं जो रन्ध्र खुल जाता है व इनके पिचकने (flaccid) पर रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।
प्रश्न 3.
यूरिकोटेलिक उत्सर्जन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब उपापचयी क्रियाओं में बने यूरिक अम्ल का उत्सर्जी पदार्थ के रूप में उत्सर्जन होता है तब इसे यूरिकोटैलिक उत्सर्जन कहते हैं। जैसे-पक्षी, छिपकली आदि।
प्रश्न 4.
पौधे के मुख्य दो भाग बताइए।
उत्तर:
- जड़ तन्त्र या मूल तन्त्र,
- प्ररोह तन्त्र (तना, शाखाएँ, पत्तियाँ व पुष्प)।
प्रश्न 5.
जड़ से जल पत्तियों तक कौन-से संवहन ऊतक द्वारा पहुँचता है ?
उत्तर:
जाइलम द्वारा।
प्रश्न 6.
फ्लोएम का क्या कार्य है ?
उत्तर:
फ्लोएम नामक संवहन ऊतक का कार्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा बनाये गये तरल कार्बनिक भोज्य पदार्थ का संवहन है।
प्रश्न 7.
जीवद्रव्य कुंचन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कोशिकाओं से जल के बहि:परासरण द्वारा अत्याधिक मात्रा में बाहर निकल जाने के कारण जीव द्रव्य का संकुचन या सिकड़ना तथा इस कारण पादप कोशिकाओं में जीवद्रव्य का कोशिका भित्ति से दूर हो जाना जीवद्रव्य कुंचन कहलाता
प्रश्न 8.
श्वसन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कोशिकाओं में कार्बनिक भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से ऊ का मुक्त होना श्वसन कहलाता है।
प्रश्न 9.
द्वि विखण्डन क्या है ?
उत्तर:
एक कोशिकीय जीवों में एक कोशिका का दो समान प्रकार की कोशिकाओं में विभाजित हो जाना द्वि विखण्डन कहलाता है। यह अलैगिक जनन (asexual reproduction) का एक प्रकार है।
प्रश्न 10.
पुष्पासन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पुष्पवृन्त के शीर्ष का फूला हुआ भाग जहाँ पुष्प के चारों चक्र जुड़े रहते हैं पुष्पासन (thalamus) कहलाता है।
प्रश्न 11.
वायुदाब विधि के प्रमुख उदाहरण बताएँ।
उत्तर:
काष्ठीय पादप; जैसे-अनार, लीची, नींबू, गुड़हल।
प्रश्न 12.
जीवों में जनन की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर:
जीवों की प्रजाति की निरन्तरतों को पीढ़ी दर पीढ़ी बनाए रखने के लिए प्रजनन अनिवार्य है क्योंकि कोई भी जीवधारी अमर नहीं होता। साथ ही प्रजनन से उत्पन्न हुई विभिन्नताएँ जीव को बदले हुए पर्यावरण हेतु अनुकूलन प्रदान करती हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 13.
मूसला मूल एवं अपस्थानिक मूल में अन्तर बताइए।
उत्तर:
मूसला मूल एवं अपस्थानिक मूल में अन्तर
प्रश्न 14.
जाइलम व फ्लोयम ऊतक में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 15.
निम्नलिखित को परिभाषित कीजिएविसरण, परासरण, जीवद्रव्य कुंचन, अन्त:शोषण
उत्तर:
- विसरण (Diffusion)-किसी पदार्थ के अणुओं के उनके उच्च सान्द्रण स्थल से निम्न सन्द्रिण स्थल की ओर जाने की निष्क्रिय भौतिक प्रक्रिया विसरण कहलाती है; जैसे-अगरबत्ती की खुशबू पूरे कमरे में फैलना।
- परासरण (Osmosis)-जल या किसी अन्य विलायक का उनकी उच्च सान्द्रता वाले स्थल [तनु विलयन (dilute solution)] की ओर से किसी अर्द्ध पारगम्य झिल्ली से गुजर कर कम सान्द्रता वाले स्थल [सान्द्र विलयन (concentrated solution)] की और जाना परासरण कहलाता है, जैसे-शुद्ध जल का कोशिका में प्रवेश।
- जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis)-कोशिका को सान्द्र या अतिपरासरी विलयन में रखने पर उसके जीवद्रव्य का, जल के कोशिका से बहि:परासरण (exosmosis) द्वारा बाहर निकलने के कारण संकुचित हो जाना जीवद्रव्य कुंचन कहलाता है।
- अन्तःशोषण (Imbibition)-जलरागी कोलॉइडों (Hydrophilic colloids) की उपस्थिति के कारण ठोस पदार्थ के अणुओं का द्रव के प्रति आकर्षण अन्त:चूषण या अन्त:शोषण कहलाता है। बरसात के दिनों में लकड़ी के दरवाजों का जल सोख कर फूल जाना, बीजों का जाल में फूलना अन्त:शोषण के उदाहरण हैं।
प्रश्न 16.
सिंचित जल जड़ द्वारा पत्तियों तक जिस सिद्धान्त के द्वारा पहुंचता है उसे समझाइए।
उत्तर:
जड़ों द्वारा अवशोषित जल के जाइलम द्वारा पादपों की पत्तियों तक पहुँचने की व्याख्या करने हेतु वाष्पोत्सर्जन-संसजन-तनाववाद (Transpiration cohesion Tension Theory) प्रस्तुत किया गया है। यह सिद्धान्त तीन कारकों पर आधारित है
- जाइलम वाहिकाओं में जल निरन्तर, अखण्डित स्तम्भ के रूप में विद्यमान होता है। जाइलम ऊतक व जल अणुओं के बीच आसंजक आकर्षण होता है।
- जल अणुओं में परस्पर दृढ़ आकर्षण (cohesion) होने से यह ससंजित होकर जल के स्तम्भ की निरन्तरता को बनाये रखते हैं।
- पत्ती में जल स्तम्भ का ऊपरी भाग वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमण्डल में मुक्त होता रहता है। इस कारण जल स्तम्भ पर ऊपरसे एक खिंचाव या तनाव बना रहता है। दूसरे शब्द में, पत्तियों में एक ऋणात्मक दाब उत्पन्न हो जाता है। इस खिचाव के कारण सम्पूर्ण जल स्तम्भ ऊपर की ओर खिंचा चला जाता है।
प्रश्न 17.
आमाशय के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आमाशय के कार्य (Functions of Stomach)
- अन्तर्ग्रहण किये भोजन का पाचन के लिए संग्रह करना।
- आमाशय रस के एन्जाइम भोजन को पचाते हैं।
- आमाशय की ग्रन्थिल कोशिकाओं द्वारा स्रावित हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन को अम्लीय बनाता है। यह अम्लीयता प्रोटीन का पाचन करने वाले एन्जाइमों के सक्रियण हेतु आवश्यक है।
- HCL भोजन के साथ आये हानिकारक जीवाणुओं को मार देता है।
- भोजन को पतला लेई जैसा कर छेटी आँत में भेजता है।
- प्रोटीन व वसा का पाचन यहाँ प्रारम्भ होता है।
- कुछ पदार्थों; जैसे-ग्लूकोज, जल, ऐल्कोहॉल, औषधियों आदि का अवशोषण आमाशय में प्रारम्भ होता है।
- पेप्सिन व रेनिन प्रोटीन पाचक एन्जाइमों का स्रावण करता है।
प्रश्न 18.
जन्तुओं में कितने प्रकार का परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है ? उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर:
जन्तुओं में दो प्रकार का परिसंचरण तन्त्र पाया जाता हैं-
(i) खुला परिसंचरण तन्त्र व
(ii) बन्द परिसंचरण तन्त्र
(i) खुला परिसंचरण तन्त्र (Open Circulatory System)-इस प्रकार के परिसंचरण तन्त्र में रुधिर या रक्त देहगुहा में स्वतन्त्र रूप से (खुला) बहता है अर्थात् रुधिर रक्त वाहिकाओं तक ही सीमित नहीं रहता। इन जन्तुओं में कोशिकाएँ व ऊतक रक्त के सीधे सम्पर्क में रहते हैं। इस तन्त्र की यह कमी है कि इसमें रक्त दाब (Blood Pressure) नहीं बना रहता। उदाहरण-कॉकरोच, झींगा सहित सभी ऑपोड व मौलस्क जन्तु।
(ii) बन्द परिसंचरण तन्त्र (Closed Circulatory System)-जैसा नाम से स्पष्ट है इस प्रकार के परिसंचरण तन्त्र में रक्त हमेशा हृदय व रक्त वाहिकाओं में ही संचरित होता हैं। रक्त सीधे ऊतकों के सम्पर्क में नहीं रहता तथा रक्त वाहिकाओं में सीमित रहकर ही सभी कोशिकाओं व ऊतकों को ऑक्सीजन व पोषक पदार्थ पहुँचाता है। उदाहरण केंचुआ (एनीलिङ) व सभी पृष्ठवंशी, जैसे-मछली, मेंढक, कछुआ पक्षी व मनुष्य।
प्रश्न 19.
अपचयी व उपचयी क्रियाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
सजीवों के शरीर में होने वाली रासायनिक क्रियाएँ सामूहिक रूप से उपापचय क्रियाएँ या मेटाबॉलिज्म (metabolisrn) कहलाती हैं। यह दो प्रमुख प्रकार की होती
(a) अपचयी क्रियाएँ (Catabolic reactions या Catabolism)-इस प्रकार की क्रियाओं में जटिल यौगिक अपघटित होकर सरल यौगिकों का निर्माण करते हैं; जैसे-श्वसन। इससे मुक्त हुई ऊर्जा शरीर की अन्य जैव प्रक्रियाओं में सहायता करती है।
(b) उपचयी क्रियाएँ (Anabolic reactions or Anabolism)-इस प्रकार की क्रियाओं में सरल यौगिक मिलकर जटिल यौगिकों का निर्माण करते हैं; जैसे-प्रोटीन संश्लेषण, प्रकाश संश्लेषण।।
प्रश्न 20.
