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RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 19 पुस्तपालन- बहीखाता

February 28, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 19 पुस्तपालन- बहीखाता are part of RBSE Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 19 पुस्तपालन- बहीखाता.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 9
Subject Social Science
Chapter Chapter 19
Chapter Name पुस्तपालन- बहीखाता
Number of Questions Solved 72
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 19 पुस्तपालन- बहीखाता

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
पुस्तपालन एवं लेखांकन की सबसे अधिक वैज्ञानिक विधि है
(अ) इकहरा लेखा विधि
(ब) रोकड़ विधि
(स) महाजनी विधि
(द) दोहरा लेखा विधि
उत्तर:
(द) दोहरा लेखा विधि

प्रश्न 2.
दोहरे लेखे का अर्थ है, किसी लेन-देन की
(अ) एक खाते के दोनों पक्षों में लेखा करना
(ब) दो खातों के नाम पक्ष में लेखा करना
(स) दो खातों के जमा पक्ष में लेखी करना
(द) एक खाते के नाम पक्ष में तथा दूसरे खाते के जमा पक्ष में लेखा करना।
उत्तर:
(द) एक खाते के नाम पक्ष में तथा दूसरे खाते के जमा पक्ष में लेखा करना।

प्रश्न 3.
दोहरा लेखा प्रणाली की जिस अवस्था से व्यापार की आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलती है, वह है
(अ) वर्गीकरण
(ब) सारांश
(स) प्रारम्भिक लेखा
(द) खतौनी
उत्तर:
(ब) सारांश

प्रश्न 4.
व्यापार प्रारम्भ करते समय व्यापार का स्वामी जो धनराशि लाता है, उसे कहते हैं|
(अ) सम्पत्ति
(ब) आहरण
(स) पूँजी
(द) दायित्व।
उत्तर:
(स) पूँजी

प्रश्न 5.
महाजनी लेखा विधि आधारित है
(अ) इकहरा लेखा विधि पर
(ब) रोकड़प्रणाली पर
(स) दोहरा लेखा विधि पर
(द) उपर्युक्त किसी पर नहीं।
उत्तर:
(स) दोहरा लेखा विधि पर

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाजनी बही में कितनी सलवटें होती हैं?
उत्तर:
महाजनी बही में आवश्यकतानुसार 6, 8, 12 या 16 सलवटें होती हैं।

प्रश्न 2.
पक्की रोकड़ बही किससे बनाई जाती है?
उत्तर:
पक्की रोकड़ बही, कच्ची रोकड़ बही से बनाई जाती है।

प्रश्न 3.
खाताबही में लेखा करने को क्या कहते हैं?
उत्तर:
खाताबही में लेखा करने को खतौनी करना कहते

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुस्तपालन की दोहरा लेखा प्रणाली के तीन गुण और दो दोष बताइए।
उत्तर:
दोहरा लेखा प्रणाली के तीन गुण

  1. यह प्रणाली लेखांकन की एक पूर्ण एवं वैज्ञानिक लेखा प्रणाली है।
  2. इसमें प्रत्येक लेन-देन कम से कम दो खातों में लिखा जाता है इसलिए यह प्रणाली पूर्ण रूप से विश्वसनीय है।
  3. इसमें लाभ-हानि खाता बनाकर आसानी से शुद्ध लाभ-हानि की जानकारी की जा सकती है।

दोहरा लेखा प्रणाली के दो दोष-

  • इसमें क्षतिपूरक अशुद्धियों को खोजना कठिन होता है।
  • इसमें गलत खाते के सही पक्ष में खतौनी होने पर अशुद्धि का पता नहीं चलता

प्रश्न 2.
पुस्तपालन की दोहरा लेखा विधि की प्रथम अवस्था की बहियों के नाम बताइए।
उत्तर:
दोहरा लेखा विधि की प्रथम अवस्था की बहियों को प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकें कहते हैं। इसके अन्तर्गत समस्त छोटे व्यापारी केवल जर्नल में ही समस्त लेखे कर लेते हैं, लेकिन बड़े व्यापारी लेन-देन की प्रकृति के अनुसार विभिन्न सहायक पुस्तकें रखते हैं; जैसे-क्रय पुस्तक, विक्रय पुस्तक, क्रय वापसी पुस्तक, विक्रय वापसी पुस्तक, प्राप्य बिल पुस्तक, देय बिल पुस्तक, रोकड़ पुस्तक, प्रमुख जर्नल आदि।

प्रश्न 3.
लेखांकन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
लेखांकन की परिभाषा आर. एन. एन्थोनी के अनुसार, “लेखांकन प्रणाली व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं को मौद्रिक शब्दों में एकत्रित करने, सारांशित करने और सूचित करने का एक साधन है।” अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक अकाउण्टेन्ट्स के अनुसार-“लेखांकन व्यवसाय के लेखे एवं घटनाओं को जो पूर्णतः या आंशिक रूप से वित्तीय प्रकृति के होते हैं, मुद्रा में प्रभावपूर्ण विधि से लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने एवं उनके परिणामों की आलोचनात्मक विधि से व्याख्या करने की कला है।”

प्रश्न 4.
लेखांकन के कोई तीन उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
लेखांकन के तीन उद्देश्

  • समस्त आर्थिक व्यवहारों का लेखा करना।
  • व्यवसाय में हित रखने वाले पक्षों को सूचनाएँ उपलब्ध करवाना।
  • लाभ-हानि का निर्धारण करना।

प्रश्न 5.
लेखांकन सिद्धान्त की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक लेन-देन में एक पक्ष कुछ देता है तथा दूसरी पक्ष कुछ लेता है। इसलिए प्रत्येक लेन-देन से कम-से-कम दो पक्ष प्रभावित होते हैं। अतः लेखा करते समय भी दोनों पक्ष प्रभावित होने चाहिए, यही लेखांकन सिद्धान्त कहलाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखांकन क्या है? इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लेखांकन का आशय
लेखांकन का आशय मौद्रिक लेन – देनों को क्रमबद्ध रूप से लिखने, उनका वर्गीकरण करने, सारांश तैयार करने एवं उनको इस प्रकार प्रस्तुत करने से है ताकि उनसे अन्तिम खाते तैयार करके उचित निर्णय लिया जा सके।

लेखांकन के उद्देश्य

  1. लेन-देनों का लेखा करना – व्यवसाय से सम्बन्धित सभी आर्थिक लेन-देनों एवं घटनाओं का वर्गीकरण करके उनका नियमानुसार उचित बहियों में लेखा करना तथा उन्हें सम्पत्ति, दायित्व, पूँजी, आय-व्यय आदि के रूप में उन्हें दर्शाना लेखांकन का प्रमुख उद्देश्य है।
  2. लाभ-हानि की गणना करना – लेखांकन का एक उद्देश्य यह जानना भी है कि एक निश्चित समय (सामान्यतया एक वर्ष) में लाभ हो रहा है या हानि। सामान्यतया व्यापारी लाभ के लिए व्यवसाय करता है, लेकिन कभी-कभी उसे हानि भी हो जाती है।
  3. वित्तीय स्थिति की जानकारी – लेखांकन का उद्देश्य व्यवसाय की वित्तीय स्थिति की जानकारी प्राप्त करना भी है। वर्ष के अन्त में स्थिति विवरण बनाकर सम्पत्तियों, दायित्वों एवं पूँजी आदि के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता
  4. व्यवसाय पर नियन्त्रण रखना – लेखांकन के माध्यम से व्यवसाय के उत्पादन, विक्रय, लागते आदि की जानकारी करके उनकी तुलना बजटीय आँकड़ों या अन्य फर्मों के आँकड़ों से की जा सकती है। इससे अन्तर के कारणों का विश्लेषण करके सुधारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं।
  5. सूचनाएँ उपलब्ध कराना – लेखांकन के माध्यम से तैयार किए गए विवरण, रिपोर्ट आदि स्वामी, प्रबन्धक, निवेशक, बैंक, लेनदार, ग्राहक, सरकार आदि को आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं जिनके माध्यम से ये सभी बाह्य एवं आन्तरिक उपयोगकर्ता विश्लेषण करके निर्णय लेते हैं।

