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RBSE 12th Drawing Model Paper Set 4 with Answers in Hindi

April 7, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 12th Drawing Model Papers Set 4 with Answers in Hindi Medium provided here.

RBSE Class 12 Drawing Model Paper Set 4 with Answers in Hindi

समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 24

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  1. परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  2. सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  3. प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
  4. जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

खण्ड – अ

प्रश्न 1.
दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें-
(i) बणी-ठणी का चित्र किस चित्रकार ने बनाया? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) नूरुद्दीन
(ब) निहालचंद
(स) नागरीदास
(द) साहिबद्दीन
उत्तर:
(ब) निहालचंद

(ii) राजस्थानी शैली में आदमकद व्यक्ति चित्र कहाँ पर बने? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) जयपुर
(ब) जोधपुर
(स) उदयपुर
(द) आमेर
उत्तर:

(iii) किस मुगलशासक के काल को चित्रकला का स्वर्णयुग कहा जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) अकबर
(ब) हुमायूँ
(स) जहाँगीर
(द) औरंगजेब
उत्तर:
(अ) अकबर

(iv) योगनी चित्र में योगनी को किस पक्षी के साथ चित्रित किया ? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) मैना
(ब) बाज
(स) कबूतर
(द) मोर
उत्तर:
(स) कबूतर

(v) ‘गोपियों को गले लगाते कृष्ण’ नामक चित्र किसने निर्मित किया? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) नैनसुख
(ब) गुलेर
(स) गोवर्धन चंद
(द) मानक
उत्तर:
(ब) गुलेर

(vi) पिथौरा चित्र किस समुदाय के लोगों द्वारा बनाया जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) जोशी
(ब) राठव भील
(स) चारण
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) राठव भील

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 4 with Answers in Hindi

प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) नूह का संदूक नामक चित्र ……………….. के द्वारा बनाया गया। (\(\frac {1}{2}\))
(ii) राग हिंडोला की रागनी पाठमशिका ……………… शैली का चित्र है। (\(\frac {1}{2}\))
(iii) नंदलाल बसु ने भारतीय कला-संस्कृति व ………………. को महत्व देकर अपने छत्रों को सिखाया। (\(\frac {1}{2}\))
(iv) पुरी (ओडिशा) आने वाले धार्मिक यात्री अपने निजी मंदिरों के लिए जिन चित्रों को लेकर जाते हैं, उन्हें ……………..के नाम से जाना जाता है। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) मिस्किन,
(ii) बीजापुर,
(iii) ठप्पा लोक कला शैली,
(iv) जातरी पट्टी।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) राजस्थान की किस चित्र शैली का आरम्भ रागमाला चित्रों से माना जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मेवाड़ चित्र शैली का।

(ii) गुलिस्ता पांडुलिपि के मूल चित्रों का अंकन किन कलाकारों ने किया? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बुखारा कलकारों ने।

(iii) इंडियन सोसायटी ऑफ ओरियंटल आर्ट की स्थापना किस चित्रकार ने की? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
अबनीन्द्र टैगोर ने।

(iv) पालघाट के चित्रों को मिट्टी की रंगीन दीवारों पर किससे बनाया जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
चावल के आटे से।

(v) राजस्थान के फड़ चित्रों का चित्रण मुख्यतया किस जाति द्वारा किया जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
जोशी जाति द्वारा।

(vi) भारत के किस प्रमुख क्षेत्र में ढोकरा ढलाई मूर्ति परम्परा प्रचलित है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बस्तर (छत्तीसगढ़) क्षेत्र में।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 4 with Answers in Hindi

खण्ड – ब

निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 4.
पक्षी स्टैंड पर बाज क्या है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
यह एक मुगलकालीन चित्र है। इसका चित्रण जहाँगीर के शासनकाल में उस्ताद मंसूर द्वारा किया गया। यह चित्र वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में संरक्षित है। इसमें जहाँगीर के द्वारा पाले जाने वाले पारखी बाजों में से एक बाज को आराम करते चित्रित किया गया है। इस बाज को एक बिल्ली द्वारा मार दिया गया था। इसकी स्मृति में ही चित्रकारों ने इसका चित्रण किया।

