Students must start practicing the questions from RBSE 12th Drawing Model Papers Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Drawing Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45
पूर्णांक : 24
मिनट परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – अ
प्रश्न 1.
दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें-
(i) राजपूत पेंटिंग का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) आनन्द कुमार स्वामी
(ब) ओ. सी. मागुलो
(स) केशव दास
(द) सावन्त सिंह
उत्तर:
(अ) आनन्द कुमार स्वामी
(ii) 1605 में चावण्ड में निर्मित रागमाला चित्रों का चित्रकार कौन था? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) साहिबदिन
(ब) निसारदिन
(स) मोहन सिंह
(द) सेवक राम
उत्तर:
(ब) निसारदिन
(iii) मुगल कालीन चित्रकला के प्रमुख विषय क्या थे? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) दरबारी चित्रण
(ब) पशु-पक्षी चित्रण
(स) व्यक्ति चित्रण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
(iv) पहाड़ी कला का केन्द्र इनमें से कौन सा नहीं है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) काँगड़ा
(ब) बसोली
(स) किशनगढ़
(द) गुलेर
उत्तर:
(स) किशनगढ़
(v) अहमदनगर शैली से प्राप्त युद्ध दृश्यों की संख्या कितनी है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) 10
(ब) 12
(स) 08
(द) 20
उत्तर:
(ब) 12
(vi) मधुबनी लोक शैली का संबंध किस स्थान से है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) जयपुर
(ब) लखनऊ
(स) आसाम
(द) मिथिला (बिहार)
उत्तर:
(द) मिथिला (बिहार)
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) “जहांगीर का सपना” नामक चित्र …………………………… के द्वारा बनाया गया। (\(\frac {1}{2}\))
(ii) बगीचे में कवि …………………………… शैली का चित्र है। (\(\frac {1}{2}\))
(iii) मिट्टी को पकाकर बनाई जाने वाली कला ………………….. कहलाती है। (\(\frac {1}{2}\))
(iv) अवनिन्द्र नाथ ठाकुर का जन्म …………………………… स्थान पर हुआ। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) अबुल हसन,
(ii) गोलकुण्डा,
(iii) टेराकोटा,
(iv) कलकत्ता के ‘जोरासंको’ नामक।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) बून्दी रागमाला को कहाँ चित्रित किया गया? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
चुनार में।
(ii) अहमदनगर शैली के किसी एक चित्र का नाम लिखिए। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
‘तारीफ-ए-हुसैन शाही’ सिंहासन पर बैठे राजा।
(iii) कम्पनी शैली क्या हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
भारतीय और यूरोपीय कला तत्वों के संम्मिश्रण से जिस शैली का उदय हुआ, उसे कम्पनी जाता है।
(iv) पाटा/पट्ट चित्रण कहाँ-कहाँ बनाये जाते हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
पाटा/पट्ट चित्रण गुजरात, राजस्थान, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल में बनाये जाते हैं। (\(\frac {1}{2}\))
(v) पिथौरा चित्र किस जाति द्वारा बनाये जाते हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
राठवा भील जाति द्वारा।
(vi) गोंड पेंटिंग क्या है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मध्यप्रदेश में गोंड सम्राज्य के लोगों द्वारा झोंपड़ियों की दीवारों पर पूजा-पाठ से सम्बन्धित ज्यामितीय रेखांकन करना गोंड पेंटिंग के नाम से जाना जाता है।
खण्ड – ब
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 4.
‘मैडोना एण्ड चाइल्ड’ चित्र के बारे में बताइये। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
यह मुगल स्कूल ऑफ पेंटिंग का एक महत्वपूर्ण चित्र है। इस समय युरोपीय अधिकारियों का मुगल बादशाह अकबर के दरबार में संपर्क था। यह चित्र कागज पर अपारदर्शी पानी के रंगों से तैयार किया गया है। मेडोना एंड चाइल्ड एक असाधारण विषय था जिसमें बाईजेन्टाइन कला, यूरोपीय शास्त्रीय और पुनर्जागरण का प्रभाव मुगल कार्यशालाओं तक पहुँचा। माँ मैरी को परम्परागत वस्त्रों को पहने दिखाया गया है। चित्र में माँ और बच्चे के बीच वात्सल्य या ममत्त्व भाव को दिखाया गया है। बच्चे की शारीरिक संरचना, पंखों और आभूषणों में भारतीय प्रभाव दिखाई देता है।
प्रश्न 5.
हाशिये क्या हैं? मुगल शैली के परिप्रेक्ष्य में बताइये। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मुगल शैली में चित्र के चारों ओर जो सुन्दर आलेखन बनाए जाते थे, उन्हें हाशिये कहते हैं। हाशिये को विभिन्न प्रकार के आलेखनों से अलंकत किया गया है। मगल शैली को यह गण ईरानी शैली से प्राप्त हआ है। मगल शैली में हाशिये बड़े परिश्रम व लगन से बनाये गये हैं। कहीं-कहीं ऐसा हुआ है कि हाशिये मानवाकृतियों व पशु-पक्षियों के हैं। जिस महीन कारीगरी से इन महीन रेखाओं को बनाया गया है वह बेजोड़ है। रेखाओं में शक्ति और गति के कारण मुगल चित्र निखर उठे हैं।
प्रश्न 6.
