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RBSE Class 12 Biology Model Paper Set 4 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 56
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश-
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – अ
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर का सही विकल्प चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
(i) निम्न में से किस में भूप्रसारीतने (Runner) द्वारा वर्षी प्रजनन होता है- [1]
(अ) आलू
(ब) दूब घास
(स) जल कुम्भी
(द) प्याज
उत्तर:
(ब) दूब घास
(ii) पेरिस्पर्म (परिभ्रूणपोष) होता है- [1]
(अ) सहायक कोशिकाओं का विघटित भाग
(ब) भ्रूणपोष का बाहरी भाग
(स) द्वितीयक केन्द्रक का विघटित भाग
(द) बीजाण्डकाय का अवशिष्ट भाग
उत्तर:
(द) बीजाण्डकाय का अवशिष्ट भाग
(iii) दो जीन जो 50% पुनर्योगज आवृति दर्शाती हैं, उनके लिए निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है? [1]
(अ) जीन भिन्न गुणसूत्रों पर स्थित हो सकती हैं
(ब) जीन मजबूती से संयोजी हैं
(स) जीन स्वतन्त्र अपव्यूहन दिखाती है
(द) यदि जीन एक ही गुणसूत्र पर विद्यमान है तो ये प्रत्येक अर्धसूत्री विभाजन में एक से अधिक बार विनियमित होती है।
उत्तर:
(ब) जीन मजबूती से संयोजी हैं
(iv) नाभिकीय अम्लों की इकाई है- [1]
(अ) अमीनो अम्ल
(ब) न्यूक्लियोसाइड
(स) पॉलीपेप्टाइड
(द) न्यूक्लियोटाइड।
उत्तर:
(द) न्यूक्लियोटाइड।
(v) किस संक्रामक रोग का पूर्ण उन्मूलन किया जा चुका है- [1]
(अ) टी बी
(ब) फाइलेरिया
(स) चेचक
(द) फाल्सीपैरम मलेरिया।
उत्तर:
(स) चेचक
(vi) पोम्फ्रेट है- [1]
(अ) एक समुद्री मछली
(ब) कृत्रिम वीर्य सेचन तकनीक
(स) उन्नत भेड़
(द) विदेशी नस्ल की मुर्गी।
उत्तर:
(अ) एक समुद्री मछली
(vii) किस ड्रग को स्मैक (smack) के नाम से जाना जाता है? [1]
(अ) भांग
(ब) चरस
(स) एल एस डी
(द) हेरोइन।
उत्तर:
(अ) भांग
(viii) पॉलीमरेज चेन रिएक्शन महत्त्वपूर्ण होती है- [1]
(अ) प्रोटीन संश्लेषण में
(ब) डी एन ए संश्लेषण में
(स) डी एन ए आवर्धन में
(द) जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस में।
उत्तर:
(स) डी एन ए आवर्धन में
(ix) जी एम पौधे उद्योगों को क्या प्रदान कर सकते हैं- [1]
(अ) स्टार्च
(ब) ईंधन
(स) औषधि
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) रानीखेत पक्षियों (मुर्गी) का एक …………… जन्य रोग है। [1]
(ii) जन्तु एवं पादपों को सर्वोत्तम सुरक्षा …………………. में मिलती है। [1]
(iii) जीवाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ ………………… होता है। [1]
(iv) जीव संख्या का पिरामिड ………………….. होता है। [1]
उत्तर:
(i) विषाणु।
(ii) राष्ट्रीय पार्क में।
(iii) DNAT
(iv) सीधा या उल्टा।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक पंक्ति में दीजिए-
(i)
संलग्न चित्र में प्रदर्शित आनुवंशिक विकार प्रभावी है या अप्रभावी? [1]
उत्तर:
अप्रभावी।