प्रश्न 5.
शाहजहाँ का चित्रकला के विकास में क्या योगदान रहा? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मगल बादशाह शाहजहाँ ने कलाशालाओं में चित्रकारों को चित्रण के लिए प्रोत्साहित किया। इन चित्रों में गहनों जैसी चमक, उत्तम प्रतिपादन और जटिल बारीक रेखाओं का उपयोग देखा जा सकता है। चित्रों में जगमगाते रत्न आभूषण, वास्तुकला के प्रति जुनून का चित्रण शाहजहाँ की रुचि का परिचायक है। इसने पादशाहनामा और बादशाहनामा का चित्रण करवाया।

प्रश्न 6.
सुल्तान अब्दुल्ला कुतुब शाह के चित्र का वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
बीजापुर के शासक का यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित है। इसके ऊपर एक फारसी भाषा का शिलालेख मिलता है। चित्र में सुल्तान कुतुब शाह को तलवार हाथ में लिए सिंहासन पर बैठे अंकित किया है। इसके सिर के पीछे एक प्रभामंडल अंकित है, जिससे उनकी भव्यता का प्रदर्शन होता है सुल्तान का कसा हुआ बदन, लंबी मूंछे तथा फारसी पगड़ी पहने चित्रित किया गया।

प्रश्न 7.
दक्षिणी शैली के चित्रों की विशेषता बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
दक्षिणी शैली के चित्रों में क्षेत्रीय सौन्दर्यवाद को अनूठी कमनीयता और तीव्र रंगों के साथ चित्रित किया गया है। कलाकार द्वारा चित्रों में प्रेम की आभा को प्रदर्शित करने के लिए मुहावरों में अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 4 with Answers in Hindi

प्रश्न 8.
‘पोलो खेलते चाँद बीबी’ चित्र के बारे में बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
बीजापुर की रानी चाँदबीबी का यह चित्र बीजापुर शैली का है। इस चित्र में जिसमें, उसे अन्य महिलाओं के साथ मैदान में पोलो खेलते हुए चित्रित किया है। इसमें दूर पृष्ठभूमि में आकाश का अंकन तथा क्षितिज पर सुंदर छोटे भवनों, पेड़-पौधों व पहाड़ों का चित्रण किया गया है। चित्र के ऊपर व नीचे हाशियों में चौकोर खाने बनाकर फारसी लेख अंकित किए गए। अग्र भूमि में पक्षियों का अंकन भी किया गया है, यह चित्र वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित है।

प्रश्न 9.
गोलकुण्डा चित्र शैली के ऐतिहासिक स्वरूप को वर्णित कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
गोलकुण्डा चित्र शैली व इसका इतिहास- सन् 1512 में गोलकुण्डा एक स्वतंत्र राज्य बना था तथा 16वीं सदी के अंत तक यह दक्षिण राज्यों में सबसे धनी राज्य था जिसका प्रमुख कारण पूर्वी तटीय बन्दरगाहों से होने वाला व्यापार था। पर्शिया और यूरोप तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों के साथ यहाँ से व्यापार होता था। 17वीं सदी के प्रारम्भ में यहाँ हीरों की खोज हो गयी जिससे अपार राजस्व की प्राप्ति होने लगी। गोलकुण्डा के चित्र स्त्री और पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले स्वर्णाभूषणों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। गोलकुण्डा के चित्रों के विषय को असाधारण प्रसिद्दि प्राप्त थी।