अहमदनगर शैली में नारी चित्र का वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
अहमदनगर शैली में नारी चित्रों को चोली पहने हुए, लम्बी लटों, गुथी हुई चोटियों के साथ दुपट्टा पहने हुए चित्रित किया गया है। इस शैली में चित्रित नारी चित्रों में केश सज्जा के अतिरिक्त सभी विशेषताओं पर उत्तरी भारत व पर्शिया (फारस) की कला का प्रभाव दिखाई देता है।
प्रश्न 7.
‘राग हिंडोला की रागिनी की पाठमशिका’ नामक चित्र का वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
लगभग 1590 ई. 1595 ई. में चित्रित बीजापुर शैली का यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में सुरक्षित है। यह चित्र रागमाला परिवार की संगीत विद्या को दर्शाता है। इस चित्र में फारसी व मुगल प्रभाव भी दिखाई देता है। चित्र में आकृतियाँ शैलीबद्ध हैं तथा शरीर का अंकन वैज्ञानिक ढंग से किया गया है। चित्र में तीन महिलाओं के साथ-साथ हाथी का भी अंकन किया गया है।
प्रश्न 8.
‘समग्र घोड़ा’ चित्र किस शैली से संबंधित है? वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
समग्र घोड़ा नामक यह चित्र गोलकुंडा चित्र शैली से सम्बन्धित है। इस चित्र में घोड़े का चित्रण करते समय कलाकार ने घोड़े में अनेक आकृतियों को चित्रित किया, साथ ही, पृष्ठभूमि में भी अनेक आकृतियाँ जैसे-उड़ते हुए सारस, शेर, चीनी बादलों का चित्रण, बड़े पत्ते वाले पौधे आदि दर्शाए गए हैं जो कलाकार की कल्पनाशीलता और स्वप्नलीनता को प्रदर्शित करता है। कुछ आकृतियों को आकाश में उड़ते हुए दिखाया है, जिनकी आँखें चित्र में चित्रित की गई चट्टान को देखती हुई प्रतीत होती हैं। इस चित्र में घोड़े को सरपट दौड़ते हुए दिखाया है।
प्रश्न 9.
बीजापुर के किसी एक प्रमुख चित्र की विशेषता लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पोलो खेलती चांद बीबी-इस चित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- इस चित्र में बीजापुर की रानी चांद बीबी को अन्य महिलाओं के साथ मैदान में पोलो खेलते हुए चित्रित किया गया है।
- इस चित्र में दूर पृष्ठभूमि पर आकाश का अंकन तथा क्षितिज पर सुंदर छोटे भवनों, पेड़-पौधों व पहाड़ों का चित्रण किया गया है।
- चित्र के ऊपर व नीचे हाशियों में चौकोर खाने बनाकर फारसी लेख अंकित किए गए हैं तथा अग्र भूमि में पक्षियों का अंकन भी किया गया है।
प्रश्न 10.
‘पहाड़ी शैली’ के मुख्य विषय कौन-कौन से हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पहाड़ी शैली में सबसे अधिक चित्रित विषयों में से एक अष्ट नायिकाओं का अंकन है, जिसमें महिलाओं के विभिन्न स्वभावों और भावनात्मक स्थिति का चित्रण है। इसके अतिरिक्त बारहमासा, रसमंजरी, भागवतपुराण, रागमाला, गीत गोविन्द, नलदमयंती, बिहारी सतसई एवं कृष्ण लीला भी पहाड़ी शैली के मुख्य विषय रहे हैं।
प्रश्न 11.
‘बारहमासा’ चित्रण से आप क्या समझते हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
19वीं शताब्दी के दौरान पहाड़ी चित्रकारों का लोकप्रिय विषय बारहमासा बन गया था। बारहमासा चित्रण के अन्तर्गत वर्ष के बारह महीनों में नायिका और नायक की शृंगारिक विरह और मिलन की क्रियाओं का चित्रण किया गया है। केशवदास द्वारा कवि प्रिया के 5वें अध्याय में बारहमासा का वर्णन किया गया है। उन्होंने मई-जून के महीने में आने वाले ज्येष्ठ माह के गर्म महीने का वर्णन किया है।
प्रश्न 12.
राजस्थान की फड़ चित्रण परम्परा के बारे में लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
राजस्थान में भीलवाड़ा के आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले कलाकारों द्वारा ग्रामीण परिवेश के लोक देवताओं के सम्मान में लम्बे क्षितिजाकार कपड़े पर उनकी वीरतापूर्ण कहानियों का अंकन किया जाता है। इसे ही फड़ चित्रण. कहा जाता है।
गोगाजी, तेजाजी, देव नारायण जी, रामदेव जी, पाबूजी एवं हडबूजी आदि लोक देवताओं का चित्रण प्रमुख है। फड़ का चित्रण जोशी जाति के लोगों द्वारा पारम्परिक पद्धति के आधार पर किया जाता है।
प्रश्न 13.
भारत की प्रमुख जीवंत कलाओं का नाम लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
भारत की प्रमुख जीवंत कलाएँ निम्नलिखित हैं-
- बिहार की मिथला या मधुबनी कला
- महाराष्ट्र की वी कला
- उत्तरी गुजरात व पश्चिमी मध्यप्रदेश की पिथौरा कला
- राजस्थान की पाबूजी की फड़ व नाथद्वारा की पिछबाई
- मध्यप्रदेश की गौंड व सावरा कला
- उड़ीसा व बंगाल की पट चित्रकला आदि।
खण्ड – स
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 14.
