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RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

March 25, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 10th Social Science Model Papers Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi Medium provided here.

RBSE Class 10 Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

समय: 2 घण्टा 45 मिनट
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  • परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  • सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
  • प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
  • जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

खण्ड – (अ)

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के उत्तर का सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखिए-

(i) 1929 का कांग्रेस अधिवेशन निम्न में से कहाँ हुआ था? [1]
(अ) इलाहाबाद
(ब) कलकत्ता
(स) लाहौर
(द) मद्रास
उत्तर:
(स) लाहौर

(ii) जर्मन बलूत किसका प्रतीक है? [1]
(अ) आजादी
(ब) शांति की चाह
(स) एक नये युग का सूत्रपात
(द) बहादुरी
उत्तर:
(द) बहादुरी

(iii) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में किस संस्था की स्थापना की गई? [1]
(अ) यूनिसेफ
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(स) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(दं) यूनेस्को
उत्तर:
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

(iv) लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है? [1]
(अ) नवीकरण योग्य
(ब) प्रवाह
(स) जैव
(द) अनवीकरण योग्य
उत्तर:
(द) अनवीकरण योग्य

(v) इनमें से किस राज्य में मरुस्थली मृदा मुख्य रूप से पाई जाती है? [1]
(अ) राजस्थान
(ब) जम्मू और कश्मीर
(स) महाराष्ट्र
(द) झारखण्ड
उत्तर:
(अ) राजस्थान

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

(vi) प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत कब हुई? [1]
(अ) 1974
(ब) 1973
(स) 1975
(द) 1976
उत्तर:
(ब) 1973

(vii) श्रीलंका स्वतंत्र राष्ट्र कब बना? [1]
(अ) 1948
(ब) 1949
(स) 1950
(द) 1951
उत्तर:
(अ) 1948

(viii) केन्द्र एवं राज्य के मध्य विधायी अधिकारों को कितने हिस्सों में बाँटा गया है? [1]
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(ब) तीन

(ix) जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्रायः होता है। [1]
(अ) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अंतर
(ब) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ
(स) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात
(द) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना
उत्तर:
(ब) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ

(x) मध्य आय वर्ग वाला देश है- [1]
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ब) भारत
(स) चीन
(द) जापान
उत्तर:
(ब) भारत

(xi) औद्योगिक क्षेत्रक कहा जाता है- [1]
(अ) प्राथमिक क्षेत्रक
(ब) द्वितीयक क्षेत्रक
(स) तृतीयक क्षेत्रक
(द) चतुर्थक क्षेत्रक
उत्तर:
(ब) द्वितीयक क्षेत्रक

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

(xii) विभिन्न देशों के बीच परस्पर सम्बन्ध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया है- [1]
(अ) उदारीकरण
(ब) निजीकरण
(स) राष्ट्रीयकरण
(द) वैश्वीकरण
उत्तर:
(द) वैश्वीकरण

प्रश्न 2.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-

(i) अफ्रीका में ……………………… नामक बीमारी सबसे पहले 1880 के दशक के आखिरी सालों में दिखाई दी। [1]
उत्तर:
रिंडरपेस्ट

(ii) भारत के कुल …………………… प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र पर वन स्थित हैं। [1]
उत्तर:
24.56

(iii) …………………….. अन्य जाति समूहों के भेदभाव और उन्हें अपने से अलग मानने की धारणा पर आधारित है। [1]
उत्तर:
वर्ण व्यवस्था

(iv) मानव विकास रिपोर्ट देशों की तुलना शैक्षिक स्तर, स्वास्थ्य स्थिति और …………………….. के आधार पर करती है। [1]
उत्तर:
प्रतिव्यक्ति आय

(v) किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य ……………. कहलाता है। [1]
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

(vi) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए गए निवेश को ……………………….. कहते हैं। [1]
उत्तर:
विदेशी निवेश।

प्रश्न 3.
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (प्रश्नों का उत्तर एक शब्द या एक पंक्ति में दीजिए।)

(i) ‘गिरमिटिया’ शब्द से आप क्या समझते हैं? [1]
उत्तर:
विदेशों को जाने वाले अनुबन्धित श्रमिक गिरमिटिया के नाम से जाने जाते हैं।

(ii) वीटो (निषेधाधिकार) किसे कहते हैं? [1]
उत्तर:
वीटो (निषेधाधिकार) वह अधिकार है जिसके सहारे एक ही सदस्य की असहमति किसी भी प्रस्ताव को निरस्त करने का आधार बन जाती है।

(iii) यह कथन किसका है? “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है।” [1]
उत्तर:
यह कथन मैटरनिख का है।

(iv) बाढ़ नियंत्रण हेतु कोई एक उपाय सुझााइए? [1]
उत्तर:
बाँधों का निर्माण करना।

(v) भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में कर्तन-दहन कृषि को क्या कहा जाता है? [1]
उत्तर:
झूमिंग कृषि।

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

(vi) किसी एक रेशे वाली फसल का नाम बताइए? [1]
उत्तर:
कपास।

(vii) बेल्जियम ने 1970 से 1973 के बीच कुल कितने संशोधन किये? [1]
उत्तर:
चार संशोधन।