प्रश्न 2.
दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्तों के अनुसार ‘प्रत्येक नाम की रकम के लिए उतनी ही जमा रकम होती है, इसको स्पष्टतया समझाइए तथा इसकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्त
दोहरा लेखा प्रणाली में प्रत्येक लेन-देन से दो पक्ष प्रभावित होते हैं। एक पक्ष को कुछ प्राप्त होता है तथा दूसरा पक्ष कुछ त्याग करता है। इसलिए इस प्रणाली में जितनी धनराशि से एक खाता नाम (डेबिट) किया जाता है उतनी ही धनराशि से दूसरा खाता जमा (क्रेडिट) किया जाता है। अतः इस प्रणाली में एक व्यवहार के डेबिट एवं क्रेडिट दोनों ही पहलुओं का लेखा किया जाता है। दोहरा लेखा प्रणाली की विभिन्न अवस्थाएँ

1. प्रारम्भिक लेखा – व्यापारिक लेन-देन होने के तुरन्त बाद लेखा करने की अवस्था को प्रारम्भिक लेखे की अवस्था कहते हैं। ये लेखे जिन पुस्तकों में किये जाते हैं उन्हें प्रारम्भिक लेखे की पुस्तक कहते हैं। छोटे व्यापारी जर्नल की एक पुस्तक में ही समस्त लेन-देनों का लेखा करते हैं, लेकिन बड़े व्यापारी लेन-देन की प्रकृति के अनुसार विभिन्न सहायक पुस्तकें जैसे-क्रय पुस्तक, विक्रय पुस्तक, क्रय वापसी पुस्तक, विक्रय वापसी पुस्तक, प्राप्य बिल पुस्तक, देय बिल पुस्तक, रोकड़ पुस्तक आदि में नियमानुसार लेखे करते हैं।

2. वर्गीकरण एवं खतौनी – दोहरा लेखा प्रणाली में लेखांकन की दूसरी अवस्था की प्रमुख लेखा पुस्तक खाताबही होती है। खाताबही में विभिन्न व्यक्तियों, वस्तुओं तथा आय-व्यय से सम्बन्धित खाते खोले जाते हैं। इन खातों में जर्नल की सहायता से सही पक्ष में लेखा कर दिया जाता है। खातों के छाँटने के कार्य को वर्गीकरण कहते हैं तथा उनमें लेखा करने के कार्य को खतौनी कहा जाता है। खाताबही को ही दोहरा लेखा प्रणाली की प्रमुख लेखा पुस्तक माना जाता है।

3. सारांश या अन्तिम खाते तैयार करना – खाताबही से लाभ-हानि की जानकारी या व्यापार की आर्थिक स्थिति की जानकारी नहीं हो पाती है। इसलिए वर्ष के अन्त में सभी खातों का शेष निकालकर तलपट बनाया जाता है। इस तलपट की सहायता से अन्तिम खाते (व्यापार खाता, लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा) तैयार किये जाते हैं। अन्तिम खातों से व्यापार की लाभ-हानि तथा आर्थिक स्थिति की जानकारी हो जाती है। यही दोहरा लेखा प्रणाली में लेखांकन की तृतीय अवस्था है।

प्रश्न 3.
लेखांकन की दोहरा लेखा विधि के लाभ व दोष सविस्तार बताइए।
उत्तर:
दोहरा लेखा विधि के लाभ

  1. पूर्ण एवं वैज्ञानिक आधार पर लेखा – इस प्रणाली में व्यक्तिगत, वस्तुगत एवं आय-व्यय सम्बन्धी सभी खाते रखे जाते हैं तथा इसके लेखा निश्चित सिद्धान्तों एवं नियमों पर आधारित होते हैं, जिसमें त्रुटि की सम्भावना नहीं रहती है। इसलिए यह पूर्ण एवं वैज्ञानिक लेखाविधि है।
  2. विश्वसनीय आधार पर लेखा – इस विधि में एक लेन-देन से सम्बन्धित जितनी रकम नाम पक्ष में लिखी जाती है, उतनी ही जमा पक्ष में लिखी जाती है तथा वर्ष के अन्त में तलपट बनाकर पुस्तकों की शुद्धता की जाँच की जाती है। इसलिए यह विश्वसनीय प्रणाली है।
  3. लाभ-हानि की जानकारी – इस प्रणाली में आय-व्यय से सम्बन्धित सभी व्यवहारों का लेखा किया जाता है। अतः व्यापारी जब चाहे लाभ-हानि खाता बनाकर लाभ-हानि की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
  4. आर्थिक स्थिति का ज्ञान – इस प्रणाली में सभी सम्पत्तियों एवं दायित्वों से सम्बन्धित तथ्यों का पृथक से लेखा किया जाता है। इसमें स्वामी व्यवहारों का लेखा तथा समायोजन प्रविष्टियाँ भी की जाती हैं। इस प्रकार किसी भी तिथि को व्यापार की आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त
    की जा सकती है।
  5. सूचना प्राप्ति में सुगमती – इसमें आय-व्यय, क्रय-विक्रय, देनदार-लेनदार, सम्पत्तियों एवं दायित्वों से सम्बन्धित सूचनाएँ आसानी से कम समय में प्राप्त की जा सकती हैं।
  6. धोखाधड़ी व जालसाजी की कम संभावना – इस प्रणाली में प्रत्येक लेन-देन का लेखा दो खातों में होने से धोखाधड़ी एवं जालसाजी की सम्भावना कम रहती है।
  7. वैधानिक मान्यता – हमारे देश में कम्पनी अधिनियम एवं अन्य अधिनियमों द्वारा इस प्रणाली को वैधानिक मान्यता प्राप्त है।