पादपों में विशेष उत्सर्जन अंग क्यों नहीं पाये जाते हैं ? समझाइए।
उत्तर:
पादपों में उत्सर्जन प्रक्रिया सरल होने के कारण उत्सर्जी अंगों की आवश्यकता नहीं होती। इनकी सरल उत्सर्जन प्रक्रिया, उत्सर्जी अंगों के अभाव के निम्न कारण हैं
- जन्तुओं की तुलना में पादपों में उपापचय क्रियाओं की दर कम होती है।
- पौधे उपापचय क्रियाओं में बने अपशिष्टों का प्रयोग उपचयी (anabolice) क्रियाओं में कर लेते हैं। जैसे-श्वसन में मुक्त हुई CO, का प्रयोग प्रकाश संश्लेषण में कर लिया। जाता है।
- पादपों का उपापचय मुख्यत: कार्बोहाइड्रेट आधारित जबकि जन्तुओं में यह प्रोटीन आधारित होता है।
- पादपों में कुछ उत्सर्जी पदार्थ ठोस क्रिस्टल के रूप में पर्ण या तने की मृत कोशिकाओं में संग्रहित होते हैं।
- कुछ अपशिष्ट पदार्थ; जैसे-ऐल्केलॉयड, ग्लूकोसाइड व टेनिन भी रिक्तिकाओं में एकत्रित रहते हैं। कुछ पदार्च अघुलित अवस्था में रिक्तिकाओं में पाये जाते हैं।
- जलीय पादप कुछ अपशिष्टों को विसरण द्वारा जल में मुक्त कर देते हैं।
- अधिकांश पादप रन्ध्रों, वातरन्ध्रों (lenticels) द्वारा उत्सर्जी गैसों का त्याग करते रहते हैं।
प्रश्न 21.
मुकुलन क्या है ?
उत्तर:
मुकुलन (Budding) अलैंगिक जनन की एक विधि है। यीस्ट जैसे जीवों में कोशिका से एक रोटी-सी बहिवृद्धि या कलिका (bud) उत्पन्न होती है, साथ ही जनन कोशिका का केन्द्रक विभाजित होता है तथा एक विभाजित केन्द्रक कलिका में चला जाता है। अन्त में यह कलिका जन कोशिका से अलग हो जाती है। विशिष्ट परिस्थितियों में विकसित होती कलिकाओं पर भी नयी कलिकाएँ बन जाती हैं। इस प्रकार एक आभासी तन्तु विकसित हो जाता है। हाइड़ा जैसे सरल अकशेरुकी जन्तु में कलिका निर्माण द्वारा अलैंगिक जनन होता है।
प्रश्न 22.
प्रतिवर्ती क्रिया को सोदाहरण समझाइए।
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action)-प्रतिवर्ती क्रिया किसी उद्दीपन के प्रति अचानक व स्वत: होने वाली त्वरित तन्त्रिका माध्यित अनुक्रिया है। इसमें प्रमुखत: मेरुरज्जु भाग लेता है। इच्छा शक्ति का इस पर प्रभाव नहीं होता। प्रतिवती क्रिया में अनुक्रिया के लिए बौद्धिक स्तर पर सोचे समझे विचार की आवश्यकता नहीं होती तथा एक प्रकार का उद्दीपन बार-बार वहीं अनुक्रिया उत्पन्न करता है। दाहरण-अगर हाध यकायक किसी गर्म वस्तु या नुकीली वस्तु को छूता है तो वह तुरन्त अनुक्रिया प्रदर्शित कर वहाँ से हट जाता है। आँखों पर टॉर्च का प्रकाश पड़ने पर पुतलियाँ सिकुड़ जाती हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 23.
बिन्दुस्रावकिसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
बिन्दु स्राव (Guttation)-बूंदों के रूप में पत्तियों के किनारों से द्रव जल का स्राव होना बिन्दु नाव कहलाता हैं। टमाटर, कुछ घासों च जई में बिन्दु स्राव को आसानी से देखा जा सकता है। इन पौधों की पत्तियों के किनारों पर जलरन्ध्र या हाइडेधोड (hydathodes) पाये जाते हैं। यह जलरन्ध्र पत्ती की शिराओं (veins) के सिरों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बिन्दु स्राव रात्रि के समय ही होता है। सावित जल में खनिज लवण घुले होते हैं।
जल रन्ध्र ऐसी असक्रिय रक्षक कोशिकाओं के बने होते हैं। जिनके नीचे एक छेटी गुहा होती है। यह गुहा चारों ओर से विशिष्ट प्रकार की मृदूतक कोशिकाओं जिन्हें एपीथैम (Epithem) कहते हैं, से घिरी होती हैं। यह कोशिकाएँ जाइलम में जल ग्रहणकर उसे जल द्रव के रूप में स्रावित कर देती हैं, बिन्दु स्राव के लिए मूल दाब (root pressure) आवश्यक होता है।
प्रश्न 24.
पर्ण की आन्तरिक रचना समझाइए।
उत्तर:
पर्ण या पत्ती पौधे का क्लोरोफिल धारक हरा भाग है,
जो प्रकाश संश्लेषण में भाग लेता है। अतः पत्ती की आन्तरिक संरचना भी प्रकाश संश्लेषण हेतु अनुकूलित होती है। पत्ती एक चपटी, फैली (flat, expanded) रचना है जो निम्न तीन प्रकार के ऊतक तन्त्रों से बनी होती है।
(a) त्वचीय ऊतक (Dermal tissue)
(b) भरण ऊतक (CGround tissue)
(c) संवहन ऊतक (Vascular tissue)। पत्तियों की संरचना के प्रमुख भाग हैं
(i) अधिचर्म या एपीडर्मिस (Epidermis)-पत्ती चूँकि एक चपटा भाग है अत: इसकी दो अधिचर्म होती हैं- ऊपरी अधिचर्म (Upper epidermis) तथा निचली अधिचर्म (Lower epidermis)। अधिचर्म की कोशिकाएँ चपटी व ढोलक के आकार की होती हैं। कुछ पौधों में अधिचर्म के ऊपर काइटिन नामक पदार्थ का बना एक पतला स्तर क्यूटकिल (Cuticle) पाया जाता है। यह पत्ती से वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करता हैं।
निचली अधिचर्म पर अनेक छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते हैं। जिन्हें पर्णरन्ध्र (Stomata) कहते हैं। प्रत्येक रन्ध्र दो सेम के बीज के आकार की रक्षक कोशिकाओं (guard cells) से घिरा रहता है। इन कोशिकाओं में क्लोरोफिल पाया जाता है। इन कोशिकाओं द्वारा जल के अवशोषण व जल के निकास से ही रन्ध्र खुलते व बन्द होते हैं। इन्हीं रन्ध्रों द्वारा पत्ती में गैसों का विनिमय व वाष्पोत्सर्जन क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। रन्ध्र अधिकांश पौधों में निचली एपीडर्मिस पर ही सीमित रहते हैं। कुछ पौधों में यह ऊपरी एपीडर्मिस पर भी पाये जाते हैं।
(ii) भरण ऊतक (Ground Tissue)- पत्तियों का भरण ऊतक पर्णमध्योतक या मौजोफिल (Mesophyll) कहलाता है। ऊपरी अधिचर्म के ठीक नीचे का ऊतक स्तम्भ के आकार की कोशिकाओं से बना होता है जिनमें प्रचुर मात्रा में हरित लवक पाये जाते हैं। यह ऊतक, मृदूतक (पेलीसेड पेरेन्काइमा) (Palisade Parenchyma) कहलाता है। इस ऊतक की कोशिकाओं के बीच अन्तरकोशिकीय अवकाश नहीं पाये जाते यही ऊतक प्रकाश संश्लेषण में प्रमुखता से भाग लेता है।
निचली बाह्य त्वचा के अन्दर की ओर अर्थात् स्तम्भी मृदूतक या पेलीसेड पेरेन्काइमा के नीचे स्पंजी मृदूतक या स्पंजी पेरेन्काइमा (Spongy parenchyma) पाया जाता है। इसकी क्लोरोफिल युक्त कोशिकाओं के बीच में बड़े-बड़े अन्तरकोशिकीय अवकाश पाये जाते हैं। यह अवकाश या खाली स्थान आपस में एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं। यह पर्णरन्ध्र के भी सम्पर्क में होते हैं। अत: इनके द्वारा गैसों का विनिमय आसानी से हो जाता है।
(iii) संवहन ऊतक (Vascular Tissue)- पत्तियों में जाइलम व फ्लोएम से बनी शिराओं का जाल बिछा होता है। यह जाइलम व फ्लोएम तने के जाइलम व फ्लोएम से जुड़े होते हैं। पत्तियों का शिरा जाल संवहन तन्त्र के साथ-साथ पत्तियों का कंकाल भी बनाता है। संवहन ऊतक की यह शिराएँ भरण ऊतक में बिखरी रहती हैं। जाइलम पत्तियों तक खनिज लवण व जल पहुँचाती हैं जबकि फ्लोएम पत्तियों में बने कार्बनिक भोज्य पदार्थों को अन्य स्थानों तक पहुँचाती।
प्रश्न 25.
मूलदाब को प्रयोग द्वारा समझाइए।
उत्तर:
जड़ों द्वारा जल के सक्रिय जल अवशोषण के कारण जल मृदा से जड़ के जाइलम तक पहुँचता है। इस सक्रिय जल अवशोषण के कारण जड़ की कोशिकाएँ स्फीति (turgid) हो जाती हैं तथा जाइलम में पहुँचने वाला जल पौधे में कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है। जड़ों की स्फीति व जल के सक्रिय अवशोषण के कारण विकसित हुआ वह धनात्मक दाब मूल दाब (root pressure) कहलाता है।
यह सक्रिय दाब कुछ शाकीय पौधों के जाइलम में जल को ऊपर की ओर धकेलता है यह एक जैव क्रिया (Vital process) है। इसको निम्न प्रयोग द्वारा समझा जा सकता है–
गमले में लगा एक स्वस्थ पौधा लेते हैं। इस पौधे के तने को मिट्टी की सतह से लगभग 7 या 8 सेमी ऊपर आड़ा काट देते हैं। गमले में पानी लगाया जाता है। तने के कटे भाग पर रबर की नली की सहायता से एक काँच की नली जोड़ देते हैं। इस नली में थोड़ा-सा जले भर दिया जाता है तथा ज्ञल के स्तर को चिन्हित कर दिया जाता है। नलियों के जुड़ने के स्थान पर मोम लगाकर इसे वायुरोधी बना देते हैं। कुछ समय बाद काँच की नली में जल का स्तर बढ़ जाता है। स्पष्ट है कि जल का स्तर मूल दाब के कारण बढ़ता है। मूल दाब केवल छेटे शाकीय पौधों में जल के ऊपर चढ़ने की व्याख्या कर सकता है, बहुत ऊँचे वृक्षों में नहीं।
प्रश्न 26.
