Students must start practicing the questions from RBSE 12th Drawing Model Papers Set 2 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Drawing Model Paper Set 2 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 24
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – अ
प्रश्न 1.
दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें-
(i) राजूपत चित्र शैली शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस विद्वान ने किया? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) आनंद कुमार स्वामी ने
(ब) लक्ष्मन सेन ने
(स) उम्मेद सिंह ने
(द) महाराणा जगत सिंह ने
उत्तर:
(अ) आनंद कुमार स्वामी ने
(ii) रसिकप्रिया किसकी रचना है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) जयदेव की
(ब) बिहारी की
(स) केशवदास की
(द) साहिबदीन की
उत्तर:
(ब) बिहारी की
(iii) सफाविद चित्रकार अब्दुसम्मद शिराजी द्वारा सूती वस्त्र पर अपारदर्शी जल रंगों का बनाया गया एक चित्र है- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) तैमूर घराने का एक राजुकमार
(ब) मेडोना एण्ड चाइल्ड
(स) दरबार में जहाँगीर
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) तैमूर घराने का एक राजुकमार
(iv) ‘पोलो खेलते चाँद बीबी’ चित्र किस शैली का है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) मुगल
(ब) राजस्थानी
(स) अहमदनगर
(द) बीजापुर
उत्तर:
(द) बीजापुर
(v) पहाड़ी चित्र शैली का आरम्भ किस शैली से हुआ? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) बसोली
(ब) गुलेर
(स) कांगड़ा
(द) कुल्लू
उत्तर:
(अ) बसोली
(vi) किस कला में घर के पूर्वी भाग में कुल देवी का अंकन किया जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) वर्ली
(ब) मिथिला
(स) फड
(द) पिथौरा
उत्तर:
(ब) मिथिला
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) मुगल बादशाह हुमायूँ ने ……………………… की स्थापना की। (\(\frac {1}{2}\))
(ii) योगिनी …………………………… शैली का चित्र है। (\(\frac {1}{2}\))
(iii) राजा रवि वर्मा एक आत्मदीक्षित चित्रकार थे जिन्होंने …………. को आधार मानकर चित्र रचनाएँ की। (\(\frac {1}{2}\))
(iv) राठवा जाति द्वारा चित्रित घोड़े पर सवार देवता ……………………….. के नाम से पूजे जाते हैं। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) निगारखाना,
(ii) बीजापुर,
(iii) भारतीय पौराणिक विषयों,
(iv) पिथौरादेव।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) दतिया महल के भित्ति चित्रों पर किसका प्रभाव देखने को मिलता है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बुन्देलखण्ड का प्रभात
(ii) बीजापुर शैली की विश्वकोषीय रचना कौनसी है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
नुजुम अल उलूम।
(iii) रात्रि में शहर किस चित्रकार की रचना है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
गगेन्द्रनाथ टैगोर की।
(iv) पिथौरा चित्र मुख्यतया किस स्थान पर बनाये जाते हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
गुजरात के पंचमहल एवं मध्यप्रदेश के झाबुआ क्षेत्र में।
(v) जातरी पट्टी किसे कहते हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
पुरी (ओडिशा) आने वाले धार्मिक यात्री अपने निजी मंदिरों के लिए जिन चित्रों को लेकर जाते हैं, उन्हें जातरी पट्टी कहते हैं।
(vi) बस्तर के धातु शिल्पियों को किस नाम से पुकारा जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
गढवा (घड़वा) के नाम से।
खण्ड – ब
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 4.
मुगलकालीन कला में चित्रों के विषय क्या थे? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मुगलकालीन कला में सूक्ष्मता और त्रिआयामी आकृतियों का चित्रण, परिप्रेक्ष्य का प्रयोग, दरबारी दृश्य, वनस्पतियों और जीवों का सटीक चित्रण मुगल कलाकारों के कुछ पसंदीदा विषय रहे।
प्रश्न 5.