दोहरा लेखा विधि के दोष अथवा सीमाएँ

  1. लेखों के छूट जाने पर कोई प्रभाव नहीं – इस विधि के अन्तर्गत यदि कोई लेखा प्रारम्भिक पुस्तकों से लिखने से छूट जाय तो इस अशुद्धि का पता नहीं लगाया जा सकता है अर्थात् इसके रहते हुए भी तलपट मिल जायेगा।
  2. प्रारम्भिक लेखे में गलत रकम लिखने पर गलती का पता न लगना – यदि प्रारम्भिक लेखा करते समय ही गलत रकम लिख दी जाय तो खाताबही में भी दोनों खातों में गलत रकम ही लिखी जायेगी तथा तलपट फिर भी मिल जायेगा। अतः ऐसी कमियों का पता नहीं लगाया जा सकता है।
  3. क्षतिपूरक अशुद्धियों को खोजना कठिन – कभी-कभी खतौनी में जितनी राशि का अन्तर किसी खाते के डेबिट पक्ष में हो जाता है, उतनी ही राशि का अन्तर एक या अधिक खातों के क्रेडिट पक्ष में भी हो जाता है, जिससे एक त्रुटि की पूर्ति दूसरी त्रुटि से हो जाती है तथा तलपट मिल जाता है, लेकिन त्रुटि बनी रहती है।
  4. खर्चीली प्रणाली – इस प्रणाली में बड़े-बड़े रजिस्टरों पर काफी व्यय होता है। इसलिए यह काफी खर्चीली प्रणाली है।
  5. योग्य एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता – इस प्रणाली में हिसाब की पुस्तकें लिखने के लिए योग्य एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। अतः कम पढ़े-लिखे लोग इसमें कार्य नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 4.
पुस्तपालन एवं बहीखाता (लेखांकन) से आप क्या समझते हैं? दोनों में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पुस्तपालन का अर्थ
पुस्तपालन को अंग्रेजी में ‘बुक कीपिंग’ कहते हैं। यह दो शब्दों बुक तथा कीपिंग के योग से बना है, जिसका अर्थ है। पुस्तकें रखना लेखा पुस्तकों के रखने का तात्पर्य नियमानुसार लन -देनों को उन पुस्तकों में लिखने से है।
जे. आर. बाटलीबॉय के अनुसार, “पुस्तपालन व्यापारिक लेन-देनों को उचित खाते के अन्तर्गत दर्ज करने का विज्ञान और कला है।”
प्रो. कोटलर के अनुसार, “एक पूर्व वैचारिक योजना के अनुसार व्यवहारों के विश्लेषण, वर्गीकरण तथा लेखांकन की प्रक्रिया को पुस्तपालन कहते हैं।

बहीखाता (लेखांकन) का अर्थ
बहीखाता (लेखांकन) का आशय मौद्रिक स्वभाव के लेन-देनों का लेखा करने, उनका वर्गीकरण करने तथा सारांश निकालने से है। आर. एन. एन्थोनी के अनुसार, “लेखांकन प्रणाली व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं को मौद्रिक शब्दों में एकत्रित करने, सारांशित करने और सूचित करने का एक साधन है।” अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक अकाउण्टेन्ट्स के अनुसार, “लेखांकन व्यवसाय के लेखे एवं घटनाओं को जो पूर्णत: या आंशिक रूप में वित्तीय प्रकृति के होते हैं, मुद्रा में प्रभावपूर्ण विधि से लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने एवं उनके परिणामों की आलोचनात्मक विधि से व्याख्या करने की कला है।”

पुस्तपालन तथा बहीखाता (लेखांकन) में अन्तर

अन्तर का आधार पुस्तपालन बहीखाता (लेखांकन)
1. क्षेत्र इसका क्षेत्र व्यापारिक व्यवहारों का लेखा करने तक ही सीमित होता है। अतः यह लेखांकन का प्रारम्भिक चरण है। लेखांकन में पुस्तपालन भी सम्मिलित होता है अत: इसका क्षेत्र विस्तृत है।
2. उद्देश्य इसका उद्देश्य जर्नल तथा सहायक पुस्तकें तैयार करना एवं खाताबही तैयार करना होता है। इसका उद्देश्य व्यावसायिक व्यवहारों का लेखांकन, विश्लेषण एवं निर्वचन करना। होता है।
3. कार्य का स्तर इसका कार्य प्रारम्भिक स्तर का होता है, जो लेखा लिपिक द्वारा किया जाता है। इसका कार्य तीन स्तरों पर होता है। प्रारम्भिक स्तर पर लिपिक खातों में प्रविष्टि करते हैं। मध्य स्तर पर लेखाकार व उच्च स्तर पर प्रबन्धकीय लेखाकार विश्लेषण करता है।
4. पारस्परिक निर्भरता पुस्तपालन प्रारम्भिक स्तर पर लेखा करने की कला है। लेखांकन इसे अर्थपूर्ण एवं उद्देश्यपूर्ण बनाता है अर्थात् पुस्तपालन एवं लेखांकन में पारस्परिक निर्भरता है।
5. वित्तीय व्यवहारों को परिणाम इससे व्यवसाय की वित्तीय स्थिति की जानकारी नहीं हो पाती है। लेखांकन व्यवसाय की लाभ-हानि, सम्पत्ति तथा दायित्वों का ज्ञान प्रदान करता है।
6. लेखांकन के सिद्धान्त पुस्तपालन में लेखांकन के सिद्धान्तों को सभी व्यवसाय एक समान रूप से अपनाते है। लेखांकन में विभिन्न तथ्यों की रिपोर्ट, विश्लेषण एवं निर्वचन के तरीकों में अलग-अलग व्यवसायों में कुछ भिन्नता हो सकती है।

प्रश्न 5.
लेखांकन के कार्यों को सविस्तार समझाइए।
उत्तर:
लेखांकन के कार्य-लेखांकन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

1. व्यापारिक व्यवहारों का लेखा रखना – व्यापारिक लेन-देनों को हिसाब-किताब की पुस्तकों में लिपिबद्ध करने से एक स्थायी लेखा तैयार हो जाता है जिसका प्रयोग आवश्यकता पड़ने पर भविष्य में किया जा सकता है।
2. व्यापार की आर्थिक स्थिति को ज्ञात करना – लेखांकन का उद्देश्य यह ज्ञात करना होता है कि किसी निश्चित तिथि को संस्था की आर्थिक स्थिति कैसी है। चिट्ठा बनाकर सम्पत्तियों एवं दायित्वों की स्थिति ज्ञात हो जाती है।
3. लाभ-हानि ज्ञात करना – लेखा पुस्तकों की सहायता से यह ज्ञात किया जा सकता है कि किसी निश्चित अवधि में व्यापार को लाभ हुआ है या हानि। लाभ-हानि ज्ञात करने के लिए लाभ-हानि खातो तैयार किया जाता है।
4. व्यवसाय पर नियन्त्रण रखना – लेखांकन के द्वारा व्यवसाय के उत्पादन, विक्रय, लागत आदि की जानकारी करके उनकी तुलना बजटीय आँकड़ों या अन्य फर्मों के आँकड़ों से की जा सकती है। इससे अन्तर के कारणों का विश्लेषण करके सुधारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं तथा व्यवसाय की गतिविधियों पर नियन्त्रण रखा जा सकता है।
5. सूचनाएँ उपलब्ध कराना – लेखांकन के माध्यम से तैयार किये गये विवरण, रिपोर्ट आदि स्वामी, प्रबन्धक, निवेशक, बैंक, लेनदार, ग्राहक, सरकार आदि को आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं, जिनके माध्यम से ये सभी बाह्य एवं आन्तरिक उपयोगकर्ता विश्लेषण करके निर्णय लेते हैं।
6. वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना – कम्पनी अधिनियम, आयकर एवं क्रीकर अधिनियमों की विभिन्न व्यवस्थाओं की पूर्ति हेतु लेखांकन के सिद्धान्तों के आधार पर खाते रखना आवश्यक होता है।
7. अन्य कार्य – लेखांकन के द्वारा अन्य उद्देश्यों की भी पूर्ति होती है, यथा

