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RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 10 स्थानीय स्वशासन

February 23, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 10 स्थानीय स्वशासन are part of RBSE Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 10 स्थानीय स्वशासन.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 9
Subject Social Science
Chapter Chapter 10
Chapter Name स्थानीय स्वशासन
Number of Questions Solved 63
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 10 स्थानीय स्वशासन

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
किस संविधान संशोधन अधिनियम से नगरीय स्वशासन संस्थाओं को प्रभावी व सशक्त स्थिति प्राप्त हुई ?
(अ) 44वें संविधान संशोधन
(ब) 74वें संविधान संशोधन
(स) 42वें संविधान संशोधन
(द) 73वें संविधान संशोधन
उत्तर:
(ब) 74वें संविधान संशोधन

प्रश्न 2.
ग्राम सभा का गठन होता है ?
(अ) ग्राम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीकृत सदस्य से
(ब) ग्राम पंचायत क्षेत्र में निवास कर रही समस्त जनता से
(स) पंच, सरपंच और उप सरपंच से मिलकर
(द) पंचायत समिति क्षेत्र में पंजीकृत समस्त मतदाताओं से
उत्तर:
(अ) ग्राम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीकृत सदस्य से

प्रश्न 3.
राजस्थान में प्रचलित निम्न में से कौन नगरीय स्वशासन की संस्था नहीं है
(अ) नगर पालिका
(ब) नगर पंचायत
(स) नगर परिषद्
(द) नगर निगम
उत्तर:
(ब) नगर पंचायत

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संघ के किस राज्य ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को सर्वप्रथम क्रियान्वित किया ?
उत्तर:
राजस्थान राज्य ने।

प्रश्न 2.
सरपंच का निर्वाचन किसके द्वारा किया जाता है ?
उत्तर:
सरपंच का निर्वाचन ग्राम पंचायत क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।

प्रश्न 3.
प्रधान का सम्बन्ध किस संस्था से है ?
उत्तर:
पंचायत समिति से।

प्रश्न 4.
राजस्थान के किन शहरों में नगर निगम का गठन किया गया है ?
उत्तर:
राजस्थान के 7 शहरों में नगर निगम का गठन किया गया है। ये हैं-

  • जयपुर
  • जोधपुर
  • कोटा
  • बीकानेर
  • उदयपुर
  • अजमेर
  • भरतपुर

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्राम पंचायत के कार्यों को उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ग्राम पंचायत के कार्य निम्नलिखित हैं|

  1. ग्राम पंचायत द्वारा क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजनाएँ बनाना।
  2. वार्षिक बजट तैयार करना।
  3. प्राकृतिक आपदा में सहायता करना।
  4. लोक सम्पत्तियों से अतिक्रमण हटाना।
  5. ग्राम पंचायत क्षेत्र के गाँव/गाँवों की आवश्यक सांख्यिकी तैयार करना।
  6. पंचायत क्षेत्र में परिसरों का सीमांकन करना।
  7. जन्म-मृत्यु एवं विवाह का पंजीयन करना।
  8. कृषि विस्तार सहित कृषि और बागवानी विकास करना।
  9. लोक स्वास्थ्य, ग्रामीण स्वच्छता एवं परिवार कल्याण के कार्यक्रम संचालित करना।
  10. प्राथमिक, प्रौढ़ एवं अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था करना

प्रश्न 2.
जिला परिषद का गठन किन सदस्यों से मिलकर होता है?
उत्तर:
ग्रामीण स्थानीय स्वशासन अर्थात् पंचायती राज व्यवस्था की सर्वोच्च इकाई जिला परिषद् है। जिला परिषद् का गठन निम्न चार प्रकार के सदस्यों से मिलकर होता है

  • जिला परिषद् क्षेत्र के निर्धारित प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्षतः निर्वाचित प्रतिनिधि।
  • जिला परिषद् क्षेत्र से निर्वाचित लोकसभा एवं विधान सभा सदस्य।
  • जिला परिषद् क्षेत्र से निर्वाचक के रूप में पंजीकृत समस्त राज्यसभा सदस्य।
  • जिला परिषद् क्षेत्र की समस्त पंचायत समितियों के प्रधान।

प्रश्न 3.
छावनी बोर्ड का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
केन्द्र सरकार द्वारा जिन क्षेत्रों में स्थायी रूप से सैनिक रखे जाते हैं, उस क्षेत्र को छावनी क्षेत्र कहते हैं। ऐसे क्षेत्रों में सैनिकों के साथ-साथ नागरिक भी बड़ी संख्या में रहने लगे हैं। ऐसे क्षेत्रों में भारत सरकार द्वारा छावनी बोर्ड का गठन किया गया है जो नगर पालिका के समान कार्य करता है। सेना का मुख्य अधिकारी छावनी बोर्ड को अध्यक्ष होता है। छावनी बोर्ड का गठन निर्वाचित व मनोनीत सदस्यों से मिलकर होता है।

उपाध्यक्ष असैनिक रूप से निर्वाचित सदस्यों में से चुना जाता है। छावनी बोर्ड के निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष होता है तथा मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल पद पर पदासीन रहने तक होता है। छावनी बोर्ड, नगरपालिका के समान स्थानीय क्षेत्र में रोशनी, सफाई व स्वास्थ्य की देखभाल का कार्य करता है। वर्तमान में राजस्थान में नसीराबाद (अजमेर) में एकमात्र छावनी बोर्ड स्थापित है।

प्रश्न 4.
महापौर द्वारा किए जाने वाले कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगरीय स्थानीय स्वशासन की सर्वोच्च इकाई नगर निगम है। नगर निगम के अध्यक्ष को महापौर कहा जाता है। यह नगर का प्रथम नागरिक होता है। नगर निगम की कार्यपालिका शक्ति उसमें निहित होती है। महापौर द्वारा किए जाने वाले प्रमुख कार्य अग्रलिखित हैं

  • यह नगर निगम की बैठक की अध्यक्षता करता है।
  • यह नगर निगम के समस्त अभिलेखों का अवलोकन करता है।
  • यह मुख्य कार्यकारी अधिकारी से नगर निगम से सम्बन्धित कोई प्रतिवेदन अथवा कोई जानकारी माँग सकता है।
  • इसके निर्देश पर नगर निगम की सामान्य विशेष बैठक बुलायी जाती है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायत समिति का गठन किस प्रकार होता है ? उसके द्वारा सम्पादित कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचायत समिति का गठन/संरचना
पंचायती राज्य की त्रिस्तरीय संरचना का मध्यवर्ती सोपान पंचायत समिति कहलाता है। प्रत्येक पंचायत समिति की संरचना निम्न प्रकार से होती है-

1. निर्वाचन क्षेत्र – प्रत्येक पंचायत समिति प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभक्त होगी। एक लाख की जनसंख्या वाले किसी भी पंचायत समिति क्षेत्र में 15 निर्वाचन क्षेत्र होंगे।

2. निर्वाचित प्रतिनिधि – प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य प्रत्यक्ष रूप से उस क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा चुना जायेगा। एक लाख से अधिक आबादी होने पर प्रत्येक 15000 या उसके किसी भाग पर दो-दो अतिरिक्त सदस्य निर्वाचित होंगे।

3. अन्य सदस्य – निर्वाचित प्रतिनिधि के अतिरिक्त पंचायत क्षेत्र के विधायक एवं सरपंच पंचायत समिति के सदस्य होते हैं, यह प्रधान व उप प्रधान के चुनाव व अविश्वास प्रस्ताव को छोड़कर अन्य सभी बैठकों में मत दे सकते हैं।