(ii) किन जीवों में मादाएँ लिंग क्रोमोसोम के लिए विषमयुग्मकी (heterogametic) होती हैं? [1]
उत्तर:
पक्षियों में मादा के लिंग क्रोमोसोम ZW होते हैं तथा यह विषमयुग्मजी होती हैं।
(iii) कुछ एलर्जनों से छींकों का आना तथा हाँफना शुरू हो जाता है। शरीर में इस प्रकार की अनुक्रिया न होना किसके कारण होता है? [1]
उत्तर:
इस अनुक्रिया का न होना प्रतिरक्षी तंत्र की न्यूनता, कमी अथवा विकार का परिचायक है।
(iv) मक्का में एस्पार्टिक अम्ल का उच्च स्तर उसके लिए किस प्रकार लाभकारी है? [1]
उत्तर:
यह उसे मक्का के तना छेदक के लिए प्रतिरोधी बनाता है।
(v) प्रथम पुनर्योगज डी एन ए अणु बनाने वाले वैज्ञानिकों का नाम लिखिए। [1]
उत्तर:
स्टेनले कोहेन व हरबर्ट बोयर।
(vi) कौन-सी आण्विक जाँच एंटीजन एंटीबडी पारस्परिक क्रिया पर आधारित है? [1]
उत्तर:
एलाइजा (ELISA)।
(vii) काष्ठ का अपघटन धीमा क्यों होता है? एक कारण बताइये। [1]
उत्तर:
काष्ठ प्रमुखत: लिग्निन (lignin) का बना होता है तथा अपघटन की दर अपरद के रासायनिक संघटन पर निर्भर करती है। लिग्निन व काइटिन का अपघटन धीमा होता है।
(viii) प्रमुख पृष्ठधारी वर्गकों को प्रदर्शित करते निम्न चित्र में a व b की पहचान करिये। [1]
उत्तर:
(a) स्तनधारी
(b) उभयचर
खण्ड – ब
लघु उत्तरीय प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा 50 शब्द)
प्रश्न 4.
पुरुष नसबंदी से आप क्या समझते हैं? यदि पुरुष नसबंदी करते समय चिकित्सक दायीं तरफ की शुक्रवाहक को बांधना भूल जाता है तो बन्ध्यकरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा? [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
पुरुष नसबन्दी- शल्य क्रिया द्वारा पुरुषों के वृषणकोष में एक छोटा-सा चीरा लगाकर शुक्र वाहिका या वासा डिफरेन्स को बीच से काटकर इसके दोनों शिरों को बाँध दिया जाता है। इसे पुरुष नसबंदी कहते हैं। ऐसा करने से शुक्राणुओं का स्थानान्तरण रुक जाता है।
पुरुष नसबन्दी (वेसेक्टॉमी) में दोनों ओर की शुक्रवाहक को काट कर उनके किनारों को अलग-अलग बाँधना अनिवार्य होता है। इसका कारण यह है कि पुरुषों में दो वृषण व दो शुक्रवाहक होते हैं। दोनों ओर की शुक्रवाहक बाद में मूत्रनली में मिल जाती है। अगर एक ओर की शुक्रवाहक नहीं बंधी है तो बन्ध्यकरण सफल नहीं होगा तथा पुरुष की संतान उत्पन्न करने की क्षमता बनी रहेगी।
प्रश्न 5.
एक स्त्री जिसे आगे गर्भावस्था नहीं चाहिए किस विधि को अपनाएगी और क्यों? हार्मोनी गर्भनिरोधकों के दुष्प्रभाव लिखिए। [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
स्त्रियों के लिए स्थायी गर्भनिरोध विधि नलबंदी है जिसमें दोनों ओर की अण्डवाहिनी को काटकर इसके दोनों सिरों को बाँध दिया जाता है। यह गर्भनिरोध की सर्वाधिक कारगर स्थायी विधि है। अन्य सभी गर्भ निरोध विधियाँ अस्थायी हैं।
हार्मोनी गर्भ निरोधकों के दुष्प्रभाव-
- जी मिचलाना
- उदरीय पीड़ा या पेट दर्द
- बीच-बीच में रक्तस्राव
- अनियमित माहवारी
- स्तन कैंसर की संभावना।
प्रश्न 6.
