Students must start practicing the questions from RBSE 10th Hindi Model Papers Board Model Paper 2022 with Answers provided here.
RBSE Class 10 Hindi Board Model Paper 2022 with Answers
पूर्णांक : 80
समय : 2 घण्टा 45 मिनट
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश: –
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
- प्रश्न का उत्तर लिखने से पूर्व प्रश्न का क्रमांक अवश्य लिखें।
- प्रश्नों का अंकभार निम्नानुसार है –
खण्ड | प्रश्नों की संख्या | अंक प्रत्येक प्रश्न | कुल अंक भार |
खण्ड-अ | 1 (1 से 12 ), 2 (1 से 6), 3 (1 से 12 ) | 1 | 30 |
खण्ड-ब | 4 से 16 = 13 | 2 | 26 |
खण्ड – स | 17 से 20 = 4 | 3 | 12 |
खण्ड-द | 21 से 23 = 3 | 4 | 12 |
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों का उत्तर लिखिए – (5 x 1 = 5 )
अनुशासन ही वह कुंजी है, जिसमें हम जीवन का विकास कर पाते हैं तथा सफलता के अनेक चरण छूते हैं। यदि हम देखें तो समूची प्रकृति भी एक अनुशासन में बँधी है। सूर्य का नित्य प्रति एक ही दिशा में उगना तथा उसी तरह अस्त होना अनुशासन के ही प्रमाण हैं। चंद्रमा, तारे, बादल, बिजली सबका अपना अनुशासन है। जब किसी का अनुशासन भंग होता है तब कुछ अप्रतीक्षित तथा विध्वंसकारी घटनाएँ घटित होती हैं।
समुद्र में ज्वार – भाटा आने पर भी समुद्र मर्यादित रहता है। एक निश्चित गति से पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना या अनेक उपग्रहों का अपनी गति से गतिमान रहना उनके अनुशासन का ही परिचायक है। ठीक इसी प्रकार विद्यार्थी के जीवन में भी अनुशासन का अत्यधिक महत्व है। विद्यार्थी जीवन व्यक्ति के सघन साधन का काल है, जिससे वह स्वयं का शारीरिक, मानसिक तथा रचनात्मक निर्माण करता है।
अनुशासन दो प्रकार का होता है – पहला – आत्मानुशासन, दूसरा – बाह्यानुशासन। आत्मानुशासन की प्रेरणा विद्यार्थी के जीवन निर्माण की पहली सीढ़ी है। दूसरी ओर बाह्यानुशासन स्वयं के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति के दबाव होने तथा उसके अधिकारों के कारण माना जाने वाला अनुशासन है। चूँकि विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने की अवस्था में बालक का निर्माण सीखने की प्रक्रिया में होता है। इसलिए इस अवस्था में जो वह सीखता है, वे उसके जीवन के स्थाई मूल्य बन जाते हैं।
1. उपर्युक्त गद्यांश की शीर्षक है
(अ) अनुशासन
(ब) अनुशासन के प्रकार
(स) अनुशासन का महत्त्व
(द) विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व
उत्तर :
(द) विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व
2. अनुशासन कितने प्रकार का होता है?
(अ) चार
(ब) दो
(स) तीन
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(ब) दो
3. व्यक्ति के जीवन का सघन साधना का काल है
(अ) बाल्यकाल
(ब) वानप्रस्थ काल
(स) विद्यार्थी जीवन
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(स) विद्यार्थी जीवन
4. अनुशासन के प्रमाण हैं
(अ) सूर्य का नित्यप्रति एक ही दिशा में उगना
(ब) समुद्र में ज्वार – भाटा आने पर भी मर्यादित रहना
(स) पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी।
5. व्यक्ति के जीवन में किसका गहरा महत्त्व है?
(अ) प्राकृतिक घटनाओं का
(ब) दूसरों के अधिकारों के कारण माने – जाने वाले अनुशासन का
(स) सीखने की प्रक्रिया का
(द) अनुशासन का
उत्तर :
(द) अनुशासन का
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
वह स्वाधीन किसान रहा
अभिमान भरा आँखों में इसका
छोड़ उसे मंझधार आज – देख
संसार कगार सदृश वह खिसका
लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन – तृन से
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा
बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली, आँखें आती भर
देख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षणभर एक चमक है लाती
तुरंत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।
6. उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक है –
(अ) वे आँखें
(ब) खेती
(स) किसान
(द) शोषण
उत्तर :
(द) शोषण
7. इस काव्यांश में किसकी पीड़ा का वर्णन है?
(अ) मजदूर
(ब) व्यापारी
(स) किसान
(द) उपर्युक्त सभी का
उत्तर :
(स) किसान
8. ‘कारकुन’ का शाब्दिक अर्थ है
(अ) शोषक
(ब) जमींदार का कार्मिक
(स) शोषित
(द) राजा
उत्तर :
(ब) जमींदार का कार्मिक
9. ‘आँखों का तारा होना’ का तात्पर्य है
(अ) अत्यधिक प्रिय होना
(ब) अत्यधिक बुरा लगना।
(स) आँखों की चमक
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(अ) अत्यधिक प्रिय होना
10. काव्यांश में वर्णित पीड़ित वर्ग की आँखों में चमक कब आती है?
(अ) शोषण से पूर्व की संपन्नता को याद करने पर
(ब) अपनी प्रशंसा सुनकर
(स) व्यापारी द्वारा बुलाने पर
(द) भविष्य में सम्पन्न होने की कल्पना करने पर
उत्तर :
(अ) शोषण से पूर्व की संपन्नता को याद करने पर
11. माता का अँचल कृति के रचनाकार हैं?
(अ) शिवपूजन सहाय
(ब) मधु कांकरिया
(स) कमलेश्वर
(द) शिव प्रसाद मिश्र ‘रुद्र’
उत्तर :
(अ) शिवपूजन सहाय
12. ‘जार्ज पंचम की नाक’ कहानी का उद्देश्य है
(अ) औपनिवेशक दौर की मानसिकता को चोट करना
(ब) विदेशी आकर्षण की भर्त्सना करना
(स) व्यावसायिक पत्रकारिता का पर्दाफाश करना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए- (6 x 1 = 6)
1. भाववाचक संज्ञा की रचना मुख्य ……………………………. प्रकार के शब्दों से होती है।
2. सर्वनाम ……………………………. प्रकार के होते हैं।
3. शब्द जो किसी वस्तु, पदार्थ या जगह की मात्रा, तौल या मापं का बोध कराते हैं वे ……………………………. कहलाते हैं।
4. हिन्दी क्रिया पदों का मूल रूप ही ……………………………. है।
5. उपसर्ग शब्द के ……………………………. जुड़कर शब्द का अर्थ बदल देते हैं।
6. वे प्रत्यय जो धातु अथवा क्रिया के अंत में लगकर नए शब्दों की रचना करते हैं उन्हें ……………………………. प्रत्यय कहते हैं।
उत्तर :
1. चार,
2. छह,
3. परिमाणवाचक विशेषण,
4. धातु,
5. पूर्व (पहले),
6. कृत्
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए उत्तर सीमा लगभग 20 शब्द है। (6 x 1 = 6)
1. संधि एवं संयोग में क्या अन्तर है?