4. प्रधान तथा उप प्रधान – पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य अपने में से प्रधान एवं उप प्रधान का चयन करते हैं। आकस्मिक पद रिक्ति की स्थिति में पुनः प्रधान या उप प्रधान का चयन करते हैं।

5. आरक्षण की व्यवस्था – पंचायत समितियों में भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान है।

6. कार्यकाल – पंचायत समिति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

7. प्रशासक एवं कर्मचारीगण – पंचायत समिति में प्रशासक के रूप में विकास अधिकारी का पद होता है। विकास अधिकारी कर्मचारियों के कार्यों में समन्वय स्थापित करता है।

पंचायत समिति द्वारा सम्पादित कार्य
राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 एवं बाद के संशोधन नियम व अधिनियमों में पंचायत समिति के निम्न सम्पादित कार्यों का उल्लेख किया गया है|

1. साधारण कार्य-

  • पंचायत समिति राज्य सरकार व जिला परिषद् द्वारा अनुमोदित योजनाओं के सम्बन्ध में वार्षिक योजनाएँ तैयार कर उन्हें जिला परिषद् को प्रस्तुत करती है।
  • पंचायत समिति क्षेत्र की सभी पंचायतों की वार्षिक योजनाओं पर विचार कर उन्हें समेकित करती है।
  • पंचायत समिति का वार्षिक बजट तैयार करती है।
  • जिला परिषद् द्वारा सौंपे गये कार्यों को सम्पन्न करती है।
  • प्राकृतिक आपदाओं में सहायता उपलब्ध कराती है तथा अपने क्षेत्र की पंचायतों को आवश्यक निर्देश व सलाह देती है।

2. लघु सिंचाई एवं पेयजल प्रबन्ध सम्बन्धी कार्य – पंचायत समिति सिंचाई-कार्यों एनीकटों, लिफ्ट सिंचाई, सिंचाई व पेयजल कुओं, बाँधों, कच्चे बाँधों का निर्माण और रखरखाव करती है।

3. गरीबी उन्मूलन कार्य – पंचायत समिति गरीबी उन्मूलने कार्यक्रमों और योजनाओं मुख्यतया मनरेगा, एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण, मरु विकास कार्यक्रम, जनजाति क्षेत्र विकास, अनुसूचित जाति विकास निगम की योजनाओं को लागू करती है।

4. कृषि उत्पादन एवं विस्तार सम्बन्धी कार्य

  • कृषि और बागवानी के विकास को बढ़ावा देना
  • नकदी फसलों के विकास को प्रोत्साहन देना।
  • कृषि विकास के लिए साख सुविधाएँ उपलब्ध कराना एवं कृषकों को प्रशिक्षण दिलाना आदि।

5. प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी कार्य – ग्रामीण प्राथमिक शिक्षा पंचायत समिति की देखरेख में चलती है। अतः प्राथमिक विद्यालय के भवनों का निर्माण व देखरेख करना, बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना, ग्रामीण शिल्पी और व्यावसायिक प्रशिक्षण की प्रोन्नति, प्रौढ़ शिक्षा, साक्षरता कार्यक्रम, सांस्कृतिक क्रियाकलापों का संचालन और विद्यार्थियों को निःशुल्क पुस्तक वितरण आदि कार्य करती है।

6. पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य – पालन सम्बन्धी कार्य – पंचायत समिति पशु, कुक्कुट की नस्ल सुधार का प्रयास तथा मत्स्य पालन को प्रोत्साहन देती है।

7. अन्य कार्य – उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त पंचायत समिति अनेक कार्य करती है; यथ

  • खादी व ग्रामीण कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन देना।
  • बंजर भूमि के विकास का प्रयास करना, सार्वजनिक भवन, सड़कें, पुलियाओं व नौघाट आदि का निर्माण करना।
  • पेयजल की व्यवस्था करना।
  • विकलांगों, मंद-बुद्धि लोगों तथा निराश्रितों के कल्याण सहित वृद्ध, विधवा, विकलांगों को पेंशन मंजूर करना
  • महिला व बाल विकास, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना।
  • सहकारी गतिविधियों को बढ़ावा देना।
  • प्राकृतिक आपदाओं में सहायता करना आदि

प्रश्न 2.
नगर परिषद् के गठन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नगर परिषद् का गठन
नगरीय स्वशासन की दूसरी महत्वपूर्ण इकाई नगर परिषद् है। राजस्थान में 1 लाख से 5 लाख जनसंख्या वाले शहरों में नर परिषद् के गठन का प्रावधान है। वर्तमान राजस्थान में 34 नगर परिषद् कार्यरत हैं। राजस्थान में नगर परिषद् के गठन को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

1. निर्वाचन क्षेत्र – प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र/वार्ड नगर परिषद् क्षेत्र को जनसंख्या के आधार पर प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र/वार्ड में विभक्त कर दिया जाता है। ऐसे निर्वाचन क्षेत्र/वार्ड की संख्या किसी भी स्थिति में 13 से कम नहीं होती है। इसे संख्या का निर्धारण समय-समय पर राज्य सरकार अधिसूचना जारी करके करेगी।

2. पार्षद – प्रादेशिक निर्वाचन वार्ड से निर्वाचित सदस्य पार्षद कहे जाते हैं, इन्हें जनता प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मंताधिकार के आधार पर गुप्त मतदान द्वारा चुनती है।

3. नगर परिषद् के अन्य गैर – निर्वाचित सदस्य-सम्बन्धित क्षेत्र के लोकसभा सदस्य और विधानसभा सदस्य भी नगर परिषद् के सदस्य होते हैं लेकिन इन्हें सभापति एवं उपसभापति के चुनाव व हटाने के लिए लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में मत देने का अधिकार नहीं होता है। शेष मामलों में इन सदस्यों को भी मत देने का अधिकार होता है।

4. आरक्षण की व्यवस्था – नगर परिषद् में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के पद व वार्डों के पार्षदों में अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जनसंख्या के अनुपात में तथा एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होते हैं।

5. कार्यकाल – नगर परिषद् का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है।

6. सभापति एवं उपसभापति का निर्वाचन तथा पदच्युति – नगर परिषद् के सभापति तथा उप सभापति का चुनाव नगर परिषद् के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से किया जाता है। ये 5 वर्ष तक अपने पद पर रह सकते हैं। मृत्यु, पदत्याग अथवा अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर इन्हें पद छोड़ना पड़ता है।

7. आयुक्त – नगर परिषद् में निर्धारित नीतियों को लागू करने के लिए सरकारी प्रतिनिधि के रूप में आयुक्त के पद की व्यवस्था है। नगर परिषद् में नियुक्त आयुक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा/राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी होते हैं। नगर परिषद के कार्य नगर परिषद् द्वारा सामान्यतया तीन प्रकार के कार्य किये जाते हैं जिन्हें अनिवार्य, ऐच्छिक एवं विशेष कार्य कहा जाता है।