प्रश्न 10.
पहाड़ी चित्रशैली किसे कहा जाता है? इस शैली के चित्रों के विषयों का उल्लेख कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पश्चिमी हिमालय की घाटियों में विकसित चित्र शैली पहाड़ी चित्र शैली के नाम से जानी जाती है। इस शैली के चित्रों में प्रकृतिवाद था जिसने पहाड़ी कलाकारों की संवेदनाओं को आकर्षित किया। मुगल चित्रकारों व मूल पहाड़ी चित्रकारों ने मिलकर पहाड़ी चित्रशैली को जन्म दिया। केशव, सूरदास, मतिराम, बिहारी, भानुदत्ता, देव, तुलसी जैसे कवियों के काव्यों पर आधारित चित्रों का चित्रण इस शैली में खूब हुआ। पशु-पक्षी चित्रण, प्रकृति चित्रण, व्यक्ति चित्रण, कृष्ण लीला से संबंधित चित्रण, बारहमासा से संबंधित चित्रण, नायक-नायिका भेद चित्रण, गोपियों के चित्र आदि पहाड़ी शैली के चित्रों के प्रमुख विषय रहे।

प्रश्न 11.
पहाड़ी शैली के अन्तर्गत कौन सी उपशैलियाँ आती हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पहाड़ी शैली के अन्तर्गत मुख्य रूप से बसौली शैली, गुलेर शैली व काँगड़ा उपशैलियाँ आती हैं। इनके अतिरिक्त चम्बा शैली, कुल्लू शैली, मनकोट शैली, नूरपुर शैली, मंडी शैली, बिलासपुर शैली, गढ़वाल शैली, जम्मू शैली आदि उपशैलियों को सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 12.
वी चित्र परम्परा से आप क्या समझते हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
उत्तरी महाराष्ट्र के पश्चिमी समुद्रतट पर ठाणे जिले में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के चारों ओर रहने वाले वर्ली समुदाय द्वारा अपने घरों की मिट्टी की बनी हुई रंगीन दीवारों पर चावलके आटे से चित्रों का अंकन किया जाता है, जिसे वर्ली चित्र परम्परा के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 13.
पिथौरा कला के बारे में लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
गुजरात के पंचमहल क्षेत्र के राठवा भील जाति और मध्यप्रदेश के झाबुआ क्षेत्र में रहने वाले लोगों द्वारा किन्हीं विशेष अवसरों का आभार प्रदर्शन करने वाले अवसरों को प्रदर्शित करने के लिए घरों की दीवारों पर जो चित्र बनाये जाते हैं उन्हें पिथौरा चित्र कहते हैं। यह दीवारों पर बने बड़े आकार के चित्र हैं, जिसमें घोड़े पर सवार देवताओं के रंगीन चित्रों को कतारबद्ध रूप से दर्शाया जाता है।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 4 with Answers in Hindi

खण्ड – स

निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 14.
‘चित्रकूट में राम का परिवार मिलन’ नामक चित्र के बारे में लिखिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
मालवा चित्र शैली का विकास एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
चित्रकूट में राम का परिवार मिलन:-
चित्रकार गुमान द्वारा रामायण के कथानक पर 1740 से 1700 के मध्य बनाया यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली संग्रहित है। चित्रकूट के परिवेश में झोपड़ियाँ (पर्णकुटीर) मिट्टी, लकड़ी, हरे पत्तों और जंगल में प्राप्त सामग्री से बनी है। चित्र के अग्र व पार्श्वभाग में पेड़-पौधे बनाये गए हैं जो कि ग्रामीण परिवेश की व्याख्या करते हैं। रामायण के अनुसार जब राम को वनवास भेजा गया था तब भरत उनके पास नहीं थे।

राम के वनवास से दुखी दशरथ की मृत्यु के बाद अत्यंत दुख के साथ भरत अपनी तीनों माताओं, ऋषि वशिष्ठ और दरबारियों के साथ राम को वापस अयोध्या लाने के लिए गए थे। चित्र बायीं ओर से आरंभ होकर दायीं ओर खत्म किया गया है। चित्रकूट नामक स्थान की शुरुआत में तीनों रानियों और राजकुमारों की पत्नियों के साथ कुटीर की ओर जाते दिखाया गया है। माताओं को देख राम, लक्ष्मण और सीता उन्हें श्रद्धा से प्रणाम कर रहे हैं। शोकाकुल कौशल्या को अपने पुत्र राम के पास जाकर उन्हें गले लगाते चित्रित किया है। बाद में राम को अन्य दो माताएँ सुमित्रा, कैकेयी और दोनों ऋषियों का अभिवादन करते चित्रित किया गया है।