बाबर का चित्रकला के विकास में क्या योगदान रहा? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मुगल बादशाह बाबार को एक कलाकार, कलापारखी, कला पत्र-पत्रिकाओं, पांडुलिपियों, वास्तुकला और बागवानी आदि के संरक्षक के रूप में जाना जाता है। उनकी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ से उनके राजनीतिक और कलाकत्मक जीवन का विस्तृत विवरण मिलता है।
प्रश्न 6.
बीजापुर शैली के इतिहास को बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
16वीं सदी में बीजापुर चित्र शैली का एक समृद्ध इतिहास मिलता है। इसे नुजुम-अलउलम (1570) के रूप में जाना जाता है। इसमें 876 लघु चित्र बनाये गये हैं, जिनमें हथियारों व बर्तनों को दर्शाया गया है। जबकि अन्य चित्र नक्षत्र विद्या को दर्शाते हैं। बीजापुर शैली में महिलाओं को दक्षिणी भारतीय पोशाक में दर्शाया गया है जिसमें इन्हें लम्बी व पतली चित्रित किया गया है।
प्रश्न 7.
योगिनी चित्रण का कलाकार कैसा था? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
कलाकार उर्ध्वाधर रचना को पसंद करने वाला था, जिसके कारण योगिनी का लम्बी खड़ी आकृति में चित्रण किया गया था। योगिनी के चित्र को शीर्ष की ओर सफेद संरचनाओं के एक समूह द्वारा पतला दर्शाया गया है। उसके बालों का गुच्छा (जूड़ा) उसकी लम्बाई को बढ़ाता प्रतीत होता है।
प्रश्न 8.
अहमदनगर शैली में महिलाओं का चित्रण कैसे किया गया है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
अहमदनगर चित्र शैली में महिलाओं की पोशाक उत्तरी भारतीय पोशाक में नजर आती महिलाओं की चोटियाँ गुंथी हुयी हैं, जो अन्त में एक गुच्छे में बदल जाती हैं। एक लम्बा दुपट्टा जो कूल्हों के नीचे शरीर के चारों ओर से गुजरता है वह दक्षिणी शैली का परिधान है। इसे लेपाक्षी भित्तिचित्रों में देखा जा सकता है।
प्रश्न 9.
‘दीवाने-ए-हासिफ’ नामक 5 लघु चित्र किस चित्र शैली से सम्बन्धित हैं? वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
‘दीवाने-ए-हसिफ’ नामक 5 लघु चित्र गोलकुंडा शैली से सम्बन्धित हैं। इसकी निर्मित तिथि 1463 ई. है। इन चित्रों में एक शाही सभा का अंकन है, जिसमें युवा शासक हाथ में पतली लम्बी दक्षिणी तलवार लिए सिंहासन पर बैठे दरबार में चित्रित किया गया है। पाँचों चित्र सोने के साथ गहरे नीले आकाश को छूते हुए भव्य रूप से समृद्धता को दर्शाते है। चित्रों में बैंगनी रंग का धारित प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 10.
काँगड़ा शैली के चित्रों में अभिसारिका’ कौन है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
अष्ट नायिकाओं का वर्णन कवियों और चित्रकारों की कला का प्रमुख विषय रहा है। जिसमें विभिन्न स्वभाव और भावनात्मक स्थितियों में महिलाओं का चित्रण शामिल है। इन्हीं अवस्थाओं में से एक ‘अभिसारिका’ नायिका अवश्य है।
अष्ट नायिकाओं में अभिसारिका एक प्रेमातुर नायिका है जो किसी भी जोखिम की चिंता किए बिना ही अपने प्रियतम से मिलने को अँधेरी रात में और भयानक जंगल को पार करते हुए चल पड़ती है।
प्रश्न 11.
पहाड़ी चित्र शैली से आप क्या समझते हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पहाड़ी चित्र शैली का आशय हिमालय क्षेत्र व उसकी तलहटी में स्थित क्षेत्र की चित्रशैली से है। यह पहाड़ी चित्रकला के अंतर्गत पश्चिमी हिमालय की पहाड़ियों में स्थित बसौली, गुलेर, कांगड़ा, कुल्लू, चंपा, नूरपुर, मनकोट, बिलासपुर, मंडी, जम्मू एवं अन्य शहर सम्मिलित हैं।
प्रश्न 12.