इन सभी का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है-

  1. विकास योजनाओं का निर्माण एवं क्रियान्वयन – नगर परिषद् का प्रमुख कार्य नगर परिषद् क्षेत्र में विकास हेतु योजनाओं का निर्माण व क्रियान्वयन करना है।
  2. भू-विनियमन – नगर परिषद् का दूसरा प्रमुख कार्य नगर परिषद् क्षेत्र की भूमि के उपयोग एवं भवन निर्माण हेतु विनियमन करना है।
  3. सड़कों का निर्माण व रखरखाव – नगर परिषद् का एक अन्य प्रमुख कार्य अपने क्षेत्र में आने वाली सड़कों व पुलों का निर्माण व रखरखाव करना है।
  4. जल प्रबन्धन – नगर परिषद् का एक अन्य प्रमुख कार्य घरेलू, औद्योगिक एवं वाणिज्यिक उपयोग हेतु जल वितरण का प्रबन्ध करना है।
  5. नियोजन एवं पंजीयन – नगर परिषद् का एक प्रमुख कार्य आर्थिक व सामाजिक विकास का नियोजन करना तथा जन्म-मृत्यु का पंजीयन करना है।
  6. स्वास्थ्य व सफाई – नगर परिषद् का एक अन्य प्रमुख कार्य जन स्वास्थ्य एवं स्वच्छता हेतु चिकित्सा व सफाई की व्यवस्था करना है।
  7. अन्य कार्य – उक्त कार्यों के अतिरिक्त नगर परिषद् द्वारा निम्नलिखित अन्य कार्य भी किये जाते हैं|
  • नगरीय क्षेत्र की गरीबी उन्मूलन के प्रयास करना।
  • गंदी बस्तियों के विकास के प्रयास करना
  • नगरीय क्षेत्र के सांस्कृतिक व शैक्षणिक आयामों का उन्नयन करना
  • अपंग, वृद्ध व असहाय लोगों के हितों की रक्षा करना।
  • उद्यान, खेल के मैदान, मनोरंजन के साधनों का विकास व संरक्षण करना।
  • श्मशान स्थलों का निर्माण व रख-रखाव करना।
  • पशुगृहों को प्रबन्ध करना, आवारा पशुओं को पकड़ने की व्यवस्था करना तथा बूचड़खानों का विनियमन करना।
  • बस स्टॉप, बस स्टैंड व जन सुविधाओं की व्यवस्था करना एवं उनका संचालन करना
  • सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था करना, वाहन खड़े करने के स्थानों (वाहन पार्किंग) का प्रबन्ध करना।

प्रश्न 3.
“पंचायतीराज के बिना गाँवों का विकास सम्भव नहीं है।” अपना मत दीजिए।
उत्तर:
पंचायतीराज व्यवस्था, ग्रामीण व्यक्तियों को स्थानीय स्वशासन में सहभागी बनाती है। उन्हें अपनी समस्याओं के प्रति जागरूक बनाती है एवं उनका निराकरण करने के लिए एकजुट होकर कार्य करना सिखाती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि पंचायतीराज के बिना गाँवों का विकास सम्भव नहीं है। पंचायती राज्य व्यवस्था गाँवों के विकास के लिए निम्नलिखित रूपों में योगदान देती है

1. जनता की शासन में अधिकाधिक हिस्सेदारी बढ़ाना – पंचायती राज संस्थाओं को जन कल्याण से सम्बन्धित अनेक कार्य सौंपे गये हैं। इसका उद्देश्य जनता की शासन में अधिकाधिक हिस्सेदारी बढ़ाना है। इससे गाँव आत्मनिर्भर बनते हैं।

2. कृषि विकास में योगदान – भारत गाँवों का देश है और गाँव का मूल आधार कृषि है। पंचायती राज व्यवस्था कृषि के विकास के प्रति पूर्णत: संकल्पित है; यथा

  • ग्राम पंचायत, कृषि विकास हेतु कृषि एवं बागवानी को प्रोन्नत करने, बंजर भूमि का विकास करने एवं चारागाह का विकास तथा रख-रखाव का कार्य करती है।
  • पंचायत समिति कृषि और बागवानी के विकास को बढ़ावा देने, पौधशालाओं के रख-रखाव, खाद एवं बीजों के वितरण में सहयोग, नकदी फसलों के विकास को प्रोत्साहन, फल एवं फूलों की खेती को प्रोन्नत करने, कृषि विकास हेतु साख. सुविधाओं को उपलब्ध कराने तथा कृषकों को प्रशिक्षण दिलाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है।
  • जिला परिषद् कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए उन्नत उपकरणों तथा कृषि पद्धतियों के प्रयोग को लोकप्रिय बनाने, कृषकों को प्रशिक्षण देने, कृषि मेलों एवं प्रदर्शनियों का आयोजन करने, भूमि सुधार तथा संरक्षण का कार्य करती है। इससे स्पष्ट होता है कि कृषि विकास के क्षेत्र में पंचायती राज संस्थाओं को बहुत अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं जिनके माध्यम से वहाँ के निवासी कृषि विकास में रुचि लेते हैं तथा कृषि का उत्पादन बढ़ाने की ओर अग्रसर होते हैं।

3. पशुपालन, डेयरी विकास एवं मत्स्य पालन में योगदान – गाँवों का द्वितीय प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है। पशुपालन कृषि के साथ जुड़ा हुआ है। पंचायती राज की तीनों संस्थाएँ अपने-अपने स्तर पर पशुपालन, डेयरी विकास एवं मत्स्य पालन के विकास में सहायता प्रदान कर ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में लगी हुई हैं। इससे एक ओर गाँवों में कृषि की सहायक गतिविधियों का विकास होता है तो दूसरी ओर बेरोजगारी की समस्या का समाधान होता है।

4. अन्य योगदान – पंचायती राज संस्थाएँ गाँवों में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सफाई, कमजोर वर्गों के कल्याण, शिक्षा, कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन, प्राकृतिक आपदाओं; जैसे-बाढ़, भूकम्प, दावाग्नि, महामारी आदि के मामले में ग्रामीण लोगों को जागरूक करती हैं तथा उनकी समस्याओं का समाधान करती हैं, इन सब बातों से स्पष्ट होता है कि पंचायती राज के बिना गाँवों का विकास सम्भव नहीं है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सभा और समिति’ नामक संस्थाओं का उल्लेख मिलता
(अ) ऋग्वेद में
(अ) ऋग्वेद में
(ब) महाभारत में
(स) रामायण में
(द) बौद्ध साहित्य में।
उत्तर:
(अ) ऋग्वेद में

प्रश्न 2.
किस समिति की सिफारिश के आधार पर पंचायती राज व्यवस्था में त्रिस्तरीय योजना लागू की गयी
(अ) बलवंत राय मेहता समिति
(ब) सादिक अली समिति
(स) शिवचरन माथुर समिति
(द) हरिश्चन्द्र माथुर समिति
उत्तर:
(अ) बलवंत राय मेहता समिति

प्रश्न 3.
ग्राम पंचायत की विधायिका है
(अ) ग्राम पंचायत
(ब) ग्राम सभा
(स) जिला परिषद्
(द) नगर निगम।
उत्तर:
(ब) ग्राम सभा

प्रश्न 4.
ग्राम पंचायत के मुखिया को कहा जाता है
(अ) प्रधान
(ब) पंच।
(स) सरपंच
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) सरपंच

प्रश्न 5.
पंचायती राज व्यवस्था में मध्यस्तरीय संस्था है
(अ) पंचायत समिति
(ब) ग्राम सभा
(स) जिला परिषद्
(द) ग्राम पंचायत
उत्तर:
(अ) पंचायत समिति