जब ऋषि राम को दशरथ की मृत्यु का समाचार देते हैं तब राम अत्यंत दुखी होते हैं जो चित्र में दिखाई दे रहा है। चित्र में तीनों माताएँ, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की पत्नियों को सीता के पास बात करते हुए चित्रित किया गया है। चित्र के उपर चित्र से सम्बंधित श्लोक लिखा गया है।

प्रश्न 15.
मुगल चित्रकला के विकास में अकबर के योगदान का वर्णन करो। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
‘दरबार में जहाँगीर नामक’ चित्र का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मुगल चित्रकला के विकास में अकबर का योगदान- हुमायूँ के पश्चात मुगल वंश के पूर्वजों को पेड़ों, फूलों, खुली हवा और शाही उत्सवों में दर्शाया गया है। इन चित्रों में फारसी प्रभाव और रंग योजना उल्लेखनीय थी। इस समय के चित्रों में भारतीय प्रेरणा या शैली का कोई भी प्रभाव नहीं है लेकिन शीघ्र ही बदलाव आया और मुगल शैली की संवेदनशीलता और पसंद का समायोजन भारतीय शैली में हो गया। हुमायूँ ने जिस कला परम्परा की शुरुआत की उसको आगे बढ़ाने का कार्य हुमायूँ के पुत्र और बादशाह अकबर ने किया। अकबर के दरबारी इतिहासकार ने अकबर के कला प्रेम के बारे में उल्लेख किया कि इस समय शाही चित्रशाला में 100 से भी अधिक कुशल कारीगर कार्यरत थे। इसमें फारसी और भारतीय कलाकार शामिल थे। इंडो-पारसी कलाकारों के इस समागम से एक नई चित्रशैली का विकास हुआ।

अकबर डिसलेक्सिया (वह बीमारी जिसमें इंसान को पढ़ने में परेशानी होती है) से पीड़ित था। इस समय विषयवस्तु में नए कलात्मक मापदंडों की शुरुआत हुई और पांडुलिपियों के चित्रण पर बहुत जोर दिया गया। कई पांडुलिपियों के अनुवाद और चित्रण में मौलिक रचनाओं की शुरुआत हुई। इसी कड़ी में सबसे पहले हम्जानामा (चित्रित ग्रन्थ) जो उनके पिता हुमायूँ ने आरम्भ करवाई और अकबर के समय तक इसका कार्य निरंतर चलता रहा। हम्जानामा में 14 खण्ड हैं, जिसमें 1400 चित्र हैं जिन्हें पूरा करने में लगभग 15 साल का समय लगा। हम्जानामा का चित्रण दो फारसी चित्रकार मीर सैयद अली और अब्दुसम्मद शिराजी की देखरेख में पूरा हुआ। हम्जानामा के चित्र कपड़े पर बनाये गए।

अकबर ने सांस्कृतिक एकीकरण के उद्देश्य से हिंदू ग्रंथों के अनुवाद के साथ-साथ संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद तथा चित्रण भी करवाया, जिसमें हिंदू महाकाव्य महाभारत का फारसी भाषा में अनुवाद और चित्रण करवाया। रज्मनामा में अलंकृत सुलेखों के साथ 169 चित्र बने हैं। रामायण का अनुवाद और चित्रण भी इसी समय में किया गया था।

अकबरनामा:- अकबर व्यक्तिगत रूप से कलाकारों से मिलता और उनके कार्यों को देखता और मूल्यांकन करता। अकबर के समय चित्रकारों ने विभिन्न विषयों को चित्रित किया जिसमें राजनीतिक विजय, दरबारी दृश्य धार्मिक-पौराणिक कथाएँ महत्वपूर्ण व्यक्तियों के व्यक्ति चित्र तथा फारसी और इस्लामिक विषय शामिल थे। अकबर की कलारुचि से प्रभावित होकर कई शासकों ने अपने दरबारों में इसका अनुसरण किया और यहाँ के दरबारों में श्रेष्ठ कलाकृतियों का निर्माण हुआ जो मुगल कला शैली की नकल का प्रयास था।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 4 with Answers in Hindi