मानव के श्वसन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सभी अन्य स्तनधारियों के समान मनुष्य में भी श्वसन अंग फेफड़े होते हैं। मनुष्य का श्वसन तन्त्र निम्न भागों से मिलकर बना होता है
(a) वह मार्ग जो बाह्य वायु को फेफड़ों की श्वसन सतह से जोड़ता है।
(b) श्वसन सतह (फेफड़े)।
(a) वह मार्ग जो बाह्य वायु को फेफड़ों से जोड़ता है, नासाछिद्र, नासिका मार्ग, गला या ग्रसनी, श्वास नली (ट्रैकिया), ब्रोंकाई, ब्रोकियोल्स से मिलकर बना होता है।
(i) नासाछिद्र व नासिका मार्ग (Nostril and Nasal Passage)-वायु शरीर में नाक में स्थित नासिका छिद्रों के रास्ते प्रवेश करती है। यह मुख द्वारा भी श्वसन मार्ग में प्रवेश कर सकती हैं। नाक व मुँह, तालू (palate) द्वारा एक-दूसरे से अलग रहते हैं। नासिका मार्ग में लगे पतले बाल वायु को अनने का कार्य करते हैं व इससे धूल के कणों को अलग कर देते हैं। इस मार्ग में म्यूकस (mucus) का भी निर्माण होता है यह भी धूल के कणों को रोक देता है।
(ii) ग्रसनी क्षेत्र (Pharynx)-मुखगुहा व नासिका मार्ग का पिछला भाग ग्रसनी (pharynx) व लैरिंक्स के द्वारा श्वास नली ट्रैकिया से जुड़ा होता है। इसका अर्थ है कि नासा छिद्रों में प्रवेश पाई वायु नासिका मार्ग फैरिंक्स व लैरिंक्स से होकर ट्रैकिया तक पहुँचती है।
(iii) श्वास नली या दृकिया (Trachea)-यह एक पतली भित्ति वाली नली है। इस पर कालेज के बने छल्ले थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लगे रहते हैं। यह छल्ले किया में वायु की पर्याप्त मात्रा की अनुपस्थिति में भी इसे पिचकने नहीं देते। ऎकिया का सबसे ऊपरी भाग ही लैरिंक्स के स्वर यन्त्र से जुड़ा रहता है।
(iv) ब्रोंकाई (Bronchi)-ट्रैकिया गर्दन में होती हुई वक्ष गुहा तक पहुँचती है। वक्ष गुहा (Thoracic cavity) में यह दा व बाय दो शाखाओं ब्रोंकाई में विभक्त हो जाती है। प्रत्येक ब्रोंकस अपनी-अपनी ओर के फेफड़े में प्रवेश कर और पतली नलिकाओं में विभक्त हो जाता हैं जिन्हें ब्रोकियौल्स कहते हैं।
(b) फेफड़े (Lungs)- मनुष्य में दो फेफड़े होते हैं जो वक्ष गुहा में स्थित होते हैं। वक्ष गुहा उद्रीय गुहा से एक पेशीय पट्ट डायाफ्राम (Diaphragm) द्वारा पृथक रहती है। फेफड़े दो पतली झिल्लियों एल्यूरा (Plura) द्वारा ढके रहते हैं तथा पसलियों (rib cage) में सुरक्षित रहते हैं। डायाफ्राम श्वसन प्रक्रिया में मदद करता हैं। प्रत्येक ब्रोकियौल और पतली ब्रोकियोल में विभाजित हो जाती है।
प्रत्येक पतली ऑकियोल के अंतिम सिरे पर अनेक पतले वायु प्रकोष्ठ (air sac) या एल्वियोली (alveoli) होते हैं। फेफड़ों में गैसों का विनिमय इन्हीं एल्वियोली में होता हैं। इन एल्वियोली का सतही क्षेत्र बहुत अधिक होता है तथा इनकी अत्यन्त पतली भित्ति में रक्त केशिकाओं का जाल बिछा रहता है। डायाफ्राम वक्षीय गुहा व पसलियों में संकुचन व शिथिलन से इसका आयतन बढ़ता व घटता है जिससे वायु फेफड़े में प्रवेश करती व बाहर निकलती है।
प्रश्न 27.
कलम लगाने की विधि का वर्णन करें।
उत्तर:
कलम रोपण (Grafting)-कलम रोपण, वध प्रजनन की एक अनूठी विधि है जिसमें दो भिन्न पौधों के बीच भौतिक व क्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। सरल अर्थों में यह दो पौधों को जोड़ने की विधि हैं। इस विधि में दो पादपों के भागों, स्तम्भों को आपस में इस प्रकार जोड़ा जाता है कि वे संयुक्त होकर एक पादप के रूप में परिवर्धित होते हैं। इस कार्य के लिए एक ऐसे पौधे को चुना जाता है जिसमें सुविकसित व स्वस्थ मूल तन्त्र हो।
इसे स्कन्ध या स्टॉक (Stock) कहते हैं। यह प्राय: निम्न गुणों वाला होता है। इस पर उत्तम गुणों वाले पादप स्तम्भ जिसे कलम या सियन (scion) कहते हैं, को स्थापित किया जाता है।
अर्थात् कलम रोपण या ग्राफ्टिंग में स्टॉक पर अच्छे गुण वाले पौधे की कलम लगायी जाती है। स्कन्ध की स्वस्थ शाखा को ऊपर से तिरछ काटकर उस पर उतनी ही मोटाई की कलम को तिरछ काटकर जोड़ दिया जाता हैं यह कार्य इस प्रकार किया जाता है कि दोनों को संवहनी (vascular) भाग प्रमुखतः एधा एक-दूसरे के सम्पर्क में रहें। बंधे स्थान को गीले सूती कपड़े से बाँध दिया जाता है। कुछ दिनों बाद स्कन्ध व कलम आपस में पूर्णत: जुड़कर एक पादप के रूप में विकसित हो जाते हैं।
प्रश्न 28.
द्वि निषेचन किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
द्वि निषेचन (Double Fertilization)- आवृतबीजी या पुष्पी पौधों में परागकण के अंकुरण से बनी पराग नलिका भुणकोष (embryo sac) में दो नर केन्द्रक (male nuclei) मुक्त करती है। इनमें से पहला नर केन्द्रक, अण्ड कोशिका से संलयन कर युग्मनज (zygote) बनाता है। यही प्रक्रिया वास्तविक निषेचन (fertilization) कहलाती है। युग्मनज का परिवर्धन भ्रूण के रूप में होता है। इस सालयन का सिनगैमी (syngamy) भी कहते हैं। दूसरा नर केन्द्रक भ्रूण कोष (embryo sac) में स्थित दोनों ध्रुवीय केन्द्रकों (polarnuclei) से संलयित हो जाता है। इस संलयन में एक त्रिगुणित (triploid) केन्द्रक प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बनता है।
इस संलयन को त्रिसंलयन (triple fusion) कहा जाता है। इस प्रकार एक ध्रुणकोष में दो प्रकार के संलयन (सिनौमी व त्रिसंलयन) होते हैं। अत: यह घटना द्वि निषेचन (double fertilization) कहलाती है। द्वि निषेचन के फलस्वरूप हुए त्रिसंलयन से भ्रूणपोष (endosperm) का निर्माण होता है। भ्रूणपौष का संचित खाद्य पदार्थ बढ़ते हुए भ्रूण की पोषक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अत: द्वि निषेचन का आवृतबीजी पौधों के जीवन में विशेष महत्व है।
प्रश्न 29.
परागण पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
परागण (Pollination)-परागकणों (pollen grains) का परागकोष से मुक्त होकर उसी प्रजाति के पुष्य के वर्तकाग्र तक स्थानान्तरण परागण कहलाता है। पुष्पीय पौधों में नर व मादा दोनों प्रकार के युग्मक अचल (non-motile) होते हैं। मादा युग्मक अर्थात् अण्ड कौशिका अण्डाशय के बीजाण्ड में बने भूणकोष में स्थित होती है। नर युग्मक पराग कण में स्थित होता है। लैंगिक जनन की सफलता के लिए इनका संलयन आवश्यक होता है। लेकिन इससे पहले आवश्यक होता है इनका पास-पास आना। परागण की प्रक्रिया द्वारा इसी उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। परागण के प्रकार-पराग कणों के स्रोत के आधार पर परागण को निम्न प्रकारों से बाँटा जाता है
(i) स्वपरागण (Self Pollination)-एक पुष्प के पराग कोष से पराग कणों का उसी पुष्प के वर्तिकाग्न (sligma) या उसी पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्ने तक स्थानान्तरण स्वपरागण कहलाता है।
(ii) पर परागण (Cross Pollination)-परागकणों का एक पुष्य के पराग कोषों से उसी प्रजाति के दूसरे पौधे पर लगे पुष्पों के वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण पर परागण या जैनोगेमी कहलाता है। केवल इस प्रकार के परागण द्वारा आनुवंशिक रूप से भिन्न परागकण उसी प्रजाति के वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं। परागण के साधन-पराग कणों के स्थानान्तरण में दो प्रकार के साधन मदद करते हैं-अजैविक साधन (Abiotic agents); जैसे-वायु व जल। जैविक साधन (Biotic agents); जैसे-कीट, पक्षी, चमगादड़, गिलहरी आदि।
प्रश्न 30.