उत्तरी भारत के क्षेत्रों में गन्ने के उच्च एवं वांछनीय गुण जैसे कि मोटा तना तथा उच्च शर्करा वाले पौधे प्राप्त करने के लिए कौन-सी तकनीक अपनाई गई? समझाइये। निम्न की एक-एक उन्नत किस्म का नाम दीजिए-
(i) गेहूँ (ii) चावल (iii) बाजरा (vi) सरसों [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
उत्तर भारत में पहले सैकेरम बारबेरी प्रजाति का गन्ना बोया जाता था जिसमें शर्करा कम थी और तथा उपज भी कम होती थी। दक्षिण भारत में बोया जाने वाला सैकेरम आफिसिनेरम (Saccharum, officinarum) का तना मोटा था व शर्करा अंश ज्यादा था लेकिन यह उत्तर भारत में उगने में अक्षम था। इन दोनों प्रजातियों के संकरण से ऐसी किस्म प्राप्त की गई जो मोटे तने व उच्च शर्करा अंश वाली तो थी ही, साथ में उत्तर भारत में उगने में भी सक्षम थी।
(i) गेहूँ की उन्नत किस्म – HD3090
(ii) चावल की उन्नत किस्म – पूसा सुगन्ध-2
(iii) बाजरा की उन्नत किस्म – पूसा कम्पोजिट 443
(iv) सरसों की उन्नत किस्म – पूसा क्रान्ति।
प्रश्न 7.
विभज्योतक संवर्धन से आप क्या समझते हैं? एक केला शाक वाइरस से संक्रमित हो गया है। इस शाक से आप केले का स्वस्थ पौधा कैसे प्राप्त करेंगे? समझाइये। [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
विभज्योतक सम्वर्धन- ऊतक सम्वर्धन का एक महत्वपूर्ण प्रयोग संक्रमित/रोगी पौधों से स्वस्थ पौधों की प्राप्ति है। विषाणु से संक्रमित एक पादप में इसका शीर्षस्थ (apical) व अक्षीय (axillary) विभज्योतक (meristem) विषाणु मुक्त होता है। अत: मेरिस्टेम को एक्सप्लाण्ट के रूप में प्रयोग करने पर इससे विषाणु मुक्त पौधे प्राप्त होते हैं। इन मेरिस्टेम को इन विट्रो परिस्थितियों (in vitro conditions) में उगाने पर अनेक स्वस्थ पौधे प्राप्त हो जाते हैं। वैज्ञानिकों ने मेरिस्टेम सम्वर्धन द्वारा केला, गन्ना, आलू आदि के पौधे तैयार करने में सफलता पाई है।
किसी संक्रमित पौधे के भी शीर्षस्थ व कक्षस्थ विभज्योतक विषाणुमुक्त होते हैं। संक्रमित केले के इन भागों को कौतक या एक्सप्लांट के रूप में पर्याप्त पोषक पदार्थों वाले संवर्धन माध्यम में -निजीकृत परिस्थितियों में उगाने (अर्थात् ऊतक संवर्धन) से स्वस्थ केले के पौधे प्राप्त होंगे।
प्रश्न 8.
ई. कोलाई (E. coli) के वैक्टर का चित्र बनाकर उससें (a) ori (b) amp R तथा (c) rop को दर्शाइए तथा उनका महत्व बताइए [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
(a) Ori किसी प्लाज्मिड या अन्य वाहक का वह क्रम जहाँ से प्रतिकृतिकरण (replication) प्रारम्भ होता है ओरि (ori) कहलाता है। इस वाहक की कापी संख्या (copy number) के लिए यही अनुक्रम उत्तरदायी होता है। अगर किसी वाहक DNA को इस क्रम से जोड़ दिया जाए तो उसका भी प्रतिकृतिकरण प्रारम्भ हो जाता है।
(b) ampR एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन चयन योग्य चिह्नक (selectable marker) के रूप में प्रयोग होते हैं। दो एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन होने पर एक रूपान्तरकारी कोशिकाओं का अरूपान्तकारी कोशिकाओं से पहचानने में तथा दूसरा पुनर्योगज (recombinant) को अपुनर्योगज (non recombinants) से पहचानने में प्रयोग होता है।
(c) रोप (rop) उन प्रोटीनों को कोड करता है जो प्लाज्मिड के प्रतिकृतिकरण में भाग लेती हैं।
प्रश्न 9.