(viii) सत्ता के विकेन्द्रीकरण से क्या आशय है? [1]
उत्तर:
जब केन्द्र और राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं।

(ix) कार्लोस, स्मिथ और नार्मन तीनों में एकं क्या समानता थी? [1]
उत्तर:
कार्लोस, स्मिथ और नार्मन तीनों नस्ल आधारित भेदभाव के विरुद्ध थे।

(x) नवीकरणीय साधन तथा गैर-नवीकरणीय साधन का एक उदाहरण दीजिए। [1]
उत्तर:
नवीकरणीय साधन – वन
गैर-नवीकरणीय साधन – खनिज तेल।

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

(xi) अतिरिक्त रोजगार के सृजन का कोई एक उपाय सुझाइए। [1]
उत्तर:
कई खेतों की सिंचाई हेतु एक नये बाँध का निर्माण करना।

(xii) वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने वाला मुख्य कारक कौनसा है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी।

खण्ड – (ब)

लघूत्तरात्मक प्रश्न-प्रश्न सं. 4 से 16 के उत्तर लिखिए। (शब्द सीमा 50 शब्द)

प्रश्न 4.
रेशम मार्ग से किस-किस वस्तुओं का व्यापार होता था? [2]
उत्तर:
रेशम मार्ग से चीन रेशम, चाय और चीनी मिट्टी के बर्तन, मसाले, हाथी दाँत, कपड़े, काली मिर्च और कीमती पत्थर दुनिया के दूसरे भागों में भेजता था और रोम (यूरोप) से सोना, चाँदी, शीशे की वस्तुएँ, शराब, कालीन और गहने आदि एशिया महाद्वीप में आते थे। इस मार्ग से व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी साथ-साथ होता था।

प्रश्न 5.
वियना संधि के प्रमुख उद्देश्य लिखिए। [2]
उत्तर:
वियना संधि के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  • इस संधि का प्रमुख उद्देश्य उन समस्त परिवर्तनों को समाप्त करना था जो नेपोलियाई युद्धों के दौरान हुए थे।
  • फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हटाए गए बूढे वंश की सत्ता को पुनर्स्थापित करना।
  • फ्रांस को उन. प्रदेशों से वंचित करना जिन पर नेपोलियन ने अधिकार कर लिया था।
  • फ्रांस की सीमाओं पर अनेक राज्यों की स्थापना करना ताकि भविष्य में फ्रांस अपने साम्राज्य का विस्तार न कर सके।
  • नेपोलियन ने 39 राज्यों का जो जर्मन महासंघ स्थापित किया था, उसे बनाए रखना।
  • यूरोप में एक नई रूढ़िवादी व्यवस्था स्थापित करना।

प्रश्न 6.
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड पर टिप्पणी लिखिए। [2]
उत्तर:
13 अप्रैल 1919 ई. को जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ। इस दिन अमृतसर के आस-पास के कई गाँवों से लोग जलियाँवाला बाग मैदान में एकत्रित हुए। यह मैदान चारों ओर से बन्द था। अंग्रेज अफसर के आदेश पर सिपाहियों ने भीड़ पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ चला दीं। इस हत्याकांड में सैकड़ों लोग मारे गये तथा अनेक घायल हुए, जलियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास की सर्वाधिक दर्दनाक घटना है। इस घटना ने समस्त भारत को
अंग्रेज विरोधी बना दिया।

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न 7.
एजेंडा-21 के मुख्य उद्देश्य क्या हैं? [2]
उत्तर:
जून, 1992 में 100 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों का एक सम्मेलन ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो शहर में अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलन के नाम से हुआ। इस सम्मेलन में एकत्रित नेताओं ने भू-मण्डलीय जलवायु परिवर्तन एवं जैविक-विविधता के एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। यही घोषणा पत्र एजेण्डा-21 के नाम से जाना जाता है। इस घोषणा पत्र का मुख्य उद्देश्य भू-मण्डलीय जलवायु परिवर्तन के खतरों को रोकना, जैविक-विविधता, पर्यावरण संरक्षण के लिए उपाय करना एवं भू-मण्डलीय सतत् पोषणीय विकास प्राप्त करना है।

प्रश्न 8.
संकटग्रस्त जातियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2]
उत्तर:
संकटग्रस्त जातियाँ-पादपों और वन्य जीवों की वे जातियाँ, जिनके लुप्त होने का खतरा है, संकटग्रस्त जातियाँ कहलाती हैं। जिन विशेष परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है, यदि उन पर नियंत्रण स्थापित नहीं होता है तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन हो जायेगा। इन जातियों को संरक्षण द्वारा बचाया जा सकता है तथा विशेष प्रयासों से इनमें वृद्धि भी सम्भव है। उदाहरण के लिए काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, गैंडा, गोडावन, शेर की पूँछ वाला बंदर, संगाई (मणिपुरी हिरण) आदि।

प्रश्न 9.
भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए। [2]
उत्तर:
भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव-वैश्वीकरण के इस दौर में भारतीय किसानों को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत चावल, कपास, चाय, कॉफी, रबड़, जूट एवं मसालों का मुख्य उत्पादक देश होने के बावजूद विकसित देशों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा है, क्योंकि विकसित देश कृषि को अधिकाधिक सहायता एवं अनुदान प्रदान कर रहे हैं। अतः हमें विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अपनी विशाल क्षमता का सही योजनाबद्ध तरीकों से उपयोग करना होगा।

