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RBSE Class 12 Business Studies Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi
समय : 2: 45 घण्टे
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश :
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
- प्रश्न-पत्र के हिन्दी और अंग्रेजी रूपान्तरण में किसी प्रकार की त्रुटि/अन्तर/विरोधाभास होने पर हिन्दी भाषा के प्रश्न को सही मानें।
खण्ड- (अ)
(1 x 12 = 12)
बहुवैकल्पिक
प्रश्न 1.
नीचे दिए गये प्रश्नों के उत्तर का सही विकल्प चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखिये
(i) वस्तु की गुणवत्ता को मापने का प्रमापीकरण चिन्ह है [1]
(अ) NGOS
(ब) ISI
(स) Voice
उत्तर:
ISI
(ii) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम कौन-से वर्ष में बना? । [1]
(अ) 1986.
(ब) 1954
(स) 1976
उत्तर:
1986.
(iii) विपणन क्या आशय है?
(अ) क्रेता
(ब) विक्रेता
(स) विनिमय
उत्तर:
विनिमय
(iv) वह राशि जिसको उत्पाद अथवा सेवा को क्रय के प्रतिफल के रूप में क्रेता देता है, क्या कहलाता है? [1]
(अ) मूल्य-निर्धारण
(ब) पैकेजिंग
(स) ब्रांड
उत्तर:
मूल्य-निर्धारण
(v) किसी भी वस्तु के प्रचार-प्रसार को कहते हैं? [1]
(अ) लेबल
(ब) विज्ञापन
(स) बिलिंग
उत्तर:
विज्ञापन
(vi) राजकोष बिल मूलतः होते हैं [1]
(अ) अल्पकालिक फंड उधार के प्रपत्र
(ब) दीर्घकालिक फंड उधार के प्रपत्र
(स) पूँजी बाजार के प्रपत्र
उत्तर:
अल्पकालिक फंड उधार के प्रपत्र
(vii) भारत में कुल स्टॉक एक्सचेंज (शेयर बाजार) है [1]
(अ) 23
(ब) 24
(स) 21
उत्तर:
23
(viii) प्रबंध का प्राथमिक कार्य है [1]
(अ) नियोजन
(ब) संगठन
(स) निर्देशन
उत्तर:
नियोजन
(ix) नियोजन अनिश्चितता की जोखिम को [1]
(अ) कम करता है
(ब) बढ़ाता है
(स) अ व ब दोनों
उत्तर:
कम करता है
(x) भर्ती एक प्रक्रिया है [1]
(अ) सकारात्मक
(ब) नकारात्मक
(स) सहयोगात्मक
उत्तर:
सकारात्मक
(xi) चयन एक प्रक्रिया है [1]
(अ) उपयोगात्मक
(ब) नकारात्मक
(स) सकारात्मक
उत्तर:
नकारात्मक
(vii) वस्तु का उपयोग करने वाले को क्या कहते हैं? [1]
(अ) व्यापारी
(ब) विक्रेता
(स) उपभोक्ता
उत्तर:
उपभोक्ता
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करते हुए उत्तर पुस्तिका में लिखिए
(i) प्रबन्ध के क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धति को लागू करने की पहल …………… ने की थी। [1]
उत्तर:
एफ.डब्ल्यू. टेलर
(ii) राज्य आयोग के पास …….. के मामलों का दावा किया जा सकता है। [1]
उत्तर:
20 लाख रु. से अधिक एवं एक करोड़ रु. तक
(iii) …………. प्रबन्ध का सार है।[1]
उत्तर:
समन्वय
(iv) किसी उत्पाद के अनुरूपण एवं डब्ये अथवा आवरण के उत्पादन को ………….. कहते हैं। [1]
उत्तर:
पैकिंग या पैकेजिंग
(v) ….. एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कर्मचारियों के दृष्टिकोण, कौशल एवं योग्यता को बढ़ाया जा सकता है। [1]
उत्तर:
प्रशिक्षण
(vi) यह निश्चय करना कि भविष्य में क्या करना है और कैसे करना है ……………. कहलाता है। [1]
उत्तर
नियोजन
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: एक पंक्ति में दीजिए
(i) उपभोक्ता अदालत में कौन शिकायत कर सकता है?[1]
उत्तर:
एक उपभोक्ता या स्वैच्छिक उपभोक्ता संघ या उपभोक्ताओं का समूह अथवा उसका कोई सदस्य या केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार।
(ii) विपणन का अर्थ बताइये।
उत्तर:
विपणन का अर्थ वस्तुओं एवं सेवाओं को ग्राहकों/ उपभोक्ताओं तक पहुँचाने की क्रियाओं से है। [1]
(iii) भर्ती का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत बताइए। [1]
उत्तर:
भर्ती का एक महत्वपूर्ण स्रोत ‘रिक्त पदों का विज्ञापन’ करना है।
(iv) नियुक्तिकरण की प्रक्रिया को संक्षेप में समझाइए। [1]
उत्तर:
- मानव-शक्ति आवश्यकताओं का आकलन,
- भर्ती,
- आवेदकों में से चयन,
- अनुस्थापन तथा अभिन्यास,
- प्रशिक्षण तथा विकास।
(v) अनौपचारिक संचार की संक्षिप्त विवेचना कीजिए। [1]
उत्तर:
व्यक्तियों एवं समूहों के मध्य होने वाले संप्रेषण जो अधिकारिक/औपचारिक तौर पर नहीं होते हैं, उन्हें अनौपचारिक संचार कहते हैं।
(vi) संप्रेषण प्रक्रिया के किसी एक तत्व को लिखो। [1]
उत्तर:
प्रेषक या संदेश भेजने वाला अपने विचार अथवा सूचनाएँ प्राप्तकर्ता को भेजता है।
(vii) नेतृत्व की कोई दो विशेषता लिखो। [1]
उत्तर:
- नेतृत्व किसी व्यक्ति की दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता को दर्शाता है, एवं
- यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
(viii) आवश्यकता-क्रम अभिप्रेरणा का सिद्धांत किसने दिया? [1]’
उत्तर:
वश्यकता-क्रम अभिप्रेरणा का सिद्धान्त अब्राहम एच. मास्लो ने दिया।
(ix) निर्देशन के दो सिद्धांत लिखो। [1]
उत्तर:
- संगठनिक उद्देश्यों में तालमेल, एवं
- अनौपचारिक संगठनों का प्रयोग।
(x) बजट से क्या तात्पर्य है? [1]
उत्तर:
बजट से तात्पर्य आशान्वित परिणामों को संख्यात्मक मदों के रूप में व्यक्त करना है।
(xi) योजना कैसे दिशा प्रदान करती है, संक्षेप में लिखें। [1]
उत्तर:
योजना लक्ष्य अथवा उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से बताकर मार्गदर्शक रूप में यह बतलाती है कि किस दिशा में क्या कार्य करना 2
(xii) नियोजन की दो सीमाओं के बारे में लिखें। [1]
उत्तर:
- परिवर्तनशील वातावरण में नियोजन प्रभावी नहीं रहता है, एवं
- नियोजन दृढ़ता उत्पन्न करता है।
खण्ड- (ब)
(2 x 13 = 26)
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न संख्या 4 से 16 तक प्रत्येक दो अंक का है।
प्रश्न 4.