पुनर्योगज डी एन ए के निर्माण में प्रयोग किये जाने वाले रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम, डी एन ए को विशिष्ट पहचान स्थल पर काटते हैं। क्या हानि होती अगर वह डी एन ए को विशिष्ट पहचान स्थलों पर न काटते? [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
अगर रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम डी एन ए को विशिष्ट पहचान स्थलों की बजाय किसी सांयोगिक स्थान पर काटते तब वांछित जीन व प्लाज्मिड डी एन ए में जुड़ने योग्य अनुलग्नी या चिचिपे सिरे नहीं बनते। इन जुड़ने योग्य सिरों की अनुपस्थिति में पुनर्योगज डी एन ए निर्माण सम्भव नहीं होता।
प्रश्न 10.
आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित पादपों के किन्ही तीन संभावित अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए। [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
- पौधों में पीड़क प्रतिरोधकता (Pest resistance) का विकास जिससें रासायनिक पीड़कनाशियों पर निर्भरता में कमी आती है, जैसे बीटी कपास।
- बेहतर गुणवत्ता, बढ़ा पोषक मान जैसे विटामिन A समृद्ध चावल।
- फसल कटाई के बाद की हानि में कमी जैसे अधिक शैल्फ अवधि वाले टमाटर।
प्रश्न 11.
(A) अमेरिकी कम्पनी, एली लिली ने DNA प्रौद्योगिकी की जानकारी को मानव इंसुलिन उत्पादन में किस प्रकार प्रयुक्त किया?
(B) मानव शरीर में इंसुलिन अग्न्याशय द्वारा प्राक्हॉर्मोन/प्राक्इंसुलिन के रूप में स्रावित किया जाता है। प्राकइंसुलिन की पॉलिपेप्टाइड संरचना का व्यवस्थित आरेख नीचे दर्शाया गया है। शरीर में इस प्राक्इंसुलिन को क्रियाशील होने से पहले संसाधित होने की आवश्यकता होती है। नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) क्रियाशील (प्रकार्यात्मक) होने के लिए इसके संसाधित होने की अवधि में प्राक्इंसुलिन में होने वाले परिवर्तन लिखिए।
(ii) उस तकनीक का नाम लिखिए जिसके उपयोग द्वारा एली लिली नामक अमेरिकी कम्पनी ने मानव इंसुलिन का वाणिज्यिक स्तर पर उत्पादन किया।
(iii) क्रियाशील (प्रकार्यात्मक) इंसुलिन के दो पॉलिपेप्टाइड्स रासायनिक रूप से कैसे जुड़े होते हैं? [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
(A) अमेरिकी एली लिली कम्पनी ने सन् 1983 में इंसुलिन की A व B शृंखलाओं को कोड करने वाले डी एन ए खण्ड तैयार किये तथा इनकों जीवाणु एश्चीरिचिया कोलाई (E-coli) के प्लाज्मिड में प्रविष्ट करा दिया। इस प्रकार जीवाणु द्वारा A व B श्रृंखलाओं का अलग-अलग उत्पादन हुआ। इनको प्राप्त कर बाद में डाइसल्फाइड (disulfide)बंधों द्वारा जोड़कर संक्रिय इंसुलिन प्राप्त कर ली गई।
(B) (a) क्रियाशील होने के लिए प्राक्इंसुलिन C-पेप्टाइड को हटा दिया जाता है। जिससे यह क्रियाशील रूप में आ जाता है।
(b) पुनर्योगज DNA तकनीक (Recombinant DNA technology)
(c) क्रियाशील इंसुलिन के दो पॉलीपेप्टाइड्स डाइसल्फाइड बन्धों द्वारा जुड़े रहते हैं।
प्रश्न 12.