प्रश्न 6.
ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की सर्वोच्च इकाई है|
(अ) जिला परिषद्
(ब) ग्राम पंचायत
(स) पंचायत समिति
(द) नगर पालिका।
उत्तर:
(अ) जिला परिषद्

प्रश्न 7.
सर्वोच्च शहरी निकाय है|
(अ) नगर निगम
(ब) नगर पालिका
(स) नगर परिषद्
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(अ) नगर निगम

प्रश्न 8.
सेना का मुख्य अधिकारी अध्यक्ष होता है
(अ) नगर पालिका का
(ब) छावनी बोर्ड का
(स) नगर परिषद् का
(द) ग्राम पंचायत का
उत्तर:
(ब) छावनी बोर्ड का

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की स्थापना क्यों की गयी है ?
उत्तर:
स्थानीय स्तर के विकास में स्थानीय व्यक्तियों की सहभागिता बढ़ाने हेतु

प्रश्न 2.
भारत में स्थानीय स्वशासन की संरचना के प्रकार बताइए।
उत्तर:

  • ग्रामीण स्थानीय स्वशासन
  • नगरीय स्थानीय स्वशासन।

प्रश्न 3.
पंचायत राज व्यवस्था के नाम से किस स्वशासन व्यवस्था को जाना जाता है ?
उत्तर:
ग्रामीण स्थानीय स्वशासन को।

प्रश्न 4.
राजस्थान में आधुनिक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का शुभारम्भ कब व कहाँ हुआ ?
उत्तर:
2 अक्टूबर, 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले में आधुनिक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ किया।

प्रश्न 5.
किस संविधान संशोधन के द्वारा भारत में स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया है ?
उत्तर:
73वें एवं 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा।

प्रश्न 6.
राजस्थान सरकार ने किन दो अधिनियमों द्वारा स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को नवीन रूप दिया है?
उत्तर:

  • राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994
  • राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 1994 व 2009

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र की अवधारणा को साकार करने वाली संस्था का नाम बताइए।
उत्तर:
ग्राम सभा।

प्रश्न 8.
ग्राम सभा से क्या आशय है ?
उत्तर:
ग्राम पंचायत के समस्त वयस्क नागरिकों के समूह को ग्राम सभा कहा जाता है ?

प्रश्न 9.
ग्राम सभा का प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर:
ग्राम सभा, ग्राम पंचायत की विधायिका होती है। पंचायत क्षेत्र की समस्त विकास योजनाओं के प्रस्ताव ग्राम सभा के द्वारा तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 10.
ग्राम सभा की बैठकों की अध्यक्षता कौन करता
उत्तर:
सरपंच।

प्रश्न 11.
ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय स्वशासन की सबसे छोटी इकाई क्या है ?
उत्तर:
ग्राम पंचायत।

प्रश्न 12.
पंच व सरपंच के पद के लिए न्यूनतम उम्र बताइए।
उत्तर:
21 वर्ष।

प्रश्न 13.
राजस्थान के ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की तीन संस्थाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • ग्राम पंचायत
  • पंचायत समिति
  • जिला परिषद्

प्रश्न 14.
राजस्थान के शहरी क्षेत्र की चार स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  • नगर पालिका
  • नगर परिषद्
  • नगर निगम
  • छावनी बोर्ड।

प्रश्न 15.
राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल बताइए।
उत्तर:
5 वर्ष

प्रश्न 16.
ग्राम पंचायत के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • अपने क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना बनाना।
  • जन्म – मृत्यु व विवाह का पंजीयन करना।

प्रश्न 17.
पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव का दायित्व किस पर होता है ?
उत्तर:
राज्य निर्वाचन आयोग पर।

प्रश्न 18.
पंचायत समिति के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • पंचायत समिति के लिए वार्षिक योजना बनाना।
  • निर्धनता उन्मूलन।

प्रश्न 19.
पंचायती राज व्यवस्था की सर्वोच्च इकाई कौन-सी है ?
उत्तर:
जिला परिषद्।

प्रश्न 20.
जिला परिषद् के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • जिले के आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करना।
  • कृषि उत्पादन में वृद्धि करना।

प्रश्न 21.
संगठनात्मक दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा नगर निगम कौन-सा है?
उत्तर:
जयपुर।

प्रश्न 22.
नगर निगम के अध्यक्ष को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
महापौर।

प्रश्न 23.
नगर का प्रथम नागरिक कौन होता है ?
उत्तर:
महापौर।

प्रश्न 24.
नगर निगम की बैठक की अध्यक्षता कौन करता
उत्तर:
महापौर।

प्रश्न 25.
नगर परिषद् का गठन किन शहरों में किया जा सकता है ?
उत्तर:
एक लाख से पाँच लाख जनसंख्या वाले लघुत्तर शहरी क्षेत्रों में नगर परिषद् का गठन किया जा सकता है।

प्रश्न 26.
नगर परिषद् के अध्यक्ष को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
सभापति

प्रश्न 27.
नगर परिषद् के सभापति का कार्यकाल बताइए। उत्तर-5 वर्ष।

प्रश्न 28.
नगर परिषद् के कोई दो कार्य बताइए।
उत्तर:

  • नगर आयोजना
  • भूमि का विनियमन

प्रश्न 29.
राजस्थान के किस शहर में छावनी बोर्ड की स्थापना की गई है ?
उत्तर:
नसीराबाद (अजमेर) में।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थानीय स्वशासन से क्या आशय है ?
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन से आशय स्थानीय स्तर के उस शासन से है जिसमें शासन का संचालन उन संस्थाओं द्वारा चलाया जाता है जो जनता द्वारा चुनी जाती हैं एवं जिन्हें केन्द्रीय अथवा राज्य शासन के नियंत्रण में रहते हुए नागरिकों की स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ अधिकार एवं दायित्व प्राप्त होते हैं। ब्रिटेनिका शब्दकोष के अनुसार, “पूर्ण राज्य की अपेक्षा एक अंदरूनी प्रतिबन्धित एवं छोटे क्षेत्र में निर्णय लेने एवं उसको लागू करने वाली सत्ता, स्थानीय स्वशासन कहलाती

प्रश्न 2.
ग्राम सभा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ग्राम पंचायत के समस्त वयस्क नागरिकों के समूह को ग्राम सभा कहा गया है। अठारह वर्ष की आयु प्राप्त प्रत्येक नागरिक जिसका नाम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज है, वह ग्राम सभा का सदस्य माना जाता है। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से ग्राम सभा को संवैधानिक मान्यता दी गई है। सामान्यतः ग्राम सभा की वर्ष में दो बैठकें/सभाएँ होती हैं। इन सभाओं में ग्राम सभा लोगों की साधारण सभा होने के नाते पंचायत की वार्षिक आय-व्यय का ब्यौरा, लेखा निरीक्षण अथवा पंचायत की प्रशासनिक रिपोर्ट को सुनती है। यह पंचायतों द्वारा लिए जाने वाली नई विकासात्मक परियोजनाओं को भी स्वीकृति प्रदान करती है। यह गाँव के गरीब लोगों की पहचान करने में भी सहायता प्रदान करती है ताकि उन्हें आर्थिक सहायता दी जा सके।

प्रश्न 3.
राजस्थान में स्थानीय स्वशासन के विकास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:

  • राजस्थान स्थानीय स्वशासन की दिशा में पहला प्रमुख प्रयास 1948 ई. में हुआ, जब संयुक्त राजस्थान ने पंचायती राज अध्यादेश लागू किया।
  • 1993 ई. में राजस्थान पंचायत अधिनियम लागू कर पहले से कार्यरत पंचायतों को पुनर्गठित किया गया।
  • बलवंत राय मेहता की सिफारिश पर राजस्थान में त्रिस्तरीय योजना को लागू करने के लिए राजस्थान पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1959 को बनाया गया। शहरी क्षेत्र के लिए नगरपालिका अधिनियम 1959 बना।
  • 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के बाद राजस्थान सरकार ने इन संविधान संशोधनों के तहत राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 एवं राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 1994 बनाकर स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को नवीन रूप दिया है।

प्रश्न 4.
ग्राम पंचायत के प्रशासनिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ग्राम पंचायत के प्रशासनिक कार्य निम्नलिखित हैं

  • ग्राम पंचायत क्षेत्र में परिसरों का संख्यांकन करना।
  • जनगणना करना।
  • कृषि उपज का उत्पादन बढ़ाने के लिए कार्यक्रम बनाना।
  • ग्रामीण विकास योजनाओं को लागू करने हेतु वित्त व्यवस्था का विवरण तैयार करना
  • केन्द्रीय व राज्य सरकार से प्राप्त सहायता का ग्राम पंचायत क्षेत्र में ठीक प्रकार से प्रयोग करना।
  • खलिहानों, चारागाहों एवं सामुदायिक भूमि पर नियंत्रण रखना।
  • बेरोजगारों की सूची तैयार करना।
  • जन्म-मृत्यु तथा विवाह का पंजीयन करना।
  • पंचायत अभिलेख तैयार करना।

प्रश्न 5.
जिला परिषद् के कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
जिला परिषद् के चार कार्य निम्नलिखित हैं

  • जिले के आर्थिक विकास और सामाजिक विकास के लिए योजनाएँ तैयार करना।
  • कृषि उत्पादन में वृद्धि एवं विकसित कृषि पद्धतियों एवं उन्नत कृषि उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • घरेलू और कुटीर उद्योगों के लिए पारम्परिक कुशल व्यक्तियों की पहचान एवं घरेलू उद्योगों का विकास करना।
  • निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम को प्रभावी रूप से संचालित करना एवं समाज सुधार सम्बन्धित विभिन्न क्रियाकलापों का संचालन करना।

प्रश्न 6.
नगर निगम के अनिवार्य कार्यों को उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगर निगम के अनिवार्य कार्य:

  1. शुद्ध जल का प्रबन्ध करना।
  2. सार्वजनिक विद्युत व्यवस्था का प्रबन्ध करना
  3. नालियों एवं शौचालयों का निर्माण एवं रखरखाव करना।
  4. सार्वजनिक मार्गों का निर्माण एवं रखरखाव करना।
  5. जन्म-मृत्यु का विवरण रखना।
  6. गन्दगी व कूड़े-करकट की सफाई करना।
  7. श्मशानों का प्रबन्ध व नियमन करना।
  8. प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करना।
  9. खाद्य पदार्थों एवं भोजनालयों का नियमन एवं नियंत्रण करना
  10. निगम सीमा में खतरनाक भवनों को गिराना।
  11. खतरनाक व्यापार पर नियंत्रण रखना।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्राम पंचायत का गठन किस प्रकार होता है ? उसके द्वारा सम्पादित कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
राजस्थान में ग्राम पंचायत की संरचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में ग्राम पंचायत का गठन/संरचना राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय स्वशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत होती है। इसके गठन का उल्लेख पंचायती राज अधिनियम, 1994 में है।
इसका वर्णन अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है-

1. ग्राम पंचायत क्षेत्र – गाँव या गाँवों के समूह से पंचायत क्षेत्र का निर्धारण राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना से होता है। राजस्थान में वर्तमान में 9000 ग्राम पंचायतें हैं।

2. वार्ड संख्या – प्रत्येक ग्राम पंचायत वार्ड में विभक्त की जाती है। 3000 जनसंख्या तक 9 वार्ड तथा इससे अधिक जनसंख्या वाली पंचायतों में प्रत्येक 1000 जनसंख्या या उसके किसी भाग पर 2-2 अतिरिक्त वार्ड गठित होंगे।

3. पंच, सरपंच तथा उप सरपंच का निर्वाचन – सरपंच का निर्वाचन समस्त पंचायत क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से गुप्त मतदान पद्धति के द्वारा किया जाता है। पंच का चुनाव सम्बन्धित वार्ड के मतदाता प्रत्यक्ष रूप से करते हैं। उप सरपंच पंचों द्वारा अपने में से चुना जाता है। पंचायत चुनाव निर्वाचन आयुक्त द्वारा सम्पन्न कराए जाते हैं।

4. आरक्षण की व्यवस्था – प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र में जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए स्थान चक्रानुक्रम के आधार पर आरक्षित होते हैं। प्रत्येक चुनाव से पूर्व लाटरी पद्धति द्वार आरक्षित सीटों का निर्धारण होता है।

5. अविश्वास प्रस्ताव का प्रावधान – सरपंच व उपसरपंच को तीन-चौथाई बहुमत से निर्वाचित सदस्य अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पद से हटा सकते हैं, लेकिन चुनाव के बाद 2 वर्ष तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता।

6. बैठक –  कोई ग्राम पंचायत अपने कार्य निष्पादन के लिए जितनी बार आवश्यक हो, उतनी बार बैठक कर सकती है, किन्तु पन्द्रह दिन में कम से कम एक बार ग्राम पंचायत के निर्धारित स्थान पर बैठक बुलाया जाना आवश्यक है। बैठकों में गणपूर्ति हेतु कुल सदस्यों की एक तिहाई संख्या निर्धारित की गई है। पंचायत की बैठकों की अध्यक्षता सरपंच तथा उसकी अनुपस्थिति में उप सरपंच ग्राम पंचायत द्वारा सम्पादित कार्य करता है।

ग्राम पंचायत के कार्य

1. साधारण कार्य – ग्राम पंचायत, पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजनाएँ बनाना, वार्षिक बजट तैयार करना, प्राकृतिक आपदाओं में सहायता जुटाना, लोक सम्पत्तियों पर से अतिक्रमण हटाना एवं गाँव अथवा गाँवों की आवश्यक सांख्यिकी तैयार करना आदि कार्य करती है।

2. प्रशासनिक कार्य – ग्राम पंचायत अनेक प्रशासनिक कार्य करती है; जैसे – पंचायत क्षेत्र में परिसरों का सीमांकन कराना, जनगणना कराना, कृषि उपज का उत्पादन बढ़ाने के लिए कार्यक्रम बनाना, ग्रामीण विकास योजनाओं को लागू करने हेतु वित्त व्यवस्था का विवरण तैयार करना केन्द्रीय एवं राज्य सरकार से प्राप्त सहायता का ग्राम पंचायत क्षेत्र में ठीक प्रकार से प्रयोग करना। पशु गृहों, खलिहानों, चारागाहों पर नियंत्रण रखना, बेरोजगारों की सूची, जन्म-मृत्यु एवं विवाह का पंजीयन तथा पंचायत अभिलेख तैयार करना आदि।

3. अन्य कार्य – उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त ग्राम पंचायत निम्नलिखित अन्य कार्य भी करती है