राजस्थानी शैली के प्रमुख चित्रित विषय ‘गीत गोविन्द’ पर हुए चित्रण के बारे में लिखिए? (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
राजस्थानी शैली के प्रमुख चित्रित विषय गीत गोविन्द पर चित्रण-12वीं शताब्दी में संस्कृत भाषा के विद्वान जयदेव द्वारा ‘गीत गोविन्द’ की रचना की गई। जयदेव बंगाल के लक्ष्मन सेन के दरबारी कवि थे। संस्कृत भाषा में रचित इस काव्य में 12 अध्याय और 300 श्लोक हैं। गीत गोविन्द में राधाकृष्ण के प्रेम आख्यान का मुख्य रूप से वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त गीत गोविन्द में श्रीकृष्ण की गोपिकाओं के साथ रासलीला, राधा विवाद वर्णन, कृष्ण के लिए व्याकुलता, उपालम्भ वचन, कृष्ण की राधा के लिए उत्कंठा, राधा की सखी द्वारा राधा के विरह संताप का वर्णन मिलता है।
देवता के प्रति आत्मा का समर्पण, राधा के द्वारा स्वयं को अपने प्रिय कृष्ण हेतु भुला दिए जाने को गीत गोविन्द में देखा जा सकता है। गीत गोविन्द पर राजस्थानी शैली में भी बहुत अधिक चित्रण हुआ है। राजस्थानी चित्रकला के प्रमुख कलाकारों का यह एक प्रिय विषय रहा है। उन्होंने इसके ऊपर कई चित्र बनाए हैं।
मेवाड़ शैली में गीत गोविन्द का चित्रण चित्रकार साहिबदीन द्वारा महाराणा जगत सिंह प्रथम के काल में किया गया है।
किशनगढ़ चित्र शैली में राजा कल्याण सिंह के शासनकाल में एक विभिन्न चित्रकारों द्वारा गीत गोविन्द का चित्रण किया गया। वहीं जयपुर चित्रशैली के अन्तर्गत भी गीत गोविन्द का चित्रण किया गया है। 18वीं शताब्दी में महाराणा प्रताप सिंह के समय में रागमाला, भागवत पुराण व दरबारी चित्रों के चित्रण के साथ-साथ गीत गोविन्द का भी चित्रण हुआ है। इस प्रकार राजस्थानी शैली के अन्तर्गत गीत गोविन्द पर बहुत अधिक चित्रण हुआ है।
अथवा
बूंदी चित्र शैली के विकास व विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बूंदी चित्र शैली का विकास-बूंदी में 17वीं शताब्दी में चित्रकला की एक विशिष्ट शैली का विकास हुआ जिसे बूंदी चित्र शैली के नाम से जाना जाता है। यह शैली अपने बेदाग रंग और अलंकरण के लिए प्रसिद्ध रही है। चुनार के हाडा राजा भोज सिंह (1558-1607) के समय रागमाला चित्रण 1593 से बूंदी शैली का विकास माना जाता है। बूंदी चित्रकला का विकास राव छत्रसाल (1631-1659) और उनके पुत्र भाव सिंह (1659-1682) के समय विशेष रूप से हुआ। बाद में भाऊ सिंह के उत्तराधिकारी अनिरुद्ध सिंह (1682-1702) के समय चित्रकला का विकास चलता रहा। बुद्ध सिंह के समय में उदास चेहरों का चित्रण विशेष है। बुद्ध सिंह के पश्चात् उनका पुत्र उम्मेद सिंह (1749-1771) शासक बना। इनके शासन के समय चित्रकला का विधिवत विकास हुआ। 18वीं शताब्दी में बूंदी शैली में दक्षिण शैली का प्रभाव आने के कारण शुद्ध व चमकीले रंगों का प्रयोग होने लगा। उम्मेद सिंह के उत्तराधिकारी विशन सिंह (1771-1821) ने 48 वर्षों तक बूंदी पर शासन किया। वह एक कला पारखी शासक था। इनकी रुचि शिकार में होने के कारण शिकार से संबंधित चित्र अधिक बने। इनके पश्चात रामसिंह (1821-1889) के समय बूंदी महल की शाही चित्रशाला में भित्तिचित्रण का कार्य हुआ, जिसमें जुलूस, शिकार, राधा और कृष्ण के विभिन्न प्रसंगों का चित्रण किया गया।
बूंदी चित्रशैली की विशेषताएँ- बूंदी चित्र शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- बूंदी शैली के चित्रों में हरे व नारंगी रंगों की प्रधानता है। इसके अतिरिक्त पीले, लाल, हरे, सफेद, काले और नीले आदि रंगों का प्रयोग भी हुआ है।
- बूंदी शैली में रसिक प्रिया, रागरागिनी, बारहमासा, ऋतु वर्णन और कृष्ण लीलाओं का चित्रण अत्यधिक हुआ है। राज्य के प्राकृतिक वैभव ने इस शैली को चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया।
- बूंदी शैली के चित्रों में नारी आकृति को लम्बी, इकहरी बदन वाली, छोटे गोलाकार चेहरे, उन्नत ललाट, छोटी नुकीली नाक, भरे हुए कपोल, छोटी गर्दन और पतली कमर युक्त चित्रित किया गया है। उनके प्रतिमानों में प्रायः पायजामा और उस पर पारदर्शी जामा है।
- बूंदी शैली के चित्रों में प्राकृतिक सौन्दर्य का बहुत अधिक चित्रण हुआ है। प्रवाही रंगों में भू-परिदृश्यों, वृक्षों, लताओं की विभिन्न किस्मों, सरोवरों, मछली और अन्य पक्षियों का सुंदर चित्रण हुआ है।
- इस शैली में पशु-पक्षियों का चित्रण यथार्थ और सजीव रूप में हुआ है। इस शैली में हाथियों को विविध रूपों में चित्रित किया गया है। यह चित्र अपनी विशेषताओं के कारण बहुत प्रसिद्ध है। जैसे-गर्मी में हाथी।
प्रश्न 15.