  • ऋणी एवं ऋणदाताओं की जानकारी उपलब्ध कराना।
  • क्रय, विक्रय एवं अन्तिम रहतिया की जानकारी उपलब्ध कराना।
  • व्यापार की तुलनात्मक कार्यक्षमता का ज्ञान प्राप्त कराना।
  • व्यापार के लाभ-हानि का कारण ज्ञात कराना।
  • उत्पादन लागत ज्ञात कराना।
  • रोकड़ हाथ में तथा रोकड़ बैंक में, की जानकारी प्रदान करना।

प्रश्न 6.
महाजनी बहीखाता पद्धति किसे कहते हैं? इसकी। क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
महाजनी बहीखाता पद्धति या भारतीय बहीखाता पद्धति महाजनी बहीखाता पद्धति विश्व की प्राचीनतम लेखा। पद्धतियों में से एक है। भारत में इसका प्रयोग हजारों वर्षों से ब्याज पर उधार देने वाले महाजनों द्वारा किया जाता रहा है इसीलिए इसे भारतीय बहीखाता पद्धति भी कहा जाता है। इस पद्धति में लेन-देनों का लेखा हिन्दी या अन्य किसी भारतीय भाषा में लाल जिल्द चढ़ी हुई लम्बी-लम्बी बहियों में किया जाता है।इन बहियों में लाइनों के स्थान पर पेजों को मोड़कर सलें बनाकर लेखे किये जाते हैं। यह प्रणाली द्विपक्षीय संकल्पना पर आधारित तथा पूर्ण वैज्ञानिक है। इसमें प्रारम्भिक लेखा, खतौनी तथा अन्तिम खाते बनाये जाते हैं। आज भी छोटे एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारी इसी पद्धति को अपना रहे हैं। महाजनी बहीखाता पद्धति की विशेषताएँ।

  1. यह पद्धति अंग्रेजी बहीखाता प्रणाली की तरह ही पूर्ण तथा वैज्ञानिक है।
  2. इस पद्धति में दोहरा लेखा सिद्धान्त का पालन किया जाता है।
  3. इसमें हिसाब-किताब लिखने के-लिए लाल कपड़ा चढ़ी लम्बी-लम्बी बहियों का प्रयोग किया जाता है। इसमें मोटे एवं चिकने कागज लगे होते हैं। जो एक डोरी से सिले होते हैं।
  4. इस पद्धति में लाइनों के स्थान पर बही के पृष्ठों को मोड़कर सल बनाकर लेखा किया जाता है।
  5. बहियों में लेखा करने के लिए अधिकतर काली स्याही का प्रयोग किया जाता है।
  6. इस पद्धति में हिसाब-किताब हिन्दी, गुजराती, मराठी, गुरुमुखी, सिन्धी, उर्दू तथा अन्य भारतीय भाषाओं में सुविधानुसार रखा जा सकता है। लेखों की गोपनीयता बनाये रखने के लिए कई व्यापारी सर्राफी अथवा मुड़िया लिपि में भी हिसाब रखते हैं।
  7. इस पद्धति में रुपये लिखने के लिए सतैडी के चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। इसमें कोष्ठक जैसे आकार के बने सतैड़ी का चिन्ह लगाकर रुपये लिखे जाते हैं तथा पैसे इसके बाहर लिखे जाते हैं। जैसे-यदि हमें 30 रुपये 25 पैसे लिखने हों, तो इस प्रकार लिखे जायेंगे 30)25।
  8. इस पद्धति में हिन्दी तिथि तथा अंग्रेजी तारीखें दोनों ही लिखी जाती हैं।

प्रश्न 7.
“महाजनी बहीखाता पद्धति पूर्ण तथा वैज्ञानिक पद्धति है।” इस पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
“महाजनी बहीखाता पद्धति पूर्ण तथा
वैज्ञानिक पद्धति है” महाजनी बहीखाता पद्धति पूर्ण तथा वैज्ञानिक पद्धति है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

1. इस पद्धति में भी अंग्रेजी बहीखाता पद्धति की भाँति प्रत्येक लेन – देन का दोहरा लेखा किया जाता है और व्यापारिक लेन-देनों को उसी प्रकार तीन अवस्थाओं में रखा जाता है।
2. प्राथमिक स्तर पर स्मरण के लिए प्रत्येक व्यवहार की तिथि – क्रमानुसार, बहियों में विस्तार सहित प्रविष्टि की जाती है। इस प्रकार, इसमें किसी भूल-चूक की सम्भावना कम हो जाती है।
3. लेखा करने की दूसरी अवस्था में खातों का स्वभावानुसार वर्गीकरण करके सम्बन्धित खाते में क्रमवार लेखा किया जाता है। इस प्रक्रिया को खतौनी करना या खताना कहते हैं।
4 इस पद्धति में भी अंग्रेजी बहीखाता पद्धति की भाँति ही तीन प्रकार के खाते रखे जाते हैं

  • व्यक्तिगत खाते
  • वस्तुगत खाते तथा
  • हानि-लाभगत खाते

5. इस पद्धति में भी लाभ – हानि तथा आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त करने के लिए अन्तिम खाते तैयार किये जाते हैं।
6. इस पद्धति में तलपट तैयार करके खाताबही के खातों की गणित सम्बन्धी शुद्धता जाँदी जा सकती है तथा उसे सुधारा भी जा सकता है।
7. इस पद्धति में खातों को नाम तथा जमा करने के नियम अंग्रेजी बहीखाता पद्धति के समान ही होते हैं। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि दोहरा लेखा पद्धति तथा महाजनी बहीखाता पद्धति में बहुत समानताएँ हैं। महाजनी बहीखाता पद्धति में लेखांकन के नियम पूर्ण रूप से दोहरा लेखा सिद्धान्त पर आधारित है। अतः यह पद्धति पूर्ण एवं वैज्ञानिक पद्धति है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कौटिल्य की रचना अर्थशास्त्र सम्बन्धित है
(अ) अर्थव्यवस्था से
(ब) राजव्यवस्था से
(स) लेखांकन से
(द) मुद्रा से
उत्तर:
(ब) राजव्यवस्था से

प्रश्न 2.
लेखांकन है
(अ) केवल कला
(ब) केवल विज्ञान
(स) कला एवं विज्ञान दोनों
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) कला एवं विज्ञान दोनों

प्रश्न 3.
दोहरा लेखा प्रणाली का जन्म हुआ था
(अ) अमेरिका में
(ब) इंग्लैण्ड में
(स) भारत में
(द) इटली में
उत्तर:
(द) इटली में

प्रश्न 4.
‘डी कम्पोसेट स्क्रिपचर्स’ नामक पुस्तक के लेखक हैं-
(अ) लुकास पैसियोली
(ब) एडवर्ड जोन्स
(स) कौटिल्य
(द) लूज ओल्ड कैसिल
उत्तर:
(अ) लुकास पैसियोली

प्रश्न 5.
“दी इंगलिश सिस्टम ऑफ बुक कीपिंग” नामक पुस्तक लिखी गयी
(अ) सन् 1494 में
(ब) सन् 1543 में
(स) सन् 1895 में
(द) सन् 1795 में
उत्तर:
(द) सन् 1795 में

प्रश्न 6.
लेखांकन की अपूर्ण एवं अव्यावहारिक विधि है
(अ) इकहरा लेखा विधि
(ब) दोहरा लेखा विधि
(स) महाजनी बहीखाता विधि
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) इकहरा लेखा विधि

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैदिक काल का समय कब से कब तक माना। जाता है?
उत्तर:
लगभग 5000 ई. पू. से 1000 ई. पू. तक