उत्तर :
संधि में शब्दों का मेल व्याकरण के नियमानुसार होता है, जबकि संयोग में व्याकरण के नियमों का पालन नहीं होता
2. समास शब्द की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
दो या दो से अधिक शब्दों के विभक्ति, चिह्नों आदि का लोप करके शब्दों के सार्थक योग को समास कहते हैं।
3. ‘तिल का ताड़ बनाना’ मुहावरे का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
अर्थ – थोड़ी या छोटी बात को बहुत बढ़ा – चढ़ाकर कहना।
4. ‘आप भले तो जग भला’ लोकोक्ति का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
अर्थ – अच्छे व्यक्ति के लिए सभी अच्छे होते हैं।
5. चश्मे वाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
उत्तर :
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के प्रति चश्मे वाले का अत्यन्त सम्मान भाव देखकर ही लोग उसे कैप्टन कहकर पुकारते थे।
6. ‘एक कहानी यह भी’ रचना में मन्नू भण्डारी के साथ – साथ और किसका व्यक्तित्व उभरकर आया है?
उत्तर :
लेखिका मन्नू भण्डारी के साथ – साथ उसकी माँ और पिता का व्यक्तित्व भी उभरकर आया है।
7. सुषिर – वाद्यों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
संगीत शास्त्र के अनुसार फूंककर बजाये जाने वाले वाद्यों को सुषिर वाद्य कहा जाता है।
8. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस – किस से की गई है?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते तथा तेल की मटकी (गागर) से की है।
9. ‘राम – लक्ष्मण – परशुराम संवाद’ रामचरितमानस के किस कांड से लिया गया है?
उत्तर :
राम – लक्ष्मण – परशुराम संवाद रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।
10. ‘उत्साह’ कविता में बादल किन – किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
बादल उत्साही वीर पुरुष, नवजीवन की प्रेरणा देने वाले कवि तथा परोपकारी, उदार हृदय और समृद्ध व्यक्ति की ओर संकेत करता है।
11. ‘माता का अँचल’ पाठ के उन प्रसंगों के नाम लिखिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर :
माता द्वारा भोलानाथ को बहलाकर भोजन कराना, पिता का भोलानाथ के साथ खिलवाड़ करना तथा साँप से भयभीत होकर भोलानाथ का घर आकर माँ की गोद में छिप जाना जैसे प्रसंग दिल को छू जाते हैं।
12. ‘साना साना हाथ जोड़ि…’ यात्रावृत्त में भारत के किस क्षेत्र की यात्रा का वर्णन है?
उत्तर :
‘साना साना हाथ जोड़ि…’ यात्रावृत्त में पूर्वोत्तर भारत के सिक्किम राज्य की राजधानी गंतोक तथा उसके आगे के हिमालय के कुछ क्षेत्र का वर्णन है।
खण्ड – (ब)
निर्देश – प्रश्न सं. 04 से 16 तक के लिए प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम उत्तर सीमा 40 शब्द है।
प्रश्न 4.
हालदार साहब को दूसरी बार देखने पर मूर्ति में क्या अंतर दिखाई दिया ? (2)
उत्तर :
हालदार साहब पहली बार जब कस्बे से गुजरे तो नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति पर संगमरमर का चश्मा नहीं था, चश्मे का काला चौड़ा फ्रेम मूर्ति की आँखों पर लगा था। यह बात उन्हें खटकी थी। हालदार साहब जब दूसरी बार कस्बे से गुजरे तो उन्होंने देखा कि मूर्ति का चश्मा बदला हुआ था। काले मोटे चौकोर फ्रेम की जगह तार के फ्रेम का गोल चश्मा था।
प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत किस प्रकार के व्यक्तियों को अधिक स्नेह का पात्र मानते थे और क्यों? (2)
उत्तर :
बालगोबिन भगत के अनुसार जो लोग शारीरिक रूप से अक्षम और मानसिक रूप से शिथिल होते हैं उनका अधिक ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और सक्षम है तो उसे हमारी सहानुभूति और सहायता की अपेक्षा नहीं होती। जो किसी भी रूप में अक्षम होता है उसी की देखभाल सार्थक और महत्त्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 6.
लेखक ने सेकण्ड क्लास का रेल टिकट लेने का क्या कारण बताया है? ‘लखनवी अंदाज’ अध्याय के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
लेखक ने सेकण्ड क्लास का टिकट खरीदा..। लेखक चाहता था कि वह अपनी नई कहानी के कथ्य के बारे में एकान्त में कुछ नया सोचे। सेकण्ड क्लास के डिब्बे में भीड़ नहीं होती। इसीलिए रेल के डिब्बे से प्राकृतिक दृश्यों को निहारते हुए एकांत में कुछ नया सोचने के इरादे से ही उसने सेकण्ड क्लास के डिब्बे को चुना।
प्रश्न 7.
‘काशी’ की क्या विशेषताएं बताई गई हैं। संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
लेखक ने काशी को संस्कृति की पाठशाला बताया है। भारतीय संस्कृति का ज्ञान काशी में आकर सहज ही प्राप्त हो जाता है। काशी का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहाँ कंठे महाराज, विद्याधरी, बड़े रामदास जी, मौजुद्दीन खाँ और बिस्मिल्ला खाँ जैसे महान कलाकार हुए हैं। काशी में अलग तहजीब, बोली, उत्सव, सेहरा – बन्ना, नौहा आदि हैं। सभी माला के फूलों की भाँति परस्पर गुंथे हुए हैं।
प्रश्न 8.
सूरदास जी ने उद्धव एवं कमल – पत्र में क्या समानता बताई है?
उत्तर :
कमल पत्र जल में रहता है, किन्तु उसके ऊपर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती अर्थात जल के भीतर रहते हुए भी कमल के पत्ते जल से नहीं भीगते, उसी प्रकार उद्धव भी संसार में रहते हुए प्रेम के तरलस्पर्श से वंचित रहे हैं। संसार में रहते हुए उद्धव ज्ञान के अहंकार में प्रेम के पवित्र अनुभव से वंचित हैं।
प्रश्न 9.
‘दोहा’ नामक छन्द के लक्षण लिखिए।
उत्तर :
जिन छन्दों में मात्राओं की संख्याओं का नियम होता है, उनको मात्रिक छन्द कहते हैं। दोहा एक मात्रिक छन्द है।
लक्षण – दोहा में चार चरण होते हैं। दोहा छन्द के पहले तथा तीसरे चरण में मात्रा तथा वर्णों की संख्या समान होती है तथा दूसरे और चौथे चरण में मात्रा तथा वर्णों की संख्या समान होती है। उदाहरण – गाधि सूनु कह हृदय हसि, मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड न ऊखमय, अजहुँ न बूझ अबूझ।।
प्रश्न 10.
‘कन्यादान’ कविता में एक माँ अपनी बेटी को क्या सीख दे रही है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीखें दी –
- अपनी सुंदरता पर रीझकर धोखे में मत रहना।
- अत्याचार और अन्याय का दृढ़ता से सामना करना।
- वस्त्र और आभूषणों के मोह में फंसकर आजीवन दासता के बंधन में मत बँध जाना।
- स्त्रियोचित गुणों को धारण करते हुए भी अपने स्वाभिमान से समझौता न करना, दीनता और हीनता से मुक्त रहना।
प्रश्न 11.
‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर फाल्गुन के सौन्दर्य को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
फाल्गुन वर्ष का सबसे मधुर, मादक और प्राकृतिक शोभा से भरपूर वसंत ऋतु का अंग है। वसंत को ऋतुराज कहा गया है। फाल्गुन में प्रकृति को नया जीवन मिलता है। वृक्षों पर नये पत्ते, फूल और फल लगते हैं। मंद, शीतल, सुगंधित वायु चलती है। पशु – पक्षी मस्त होकर चहकते हैं। मनुष्य भी उल्लास से भर जाते हैं। इन सब विशेषताओं के कारण फाल्गुन का महीना बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है।
प्रश्न 12.
“महतारी के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता” ऐसा क्यों कहा गया? ‘माता का अँचल’ अध्याय के आधार पर संक्षेप में उत्तर लिखिए।
उत्तर :
पिता के साथ भरपेट खा लेने पर भी भोलानाथ की माँ को संतोष नहीं होता था। वह उसे और खिलाने का हठ करती थी। वह पति से कहती कि उन्हें बच्चों को खिलाना नहीं आता। वह बहुत छोटे कौर खिलाते हैं, इससे बच्चे का पेट नहीं भरता। फिर वह स्वयं अपने हाथों से उसे बहला – बहलाकर खिलाती थी।
प्रश्न 13.
नयी दिल्ली का काया पलट क्यों किया जा रहा था ? ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ अध्याय के आधार पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
इंग्लैण्ड की महारानी ऐलिजाबेथ भारत आ रही थी। यद्यपि भारत एक स्वाधीन प्रजातंत्र देश बन चुका है परन्तु भारत के शासक और प्रशासकों की मनोवृत्ति अभी भी अंग्रेजों की दासता की ही है। महारानी का स्वागत वे भारत की राजधानी नई दिल्ली में पूरी शान के साथ करना चाहते थे। इस प्रकार दिल्ली को सजाने और सँवारने का काम तेजी से किया जाने लगा।
प्रश्न 14.
नार्गे ने ‘धर्मचक्र’ की क्या विशेषता बताई? ‘साना – साना हाथ जोड़ि’ अध्याय के आधार लिखिए। (2)
उत्तर :
यूमथांग के मार्ग पर लेखिका ने एक कुटिया के भीतर घूमता चक्र देखा। नार्गे ने उसे बताया कि वह धर्मचक्र था।
उसे बौद्ध लोग प्रार्थना के समय घुमाते हैं। इसको घुमाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यह सुनकर लेखिका को लगा कि पूरे भारत के निवासियों की आत्मानुभूति एक जैसी है। धार्मिक प्रतीकों के अलग होते हुए भी आस्थाएँ, विश्वास, पाप – पुण्य, अंधविश्वास सब में एक जैसे हैं।
प्रश्न 15.
‘मन्नू भण्डारी’ का जीवन व कृत्तित्व परिचय संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
हिन्दी की प्रसिद्ध कहानीकार श्रीमती मन्नू भण्डारी का जन्म सन् 3 अप्रैल 1931 में मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर में हुई। इन्होंने एम. ए. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से किया। ये दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलिज में प्राध्यापिका बनी।
हिन्दी में इनके सराहनीय योगदान के लिए इन्हें हिन्दी अकादमी शिखर सम्मान, भारतीय भाषा परिषद कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है।
- रचनाएँ – कहानी – संग्रह – मैं हार गई, एक प्लेट सैलाब, यही सच है तथा त्रिशंकु।
- उपन्यास – आपका बंटी व महाभोज।
- भाषा – शैली-मन्नू भंडारी की कहानियाँ सामाजिक तत्त्वों से ओतप्रोत हैं। उनकी कहानियो में नारी जीवन की विडम्बना तथा उनके दर्द का मार्मिक चित्रण हुआ है।
अथवा
रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन व कृत्तित्व परिचय संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन् 1899 में बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक ग्राम में हुआ था।
नियमित शिक्षा न हो पाने के कारण अपने स्वाध्याय के बल पर ही उन्होंने हिन्दी – साहित्य – सम्मेलन की ‘विशारद’ परीक्षा उत्तीर्ण की। अपनी साहित्यिक प्रतिभा का प्रयोग भी बेनीपुरीजी ने स्वतन्त्रता की आराधना में ही किया। सन् 1968 में इस साधक ने अपनी सशक्त लेखनी माँ शारदा के चरणों में समर्पित कर संसार से विदा ले ली। रचनाएँ –
- निबन्ध – संग्रह – ‘गेहूँ और गुलाब’, ‘वन्देवाणी विनायकौ’, ‘मशाल’ आदि।
- रेखाचित्र – ‘माटी की मूरतें’, ‘लाल तारा’, ‘बालगोबिन भगत’ आदि।
- संस्मरण – ‘मील के पत्थर’, ‘जंजीरें .और दीवारें’।
प्रश्न 16.
जयशंकर प्रसाद का जीवन व कृत्तित्व परिचय संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
छायावादी कविता के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई. में काशी नगर में हुआ था। इनके पिता बाबू देवी प्रसाद थे। प्रसाद जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। आपने ‘इन्दु’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया। 15 नवम्बर 1937 को आपका स्वर्गवास हो गया। आपने काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी तथा निबन्ध आदि विधाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को समृद्धि प्रदान की।
रचनाएँ – काव्य रचनाएँ – कामायनी, आँसू, झरना, लहर, चित्राधार, प्रेम पथिक। नाटक – चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, विशाखा, राज्यश्री, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, एक छूट, प्रायश्चित। उपन्यास – तितली, कंकाल, इरावती (अपूर्ण)। कहानी संग्रह – प्रतिध्वनि, आकाशदीप, छाया, आँधी, इन्द्रजाल। निबन्ध – काव्यकला तथा अन्य निबन्ध।
अथवा
उत्तर :
गिरिजा कुमार माथुर का जीवन व कृत्तित्व परिचय संक्षेप में लिखिए। गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 ई. में मध्य प्रदेश राज्य के गुना नामक स्थान पर हुआ था। इन्होंने झाँसी से एम.ए. तथा एल.एल.बी. किया था। ये झाँसी में रहकर ही आकाशवाणी से भी जुड़े रहे। इनकी मृत्यु सन् 1994 में हुई।
रचनाएँ – नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नदी की यात्रा (काव्य संग्रह) तथा जन्म कैद (नाटक) हैं। इसके अतिरिक्त ‘नई कविता : सीमाएँ और सम्भावनाएँ’ नामक आलोचना ग्रन्थ भी लिखा। गिरिजाकुमार माथुर एक भावुक कलाकार हैं। उनकी कविता में मानव की गहरी संवेदनाएँ प्रकट हुई हैं। इनकी कविताओं में सरलता, मधुरता, सौन्दर्य तथा प्रेम के प्रति आकर्षण है।
खण्ड – (स)
प्रश्न 17.
निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (उत्तर सीमा लगभग 60 शब्द) (1 + 2 = 3)
काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन – वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं, थोड़ी देर ही सही मगर उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है ………..।
उत्तर :
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य – पुस्तक क्षितिज भाग – 2 में संकलित यतीन्द्र मिश्र लिखित ‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ से लिया गया है। इस अंश में काशी में चले आ रहे संगीत आयोजनों तथा बिस्मिल्ला खाँ के सर्वधर्म सद्भाव का परिचय कराया गया है।
व्याख्या – काशी के धार्मिक क्रियाकलापों के साथ अपने संगीत सम्बंधी आयोजनों के लिए भी प्रसिद्ध रही है। यह इस नगर की एक विशिष्ट परंपरा है। ऐसे आयोजन वर्षों से काशी के संकटमोचन मंदिर में होते रहे हैं। यह मंदिर काशी के दक्षिण में लंका नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर में हनुमान जयंती के अवसर पर पाँच दिन तक चलने वाला संगीत सम्मेलन आयोजित होता रहा है।
इस आयोजन में संगीत के शास्त्रीय और लौकिक दोनों प्रकार के गायन – वादन होते हैं। यह एक उच्चस्तरीय आयोजन है। इस आयोजन में बिस्मिल्ला खाँ अवश्य भाग लेते थे। यद्यपि खाँ साहब की अपने धर्म (इस्लाम) में पूर्ण आस्था थी। इसके साथ ही उनकी काशी विश्वनाथ में भी अपार श्रद्धा भावना थी। इसका परिचय तब मिला करता था जब वह काशी से बाहर किसी कार्यक्रम में भाग लेने जाया करते थे। तब वह विश्वनाथ तथा बालाजी मंदिर की ओर मुख करके बैठा करते थे। थोड़ी देर के लिए वह शहनाई का मुँह उधर को ही कर देते थे।
अथवा
होश सँभालने के बाद से ही जिन पिता जी से किसी – न – किसी बात पर हमेशा मेरी टक्कर ही चलती रही, वे तो न जाने कितने रूपों में मुझमें हैं…………… कहीं कंठाओं के रूप में, कहीं प्रतिक्रिया के रूप में तो कहीं प्रतिच्छाया के रूप में। केवल बाहरी भिन्नता के आधार पर अपनी परंपरा और पीढ़ियों को नकारने वालों को क्या सचमुच इस बात का बिलकुल अहसास नहीं होता कि उनका आसन्न अतीत किस कदर उनके भीतर जड़ जमाए बैठा रहता है? समय का प्रवाह भले ही हमें दूसरी दिशाओं में बहाकर ले जाए ……………. स्थितियों का दबाव भले ही हमारा रूप बदल दे, हमें पूरी तरह उससे मुक्त तो नहीं ही कर सकता?
उत्तर :
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज भाग – 2’ में संकलित, मन्नू भंडारी लिखित ‘एक कहानी यह भी’ नामक आत्मकथा से लिया गया है। लेखिका इस अंश में अपने पिता के शक्की स्वभाव के अपने ऊपर पड़े प्रभाव का वर्णन कर रही है।
व्याख्या – लेखिका कहती है कि जब से उसने होश सम्हाला तभी से उसकी पिता के साथ किसी न किसी बात पर खट – पट चलती रही। उसे लगता है कि उसने पिता के अनेक लक्षणों को अपने व्यवहार में सम्मिलित कर लिया है। वह स्वयं भी शक्की हो गई है। लेखिका का मानना है कि उसके स्वभाव में आई हीनता की भावना, कठोर प्रतिक्रिया वाला व्यवहार और पिता की शैली को अपना लेना, ये सभी बातें पिता का ही प्रभाव हैं।
लेखिका कहती है कि कुछ समय पहले तक जो परंपराएँ और व्यवहार चली आ रही थीं वे समाप्त नहीं हो गईं। वे अनेक रूपों में उनके मन में बैठी हुई हैं। समय के साथ व्यक्ति के जीवन की दिशा भले ही बदल जाए या परिस्थितियों के दबाव से हमारा बाहरी रूप भले बदल जाए लेकिन वह व्यक्ति को चली आ रही परंपराओं से पूरी तरह अलग नहीं कर सकता।
प्रश्न 18.
निम्नांकित पठित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (उत्तर सीमा लगभग 60 शब्द) (1 + 2 = 3)
कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहिं जान बिदित संसारा।।
माता पितहिं उरिन भए नीकें। गुरुरिन रहा सोचु बड़ जी के।।
सो जनु हमरेहिं माथे काढ़ा। दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा।।।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
भृगुबर परसु देखाबह मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही।।
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े।।
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
लखन उतर आहुति सरिस, भृगुबर कोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन, बोले रघुकुल भानु।।
उत्तर :
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश क्षितिज भाग – 2 में संकलित, कवि तुलसीदास द्वारा रचित ‘लक्ष्मण परशुराम संवाद’ से लिया गया है। इस प्रसंग में लक्ष्मण परशुराम के बड़बोलेपन पर व्यंग्य करके उन्हें चिढ़ा रहे हैं।
व्याख्या – लक्ष्मण ने परशुराम से कहा – आप कितने शील – स्वभाव वाले हैं यह बात सारा संसार जानता है। माता – पिता के ऋण से तो आप बड़ी अच्छी तरह मुक्त हो गए लेकिन गुरु का ऋण बाकी रह जाने से आपके मन में बड़ी चिंता थी। आपने उस ऋण को हमारे माथे मढ़ दिया। दिन भी बहुत हो गए इसलिए इस ऋण का ब्याज भी काफी बढ़ गया होगा। अब आप किसी हिसाब लगाने वाले को बुला लीजिए। मैं तुरंत थैली खोलकर चुका दूँगा। लक्ष्मण के इन कटु व्यंग्य वचनों को सुनकर परशुराम ने अपना फरसा सँभाल लिया। यह देख सारी सभा हाहाकार करने लगी।
लक्ष्मण बोले – हे भृगुवंशी ! आप मुझे फरसा दिखाकर डराना चाहते हो। आप ब्राह्मण हो इसीलिए मैं आपसे युद्ध करने से बच रहा हूँ। आपका अभी तक युद्ध में अच्छे योद्धाओं से पाला नहीं पड़ा। आप घर में ही वीर बने हुए हो। लक्ष्मण को अभद्र वचन कहते देखकर सभी लोग उनके व्यवहार की निन्दा करने लगे तब राम ने नेत्रों के संकेत से लक्ष्मण को अधिक बोलने से मना किया।
परशुराम की क्रोधरूपी अग्नि को लक्ष्मण के उत्तर आहुति के समान भड़का रहे थे। तब क्रोधाग्नि को बढ़ते देखकर राम ने जल के समान शीतल वचन बोलकर परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया।
अथवा
एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादूः
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख – लाख कोटि – कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमाः
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार – हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्मः
फसल क्या है ?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जाद है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है।
भूरी – काली – संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का !