अकबरकालीन चित्रकला की विशेषताओं का वर्णन करो? (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
अकबरकालीन चित्रकला की विशेषताएँ- हूमायूँ ने जिस कला परम्परा की शुरुआत की, उसको आगे बढ़ाने का कार्य हुमायूँ के पुत्र और बादशाह अकबर ने किया। अकबर के दरबारी इतिहासकार ने अकबर के कला प्रेम के बारे में उल्लेख किया है कि इस समय शाही चित्रशाला में 100 से भी अधिक कुशल कारीगर कार्यरत थे। इसमें सी और भारतीय कलाकार सम्मिलित थे। इंडो-फारसी कलाकारों के इस समागम से एक नई चित्रशैली का विकास हुआ।
- अकबर के समय में पांडुलिपियों के चित्रण पर बहुत बल दिया गया।
- कई पांडुलिपियों के अनुवाद व चित्रण में मौलिक रचनाओं की शुरुआत हुई।
- इनके समय की चित्रकला में ईरानी, कश्मीरी व राजस्थानी शैलियों की स्पष्ट छापं देखने को मिलती है।
- चित्रों का निर्माण करते समय चमकदार रंगों का प्रयोग किया जाता था।
- इनके समय में व्यक्ति चित्रण का सूत्रपात हुआ।
- चित्रांकन के समय रेखाओं को वक्राकार (गोलाईयुक्त) रखा जाता था तथा रेखांकन में गतिशीलता देखने को मिलती थी।
- चित्रांकन करते समय चेहरे मोटे तौर पर मिलते थे साथ ही तीन-चौथाई चेहरे भी दर्शाये जाते थे।
- पेड़ों व लताओं को भारतीय परम्परा अनुसार दर्शाया गया था।
- चेहरे के भावों, हाथों की रेखाओं व पेड़ों की पत्तियों को बारीक व नैसर्गिक रूप में दर्शाया जाता था।
- अकबर के काल में चित्र उनकी शाही चित्रशाला में तैयार होते थे।
- अकबर ने सांस्कृतिक एकीकरण के उद्देश्य से हिंदू ग्रंथों के अनुवाद के साथ-साथ संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद तथा चित्रण भी करवाया, जिसमें हिन्दू महाकाव्य महाभारत का फारसी भाषा में अनुवाद और चित्रण करवाया।
- इनके समय में गोवर्धन और मिस्किन जैसे चित्रकार कार्य कर रहे थे जो दरबारी दृश्य चित्रण के लिए प्रसिद्ध थे।
- अकबर के समय चित्रकारों ने विभिन्न विषयों को चित्रित किया जिसमें राजनीतिक विजय, दरबारी दृश्य, धार्मिक, पौराणिक कथाएँ महत्वपूर्ण व्यक्तियों के व्यक्तिचित्र तथा फारसी और इस्लामिक विषय सम्मिलित थे।
अथवा
‘नूह का संदूक’ का विस्तार से वर्णन कीजिए? (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
नूह का संदूक-नूह का संदूक (जहाज) नामक यह चित्र ठंडे रंगों (हल्के व शांत) से बना हुआ है। यह चित्र 1590 ई. में चित्रित पाण्डुलिपि ‘दीवाने-ए-हासिफ’ का एक चित्र है जो मुगल बादशाह अकबर के शाही महल के चित्रकार उस्ताद मिस्किन द्वारा बनाया गया है।
इस चित्र में दर्शाया गया है कि पैगम्बर नूह जहाज में हैं। इस जहाज में पैगम्बर के साथ जानवर भी हैं जिन्हें मनुष्यों को उनके पापों के लिए दण्डित करने के लिए भगवान द्वारा भेजी गई खतरनाक बाढ़ से बचाकर अन्य स्थान पर ले जाया जा रहा है। चित्र में दर्शाया गया है कि इब्लीस नामक शैतान जहाज को नष्ट करने के लिए आया है। पैगम्बर नूह के पुत्र उसे जहाज से बाहर फेंक रहे हैं।
इस चित्र में हल्के लाल, नीले, पीले रंगों के साथ-साथ सफेद रंग का आकर्षक प्रयोग है। जल के प्रभाव हेतु ऊर्ध्वाकार परिप्रेक्ष्य का प्रयोग किया गया है। यह चित्र संयुक्त राज्य अमेरिका के वाशिंगटन डी. सी. में स्थित फ्रीट गैलरी ऑफ आर्ट, स्मिथसोवियन इंस्टिट्यूशन में संग्रहीत है।
प्रश्न 16.