प्रश्न 10.
बहुसंख्यकवाद को बनाये रखने के लिए श्रीलंका सरकार द्वारा कौन-कौन से कदम उठाये गये हैं। [2]
उत्तर:
श्रीलंका की सरकार द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए गए-

  • श्रीलंकाई सरकार ने सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में सिंहली वर्चस्व स्थापित करने के लिए कई प्रकार के उपाय अपनाए।
  • 1956 ई. में श्रीलंका सरकार ने एक कानून बनाया जिसके तहत तमिल को दरकिनार करके सिंहली को एकमात्र
    राजभाषा घोषित कर दिया गया।
  • नए संविधान में यह प्रावधान भी किया गया कि सरकार बौद्ध मत को संरक्षण और बढ़ावा देगी। यह तमिल हिन्दुओं के लिए अपमनजनक कदम था।
    (iv) विश्वविद्यालयों और सरकारी नौकरियों में सिंहलियों को प्राथमिकता देने की नीति भी चली।

प्रश्न 11.
संघीय शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? [2]
उत्तर:
संघीय शासन व्यवस्था-यह सरकार की एक व्यवस्था है जिसमें सर्वोच्च सत्ता केन्द्रीय प्राधिकरण एवं उसकी विभिन्न अनुषांगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है। आमतौर पर संघीय व्यवस्था में दो स्तर पर सरकारें होती हैं। इसमें एक सरकार सम्पूर्ण देश के लिए होती है जिसके जिम्मे राष्ट्रीय महत्व के विषय होते हैं फिर राज्य या प्रान्तों के स्तर की सरकारें होती हैं जो शासन के दैनिक काम-काज को देखती हैं। सत्ता के इन दोनों स्तरों की सरकारें अपने-अपने स्तर पर स्वतन्त्र होकर अपना कार्य करती हैं। उदाहरणार्थ-भारत।

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न 12.
सामाजिक विभाजन तथा राजनीति किस प्रकार अन्तर्संबन्धित हैं? व्याख्या करें? [2]
उत्तर:
सामाजिक विभाजन तथा राजनीति परस्पर अन्तर्संबन्धित हैं।
सामाजिक विभाजन से राजनीति प्रभावित होती है। यदि सामाजिक विभाजन किसी समूह विशेष द्वारा अपनी पहचान बनाने के लिए होता है। तो इस प्रकार के विभाजन में समझौते की गुंजाइश नहीं होती। जैसे-आयरलैण्ड में लोग अपनी पहचान कैथोलिक या प्रोटेस्टेट के रूप में बनाना चाहते हैं। दूसरा उदाहरण बेल्जियम का है, जहाँ के लोग अलग-अलग भाषा बोलने वाले हैं किन्तु एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हैं। इन अलग-अलग भाषाओं से दूसरे समुदाय के लोगों का कोई अहित नहीं होता है।

प्रश्न 13.
विकास की धारणीयता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विकास की धारणीयता का आशय विकास के स्तर को और ऊँचा उठाने तथा वर्तमान विकास के स्तर को भावी पीढ़ी हेतु बनाए रखने से है, अतः धारणीयता का विषय विकास के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना विकास अधूरा है। इसमें भावी पीढ़ी की उत्पादकता को हानि पहुँचाये बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने पर बल दिया जाता है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण को भी बल मिलता है। अत: यह देश की भावी उन्नति के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 14.
सार्वजनिक क्षेत्रक तथा निजी क्षेत्रक में उदाहरण सहित अंतर स्पष्ट कीजिए। [2]
उत्तर:

सार्वजनिक क्षेत्रक निजी क्षेत्रक
1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत अधिकांश परिसम्पत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध करती है, जैसे-डाकघर

भारतीय रेलवे, आकाशवाणी, इण्डियन एयरलाइन्स आदि।

1. इस क्षेत्रक में परिसम्पत्तियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति या कम्पनी के हाथों में होती है, जैसे-नित्तल पब्लिकेशन्स, टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड आदि।
2. सार्वजनिक क्षेत्रक का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण में वृद्धि करना होता है। 2. निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है।
3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी समस्त निर्णय सरकार द्वारा निर्धारित नीति द्वारा लिये जाते हैं। 3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय निजी स्वामियों अथवा प्रबन्धकों द्वारा लिए जाते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में औपचारिक क्षेत्रक में साख के किन्हीं दो स्रोतों की व्याख्या कीजिए? [2]
उत्तर:
भारत में औपचारिक क्षेत्रक में साख के दो प्रमुख स्रोतों को समिलित किया जाता है-
(i) बैंक,
(ii) सहकारी समितियाँ।
बैंक समर्थक ऋणाधार के आधार पर लोगों को ऋण प्रदान करते हैं। बैंक से कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध हो जाता है। वहीं सहकारी समितियाँ भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आवश्यकताओं के पूरा करने के लिए सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराती हैं। इन संस्थाओं में कृषक एवं व्यापारी दोनों ही अपनी-अपनी आर्थिक गतिविधों को चलाने के लिए ऋण लेते हैं।