किन लोगों के द्वारा फड़ चित्र बनाए जाते हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पारम्परिक रूप से फड़ चित्रों को जोशी जाति के लोगों द्वारा बनाया जाता है। ये जोशी लोग राजस्थान के राजाओं के दरबार में चित्रकारों के रूप में रहते थे। ये चित्रकार अपने संरक्षकों के दरबार में लघु-चित्र बनाने में सिद्धहस्त थे। इसलिए कुछ चित्रकारों ने इस फड़ चित्रकारी को उच्च स्थान प्रदान किया।
प्रश्न 13.
मधुबनी चित्र परम्परा से आप क्या समझते हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मधुबनी चित्रकला का नाम मिथिला से निकला है जो माता सीता की जन्मभूमि है। इसे मधुबनी चित्र परम्परा भी कहा जाता है। मधुबनी को बहुत व्यापक रूप से लोक कला परम्परा के रूप में जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि सैकड़ों वर्षों से, इस क्षेत्र की रहने वाली स्त्रियाँ किसी समारोह के अवसर के लिए और विशेष रूप से शादीसमारोह के लिए मिट्टी से बने हुए मकानों की दीवारों पर रंगों से भरी हुई आकृतियाँ लम्बे समय से बनाती आ रही हैं। यहाँ के लोग सीता-राम के विवाह के समय से इस कला का मूल उद्भव मानते हैं।
खण्ड – स
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 14.
किशनगढ़ शैली के प्रमुख चित्र बणी-ठणी का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
जयपुर चित्र शैली के विकास एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बणी ठणी- बणी ठणी का यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में संग्रहित है। किशनगढ़ के राजा सावंत सिंह ने अपने उपनाम नागरीदास के रूप से साहित्यिक ब्रज भाषा में राधा और कृष्ण पर कविताओं की रचना की। बणी ठणी राजसिंह की पत्नी की दासी होने के साथ-साथ एक प्रभावशाली कवयित्री व गायिका भी थी। बणी-ठणी अपने अनुपम सौन्दर्य के लिए जानी जाती थी । राजा सावंत सिंह बणी ठणी से अत्यधिक प्रेम करते थे। सावंत सिंह ने बणी-ठणी से प्रेरणा लेकर कविताओं की रचना की। जिसमें बणी-ठणी को राधा और स्वयं को कृष्ण के रूप में कल्पित किया। बणी-ठणी का उल्लेख राजा सावंतसिंह ने अपनी एक कविता ‘बिहारी जसचंद्रिका’ में किया और बणी-ठणी के इसी रूप को चित्रकार निहालचंद ने अपनी पेंटिंग का आधार बनाया। बणी-ठणी चित्र में काव्य और चित्र का सम्मिलित रूप देखा जा सकता है।
राजनैतिक परेशानियों से परेशान होकर राजा सावंतसिंह ने 1757 ई. में सिंहासन को त्याग कर वृंदावन जाकर बणी-ठणी के साथ रहने लगे किशनगढ़ शैली की सम्पूर्ण विशेषता बणी-ठणी के चेहरे में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। कलाकार निहालचंद ने किशनगढ़ शैली को उत्तम और विशिष्ट विशेषताओं के साथ चित्रित किया। किशनगढ़ शैली के चेहरों में उन्नत ललाट, उठी धनुषाकार भौहें, कमल के समान अधखुले नयन, पतली व लंबी नासिका, पतले होंठ, पतली ठुड्डी, सर्पाकार अलकावलियाँ जो कान व गाल तक बनाई गई हैं।
प्रश्न 15.