एक पेशे के रूप में प्रबंधन की मूल विशेषताएँ बताइए। [2]
उत्तर:
- भली-भाँति परिभाषित ज्ञान का समूह,
- पेशागत परिषद,
- नैतिक आचार-संहिता,
- सेवा का उद्देश्य
प्रश्न 5.
वैज्ञानिक प्रबन्धन को परिभाषित करें। किसी एक सिद्धांत के बारे में बताइए। [2]
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबंधन यह जानने की कला है कि आप श्रमिकों से क्या काम करवाना चाहते हैं और फिर यह देखना है कि वे उसको सर्वोत्तम ढंग एवं कम से कम लागत पर करे। विज्ञान, न कि अंगूठा राज्य सिद्धांत के अनुसार, वैज्ञानिक प्रबंधन में प्रत्येक कार्य वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण पद्धतियों के आधार पर किया जाता है और अंगूठा राज्य का बहिष्कार किया जाता है।
प्रश्न 6.
योजना की परिभाषा में मुख्य पहलू क्या है? 2. [2]
उत्तर:
योजना की परिभाषा में मुख्य पहलू-पहले से यह निश्चय करना है कि भविष्य में क्या करना है तथा कैसे करना है, प्रबंधन का प्राथमिक कार्य है, यह सर्वव्यापी एवं अविरत आदि।
प्रश्न 7.
भर्ती से क्या आशय है? यह चयन से अलग कैसे है? [2]
उत्तर: भर्ती से आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है जो किसी पद या कार्य के लिए संभावित कर्मचारियों की पहचान करती है। भर्ती एक सकारात्मक प्रक्रिया है क्योंकि इसमें अधिकतम उम्मीदवारों को कार्य के लिए आवेदन हेतु प्रोत्साहित किया जाता है, जबकि चयन एक नकारात्मक प्रक्रिया है क्योंकि इसमें अधिक उम्मीदवार निरस्त किये जाते हैं।
प्रश्न 8.
निर्देशित करने के किन्हीं तीन सिद्धांतों की व्याख्या करें। [2]
उत्तर:
- अधिकतम व्यक्तिगत योगदान के अनुसार, निर्देशन की तकनीकें सभी व्यक्तियों को संस्था में सहायता दें ताकि वे अपनी संभावित क्षमताओं का अधिकतम योगदान संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति में दे सकें।
- संगठनिक एवं कर्मचारियों के व्यक्तिगत उद्देश्यों में तालमेल हो।
- आदेश की एकता के सिद्धांत के अनुसार, कर्मचारी को केवल एक ही उच्चाधिकारी से आदेश मिलने चाहिए।
प्रश्न 9.
संचार की अर्थपूर्ण बाधाएँ क्या हैं? [2]
उत्तर:
- प्रबंधक द्वारा अधीनस्थों को निर्दिष्ट अर्थ नहीं समझा पाना,
- एक शब्द (मूल्य Value) के बहुत से अर्थ हो सकते हैं,
- त्रुटिपूर्ण रूपान्तर या अनुवाद,
- अस्पष्ट संकल्पनाएँ या अवधारणाएँ, और
- शारीरिक भाषा तथा हावभाव की अभिव्यक्ति की डिकोडिंग।
प्रश्न 10.
उपभोक्ता के दायित्व कौन-कौन से हैं? [2]
उत्तर:
- किसी भी वस्तु को खरीदने से पूर्व उसके बारे में – पूरी जानकारी करे,
- वस्तु के भुगतान की रसीद और गारंटी/ वारंटी कार्ड लेना न भूले,
- गुणवत्ता से समझौता न करें,
- व्यवसायी या दुकानदार से सही वस्तु खरीदने के चक्कर में अपमानित न हो।
प्रश्न 11.
व्यवसाय की दृष्टि से उपभोक्ता संरक्षण के महत्व को समझाइए। [2]
उत्तर:
- सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति जागरूकता लाने के लिए,
- व्यवसायियों की शोषण करने की प्रवृत्ति से मुक्ति दिलाने के लिए,
- व्यवसायियों की एकाधिकारी प्रवृत्ति से छुटकारा पाने के लिए, एवं
- अवांछनीय व्यापार-व्यवहारों को . रोकने के लिए।
प्रश्न 12.
विज्ञापन की परिभाषा दीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? [2]
उत्तर:
स्टार्च के शब्दों में, “विज्ञापन प्रायः मुद्रण के रूप में , किसी प्रस्ताव को जनता के सम्मुख प्रस्तुत करता है, ताकि उसे उसके अनुसार कार्य करने के लिए उकसाया जा सके।”
विज्ञापन की मुख्य विशेषताएँ-
- अवैयक्तिक प्रस्तुतीकरण, र
- सार्वजनिक प्रस्तुतीकरण,
- निरन्तर एवं गतिशील प्रक्रिया, एवं
- निश्चित विज्ञापक आदि हैं।
प्रश्न 13.
उत्पादों के विपणन में लेबलिंग के कार्यों का वर्णन कीजिये। [2]
उत्तर:
- लेबलिंग अनेक उत्पादों के विपणन में से किसी एक विशेष वस्तु की पहचान करता है,
- लेबलिंग वस्तुओं का वर्गीकरण करता है। जब किसी एक ही उत्पाद की कई किस्में होती हैं तो लेबिल ही बताता है कि पैक में किस किस्म का उत्पाद है,
- लेबलिंग विक्रय वृद्धि या संवर्द्धन भी करता है। ग्राहक कई बार सजावटी लेबल को देखकर ही उत्पाद क्रय करने को प्रोत्साहित होता है।
प्रश्न 14. पूँजी बाजार एवं मुद्रा बाजार के बीच अन्तर करें। [2]
उत्तर:
(1) पूँजी बाजार का उद्देश्य स्थायी एवं दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, जबकि मुद्रा बाजार का उद्देश्य अल्पकालीन एवं कार्यशील पूँजी की आवश्यकताओं को पूरा करना है।
(2) पूँजी बाजार के प्रमुख अंग समता अंश, पूर्वाधिकार अंश, ऋणपत्र एवं बाण्ड्स आदि हैं, जबकि मुद्रा बाजार के प्रमुख अंग याचना राशि, कोषागार विपत्र, व्यापारिक विपत्र, वाणिज्यिक पत्र तथा जमा प्रमाण-पत्र आदि हैं।
प्रश्न 15.
एक राजकोष (ट्रेजरी) बिल क्या है? [2]
उत्तर:
राजकोष बिल या निधि बिल को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा भारत सरकार की ओर से लघु अवधि की देयता के रूप में निर्गमित किया जाता है और इन्हें बैंकों एवं जनसाधारण को बेचा जाता है। निर्गमन समय 14 से 364 दिन तक का होता है। ये विनिमय साध्य विलेख होते हैं। इसलिए इन्हें स्वतंत्रतापूर्वक हस्तान्तरित किया जा सकता है।
प्रश्न 16.
“आदेश की एकता” का सिद्धांत किस प्रकार प्रबंधन के लिए उपयोगी है? [2]
उत्तर:
हेनरी फेयोल का यह सिद्धांत प्रबंधन के लिए कई प्रकार से उपयोगी साबित हुआ है। उनके अनुसार इस सिद्धांत का उल्लंघन होता है तो अधिकार प्रभावहीन हो जाते हैं, अनुशासन संकट में आ जाता है, आदेश में व्यवधान पड़ जाता है और स्थायित्व को खतरा हो जाता है।
खण्ड- (स)
(3 x 4 = 12)
प्रश्न संख्या 17 से 20 तक प्रत्येक प्रश्न तीन अंक का है।
प्रश्न 17.