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प्रश्न 16.
भारत सरकार द्वारा विदेशी व्यापार पर अवरोधक लगाने के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए? 2
उत्तर:
भारत सरकार द्वारा विदेशी व्यापार पर अवरोधक लगाने के दो कारण निम्नलिखित हैं-
(i) भारत सरकार द्वारा विदेशी प्रतिस्पर्धा से देश में उत्पादों की रक्षा करने के लिए अवरोधक लगाए।
(ii) सन् 1950 एवं 1960 के दशक में भारतीय उद्योग अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थे। इस अवस्था में आयातों से प्रतिस्पर्धा इन उद्योगों को बढ़ने नहीं देती। अतः भारत सरकार ने आयातों को केवल मशीनरी, उर्वरक, खनिज तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं तक ही सीमित रखा और विदेशी व्यापार व विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाए।

खण्ड – (स)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-प्रश्न सं. 17 से 20 के उत्तर लिखिए। (शब्द सीमा 100 शब्द)

प्रश्न 17.
नेपोलियन संहिता की विशेषताएँ लिखिए। [3]
अथवा
जॉलवेराइन संघ की विशेषताएँ लिखिए। [3]
उत्तर:
अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को अधिक कुशल बनाने के लिए 804 ई. में नेपोलियन ने नागरिक संहिता लागू की। यह संहिता नेपोलियन की संहिता के नाम से जानी जाती है। इस संहिता को फ्रांसीसी नियंत्रण के अधीन क्षेत्रों में भी लागू किया गया। इस संहिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. इस संहिता ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए।
  2. कानून के समक्ष समानता तथा सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया गया।
  3. डच गणतन्त्र, स्विट्जरलैण्ड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने सामन्ती व्यवस्था को समाप्त किया तथा किसानों को भू-दासत्व तथा जागीरदारी करों से मुक्ति दिलाई।
  4. यातायात तथा संचार व्यवस्थाओं में सुधार किये गए।
  5. शहरों में कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियन्त्रणों को हटा दिया गया।
  6. सम्पूर्ण देश में एक राष्ट्रीय मुद्रा प्रचलित की गई तथा एक समान कानून व्यवस्था तथा माप-तौल की एक जैसी प्रणाली लागू की गई।

अथवा

जॉलवेराइन संघ की विशेषताएँ-1834 ई. में प्रशा की पहल पर ‘जॉलवेराइन’ नामक एक शुल्क संघ की स्थापना हुई थी जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य शामिल हो गए थे। इस संघ की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. इस संघ ने विभिन्न जर्मन राज्यों के मध्य शुल्क अवरोधों को समाप्त कर दिया था।
  2. इस संघ ने मुद्राओं की संख्या को तीस से घटाकर दो कर दिया।
  3. इस संघ के प्रयासों से आर्थिक दृष्टि से समस्त जर्मनी एक हो गया।
  4. इस संघ ने आर्थिक राष्ट्रवाद के आंदोलन को जन्म दिया जिसने उस समय में पनप रही व्यापक राष्ट्रवादी भावनाओं को मजबूत बनाया।

प्रश्न 18.
आपके अनुसार, पानी के संरक्षण और प्रबंधन में बाँध किस प्रकार मदद करते हैं? [3]
अथवा
बाढ से बचाव के लिए कोई तीन सुरक्षा उपाय सुझाइए। [3]
उत्तर:
हमारे मतानुसार पानी के संरक्षण एवं प्रबंधन में बाँध बहुत अधिक मदद करते हैं। प्रवाहित जल को रोकने, दिशा देने या बहाव को कम करने के लिए खड़ी की गई बाधा जो कि आमतौर पर जलाशय, झील अथवा जल भरण बनाती है, बाँध कहलाती है। बाँध का अर्थ जलाशय से होता है न कि इसके ढाँचे से। बाँध केवल सिंचाई के लिए ही नहीं बनाये जाते बल्कि इनका उपयोग विद्युत उत्पादन, घरेलू व औद्योगिक उपयोग, जलापूर्ति, बाढ़ नियन्त्रण, मनोरंजन, मत्स्यपालन, नौकायन आदि के लिए भी किया जाता है। बाँधों में एकत्रित जल के अनेकों उपयोग समन्वित होते हैं। उदाहरण के लिए, सतलज-व्यास बेसिन में भाखड़ा-नांगल परियोजना जलविद्युत उत्पादन और सिंचाई दोनों के काम में आती है। इसी प्रकार महानदी बेसिन में हीराकुण्ड परियोजना जल संरक्षण और बाढ़ नियंत्रण का समन्वय है।

अथवा

बाढ़ से बचाव के लिए सुरक्षा उपाय-जब भारी अथवा निरन्तर वर्षा के कारण नदियों का जल अपने तटबन्धों को तोड़कर बहुत बड़े क्षेत्र में फैल जाता है तो उसे बाढ़ कहते हैं। बाढ़ अतिवृष्टि के कारण आती है। बाढ़ से बचाव के लिए तीन सुरक्षा उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) बाढ़ पर नियंत्रण के लिए नदी उद्गम क्षेत्रों और जल ग्रहण क्षेत्रों में वनों का लगाया जाना अति आवश्यक होता है। इससे मृदा अपरदन रुकने से नदी में अवसाद के जमाव में कमी आयेगी और जल शीघ्रता से मुख्य नदी तक नहीं ‘पहुँच सकेगा। अतः बाढ़ से बचाव के लिए आवश्यक है कि वृक्षारोपण के साथ-साथ वनों के अविवेकपूर्ण दोहन को रोकना होगा।