प्रश्न 2.
“पुस्तपालन व्यापारिक लेन-देनों को उचित खाते के अन्तर्गत दर्ज करने का विज्ञान और कला है। यह परिभाषा किसकी है?
उत्तर:
जे. आर. बाटलीबॉय।

प्रश्न 3.
लेखांकन के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:

  • समस्त आर्थिक व्यवहारों का लेखा करना।
  • लाभ-हानि का ज्ञान प्राप्त करना।

प्रश्न 4.
लेखांकन की किस पद्धति में द्विपक्षीय सिद्धान्त का ध्यान नहीं रखा जाता है?
उत्तर:
इकहरा लेखा पद्धति में

प्रश्न 5.
दोहरा लेखा विधि में समस्त लेन-देनों को कितने खातों में वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर:
तीन खातों में वर्गीकृत किया जाता है

  • व्यक्तिगत खाते
  • वास्तविक खाते
  • अवास्तविक खाते

प्रश्न 6.
दोहरा लेखा प्रणाली का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1494 में।

प्रश्न 7.
दोहरा लेखा प्रणाली के जन्मदाता कौन थे? उत्तर-लुकास पैसियोली।

प्रश्न 8.
लुकास पैसियोली की पुस्तक ‘डी कम्पोसेट स्क्रिपचर्स’ का अंग्रेजी में अनुवाद किसने किया था?
उत्तर:
सन् 1543 में लूज ओल्ड कैंसिल ने।

प्रश्न 9.
“दी इंग्लिश सिस्टम ऑफ बुक कीपिंग” नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
एडवर्ड जोन्स।

प्रश्न 10.
भारत में दोहरा लेखा प्रणाली का प्रारम्भ व विकास कब हुआ?
उत्तर:
अंग्रेजों के शासन काल में।

प्रश्न 11.
खाताबही (Ledger) के एक पृष्ठ में कितने खाने होते हैं?
उत्तर:
खाताबही के एक पृष्ठ में आठ खाने होते हैं।

प्रश्न 12.
खाते के दोनों पक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • नाम (डेबिट) पक्ष
  • जमा (क्रेडिट) पक्ष

प्रश्न 13.
खाताबही की लेखा सम्बन्धी शुद्धता की जाँच करने के लिए कौन-सा विवरण तैयार किया जाता है?
उत्तर:
तलपट तैयार किया जाता है।

प्रश्न 14.
दोहरा लेखा विधि के अन्तर्गत पुस्तपालन एवं लेखांकन सम्बन्धी कार्यों को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
तीन श्रेणियों में

  • प्रारम्भिक लेखा
  • वर्गीकरण एवं खतौनी
  • सारांश या अन्तिम खाते बनाना

प्रश्न 15.
प्रारम्भिक लेखे की किन्हीं चार पुस्तकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • क्रय पुस्तक
  • विक्रय पुस्तक
  • विक्रय वापसी पुस्तक
  • रोकड़ पुस्तक

प्रश्न 16.
अन्तिम खातों के अन्तर्गत कौन-कौन से खाते तैयार किये जाते हैं?
उत्तर:

  • व्यापार खाता
  • लाभ-हानि खाता
  • चिट्ठा।

प्रश्न 17.
अन्तिम खाते लेखांकन की किस अवस्था में बनाये जाते हैं?
उत्तर:
तृतीय अवस्था में।

प्रश्न 18.
महाजनी बहीखाता पद्धति में लाइनों के स्थान पर क्या बनाया जाता है?
उत्तर:
सलें बनाई जाती हैं।

प्रश्न 19.
महाजनी बहीखाता पद्धति में अधिकांशतया कैसी स्याही का प्रयोग होता है?
उत्तर:
काली स्याही का।

प्रश्न 20.
जिसे पुस्तक में समस्त खातों का संग्रह किया जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
खाताबही कहते हैं।

प्रश्न 21.
बहियाँ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
भारतीय बहीखाता प्रणाली में जिन पुस्तकों में लेखा किया जाता है, उन्हें बहियाँ कहा जाता है।

प्रश्न 22.
सिरा व पेटा से क्या आशय है?
उत्तर:
महाजनी बहीखाता पद्धति में बही के प्रत्येक पक्ष (नाम वे जमा) की चार सलों में से पहली सल को सिरा तथा शेष तीन सलों को पेटा कहा जाता है।

प्रश्न 23.
महाजनी बहीखाता प्रणाली में पड़त का क्या अर्थ होता है?
उत्तर:
पड़त का अर्थ माल के भाव या माल की दर से है।

प्रश्न 24.
भरत किसे कहते हैं?
उत्तर:
माल भरने के पात्र में जितना वजन माल का होता है, उसे ‘भरत’ कहते हैं।

प्रश्न 25.
तिथि किसे कहते हैं?
उत्तर:
हिन्दी महीने के प्रत्येक पक्ष में एक से पन्द्रह तक दिन होते हैं, जिसे तिथि कहते हैं।

प्रश्न 26.
कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष को और किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
कृष्ण पक्ष को बदी तथा शुक्ल पक्ष को सुदी कहा जाता है।

प्रश्न 27.
‘मिति’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
महाजनी बहीखाता प्रणाली में भारतीय तरीके से तिथि दर्शाने को मिति कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखांकन विज्ञान है या कला या दोनों। समझाइए।
उत्तर:
लेखांकन विज्ञान है, कला है या दोनों-लेखांकन क्या है ? यह जानने के लिए पहले हम विज्ञान एवं कला दोनों का अर्थ समझें किसी विषय के सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं नियमबद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं। इस रूप में हम देखें तो लेखांकन के भी निश्चित नियम हैं, जो सर्वमान्य सिद्धान्तों एवं अवधारणाओं पर आधारित हैं अत: लेखांकन विज्ञान है। किसी कार्य को सर्वोत्तम रूप से करना अथवा विज्ञान द्वारा प्रतिपादित नियमों को व्यावहारिक रूप में उचित प्रकार क्रियान्वित करना कला है। इस रूप में हम देखें तो लेखापाल लेखांकन के सिद्धान्तों के उपयोग उचित योग्यता एवं निपुणता के साथ करता है अतः यह एक कला भी है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि लेखांकन विज्ञान एवं कला दोनों है।

प्रश्न 2.
लेखांकन की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लेखांकन की विशेषताएँ-लेखांकन की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता हैं-
1. पुस्तपालन पर आधारित – लेखांकन मुख्य रूप से पुस्तपालन पर आधारित है, क्योंकि जहाँ पुस्तपालने का अन्त होता है वहाँ से लेखांकन प्रारम्भ होता है। अतः लेखांकन के लिए आधार पुस्तपालन ही तैयार करता है।
2. तलपट तैयार करना – लेखांकन की सहायता से खाताबही के शेषों के माध्यम से तलपट तैयार किया जाता है। तलपट के दोनों पक्षों का योग समान आता है तो वह इस बात का सूचक होता है कि रोजनामचा व खाताबही ठीक हैं।

प्रश्न 3.
पुस्तपालन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पुस्तपालन का अर्थ – पुस्तपालन अंग्रेजी के दो शब्द बुक + कीपिंग से बना है, जिसका अर्थ है “पुस्तकें रखना। पुस्तकें रखने से आशय व्यावसायिक लेन-देनों का निश्चित नियम एवं विधि के अनुसार लेखा रखने के लिए लेखा पुस्तकों का रखना है। अर्थात् यहाँ लेखा पुस्तकों को रखने का तात्पर्य नियमानुसार लेन-देनों को उन पुस्तकों में लिखने से है। प्रो. कोटलर के अनुसार-“एक पूर्व वैचारिक योजना के अनुसार व्यवहारों के विश्लेषण, वर्गीकरण तथा लेखांकन की प्रक्रिया को पुस्तपालन कहते हैं।”