मुगल चित्रकला पर अन्य शैलियों के प्रभाव का वर्णन करो। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
जहाँगीरकालीन चित्रकला की विशेषताओं का वर्णन करो? (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मुगल चित्रकला पर अन्य शैलियों का प्रभाव- मुगल चित्रकला शैली में फारसी, भारतीय तथा बाद में यूरोपीय शैलियों का प्रभाव दिखाई देता है। मुगल चित्रकला में हिंदू-मुस्लिम और यूरोपीय संस्कृति का समावेश है। इन शैलियों के सम्मिश्रण से बने चित्र उस समय की भारतीय और ईरानी शैली से भी अधिक सुन्दर थे। मुगल चित्रकारों ने अपने असाधारण कौशल, परिकल्पनाओं, विश्वासों को चित्रित किया। मुगल दरबार में चित्रकारों के लिए कार्यशालाएँ बनी हुई थीं। इस समय कई कलाकार ईरान से भारत आये। यहाँ पर आकर भारतीय कलाकारों और ईरानी चित्रकारों ने मिलकर सामंजस्य पूर्ण कार्य किया। मुगल संग्रहालयों में सुलेखक, चित्रकार, गिलडर और बाइंडर कार्य करते थे। मुगलकाल में चित्र सम्राटों या राजघरानों के लोगों के समय होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं, व्यक्तित्व और रुचियों के अनुसार ही चित्रित हुए। यहाँ चित्रों को राजघरानों की भावना और बौद्धिक उत्तेजना के अनुसार बनाया गया। मुगल चित्र पांडुलिपियों और श्रृंखलाओं का हिस्सा थे। सूक्ष्मता और त्रिआयामी आकृतियों का चित्रण, परिप्रेक्ष्य का प्रयोग, दरबारी दृश्य, वनस्पतियों और जीवों का सटीक चित्रण मुगल कलाकारों के कुछ पसंदीदा विषय रहे।
प्रश्न 16.
बसौली चित्र शैली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
काँगड़ा चित्र शैली में चित्रित प्रकृति चित्रण का वर्णन करो? (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बसौली चित्र शैली की विशेषताएँ चित्रकला की बसौली शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) विषय-बसौली शैली के चित्रों के विषय धार्मिक थे। इस शैली में कृष्ण की जीवन लीला संबंधी चित्रों को अधिक चित्रित किया गया। इस शैली में रस मंजरी, गीत गोविन्द, रागमाला, रामायण, महाभारत, रसिकप्रिया, बारहमासा, राजाओं, दरबारियों व प्रतिष्ठित व्यक्तियों के व्यक्ति चित्र बने हैं।
(2) वर्ण योजना-बसौली चित्र शैली सरल, सौम्य तथा भावपूर्ण है। इसमें चटक व तेज चमकने वाले रंगों का उपयोग किया गया है। चित्रों में लाल, पीले रंगों का प्रयोग किया गया है। चित्र में रंगों को प्रतीकात्मक रूप में भी भरा गया है। जिससे चित्रों में विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं।
(3) रूप-निर्माण-चित्रों में पुरुष और नारी की मुखाकृतियाँ विशेष रूप से दिखायी गयी हैं। नारी चित्रण सुकोमल तथा ओजपूर्ण है। ललाट पीछे की ओर धंसा हुआ, नाक ऊँची एक ही रेखा द्वारा बनायी गयी है, नेत्र बड़े-बड़े कमालाकर व रस भाव से पूरित चित्रित किये गये हैं। हस्त मुद्राएँ विभिन्न हाव-भाव अभिव्यक्त करते हुए चित्रित हैं।
(4) वस्त्राभूषण- चित्रों में वस्त्र पारदर्शी बनाए गये हैं। इनके अंदर से शरीर की कोमलता दिखाई पड़ रही है। बसौली के चित्रकार बड़े ही सौम्य और शृंगारिक स्वरूप का चित्रण करके सरलता का भाव लाने में सक्षम रहे हैं। प्रायः स्त्रियों को सूथन, चोली और ऊपर से ढीला लम्बा घेरादार चोंगा पहने चित्रित किया गया है। कहीं-कहीं स्त्रियाँ पारदर्शी चुनरी, चोली या छींटदार घाघरा पहने चित्रित हैं। पुरुषों को घेरादार पाजामा व पगड़ी पहने हुए चित्रित किया गया है। बसौली शैली के चित्रों में पुरुष, स्त्री, जहाँ तक कि राक्षसों को भी आभूषण पहने चित्रित किया गया है।