  • कृषि विकास करना,
  • बागवानी विकास करना,
  • पशु पालन, डेयरी, कुक्कुट पालन एवं मत्स्य पालन का विकास करना,
  • सामाजिक व फार्म वानिकी तथा लघु वन उपज, ईंधन व चारा,
  • लघु सिंचाई,
  • खादी व ग्रामीण कुटीर उद्योग,
  • ग्रामीण आवासन, पेयजल, सड़के व ग्रामीण विद्युतीकरण,
  • उन्मूलन कार्यक्रम,
  • प्राथमिक, प्रौढ़ व अनौपचारिक शिक्षा तथा पुस्तकालय,
  • सांस्कृतिक क्रियाकलाप, हाट व मेलों का आयोजन,
  • ग्रामीण स्वच्छता, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण,
  • महिला एवं बाल विकास,
  • कमजोर वर्गों का कल्याण आदि।

प्रश्न 2.
जिला परिषद् का गठन किस प्रकार होता है ? उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
जिला परिषद् की संरचना, उसके कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जिला परिषद् का गठन/संरचना ग्रामीण स्थानीय स्वशासन अर्थात् पंचायती राज व्यवस्था की सर्वोच्च इकाई जिला परिषद् है। जिला परिषद् का गठन अथवा संरचना का वर्णन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है।

1. जिला परिषद निर्वाचन क्षेत्र –  प्रत्येक जिला परिषद् प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभक्त होती है। चार लाख तक की जनसंख्या के लिए किसी जिला परिषद् क्षेत्र में 17 निर्वाचन क्षेत्र एवं इसके अतिरिक्त प्रत्येक एक लाख या उसके भाग की जनसंख्या के लिए 2 क्षेत्रों की वृद्धि की जाती है।

2. जिला परिषद् के सदस्यों के प्रकार – जिला परिषद् का गठन अग्रलिखित चार प्रकार के सदस्यों से मिलकर होता है।

  • जिला परिषद् क्षेत्र के लिए निर्धारित प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्षतः निर्वाचित प्रतिनिधि।
  • जिला परिषद् क्षेत्र के लोकसभा तथा विधानसभा सदस्य।
  • जिला परिषद् क्षेत्र में निर्वाचकों के रूप में पंजीकृत सभी राज्यसभा सदस्य।
  • जिला परिषद् क्षेत्र की समस्त पंचायत समितियों के प्रधान।

3. जिला प्रमुख तथा उप – जिला प्रमुख का चयन – पंचायत चुनावों के बाद जिला परिषद् के प्रादेशिक क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि अपने में से जिला प्रमुख व उप-जिला प्रमुख का चुनाव करते हैं। अविश्वास द्वारा उन्हें पद से हटाने का अधिकार भी इन्हीं सदस्यों का है। शेष बैठकों में अन्य प्रकार के जिला परिषद् सदस्य भी मतदान कर सकते हैं।

4. पदाधिकारी जिला परिषद में जिला प्रमुख और उप – जिला प्रमुख जनता के प्रतिनिधि हैं। इनके अतिरिक्त एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी, निर्माण कार्य देखने हेतु एक सहायक अभियन्ता तथा अन्य कर्मचारी होते हैं।

5. आरक्षण की व्यवस्था – जिला परिषद् में अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गों एवं महिलाओं के लिए नियमानुसार एवं चक्रानुक्रमानुसार आरक्षण दिया गया है।

जिला परिषद के कार्य व शक्तियाँ

जिला परिषद् के प्रमुख कार्यों व शक्तियों का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-

1. साधारण कार्य – जिला परिषद् जिले के आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करती है और ऐसी योजनाओं को अगली मदों में प्रमाणित विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में समन्वित कर क्रियान्वित करती है।

2. कृषि सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद् अपने क्षेत्र में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्नत उपकरणों एवं नवीन कृषि पद्धतियों के प्रयोग को लोकप्रिय बनाने, कृषकों को प्रशिक्षण देने, कृषि मेलों व प्रदर्शनियों का आयोजन करने, भूमि सुधार व भूमि संरक्षण करने का कार्य करती है।

3. सिंचाई, बागवानी एवं फल – सब्जियों की खेती में सहयोग – जिला परिषद् 2500 एकड़ तक के लघु सिंचाई, भू-जल स्रोत संरक्षण को प्रोत्साहन देने, बागवानी के क्षेत्र में ग्रामीण पार्क व उद्यान निर्माण एवं रख-रखाव का कार्य करने, फल व सब्जियों की खेती की प्रोन्नति हेतु कृषकों को सहयोग देने का कार्य करती है।

4. सांख्यिकी सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद् पंचायत समितियों एवं जिला परिषद् के कार्यों से सम्बन्धित सांख्यिकी सूचना का प्रकाशन, समन्वय एवं उपयोग करती है।

5. मृदा सरंक्षण एवं सामाजिक वानिकी सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद् मृदा संरक्षण, बंजर भूमि के विकास आदि को प्रोन्नत करने का कार्य करती है एवं वृक्षारोपण करती है।

6. ग्रामीण विद्युतीकरण सम्बन्धी कार् य – जिला परिषद् ग्रामीण विद्युतीकरण. हेतु ग्रामीण क्षेत्र में विद्युत पूर्ति को बढ़ावा देने, विद्युत कनेक्शन, कुटीर ज्योति व अन्य कनेक्शन दिलाने का कार्य करती है।

7. पशुपालन डेयरी विकास एवं मत्स्य पालन सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद् पशुओं के लिए चिकित्सालयों की व्यवस्था, महामारियों व अन्य बीमारियों की रोकथाम के प्रयास, चारा विकास, डेयरी उद्योग, कुक्कुट पालन, सूअर पालन, मत्स्य पालन को प्रोन्नत करने के लिए योजनाएँ बनाती है।

8. घरेलू एवं कुटीर उद्योग सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद अपने क्षेत्र में कुशल व्यक्तियों की पहचान कर घरेलू एवं कुटीर उद्योगों के विकास का कार्य करती है।

9. ग्रामीण सड़कों व ग्रामीण पुलों आदि का निर्माण एवं रखरखाव सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद् अपने क्षेत्र में ग्रामीण सड़कों, ग्रामीण पुलों, कार्यालय भवनों आदि का निर्माण एवं रखरखाव करने के साथ-साथ सम्पर्क सड़कों की पहचान का कार्य करती है।

10. स्वास्थ्य सुविधाओं सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद् सामुदायिक एवं प्राथमिक केन्द्रों की स्थापना व रखरखाव, प्रतिरक्षीकरण व टीकाकरण के कार्यक्रम तथा परिवार कल्याण, मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य क्रियाकलाप सम्बन्धी कार्यों का संपादन करती है।

11. समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण हेतु कार्य – जिला परिषद् अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के बच्चों को छात्रवृत्तियाँ तथा पुस्तके आदि की खरीद के लिए अनुदान उपलब्ध कराती है।

12. निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद् निर्धनता उन्मूलन हेतु तथा समाज सुधार सम्बन्धी
अनेक क्रियाकलापों का संचालन करती है।