उत्तर :
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित, कवि नागार्जुन की रचना ‘फसल’ से लिया गया है। कवि यहाँ कह रहा है कि फसल को पैदा करने में करोड़ों – करोड़ नर – नारियों की मेहनत लगती
व्याख्या – कवि कहता है कि खेतों में लहलहाती ये फसलें किन्हीं खास नदियों के जल से नहीं बल्कि सैकड़ों नदियों के जल से सिंचित होकर उगती और बढ़ती हैं। इनको तैयार करने में लाखों – करोड़ों किसान और मजदूर परिश्रम करते हैं और हजारों खेतों की विभिन्न विशेषताओं वाली मिट्टियाँ इनको जीवन दान देती हैं। इन फसलों को प्राप्त करने में पूरे देश की भूमि और करोड़ों देशवासियों का योगदान निहित है। कवि के अनुसार फसल नदियों के जादू भरे प्रभाव वाले पानी से सींची गई, मनुष्यं के परिश्रम की महिमा बताने वाली, नाना प्रकार के रंग, रूप, गुणों वाली मिट्टी में उगाई गई वनस्पति है। इसने सूरज की धूप और बहती हुई वायु से अपनी जीवन सामग्री संचित की है। फसल प्राकृतिक तत्वों और मानव श्रम के संतुलित संयोग का परिणाम है।
प्रश्न 19.
बालगोबिन भगत को साधु क्यों कहा गया है? विस्तार से वर्णन कीजिए। (उत्तर सीमा लगभग 60 शब्द) (3)
उत्तर :
बालगोबिन भगत पूरे गृहस्थ थे। वह खेतीबारी करते थे। उनका घर – परिवार था। वह सभी पारिवारिक दायित्वों का पालन करते थे। किन्तु उनकी वेश – भूषा, व्यवहार और आचरण में साधु – संतों जैसी विशेषताएँ दिखाई देती थीं। वह कमर में एक लंगोटी और सिर पर कबीरपंथियों जैसी टोपी पहनते थे। जाड़ों में एक काली कमली ओढ़ लेते। उनके मस्तक पर रामानंदी तिलक चमकता रहता और गले में तुलसी की माला धारण करते थे।
अपने व्यवहार और आचरण में भी वह साधु तुल्य थे। उनकी हर वस्तु साहब की थी। वे स्वयं को साहब का सेवक या प्रतिनिधि मानकर सारे कार्य करते थे। खेत की फसल पहले साहब के दरबार में ले जाकर भेंट करते और वहाँ से प्रसाद रूप में जो प्राप्त होता उसी से परिवार का गुजारा करते। इस प्रकार गृहस्थ होते हुए भी लोग उन्हें साधु मानते और सम्मान देते थे।
अथवा
नवाब साहिब ने अपने खानदानी रईस होने का भाव किस प्रकार प्रकट किया? ‘लखनवी अंदाज’ व्यंग्य लेख के आधार पर लिखिए। (उत्तर सीमा लगभग 60 शब्द) (3)
उत्तर :
नवाब साहब लेखक पर अपनी खानदानी रईसी का प्रभाव जमाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने खीरे के आस्वादन का एक निहायत नया तरीका पेश किया। बड़े मनोयोग से खीरे की फाँकों को तैयार किया। तैयार करने के बाद उन्होंने खीरे की फाँकों को केवल सूंघकर ही उसके स्वाद का आनंद लेने का अभिनय किया। सूंघने के बाद उसने खिड़की से फाँकों को बाहर फेंक दिया।
इस प्रकार वह खानदानी रईसों की नज़ाकत, नफासत और तहज़ीब का प्रदर्शन करके लेखक को हीनता का अनुभव कराना चाहते थे। उनकी इन चेष्टाओं से प्रकट होता है कि वह खुद को आम आदमियों से विशिष्ट दिखावे की सनक से पीड़ित थे। उनके स्वभाव में खानदानी रईसी का मिथ्या दम्भ था।
प्रश्न 20.
गोपियों के द्वारा हमारे हरि हारिल की लकड़ी’ कहने का क्या तात्पर्य है? (उत्तर सीमा लगभग 60 शब्द) (3)
उत्तर :
हारिल पक्षी एक लकड़ी सदैव अपने पंजों में दबाए रहता है। उसे किसी भी परिस्थिति में छोड़ता नहीं है। इसी प्रकार गोपियाँ भी सदैव श्रीकृष्ण को अपने हृदय में बसाए रहती हैं। गोपियाँ कहती हैं – “उद्धव ! आप अपने ज्ञान – उपदेशों के द्वारा हमारे मन को श्रीकृष्ण से विमुख करने की व्यर्थ चेष्टा मत कीजिए, क्योंकि श्रीकृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जैसे हारिल अपने पंजों में लकड़ी को हर समय पकड़े रहता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी हमारे मन से पलभर को अलग नहीं रहते। हमने मन, वचन और कर्म से नन्द के पुत्र को अपने हृदय में दृढ़तापूर्वक बसा रखा है।
अथवा
‘उत्साह’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए। (उत्तर सीमा लगभग 60 शब्द) (3)
उत्तर :
‘उत्साह’ आह्वान तथा संदेशपरक कविता है। कवि ने इस कविता के माध्यम से उत्साह, रचनात्मक क्रान्ति और नवचेतना का संदेश देना चाहा है। कवि ने अपने संदेश का माध्यम बादल को बनाया है। वह बादल का आह्वान करता है कि वह गर्जन करते हुए सारे आकाश में छा जाए। उसका गर्जन जन – जन के हृदय में परिवर्तन और चेतना की प्रेरणा भर दे। बादल ग्रीष्म के ताप को मिटाकर संसार को शीतल कर देता है। वह प्राणियों को नया जीवन देता है। वह तीव्र परिवर्तन का वाहक है। कवि ने बादल के आगमन को इसी संदर्भ में देखा है। कवि समाज के समर्थ लोगों को संदेश देना चाहता है कि वे अभाव, शोषण और कष्टों से पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति और संवेदनशीलता दिखाएँ। उनके कष्टों को दूर करें।
खण्ड – (द)
प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर 300 – 350 शब्दों में सारगर्भित निबन्ध लिखिए।
(अ) राष्ट्रीय एकता
(i) प्रस्तावना
(ii) राष्ट्र के लिए ‘एकता’ आवश्यक
(iii) एकता के बाधक तत्व
(iv) एकता के पोषक तत्व
(v) उपसंहार
उत्तर :
(i) प्रस्तावना – राष्ट्रीय एकता का अर्थ है – हमारी एक राष्ट्र के रूप में पहचान। हम सर्वप्रथम भारतीय हैं इसके बाद हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख आदि हैं। अनेक विविधताओं और भिन्नताओं के रहते हुए भी आन्तरिक एकता की भावना, देश के सभी धर्मों, परम्पराओं, आचार – विचारों, भाषाओं और उपसंस्कृतियों का आदर करना, भारतभूमि और सभी भारतवासियों से हार्दिक लगाव बनाए रखना, यही राष्ट्रीय एकता का स्वरूप है।
भारत एक विशाल – विस्तृत सागर के समान हैं। जिस प्रकार अनेक नदियाँ बहकर सागर में जा मिलती हैं और उनकी पृथकता मिट जाती है, उसी प्रकार विविध वर्णों, धर्मों, जातियों, विचारधाराओं के लोग भारतीयता की भावना से बँधकर एक हो जाते हैं। जिस प्रकार अनेक पेड़ – पौधे मिलकर एक वन प्रदेश का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार विविध मतावलम्बियों की एकता से ही भारत का निर्माण हुआ है।