(2) यातायात मार्गों का निर्माण इस प्रकार किया जावे कि इससे जल के प्राकृतिक प्रवाह में अवरोध उत्पन्न न हो।

(3) वर्षा के पहले नदी की जलग्रहण क्षमता को बढ़ाया जाये। अवसाद को निकालकर तटबन्धों पर डलवाया जाये। इससे दोहरा लाभ होगा-एक नदी की जलग्रहण क्षमता बढ़ेगी और दूसरा तटबंध ऊँचे व मजबूत होंगे।

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प्रश्न 19.
आपने अनुसार साम्प्रदायिकता कैसे एक चुनौती है? कोई तीन तर्क लिखिए। [3]
अथवा
जातिगत असमानता दूर करने के लिए अपने तीन सुझाव लिखिए। [3]
उत्तर:
हमारे मतानुसार साम्प्रदायिकता एक चुनौती है उसके पक्ष में तीन तर्क निम्नलिखित हैं-
(i) दैनिक जीवन में साम्प्रदायिकता-साम्प्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति दैनिक जीवन में ही देखने को मिलती है। इसमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी-बनाई धारणाएँ एवं एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ सम्मिलित हैं। ये चीजें इतनी सामान्य हैं कि सामान्यतया हमारा ध्यान इस ओर नहीं जाता है, जबकि ये हमारे अन्दर ही बैठी हुई होती हैं।

(ii) समुदायों के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन-साम्प्रदायिक सोच अक्सर अपने धार्मिक समुदाय का राजनैतिक प्रभुत्व स्थापित करने की फिराक में रहती है। जो लोग बहुसंख्यक समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं उनकी यह कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है। जो लोग अल्पसंख्यक समुदाय के होते हैं, उनमें यह विश्वास अलग राजनीतिक इकाई बनाने की इच्छा का रूप ले लेता है।

(ii) साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबंदी-साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबंदी साम्प्रदायिकता का दूसरा रूप है। इसके अन्तर्गत धर्म के पवित्र प्रतीकों, धर्म गुरुओं, भावनात्मक अपील एवं अपने ही लोगों के मन में डर बैठाने जैसे तरीकों का उपयोग किया जाना एक सामान्य बात है। चुनावी राजनीति में एक धर्म के मतदाताओं की भावनाओं अथवा हितों की बात उठाने जैसे तरीके सामान्यतया अपनाए जाते हैं।

अथवा

जातिगत असमानता दूर करने के सुझाव-जातिगत असमानता दूर करने के तीन प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं-
(i) अर्न्तजातीय विवाह को प्रोत्साहन प्रदान करना-प्राय देखा जाता है कि लोग अपनी ही जाति या समुदाय के लोगों के साथ ही विवाह सम्बन्ध स्थापित करते हैं जिससे जातिगत असमानता दूर नहीं हो पाती है। अतः इसके समापन के लिए सरकार को अर्न्तजातीय विवाहों को प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए तथा समाज में भी जागरूकता उत्पन्न करनी चाहिए।

(ii) चुनावों में जाति के आधार पर उम्मीदवारों का चयन नहीं करना-प्रायः चुनावों में राजनैतिक दल जिस क्षेत्र में जिन जाति का बाहुल्य होता है उस जाति के व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाते हैं। जिससे जातिगत असमानता घटने के स्थान पर बढ़ती ही जाती है। लोग चुनाव में अपनी ही जाति के उम्मीदवार को बोट डालते हैं तथा अपनी जाति के अन्य लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं। इससे उपयुक्त उम्मीदवार का चयन नहीं हो पाता है।
अतः राजनीतिक दलों को जाति के स्थान पर योग्यता के आधार पर अपने उम्मीदवार का चयन करना चाहिए।

(ii) शिक्षा का विस्तार करना-जिन जातियों में पहले से ही शिक्षा का प्रचलन था और जिनकी शिक्षा पर पकड़ थी, आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में भी उनका वर्चस्व था। जिन जातियों के पहले शिक्षा से वंचित रखा जाता था, उनके सदस्य अभी भी स्वाभाविक रूप से शिक्षा में पिछडे हुए हैं। अतः शिक्षा का विस्तार कर वंचित वर्ग के लोगों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित की जाए।