मानव जनन तन्त्र का नामांकित चित्र द्वारा वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य में जनन-मनुष्य एकलिंगी (unisexual) प्राणी है। नर द्वारा चलायमान नर जनन कोशिका या शुक्राणु तथा मादा द्वारा अचल अण्डु कोशिका का निर्माण किया जाता है।
(a) नर जनन तन्त्र (Male Reproductive System)-नर जानन। तन्त्र में दो प्रमुख प्रकार के भाग होते हैंप्राथमिक जनन अंग-वृषण, तथा सहायक नलिकाएँ व ग्रन्थियाँ नर में दो वृषण उदरगुहा से बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं। शुक्राणु उत्पादन के लिए शरीर के तापमान से 2-3°C कम तापमान की आवश्यकता होती है। इसी कारण वृषण उदर गुहा से बाहर पाये जाते हैं जहाँ का तापमान शरीर के तापमान से कम होता है तथा शुक्राणु उत्पादन सहज रूप से होता रहता है।
प्रत्येक वृषण लाखों शुक्र जनन नलिकाओं का बना होता है। सभी शुक्र जनन नलिकाएँ एक अत्यधिक कुण्डलित रचना एपिडिडाइमस में खुलती हैं। एपिडिडाइमस का दूरस्थ सिरा शुक्र वाहिनी में खुलता है। प्रत्येक वृषण से जुड़ी शुक्र वाहिनी ऊपर बढ़कर उदरगुहा में प्रवेश करती है तथा थैलीनुमा संरचना शुक्राशय (serminal vesicle) में खुलती है। वृषण की शुक्र जनन नलिका में बने शुक्राणु नलिका तन्त्र से शुक्राशय में पहुँच कर पोषण प्राप्त करते हैं। शुक्राशय से निकली स्खलन वाहिनी (ejaculatory duct) इसे मूत्र मार्ग से जोड़ती है। मूत्र मार्ग पेशीय रचना शिश्न से घिरा होता है। व एक छिद्र द्वारा शरीर से बाहर खुलता है। मूत्र व जनन द्रव्य दोनों ही इसी छिद्र से शरीर से बाहर निकलते हैं।
(b) मादा जनन तन्त्र (Female Reproductive System)- मादा जनन तन्त्र भी दो प्रकार के भागों से मिलकर बना होता है। प्राथमिक जनन अंग-अण्डाशय जहाँ अण्ड कोशिका का निर्माण होता है। सहायक नलिकाएँ व ग्रन्थियांअण्डवाहिनियाँ, गर्भाशय व योनि । अण्डाशय का आन्तरिक स्तर जनन एपीथीलियम कोशिकाओं का बना होता है जो अण्ड कोशिकाओं का निर्माण करता है। यह प्रक्रिया अण्डजनन कहलाती है। (लड़की के जन्म के समय से ही कई सारे अपरिपक्व अण्ड दोनों अण्डाशयों में पाये जाते हैं। यौवनारम्भ होने पर यह परिपक्व होना प्रारम्भ कर देते हैं)।
प्रत्येक अण्डाशय के समीप एक कोप (funnel) के आकार की संरचना पायी जाती है। इसके सिरे पर अँगुली के समान अनेक प्रवर्ध होते हैं। यह कीपाकार संरचना पीछे की ओर अपनी-अपनी ओर की अण्डवाहिनी या फैलोपियन ट्यूब में खुलती हैं। दोनों ओर की अण्डवाहिनियाँ मिलकर थैली जैसी नाशपाती के आकार की पेशीय रचना गर्भाशय (uterus) बनाती हैं। गर्भाशय एक संकरी ग्रीवा द्वारा योनि। में खुलती है। मनुष्य में निषेचन अण्डवाहिनीं में व भ्रूणं का विकास गर्भाशय में होता है।
नर व मादा दोनों में प्राथमिक जनन अंग अन्त:स्रावी ग्रन्थि की तरह भी कार्य करते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
जो जीव अपना भोजन सड़े-गले पदार्थों से लेते हैं वे कहलाते हैं
(अ) माँसाहारी
(ब) परजीवी
(स) मृतजीवी
(द) सर्वाहारी
उत्तर:
(स) मृतजीवी
प्रश्न 2.
सर्वाहारी के उदाहरण हैं
(अ) चूहे और सूअर
(ब) फैजाई एवं बैक्टीरिया
(स) मर और खटमल
(द) गाय एवं बकरी
उत्तर:
(अ) चूहे और सूअर
प्रश्न 3.
रसायन संश्लेषी के उदाहरण हैं
(अ) सल्फर जीवाणु व पीपल
(ब) ताँबा जीवाणु एवं पीपल
(स) नीम एवं पीपल
(द) सल्फर जीवाणु एवं लौह जीवाणु
उत्तर:
(द) सल्फर जीवाणु एवं लौह जीवाणु
प्रश्न 4.
यूकैरियोटिक कोशिका में प्रकाश संश्लेषी वर्णक पाये जाते हैं
(अ) कोशिका द्रव्य में
(ब) केन्द्रक में
(स) लवक में
(द) गॉल्जीबॉडी में।
उत्तर:
(स) लवक में
प्रश्न 5.
युवा पर्यों व फलों में बहुतायत से उपस्थित वर्णक
(अ) वर्णी लवक
(स) हरित लवक
(ब) अवर्णीलवक
(द) वर्णक नहीं पाये जाते।
उत्तर:
(अ) वर्णी लवक
प्रश्न 6.
कैरोटिन व जैन्थोफिल का रंग है
(अ) गहरा हरा
(ब) हल्का हरा
(स) पीला नारंगी
(द) नीला है।
उत्तर:
(स) पीला नारंगी
प्रश्न 7.
प्रत्येक हरित लवक में कितने ग्रेना पाये जाते हैं ?
(अ) 100-200।
(ब) 300-500
(स) 10-20
(द) 40-60.
उत्तर:
(द) 40-60.
प्रश्न 8.
वायुमण्डल में उपलब्ध कार्बन डाई-ऑक्साइड का प्रतिशत है
(अ) 0:03
(ब) 0.3
(स) 3
(द) 0 – 001.
उत्तर:
(अ) 0:03
प्रश्न 9.
बैंगनी जीवाणु व नील हरित जीवाणु प्रदर्शित करते
(अ) प्रकाश स्वपोषण
(ब) रासायनिक स्वपोषण
(स) मृतोपजीविता
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(अ) प्रकाश स्वपोषण
प्रश्न 10.
विषमपोषी अवशोष प्रकार का पोषण पाया जाता
(अ) घरेलू मक्खी में
(ब) ऑक्टोपस में
(स) मशरूम में
(द) जोंक (leech) में।
उत्तर:
(स) मशरूम में
प्रश्न 11.
आमाशयी रस का pH होता है लगभग
(अ) 7
(ब) 1.5
(स) 6
(द) 0,
उत्तर:
(ब) 1.5
प्रश्न 12.
दूध की प्रोटीन का पाचक एन्जाइम हैं
(अ) रेनिन
(ब) लाइपेज
(स) ट्रिप्सिन
(द) स्टिएप्सिन।
उत्तर:
(अ) रेनिन
प्रश्न 13.
यीस्ट में अनविसी श्वसन से बनता है
(अ) CO2, जल व ऊर्जा
(ब) CO2, ऐल्कोहॉल व ऊर्जा
(स) CO2, लैक्टिक अम्ल व ऊर्जा
(द) CO2, व ऊर्जा।
उत्तर:
(ब) CO2, ऐल्कोहॉल व ऊर्जा
प्रश्न 14.
श्वास रन्ध्र या स्पाइरेकल (Spiracles) किस जीव के श्वसन में सहायक हैं
(अ) मछली
(ब) केंचुआ
(स) तिलचट्टा
(द) मनुष्य।
उत्तर:
(स) तिलचट्टा
प्रश्न 15.
दोहरा परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है
(अ) मछली में
(ब) मेंढक में
(स) केंचुए में
(द) बन्दर में।
उत्तर:
(द) बन्दर में।
प्रश्न 16.
मनुष्य में RBC का जीवन काल कितना होता है ?
(अ) 3 दिन
(ब) एक वर्ष
(स) 120 दिन
(द) 7-8 दिन।
उत्तर:
(स) 120 दिन
प्रश्न 17,
बरसात के दिनों में लकड़ी के दरवाजों का फूल जाना उदाहरण हैं
(अ) विसरण को
(ब) अन्त:शोषण का
(स) जीवद्रव्य कुंचन का
(द) केशिकत्व का।
उत्तर:
(ब) अन्त:शोषण का
प्रश्न 18.
निम्न में से कौन-सा एक अमोनोटेलिक जन्तु है
(अ) छिपकली
(ब) कबूतर
(स) हाइड्रा
(द) मेंढक।
उत्तर:
(स) हाइड्रा
प्रश्न 19.
किस जीव में नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ यूरिक अम्ल होता है
(अ) स्पंज
(ब) मनुष्य
(स) मछली
(द) तोता।
उत्तर:
(द) तोता।
प्रश्न 20.
किस नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ का सर्जन ठोस रूप में होता है ?
(अ) अमोनिया
(ब) यूरिक अम्ल
(स) यूरिया
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) यूरिक अम्ल
प्रश्न 21.
केंचुए में उत्सर्जी अंग हैं
(अ) ग्रीन ग्रन्थि
(ब) वृक्कक या नैफ्रीडिया
(स) गुर्दे या किडनी
(द) संकुचनशील रिक्तिका।
उत्तर:
(ब) वृक्कक या नैफ्रीडिया
प्रश्न 22.
कीटों में नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ है
(अ) अमोनिया
(ब) यूरिया
(स) यूरिक अम्ल
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) यूरिया
प्रश्न 23.
कीटों का उत्सर्जी अंग हैं
(अ) मैलपीजी नालिका
(व) नेफ्रीडिया
(स) गुर्दे
(द) संकुचनशील रिक्तिका।
उत्तर:
(अ) मैलपीजी नालिका
प्रश्न 24.