(a) खेतों में जुताई करने व अधिक भरा पानी निकाल देने से उत्पादकता क्यों बढ़ जाती है?
(b) अपरदहारी की उत्पादकता बढ़ाने में क्या भूमिका है?
(c) ऐसे सूक्ष्म जीवों के नाम (कोई दो) लिखिए जो भूमि उत्पादकता बढ़ाते हैं। [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
(a) जुताई (ploughing) व ड्रेनेज से खेत की मिट्टी में पर्याप्त हवा (aeration) प्राप्त हो जाती है। आक्सीजन, अपघटन करने वाले सूक्ष्मजीवों के लिए आवश्यक होती है। अतः अपघटन बढ़ने से पौधों को अधिक खनिज प्राप्त होते हैं। यह क्रिया नाइट्रीफिकेशन भी बढ़ाती है। इससे पौधों की जड़ों को भी पर्याप्त आक्सीजन मिल जाती है।
(b) अपरदहारी पादप अवशेष (अपरद) का अपघटन करके मृदा में मिला देते हैं जिससे मृदा की उर्वरता पढ़ जाती है। ऐसी मृदा में उगने वाले पौधों की उत्पादकता बढ़ जाती है।
(c) सूक्षमजीव-जीवाणु, कवक।
प्रश्न 13.
बर्फ से घिरे पहाड़ों पर मृत जानवरों के शव बिना किसी क्षति के वर्षों तक कैसे पड़े रहते हैं? [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
मृत जीव (कार्बनिक पदार्थ), सूक्ष्म जीवों जैसे कवक व जीवाणुओं की क्रिया द्वारा अपघटित होते हैं। इन सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन बाह्य कोशिकीय एन्जाइमों की मदद से होता है। एन्जाइमों की सक्रियता के लिए अनुकूल ताप (25° से 35°C) तथा पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। बर्फ से घिरे पहाड़ों पर तापमान कम होता है अर्थात सूक्ष्म जीवीय क्रियाएँ सम्पन्न नहीं होतीं, अत: अपघटन नहीं होता तथा जीव शरीर वर्षों तक वैसे ही पड़ा रहता है।
प्रश्न 14.
उष्ण कटिबन्धीय व उप उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में शीतोष्ण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक जैव विविधता का क्या कारण है? [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
भूमध्य रेखा के दोनों ओर अर्थात उष्ण कटिबंधीय व उप उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में ताप व वर्षा दोनों अनुकूल हैं। यहाँ प्रकाश (सौर ऊर्जा) की उपलब्धता शीतोष्ण क्षेत्र से अधिक है। अतः उत्पादकता. अधिक है। ये क्षेत्र लम्बे समय तक बाधा रहित रहे हैं जबकि शीतोष्ण क्षेत्रों में अनेक हिमयुग आये हैं। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में मौसमी परिवर्तन प्रबल नहीं हैं, अर्थात मौसम सदा एक-सा रहता है।
प्रश्न 15.
अन्य जन्तु समूहों की अपेक्षा उभयचरों का विलुप्ति के लिए अधिक भेद्य होने के क्या संभावित कारण हो सकते हैं? [1\(\frac {1}{2}\)]
उत्तर:
उभयचर (amphibians) को प्रजनन के लिए बाह्य जल आवश्यक होता है क्योंकि इनमें बाह्य निषेचन होता है अत: इनके पर्यावास विशिष्ट हैं। इनके लिए स्थल के साथ-साथ जलीय पर्यावास भी आवश्यक होता है। पूर्ण रूप से स्थलीय जन्तुओं के सामने यह समस्या नहीं है। उभयचरों के परभक्षी भी अधिक हैं।
खण्ड – स
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( उत्तर शब्द सीमा 100 शब्द)
प्रश्न 16.
(a) अलैंगिक जनन क्या है? इसका क्या महत्व है?