प्रश्न 4.
इकहरा लेखा प्रणाली पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इकहरा लेखा प्रणाली – इस प्रणाली में कुछ लेन-देनों का लेखा तो द्विपक्षीय संकल्पना के आधार पर किया जाता है, कुछ का नहीं। इसमें नकद लेन-देनों का लेखा तो रोकड़ बही में किया जाता है तथा उधार का लेखा स्मरण-पुस्तिका में किया जाता है। सामान्यतया अव्यक्तिगत खातों से सम्बन्धित लेखे इस प्रणाली में नहीं किये जाते हैं। इस प्रणाली में तलपट भी नहीं बनाया जाता है जिससे कि लेखों की गणितीय शुद्धता का ज्ञान हो सके। इस प्रणाली से शुद्ध एवं सही लाभ-हानि का ज्ञान नहीं हो सकता है। अतः यह प्रणाली अपूर्ण, अव्यावहारिक तथा अवैज्ञानिक है।

प्रश्न 5.
दोहरा लेखा प्रणाली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
दोहरा लेखा प्रणाली – दोहरा लेखा प्रणाली लेन-देनों के लेखांकन की द्विपक्षीय संकल्पना पर आधारित है। इसके अनुसार प्रत्येक लेन-देन को दो पक्षों पर प्रभाव पड़ता है-एक लेने वाला तथा दूसरा देने वाला। प्रत्येक लेन-देन दो खातों को प्रभावित व रता है। इसके अनुसार, हर सौदे को नाम पक्ष तथा जमा पक्ष में लिखा जायेगा। अतः एक खाता डेबिट होगा तो दूसरा खाता अवश्य ही क्रेडिट होगा। यह प्रणाली पूर्ण एवं वैज्ञानिक प्रणाली है। खातों में होने वाली गणित सम्बन्धी अशुद्धियों का पता तलपट बनाने से चल जाता है। यदि तलपट के दोनों पक्षों को योग बराबर मिल जाता है तो खातों में गणित सम्बन्धी त्रुटि होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 6.
दोहरा लेखा प्रणाली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
दोहरा लेखा प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इस प्रणाली में प्रत्येक लेन – देन के दो पक्ष होते हैं, जिनमें से एक डेबिट किया जाता है तथा दूसरा पक्ष क्रेडिट किया जाता है।
  2. इसी प्रकार, प्रत्येक खाते में भी दो पक्ष होते हैं। लेन-देनों को डेबिट-क्रेडिट के अनुसार उनके पक्षों में लिखा जाता है।
  3. प्रत्येक लेन – देन की प्रविष्टि दो खातों में एक-दूसरे से विपरीत पक्ष में की जाती है।
  4. खाताबही एक ऐसी प्रमुख पुस्तक होती है, जिसमें व्यवसाय से सम्बन्धित सभी खाते होते हैं।
  5. वर्ष के अन्त में खातों की शुद्धता की जाँच करने के लिए खाताबही में खोले गये सभी खातों से तलपट तैयार किया जाता है।

प्रश्न 7.
दोहरा लेखा पद्धति किन सिद्धान्तों पर आधारित होती है?
उत्तर:
दोहरा लेखा पद्धति निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित होती है

  1. प्रत्येक लेन – देन के दो पक्ष-प्रत्येक व्यापारिक लेन-देन के दो पक्ष होते हैं। इनमें एक पक्ष लाभ प्राप्त करता है तथा दूसरा लाभ देने वाला होता है।
  2. दोनों पक्षों पर व्यवहार का प्रभाव – प्रत्येक व्यापारिक लेन-देन का दोनों पक्षों पर समान रूप से प्रभाव पड़ता है।
  3. दोनों पक्षों में लेखा – क्योंकि लेन-देन से दो पक्ष प्रभावित होते हैं, अतः इनका लेखा भी दोनों पक्षों में किया जाता है।
  4. दोनों पक्षों पर विपरीत प्रभाव – प्रत्येक लेन-देन से दोनों पक्ष विपरीत रूप से प्रभावित होते हैं। अर्थात् एक पक्ष डेबिट होता है तथा दूसरा क्रेडिट किया जाता है।

प्रश्न 8.
प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यापारिक लेन – देन होने के बाद सबसे पहले जिन पुस्तकों में लेखा किया जाता है, उन्हें प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकें कहते हैं। छोटे व्यापारी प्रारम्भिक लेखों के लिए एक ही पुस्तक रखते हैं, जिसे जर्नल कहा जाता है, लेकिन बड़े व्यापारी सहायक पुस्तकें, जैसे-क्रय पुस्तक, विक्रय पुस्तक, क्रय वापसी पुस्तक, विक्रय वापसी पुस्तक, रोकड़ पुस्तक, प्राप्य बिल पुस्तक, देय बिल पुस्तक एवं प्रमुख जर्नल में लेखा करते हैं। ये सभी पुस्तकें जर्नल के भाग कहलाती हैं।

प्रश्न 9.
स्पष्ट कीजिए कि दोहरा लेखा प्रणाली एक पूर्ण एवं वैज्ञानिक लेखा पद्धति है?
उत्तर:
दोहरा लेखा प्रणाली में व्यक्तिगत, वस्तुगत एवं आय-व्यय से सम्बन्धित सभी खाते रखे जाते हैं, जिससे व्यापार का हिसाब पूर्ण रहता है तथा यह प्रणाली निश्चित सिद्धान्तों एवं नियमों पर आधारित होने से पूर्ण वैज्ञानिक है। इसमें यदि कोई त्रुटि हो जाए, तो उसे शीघ्रतापूर्वक ही पकड़ा जा सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि यह एक पूर्ण एवं वैज्ञानिक लेखा पद्धति है।

प्रश्न 10.
स्पष्ट कीजिए कि दोहरा लेखा प्रणाली एक विश्वसनीय लेखा प्रणाली है।
उत्तर:
दोहरा लेखा प्रणाली पूर्ण रूप से विश्वसनीय है, क्योंकि इसमें प्रत्येक लेन-देन को कम-से-कम दो खातों में लिखा जाता है, अतः जितनी रकम नाम पक्ष में लिखी जाती है, उतनी ही जमा पक्ष में भी लिखी जाती है। अन्त में खाताबही के खातों का शेष निकाल कर तथा तलपट बनाकर पुस्तकों की शुद्धता की जाँच की जाती है। इस प्रकार, खातों की शुद्धता प्रमाणित हो जाती है। इसी कारण यह विश्वसनीय लेखा प्रणाली है।

प्रश्न 11.
दोहरा लेखा प्रणाली की वैधानिक मान्यता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
दोहरा लेखा प्रणाली पूर्णतया वैज्ञानिक है, इसलिए हमारे देश में कम्पनी अधिनियम एवं अन्य अधिनियमों द्वारा इसको वैधानिक मान्यता प्रदान की गयी है। बैंक, बीमा एवं बड़ी-बड़ी कम्पनियों को इस प्रणाली के अनुसार अपने लेखे रखना वैधानिक रूप से अनिवार्य है।