(ii) राष्ट्र के लिए ‘एकता’ आवश्यक – भारत विविधताओं का देश है। यह एक संघ – राज्य है। अनेक राज्यों या प्रदेशों का एकात्म स्वरूप है। यहाँ हर राज्य में भिन्न – भिन्न रूप, रंग, आचार, विचार, भाषा और धर्म के लोग निवास करते हैं। इन प्रदेशों की स्थानीय संस्कृतियाँ और परम्पराएँ हैं। इन सभी से मिलकर हमारी राष्ट्रीय या भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है। अतः राष्ट्र के लिए इस एकता को बनाए रखना आवश्यक है।
(iii) एकता के बाधक तत्व – आज हमारी राष्ट्रीय एकता संकट में है। यह संकट बाहरी नहीं आंतरिक है। हमारे राजनेता और शासकों ने अपने भ्रष्ट आचरण से देश की एकता को संकट में डाल दिया है। अपने वोट – बैंक को बनाए रखने के प्रयास में इन्होंने भारतीय समाज को जाति – धर्म, आरक्षित – अनारक्षित, अगड़े – पिछड़े, अल्पसंख्यक – बहुसंख्यक और प्रादेशिक कट्टरता के आधार पर बाँट दिया है। इन बड़बोले, कायर और स्वार्थी लोगों ने राष्ट्रीय एकता को संकट में डाल दिया है। राष्ट्रीय एकता पर हो रहे इन प्रहारों ने राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। इस संकट का समाधान किसी कानून के पास नहीं है।
(iv) एकता के पोषक तत्व – आज हर राष्ट्रप्रमो नागरिक को भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा होना है। आपसी सद्भाव और सम्मान के साथ प्रेमभाव को बढ़ावा देना है। समाज के नेतृत्व व संगठन का दायित्व राजनेताओं से छीनकर निःस्वार्थ समाजसेवियों के हाथों में सौंपना है। इस महान कार्य में समाज का हर एक वर्ग अपनी भूमिका निभा सकता है। राष्ट्रीय एकता को बचाए रखना हमारा परम कर्तव्य है। हम सब भारतीय हैं, यही भावना सारी विभिन्नताओं को बाँधने वाला सूत्र है। यही हमारी राष्ट्रीय एकता का अर्थ और आधार है। विविधता में एकता भारत राष्ट्र की प्रमुख विशेषता है।
उसमें अनेक धमों और सांस्कृतिक विचारधाराओं का समन्वय है। भारतीयता के सूत्र में बँधकर ही हम दृढ़ एकता प्राप्त कर सकते है। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के बिना भारत का भविष्य अंधकारमय है। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता भारताच सस्कृति की देन है। भारत विभिन्न धर्मों, विचारों और मता को मानने वालों का निवास रहा है। भारतीय संस्कृति इन विभिन्नताओं का समन्वित स्वरूप है। भारत की भौगोलिक स्थिति ने भी इस सामाजिक संस्कृति के निर्माण में यागदान किया है। विभिन्न आघात सहकर भी भारतीय एकता सुरक्षित रही है इसका कारण उसका भारत की सामाजिक संस्कृति से जन्म होना ही है।
(v) उपसंहार-भारत विश्व का एक महत्वपूर्ण जनतंत्र है। लम्बी पराधीनता के बाद वह विकास के पथ पर अग्रसर है। भारत की प्रगति के लिए उसकी एकता – अखण्डता का बना रहना आवश्यक है, प्रत्येक भारतीय का कर्त्तव्य है कि भारत की अखण्डता को सुनिश्चित कर।
(ब) पर्यावरण प्रदूषण : कारण और निवारण
(i) प्रदूषण क्या है?
(ii) प्रदूषण के प्रकार
(iii) प्रदूषण के कारण
(iv) प्रदूषण निवारण के उपाय
(v) उपसंहार
उत्तर :
(i) प्रदूषण क्या है ? – आकाश, वायु, भूमि, जल हरियाली पर्वत आदि मिलकर हमारा पर्यावरण बनाते हैं। ये सभी प्राकृतिक अंग हमारे स्वस्थ और सुखी जीवन का आधार हैं। दुर्भाग्य से मनुष्य ने इस पर्यावरण को दूषित और कुरूप बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आज सारा संसार पर्यावरण प्रदूषण से परेशान है।
(ii) प्रदूषण के प्रकार – आज पर्यावरण का कोई भी अंग प्रदूषण से नहीं बचा है। प्रदूषण के प्रमुख प्रकार भूमि, आकाश, खाद्य, जल, ध्वनि एवं वायु प्रदूषण हैं। इस सर्वव्यापी प्रदूषण ने मानव ही नहीं सम्पूर्ण जीवधारियों के जीवन को संकटमय बना दिया है। इससे मनुष्यों में रोगों का सामना करने की क्षमता घटती जा रही है। नए – नए घातक रोग उत्पन्न हो रहे हैं। बाढ़, भूमि का क्षरण, ऋतु – चक्र का असंतुलन, रेगिस्तानों की वृद्धि और भूमण्डल के तापमान में वृद्धि जैसे घोर संकट मानव – सभ्यता के भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं।
(iii) प्रदूषण के कारण :
- जल प्रदूषण – कल – कारखानों से निकलने वाले कचरे और हानिकारक रसायनों ने नदी, तालाब, वर्षा – जल यहाँ तक कि भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर दिया है।
- वायु प्रदूषण – वायु भी प्रदूषण से नहीं बची है। वाहनों और कारखानों से निकलने वाली हानिकारक गैसें वायुमण्डल को विषैला बना रही हैं।
- खाद्य प्रदूषण – प्रदूषित जल, वायु और कोटनाशक पदार्थों ने अनाज, शाक – सब्जी, फल और माँस सभी को अखाद्य बना दिया है। ध्वनि प्रदूषण – शोर हमें बहरा कर रहा है। इससे बहरापन, मानसिक तनाव तथा हृदय रोगों में वृद्धि हो रही है।
- भूमि और आकाशीय प्रदूषण – बस्तियों से निकलने वाला गंदा पानी, कूड़े के ढेरों तथा भूमि में रिसने वाले कारखानों के विषैले रसायनों ने भूमि क ऊपरी तल तथा भू – गर्भ को प्रदूषित कर डाला है।
- विषैली गैसों के निरंतर उत्सर्जन से आकाश प्रदूषित है। भूमि – प्रदूषण में प्लास्टिक व पॉलिथिन का बढ़ता प्रचलन एक अहम् कारण है। यह भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट कर रहा है।
(iv) प्रदूषण निवारण के उपाय – पर्यावरण प्रदूषण का संकट मनुष्य द्वारा ही उत्पन्न किया गया है, अतः मानव के आत्म – नियंत्रण से ही यह संकट दूर हो सकता है। वाहनों के इंजनों में सुधार, बैटरी चालित दोपहिया वाहनों के प्रयोग, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर नियंत्रण तथा प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर रोक द्वारा प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