विभिन्न द्रव्य बाजार प्रपत्रों की व्याख्या करें। [3]
उत्तर:
(1) वाणिज्यिक प्रपत्र-यह एक गैर-जमानती प्रतिज्ञा-पत्र है जिसे निगम एक निश्चित अवधि (12 महीनों तक) के लिए जारी करता है। चूंकि ये गैर-जमानती होते हैं, इसलिए इन्हें केवल उच्च साख फर्मों द्वारा ही निर्गमित किया जाता है।
(2) माँग या याचना मुद्रा-यह एक ऐसा प्रपत्र है जिसमें 1 से 14 दिनों तक ऋण लिया-दिया जाता है जिनकी जमानत प्रतिभूतियों द्वारा दी जाती है, एवं इस प्रकार के ऋणों की माँग आकस्मिक तौर पर पड़ती है।
(3) जमा प्रमाण-पत्र-यह एक निश्चित अवधि के लिए सावधि जमा के रूप में विनिमय साध्य प्रपत्र होता है। ये द्रव्य बाजार में खरीदे एवं बेचे जाते हैं, ये अपने अंकित मूल्य से कम मूल्य पर जारी किये जाते हैं तथा ये हस्तान्तरणीय होते हैं।
अथवा
एन.एस.ई. (N.S.E.) के विभिन्न खण्डों की व्याख्या करें।
उत्तर:
(1) पूँजी बाजार खण्ड-यह खण्ड कम्पनियों द्वारा – जारी किये गये अंशों, ऋणपत्रों तथा अन्य प्रतिभूतियों के लेनदेन के = लिए सुविधाएँ प्रदान करता है।
(2) थोक ऋण बाजार खण्ड यह खण्ड बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, वित्तीय विनियोजक संस्थाओं एवं मध्यस्थों को सार्वजनिक उपक्रमों के बाण्ड्स, यूनिट्स, ट्रेजरी बिल्स, सरकारी प्रतिभूतियों तथा माँग मुद्रा के भारी राशि के सौदे करने के लिए सुविधाएं प्रदान करता है।
प्रश्न 18.
विपणन की अवधारणा क्या है? यह वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रभावी विपणन में किस प्रकार सहायक है? [3]
उत्तर:
विपणन की अवधारणा विपणन कार्य उत्पादन के पूर्व ही प्रारम्भ हो जाता है क्योंकि उत्पादक उत्पादों का उत्पादन करने से पूर्व ग्राहकों की रुचियों व आवश्यकताओं का अध्ययन करता है, उनकी पसन्द-नापसन्द, समस्याओं, सुझावों एवं प्राथमिकताओं पर ध्यान देकर उत्पाद नियोजन करता है। विपणन अवधारणा वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रभावी विपणन में विभिन्न प्रकार से सहायक है, जैसे-तीव्र प्रतिस्पर्धा का सहज सामना, उत्पादों एवं सेवाओं की अधिक बिक्री, ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति और उत्पाद नियोजन की सफलता आदि।
अथवा
वितरण के माध्यम से आप क्या समझते हैं? वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण में उनके कार्य समझाइए।
उत्तर:
वितरण के माध्यम का अर्थ उन मार्गों से है जिनसे उत्पादक या निर्माता से उपभोक्ता तक वस्तुएँ पहुँचती है, जैसेउत्पादक → फुटकर व्यापारी → उपभोक्ता; उत्पादक → थोक व्यापारी → फुटकर व्यापारी → उपभोक्ता; उत्पादक → एजेन्ट → फुटकर व्यापारी → उपभोक्ता; उत्पादक → एजेन्ट + थोक व्यापारी → फुटकर व्यापारी → उपभोक्ता। वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण में वितरण के माध्यम के ये कार्य हैं-
- स्वत्व हस्तान्तरण,
- वित्त प्रबन्धन,
- सूचनाओं का विनिमय,
- विक्रय संवर्द्धन।
प्रश्न 19.
वैज्ञानिक कार्य-अध्ययन की निम्नलिखित की चर्चा करें [3]
- समय अध्ययन,
- गति अध्ययन, एवं
- कार्यविधि अध्ययन।
उत्तर:
(1) समय अध्ययन: यह भलीभांति परिभाषित कार्य को पूरा करने के लिए मानक समय (Standard Time) का निर्धारण करता है और कार्य के प्रत्येक घटक के लिए समय मापन विधियों का प्रयोग किया जाता है।
(2) गति अध्ययन: इसमें विभिन्न मुद्राओं की गति (जो किसी विशेष प्रकार के कार्य को करने के लिए की जाती है) का अध्ययन किया जाता है, जैसे-उठना, रखना, बैठना या फिर स्थान बदलना आदि।
(3) कार्यविधि अध्ययन: इसमें कार्य को करने की सर्वश्रेष्ठ पद्धति को ढूंढा जाता है, जैसे-कच्चा माल प्राप्त करने से लेकर तैया माल को ग्राहक तक पहुँचाने तक प्रत्येक का अध्ययन करना।
अथवा
‘सोपान श्रृंखला’ और ‘समतल संपर्क’ के सिद्धांत के व्याख्या करें।
उत्तर:
सोपान शृंखला सिद्धांत बताता है कि किसी भी संगठन में उच्चतम पद से निम्नतम पद तक औपचारिक अधिकार रेखा होत है। इसलिए संगठनों में अधिकार एवं संप्रेषण की शृंखला होर्न चाहिए जो ऊपर से नीचे तक हो एवं उसी के अनुसार प्रबंधक एट अधीनस्थ होने चाहिए, जैसे निम्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है
इस रेखाचित्र में एक अध्यक्ष (A) है जिसके अधीन दो अधिकार श्रृंखलाएँ एक में A से F तथा दूसरे में L से P है। यदि E को 0 से संप्रेषण करना है तो उसे D.C, B.A. L, M एवं N के मार्ग से चलना होगा क्योंकि यहाँ सोपान श्रृंखला सिद्धांत का पालन हो रहा है। फेयोल के अनुसार, औपचारिक संप्रेषण में सामान्यत: इस श्रृंखला का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। यदि कोई आकस्मिक स्थिति है तो E सीधे/प्रत्यक्ष 0 से संपर्क कर सकता है तो इसे समतल संपर्क (Gang Plank) का सिद्धांत कहेंगे। यह एक छोटा भाग है और ऐसे करने से संप्रेषण में देरी भी नहीं होगी।
प्रश्न 20.