प्रश्न 20.
आप कैसे कह सकते हैं कि मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की जरूरत को खत्म कर देती है? [3]
अथवा
अपने तर्कों से सिद्ध कीजिए कि स्वयं सहायता समूह ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों को संगठित करने में मदद करते हैं। [3]
उत्तर:
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को समाप्त कर देती है। यह निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट है-
उदाहरण-माना एक किसान सरसों के बदले गुड़ लेना चाहता है, सबसे पहले सरसों विक्रेता किसान को ऐसे दुकानदार को ढूँढ़ना होगा जो न केवल गुड़ बेचना चाहता है बल्कि वह उसके बदले सरसों भी खरीदना चाहता हो अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने-बेचने पर सहमति रखते हों। इसे ही आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है साथ ही दोहरे संयोगों का मिलना एक महत्त्वपूर्ण समस्या भी है। मुद्रा द्वारा इस समस्या का समाधान हो जाता है। मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका का निर्वाह करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को समाप्त कर देती है। अतः अब सरसों विक्रेता किसान किसी भी क्रेता को मुद्रा के बदले सरसों बेच सकता है और सरसों के बेचने से प्राप्त मुद्रा से बाजार से अपनी जरूरत के अनुसार कोई भी वस्तु या सेवा खरीद सकता है।

अथवा

स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गतः 15-20 लोग एक समूह बना लेते हैं। वे नियमित रूप से मिलते हैं एवं अपनी बचतों को इकट्ठा करते हैं। यह बचत धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती है। ये समूह अपने सदस्यों को ऋण देकर उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं। इस ऋण की जरूरत से लोग अपना छोटा-मोटा रोजगार प्रारम्भ कर सकते हैं। बचत व ऋण गतिविधियों सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण निर्णय समूह के सदस्यों द्वारा स्वयं लिये जाते हैं। समूह दिए जाने वाले ऋण, उसका लक्ष्य, उसकी रकम ब्याज दर एवं वापस लौटाने की अवधि आदि के बारे में निर्णय करता है। ऋणाधार के बिना बैंक भी स्वयं सहायता समूहों को ऋण देने को तैयार हो जाते हैं।

इस प्रकार स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को उचित ब्याज दर पर ऋण प्रदान करके उन्हें स्वावलम्बी बनाने में योगदान देते हैं। इसके अतिरिक्त समूह की बैठकों के माध्यम से वह विभिन्न प्रकार के सामाजिक विषयों; जैसे-स्वास्थ्य, पोषण, घरेलू हिंसा आदि विषयों पर चर्चा कर पाते हैं।

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

खण्ड – (द)

निबन्धात्मक प्रश्न-प्रश्न सं. 21 से 22 के उत्तर लिखिए। (शब्द सीमा 250 शब्द)

प्रश्न 21.
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी के योगदान का वर्णन कीजिए। [4]
अथवा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिए। [4]
उत्तर:
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी का योगदान-भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी के योगदान का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है-
(i) देशहित में सर्वस्व न्यौछावर-गाँधीजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित कर दिया। उन्होंने देश को अंग्रेजी दासता से स्वतन्त्रता दिलाने हेतु आमरण अनशन किये तथा जेल भी गये। अंग्रेजों द्वारा उन्हें अनेक प्रलोभन दिये जाने के बावजूद उन्होंने देशहित को सर्वोपरि रखा और अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया।

(ii) अहिंसात्मक आन्दोलन का नेतृत्व-महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों को औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध अनेक अहिंसात्मक आन्दोलनों का नेतृत्व किया जिनमें असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, स्वदेशी आन्दोलन व भारत छोड़ो आन्दोलन आदि प्रमुख हैं। महात्मा गाँधी ने अपने आन्दोलनों के माध्यम से भारतीय जनता को जागृत किया कि वे अंग्रेजों का साथ नहीं दें। यदि वे अंग्रेजों का साथ नहीं देंगे तो शीघ्र ही अंग्रेज भारत से बाहर होंगे। उन्होंने विदेशी माल का बहिष्कार करने का भी आह्वान किया तथा विदेशी वस्त्रों की होली जलवाई। जनता के हित में उन्होंने अंग्रेजों द्वारा बनाया गया नमक कानून तोड़ा। अगस्त 1942 में उन्होंने अंग्रेजों से आरपार की लड़ाई छेड़ी तथा ‘करो या मरो’ का नारा दिया। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाना चाहा लेकिन वे जनता की आवाज को न दबा सके। अन्त में अंग्रेज सरकार घबरा गयी और उसे देश को आजाद करना पड़ा।

(iii) देश को सत्याग्रह एवं अहिंसारूपी हथियार प्रदान करना-गाँधीजी के दो प्रमुख हथियार थे-सत्याग्रह एवं अहिंसा। अपनी बात को मनवाने के लिए गाँधीजी धरना देते थे या कुछ दिनों का उपवास रख लेते थे अथवा अपना ‘विरोध प्रकट करने के लिए अन्य कोई भी तरीका अपना लेते थे। उन्होंने कई बार आमरण अनशन भी किया। गाँधीजी को सम्पूर्ण विश्व के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता सत्याग्रह से मिलती थी। इनके सत्याग्रह रूपी हथियार से अंग्रेज सरकार भी काँपती थी। इसके अतिरिक्त गाँधीजी अपनी बात को मनवाने के लिए कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं करते थे बल्कि अहिंसक तरीके से उनका विरोध करते थे। उन्हें इस बात की जानकारी थी कि अंग्रेज सरकार हर प्रकार से शक्तिशाली है और इनसे लड़कर नहीं जीता जा सकता। उनको शान्ति और अहिंसा से ही पराजित किया जा सकता है। अन्त में उन्होंने इसी नीति से अंग्रेज सरकार को झुका दिया।