(5) भवन चित्रण- बसौली के चित्रों में भवनों का चित्रण सुंदर रूप से हुआ है। इन पर मुगल शैली का प्रभाव है। चित्र में भवन की दीवारों पर सुंदर आले, कपाट, सुंदर आलेखन द्वारा अलंकृत, खिड़कियाँ जालीदार तथा स्तंभ नक्काशी युक्त बनाये गये हैं।
(6) प्रकृति चित्रण – इस शैली के चित्रों में पशु-पक्षी, बादल, वर्षा और प्रकति को भी विशिष्टता के साथ चित्रित किया गया है। इस शैली में वृक्षों को पंक्तिनुमा, हल्की रंग योजना द्वारा उभारकर अलंकृत रूप से चित्रित किया गया है।
(7) नारी चित्रण-बसौली शैली के चित्रों में रूप और लावण्य, शृंगार एवं यौवन से सजी नारी मानव प्रेम के प्रतीक के रूप में चित्रित है। जो इस शैली की विशेषता है।
(8) हाशिए- चित्र में हाशिए लाल व पीले रंग से पतली पट्टी के रूप में चित्रित किये गये है।
खण्ड – द
निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 17.
राजस्थानी चित्र शैली में चित्रित काव्य ग्रन्थों की जानकारी दीजिए। (2)
अथवा
राजस्थानी शैली के निम्नलिखित चित्रों पर प्रकाश डालिए- (2)
1. चित्रकूट में राम का परिवार मिलन
2. बणी-ठणी
उत्तर:
राजस्थानी चित्रशैली में चित्रित काव्य ग्रंथ- राजस्थानी चित्रशैली में चित्रित काव्य ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
1. गीत गोविंद:- 12वीं शताब्दी में संस्कृत भाषा के विद्वान जयदेव द्वारा ‘गीत गोविंद’ की रचना की गई थी। संस्कृत भाषा में रचित इस काव्य में 300 श्लोक हैं। जयदेव, लक्ष्मण सेन के दरबारी कवि थे। गीत गोविंद में राधा-कृष्ण के प्रेम आख्यान का वर्णन मिलता है।
2. रसमंजरी:- 14वीं शताब्दी में बिहार के एक मैथिली ब्राह्मण द्वारा रसमंजरी की रचना की गई। जिसे ‘आनंद का गुलिस्तां’ भी कहा जाता है। संस्कृत भाषा में रचित यह एक रस ग्रंथ है जिसमें आयु बाल, तरुण, प्रौढ़ आदि के शारीरिक लक्षण जैसे-पद्मिनी, चित्रणी, शंखनी, हस्तिनी और भावुक विषयों में खंडिता, वासकसज्जा, अभिसारिका, उत्का आदि के आधार पर नायक और नायिकाओं में अंतर किया गया है। रसमंजरी में कृष्ण का उल्लेख नहीं है किंतु चित्रकार ने उन्हें एक आदर्श प्रेमी के रूप में इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किया है।
3. रसिक प्रिया:- ओरछा के दरबारी कवि केशवदास ने 1591 ई. में रसिकप्रिया की रचना की जिसका अनुवाद ‘पारखी की प्रसन्नता’ के रूप में किया गया है। इस काव्य में जटिल व्याख्या की गई है। ग्रन्थ की रचना धनिक व शासक वर्ग के आनंद के लिए की गई है। इस काव्य में राधा कृष्ण के रूप के विभिन्न भावों जैसे-प्रेम, ईर्ष्या, एकजुटता, झगड़ा और उसके पश्चात होने वाले अलगाव व क्रोध आदि को दोनों प्रेमियों. के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
4. कविप्रिया:- यह काव्य भी केशवदास की रचना है। यह ओरछा की एक प्रसिद्ध गायिका राय परवीन के लिए लिखा गया था। इस प्रेम कथा के दसवें अध्याय में बारहमासा का वर्णन किया गया है। इसमें 12 महीनों के दैनिक वातावरणीय परिवर्तन के साथ नायक-नायिका के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव व नायिका द्वारा नायक से न छोड़ने का आग्रह करते बताया गया है।
5. बिहारी सतसई:- 1662 ई. में रचित सतसई में 700 दोहे हैं। इसकी रचना जयपुर के शासक मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि बिहारी द्वारा की गई थी। इस रचना में बिहारी का नाम कई दोहों में दिखाई देता है। सतसई का चित्रांकन पहाड़ी शैली में न होकर मेवाड़ शैली में किया गया है।
प्रश्न 18.