जन्तुओं की तुलना में पादपों में उपापचयी क्रियाओं की दर
(अ) कम होती है
(ब) अधिक होती है।
(स) समान होती है
(द) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) कम होती है
प्रश्न 25.
नाइट्रोजनी अपशिष्ट मुख्यतः किसके उपापचय से बनते हैं ?
(अ) कार्बोहाइड्रेट
(ब) वसा
(स) प्रोटीन
(द) विटामिन।
उत्तर:
(स) प्रोटीन
प्रश्न 26.
वृक्षों की छाल में पाये जाने वाले रन्ध्र कहलाते हैं
(अ) पर्णरन्ध्र
(ब) जलरन्ध्र
(स) वातरन्ध्र
(द) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर:
(स) वातरन्ध्र
प्रश्न 27.
लम्बवत् द्विविभाजन पाया जाता है
(अ) अमीबा में।
(ब) पैरामीशियम में
(स) यूग्लीना में
(द) प्लाज्मोडियम में।
उत्तर:
(स) यूग्लीना में
प्रश्न 28.
आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं
(अ) मुकुलन में
(ब) द्विविखण्डन में
(स) लैंगिक जनन में
(द) पुनरुद्भवन में।
उत्तर:
(स) लैंगिक जनन में
प्रश्न 29.
माइलिन आच्छदं पाया जाता है
(अ) माश्म (dendrite) पर
(ब) तंत्रिकाक्ष (Axon) पर
(स) कोशिकाकाय (cyton) पर
(द) संवेदी अंगों पर।
उत्तर:
(ब) तंत्रिकाक्ष (Axon) पर
प्रश्न 30.
मेरुरज्जु का पृष्ठ मूल (dorsal root) बना होता है
(अ) चालक तंत्रिका तन्तुओं का
(ब) संवेदी तंत्रिका तन्तुओं का
(स) मिश्रित तंत्रिका तन्तुओं का
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) संवेदी तंत्रिका तन्तुओं का
प्रश्न 31.
खरपतवार उन्मूलन हेतु प्रयोग किये जाने वाला वृद्धि पदार्थ है
(अ) ऑक्सिन
(ब) जिबरेलिन
(स) साइटोकाइनिन
(द) इथाईलीन। उत्तर:माला
उत्तर:
(अ) ऑक्सिन
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
कॉलम A में दिये गये मदों का कॉलम B के मदों से मिलान कीजिए
उत्तर:
1. (i) → (c),
(ii) → (d),
(iii) → (e),
(iv) → (a),
(v) →(f),
(vi) → (b).
2.
(i) → (d),
(ii) → (e),
(iii) → (3),
(iv) → (b),
(v) → (1),
(vi) → (c).
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पोषक पदार्थों के कोई दो उपयोग लिखिए।
उत्तर:
- इनसे सभी जैव क्रियाओं के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है।
- वृद्धि व विकास अर्थात् नये पदार्थ के संश्लेषण के लिए पदार्थ मिलते हैं।
प्रश्न 2.
लवक के तीन प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वर्णी लवक, अवर्णी लवक तथा हरित लवक।
प्रश्न 3.
दो ऐसे प्रकाश संश्लेषी वर्णकों के नाम लिखिए। जो हरे रंग के नहीं होते।
उत्तर:
कैरोटिन व जैन्थोफिल।।
प्रश्न 4.
प्रकाश अभिक्रिया में बनने वाले ऐसे दो पदार्थों का नाम लिखिए जो अप्रकाशिक क्रिया में CO, के स्थिरीकरण हेतु आवश्यक हैं।
उत्तर:
ATP व NADPH.
प्रश्न 5.
C3 चक्र को अन्य किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
कैल्विन चक्र
प्रश्न 6,
कोशिका में कार्बोहाइड्रेट्स के संचयन का प्रकाश संश्लेषण की दर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
संचित कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से प्रकाश संश्लेषण की दर कम हो जाती हैं। इनकी कमी से प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ती है।
प्रश्न 7.
भोजन के किस घटक का लगातार अभाव मनुष्य में कब्ज़ पैदा कर देता है ?
उत्तर:
आहारी रेशे या क्षांश (Dietary fibre pr roughage)।
प्रश्न 8,
आहारी रेशों के दो मुख्य कार्य बताइए।
उत्तर:
- यह भोजन के अनुपात या मात्रा को बढ़ाता है अंत: बिना अधिक कैलोरी लिए व्यक्ति का पेट भर जाता है।
- यह व्यक्ति को कब्ज़ से बचाता हैं व आहार तन्त्र को स्वस्थ बनाये रखता है।
प्रश्न 9,
प्राणिसमभोजी जीवों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
सभी जन्तु जटिल भोजन का अन्तर्ग्रहण कर उसका पाचन अपने शरीर के अन्दर करते है। इस प्रकार का पोषण परपोषी प्राणिसम्भोजी (heterotrophic holozoic) कहलाता हैं। ऐसे जीव प्राणिसम भौजी जीव होते हैं।
प्रश्न 10.
लार में उपस्थित किन्हीं तीन पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
लार में अकार्बनिक लवण, आयन, म्यूसिन, जल व एमाइलेज़ उपस्थित होता है।
प्रश्न 11.
पाचन तन्त्र में जीभ का क्या कार्य है ?
उत्तर:
जीभ भोजन को चबाने में दाँतों का सहयोग करती है, चबाये गए भोजन को ग्रासनली की ओर धकेलती है तथा स्वाद का ज्ञान कराती है। जीभ बोलने में भी सहायता करती
प्रश्न 12.
उस एन्जाइम का नाम लिखिए जो निष्क्रिय ट्रिप्सिनोजन को सक्रिय ट्रिप्सिन में बदल देता है।
उत्तर:
एन्टेरोकाइनेज (Enterokinase)।
प्रश्न 13.
पेशीय कोशिका में हुए अवायवीय श्वसन से अन्तिम उत्पाद क्या बनता है ?
उत्तर:
लैक्टिक अम्ल
प्रश्न 14.
अवायवीय श्वसन की अपेक्षा वायवीय श्वसन में अधिक ऊर्जा उत्पन्न क्यों होती है ?
उत्तर:
अवायवीय श्वसन में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति के कारण आधारी पदार्थ (Substrate) का पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता। अत: अन्तिम उत्पादों में अधिक ऊर्जा शेष रह ज्ञात है। ऑक्सी श्वसन में ग्लूकोज पूर्ण रूप से CO2 में विभक्त हो जाता है।
प्रश्न 15.
नासा मार्ग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:
- बाल व म्यूकस की उपस्थिति के कारण वायु का अनना व धूल कर्णो को फेफड़ों के अन्दर जाने से रोकना।
- फेफड़ों में प्रवेश करने वाली वायु के तापमान का नियमन करना।
प्रश्न 16.
श्वसन मार्ग के उस भाग का नाम लिखिए जो ग्रसनी को श्वास नली से जोड़ता है।
उत्तर:
स्वर यन्त्र (Larynx), ग्रसनी को श्वास नली से जोड़ता है।
प्रश्न 17.
मनुष्य में श्वसन तन्त्र के किस भाग में कार्टीलेज के बने c आकार के छल्ले पाये जाते हैं ?
उत्तर:
श्वास नली (Trachea) में।
प्रश्न 18.
एपीग्लाटिस का क्या कार्य है ?
उत्तर:
एपीग्लाटिस श्वसन मार्ग में एक कपाट (valve) की भौति कार्य करता है तथा भोजन निगलते समय वायुमार्ग को इक देता है ताकि भोजन कण वायु मार्ग में न जा पायें।
प्रश्न 19.
बन्द परिसंचरण तन्त्र के दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
(i) रुधिर का उचित दाब बनाया रखा जा सकता है। तथा किसी अंग विशेष को रक्त की आपूर्ति बढ़ाई व घटाई जा सकती है।
(ii) जहाँ रक्त की अधिक आवश्यकता है वहाँ परिशुद्धता से रक्त भेजा जा सकता है। रक्त अनियमित रूप से इधर उधर नहीं बहता।
प्रश्न 20.
रक्त में पाये जाने वाले कुछ प्रोटीन के नाम लिखिए।
उत्तर:
एल्यूमिन, ग्लोब्यूलिन, एंटीबॉडीज, फाइब्रिनोंजिन, प्रोग्राम्बिन।
प्रश्न 21.
उस शिरा का नाम लिखिए जिसमें शुद्ध रक्त पाया जाता है ?
उत्तर:
फुफ्फुसीय शिरा (Pulmonary vein)।
प्रश्न 22.
स्वस्थ व्यक्ति के रक्त दाब का मान लिखिए।
उत्तर:
120/80 mirm Hg. (120 min Hg प्रंकुचन दाब/80 mm Hg अनुशिथिलन दाब)
प्रश्न 23.
वाष्पोत्सर्जन के दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
- यह पौधों में रसारोहण (Ascent of sap) अर्थात् जल व खनिज लवणों के जड़ से पत्तियों तक पहुँचने में मदद।
- पत्तियों से वाष्पोत्सर्जन की गुप्त ऊष्मा निकलने के कारण यह उनको अधिक ताप से बचाता है।
प्रश्न 24.
मूल रोम के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:
- जल व खनिज लवणों का अवशोषण करना।
- अवशोषी सतह को कई गुना बढ़ा देना।
प्रश्न 25.
सक्रिय अवशोषण क्या है ?
उत्तर:
सक्रिय अवशोषण में पौधा विशेष अणुओं का विसरण के नियम के विपरीत भी अवशोषण कर सकता है। अर्थात् कम सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की ओर। इस हेतु ऊर्जा व ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 26.
केशिकात्व क्या है ?
उत्तर:
किसी द्रव के स्वयं ही रिक्त स्थान में प्रवेश को केशिकाव (capillarity) कहा जाता है। इसी के कारण किसी पतली नलिका या कैपीलरी को जल में ऊध्र्वाधर खड़ा करने पर उसमें जल कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है।
प्रश्न 27.