(b) क्लोन से आप क्या समझते हैं? क्लोन जीवों में विविधता परिलक्षित क्यों नहीं होती? दो कारण लिखिए। [3]
अथवा
निषेचन से आप क्या समझते हैं? प्राणियों की अण्ड प्रजक तथा सजीव प्रजक श्रेणियों को एक-एक उदाहरण देते हुए उन्हें वर्गीकृत करने का आधार लिखिए। [3]
उत्तर:
(a) अलैंगिक जनन–अलैंगिक जनन वह विधि है जिसमें केवल एक अकेला जीव संतति उत्पन्न करने की क्षमता रखता है। इस प्रकार के जनन से उत्पन्न हुई संतति बाह्य रूप, आकार-प्रकार व आनुवंशिक रूप से जनक के एकदम समान होती है। इन आकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से समान संतति को क्लोन (Clone) कहा जाता है। अलैंगिक जनन प्रजनन का सरलतम रूप है तथा प्राय: एक कोशिकीय जीवों, पादपों तथा सरल शारीरिक संगठन वाले जन्तुओं तक सीमित रहता है अर्थात उच्च अकशेरुकी व कशेरुकी जन्तु अलैंगिक प्रजनन नहीं करते। उच्च पादप वर्ग अलैंगिक जनन के विशिष्ट रूप, वर्धी प्रजनन का प्रदर्शन करता है। अलैंगिक जनन में युग्मकों का निर्माण व युग्मक संलयन नहीं होता। केवल समसूत्री विभाजन पर आधारित होने के कारण अलैंगिक जनन में आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं होती।
(b) क्लोन (Clone)- जनक के समान शारीरिक एवं आनुवंशिक लक्षणों वाले जीव को क्लोन कहते हैं अथवा अलैंगिक जनन से उत्पन्न संतति को जिसमें जनक के समान शारीरिक एवं आनुवंशिक लक्षण होते हैं, क्लोन कहते हैं। क्लोन जीवों में विविधता परिलक्षित नहीं होने के कारण-
- क्लोन जीवों का अलैंगिक विधि द्वारा जनन होता है जिसमें सिर्फ एकल जनक ही संतति उत्पन्न करने की क्षमता रखता है। अत: क्लोन जीवों में विविधता परिलक्षित नहीं होती है।
- अलैंगिक जनन में युग्मकों का निर्माण व युग्मक संलयन नहीं होता है। केवल समसूत्री विभाजन पर आधारित होने के कारण अलैंगिक जनन से उत्पन्न जीवों (क्लोन जीवों) में आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं होती है।
प्रश्न 17.
(a) समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी में अन्तर लिखिए।
(b) दो विषमयुग्मजी जनकों का क्रॉस कराया गया।मान लें दो स्थल (loci) सहलग्न हैं तो द्विसंकर क्रॉस में F1 पीढ़ी के फीनोटाइप लक्षणों का वितरण क्या होगा? [3]
अथवा
वंशावलि विश्लेषण क्या है? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है? [3]
उत्तर:
(ब) संकल्पनात्मक (Hypothetical) द्विसंकर क्रास। मीठी मटर में माना फूल का नीला रंग (B) लाल रंग (b) पर प्रभावी है तथा लम्बा परागकण (L) गोल परागकण (1) पर प्रभावी है।
इनके विषमयुग्मजी जनक होंगे-
(b) समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी में अन्तर
समयुग्मजी | विषमयुग्मजी |
1. यह किसी विशेषक (trait) के लिए शुद्ध होते हैं। | 1. विषमयुग्मजी किसी विशेषक के लिए शुद्ध नहीं होते, अर्थात संकर होते हैं। |
2. इनके अलील समान होते हैं जैसे TT, tt. | 2. इनके अलील असमान होते हैं। |
3. यह केवल एक प्रकार के युग्मक बनाते हैं। | 3. इनसे एक जीन की वंशागति में दो प्रकार के युग्मक बनते हैं। |
4. इनमें स्वपरागण होने पर केवल स्वयुग्मजी जीव बनते हैं। | 4. स्वपरागण होने पर प्रभावी समयुग्मजी TT, प्रभावी संकर Tt तथा अप्रभावी समयुग्मजी tt प्रकार के जीव बनते हैं। |
5. अतिरिक्त ओज का अभाव होता है। | 5. विषमयग्मजी जीवों में संकर ओज (hybrid vigour) पाया जाता है। |
प्रश्न 18.