कांगड़ा शैली में चित्रित नायिकाओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
कांगड़ा शैली में चित्रित नायिकाओं का वर्णन- कांगड़ा शैली में चित्रित विषयों में से एक अष्ट/आठ नायिकाओं का अंकन है जिसमें महिलाओं के विभिन्न स्वभावों और भावनात्मक स्थितियों का चित्रण है।
कांगड़ा शैली में चित्रित नायिकाओं का वर्णन निम्न प्रकार से है-
- उत्का/उल्का -उत्का/उल्का अष्ट नायिकाओं में से वह नायिका है, जो अपने प्रेमी के आगमन की आशा में धैर्यपूर्वक उनकी प्रतीक्षा कर रही है।
- स्वाधीन पतिका-यह वह नायिका है जिसका पति उसकी इच्छा के अधीनस्थ है।
- वासकसज्जा-यह वह नायिका है जो अपने प्रेमी के यात्रा से लौटने का इंतजार कर रही है और उसके स्वागत व मिलन की तैयारी के लिए सेज को पुष्पों से सजाकर स्वयं सज-धज कर उसका इंतजार कर रही है।
- कलहंतरिता-यह वह नायिका है जो अपने प्रियतम के देर से आने पर उसका विरोध करती है और उसे अपने अभिमान को कम करने तथा पश्चात्ताप करने के लिए कहती है।
अभिसारिका नायिका का चित्र-यद्यपि अष्ट नायिकाओं का वर्णन कवियों और चित्रकारों की कला का प्रमुख विषय रहा है परन्तु उनमें से किसी नायिका के साथ वैसा व्यवहार नहीं किया गया जैसा कि अभिसारिका के साथ किया गया। अभिसारिका एक प्रेमातुर नायिका है जो किसी भी खतरे/जोखिम की चिंता किये बिना अपने प्रेमी से मिलने निकल पड़ती है। प्रकृति के विरोधी तत्वों पर विजय प्राप्त करने वाली नायिका की लगन और दृढ़ता के साथ कल्पना की गयी है। स्थिति, सामान्यतः विचित्र और नाटकीय संभावनाओं से पूर्ण होती है। इस चित्रकारी में ‘सखी’ बता रही है कि किस तरह से अभिसारिका रात के अंधेरे में अपने प्रियतम से मिलने के लिए जंगल के पार गयी थी। कवि ने यहाँ योग का वर्णन किया है। नायिका एकल उद्देश्य को मन में धारण करके रात के अंधेरे में जंगल से गुजरती है।
‘अभिसारिका’ की व्यापक प्रतिमा/मूर्ति लगभग समान हैं। हालांकि चित्रकार कभी-कभी अपने प्रतिपादन को परिवर्तित भी करते हैं। कई संस्करणों में दिखने वाले राक्षसों को इनमें छोड़ दिया जाता है। लेकिन रात का अँधेरा, बिजलियों का कड़कड़ाना, धुंधले बादल, अँधेरे में फुफकारते सर्प, वृक्षों के खोखले तनों से निकलते जानवर और गिरते हुए आभूषण आदि सभी को चित्रित किया गया है।
अथवा
पहाड़ी शैली में ‘शांगरी’ श्रृंखला का क्या तात्पर्य है? (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ बसौली और कुल्लू के पहाड़ी कलाकारों के पसंदीदा ग्रन्थों में से एक था। चित्रकारों ने ‘रामायण’ से प्रेरित चित्रों की एक श्रृंखला बनाई, जिसे ‘शांगरी चित्र शृंखला’ कहा गया। इस शृंखला का नाम ‘शृंगरी’ नामक स्थान से लिया गया, जो कुल्लू शाही परिवार की एक शाखा का निवास स्थान था। कुल्लू कलाकारों की ये कृतियाँ बसौली और बिलासपुर की शैलियों से अलग-अलग मात्रा में प्रभावित थीं। इस श्रृंखला के चित्रों की शैली एक दूसरे से भिन्न है, अतः ऐसा विश्वास किया जाता है कि इन्हें अलग-अलग श्रृंखला के कलाकारों द्वारा चित्रित किया गया है।
‘शृंगरी चित्र श्रृंखला’ पर आधारित ‘राम अपनी संपत्ति त्यागते हैं’ का चित्रण निम्नवत् है-
राम अपने वनवास के विषय में सीखते हैं तथा अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या त्यागने की तैयारी करते हैं। ‘मन’ को संतुलित करते हुए राम अपनी चीजों का त्याग करने के कार्य में जुट जाते हैं। राम के निवेदन पर, उनके भाई ने अपनी चीजों का ढेर लगा दिया। अपने प्रिय राम के आभूषण, त्यागे हुए बर्तन, हजारों गाय और अन्य खजानों को प्राप्त करने हेतु भीड़ एकत्रित होने लगती है।
चित्र में, बाईं तरफ अलग भाग में सीता के साथ दो राजकुमार एक कालीन पर खड़े हैं। सामान लेने वालों की भीड़ उनकी ओर बढ़ रही है। चित्रकार बड़ी सावधानीपूर्वक विभिन्न प्रकार के वैरागियों/संन्यासियों, ब्राह्मण, दरबारियों आम लोगों और शाही घराने के नौकरों का परिचय कराता है। कालीन पर बेशुमार उपहारों का ढेर लगा है, जिसमें सोने की मुहरें, वस्त्र हैं। भोली-भाली गायें व बछड़ों को भी चित्रित किया गया है। ये गायें और बछड़े गर्दन लम्बी किए हुए, टकटकी लगाकर, मुख फाड़कर राम की ओर देख रहे हैं। इस प्रकार की स्थिति को गम्भीरतापूर्वक भिन्न-भिन्न भावों के माध्यम द्वारा संवेदनपूर्वक चित्रित किया गया है। गम्भीर व शांत लेकिन धीरे से मुस्कुराते हुए राम, जिज्ञासु लक्ष्मण व शंका से ग्रसित सीता, कुछ पाने के इच्छुक ब्राह्मण किन्तु बिना किसी खुशी भाव के और . अन्य भाव अविश्वास तथा कृतज्ञता के साथ अच्छे ढंग से चित्रित किए गये हैं। राम के पहने हुए वस्त्रों, ब्राह्मणों के गालों और ठुड्डी पर दाड़ी, तिलक के चिह्न, आभूषण और हथियारों को चित्रकार खुशी से दर्शाता है।
खण्ड – द
निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 17.