उपचयी क्रियाओं को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
ऐसी उपापचय क्रियाएँ जिनमें सरल यौगिक मिल कर जटिल यौगिकों का निर्माण करते हैं उपचयी क्रियाएँ (anabolic reactions) कहलाती हैं, जैसे- प्रकाश संश्लेषण।
प्रश्न 28.
अमीबा में परासरण नियमन किस कोशिकांग द्वारा होता है ?
उत्तर:
संकुचनशील रिक्तिका (contractile Vacuole) द्वारा।
प्रश्न 29.
किन्हीं दो उभयलिंगी जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
केचुआ, टेपवर्म।।
प्रश्न 30.
मनुष्य व अन्य स्तनधारियों में वृषण दरगुहा से बाहर क्यों स्थित होते हैं ?
उत्तर:
क्योंकि उदरगुहा का तापमान 37°C होता है जबकि शक्राण निर्माण के लिए 2-3°C कम ताप की आवश्यकता होती है जो उन्हें शरीर के बाहर वृषण कोष में प्राप्त होता है।
प्रश्न 31.
प्लेसेंटा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
गर्भाशय में पलने वाले भ्रूण के पोषण, ऑक्सीजन आपूर्ति व उत्सर्जन के लिए एक विशेष संरचना का विकास होता है जिसे प्लेसेण्टा कहते हैं। भ्रूण प्लेसेण्टा द्वारा गर्भाशय भित्ति से जुड़ा रहता है।
प्रश्न 32.
दो ऐसे जन्तुओं के नाम लिखिए जिनमें मदचक्र (Estrons eyele) पाया जाता है।
उत्तर:
गाय, कुत्ता।
प्रश्न 33.
किसी एकलिंगी पादप का नाम लिखिए।
उत्तर:
पपीता, साइकस।।
प्रश्न 34.
तन्त्रिका कोशिका के विद्युतरोधी आच्छद का नाम लिखिए।
उत्तर:
माइलिन आच्छद।
प्रश्न 35.
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के दो प्रमुख भागों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र।
- परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र।।
प्रश्न 36.
हॉर्मोन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अन्त: स्रावी या नलिका विहीन ग्रन्थियों के स्नाव, अर्थात् वह रासायनिक पदार्थ जो अन्त:स्रावी ग्रन्थियों द्वारा रक्त में मुक्त कर दिये जाते हैं; जैसे-इन्सुलिन
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
शरीर में पोषकों का उपयोग किन तीन प्रकारों से होता है ?
उत्तर:
शरीर में भोजन के पोषक पदार्थों का उपयोग निम्न तीन प्रकारों से होता है
- कोशिकीय श्वसन में इन पोषकों से ऊर्जा प्राप्त होती हैं।
- जीव की वृद्धि व विकास हेतु तथा टूट-फूट की मरम्मत व शरीर-ऊतकों के स्वस्थ रख-रखाव के लिए आवश्यक पदार्थ के रूप में।
- उन पदार्थों के रूप में जो विभिन्न उपापचयी क्रियाओं में सहायक हैं।
प्रश्न 2.
परजीवी क्या होते हैं ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वह जीव जो अपने पोषण के लिए किसी अन्य जीवित जीवधारी पर निर्भर रहते हैं परजीवी कहलाते हैं। इस आधार पर यह दो प्रकार के होते हैं
(a) स्थायी परजीवी-वह परजीवी जो अपना पूर्ण जीवन चक्र पोषक के शरीर पर या शरीर में पूरा करते हैं।
(b) आंशिक परजीवी-वह परजीवी जो अपने जीवन चक्र का एक भाग ही पोषक के शरीर में पूरा करते हैं। स्थायी परजीवी दो प्रकार के होते हैंबाह्य परजीवी (Ectoparasite)-जो अपना पोषण पोषक की त्वचा से चिपक कर प्राप्त करते हैं; जैसे-अमरवेल, हूँ। अन्तःपरजीवी (Endoparasite)-जो पोषक के देह अंग में अपना जीवन पूर्ण करते हैं; जैसे-फीताकृमि, एस्केरिस आदि।
प्रश्न 3.
लार के कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
लार के कार्य-
- लार भोजन को गीला व लुग्दी समान बनाता है इसमें उपस्थित म्यूसिन इस लुग्दी को चिपचिपा बनाकर निगलने में मदद करता है।
- लार में उपस्थित एमाइलेज एन्जाइम स्टॉर्च को माल्टोज नामक शर्करा में बदल देता है।
- इसमें उपस्थित एण्टीबैक्टीरियल पदार्थ मुख गुहा की जीवाणुओं से रक्षा करते हैं।
- लार जल संतुलन में सहायता करती है।
प्रश्न 4.
मनुष्य में पाचन तन्त्र का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 5.
मनुष्य के आमाशय की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य में आमाशय (storracti) डायाफ्राम के नीचे बायीं ओर स्थित होता है। अंग्रेजी के के आकार के इस थैली जैसे अंग की दीवारें मोटी व पेशीय होती हैं। आमाशय में दो द्वार पाये जाते हैं। अग्रद्वार जो ग्रासनली से जुड़ा होता है, हृदयद्वार (cardiac orifice) तथा पश्चद्वार जो छोटी आँत, में खुलता है, पाइलोरिक द्वार (Pyloric prifice) कहा जाता। आमाशय को मुख्यतः तीन भागों में बाँट जा सकता है
(a) कार्डियक भाग (Cardiac Stomach)-यह ग्रास नली से जुड़ा होता है।
(b) पाइलोरिक भाग (Pyloric Stomach)- आमाशय का। यह संकरा भाग छोटी आँत से जुड़ा होता है।
(c) फंडिक भाग (Fundic Stomach)-कार्डियक व पाइलोरिक आमाशय के बीच का क्षैतिज भाग फंडिक भाग कहलाता है।
प्रश्न 6.
अमीबा में पोषण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
अमीबा एक परपोषी प्राणिसमभौजी (heterouphic holozoic) जीव है। प्रोटोजोअन अमीबा स्वच्छ जल में पाया जाता है। अमीबा की कोशिका जैसे ही किसी भोज्य पदार्थ जैसे एल्गी के सम्पर्क में आती हैं, इसके कूटपाद (Pudexxdia) इस भोज्य पदार्थ के चारों ओर एक कप जैसी रचना बना देते हैं। धीरे-धीरे यह आपस में मिलकर खाद्यधानी (food Vacuole) का निर्माण कर लेते हैं। अन्तग्रहण के बाद इस प्रकार भोज्य पदार्थ अमीबा कोशिका में एक खाद्य धानी के अन्दर घिरा रहता है।
अमीबा में अन्त:कोशिकीय पाचन (intracellular digestion) पाया जाता है। कोशिका के लाइसोसोम इस खाद्य धानों के सम्पर्क में आकर अपने पाचक एन्जाइम खाद्यधानी में मुक्त कर देते हैं। इससे धीरे-धीरे भोजन का पाचन हो जाता है। बचे अपाच्य पदार्थ को कोशिका कला द्वारा एक्सोसाइटोसिस विधि से बाहर निकाल दिया जाता है।
प्रश्न 7.
अनॉक्सीश्वसन व ऑक्सीश्वसन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अनॉक्सीश्वसन व ऑक्सी श्वसन में अन्तर
प्रश्न 8.
श्वसन व दहन की तुलना कीजिए।
उत्तर:
श्वसन व दान में अन्तर
प्रश्न 9.
अमीबा में श्वसन किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
अमीबा में श्वसन (Respiration in Amoeba)- अमीबा एक एककोशिकीय जीव है, जिसकी कोशिका केवल एक कोशिका कला से ढकी होती है।
जल में श्वसन में घुलित ऑक्सीजन विसरण की प्रक्रिया द्वारा अमीबा के शरीर में प्रवेश करती है। इस ऑक्सीजन का प्रयोग अमीबा अन्त:कोशिकीय श्वसन में करता है। इस प्रक्रिया में मुक्त हुई कार्बन डाई-ऑक्साइड पुनः विसरण की प्रक्रिया में शरीर से बाहर विसर्जित कर दी जाती है। श्वसन के बाद चूँकि शरीर में CO2 की अधिकता हो जाती है अत: विसरण की प्रक्रिया स्वत: सम्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 10.
मछली में श्वसन अंगों का एक नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 11.
छोटी आंत की तीन ऐसी विशेषताएँ बताइए जो इसे अवशोषण हेतु एक अच्छा अंग बनाती हैं।
उत्तर:
- छेटी आँत की लम्बाई बहुत अधिक होती है। विलाई कोशिकाएँ मनुष्य में यह लगभग 8 गाइविला मीटर लम्बी होती है जिससे धमनिकापचे हुए खाद्य पदार्थों को। विटल चित्र-छोटी आंत में विलाई (सूक्ष्मांकूर)
- छोटी आँत की आन्तरिक सतह अँगुली के आकार के प्रवर्धा (extensions) के रूप में गुहा में फैली रहती है। इन्हें विलाई
- कहा जाता है। विलाई आँत की अवशोषी सतह में वृद्धि कर देती है।
- आँत की इन विलाई की प्रत्येक कोशिका पर अत्यन्त सूक्ष्म सूक्ष्मांकुर या माइक्रोविलाई (microvilli) पाये जाते हैं। यह ऑत की अवशोषी सतह कई गुना बढ़ा देते हैं।
- इसमें वसा के अवशोषण के लिए लैक्ट्रियल पाई जाती है।
प्रश्न 12.
रक्त के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रक्त के कार्य (Functions of the Blood)
- गैसों का परिवहन (Transport of Gases)-रक्त शरीर की सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुँचाने का कार्य करता है। साथ ही शरीर में श्वसन के उपरान्त बनी CO2 का परिवहन भी रक्त के द्वारा होता है।
- पोषक पदार्थों का परिवहन रक्त शरीर की सभी कोशिकाओं को पोषक पदार्थों की आपूर्ति करता है। भोजन के पाचन के बाद बने अन्तिम उत्पाद रक्त द्वारा ही सभी कोशिकाओं को पहुँचाये जाते हैं।
- रक्त हॉर्मोनों (Hormones) का भी परिवहन करता है।
- रक्त, शरीर में बने उत्सर्जी पदार्थों को एकत्रित कर उत्सर्जी तंत्र तक ले जाता है।
- रक्त की WBC2 शरीर की रोगाणुओं से रक्षा करती है।
- रक्त, शरीर का ताप एक सा बनाये रखने (uniform temperature of the body) में मदद करता है।
प्रश्न 13.