कर्मचारियों के चयन के लिए प्रक्रिया की व्याख्या करें। [3]
उत्तर:
- आवेदन-पत्र में दी गई सूचना के आधार पर अयोग्य या अनुपयुक्त पद इच्छुकों की छंटनी करना,
- चयन परीक्षाएँ, जैसे-बुद्धि, कौशल, व्यक्तित्व, व्यापार एवं अभिरुचि आदि लेना,
- रोजगार साक्षात्कार औपचारिक होते हैं, जिसमें बातचीत करके यह मूल्यांकन किया जाता है कि आवेदक पद के उपयुक्त है कि नहीं,
- आवेदकों द्वारा भरी गयी सूचनाओं की जाँच करने एवं अतिरिक्त सूचना हेतु संदर्भित व्यक्तियों से सम्पर्क किया जाता है,
- जिन उम्मीदवारों ने परीक्षाएँ उत्तीर्ण की हैं, साक्षात्कार एवं संदर्भ परीक्षण हो चुका है, प्रबंधक चयन निर्णय लेते हैं,
- शारीरिक एवं डॉक्टरी परीक्षण करवाया जाता है
- नियुक्ति पत्र के माध्यम से नौकरी का प्रस्ताव दिया जाता है, फिर
- अंत में रोजगार समझौता किया जाता है।
अथवा
व्यक्ति एवं संगठन के लिए प्रशिक्षण के फायदे क्या हैं?
उत्तर: व्यक्ति के लिए प्रशिक्षण के ये फायदे हैं-व्यक्ति की जीवन-वृत्ति बेहतर बनती है, व्यक्ति की अधिक कमाई होती है, व्यक्ति मशीनों एवं यंत्रों को कुशलतापूर्वक संभाल लेता है, और वह विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं से बच सकता है, कर्मचारियों का एक ओर मनोबल बढ़ता है तो दूसरी ओर उन्हें संतुष्टि मिलती है।
खण्ड- (द)
(4 x 3 = 12)
प्रश्न संख्या 21 से 23 तक प्रत्येक प्रश्न चार अंक का है।
प्रश्न 21.
प्रबन्धन को कला एवं विज्ञान दोनों माना जाता है, व्याख्या करें। [3]
उत्तर:
प्रबंधन-कला एवं विज्ञान प्रबन्धन एक कला के रूप में-कला का अर्थ इच्छित परिणामों को पाने के लिए वर्तमान ज्ञान का व्यक्तिगत एवं दक्षतापूर्ण उपयोग करने से है। जार्ज आर. टैरी के शब्दों में, “चातुर्य के प्रयोग से इच्छित परिणाम प्राप्त करना ही कला है।” कला के आधारभूत लक्षण निम्नलिखित हैं-
- कुछ सैद्धांतिक ज्ञान पहले से हो।
- सैद्धांतिक ज्ञान का व्यक्तिगत योग्यता के अनुसार उपयोग किया जाये।
- कला व्यावहारिक होती है और रचनात्मकता पर आधारित होती है।
कला के उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रबंधन एक कला है क्योंकि
(1) एक सफल प्रबंधक उद्यम उपक्रम के दिन-प्रतिदिन के प्रबंध में कला का उपयोग करता है जो कि अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव पर आधारित होती है,
(2) प्रबंधन के कई सिद्धांत हैं, उनमें से कुछ सर्वव्यापी सिद्धांत भी हैं, जो उनको अधिकृत करते हैं। एक प्रबंधक इन वैज्ञानिक पद्धतियों, सिद्धांतों एवं ज्ञान को दी गई परिस्थिति, मामले अथवा समस्या के अनुसार अपने विशिष्ट तरीके से प्रयोग करता है, और
(3) एक प्रबंधक सैद्धांतिक एवं प्राप्त ज्ञान का परिस्थितिजन्य वास्तविकता के परिदृश्य में व्यक्ति एवं दक्षता के अनुसार उपयोग करता है। प्रबंधन एक विज्ञान के रूप में-विज्ञान का अर्थ एक क्रमबद्ध अध्ययन से है जो कारण एवं परिणाम में संबंध स्थापित करता है और अवलोकन तथा परीक्षणों पर आधारित होता है।
विज्ञान के आधारभूत लक्षण निम्नलिखित हैं।
- विज्ञान, ज्ञान का क्रमबद्ध अध्ययन समूह है। इसके सिद्धांत कारण एवं परिणाम (Reason and Result) के बीच में संबंध आधारित है।
- वैज्ञानिक सिद्धांतों को पहले अवलोकन के माध्यम से विकसित किया जाता है। इसके पश्चात् नियंत्रित परिस्थितियों में बार-बार परीक्षण कर उसकी जाँच की जाती है।
- वैज्ञानिक सिद्धांत, वैधता एवं उपयोग के लिए सार्वभौमिक होते हैं।
विज्ञान के उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रबंधन एक विज्ञान है क्योंकि:
- प्रबंधन भी एक क्रमबद्ध ज्ञान-समूह है। इसके अपने सिद्धांत एवं नियम हैं जो समय-समय पर विकसित हुए हैं,
- प्रबंधन के सिद्धांत, विभिन्न संगठनों में बार-बार के परीक्षण तथा अवलोकन के आधार पर विकसित हुए हैं, जैसे-एफ.डब्ल्यू. टेलर का वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत एवं हेनरी फेयोल का कार्यात्मक प्रबंधन के सिद्धांत आदि,
- प्रबंधन के सिद्धांत, विज्ञान के सिद्धांतों के समान विशुद्ध नहीं होते हैं और न ही उनका उपयोग सार्वभौमिक होता है। इसलिए इनमें परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किया जाता है।
किन्तु यह प्रबंधकों को मानक तकनीक प्रदान करते हैं, जिन्हें भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जा सकता है। __ निष्कर्षतः प्रबंधन को कला एवं विज्ञान दोनों माना जाता है क्योंकि प्रबंधन में कला एवं विज्ञान दोनों के लक्षण विद्यमान हैं और ये प्रबंधन को पूर्णता देने का कार्य भी करते हैं। इस संबंध में रॉबर्ट एन. हिलकर्ट ने कहा कि, “प्रबंधन क्षेत्र में कला एवं विज्ञान दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” अथवा “एक सफल उद्यमी को अपने लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से कुशलतापूर्वक हासिल करना होता है।” स्पष्ट करें। कथन का स्पष्टीकरण “एक सफल उद्यमी को अपने लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से कुशलतापूर्वक हासिल करना होता है।” इस कथन के स्पष्टीकरण में सर्वप्रथम यह कहा जा सकता है कि एक सफल उद्यमी वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो व्यावसायिक जोखिमों एवं अनिश्चितताओं का सामना करते हुए नये उद्यम/उद्योग की स्थापना करता है और सामयिक निर्णय लेता है।
द्वितीय स्पष्टीकरण यह है कि उसको अपने लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से कुशलतापूर्वक हासिल करने के लिए उसमें निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है
(1) शारीरिक एवं मानसिक गुण:
इसमें परिश्रमी, उत्तम स्वास्थ्य एवं कार्य करने की शक्ति, उत्साह, साहस, लगन एवं दूरदर्शिता, आत्मविश्वास, प्रभावी व्यक्तित्व, सतर्कता, विवेक एवं कल्पनाशक्ति आदि शामिल हैं।
(2) व्यावसायिक गुण:
इसमें व्यावसायिक अभिरुचि, प्रबन्धन योग्यता, तकनीकी ज्ञान, राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों का ज्ञान, वैधानिक ज्ञान, बाजार दशाओं का ज्ञान, व्यावसायिक योग्यता तथा शिक्षण-प्रशिक्षण और लेखाविधि का ज्ञान आदि शामिल हैं।
(3) सामाजिक गुण: इसमें मिलनसार, निष्ठावान, व्यवहार कुशल, आदर भाव और सहयोगी आदि शामिल हैं।
(4) नैतिक गुण: इसमें उत्तम चरित्र तथा ईमानदारी आदि शामिल हैं।
प्रश्न 22.