(iv) भारतीय राष्ट्रवाद से समाज के सभी वर्गों को जोड़ना-गाँधीजी ने स्वतन्त्रता हेतु संचालित राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन में परिवर्तित किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद से समाज के सभी वर्गों यथा वकीलों, डाक्टरों, जमींदारों, किसारों, मजदूरों, व्यापारियों, युवकों व महिलाओं, निम्न जातियों, हिन्दुओं, मुसलमानों, सिक्खों आदि को जोड़ा तथा उनमें परस्पर एकता स्थापित की। उन्होंने समस्त जनता को राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़कर उसे, जन आन्दोलन बना दिया।

(v) समाज सुधारक-गाँधीजी ने भारतवासियों के स्तर को ऊँचा बनाने के लिए अनेक कार्य किये। भारत से गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने लोगों को खादी पहनने का संदेश दिया। समाज से छुआछूत व बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने का प्रयास किया। अछूतों के उद्धार के लिए उन्हें हरिजन नाम दिया। देश में साम्प्रदायिक दंगों को समाप्त करने के लिए गाँधीजी ने गाँव-गाँव घूमकर लोगों में भाई-चारे का संदेश दिया। .

(vi) हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक-अंग्रेजों ने भारतीयों को एक दूसरे से अलग रखने के उद्देश्य से अनेकों प्रयास किये। हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने का प्रयास किया लेकिन गाँधीजी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को कायम रखने के भरसक प्रयत्न किये जिससे अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति सफल न हो सके। इस प्रकार कहा जा सकता है भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में गाँधीजी का अविस्मरणीय योगदान रहा। यदि गाँधीजी को स्वाधीनता संघर्ष की धुरी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

अथवा

सविनय अवज्ञा आदोलन-सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई. में चलाया गया। यह सत्य और अहिंसा पर आधारित एक विशाल आन्दोलन था। इस आन्दोलन को चलाये जाने के निम्नलिखित कारण थे-

  • 1928 ई. में साइमन कमीशन भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद भी अपनी रिपोर्ट
    प्रकाशित कर दी, जिनसे भारतीयों में असन्तोष फैल गया।
  • बारयदौली के किसान आन्दोलन की सफलता ने गाँधीजी को सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने के लिए प्रेरित किया।
  • गाँधीजी ने सरकार के समक्ष कुछ शर्ते रखीं परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार नहीं किया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ-सविनय अवज्ञा आन्दोलन गाँधीजी की दाण्डी यात्रा से प्रारम्भ हुआ। गाँधीजी ने घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित कानून को तोड़ने के लिए यात्रा का नेतृत्व करेंगे। नमक पर राज्य का एकाधिकार बहुत अलोकप्रिय था। इसी को निशाना बनाते हुए गाँधीजी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध व्यापक असन्तोष को संघटित करने की सोच रहे थे। अधिकांश भारतीयों को गाँधीजी की इस चुनौती का महत्व समझ में आ गया लेकिन ब्रिटिश शासन को नहीं। यद्यपि गाँधीजी ने अपनी नमक यात्रा की पूर्व सूचना वायसराय लार्ड डार्विन को दे दी थी लेकिन वे इस यात्रा का महत्व नहीं समझ सके। गाँधीजी ने 12 मार्च 1930 ई. को अपने साथियों के साथ साबरमती आश्रम से पैदल यात्रा प्रारम्भ की तथा 6 अप्रैल 1930 को दाण्डी के निकट समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून को तोड़ा। वहाँ से सविनय अवज्ञा आन्दोलन देशभर में फैल गया। अनेक स्थानों पर लोगों ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए दमन चक्र प्रारम्भ कर दिया। गाँधीजी सहित अनेक लोगों को गिरफ्तार कर जेलों में बन्द कर दिया परन्तु आन्दोलन की गति पर कोई अन्तर नहीं पड़ा, इसी बीच गाँधीजी तथा तत्कालीन वायसराय लार्ड डार्विन के मध्य एक समझौता हुआ। गाँधी-डार्विन समझौते के तहत गाँधीजी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना एवं आंदोलन बंद करना स्वीकार कर लिया। इस तरह 1931 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन कुछ समय के लिए रुक गया।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफल होना और सविनय अवज्ञा आन्दोलन का पुनः प्रारम्भ होना-सन् 1931 में लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में महात्मा गाँधी ने भाग लिया परन्तु इस सम्मेलन में भारतीय प्रशासन के बारे में कोई उचित हल नहीं निकल पाने के कारण महात्मा गाँधी निराश होकर भारत लौट आये। भारत लौटने पर उन्होंने अपना सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः प्रारम्भ कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन को समाप्त करने के लिए फिर से अत्याचार करने प्रारम्भ कर दिए। कांग्रेस के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का अंत-ब्रिटिश सरकार के दमनकारी चक्र के समक्ष अन्तिम सविनय अवज्ञा आन्दोलन की गति धीमी पड़ गयी। अंत में मई 1939 ई० में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस ले लिया।