(v) उपसंहार – विकसित देश ही प्रदूषण के बढ़ते जाने के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं। कार्बन डाइ – ऑक्साइड गैस जो वायु प्रदूषण तथा तापमान – वृद्धि का प्रमुख कारण है विकसित देशों द्वारा ही सर्वाधिक उत्पन्न की जा रही है। ये देश विकासशील देशों द्वारा प्रदूषण – नियंत्रण पर जोर देते हैं, स्वयं उस पर अमल नहीं करना चाहते। पर्यावरण – प्रदूषण विश्वव्यापी समस्या है। सभी देशों के प्रयास से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
(स) सड़क सुरक्षा
(i) सड़क सुरक्षा का तात्पर्य
(ii) सड़क सुरक्षा की आवश्यकता।
(iii) सड़क सुरक्षा के उपाय
(iv) उपसंहार
उत्तर :
(i) सड़क सुरक्षा का तात्पर्य – आज सड़क दुर्घटनाओं के समाचारों से अखबार भरे रहते हैं। चाहे पैदल चलने वाला व्यक्ति हो, चाहे वाहन पर चलने वाला। कोई अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करता। कब कोई वाहन चालक पीछे से टक्कर मार कर निकल जाए। कब कोई सड़क किनारे चल रहे बच्चों पर गाड़ी चढ़ा दे। सड़कों पर होने वाली दुखद घटनाओं की हरसंभव उपाय से रोकथाम करना ही ‘
सड़क – सुरक्षा’ है। अपनी ही नहीं, अपने जैसे अन्य सड़क – यात्रियों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना, वास्तविक सड़क सुरक्षा है। इसके लिए सड़क पर चलते समय सतर्कता बरतना, सड़क पर चलने के नियमों का ज्ञान रखना और उनका सदा पालन करना परम आवश्यक हैं। घर से सड़क पर पहुँचते ही सड़क – सुरक्षा प्रारम्भ हो जाती है।
(ii) सड़क सुरक्षा की आवश्यकता – सड़कों पर अपनी और लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाना बहुत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि सड़क पर पैदल चलने वाले, सड़क पार करने वाले और असावधानी से वाहन चलाने वाले लोगों में से 42% लोग हादसे के शिकार हो रहे हैं। इन असामयिक और हृदय विदारक मृत्युओं को रोकने के लिए सड़क – सुरक्षा का पालन आज अनिवार्य हो गया है।
आज सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं के कारण बड़ी भयावह स्थिति सामने आ रही है। विश्व में प्रतिवर्ष 13 लाख लोग सड़क हादसों के शिकार हो रहे हैं। हमारे देश में ही प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में 1.5 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्युओं में 25 प्रतिशत दुपहिया वाहन चालक होते यदि सड़क – सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये संख्याएँ कई गुनी बढ़ सकती हैं।
इसके लिए सड़क प्रयोग करने वाले हम और आप ही उत्तरदायी होंगे। अतः इसे आपात स्थिति मानते हुए सड़क – सुरक्षा के नियमों का पालन करना और कराया जाना चाहए। सड़क – दुर्घटनाओं के लिए उस पर चलाने वाले लोगों की असावधानी और गलतियाँ तो जिम्मेदार हैं ही, सड़कों की वर्तमान स्थितियाँ भी इसका मुख्य कारण हैं।
यथा –
- सड़कों में गड्ढे होना।
- शहरों की सड़कों में सीवर आदि के मैन होलों का खुले पड़े रहना।
- आवारा पशुओं का सड़कों पर घूमते रहना आदि है।
प्रमुख मानवीय गलतियाँ हैं-
- सड़क पर चलने के नियमों की उपेक्षा करना।
- शराब पीकर या मोबाइल का प्रयोग करते हुए वाहन चलाना।
- सड़क पार करते हुए जेब्रा क्रॉसिंग का प्रयोग न करना।
- वाहनों की गति – सीमा का उल्लंघन करना।
- वन वे ट्रेफिक होने पर भी गाड़ी को रिवर्स में चलाना आदि।
(iii) सड़क सुरक्षा के उपाय – सड़कों पर सुरक्षित रहने के लिए सदा यातायात नियमों का पालन करना चाहिए। सड़क किनारे लगे चिह्नों को ध्यान से देखते हुए चलाना चाहिए। सड़क पार करते समय दायें और बायें देखते हुए धीरेधीरे सड़क पार करनी चाहिए। वाहन के रुकने पर ही उसमें चढ़ना या उससे उतरना चाहिए। चौपहिया वाहनों में चलते समय सीट बेल्ट और एअर बैगों का प्रयोग करना चाहिए। वाहनों को आगे चलने वाले वाहनों से निश्चित दूरी बनाकर चलना चाहिए। घर से यात्रा पर निकलते समय प्रारम्भिक चिकित्सा के उपकरण तथा एक टूल किट साथ लेना न भूलना चाहिए।
(iv) उपसंहार – सड़क सुरक्षा आज इतना महत्वपूर्ण विषय बन चुका है कि इसे बच्चों के पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किया गया है। घर पर भी माता – पिता आदि को बच्चों को सड़क सुरक्षा के प्रति सचेत करते रहना चाहिए। ध्यान रहे कि कुछ दशक पहले वर्षों में एकाध सड़क बना करती थी। आज हमारा सड़क परिवहन विभाग हर वर्ष हजारों किलोमीटर सड़कें बना रहा है। सीमा पर सुरक्षा की दृष्टि से, निरंतर सड़कें बनाई जा रही हैं।
(द) मातृभाषा और उसका महत्त्व –
(i) मातृभाषा का अर्थ
(ii) शिक्षा का मातृभाषा से सम्बन्ध
(iii) सांस्कृतिक विकास में मातृभाषा का महत्त्व
(iv) उपसंहार
उत्तर :
(i) मातृभाषा का अर्थ – जब से बच्चा माता के गर्भ से जन्म लेकर संसार में आता है, उसे अपनी माँ की भाषा सुनने को मिलती है। उस समय माता ही उसे बोलना, समझना और जगत से परिचय कराती है। माता की भाषा ही मातृभाषा है। माता से हम जो भाषा बोलना सीखते हैं, वही हमारी मातृ भाषा होती है। संसार से हमारा नाता यही भाषा जोड़ती है। इसी भाषा में बोलते हुए हम बड़े होते हैं। इस भाषा को हम माता का अनुकरण करते हुए सीखते हैं। अन्य सारी भाषाएँ मातृभाषा पर आश्रित होकर ही हमें ज्ञात होती हैं। लोगों से हमारा प्रारंभिक संवाद इसी मातृभाषा में होता है इस भाषा के माध्यम से ही हम अपनी परंपरा संस्कृति को अपनाकर उसे और समृद्ध बना पाते हैं।
(ii) शिक्षा का मातृभाषा से सम्बन्ध – प्रायः सभी भाषाविद्, समाज सुधरक तथा मनोविज्ञानी यह मानते आए हैं कि बालक को उसकी मातृभाषा के माध्यम से ही प्रारंभिक शिक्षा दी जानी चाहिए। मातृभाषा में दिये गये शिक्षण को बालक सहज ही आत्मसात कर लेता है। हमारे यहाँ जो मौलिक चिंतन की कमी देखी जाती है उसका कारण यह भी है कि हमारे यहाँ विज्ञान, तकनीक तथा उच्च शिक्षण – प्रशिक्षण की भाषा प्रायः अंग्रेजी रही है। हम सोचते किसी और भाषा में हैं और शिक्षा किसी अन्य भाषा के माध्यम से पाते रहे हैं। यह स्थिति हमें एक प्रकार से परावलम्बी जैसा बना देती है।