टेलर द्वारा दिये गये वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांतों की व्याख्या करें। उत्तर-टेलर द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत टेलर द्वारा दिये गये वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांतों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है। [3]
(1) विज्ञान, न कि अंगूठा राज्य (Science, not Rule of Thumb) इस सिद्धांत के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध में प्रत्येक कार्य वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण पद्धतियों के आधार पर किया जाता है और अंगूठा राज्य का बहिष्कार किया जाता है। इसके अंतर्गत विद्यमान परम्परागत तथा रूढ़िवादी पद्धतियों का परीक्षण किया जाता है और यदि वे विज्ञान की कसौटी पर सही उतरती हैं तो उनका उपयोग किया जाता है अन्यथा उनको समाप्त करके उनके स्थान पर नवीन पद्धतियों को विकसित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, वैज्ञानिक प्रवन्धन परम्परा अथवा अंधविश्वास पर आधारित न होकर विज्ञान पर आधारित है। वैज्ञानिक पद्धति का विकास प्रयोगों द्वारा किया जाता है।
(2) संगति, न कि असंगति (Harmony, not Discord)वैज्ञानिक प्रबंध का दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि इसके अंतर्गत संस्था के विभिन्न स्तरों पर पाई जाने वाली असंगतियों अर्थात् मेल न खाने वालों ‘या प्रतिकूल स्थितियों को समाप्त करके उन्हें अनुकूल बनाया जाता है। टेलर असंगतियों को दूर करने के इतने प्रबल समर्थक थे कि उन्होंने मशीनों की एकरूपता के संबंध में कहा था कि विभिन्न किस्मों, जिनमें अधिकांश उच्च कोटि की कुछ दूसरी कोटि की और तीसरी कोटि को क्यों न हों, की मशीनें लगाने की अपेक्षा यह कहीं अधिक अच्छा है कि एक ही प्रकार की मशीनें, चाहे वे निम्न कोटि की ही क्यों न हों, लगाई जायें। इससे कार्य परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन करना सरल हो जाता है तथा कार्य निष्पादन के दुर्बल स्थलों का तुरंत पता लग जाता है।
(3) सहयोग, न कि व्यक्तिवाद (Co-operation, not Individualism)-वैज्ञानिक प्रबंध का तीसरा सिद्धांत यह है कि इसके अंतर्गत व्यक्तिवाद के स्थान पर सहयोग की भावना को प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है। यह सहयोग न केवल कर्मचारियों में आपस में ही बल्कि कर्मचारियों और मालिकों में भी हो। टेलर ने कर्मचारियों तथा मालिकों के मध्य सहयोग स्थापित करने के लिए मानसिक क्रांति की आवश्यकता पर बल दिया है। मानसिक क्रांति से आशय है कि प्रबंधक अपना शोषणपूर्ण, पक्षपातपूर्ण एवं अमानवीय व्यवहार छोड़कर श्रमिकों के साथ मानवतापूर्ण एवं शोषण-रहित तथा पक्षपातरहित व्यवहार करें और उन्हें अधिकाधिक सुविधाएँ देने का प्रयत्न करें। मालिकों को भी यह समझना चाहिए कि श्रमिक भी कारखाने के अनिवार्य अंग हैं, अत: बिना उनके सहयोग के कारखाना चलाना संभव नहीं है।
(4) सीमित उत्पादन के स्थान पर अधिकतम उत्पादन (Maximum Output in Place of Restricted Output) वैज्ञानिक प्रबंध का चौथा सिद्धांत अधिकतम उत्पादन पर बल देता है। यह सीमित उत्पादन की विचारधारा का विरोधी है। उनके अनुसार जितना अधिक उत्पादन होगा उतना ही अधिक लाभ होगा। जितना अधिक लाभ होगा मालिकों एवं श्रमिकों दोनों को उतना ही अधिक लाभों में से हिस्सा मिलेगा। जब दोनों को भरपुर लाभ मिलेगा तो लाभ के वितरण संबंधी विवाद स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे।
(5) प्रत्येक व्यक्ति का चरम कुशलता एवं संपन्नता तक विकास (The Development of each man to his greatest Efficiency and Prosperity)-वैज्ञानिक प्रबंध में प्रत्येक श्रमिक को उसकी अधिकतम कुशलता एवं संपन्नता तक पहुँचाने का भरसक प्रयास किया जाता है। इस दृष्टि से श्रमिकों की भर्ती वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर की जाती है। तत्पश्चात् उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसके पश्चात् कार्य करने की उचित एवं सुविधाजनक परिस्थितियों के अंतर्गत श्रम-विभाजन के आधार पर समूचे कार्य का बँटवारा किया जाता है। ऐसा हो जाने पर जो व्यक्ति जिस कार्य को करने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है, उसे वही कार्य दिया जाता है तथा उन्हें प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति से पारिश्रमिक दिया जाता है। साथ में पदोन्नति के अवसर भी प्रदान किए जाते हैं। ऐसा करने से श्रमिकों में अधिकतम संपन्नता आती है।
अथवा
हेनरी फेयोल द्वारा दिये गये प्रबंध के सिद्धांतों की व्याख्या करें।
उत्तर:
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबंध के सिद्धांत हेनरी फेयोल द्वारा दिये गये प्रबंध के सिद्धांतों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती
(1) कार्य:
विभाजन का सिद्धांत-यह इस मान्यता पर आधारित है कि एक व्यक्ति सभी कार्यों को कुशलता से नहीं कर सकता है। अतः संगठन में प्रत्येक व्यक्ति को उसके ज्ञान, योग्यता, अनुभव एवं दक्षता के आधार पर कार्य सौंपना चाहिए। फलस्वरूप उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, उत्तरदायित्व झेलने में आसानी होती है और कम खर्च में अधिक कार्य भी होता है। यह सिद्धांत प्रबंधकीय एवं तकनीकी सभी कार्यों में प्रयुक्त किया जा सकता है।
(2) अधिकार एवं उत्तरदायित्व का सिद्धांत:
फेयोल के अनुसार, “अधिकार आदेश देने एवं सम्मान प्राप्त करने की शक्ति है।” अत: अधिकार एवं दायित्व के सिद्धांत से आशय संगठन के प्रत्येक स्तर पर अधिकार एवं दायित्व की स्पष्ट व्याख्या करने और प्रत्येक व्यक्ति को समुचित अधिकार तथा उत्तरदायित्व सौंपने से है। अतः अधिकार उत्तरदायित्व के अनुरूप होने चाहिए क्योंकि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू के समान होते हैं। चूँकि अधिकार एवं दायित्व संगठन के प्रत्येक स्तर पर आवश्यक होते हैं, इसलिए इनका भारार्पण क्षमता के अनुसार सोच-समझकर किया जाना चाहिए।
(3) अनुशासन का सिद्धांत:
अनुशासन कार्य के प्रति रुचि एवं दायित्व के प्रति जागरूकता का आधार होता है। अधीनस्थों द्वारा नेतृत्व को चुनौती एवं संस्था की नीतियों की अवहेलना या विरोध अनुशासनहीनता का प्रतीक है। अत: कर्मचारियों में आज्ञाकारिता, अधिकारियों के प्रति सम्मान की भावना एवं समझौते की शर्तों के अनुसार व्यवहार करना आवश्यक है लोयोल के अनुसार संगठन में अनुशासन बनाए रखने के लिए ये प्रयास किए जाने चाहिए (i) सभी स्तरों पर अच्छे पर्यवेक्षक हों, (ii) स्पष्ट एवं निष्पक्ष समझौते हों, (iii) पुरस्कार एवं सजाओं का न्यायिक क्रियान्वयन हो।
(4) आदेश की एकता का सिद्धांत:
फेयोल के अनुसार, “एक कर्मचारी को केवल एक ही अधिकारी द्वारा आदेश प्राप्त होने चाहिए।” अर्थात् एक अधीनस्थ को एक समय में एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त होना चाहिए क्योंकि दो अधिकारियों से एक साथ आदेश मिलने से किसी एक के आदेश का ही पालन हो पाएगा और दूसरे की अवज्ञा ही होगी, और अनुशासनहीनता फैलने का भी डर रहता है।
(5) निर्देश की एकता का सिद्धांत:
इस सिद्धांत के अनुसार समान उद्देश्य रखने वाली क्रियाओं के समूह को एक ही योजना तथा एक ही अध्यक्ष द्वारा (One head, One Plan) निर्देशित किया जाना चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि एक योजना के संबंध में एक व्यक्ति का ही प्रबंध, निर्णय एवं निर्देशन होना चाहिए ताकि कार्य की एकता (Unity of Action), समन्वय एवं प्रयासों का केन्द्रीकरण होना चाहिए।
(6) व्यक्तिगत हितों के स्थान पर सामान्य हित को सर्वोच्चता का सिद्धांत:
प्रबंध के इस सिद्धांत की यह मान्यता है कि व्यक्तिगत हितों की तुलना में सामान्य हितों को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। फेयोल के अनुसार, “व्यक्तिगत हित, सामान्य हितों के अधीन होते हैं।” यद्यपि व्यक्तिगत एवं सामूहिक हितों में समन्वय रखना प्रबंधकों का प्रमुख दायित्व है, फिर भी इनमें अवरोध उत्पन्न हो जाए तो सामूहिक हितों की रक्षार्थ व्यक्तिगत हितों को समर्पित कर देना चाहिए।
इसके अतिरिक्त फेयोल ने इसके लिए ये उपाय बताए हैं।:
- अधिकारियों को अपने व्यवहार में दृढ़ता लानी चाहिए और अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए,
- आपसी ठहराव, जहाँ तक संभव हो, न्यायोचित होना चाहिए, एवं
- निरीक्षण की निरन्तर व्यवस्था होनी चाहिए।
(7) पारिश्रमिक का सिद्धांत:
पारिश्रमिक के सिद्धांत के अनुसार कर्मचारियों को उनकी सेवाओं के प्रतिफलस्वरूप पर्याप्त, समुचित, न्यायपूर्ण एवं संतोषजनक पारिश्रमिक प्रदान करना चाहिए ताकि वे पूर्ण लगन, निष्ठा एवं रुचि से कार्य करें। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों को पारिश्रमिकों के साथ-साथ अमौद्रिक प्रेरणाएँ भी देनी चाहिए। परिणामस्वरूप वे स्थायी रहकर कार्य कर सकें।
(8) केन्द्रीकरण का सिद्धांत:
फेयोल के अनुसार, अधिकारों का केन्द्रीकरण न अच्छा है और न ही बरा, इसकी मात्रा उपक्रम की प्रकृति, प्रबंध के मूल्य एवं अधीनस्थ कर्मचारियों की योग्यता आदि पर निर्भर करती है। याद उपक्रम का आकार छोटा है तो प्रबंधकों में केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति पाई जाएगी। इसके विपरीत यदि उपक्रम का आकार बड़ा है तो अधिकारों का विकेन्द्रीकरण आवश्यक होगा। अतः प्रबंधकों को संगठन के सफल संचालन हेतु अधिकारों के केन्द्रीय रूप तथा विकेन्द्रीकरण में एक सर्वोत्तम अनुपात (Optimum Proportion) रखना चाहिए।
(9) सोपानिक श्रृंखला का सिद्धांत:
स्केलर चेन के सिद्धांत का तात्पर्य उच्चाधिकारियों से निम्नाधिकारियों के मध्य संपर्क में आने वाले किसी भी अधिकारी का उल्लंघन (By pass) या अनादर नहीं करना चाहिए। ऐसा न होने पर असंतोष फैलता है एवं असहयोग की भावना बढ़ती है।
इस रेखाचित्र में A सर्वोत्तम स्तर पर है एवं उसके अधीन BCDE एवं FGHI है। इस सिद्धांत के अनुसार यदि D, H को सूचना देना चाहता है या H, D से संपर्क करना चाहता है क्रम नीचे से ऊपर होता हुआ करना होगा। लेकिन यह उचित नहीं है। ऐसी दशा में उच्चाधिकारियों की अनुमति से प्रत्यक्ष संपर्क किया जा सकता है जिसे फेयोल पुल कहा जाता है।
(10) व्यवस्था का सिद्धांत:
फेयोल ने कहा कि, प्रत्येक वस्तु एवं मनुष्य का स्थान निश्चित ही नहीं होना चाहिए अपितु वह वस्तु एवं मनुष्य उसी स्थान पर रहने चाहिए। ऐसा करने से वस्तुओं का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को वस्तुएँ ढूँढने की आवश्यकता नहीं होगी और शीघ्र ही वे वस्तुएँ मिल जाएंगी। परिणामस्वरूप क्रियाओं के निष्पादन की व्यवस्था बनी रहेगी।
(11) समता का सिद्धांत समता का सिद्धांत कर्मचारियों के साथ न्याय, सहानुभूति एवं समानता का व्यवहार करने पर बल देता है। अतः प्रबंधकों को चाहिए कि वे कर्मचारियों के साथ पक्षपात एवं भाई-भतीजावाद का सर्वथा परित्याग करके, निष्पक्ष, मित्रतापूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार रखे। फलस्वरूप प्रबंधकों एवं कर्मचारियों के मध्य विश्वास की भावना होगी और उनकी निष्ठा का स्तर भी ऊँचा
होगा।
(12) कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थिरता का सिद्धांतप्रबंध के इस सिद्धांत का मानना है कि यदि व्यक्तियों में कार्य पूरा करने की योग्यता है तो उनकी कार्य पर स्थिरता बनी रहनी चाहिए। इनमें बार-बार परिवर्तन या बदली न हो, वरन् वे संगठन में स्थायी रूप से कार्यरत रहें ताकि वे पूर्ण आस्था, निष्ठा एवं आत्मविश्वास के साथ कार्य कर सकें। इसलिए फेयोल ने कहा कि, “अत्यन्त कुशाग्र प्रबंधक जो केवल आते-जाते हैं, की अपेक्षा एक साधारण प्रबंधक ज्यादा श्रेष्ठ है, जो संस्था में दीर्घ अवधि तक रुकता है।”
(13) पहलपन का सिद्धांत: कर्मचारियों को कार्य संबंधी योजना पर सोचने, प्रस्तावित करने एवं उसको कार्य रूप देने की स्वतंत्रता ही पहल शक्ति होती है जिसके फलस्वरूप कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं उनके उत्साह में वृद्धि होती है। यदि कर्मचारी अपने कार्यों के प्रति सजग रहे और उसमें पहल शक्ति की भावना का विकास किया जाये तो संस्था के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
(14) सहयोग की भावना का सिद्धांत: इसके अनुसार, सभी कर्मचारियों को एक टीम के रूप में कार्य करना चाहिए।
- इसके लिए तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए40 आदेश की एकता के सिद्धांत का पालन करना,
- फूट डालो एवं शासन करो की नीति का परित्याग करना, एवं
- लिखित संप्रेषण के दोषों को दूर करना।
प्रश्न 23.