प्रश्न 12.
क्षतिपूरक अशुद्धियों को खोजना कठिन क्यों होता है?
उत्तर:
कभी-कभी खतौनी में लेखा करते समय जितनी राशि का अन्तर किसी खाते के डेबिट पक्ष में हो जाता है। उतना ही अन्तर किसी अन्य खाते अथवा कुछ खातों के क्रेडिट पक्ष में भी हो जाता है, ऐसी अशुद्धियाँ क्षतिपूरक अशुद्धि कहलाती हैं। इनमें एक अशुद्धि की पूर्ति दूसरी से हो जाने के कारण तलपट पर प्रभाव नहीं पड़ता है जिससे उन अशुद्धियों को ज्ञात करना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 13.
महाजनी बहीखाता प्रणाली के कोई चार गुण बताइए।
उत्तर:
महाजनी बहीखाता प्रणाली के चार गुण निम्नलिखित

  1. इस पद्धति में प्रयोग की जाने वाली बहियाँ सस्ती, मजबूत तथा टिकाऊ होती है। इनमें लाइन भी नहीं खींचनी पड़ती है, क्योंकि इन पर सलें डाल दी जाती है।
  2. इस प्रणाली में खतौनी करना सरल होता है, क्योंकि प्रारम्भिक प्रविष्टियों में बहियों से खतौनी उसी पक्ष में की जाती है, विपरीत पक्ष में नहीं।
  3. इस पद्धति में लेन-देन की राशि एक बार ‘सिरे’ में तथा दुबारा ‘पेटे’ में विवरण के साथ लिखी जाती है, जिससे गलती की सम्भावना कम हो जाती है।
  4. यह विधि भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल है तथा इसमें सुविधानुसार प्रादेशिक भाषाओं में भी लेखा किया जा सकता है।

प्रश्न 14.
विध मिलाना किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यापारी प्रतिदिन रोकड़ सम्बन्धी लेन-देनों को रोकड़ बही में लिखता है व सायंकाल रोकड़ बही के नाम व जमा पक्ष के अन्तर को गल्ले में पड़ी हुई रोकड़े से मिलान करता है। इस प्रकार, महाजनी बहीखाता प्रणाली में रोकड़ बही के शेष का गल्ले की राशि से मिलान करना ही विध मिलाना कहलाता है।

प्रश्न 15.
ड्योढा करना से क्या आशय है?
उत्तर:
ड्योढा शब्द का प्रयोग महाजनी बहीखाता प्रणाली में किया जाता है। इस प्रक्रिया में खाताबही के खातों के दोनों पक्षों का योग लगाकर उन्हें बन्द किया जाता है या फिर उनके शेषों को अन्तिम खातों में स्थानान्तरित किया जाता है। अर्थात् खातों को बन्द करने या उन्हें अन्तिम खातों में स्थानान्तरित करने की प्रक्रिया को ही ड्योढ़ा करना कहते

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखांकन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लेखांकन की विशेषताएँ

  1. लेखांकन एक ऐसी क्रिया है, जो सतत् चलती रहती है।
  2. लेखांकन व्यावसायिक लेन-देनों एवं घटनाओं को लिखने एवं वर्गीकृत करने की कला एवं विज्ञान है।
  3. लेखांकन में उन्हीं लेन-देनों का लेखा किया जाता है, जो मुद्रा में व्यक्त किये जा सकते हैं तथा वित्तीय प्रकृति के होते हैं।
  4. लेखांकन वित्तीय व्यवहारों का सारांश लिखने, उनका विश्लेषण एवं निर्वचन करने में सहायक होता है।
  5. सम्बन्धित पक्षकारों को परिमाणात्मक वित्तीय सूचनाएँ लेखांकन के माध्यम से ही प्रदान की जाती हैं।
  6. लेखांकन की मदद से उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से तर्कसम्मत एवं सर्वोत्तम विकल्प चुनने में सरलता होती है।
  7. मापन, वर्गीकरण व सारांश लेखन की विभिन्न सूचनाओं की सभी मदों का उचित ढंग से एकत्रीकरण करके सम्बन्धित पक्षकारों को उपलब्ध कराया जा सकता है।
  8. लेखांकन एक सुदृढ़ सूचना प्रणाली के रूप में अभिनिर्णयन प्रक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है, जिससे निर्णय तथ्यों पर आधारित एवं उचित होने में सहायता प्राप्त होती है।
  9. लेखांकन ज्ञान की एक ऐसी विशिष्ट शाखा है जो आर्थिक क्रियाकलापों को दर्शाती है।
  10. लेखांकन व्यवसाय के विस्तार में सहायक होता है तथा उसके विस्तार से व्यवसाय को होने वाले लाभ-हानि का आंकलन करना भी सम्भव हो जाता है।

प्रश्न 2.
लेखांकन की विभिन्न प्रणालियाँ कौन-कौनसी. हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लेखांकन प्रणालियाँ भारत में मुख्य रूप से लेखांकन की निम्नलिखित तीन प्रणालियाँ हैं-

1. इकहरा लेखा प्रणाली – लेखांकन की यह प्रणाली अपूर्ण एवं अवैज्ञानिक है इसमें कुछ संस्थाएँ रोकड़ एवं व्यक्तिगत लेन-देनों का ही लेखा करती हैं, जबकि कुछ संस्थाएँ अव्यक्तिगत खातों से सम्बन्धित लेखे भी करती हैं। इस प्रकार कुछ लेन-देनों का दोहरा लेखा हो जाता है, जबकि कुछ का इकहरा लेखा ही होता है। इस प्रणाली में शुद्धता की जाँच के लिए तलपट भी नहीं बनाया जाता है इसलिए लाभ-हानि एवं आर्थिक स्थिति का भी सही-सही अनुमान नहीं हो पाता है।

2. दोहरा लेखा प्रणाली – यह प्रणाली दोहरा लेखा सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें प्रत्येक लेन-देन का लेखा दो खातों में किया जाता है। एक खाता नाम (डेबिट) होता है, तो दूसरा खाता जमा (क्रेडिट) किया जाता है। इस प्रणाली में वर्ष के अन्त में व्यापार तथा लाभ-हानि खाता एवं आर्थिक चिट्ठा तैयार किया जाता है। इससे वर्ष भर के लाभ-हानि तथा व्यापार की आर्थिक स्थिति का सही आंकलन करना आसान हो जाता है। इसमें कपट तथा व्यापार की सम्पत्तियों के दुरुपयोग की सम्भावना भी कम हो जाती है। अतः यह प्रणाली पूर्ण, वैज्ञानिक, व्यावहारिक एवं न्यायालय द्वारा मान्य है।

3. भारतीय बहीखाता प्रणाली – इस प्रणाली का उद्भव भारत में ही हुआ है इसलिए इसे भारतीय बहीखाता प्रणाली कहते हैं। यह विश्व की प्राचीनतम लेखा पद्धतियों में से एक है। इसमें लेन-देनों का लेखा करने के लिए लाल रंग की लम्बी-लम्बी बहियों का प्रयोग किया जाता है। यह प्रणाली पूर्ण, वैज्ञानिक एवं दोहरा लेखा सिद्धान्त पर आधारित है। देश के छोटे एवं मध्यम श्रेणी के व्यवसायी प्राचीन काल से ही इस पद्धति को अपना रहे हैं।