राजस्थानी शैली के उद्भव व विकास का विस्तृत वर्णन कीजिए? (2)
उत्तर:
राजस्थानी चित्रशैली का उद्भव व विकास-राजस्थान की विभिन्न रियासतों और ठिकानों में पल्लवित और पोषित शैली को राजस्थानी शैली के नाम से जाना जाता है। यह शैली 16वीं से 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक. मेवाड़, जोधपुर, किशनगढ़, बीकानेर, कोटा, बूंदी, मालवा और सिरोही आदि रियासतों में विकसित हुई है।
राजस्थानी चित्रशैली का प्रारम्भ 15वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 16वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के मध्य माना जाता है। रागमाला का चित्रण 1605 ई. में मेवाड़ के चावण्ड नामक स्थान पर निसारदीन ने किया था जो कि एक चित्रकार था। 1628 ई. में रागमाला को मेवाड़ शैली के चित्रकार साहिबदीन ने चित्रित किया था। मेवाड़ के महाराजा जगतसिंह प्रथम (1628-1652) ने आरम्भ के दिनों में राजस्थानी शैली के विकास का मार्गदर्शन किया।
महाकवि जयदेव द्वारा रचित कुछ रचनाएँ हैं जिनका बार-बार भिन्न-भिन्न रूपों में चित्रण किया गया। ये रचनाएँ हैं-ओरछा के कवि केशवदास की रसिकप्रिया, गीतगोविन्द, अमरू की अमरू शतक, बिहारी सतसई, देवीपुराण, भागवत पुराण, रामायण, महाभारत, रागमाला, बारहमासा की चौपाई एवं छिट-पुट चित्रों के साथ ही साथ अनेक दैनिक जीवन की गतिविधियों का भी व्यापक चित्रण किया गया है। इन चित्रों में शासकों के विलासितापूर्ण जीवन, राजकीय तड़क-भड़क, अलंकरणात्मक चित्रण की प्रधानता है। 17वीं और 18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में राजस्थानी चित्रशैली बहुत समृद्ध हुई। राजस्थानी चित्रशैली पूर्व काल में मुगल प्रभाव के अन्तर्गत भी अपने विशेष स्वरूप को स्थापित रखने में सफल रही। राजस्थानी शैली को उस समय बहुत बड़ा आघात लगा जब 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ से अंग्रेजों के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के कारण चित्रों में भाव विजय में निर्जीवता आने लगी।
राजपूत शैली- 1916 ई. में प्रसिद्ध विद्वान आनंद कुमार स्वामी ने मुगल कला से अलग कर के राजपूत शासकों के संरक्षण में पोषित शैली को ‘राजपूत शैली’ के नाम से संबोधित किया। राजस्थानी शैली में मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र, मध्य भारत की रियासतें और पहाड़ी शैली जिसमें उत्तर पश्चिमी हिमालय क्षेत्र भी शामिल थे। आनंद कुमार स्वामी ने मुगलों के आगमन से पूर्व राजस्थानी शैली के विकास में स्वदेशी शैली की बात कही। राजपूत स्कूल एक अप्रचलित शब्द है। राजस्थानी शैली और पहाड़ी शैलियों में अधिक दूरी नहीं थी किंतु चित्रों में काफी भिन्नता थी जैसे-रंग, वास्तु, प्रकृति के चित्रण और कथन के तौर-तरी विविधता दिखाई देती है।
वसली का प्रयोग- राजस्थानी शैली में चित्रण हेतु ‘वसली’ का प्रयोग किया जाता था। यह एक हस्तनिर्मित कागज होता था। वसली एन के ऊपर एक पतले कागज को चिपकाकर मोटा कागज बनाया जाता था, इस पर काले व भरे (ब्राउन) रंग के माध्यम से रेखांकन कर उसमें विभिन्न रंगों के निशान लगाकर रंगांकन किया जाता था । यह सभी रंग खनिज या बहुमूल्य धातु यथा सोना और चाँदी से बने हुए होते थे। इन रंगों में गोंद मिलाकर स्थायित्व दिया जाता था। ब्रश ऊँट और गिलहरी के बालों से बनाये जाते थे। पेंटिंग के पूर्ण हो जाने पर चित्र को सुलैमानी पत्थर से चित्र पर रगड़कर चिकना व ओपदार बनाया जाता था।
चित्रण कार्य का सामूहिक होना- राजस्थानी शैली में चित्रण का कार्य एक प्रकार से सामूहिक कार्य था। इस समय चित्र का निर्माण सामूहिक रूप से मुख्य चित्रकार के निर्देशन में सहायक चित्रकारों द्वारा किया जाता था। मुख्य चित्रकार आरंभक चित्र बनाता था, बाद में सहायक चित्रकार या शिष्य उसमें रंगांकन, वास्तु परिदृश्य, जानवर आदि बनाया करते थे। सबसे बाद में मुख्य चित्रकार चित्र को अंतिम रूप दिया करता था। चित्र के बायीं ओर रिक्त स्थान छोड़ते थे, जहाँ मंशी लेख या श्लोक लिखा करते थे।
अथवा