13. शिक्षा सम्बन्धी कार्य – जिला परिषद् ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना, प्रौढ़ शिक्षा एवं पुस्तकालय सम्बन्धी सुविधाओं को उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 3.
नगर निगम के प्रमुख कार्य एवं शक्तियों को वर्णन कीजिए।
अथवा
नगर निगम के गठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नगर निगम का गठन
नगर निगम सर्वोच्च शहरी निकाय है। जिन शहरों की जनसंख्या 5 लाख से अधिक होती है, वहाँ नगर निगम की स्थापना की जाती है। वर्तमान में राजस्थान के समस्त 7 सम्भागीय मुख्यालयों-जयपुर, जोधपुर, कोटा, अजमेर, बीकानेर, उदयपुर एवं भरतपुर में नगर निगम स्थापित हैं। राज्य सरकार नगर निगमों को जनसंख्या के आधार पर प्रादेशिक निर्वाचक क्षेत्रों में विभक्त करती है। इन प्रादेशिक निर्वाचक क्षेत्रों को वार्ड कहा जाता है। वार्डों के कुल संभाग में से अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जनसंख्या के अनुपात एवं महिलाओं के लिए नियमानुसार स्थान चक्रानुक्रम के आधार पर आरक्षित किए जाते हैं।

प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित किया जाता है। नगर निगम के सदस्य अपने में से एक महापौर व एक उपमहापौर का निर्वाचन करते हैं, जिनका कार्यकाल 5 वर्ष होता है। राज्य सरकार की ओर से नगर निगम में एक प्रमुख कार्यपालक अधिकारी तथा सहयोग के लिए आयुक्त की नियुक्ति की जाती है।

नगर निगम के कार्य एवं शक्तियाँ
नगर निगम के प्रमुख कार्य एवं शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. अनिवार्य कार्य
  2. ऐच्छिक कार्य
  3. विशेष कार्य।

1. नगर निगम के अनिवार्य कार्य – अनिवार्य कार्य वे कार्य, हैं जिन्हें पूरा करना प्रत्येक नगर निगम का कर्तव्य है। ये कार्य निम्नलिखित हैं

  • शुद्ध जल का प्रबन्ध करना।
  • सार्वजनिक मार्गों व स्थानों की सफाई करना, विद्युत की व्यवस्था करना।
  • अग्निशमन तथा आग से जान माल की सुरक्षा के उपाय करना।
  • सार्वजनिक शौचालयों व मूत्रालयों का निर्माण व रखरखाव करना।
  • जन्म-मृत्यु एवं विवाह का पंजीकरण करना।
  • सार्वजनिक मार्गों का नामकरण व भवनों का संख्यांकन करना।
  • हाटों, बाजारों एवं मेलों का प्रबन्ध करना।
  • पर्यावरण संरक्षण, जनसंख्या नियंत्रण तथा परिवार कल्याण के कार्य करना।
  • खतरनाक भवनों को गिराना।
  • खतरनाक व्यापार पर नियंत्रण करना।
  • निगम सम्पत्ति की देखभाल करना।
  • खाद्य पदार्थों एवं भोजनालयों का नियमन एवं नियंत्रण करना।
  • वार्षिक प्रतिवेदनों का प्रकाशन करना।

2. नगर निगम के ऐच्छिक कार्य – ये वे कार्य हैं जिन्हें निष्पादित करना अथवा न करना नगर निगम के स्वविवेक पर निर्भर है। ये कार्य निम्नलिखित हैं

  • सार्वजनिक मार्गों एवं उनके किनारे भवन निर्माण के प्रयोजनार्थ भूमि आवंटित करना।
  • सार्वजनिक उद्यानों, पुस्तकालयों, रंगमंचों, अखाड़ों आदि का निर्माण एवं रखरखाव करना।
  • सड़कों के किनारे वृक्षारोपण करना एवं उनकी देखभाल करना
  • मेले एवं प्रदर्शनियों का आयोजन करना।
  • निर्धनों एवं विकलांगों की सहायता करना।
  • सार्वजनिक स्थानों पर संगीत की व्यवस्था करना।

3. नगर निगम के विशेष कार्य – नगर निगम निम्नलिखित विशेष कार्य भी करता है-

  • खतरनाक बीमारी के समय चिकित्सा सहायता एवं अन्य सुविधाएँ प्रदान करना तथा बीमारी को फैलने से रोकना।
  • अकाल के समय निराश्रितों की सहायता करना और आपदा प्रबंधन का कार्य करना।

प्रश्न 4.
नगरपालिका की संरचना को स्पष्ट करते हुए उसके कायों का वर्णन कीजिए।
अथवा नगरपालिका के गठन तथा कार्य व शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगरपालिका का गठन/संरचना
नगरपालिका के गठन/संरचना की प्रक्रिया अग्र प्रकार से

1. गठन की प्रक्रिया का आधारे जनसंख्या – सभी राज्यों में नगरपालिका के गठन की प्रक्रिया में जनसंख्या को आधार माना है। इसी आधार पर राजस्थान में एक लाख से कम जनसंख्या वाले छोटे नगरों या कस्बों में नगरपालिका स्थापित की गई है।

2. वार्डों में विभाजन – नगरपालिका क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचक क्षेत्र के रूप में वार्डों में विभक्त कर दिया जाता है। वार्डों की संख्या कम से कम 13 होगी। वार्डों की संख्या समय-समय पर राज्य द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा संशोधित की जा सकती है।

3. वार्ड सदस्य का निर्वाचन – नगरपालिका के वार्ड सदस्य वयस्क मताधिकार से जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से गुप्त मतदान द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं। 21 वर्ष या अधिक आयु का व्यक्ति जो नगरपालिका क्षेत्र की निर्वाचक नामावली में पंजीकृत हो वह नगरपालिका सदस्य का चुनाव लड़ सकता है।

4. अनुसूचित जाति तथा जनजाति व अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण की व्यवस्था – अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग की जनसंख्या के अनुपात एवं महिलाओं के लिए नियमानुसार स्थान चक्रानुक्रम के आधार पर आरक्षित किये जाते हैं। आरक्षित स्थानों का निर्धारण चुनाव से पहले लॉटरी पद्धति से किया जाता है। आरक्षित वर्ग के व्यक्ति और महिलाएँ सामान्य सीट से भी चुनाव लड़ सकते हैं।

5. कार्यकाल – 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा नगरीय निकायों का कार्यकाल सम्पूर्ण देश में 5 वर्ष निर्धारित किया गया। राजस्थान में भी यही व्यवस्था है।

6. अध्यक्ष/उपाध्यक्ष – प्रत्येक नगरपालिका में एक अध्यक्ष व एक उपाध्यक्ष होता है। इन्हें निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से चुना जाता है। इनका कार्यकाल 5 वर्ष है लेकिन निर्वाचित सदस्य अविश्वास प्रस्ताव पारित कर इन्हें पद से हटा सकते हैं। अध्यक्ष यदि एक माह तक बिना सूचना के नगर पालिका की बैठकों से अनुपस्थित रहे तो उसका पद रिक्त हो जाता है। रिक्त पद को पुनः निर्वाचित सदस्य चुनाव द्वारा भर सकते हैं।

7. अधिशासी अधिकारी – नगरपालिका में निर्धारित नीतियों के क्रियान्वयन तथा कार्य सम्पादन हेतु सरकारी प्रतिनिधि के रूप में अधिशासी अधिकारी की नियुक्ति की जाती है। कार्यालयी व दूसरे कार्यों को करने के लिए अन्य अधिकारी व कर्मचारी भी होते हैं।

नगरपालिका के कार्य एवं शक्तियाँ
नगर पालिका के कार्य एवं शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