प्रश्न 16.
बसौली शैली की प्रमुख विशेषताएं एवं अन्य क्षेत्रों में फैलाव बताइए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
‘अष्ट नायिका चित्रण’ का क्या तात्पर्य है? (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
पहाड़ी राज्यों में कला शैली के रूप में सबसे पहले उदाहरण बसौली राज्य में प्राप्त होते हैं। बसौली शैली के विकास में राजा कृपाल पाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस शैली की प्रमुख विशेषताएँ एवं अन्य क्षेत्रों में फैलाव निम्न प्रकार से है-

बसौली शैली की विशेषताएँ- इस शैली की विशेषताओं में प्राथमिक रंगों का समुचित प्रयोग किया गया तथा पीले रंग से पृष्ठभूमि और क्षितिज को भरा गया, साथ ही वनस्पति का शैलीबद्ध व्यवहार दर्शाया गया तथा आभूषणों में मोती को प्रदर्शित करने के लिए सफेद रंग को ऊपर उठाकर प्रयोग किया गया। बसौली शैली की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि चित्रों में भंग के पंखों के छोटे, चमकीले हरे कणों का उपयोग आभूषणों को चित्रित करने और ‘पन्ना’ के प्रभाव को उभारकर दर्शाने के लिए किया गया। अपने आकर्षक पेलट और लालित्य में ये चित्र पश्चिमी भारत के चित्रों के चौर पंचशिला समूह के सौन्दर्य शास्त्र को साझा करते हैं।

बसौली शैली का अन्य क्षेत्रों में फैलाव- जब बसौली के कलाकार और उनके चित्र धीरे-धीरे अन्य पहाड़ी राज्यों जैसे चंबा और कुल्लू में विस्तरित हो गये तब बसौली कला की स्थानीय विविधताओं का उद्भव हुआ। 1690 से 1730 के दौरान चित्र की एक नई शैली का प्रचलन प्रारम्भ हुआ जिसे ‘गुलेर-काँगड़ा चरण’ के नाम से जाना गया। इस अवधि के दौरान कलाकार नये-नये प्रयोगों तथा आशुरचनाओं में व्यस्त रहे जिसके फलस्वरूप चित्र काँगड़ा शैली में परिवर्तित हो गये। इस प्रकार, बसौली में उद्भव होने वाली चित्र शैली अब धीरे-धीरे अन्य पहाड़ी राज्यों जैसे मनकोट, नूरपुर, कुल्लू, मंडी, बिलासपुर, चंबा, गुलेर एवं काँगड़ा राज्यों में विस्तरित हो (फैल) गई।

खण्ड – द

निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 17.
बूंदी चित्र शैली के उद्भव एवं विकास के साथ-साथ उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2)
अथवा
राजस्थानी शैली के निम्नलिखित चित्रों पर प्रकाश डालिए- (2)
1. रामायण युद्ध कांड
2. राग दीपक
उत्तर:
बूंदी चित्र शैली का उद्भव एवं विकास :-
17वीं शताब्दी में बूंदी चित्रकला शैली का उद्भव हुआ। बूंदी शैली अपने बेदाग रंग और अलंकरण के लिए प्रसिद्ध रही है। चुनार के हाडा राजा भोज सिंह (1558-1607) के समय रागमाला चित्रण 1593 से बूंदी शैली का विकास माना जाता है। बूंदी चित्रकला का विकास राव छत्रसाल (1631-1659) और उनके पुत्र भाव सिंह (1659-1682) के समय विशेष रूप से हुआ। राव छत्रसाल को शाहजहां ने दिल्ली का राज्यपाल बनाया और राव छत्रसाल ने दक्कन में मुगलों के तरफ से युद्ध में भाग लिया और विजय प्राप्त की। बाद में भाऊ सिंह के उत्तराधिकारी अनिरुद्ध सिंह (1682-1702) के समय चित्रकला का विकास चलता रहा। बुद्धसिंह के समय में उदास चेहरों का चित्रण विशेष है। बुद्धसिंह के पश्चात उनका पुत्र उम्मेद सिंह (1749-1771) शासक बना। इनके शासन के समय चित्रकला का विधिवत विकास हुआ।