राजस्थानी शैली के निम्नलिखित चित्रों पर प्रकाश डालिए- (2)
1. भागवत पुराण
2. मारू रागनी
उत्तर:
1. भागवत पुराण- यह चित्र मालवा शैली का है जो कि राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में संग्रहित है। जिसमें श्री कृष्ण द्वारा राक्षस शकटासुर के वध को चित्रित किया गया है । चित्र विभिन्न खंडों में विभाजित है। एक खंड में कृष्ण जन्म के बाद नंद और यशोदा के घर पर उत्सव मनाते व लोगों को नाचते-गाते बनाया गया है, एक खंड में धार्मिक उद्देश्य से नंद व यशोदा द्वारा ब्राह्मणों व गरीबों को गाय का दान करते हुए दिखाया गया है, वहीं एक स्थान पर भोजन तैयार किया जा रहा है। मध्य भाग में महिलाएँ बुरी नजर से कृष्ण को बचाने के लिए उसके पास खड़ी हैं । चित्र के अंत में पैर लगाकर शकटासुर का उद्धार करते हुए कृष्ण को चित्रित किया गया है।
2. मारू रागनी- मेवाड़ में चित्रित मारू रागनी का यह चित्र रागमाला चित्र संग्रह का है। यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में संग्रहित है। इस चित्र पर कलाकार का नाम, संवत, स्थान, तिथि आदि का उल्लेख किया गया है । चित्र संवत 1685 ई. में जगत सिंह के समय उदयपुर में चित्रकार साहिबराम द्वारा चित्रित किया गया है। चित्रकार साहिबराम को चित्र में चितारा अर्थात चित्रकार कहा गया है। चित्र में मारू (सुंदर राजकुमारी) को ढोला (राजकुमार) के रूप में दिखाया गया है और उसकी शारीरिक सुंदरता के चित्रण के साथ उसके प्रियतम पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाया गया है। ढोला-मारू दोनों आदर्श प्रेमी थे। इनके गीत और गाथाएँ आज भी राजस्थान में प्रचलित हैं। ढोला मारू के प्रेम-प्रसंग व विवाह के लिए रिश्तेदारों से संघर्ष, लड़ाई, दुखद घटनाओं आदि का वर्णन है। चित्र में ढोला और मारू को ऊँट पर बैठे चित्रित किया गया है। चित्र के आधे भाग पर लेख लिखा है जो इस प्रकार है- संवत 1685 वर्ष असो वद 9 राणा श्री जगत सिंह राजेन उदयपुर मधे लिखित चित्र साहिबदीन बचन हरा ने राम-राम।
प्रश्न 18.
भारतीय कला में राजा रवि वर्मा के योगदान का वर्णन कीजिए? (2)
उत्तर:
भारतीय कला में राजा रवि वर्मा का योगदान-राजा रवि वर्मा भारत के विख्यात चित्रकार थे। राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 को किलिमानूर त्रावणकोर (केरल) में हुआ था। इन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों का चित्रण किया। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता हिन्दू महाकाव्यों और धर्मग्रन्थों पर बनाए गए चित्र हैं। हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्तेमाल उनके चित्रों में दिखा है। बडोदरा (गुजरात) स्थित लक्ष्मी विलास महल के संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह है।
डॉ. आनन्द कुमार स्वामी ने उनके चित्रों का मूल्यांकन कर कला जगत में उनहें सुप्रतिष्ठित किया। 2 अक्टूबर 1906 को किलिमानूर (केरल) में ही उनका निधन हो गया।
बचपन से ही राजा रवि वर्मा का रुझान चित्रकला के प्रति विशेष था। पाँच वर्ष की छोटी-सी आयु से ही उन्होंने अपने घर की दीवारों को दैनिक जीवन की घटनाओं से चित्रित करना प्रारम्भ कर दिया था।
घर में कला का वातावरण होने के कारण उनकी रुचि इस ओर बढ़ी। राजा रवि वर्मा के चाचा एक कुशल चित्रकार थे। उन्हीं से राजा रवि वर्मा को चित्रकला की प्रेरणा मिली। कम्पनी शैली के कलाकार जो कि दक्षिण भारत भ्रमण के लिए आते थे, उनसे उन्होंने कम्पनी शैली की कला सीखी। चित्रकार थियोडोर जेनसन से उन्होंने कला-दीक्षा ली। उन्होंने दरबारी चित्रकार अलेग्री नायडू से भी कला दीक्षा ग्रहण की। राजा रवि वर्मा ने यूरोपियन स्टूडियो की शैली को अपनाया। उन्होंने भारतीय विषयों को पाश्चात्य शैली में चित्रित करके एक नया आधार स्थापित किया। राजा रवि वर्मा एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति को पाश्चात्य शैली में नाटक मण्डली का प्रभाव दिखाते हुए चित्रण किया। राजा रवि वर्मा को त्रावणकोर के महाराजा, बड़ौदा के गायकवाड़ एवं अन्य धनी व्यक्तियों का भी संरक्षण प्राप्त हुआ। उन्होंने अनेक विषयों पर चित्र बनाए। उनके विषयों में राजा-महाराजाओं के पोट्रेट चित्रों की भी अधिकता रही। रवि वर्मा के चित्रों के विषय भारतीय शैली पाश्चात्य होने से उनमें नाटकीयता का भाव भी देखने को मिलता है।