धमनी व शिरा में अन्तर बताए।
उत्तर:
धमनी व शिरा में अन्तर
प्रश्न 14.
पत्ती की आन्तरिक संरचना का चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 15.
तने के मुख्य कार्य लिखिए।
उत्तर:
तने के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं
- तना शाखाओं को आधार प्रदान करता है क्योंकि तने के मुख्य भाग से ही शाखाएँ निकलती हैं।
- तना प्ररोह तन्त्र (shoot system) का प्रमुख भाग है इसी पर पौधे के वायवीय अंग जैसे शाखा, पत्तियाँ व पुष्प बनते हैं।
- कुछ तने रूपान्तरित होकर खाद्य संचय का कार्य करते हैं; जैसे- आलू, अरवी।
- नागफनी जैसे पौधों में तना चपटा व हरा होकर प्रकाश संश्लेषण का कार्य करता है।
प्रश्न 16.
आप कैसे सिद्ध करेंगे कि खाद्य पदार्थों का संवहन फ्लोएम द्वारा होता है ?
उत्तर:
गमले में लगा एक स्वस्थ पौधा लेते हैं। इसके मुख्य तने पर मिट्टी की सतह से लगभग 15 सेमी ऊपर एक इंच चौड़ी पट्टी के रूप में इसकी छाल हटा दी जाती है। वलय (ring) के रूप में छाल हटाने पर छाल के साथ कोमल वल्कुट एवं फ्लोएम भी नष्ट हो जाते हैं। अन्दर जाइलम ऊतक स्वस्थ बना रहता है। जाइलम द्वारा जल का संवहन होता रहेगा।
प्रश्न 17.
मूसला जड़ व अपस्थानिक जड़ों के चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 18.
जड़ की अनुप्रस्थ काट के एक चित्र द्वारा मूल रोम से मूल के जाइलम तक जल का मार्ग दिखाइए।
उत्तर:
चित्र-मूल रोम से मृल जायलम तक का जल पथ
प्रश्न 19.
मनुष्य के उत्सर्जन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 20.
अलैंगिक जनन व लैंगिक जनन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अलैंगिक जनन व लैंगिक जनन में अन्तर
प्रश्न 21.
कायिक या वर्षी प्रजनन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
कायिक प्रजनन (Vegetative Reproduction)-के लाभ
- कायिक जनन से प्राप्त पादप गुणों में मात् पादप से पूर्णत: समान होते हैं अत: वांछित गुणों को बिना बदलाव के संरक्षित किया जा सकता है, जैसे-कलमी आम्।।
- ऐसे पौधे जिनमें बीज नहीं बनते या बीजांकुरण नहीं होता उन्हें व्यावसायिक स्तर पर कायिक प्रजनन से उगाया जा सकता है; जैसे-गुलाब, घास आदि।
- यह विधि तीव्र है तथा पौधों में फूल व फल का विकास शीघ्र होता है। यह जनन को सुनिश्चित भी बनाती हैं।
- यह विधि किफायती व कम श्रम की आवश्यकता वाली है। साथ ही प्रजनन क्षमवध भागों का प्रकीर्णन तेजी से होता है।
- केवल एक जनक की आवश्यकता होती हैं।
प्रश्न 22.
प्रोटोजोआ वर्ग के जीवों में विभिन्न प्रकार के द्विविखण्डन को केवल चित्रों द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
चित्र-प्रोटोजोआ वर्ग के जीवों में विभिन्न प्रकार के द्विविखण्डन-
(अ) अनियमित
(अ ) (ब) लम्बवत् (यूग्नीना)
(स) (पैरामीशियम्)
प्रश्न 23.
बहुविखण्डन क्या हैं ?
उत्तर:
बहुविखण्डन (Multiple Fission)- बहुविखण्डन अलैंगिक जनन का एक प्रकार हैं। इस प्रकार के विभाजन में एककोशिकीय जीव से विभाजन के फलस्वरूप अनेक पुत्री जी का निर्माण होता है। बहुविखण्डन प्रक्रिया में सबसे पहले जीव के केन्द्रक का विभाजन होता पुत्री कोशिकाए
हैं, जिससे कोशिका के अन्दर अनेक पुत्री केन्द्रक बन जाते हैं। बाद में प्रत्येक केन्द्रक के चारों और थोड़ा-थोड़ा कोशिकाद्रव्य इकट्ठा हो जाता है। इस प्रकार कोशिका के अन्दर अनेक नन्हें-नन्हें जीव बन जाते हैं जो कोशिका कला के फटने पर मुक्त हो जाते हैं।
उदाहरण- मलेरिया परजीवी अर्थात् प्लाज्मोडियम।।
प्रश्न 24.
हाइड्रा में मुकुलन केवल चित्रों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 25.
रज चक्र क्या है?
उत्तर:
मनुष्य व कपि जैसे प्राइमेट स्तनधारियों में जनन चक्र, रज चक्र या मेन्स्ट्रअल साइकिल (Intenstrual cycle) कहलाता है। यदि मादा में अण्ड का निषेचन नहीं होता तो यह अण्डोत्सर्ग के कुछ दिनों बाद गर्भाशय की आन्तरिक भित्ति व रक्त वाहिनियों के साथ टूटकर रक्तस्त्राव के रूप में यौनि से बाहर आ जाता है। गर्भाशय में मोटी व ग्रन्थिल आन्तरिक भित्ति का निर्माण अपेक्षित गर्भधारण के लिए होता है। गर्भधारण के अभाव में वह विघटित हो जाती हैं। स्त्रियों में यह क्रिया नियमित 27-30 दिन के अन्तराल पर सम्पन्न होती है अत: मासिक चक्र कहलाती है। इसी को रज चक्र कहा जाता है। स्त्रियों में प्रथम रज चक्र या रजो धर्म के आरम्भ को रजोदर्शन या मेनार्क कहते हैं।
प्रश्न 26.
एक प्रारूपिक पुष्य की खड़ी काट के चित्र द्वारा विभिन्न अंगों को दर्शाइए।
उत्तर:
प्रश्न 27.
पुष्पी पादपों में अण्डप की खड़ी काट का चित्र बनाइए जो निम्न भाग प्रदर्शित करे
(a) वर्तिकाग्र पर परागकण,
(b) पराग नलिका भ्रूण कोष में प्रवेश करती हुई
(c) बीजाण्ड।
उत्तर:
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया एवं अप्रकाशिक अभिक्रिया को समझाइए।
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण एक जटिल प्रकाश रासायनिक प्रक्रिया है जो निम्न दो अभिक्रियाओं से मिलकर बनी होती हैं।
- प्रकाश अभिक्रिया (Light Reaction),
- अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reaction)
1. प्रकाश अभिक्रिया- प्रकाश अभिक्रिया प्रकाश संश्लेषण के प्रकाश रासायनिक पद का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश च क्लोरोफिल की मदद से स्वांगीकारी शक्ति (assimilatory power) के रूप में ATF व अपंचयित NADPH का निर्माण होता है। इसके प्रमुख चरण हैं
- क्लोरोफिल अणुओं द्वारा निश्चित तरंगदैर्ध्य की प्रकाश किरणों का अवशोषण।
- क्लोरोफिल अणु का प्रकाश अवशोषित कर उत्तेजित (excited) अवस्था में आ जाना।
- उत्तेजित क्लोरोफिल अणु द्वारा जल का प्रकाशिक अपघटन (Photolysis)।
- ऑक्सीजन की उप-उत्पाद के रूप में मुक्ति।
- ATP का संश्लेषण तथा NADPH से NADP का निर्माण। प्रकाश अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट की थाइलेकॉइड झिल्ली में सम्पन्न होती है क्योंकि क्लोरोफिल अणु वहीं पाये जाते हैं।
2. अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reactiort)- प्रकाश संश्लेषण के दूसरे पद हेतु प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती अत: इसे अप्रकाशिक अभिक्रिया कहा जाता है। यह एक जैव रासायनिक (Biochemical) पद है, जिसमें प्रकाश अभिक्रिया में बनी स्वांगीकारी शक्ति (ATP व NADPH) का प्रयोग कार्बन डाई-ऑक्साइड के अपचयन तथा इससे कार्बोहाइड्रेट का निर्माण होता है। यह अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा भाग में सम्पन्न होती है। कार्बन डाई-ऑक्साइड के अपचयन व स्थिरीकरण के फलस्वरूप बनने वाला सर्वप्रथम उत्पाद एक तीन कार्बन परमाणु वाना यौगिक फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल या PGA होता है।
अत: यह चक्रीय प्रक्रिया C; चक्र कहीं जाती हैं। इसके खोजकर्ता के नाम पर इसे केल्विन चक्र (Calvin Cycle) भी कहते हैं। यह क्रिया अनेक एन्जाइमों की मदद से एक चक्र के रूप में सम्पन्न होती है। इसमें जहाँ एक ओर ग्लूकोज अणु का निर्माण होता है तो साथ में अन्य आवश्यक पदार्थों का पुनर्चक्रण भी होता रहता है। प्रकाश संश्लेषण की पूरी अभिक्रिया को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त कर सकते हैं
प्रश्न 2.