बंगाल शैली क्या है? इसके विकास में अवनीन्द्र नाथ टैगोर और ई. वी. हेवल के योगदान का वर्णन कीजिए। (2)
अथवा
कला के क्षेत्र में आधुनिकता की पश्चिमी एवं भारतीय अवधारणाओं का वर्णन कीजिए। (2)
उत्तर:
बंगाल शैली:- बंगाल शैली एक राष्ट्रवादी आंदोलन था। यह आंदोलन एक चित्रकला शैली के रूप में पोषित हुआ। जिसका मुख्य केंद्र कोलकाता में था। किन्तु इस आंदोलन ने पूरे देश के विभिन्न स्थानों और चित्रकारों को भी प्रभावित किया। इसमें शांति निकेतन भी शामिल था। यहाँ देश का प्रथम कला महाविद्यालय स्थापित किया गया। इस समय ई.वी. हैवल (1861-1934) को कोलकाता कला महाविद्यालय का प्रशासक व प्राचार्य नियुक्त किया गया। ई.वी. हैवल ने अवनींद्र नाथ टैगोर (1871-1951) को भारतीय कलाओं के महत्व को बताकर चित्रण करने की सलाह दी। अवनींद्रनाथ ने पाश्चात्य शैली का विरोध कर भारतीय विषयवस्तु, पहाड़ी और मुगल लघु चित्रों के समावेश से नयी शैली की शुरुआत की।
अवनींद्र नाथ टैगोर और ई. वी. हैवल:- 1896 का वर्ष भारतीय कला में महत्वपूर्ण था। इस समय ई.वी. हैवल कलकत्ता कला महाविद्यालय के प्राचार्य बने। अवनींद्रनाथ व ई.वी. हैवल ने मिलकर कला में भारतीय तत्वों की आवश्यकता को महसूस किया। इसका आरंभ गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट कोलकाता से हुआ जो वर्तमान में गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार के कला विद्यालय लाहौर, मुंबई, मद्रास में भी खोले गए। जहाँ धातु फर्नीचर और आकर्षक वस्तुओं का निर्माण होता था। किंतु कोलकाता में ललित कलाओं के विकास को ध्यान में रखते हुए भारतीय तकनीकी विषयों को पाठ्यक्रम के साथ जोड़ा गया। अवनींद्र नाथ के चित्र ‘यात्रा का अंत’ में मुगल तथा पहाड़ी शैली का प्रभाव दिखाई देता है। इस चित्र में नई भारतीय शैली विकसित करने की एक इच्छा दिखाई देती है।
कला इतिहासकार पार्थ मित्तर कहते हैं किअवनींद्रनाथ टैगोर के शिष्यों ने भारतीय मूल्यों को पुनः प्राप्त किया जिससे कि भारतीय कला को लाभ मिले। अवनींद्रनाथ टैगोर भारतीय प्राचीन कला संस्कृति के प्रबल समर्थक थे। अवनींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय कला व कलाकारों के प्रोत्साहित करने के लिए ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट’ की स्थापना की जिससे स्वदेशी मूल्यों को फिर से प्राप्त करने का प्रयास किया गया। बंगाली स्कूल ने आधुनिक भारतीय कला की नींव रखी। अवनींद्र नाथ ने जिस चित्र शैली का आरंभ किया, उसका प्रभाव आपके शिष्य क्षितिंद्रनाथ मजूमदार (रासलीला) और अब्दुल रहमान चुगताई (राधिका) के चित्रों में दिखाई देता है।
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