प्रश्न 3.
महाजनी बहीखाता पद्धति के अनुसार लेखी करने की विधि का वर्णन कीजिए।
अथवा
महाजनी बहीखाता पद्धति में लेखा करने की तीन अवस्थाएँ कौन-कौनसी हैं? उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महाजनी बहीखाता पद्धति में लेखा करने की विधि महाजनी बहीखाता पद्धति में प्रत्येक लेन-देन का दोहरा लेखा किया जाता है तथा व्यापारिक लेन-देनों को दोहरा लेखा पद्धति की भाँति ही तीन अवस्थाओं में रखा जाता है

1. प्रारम्भिक प्रविष्टि – प्रारम्भिक स्तर पर स्मरण के लिए प्रत्येक व्यवहार का तिथि क्रमानुसार बहियों में विस्तार से लेखा किया जाता है। प्रारम्भिक लेखा बहियों में प्रविष्टि करने को भारतीय बहीखाता प्रणाली में जमा-खर्च करना कहते हैं।
2. वर्गीकरण तथा संग्रह करना – लेखी करने की द्वितीय अवस्था में प्रारम्भिक लेखे की प्रत्येक प्रविष्टि को उसके स्वभावानुसार वर्गीकृत करके सम्बन्धित खाते में क्रमवार संग्रह किया जाता है। संग्रह करने की इस प्रक्रिया को ‘खतौनी करना’ अथवा ‘खताना’ कहा जाता है, जिस बही में समस्त खातों का संग्रह किया जाता है, वह बही खाताबही’ कहलाती है। महाजनी बहीखाता पद्धति में भी दोहरा लेखी पद्धति की भाँति तीन प्रकार के खाते रखे जाते हैं

  • व्यक्तिगत अथवा धनीवार खाते,
  • वस्तुगत खाते तथा
  • हानि-लाभगत खाते इस पद्धति में माल खाते से सम्बन्धित दोहरा लेखा पद्धति की भाँति अनेक खाते न खोलकर केवल एक ही खाता खोला जाता है।

3. सारांश अथवा अन्तिम खाते तैयार करना – तृतीय एवं अन्तिम अवस्था में एक निश्चित अवधि के समस्त लेन-देनों का परिणाम दो दृष्टिकोणों से ज्ञात किया जाता है

  • लाभ-हानि का ज्ञान प्राप्त करने के दृष्टिकोण से एवं
  • आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने के दृष्टिकोण से।

प्रश्न 4.
महाजनी बहीखाता पद्धति तथा अंग्रेजी बही खाता पद्धति की तुलना कीजिए।
अथवा
महाजनी बहीखाता पद्धति तथा दोहरा लेखा पद्धति की समानताओं एवं असमानताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
महाजनी बहीखाता पद्धति तथा अंग्रेजी बहीखाता पद्धति की तुलना-बहीखाते की महाजनी पद्धति अंग्रेजी बहीखाता पद्धति से मिलती-जुलती है, लेकिन जहाँ इन दोनों पद्धतियों के सिद्धान्त में समानता है, वहीं इनके व्यावहारिक प्रयोग में काफी भिन्नताएँ भी हैं। महाजनी बहीखाता पद्धति और अंग्रेजी बहीखाता पद्धति की समानताएँ इन दोनों पद्धतियों में प्रमुख समानताएँ निम्नलिखित हैं-

1. दोनों पद्धतियाँ दोहरा लेखा सिद्धान्त पर आधारित हैं।
2. दोनों पद्धतियों में हिसाब-किताब को तीन अवस्थाओं में रखा जाता है-

  • प्रारम्भिक प्रविष्टि
  • वर्गीकरण तथा संग्रह एवं
  • सारांश

3. दोनों पद्धतियों में खाताबही के खातों की गणितीय शुद्धता की जाँच करने के लिए तलपट तैयार किया जाता है।
4. दोनों पद्धतियों में अन्तिम खाते तैयार करके एक निश्चित अवधि के पश्चात् व्यापार के लाभ-हानि तथा आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त की जाती है।
5. दोनों पद्धतियों में खातों को नाम (डेबिट) तथा जमा (क्रेडिट) करने के नियम समान है।
6. दोनों ही पद्धतियाँ पूर्ण एवं वैज्ञानिक हैं।

महाजनी बहीखाता पद्धति और अंग्रेजी बहीखाता पद्धति की असमानताएँ महाजनी बहीखाता पद्धति और अंग्रेजी बहीखाता पद्धति की असमानताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. महाजनी पद्धति में लेखा करने के लिए लाल जिल्द चढ़ी लम्बी-लम्बी बहियों का प्रयोग होता है, जबकि अंग्रेजी बहीखाता पद्धति में रजिस्टरों का प्रयोग होता है।
  2. महाजनी पद्धति में लाइनों के स्थान पर सलें होती हैं, जबकि अंग्रेजी बहीखाता पद्धति में लाइनों का प्रयोग होता है।
  3. महाजनी पद्धति में लेखा करने के लिए साधारणतया काली स्याही का प्रयोग होता है, जबकि अंग्रेजी बहीखाता पद्धति में ऐसा कोई नियम नहीं है।
  4. महाजनी पद्धति में प्रत्येक दिन लेखा करने से पूर्व इष्टदेव का नाम तथा मिति लिखी जाती है, जबकि अंग्रेजी बहीखाता पद्धति में प्रत्येक लेखे के साथ दिनांके लिखा जाता है।

प्रश्न 5.
महाजनी बहीखाता प्रणाली के गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महाजनी बहीखाता प्रणाली के गुण

  1. इस पद्धति में प्रयोग की जाने वाली बहियाँ सस्ती, मजबूत तथा टिकाऊ होती हैं।
  2. इस प्रणाली में पन्नों पर लाइनें नहीं खींचनी पड़ती हैं, क्योंकि पन्नों को जोड़कर सीने से पहले ही उसमें सलें बना ली जाती हैं।
  3. इस पद्धति में खतौनी की विधि सरल होती है क्योंकि प्रारम्भिक लेखा बहियों से खतौनी उसी पक्ष में की जाती है, विपरीत पक्ष में नहीं।
  4. खतौनी करते समय खाते में केवल प्रारम्भिक प्रविष्टि की बही का पन्ना नम्बर व मिति लिखी जाती है तथा दूसरे खाते का नाम नहीं लिखा जाता है जिससे खतौनी करना आसान हो जाता है।
  5. छोटे व्यापारी एक रोकड़ बही में ही उधार एवं नकद दोनों प्रकार के लेखे कर लेते हैं। जिससे प्रारम्भिक लेखे की अधिक बहियाँ रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
  6. इस प्रणाली में धनराशि एक बार ‘सिरे’ में तथा दुबारा ‘पेटे’ में विवरण के साथ लिखी जाती है जिससे गलती होने की संभावना कम हो जाती है।
  7. यह पद्धति भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल है तथा इसे किसी भी प्रादेशिक भाषा में लिखा जा सकता है।
  8. इसमें आवश्यकतानुसार बहियों का प्रयोग कम या अधिक किया जा सकता है अत: यह एक लचीली पद्धति है।
  9. इस पद्धति में हिसाब लिखने के लिए किसी विशेष योग्यता अथवा प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  10. इस विधि में प्रशिक्षण की आवश्यकता न होने के कारण हिसाब रखने वाले लेखाकार कम वेतन पर ही काम करने को तैयार हो जाते हैं।
  11. इस विधि में सफेद कागज पर काली स्याही से लिखा जाता है, जिससे पढ़ने में आसानी रहती है।

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