18वीं शताब्दी में बूंदी शैली में दक्षिण शैली का प्रभाव आने के कारण शुद्ध व चमकीले रंगों का प्रयोग होने लगा। उम्मेद सिंह के उत्तराधिकारी बिशन सिंह (1771-1821) ने 48 वर्षों तक बंदी पर शासन किया। वह एक कला पारखी शासक था। इनकी रुचि शिकार में होने के कारण शिकार से संबंधित चित्र अधिक बने। इनके पश्चात रामसिंह (1821-1889) के समय बूंदी महल की शाही चित्रशाला में भित्तिचित्रण का कार्य हुआ जिसमें जुलूस, शिकार, राधा और कृष्ण के विभिन्न प्रसंगों को चित्रित किया गया।

बूंदी चित्रशैली की प्रमुख विशेषताएँ- बँदी चित्र शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित-

  • बूंदी शैली के चित्रों में हरे व नारंगी रंगों की प्रधानता है। इसके अतिरिक्त पीले, लाल, हरे, सफेद, काले और नीले आदि रंगों का प्रयोग भी हुआ है।
  • बूंदी शैली में रसिकप्रिया, रागरागिनी, बारहमासा, ऋतु वर्णन और कृष्णलीलाओं का चित्रण अत्यधिक हुआ। बूंदी राज्य के प्राकृतिक वैभव ने इस शैली को चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया।
  • सुरजन, किशन, रामलाल, साधुराम, अहमद अली आदि बूंदी शैली के प्रमुख चित्रकार थे।
  • बूंदी शैली के चित्रों में नारी आकति को लम्बी, इकहरी बदन वाली, छोटे गोलाकार चेहरे, उन्नत ललाट, छोटी नुकीली नाक, भरे हुए कपोल, छोटी गर्दन और पतली कमर युक्त चित्रित किया गया है। उनके प्रतिमानों में प्राय: पायजामा और उस पर पारदर्शी जामा है।
  • बूंदी शैली के चित्रों में प्राकृतिक सौन्दर्य का बहुत अधिक चित्रण हुआ है। प्रवाही रंगों में भू-परिदृश्यों, वृक्षों, लताओं की विभिन्न किस्मों, सरोवरों, मछली और अन्य पक्षियों का सुंदर चित्रण हुआ है।
  • इस शैली में पशु-पक्षियों का चित्रण यथार्थ और सजीव रूप में हुआ है। इस शैली में हाथियों को विविध रूपों में चित्रित किया गया है। यह चित्र अपनी विशेषताओं के कारण बहुत प्रसिद्ध हैं। जैसे-गर्मी में हाथी।

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प्रश्न 18.
भारतीय स्वदेशी कला के लिए अबनीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान का वर्णन कीजिए। (2)
अथवा
भारतीय कला के विकास में बंगाल स्कूल के कलाकारों के योगदान का वर्णन कीजिए। (2)
उत्तर:
भारतीय स्वदेशी कला के लिए अबनीन्द्रनाथ टैगोर का योगदान-
अबनीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 अगस्त, 1871 ई. में कलकत्ता के जोरासांको में टैगोर वंश में हुआ। वे रविन्द्रनाथ टैगोर के भाई के लड़के थे। आरम्भिक विद्यालयी शिक्षा के पश्चात् उन्होंने घर पर ही संस्कृत, फारसी आदि भाषाओं के साथ संगीत की शिक्षा ग्रहण की। अबनीन्द्रनाथ भारतीय एवं पाश्चात्य कला की एक ऐसी कड़ी थे, जिन्होंने भारतीय कला को विदेशी दासता से मुक्त कराया और इसे एक नयी दिशा प्रदान की। उन्होंने देश की कला-चेतना को पुनः जागृत करके एक नवीन कला-युग का सूत्रपात किया।