  • नगर व कस्बे के विकास हेतु योजनाओं का निर्माण व क्रियान्वयन करना।
  • भूमि उपयोग एवं भवन – निर्माण को विनियमन सम्बन्धी कार्य
  • सड़कों का विद्युतीकरण करना, वाहन पार्किंग की व्यवस्था करना, बस स्टाप तथा जन सुविधाओं की व्यवस्था करना एवं उन्हें संचालित करना।
  • जनस्वास्थ्य, स्वच्छता व सफाई की व्यवस्था करना।
  • गरीबी उन्मूलन हेतु आवश्यक उपाय करना।
  • अपने कार्य-क्षेत्र में आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए नियोजन करना।
  • सड़कों एवं पुलों का निर्माण व रख-रखाव करना।
  • गन्दी बस्तियों के उत्थान के लिए प्रयास करना।
  • जन्म-मृत्यु का पंजीयन करना।
  • नगरीय वन व पर्यावरण संरक्षण, उद्यान व खेल के मैदानों का रख-रखाव करना।
  • अग्निशमन सेवाएँ-प्रदान करना।
  • औद्योगिक व वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए जल वितरण की व्यवस्था करना।
  • विकलांग व मन्द बुद्धि लोगों के हितों की रक्षा करना।
  • बूचड़खानों का विनियमन एवं पशु गृहों की व्यवस्था सम्बन्धी कार्य करना।
  • जनता के लिए सांस्कृतिक, शैक्षणिक उन्नयन का प्रबन्ध एवं मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराना।

प्रश्न 5.
छावनी बोर्ड क्या है ? इसके गठन एवं कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
छावनी बोर्ड छावनी बोर्ड शब्द का प्रयोग सैनिकों के निवास स्थान के लिए किया जाता है। केन्द्र सरकार द्वारा जिन क्षेत्रों में स्थाई रूप से सैनिक रखे जाते हैं, उस क्षेत्र को छावनी क्षेत्र कहते हैं। समय के साथ-साथ छावनी में सैनिकों के साथ नागरिक भी एक बड़ी संख्या में निवास करने लगे हैं। भारत सरकार ने ऐसे क्षेत्रों की स्थानीय समस्याओं के समाधान हेतु स्थानीय संस्था के गठन के लिए 1924 ई. में छावनी बोर्ड अधिनियम पारित किया।

छावनी बोर्ड, नगरपालिकों के समान कार्यों का सम्पादन करता है। भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत छावनी बोर्ड प्रशासित होते हैं। वर्तमान में देश में समस्त छावनी बोर्ड सितम्बर 2006 से लागू नए कानून के अधीन शासित हो रहे हैं। राजस्थान में अजमेर के नसीराबाद में एकमात्र छावनी बोर्ड स्थापित है।

छावनी बोर्ड का गठन
छावनी बोर्ड का गठन निम्नलिखित प्रकार से होता है।

  1. छावनी बोर्ड कुछ निर्वाचित सदस्य व कुछ मनोनीत सदस्यों से मिलकर बना है। निर्वाचित सदस्य छावनी क्षेत्र की जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर गुप्त मतदान प्रणाली से चुने जाते हैं।
  2. मनोनीत सदस्यों की संख्या निर्वाचित सदस्य संख्या से एक अधिक होती है।
  3. छावनी बोर्ड के निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष होता है तथा मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल पद पर पदासीन होने तक होता है। सेना का मुख्य अधिकारी छावनी बोर्ड का अध्यक्ष होता है।
  4. छावनी बोर्ड के अध्यक्ष को कार्यपालक के रूप में कई अधिकार प्राप्त होते हैं। छावनी क्षेत्र की समस्याओं को निपटाने के अतिरिक्त उस क्षेत्र को सुरक्षित व बाधा रहित बनाए रखना भी उसका दायित्व होता है।

छावनी बोर्ड के कार्य
छावनी बोर्ड के कार्य नगरपालिका के कार्य जैसे ही होते हैं। इनका वर्णन निम्नानुसार है

  • नगर के विकास हेतु योजनाओं का निर्माण व क्रियान्वयन करना।
  • भूमि उपयोग तथा भवन निर्माण का विनियमन सम्बन्धी कार्य।
  • सड़कों का विद्युतीकरण करना, बाह्य पार्किंग की व्यवस्था करना, बस स्टाप तथा जन-सुविधाओं की व्यवस्था करनी एवं उन्हें संचालित करना।
  • जनस्वास्थ्य, स्वच्छता व सफाई की व्यवस्था करना।
  • गरीबी उन्मूलन हेतु आवश्यक उपाय करना।
  • गन्दी बस्तियों के उत्थान के लिए प्रयास करना।
  • अपने कार्य क्षेत्र में आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए नियोजन करना।
  • जन्म-मृत्यु का पंजीयन करना।
  • सड़कों एवं पुलों का निर्माण व रख-रखाव करना।
  • अग्निशमन सेवाएँ प्रदान करना।
  • विकलांगों व मन्द बुद्धि लोगों के हितों की रक्षा करना।
  • नगरीय वन व पर्यावरण संरक्षण, उद्यान व खेल के मैदानों का रख-रखाव करना।
  • जनता के लिए सांस्कृतिक, शैक्षणिक उन्नयन का प्रबन्ध एवं मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराना।

प्रश्न 6.
राजस्थान में स्थानीय स्वशासन में सुधार हेतु कौन-कौन से उल्लेखनीय प्रयास शुरू हुए हैं ? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
राजस्थान में स्थानीय स्वशासन में सुधार हेतु प्रयास

  1. स्थानीय स्वशासन संस्थाओं हेतु चुने गए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा महिला वर्ग के लिए आरक्षित पद पर से किसी कारणवश हटने पर उसी वर्ग के सदस्य को अध्यक्ष बनाए जाने का प्रावधान किया गया है।
  2. स्थानीय स्वशासन में संस्थाओं का चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के विरुद्ध यदि न्यायालय द्वारा ऐसे किसी अपराध का संज्ञान ले लिया है और आरोप विचारित कर दिये गये हैं, जो 5 वर्ष अथवा अधिक कारावास से दण्डनीय हों तो ऐसे व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
  3. इन संस्थाओं का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के दो से अधिक बच्चे होने पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
  4. ग्रामीण विकास योजनाओं ग्रामीण समुदाय की सहभागिता में वृद्धि करने हेतु वार्ड सभा का गठन किया गया है।
  5. राजस्थानं ग्रामीण विकास सेवा का गठन किया गया है। इस सेवा में चुने गए अधिकारियों को पंचायती राज की विकास प्रक्रिया एवं संचालन के दायित्व से जोड़ा गया है।
  6. स्थानीय स्वशासन की विभिन्न संस्थाओं का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के घर में शौचालय होना अति आवश्यक है।
  7. पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में भाग लेने वाले प्रत्येक उम्मीदवार की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गई है –
    (अ) जिला परिषद् तथा पंचायत समिति के सदस्य के लिए 10वीं कक्षा उत्तीर्ण।
    (ब) अनुसूचित क्षेत्र की ग्राम पंचायत के सरपंच के लिए 5वीं कक्षा उत्तीर्ण।
    (स) अन्य ग्राम पंचायत के सरपंच के लिए 8वीं कक्षा उत्तीर्ण ।
  8. नगरीय निकायों के चुनाव के लिए भी उम्मीदवारों हेतु न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता व घर में शौचालय अनिवार्य कर दिया गया है।

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