(a) मनुष्य के शरीर में किस अवस्था में तथा किस प्रकार प्लाज्मोडियम प्रवेश करता है? संक्रमित मनुष्य के शरीर में परजीवी के जीवन वृत के अलैंगिक जनन को केवल फ्लोचार्ट के माध्यम से समझाइये। इस स्थिति में रोगी को तीव्र ज्वर क्यों होता है?
(b) मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं को रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए। [3]
अथवा
मलेरिया परजीवी के उस रूप का नाम लिखिए जिसमें वह क्रमशः (a) मानव शरीर में तथा (b) मादा एनाफिलीज के शरीर में प्रवेश करता है।
(ii) उन परपोषियों के नाम लिखिए जिनके भीतर मलेरिया परजीवी का क्रमशः लैंगिक व अलैंगिक जनन होता है।
(iii) मानव में मलेरिया रोग के लक्षण प्रकट करने के लिए उत्तरदायी टॉक्सिन का नाम लिखिए। यह रोग लक्षण आवर्ती प्रकार के क्यों हुआ करते हैं? [3]
उत्तर:
(a) (i) प्लाज्मोडियम की स्पोरोजोइट (Sporozoit) अवस्था मादा एनाफिलीज मच्छर की लार में उपस्थित होती है जो इस मच्छर द्वारा मनुष्य को काटने पर मनुष्य के रक्त में प्रवेश कर जाती है।
(ii) मादा एनाफिलीज की लार में उपस्थित स्पोरोजोइट
(iii) हीमोजोइन पदार्थ की मुक्ति तथा बड़ी संख्या में लाल रक्त कोशिकाओं का फटना ही कंपकंपी तथा बुखार के लिए उत्तरदायी है।
(b)
खण्ड – द
निबंधात्मक प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा 100 शब्द)
प्रश्न 19.
स्व अयोग्यता क्या है? स्व अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व परागण प्रक्रिया बीज निर्माण तक क्यों नहीं पहुँच पाती है? भिन्नकालपक्वता का संक्षिप्त परिचय दीजिए। [4]
अथवा
बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है? पादप जनन कार्यक्रम में वह कैसे उपयोगी है? [4]
उत्तर:
स्व असंगतता अथवा स्व अनिषेच्यता (स्व-अयोग्यता)
स्व असंगतता, स्व अनिषेच्यता (स्व बन्ध्यता) एक प्रकार की आनुवांशिक प्रक्रिया है जो अन्तः प्रजनन को रोकने का कार्य करती है। इस प्रक्रिया में किसी पुष्प के वर्तिकान पर उसी पुष्प के परागकण अथवा उसी पौधे पर स्थित किसी अन्य पुष्प के परागकण का या तो अंकुरण ही रुक जाता है अथवा पराग नलिका की वृद्धि बाधित हो जाती है। सीधे शब्दों में यह स्वपरागण को सफल न होने देने की प्रक्रिया है। बीज बनने के लिए निषेचन एक अनिवार्यता है। पुष्पीय पौधों मे परागण के बाद नर युग्मक को मादा युग्मक के पास तक लाने का कार्य पराग नलिका करती है। पराग नलिका द्वारा नर युग्मक का मादा युग्मक के पास तक पहुँचना साइफोनोगैमी कहलाता है। चूंकि स्व असंगतता प्रदर्शित करने वाले पौधों में स्व परागण के बाद या तो परागकण का अंकुरण ही रोक दिया जाता है, अथवा वर्तिका में ही पराग नलिका की वृद्धि बाधित कर दी जाती है। अत: नर युग्मक मादा युग्मक तक नहीं पहुँच पाता। दूसरे शब्दों में निषेचन के लिए अनिवार्य साइफोनोगैमी पर रोक लगने के कारण बीज निर्माण सम्भव नहीं हो पाता।
भिन्न कालपक्वता (Dichogamy) भिन्न कालपक्वता स्वपरागण रोकने अर्थात बहि: प्रजनन को बढ़ावा देने वाली प्रमुख युक्ति है। इस विधि में परागकोषों से परागकणों की मुक्ति के समय व वर्तिकाग्र की ग्राह्यता (receptivity) के समय में सामंजस्य नहीं होता। इसका अर्थ है कि परागकोष व वर्तिकाग्र अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं, अत: स्व परागण नहीं हो पाता। यह दो प्रकार की होती है-
(a) पुंपूर्वता (Protandry)-इसमें परागकण वर्तिकाग्र के ग्राह्य होने से पहले परिपक्व हो जाते हैं, जैसे साल्विया, सूरजमुखी।
(b) स्त्रीपूर्वता (Protogyny)-इस अवस्था में वर्तिकाग्र, परागकणों के परिपक्वन से पहले ही ग्राह्य (परिपक्व) हो जाते हैं, जैसे रेननकुलस।
प्रश्न 20.