अत: मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा दिया जाना एक सहज – स्वाभाविक शिक्षा प्रणाली है। मातृभाषा द्वारा शिक्षा दिया जाना हमारे भीतर स्वाभिमान जगाता है। कभी भारत विश्व गुरु कहा जाता था। यहाँ के नालंदा – तक्षशिला आदि विश्वविद्यालयों में सारे विश्व से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे। जब अन्य देशों के छात्र अपनी – अपनी मातृभाषाओं के माध्यम से सारे विषयों में निपुणता प्राप्त कर सकते हैं तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता। अपनी संस्कृति, अपनी भाषा, अपनी वेशभूषा, विश्व में हमारी विशिष्ट पहचान बनाती है। हमें सम्मान दिलाती है। हम मातृभाषा के अतिरिक्त और कितनी भी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करें, परन्तु अपनी मातृभाषा की उपेक्षा न करें। गर्व के साथ मातृभाषा बोलें। साथ ही अन्य लोगों की मातृभाषाओं का भी सम्मान करें।
(iii) सांस्कृतिक विकास में मातृभाषा का महत्त्व – मातृभाषा हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ती है। उनके विकास में हमारी रुचि जगाती है। उदार विचार धारा वाले व्यक्ति बाहर भले ही अंग्रेजी में बात करना शान समझते हों लेकिन अपनों के बीच अपनी मातृभाषा में बतियाने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता। घरों में प्रायः मातृभाषा का ही व्यवहार देखने में आता है। अपने मित्रों, पड़ोसियों, आदरणीयों से मातृभाषा में वार्तालाप करने का कुछ और ही आनंद होता है जिसे अंग्रेजी दाँ लोग नहीं समझ सकते।
(iv) उपसंहार – मातृभाषा दिवस मनाना एक भूल को सुधारना है। अंग्रेजी के बल पर समाज में अपना भाषायी आतंक जमाने वाले कुछ मिथ्या अहंकारी महानुभावों को यह उत्सव एक समुचित जवाब है। मातृभाषा में बात करने वाले समाज के सामान्यजनों को तनिक भी हीनताग्रस्त नहीं होना है। मोदी जी देश की भाषा हिन्दी में जो करोड़ लोगों की मातृभाषा भी है, बोलते हैं। अपनी मातृभाषा गुजराती को भी पूरा आदर देते हैं। इस देश में अनेक राज्य और संस्कृतियाँ हैं। इन राज्यों की अलग – अलग मातृभाषाएँ हैं। हर भारतीय को अपनी और अपने देशवासियों की भिन्न – भिन्न मातृभाषाओं का पूरा सम्मान करना चाहिए। उनमें से कुछ को सीखना भी चाहिए।
प्रश्न 22.
आपका नाम गौरव है, आप अपने विद्यालय की क्रिकेट टीम के कप्तान हैं। विद्यालय में अधिक खेल सामग्री मँगवाने के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना – पत्र लिखिए। (उत्तर सीमा लगभग 300 शब्द) (4)
उत्तर :
सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य जी
रा. उ. मा. विद्यालय
शिवपुरा
विषय – खेल सामग्री मँगवाने के संबंध में।
मान्यवर,
विनम्र निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान गौरव हूँ। पूरी क्रिकेट टीम की ओर से मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूँ कि विद्यालय में क्रिकेट संबंधी खेल सामग्री का अभाव है। जो थोड़ी – बहुत खेल – सामग्री बची है, वह अनुपयोगी और पुरानी हो गई है। फलस्वरूप टीम का पर्याप्त अभ्यास नहीं हो पा रहा है, जिसका सीधा प्रभाव टीम के मनोबल और खेल कौशल पर पड़ रहा है। पिछले महीने में हुई अन्तर्जनपदीय क्रिकेट प्रतियोगिता में भी हमारी टीम अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर सकी थी। अभ्यास के दौरान भी कई खिलाड़ी चोटिल हो गए थे। हैलमेट, ग्लब्स, पैड आदि सामग्री के अभाव में खिलाड़ियों की सुरक्षा भी खतरे में होती है।
अतः आपसे सादर अनुरोध है कि शीघ्रातिशीघ्र क्रिकेट संबंधी खेल सामग्री मँगवाने की कृपा करें। जिससे खेलकूद का सुचारु संचालन हो सके। साथ ही पढ़ाई के साथ – साथ खेल में भी जीतकर विद्यालय का नाम ऊँचा करें।
दिनांक 12 नवम्बर, 20_
भवदीय
गौरव
कक्षा – 10 (स)
अथवा
पढ़ाई हेतु छात्रावास में रह रहे अपने छोटे भाई को पत्र लिखकर कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव हेतु विभिन्न उपायों की जानकारी दीजिए।
उत्तर :
सुभाष मौहल्ला
भरतपुर
दिनांक 7 – 3 – 20-
प्रिय छोटे भाई,
प्रसन्न रहो।
तुम्हारे द्वारा भेजे गए पत्र से तुम्हारी कुशलता का समाचार जाना। छात्रावास में रहते हुए तुम कोरोना से बचाव के सभी उपाय कर रहे हो, यह जानकर खुशी हुई। इस संबंध में मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि कोरोना संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है, इस समय भी कोरोना वायरस का प्रकोप हो रहा है। सावधानी ही इस महामारो के संक्रमण से बचा सकती है।
मैं कुछ सावधानियाँ बता रहा हूँ, जिनका तुम्हें पालन करना है
- अति आवश्यक होने पर ही छात्रावास से बाहर जाना।
- मुँह पर मास्क अनिवार्य रूप से लगाकर रखना।
- बात करते समय उचित दूरी बनाए रखना।
- सफाई का विशेष ध्यान रखना।
- साबुन से हाथ भी धोते रहना।
- हाँ एक बात और अपनी बारी आने पर वैक्सीन भी अवश्य लगवा लेना। इन सभी उपायों से हम इस कोरोना रूपी महामारी से बच सकते हैं।
आशा है, तुम इन बातों को ध्यान में रखोगे और सुरक्षित रहोगे।
शेष कुशल हैं। अपनी कुशलता का पत्र देना।
तुम्हारा बड़ा भाई
राजेश गहलोत
प्रश्न 23.
आपका मित्र फूलों से बनी वस्तुओं – गुलदस्ते, हार, मालाएँ आदि की बिक्री बढ़ाना चाहता है। उसकी सहायता के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए। (उत्तर सीमा लगभग 25 से 50 शब्द) (4)
उत्तर :
अथवा
‘कला अंकुर’ संस्था की कलावीथि में कुछ चित्र (पेंटिंग्स) बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। इस हेतु एक विज्ञापन लगभग 25 से 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
Leave a Reply