प्रभावी संचार के लिए आम बाधाएँ क्या हैं? उन्हें दूर करने के उपायों का सुझाव दें। [3]
उत्तर:
प्रभावी संचार के लिए आम बाधाएँ:
- संचार में अनिच्छा यह देखने में आया है कि कर्मचारी या अधीनस्थ अपने अधिकारियों से संचार के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं। ऐसी दशा में संचार प्रभावी नहीं हो पाता है।
- सत्ता के सामने चुनौती का भय यदि कोई अधिकारी यह अनुमान लगाता है कि कोई विशेष सूचना या संचार उसकी सत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है, तो वह उस संचार को या तो रोक सकता है अथवा प्रतिबंध लगा देता है।
- अधिकारी का अपने अधीनस्थों में विश्वास का अभाव-यदि अधिकारी को अपने अधीनस्थों की कुशलता में विश्वास नहीं होता है अथवा वह आश्वस्त नहीं होता है तो वह उनके विचार तथा सुझाव को नहीं मानता है।
- नियम एवं अधिनियम का सख्त होना संगठन में सख्त नियम एवं अधिनियम संचार के लिए आम बाधा है। इसके अलावा निर्दिष्ट माध्यमों से संचार देरी से क्रियान्वित हो सकते हैं।
- संगठनिक नीति यदि संगठनिक नीति अस्पष्ट और संचार के स्वतंत्र प्रवाह में सहायक नहीं है तो प्रभावी संचार में बाधा आ सकती है।
- संगठनिक सुविधाएँ यदि संचार के लिए स्पष्ट, निरन्तर एवं समय पर सुविधाएँ उपलब्ध न हो तो प्रभावी संचार में बाधा आती है। यहाँ सुविधाओं में शिकायत पेटी, सुझाव पेटी, निरंतर सभाएं, कार्य-संचालन में पारदर्शिता और सामाजिक तथा सांस्कृतिक जनसमूह आदि शामिल हैं।
- संगठन-संरचना में जटिलता किसी संस्था में प्रबंध के स्तरों की संख्या अधिक होती है तो वहाँ न केवल संचार में देरी होती है, अपितु उसमें विकार भी आ सकता है। इसका कारण स्पष्ट है कि सूचनाएँ विभिन्न स्तरों से गुजरती हैं, उतनी ही क्षय होती है।
- संदेश की अनुपयुक्त अभिव्यक्ति संदेश की अनुपयुक्त अभिव्यक्ति, अपर्याप्त शब्द भंडार के कारण, गलत शब्दों के प्रयोग से और आवश्यक शब्दों के प्रयोग न करने के कारणों से हो सकती है तो प्रभावी संचार के लिए आम बाधा है।
- विभिन्न अर्थों सहित संकेतक-एक शब्द के बहुत से अर्थ भी प्रभावी संचार में बाधक होते हैं अर्थात् प्राप्तकर्ता को शब्द के उसी अर्थ को समझना है जो प्रेषक उसे समझाना चाहता (पारस्परिक समझ) है।
- त्रुटिपूर्ण रूपान्तर या अनुवाद-सामान्यतः संचार अंग्रेजी एवं हिन्दी भाषा में किया जाता है। यदि संचार का मसौदा अंग्रेजी में किया जाता है तो कर्मचारियों को समझाने के लिए इसका रूपान्तर हिन्दी भाषा में करना आवश्यक है। यदि अनुवादक दोनों ही भाषाओं में पारंगत नहीं है तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
- अविश्वास संचारक एवं संदेश प्राप्तकर्ता के मध्य अविश्वास प्रभावी संचार के लिए एक बाधक है क्योंकि एक-दूसरे के संदेश को उसके मूल अर्थों में नहीं समझ पाएंगे।
- असामयिक मूल्यांकन यह भी देखा गया है कि कुछ स्थितियों में लोग संदेश के अर्थ का पहले ही मूल्यांकन कर लेते हैं, इसके पहले कि प्रेषक-अपना संदेश पूर्ण करे। ऐसी स्थिति में संचार कितना ही महत्त्वपूर्ण हो, वह प्रभावी नहीं हो सकता है।
प्रभावी संचार की आम बाधाओं को दूर करने के उपायों के निम्नलिखित सुझाव दे सकते हैं:
- प्रबंधक को न केवल एक अच्छा श्रोता होना चाहिए अपितु उसको ऐसा संकेत भी देना चाहिए कि वह अपने अधीनस्थों वसुनने में रुचि ले रहा है और उनके हितों को ध्यान में रख रहा
- प्रबंधकों को अपना संचार अधीनस्थों की शिक्षा एवं उनकी समझ के स्तर के अनुसार ही व्यवस्थित करना चाहिए।
- किसी भी समस्या को अधीनस्थों को बताने से पहले अधिकारी को स्वयं ही सभी परिप्रेक्ष्य से समस्या स्पष्ट होनी चाहिए।
- नियमित रूप से अधीनस्थों को दिये गये आदेशों का न केवल अनुसरण होना चाहिए अपितु उनका पुनरावलोकन भी होना चाहिए।
- सामान्यतः संचार की आवश्यकता वर्तमान प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए पड़ती है। इसलिए सामंजस्य बनाये रखने के लिए संचार करते समय संस्था के भविष्य के लक्ष्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
- संदेश को वास्तविक रूप में संचालित करने से पूर्व, यह बेहतर है कि संचार की योजना अन्य संबंधित लोगों को सम्मिलित करके बनानी चाहिए।
- अन्य लोगों को संदेश व्यक्त करते समय यह बेहतर है कि जिनके साथ संचार करना है, उन लोगों की रुचियों तथा आवश्यकताओं की जानकारी होनी चाहिए।
- संदेश की विषय-वस्तु, शैली एवं भाषा-प्रयोग ऐसा होना चाहिए, जो संदेश प्राप्तकर्ता की समझ में आ जाये और सुनने वाले की भावनाओं को ठेस भी न लगे।
- संचार की प्रक्रिया को प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर सुधारा जाना चाहिए ताकि संदेश प्रेषक अधिक प्रतिक्रियात्मक बन सके।
- किसी भी समस्या का अध्ययन पूरी गहराई से होना चाहिए, तथा उसे इस प्रकार रखना चाहिए कि अधीनस्थों को स्पष्ट रूप से प्रेषित हो।
अथवा
मेस्लो द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा पदानुक्रम सिद्धांत की आवश्यकता को समझाइए।
उत्तर:
मेस्लो द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा पदानुक्रम सिद्धांत की आवश्यकताएँ मेस्लो द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा पदानुक्रम सिद्धांत की आवश्यकताओं को रेखाचित्र एवं उनका विवेचन कर इस प्रकार समझाया जा सकता है