अबनीन्द्रनाथ टैगोर की विभिन्न प्रकार की चित्रकारियाँ-
यूरोपीय शैली में चित्रकारी- अबनीन्द्रनाथ ने अपने पिता और दादा के दिशा-निर्देशन में चित्रकारिता प्रारम्भ की। उन्होंने इटली के कलाकार ‘गिलहार्डी’ एवं अंग्रेज कलाकार ‘पामर’ से कला शिक्षा ग्रहण की। इनके प्रभाव के चलते अबनीन्द्रनाथ ने यूरोपीय शैली का प्रयोग कर चित्र बनाए। उन्होंने लगभग 1895 ई. तक यूरोपीय शैली में कार्य किया।

पश्चिमी एवं भारतीय शैली का समन्वय- अबनीन्द्रनाथ ने 1895 से 1900 ई. तक के काल में पश्चिमी एवं भारतीय शैली की मिश्रित चित्रकारी की। इस दौरान उनके चित्र यूरोपीय एवं भारतीय शैली के सम्मिलित रूप को दर्शाते हैं।

पूर्णतः स्वदेशी (भारतीय) शैली में चित्रकारी-सन् 1898 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर को गवर्नमेण्ट स्कूल ऑफ आर्ट्स, कलकत्ता का उपाचार्य नियुक्त किया गया। यहाँ ई. बी. हैवेल के निर्देशन में उन्होंने मुगल व राजस्थानी चित्रकला का अध्ययन किया और अनेक चित्र भी बनाए। अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारतीय पौराणिक व संस्कृत साहित्य को भी अपने चित्रों का विषय बनाया। उन्होंने अपने चित्रों में अजन्ता भित्ति चित्रों की हस्त व अंग मुद्राओं व प्रभावशाली रेखांकन, मुगल, पहाड़ी शैलियों की सौम्य रंग-योजना व स्थापत्य का कुशलता से प्रयोग भी किया।

वॉश तकनीक का प्रारम्भ- अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने सन् 1901-1902 में जापानी कलाकार ‘योगोहामा ताइकान’ एवं ‘हिसिदा’ से वॉश तकनीकी सीखी। इस तकनीक को सीखने के बाद उन्होंने अनेक प्रयोगों द्वारा वॉश तकनीक से कई विषयों पर चित्र बनाए। इस प्रकार स्वदेशी-विदेशी कला-सामंजस्य द्वारा एक नवीन वॉश तकनीक का प्रारम्भ हुआ। इसी क्रम में 1905 में उन्होंने बंगाल विभाजन के विरुद्ध शुरू हुए आन्दोलन से प्रेरित होकर एक उत्कृष्ट चित्र बनाया, जिसका शीर्षक ‘भारत यात्रा’ रखा।

इण्डियन सोसायटी ऑफ ओरिएण्टल आर्ट की स्थापना- सन् 1907 ई. में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने भाई गगनेन्द्रनाथ के साथ मिलकर ‘इण्डियन सोसायटी ऑफ ओरिएण्टल आर्ट’ की स्थापना की। इसके द्वारा पूर्वी कला मूल्यों एवं आधुनिक भारतीय कला में नवीन चेतना जाग्रत हुई। इसके कार्यक्रमों में तत्कालीन भारतीय कलाकारों के चित्रों के साथ-साथ जापानी कलाकारों की कृतियों की भी प्रदर्शनियों का आयोजन किया गया।

अबनीन्द्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं भारतीय स्वदेशी कला के पोषक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने शिल्पायन, भारतीय शिल्प व भारतीय षडांग आदि कला-विषयक पुस्तकें भी लिखीं। इस प्रकार वे एक उच्चकोटि के कलाकार होने के साथ-साथ एक आदर्श शिक्षक, कला समालोचक, साहित्यकार, रंगमंच अभिनेता, शिल्पी आदि विविध प्रतिभाओं से युक्त थे।

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