राजा रवि वर्मा ने तत्कालीन लोक जीवन एवं उस समय की नाटक मण्डलियों से प्रेरणा ग्रहण कर देवी के पौराणिक चित्र भी बनाए। राजा रवि वर्मा ने अपने चित्रों के प्रकाशन के लिए बम्बई में लिथोग्राफ प्रेस खोली और उसके माध्यम से अपने चित्र प्रकाशित किए। इनके चित्र भारत सहित विदेशों में प्रसिद्ध हुए।
हिन्दू महाकाव्यों एवं आख्यानों के चित्र इनकी विशेष पहचान थी। स्त्रियों के अनेक रूप भी रवि वर्मा की कला में दिखाई देते हैं। इनके प्रसिद्ध चित्र रावण और जटायु, भीष्म प्रतिज्ञा, समुद्र का मान मर्दन, द्रोपदी, शकुन्तला, यशोदा एवं कृष्ण तथा राजा हरिश्चन्द्र आदि हैं।
अथवा
नन्दलाल बसु का पुनरुत्थान कालीन कला में योगदान का वर्णन कीजिए। (2)
उत्तर:
नन्दलाल बसु का पुनरुत्थान कालीन कला में योगदान-
नन्दलाल बसु का जन्म बिहार के मुंगेर जिले में 3 दिसम्बर 1882 में हुआ। कला में रुचि के कारण इन्होंने कलकत्ता के स्कूल ऑफ आर्ट्स में अबनीन्द्रनाथ टैगोर से कला शिक्षा ग्रहण की।
नंदलाल बसु ने शांति निकेतन में एक कलात्मक परिवेश तैयार करते हुए भारतीय कला संस्कृति व ठप्पा लोक कला शैली को महत्व देकर अपने छात्रों को सिखाया। 1937 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन हेतु महात्मा गांधी ने नंदलाल बसु को अपने समाजवादी विचारों के चित्रण हेतु आमंत्रित किया। जिसमें नंदलाल बसु ने मध्यम वर्ग और मेहनतकश लोगों का चित्रण किया जैसे-ढोल बजाने वाले ग्रामीण, खेत में काम करते किसान, दूध निकालती महिला आदि। साधारण ग्रामीण जनता को राष्ट्र निर्माण में अपनी मेहनत से योगदान करते हुए दिखाया गया था। इन चित्रों व पैनलों को ‘हरिपुरा पोस्टर’ के नाम से जाना जाता है।
कला भवन वह संस्था है जहाँ नंदलाल बसु ने शिक्षक के रूप में छात्रों को कला की शिक्षा दी और कई युवा कलाकारों को राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
चित्रण शैली- नन्दलाल बसु ने अजन्ता, बाघ की गुफाओं के भित्ति चित्रों की प्रतिलिपियों एवं अपने चित्रों में भी हण की। रेखा भाव, आकार आदि में उनको शैली अजन्ता से निकट का सम्बन्ध रखती है। इनके चित्रों के विषय हिन्दू-पौराणिक व धार्मिक कथाएँ, बुद्ध जीवन की घटनाएँ आदि रहे हैं।
नन्दलाल बसु के चित्रों की विशेषताएँ- नन्दलाल बसु ने जिन कृतियों का निर्माण किया, उनमें असाधारण रेखांकन दिखाई देता है। उनके चित्रों में रेखाएँ ही आकृति का प्राण बन गई हैं। उन्होंने विषय एवं तकनीक की दृष्टि से भारतीय परम्परा की सीमा में बँधकर ही अपने प्रयोग किए। नन्दलाल बसु ने चित्रों में सरलता, स्पष्टता एवं स्वाभाविकता पर बल दिया तथा कोमल और गतिपूर्ण रेखांकन का विकास किया। रंग-योजना में भी कोमलता और सामंजस्य को विकसित किया।
भारतीय चित्रकला में योगदान-नन्दलाल बसु ने शिल्पकला एवं रूपावली नामक पुस्तकें लिखीं, जिनमें अपने कला सम्बन्धी विचारों को प्रस्तुत किया।
नन्दलाल बसु के चित्रों को बंगाल शैली का प्रतिनिधि चित्र कहा जाता है। इनमें हल्की कोमल लयात्मक रेखाएँ अंकित की गई हैं। रेखाएँ आकृति, मुद्रा एवं आँख, कान, नाक आदि अजन्ता के प्रभाव को प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने वॉश तकनीक द्वारा एकवर्णीय रंग योजना का प्रयोग किया है। नन्दलाल बसु ने लोक शैली का आधार लेते हुए स्वतन्त्र, सहज व सशक्त आकारों में एक चित्र श्रृंखला तैयार की, जिसमें भारतीय लोकजीवन की झाँकियाँ तेज, तीखे आकर्षक रंगों एवं सशक्त रेखाओं में प्रदर्शित की।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नन्दलाल बसु ने अपनी कला शैली में विभिन्न पहलुओं का समावेश करते हुए आधुनिक चित्रकला में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है।
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