एक सरल प्रयोग द्वारा वाष्पोत्सर्जन क्रिया का प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर:
प्रयोग द्वारा वाष्योत्सर्जन का प्रदर्शन
आवश्यक सामान-मिट्टी से भरे समान आकार के दो गमले, एक काँच की बड़ी प्लेट, बैलजार, पॉलिथीन, ग्रीस आदि।
क्रियाविधि-लगभग एक ही आकार के दो गमले लिए जाते हैं। एक में पौधा लगा होता हैं जबकि दूसरे में मिट्टी तो होती है लेकिन पौधे के स्थान पर एक शुष्क लकड़ी गढ़ी होती है। दोनों गमलों की मिट्टी की सतह को प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है जिससे नमी का वाष्पन न हो। अब दोनों गमलों को अलग-अलग बेलजार के नीचे एक काँच की प्लेट पर रख देते हैं। बेलजार व प्लेट के बीच के स्थान को वायुरोधी बनाने के लिए बीच के स्थान पर ग्रीस लगा देते हैं। उपकरण को धूप में रख दिया जाता है।
प्रेक्षण एवं निष्कर्ष- जिस बेलजार के नीचे पौधा लगा गमला रखा हैं उसकी आन्तरिक सतह पर जल की नन्हीं-नन्हीं बूंदें संघनित हो जाती हैं। दूसरे कण्ट्रोल गमले में पानी की बूंदें नहीं आर्ती। इससे सिद्ध होता है कि इस पानी का स्रोत वाष्पोत्सर्जन ही हैं। गमलों में मिट्टी को पॉलिथीन से ढक दिया जाता हैं अत: सिद्ध होता है कि पौधों से वाष्पोत्सर्जन होता है।
प्रश्न 3.
मनुष्य के हदय की संरचना तथा इसकी क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य का हृदय (Heart of Human Being)- मनुष्य का हृदय लम्बा व शंक्वाकार (conical) होता हैं, जो वक्षीय गुहा में दोनों फेफड़ों के बीच थोड़ा-सा बार्थी और उपस्थित होता हैं। हृदय चार कोष्ठों का बना होता है। दो ऊपरी कोष्ठ अलिन्द व निचले कोष्ठ निलय कहलाते हैं। अलिन्द ग्राही कोष्ठ होते हैं जबकि निलय आपूर्तिकर्ता। दो अलिन्द के बीच अन्तर अलिन्दीय पर (inter auricuular septurn) तथा दोनों निलयों के बीच अन्तर निलयी पर पाया जाता है। बायाँ आलिन्द, बायें निलय से एक कपाट की मदद से सम्बन्ति रहता है। इसी प्रकार दायाँ अलिन्द एक वाल्व द्वारा दायें निलय से जुड़ा होता है।
हृदय की क्रियाविधि-हदय के अलिन्द व निलय में लयबद्ध संकुचन (coritraction) तथा शिथिलन (relaxation) क्रिया होती है। संकुचन को सिस्टोल (systole) व शिथिलन को डाएस्टोल (diastole) भी कहा जाता है। एक संकुचन इ शिथिलन अर्थात् एक धड़कन के साथ एक हृदय चक्र (cardiac cycle) पूर्ण होता है।
एक पूर्ण चक्र में निम्न अवस्थाएँ होती हैं
- शिथिलन-इस अवस्था में हुदय के सभी कोष्ठ शिथिल (relaxed) अवस्था में होते हैं। उनमें रक्त भरा होता है। दायें – अलिन्द में शरीर के सभी भागों से अशुद्ध रक्त आता है। बायें अलिन्द में फेफड़ों में शुद्ध रक्त आता है।
- अलिन्दों में संकुचन-अलिन्दों में संकुचन से दायें अलिन्द से अशुद्ध रक्त दायें निलय में आ जाता है। इसी प्रकार बायें अलिन्द से शुद्ध रक्त बायें निलय में भर जाता है।
- निलयों में संकुचन-निलयों में संकुचन होने पर बायें निलय से शुद्ध रक्त महाधमनी द्वारा पूरे शरीर को पम्प कर दिया जाता है। इसी प्रकार दायें निलय में भरा अशुद्ध रक्त फुफ्फुसीय धमनी द्वारा फेफड़ों को भेज दिया जाता हैं।
प्रश्न 4.
मनुष्य में आन्त्र रस के स्राव उनके नाम व कार्य लिखिए।
उत्तर:
मनुष्य की छोटी आँत को भित्ति में पन्थियाँ उपस्थित होती हैं जिनसे आँत्रीय रस (intestinal juice) का स्त्रावण होता है। इसे सकस एन्टेरीकस (5ucus Entericus) भी कहा जाता है। इसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के एन्जाइम होते हैं। जिनमें प्रमुख हैं
- एन्टेरोकाइनेज (Enterokinase)-यह एन्जाइम निष्क्रिय ट्रिप्सिनोजेन को सक्रिय ट्रिप्सिन में बदल देता है।
- पेष्टीडेज (Peptidase)-यह प्रोटीन के पेप्टोन पर क्रिया कर उसे अमीनो अम्ल में बदल देता है। यह अनेक प्रकार के होते हैं
- माल्टेज (Maltase)-यह एन्जाइम डाइ-सैकेराइड माल्टोज शर्करा पर क्रिया कर उसे मोनोसैकैराइड ग्लुकोज में बदल देता है।
- सुक्रेज (Sucrase)-यह एन्जाइम डाइसैकेराइड सुक्रोज पर क्रिया कर उसे मोनोसैराइड इकाइयों ग्लूकोज व फ्रक्टोज में बदल देता है।
- आंत्रीय लाइपेज (Intestinal Lipase)- लाइपेज एन्जाइम वसा पर कार्य कर उसे वसीय अम्ल व ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता हैं।
- लैक्टेज (Lactase)-यह एन्जाइम डाइसैकैराइड शुगर लैक्टोज को उसकी मोनोसैकेराइड इकाइयों में तोड़ देता है।
प्रश्न 5.
एक नेफ्रॉन की संरचना स्पष्ट करते हुए मनुष्य में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
नेफ्रॉन-वृक्क में लाखों पतली नलिकाएँ पायी जाती हैं जिन्हें मूत्र नलिका या नेफ्रॉन (uriniferous tubules or nephrons) कहा जाता है। प्रत्येक नेफ्रॉन के दो मुख्य भाग होते हैं
- बोमन सम्पुट (Bowmari’s capsule)।
- स्रावी भाग (Secretary portion) स्रावी भाग पुन: तीन भागों से मिलकर बना होता है
- समीपस्थ कुण्डलित नलिका,
- हैनले लूप,
- दूरस्थ कुण्डलित नलिका।
मूत्र निर्माण (Formation of Urine)- मनुष्य में प्रमुख नाइट्रोजन अपशिष्ट युरिया (urea) होता है। इसका निर्माण यकृत (liver) में होता है यूरिया मिश्रित अशुद्ध रुधिर वृक्क में वृक्कीय धमनी (renal artery) द्वारा पहुँचाया जाता है। वृक्क में यह धमनी अनेक अभिवाही धमनिकाओं में विभाजित होकर वोमन सम्पुट के केशिका गुच्छ या ग्लोमेरूलस (glomerulus) को रक्त देती हैं। केशिका गुच्छ में रुधिर ले जाने वाली धमनियों को अभिवाही धमनियाँ तथा वहाँ से रक्त ले जाने वाली धमनियों को अपवाही धमनियाँ कहते हैं।
चित्र-परानिस्पंदन अन्ट्राफिल्ट्रेशन द्वारा मूत्र निर्माण
अभिवाहीं धमनियों का व्यास (diameter) अपवाही धमनियों से अधिक होने से ग्लोमेरुलस में रुधिर दाब बढ़ जाता है। रुधिर दाब के कारण केशिका गुच्छ के रक्त का परानिस्पंदन या अल्ट्राफिल्ट्रेशन (ultrafiltration) होता है। इस रक्त में से झेटे अण; जैसे-जल, ग्लूकोज, यूरिया, यूरिक अम्ल, लवण व आयन छन कर बोभन सम्पुट में आ जाते हैं। उत्सर्जी पदार्थों के साथ ग्लूकोज, अमीनो अम्ल व महत्वपूर्ण लवण भी होते हैं। वोमेन सम्पुट से यह द्रव (नेफ्रिक फिल्ट्रेट) नेफ्रॉन के स्रावी भाग में प्रवेश करता है। यहाँ समीपस्थ कुण्डलित नलिका व हेनले लूप में जल, ग्लूकोज, एमीनो अम्ल व महत्वपूर्ण आयन व लवण पुनः अवशोषित कर लिए जाते हैं। अवशेष द्रव में अपशिष्ट; जैसे- यूरिया, यूरिक अम्ल कुछ लवण व जल रह जाते हैं। यही मूत्र कहलाता है। यह मूत्र वृक्क के पेल्विस भाग से मूत्र वाहिनी होते हुए मूत्राशय में पहुँचता है तथा वहाँ से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
प्रश्न 6.
अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ क्या होती हैं ? शरीर की महत्वपूर्ण अन्त:स्रावी ग्रन्थियों, उनके स्रावों व प्रमुख भूमिकाओं को एक सारणी के रूप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine CGlands)- शरीर में पायी जाने वाली नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ (ductless glands) जो हॉर्मोन नामक रासायनिक पदार्थ का उत्पादन करती हैं, अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ कहलाती हैं। नलिकाओं के अभाव में यह अपने स्राव को रक्त में सीधे ही मुक्त कर देती हैं। यह हॉर्मोन रुधिर द्वारा परिवहन करके लक्ष्य अंगों (target organs) को प्रभावित करते हैं।
अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ हॉर्मोन द्वारा शरीर की विभिन्न क्रियाओं का नियंत्रण व नियमन करती हैं। हॉर्मोन अत्यल्प मात्रा में स्रावित किये जाते हैं तथा धीमे असर करते हैं। लेकिन इनका असर व्यापक होता है। मनुष्य की प्रमुख अन्त: स्रावी ग्रन्थियाँ हैं-हाइपोथैलेमस (मस्तिष्क का एक भाग) पीयूष या पिट्यूटरी ग्रन्थि, पाइनल ग्रन्थि, थाइराइड ग्रन्थि, पैराथाइराइड ग्रन्थि, थाइमस ग्रन्थि, एड्रीनल ग्रन्थि, अग्न्याशय या पैंक्रियास व जनद (gonad) अर्थात् अण्डाशय व वृषण।
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