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न 22.
नेपाल में “लोकतन्त्र के लिए दूसरा आन्दोलन” के विभिन्न चरणों को स्पष्ट कीजिए। [4]
अथवा
आन्दोलनकारी समूह क्या होते हैं? इसके प्रकारों के बारे में बताइए। [4]
उत्तर:
नेपाल भारत का पड़ोसी देश है। नेपाल में 1990 ई. के दशक में लोकतन्त्र की स्थापना हुई। नेपाल में औपचारिक
रूप से राजा देश का प्रधान बना रहा लेकिन वास्तविक शक्ति का प्रयोग जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा किया जाता था। अत्यधिक राजतंत्र से संवैधानिक राजतंत्र के परिवर्तन को राजा वीरेन्द्र ने स्वीकार कर लिया था लेकिन उनकी हत्या के पश्चात नए राजा ज्ञानेद्र ने लोकतांत्रिक शासन को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की अलोकप्रियता और कमजोरी का लाभ उठाकर फरवरी 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया। इसके फलस्वरूप जनता नाराज हो गई और उन्होंने शासन के विरुद्ध जनसंघर्ष प्रारंभ कर दिया। जनसंघर्ष को नेपाल में लोकतंत्र के लिए दूसरा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। लोकतन्त्र के लिए नेपाल में दूसरा आन्दोलन अप्रैल 2006 ई. में प्रारम्भ हुआ।

इस आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य लोकतन्त्र की पुनर्स्थापना करना था। सप्तदलीय गठबन्धन (एस. पी. ए.) ने काठमांडू में चार दिवसीय बंद का आह्वान किया, जिसमें माओवादी बागी व अन्य संगठन भी साथ हो लिए। 21 अप्रैल के दिन लगभग 3 से 5 लाख आन्दोलनकारियों ने राजा को अल्टीमेटम दे दिया। 24 अप्रैल 2006 को राजा ने आन्दोलनकारियों की समस्त माँगें मान ली। गिरिजा प्रसाद कोईराला को अन्तरिम सरकार का प्रधानमन्त्री बनाया गया। संसद की बहाली की गई, नई संविधान सभा के गठन की बात भी मान ली गयी। संसद ने विभिन्न कानून पारित कर राजा की अधिकांश शक्तियों को वापस ले लिया। 2008 में राजतन्त्र की समाप्ति के साथ नेपाल संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य बना। इस प्रकार नेपाल में लोकतन्त्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना हुई।

अथवा
आन्दोलनकारी समूह-आन्दोलनकारी समूह वे समूह होते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से चुनाव में भाग लेने की अपेक्षा राजनीति को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं। वे मार्च, हड़ताल तथा विरोध प्रदर्शन द्वारा सरकार का ध्यान किसी खास मुद्दे की तरफ खींचने का प्रयास करते हैं।

अधिकांश आन्दोलन राजनीतिक दल से सम्बद्ध नहीं होते लेकिन उनका एक राजनीतिक पक्ष होता है आन्दोलनों की राजनीतिक विचारधारा होती है तथा बड़े मुद्दों पर उनका राजनीतिक पक्ष होता है। राजनीतिक दल एवं दबाव समूह के मध्य का सम्बन्ध कई रूप धारण कर सकता है। जिसमें कुछ प्रत्यक्ष होते हैं तो कुछ अप्रत्यक्ष।

कभी-कभी आन्दोलन राजनीतिक दल का रूप ले लेते हैं। उदाहरण के लिए, विदेशी लोगों के विरुद्ध विद्यार्थियों ने असम आन्दोलन चलाया।
आन्दोलन की समाप्ति पर इस आन्दोलन ने ‘असम गण परिषद्’ नामक राजनीतिक दल का रूप ले लिया।

आन्दोलन के प्रकार-ये आन्दोलनकारी समूह निम्नलिखित प्रकार के होते है-
(1) एक ही मुद्दे से सम्बन्धित आन्दोलन-अधिकतर आन्दोलन किसी खास मुद्दे पर केन्द्रित होते हैं। ऐसे आन्दोलन एक सीमित समय-सीमा के भीतर किसी एक लक्ष्य को पाना चाहते हैं। ऐसे आन्दोलनों में नेतृत्व बड़ा स्पष्ट होता है और उनका संगठन भी होता है लेकिन ये बहुत अल्प समय तक ही सक्रिय रह पाते है। नेपाल में लोकतंत्र का आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन इसके अच्छे उदाहरण हैं।

(2) एक से अधिक मुद्दे वाले आन्दोलन-कुछ आन्दोलन ज्यादा सार्वभौम प्रकृति के होते हैं। इनमें एक से अधिक मुद्दे होते हैं तथा ये लम्बे समय तक चलते हैं। ऐसे आन्दोलनों के नियंत्रण अथवा दिशा-निर्देश के लिए कोई एक संगठन नहीं होता। पर्यावरण के आन्दोलन तथा महिला आन्दोलन ऐसे आन्दोलनों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 23.
दिये गये भारत के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित को अंकित कीजिए- [4]
(अ) रावतभाटा
(ब) नासिक
(स) नेवेली
(द) तलचर [4]
अथवा
दिये गये भारत के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित को अंकित कीजिए| [4]
(अ) गया
(ब) मार्मागाओ
(स) नेल्लोर
(द) अजमेर
उत्तर:
RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi 1

RBSE 10th Social Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

अथवा
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