डी.एन.ए. अंगुलिछापी क्या है? इस प्रक्रिया का सिद्धान्त, प्रमुख चरण तथा इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। [4]
अथवा
निम्न का संक्षिप्त वर्णन कीजिए [4]
(i) अनुलेखन (Transcription) (ii) बहुरूपता (Polymorphism)
उत्तर:
डी.एन.ए. अंगुलिछापी डी.एन.ए. फिंगर प्रिटिंग किन्हीं दो व्यक्तियों के डी.एन.ए. अनुक्रमों की तुलना करने का एक त्वरित व सरल उपाय है। दूसरे शब्दों में डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग, व्यक्तियों में डी.एन.ए. स्तर पर पाई जाने वाली विभिन्नताओं की पहचान करने की तकनीक है।
डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग का सिद्धान्त- आनुवंशिक बहुरूपता जो व्यक्तियों में वी एन टी आर (VNTR) के रूप में परिलक्षित होती है, का विश्लेषण ही इस तकनीक का आधार हैं। जीनोम का वह स्थान जहाँ एक छोटा न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम एक के बाद एक क्रम (tandem) में दोहराया जाता है, वी एन टी आर कहलाता है। यह लम्बाई में भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। ऐसी प्रत्येक विविधता एक अलील की तरह वंशागत होती है जिससे उन्हें उस व्यक्ति की या उसके माता-पिता की पहचान के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
प्रक्रिया तकनीक के निम्न पद हैं-
- डी.एन.ए. को पृथक करना (isolation)।
- रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज द्वारा डी.एन.ए. का पाचन (खण्डों में तोड़ना)।
- इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा डी.एन.ए. खण्डों का पृथक्करण (separation)।
- पृथक हुए डी.एन.ए. खण्डों को नायलॉन या नाइट्रोसैल्युलोज (nitrocellulose) जैसी संश्लेषित झिल्ली पर स्थानान्तरित करना। (सदर्न ब्लाटिंग-(Southern blotting))
- चिह्नित वी एन टी आर खोजी (labelled VNTR Probe) द्वारा संकरण (hybridization)।
- संकरित डी.एन.ए. खण्डों की आटोरेडियोग्राफी द्वारा जाँच (detection of hybridized DNA fragments by autoradiography)।
डी.एन.ए. फिंगर प्रिटिंग की उपयोगिता-
- डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग का अपराध विज्ञान में, रक्त कोशिका, त्वचा, लार, वीर्य, हेयर – फॉलिकिल आदि की जाँच द्वारा अपराधी/पीड़ित की पहचान करने में प्रयोग किया जाता है।
- इसका प्रयोग पैत्रिकता विवादों को सुलझाने में किया जाता है।
- आनुवंशिक विविधता के निर्धारण में जेनेटिक प्रोफाइल का प्रयोग होता है।
- जनसंख्या अध्ययन, जैव विकास, मानव इतिहास की खोज आदि हेतु भी इसी तकनीक का सहारा लिया जाता है।
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