अहंकी निम्नस्तरीय शारीरिक PM आत्म-विकास स्वयं अनुभूति, स्वतः विकास, की आवश्यकताएँ। स्वसन्तुष्टि एवं स्व-परिपूर्णता आत्म-सम्मान, आत्म विश्वास, 6/] आवश्यकताएँ प्रशंसा, मान्यता, स्वतन्त्रता एवं पद सामाजिक आवश्यकताएं प्यार, मिकता, आत्मीयता, अपनत्व सुरक्षात्मक शारीरिक नौकरी में स्थायित्व, चिकित्सा लाभ, दुर्घटना आवश्यकताएँ मानसिक लाभ, बीमा लाभ, पेन्शन एवं प्रॉविडन्ट फण्ड रोटी, कपड़ा, मकान, पानी, हवा एवं यौन सम्पर्क आवश्यकताएँ
(1) शारीरिक आवश्यकताएँ अथवा जीवन: निर्वाह आवश्यकताएँ (Psysiological Needs):
जीवन-निर्वाह आवश्यकताएँ मास्लो की आवश्यकताओं की क्रमबद्धता में सबसे प्रथम स्तर की आवश्यकताएँ हैं। ये मनुष्य एवं पशु दोनों की होती – हैं। इसमें रोटी, कपड़ा, मकान, पानी, हवा एवं यौन सम्पर्क आदि प्रमुख हैं। ये आवश्यकताएँ मनुष्य को सर्वाधिक अभिप्रेरित करती हैं। मनुष्य को इन आवश्यकताओं की अनुभूति बार-बार होती है। मनुष्य को एक बार इन आवश्यकताओं से संतुष्ट हो जाने का अर्थ यह नहीं होता कि ये आवश्यकताएँ सदैव के लिए समाप्त हो गई या फिर उत्पन्न नहीं होंगी। इन आवश्यकताओं की पूर्ति होने पर ही मनुष्य की अन्य आवश्यकताएँ जन्म लेती हैं। लेकिन इस संबंध में यह महत्वपूर्ण है कि ज्योंही ये आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, त्योंही ये मनुष्य को अभिप्रेरित नहीं करती क्योंकि मेकग्रेगर ने कहा कि, “एक संतुष्ट आवश्यकता व्यवहार के लिए अभिप्रेरक नहीं है।”
(2) सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ (Safety Needs):
प्रथम आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् मानव सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की संतुष्टि की ओर अपना ध्यान केंद्रित करता है। ये आवश्यकताएँ
मूलतः आत्मसुरक्षा से संबंधित होती हैं। इनमें आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक, जैसे-हत्या और खतरा, नौकरी में स्थायित्व, चिकित्सा लाभ, दुर्घटना लाभ, पेंशन, बेरोजगारी, वृद्धावस्था एवं प्रॉवीडेन्ट फण्ड आदि आवश्यकताएँ हैं। इनके अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक सुरक्षात्मक आवश्यकताओं में वर्तमान एवं भावी पर्यवेक्षकों का त्याय, कार्य की स्वतंत्रता एवं नवीन परिवर्तनों में समायोजन आदि ऐसी आवश्यकताएँ भी हैं, जिनकी मानव संतुष्टि चाहता है।
(3) सामाजिक आवश्यकताएँ (Social Needs):
मानव की जीवन-निर्वाह और सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की संतुष्टि हो जाने के पश्चात् सैजिक आवश्यकताएँ उसके व्यवहार को प्रभावित करने वाली सबसे प्रमुख घटक होती हैं। इन आवश्यकताओं में प्यार, मित्रता, आत्मीयता एवं अपनत्व आदि हैं, जिनमें मनुष्य अपने संगठन का सम्मानित सदस्य बनना चाहता है। इसके अतिरिक्त इसमें ये आवश्यकताएँ भी सम्मिलित हैं कि वह अन्य व्यक्तियों से मदद की आशा करता है और संगठन में अपनी स्थिति को देखना चाहता है। यदि इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि नहीं होती है, तो मनुष्य के कार्य में बाधक, विरोधी एवं असहयोगी बन जाता है। अतः मनुष्य को इन आवश्यकताओं से संतुष्टि प्राप्त होना आवश्यक है।
(4) अहम् या स्वाभाविक आवश्यकताएँ (Egoistic Needs):
आवश्यकताओं की क्रमबद्धता में व्यक्ति की सामाजिक आवश्यकताएं संतुष्ट हो जाने पर अहं या स्वाभाविक आवश्यकताएँ जन्म लेती हैं। इनमें आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास, प्रशंसा, सभ्यता, स्वतंत्रता एवं पद, प्रमुख बनने की इच्छा, प्रतिष्ठा पाने की इच्छा तथा ख्याति प्राप्त करने की इच्छा आदि प्रमुख हैं। मनुष्य की इन सभी आवश्यकताओं की संतुष्टि होना जरूरी नहीं है। इन आवश्यकताओं में कुछ तो जीवनपर्यन्त सन्तुष्ट ही नहीं हो पाती। लेकिन कुछ अवश्य संतुष्ट हो जाती हैं। यद्यपि संगठन कर्मचारियों की इन आवश्यकताओं की संतुष्टि पर्याप्त महत्व रखती है।
(5) आत्म-विकास आवश्यकताएँ (Self Actualisation Needs):
मास्लो की आवश्यकता की क्रमबद्धता में मानव की आत्मविकास आवश्यकताएँ अंतिम स्तर पर हैं। प्रत्येक व्यक्ति में यह इच्छा होती है कि वह जितना बनने की योग्यता चाहता है, वह उसके योग्य सब कुछ बन जाये। इसी इच्छा को हम आत्मविकास की आवश्यकता कहते हैं। इसके अंतर्गत स्वयं अनुभूति, स्वत: विकास, स्व-संतुष्टि एवं स्व-परिपूर्णता आदि आवश्यकताएँ सम्मिलित हैं। ये आवश्यकताएं सर्वश्रेष्ठ प्रकार की होती हैं तथा क्रम में भी सबसे ऊपर होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति आत्मविकास की सीढ़ी तक नहीं पहुंच पाता है। इसलिए ये आवश्यकताएँ प्रायः दबी होती हैं। इन्हें जाग्रत करने के लिए व्यक्ति को सजगता रखनी होती है एवं प्रयास करने पड़ते हैं। मास्लो ने इन आवश्यकताओं को जीवन लक्ष्य माना है क्योंकि ये व्यक्ति की परम अभिव्यक्ति है जो एक व्यक्ति बन सकता है। इस संबंध में डॉ. मास्लो ने कहा कि, “एक संगीतकार को संगीत बनाना चाहिए, एक कलाकार को पेन्ट करना चाहिए, एक कवि को लिखना चाहिए, यदि वह अन्ततोगत्वा प्रसन्न होना चाहता है। एक व्यक्ति जो भी हो सकता है, उसे वह होना चाहिए। इस आवश्यकता को आत्मविकास की आवश्यकता कह सकते हैं।”
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