Students must start practicing the questions from RBSE 12th Drawing Model Papers Set 6 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Drawing Model Paper Set 6 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 24
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – अ
प्रश्न 1.
दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें-
(i) कविप्रिया किसकी रचना है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) लक्ष्मण सेन
(ब) जयदेव
(स) केशवदास
(द) बिहारी
उत्तर:
(स) केशवदास
(ii) साहिबदीन किस चित्र शैली का चित्रकार था? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) मेवाड़
(ब) जयपुर
(स) किशनगढ़
(द) जोधपुर
उत्तर:
(अ) मेवाड़
(iii) फारसी शैली का कौन-सा कलाकार केश चित्रांकन में पारंगत था? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) बिहजाद
(ब) शाहमुजफ्फर
(स) आकारिजा
(द) अबुलहसन
उत्तर:
(ब) शाहमुजफ्फर
(iv) बगीचे में कवि चित्र किस शैली का है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) गोलकुण्डा
(ब) बीजापुर
(स) अहमदनगर
(द) जयपुर
उत्तर:
(अ) गोलकुण्डा
(v) बसौली शैली के चित्रकारों का प्रिय विषय क्या था? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) भानुकृत रसमंजरी
(ब) चोरपंचाशिखा
(स) भागवत पुराण
(द) रागमाला
उत्तर:
(अ) भानुकृत रसमंजरी
(vi) फड़ चित्रण में चित्रित लोकदेवता को किस नाम से जाना जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) भोमा
(ब) भोमिया
(स) रेवारी
(द) नायक
उत्तर:
(ब) भोमिया
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) ‘गोवर्धन पर्वत उठाते हुए कृष्ण’ नामक चित्र ……………… के द्वारा बनाया गया। (\(\frac {1}{2}\))
(ii) दक्षिण चित्र शैली के प्रारम्भिक उदाहरण ……………………. से प्राप्त हुए हैं। (\(\frac {1}{2}\))
(iii) रासलीला नामक चित्र ……………………. द्वारा बनाया गया। (\(\frac {1}{2}\))
(iv) सम्पूर्ण भारत में मूर्ति निर्माण में सर्वाधिक प्रचलित ……………… है। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) उस्ताद मिस्किन,
(ii) अहमदनगर
(iii) क्षितिन्द्र नाथ मजूमदार
(iv) टेराकोटा।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) पिछवाई क्या है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के पीछे बने पृष्ठभूमि में कपड़े पर बने चित्रों को पिछवाई कहा जाता है।
(ii) पोलो खेलते चांद बीबी चित्र कहाँ पर संग्रहित है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में।
(iii) हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के चित्रों का निर्माण किस चित्रकार ने किया? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
नंदलाल बसु ने।
(iv) बिहार की लोकप्रिय कला कौन-सी है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मिथिला (मधुबनी) कला।
(v) फड़ चित्रों में चित्रित किए जाने वाले मुख्यतया लोक देवता कौन-कौन से हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
गोगाजी, तेजाजी, देवनारायण जी, रामदेव जी, पाबूजी और हडबूजी।
(vi) पाटा या पट चित्रों के किन्हीं दो महत्वपूर्ण स्थानों का नाम लिखिए। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) मिदनापुर (पश्चिम बंगाल) (ii) पुरी (ओडिशा)।
खण्ड – ब
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 4.
मुगल शैली के बारे में बताइए? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
भारतीय लघु चित्रकला में मुगल शैली का महत्वपूर्ण स्थान है। जो 16वीं से 19वीं सदी के मध्य तक विकसित हई । मगल शैली अपनी आदर्श तकनीक, विषयों की भिन्नता और दरबारी चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। मुगल लघु चित्रकला शैली इतनी उन्नत और परिष्कृत थी कि इसका प्रभाव बाद की समस्त भारतीय कलाओं में देखा जा सकता है।
प्रश्न 5.
हुमायूँ ने मुगल चित्रकला को किस प्रकार पोषण प्रदान किया? बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
हुमायूँ ने शाह तहमास्प को कला के शानदार कार्यों का निर्माण करते देखा था। उसने राजनीतिक व सांस्कृतिक दशाओं के साथ खुद को आत्मसात किया। उसने भारत आकर इसी तरह की कला कार्यशालाओं को बनाने की योजना बनाई। मीर सैयद अली व अब्दुसम्मद को भारत में चित्रशाला स्थापित करने के लिए आमन्त्रित किया। उसने चित्रकला व सुलेख की कला के लिए गहन संरक्षण देना प्रारम्भ कर दिया। हुमायूँ ने निगार खाना की स्थापना की। इसके समय शाही राज परिवार व मुगल वंश के इतिहास को चित्रित करने पर विशेष बल दिया गया।
प्रश्न 6.
नूजुम अल उलूम नामक ग्रन्थ का वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
नूजुम अल उलूम खगोलीय विद्या पर आधारित सचित्र ग्रन्थ है। यह बीजापुर शैली में चित्रित है। इस ग्रन्थ में 876 लघु चित्र हैं जो नक्षत्र विद्या, हथियारों, बर्तनों आदि के है। यह ग्रन्थ 1570 ई. का है।
प्रश्न 7.
रागमाला में महिला चित्रण की विशेषताएँ बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
रागमाल चित्रों में महिलाओं के बालों को लेपाक्षी भित्ति चित्रों के समान, गर्दन के पीछे वाले भाग पर एक जूड़े के रूप में लपेटा गया है। महिला चित्रण में क्षितिज गायब हो जाता है और इसे एक तटस्थ रंग की जमीन में बदल दिया गया है। बालों की विन्यास प्रक्रिया को छोड़कर समस्त विशेषताएँ उत्तरी भारत या पर्शिया के समान मिलती हैं।
प्रश्न 8.
दक्षिण भारतीय शैली में कौन-सा क्षेत्र शामिल था? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
दक्षिण भारत के पठारी क्षेत्र में, जो विन्ध्यन पर्वत के दक्षिण में फैला हुआ है, चित्रकला की एक विशिष्ट मजबूत शैली 16वीं व 17वीं शताब्दी में विभिन्न शासकों के द्वारा विकसित व पोषित की गयी थी। बीजापुर, गोलकुण्डा व अहमदनगर राजघरानों ने उच्च, परिष्कृत व उन्नत दरबारी चित्रण का कार्य किया था।
प्रश्न 9.
बीजापुर शैली के किसी महत्वपूर्ण विषय के बारे में लिखिए? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
बीजापुर शैली के एक महत्वपूर्ण विषय योगिनी से संबंधित हैं जो शारीरिक व भावात्मक रूप से अनुशासित जीवन जीने वाली, योग में विश्वास करने वाली, बौद्धिक अन्वेषण करने वाली, सांसारिक बंधनों से मुक्त चित्रित की गई है। योगिनी का चित्रण करने वाले कलाकार की स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है फिर भी यह कहा जा सकता है कि, कलाकार को खड़ी आकृतियाँ बनाना अधिक पसंद था।
प्रश्न 10.
काँगड़ा शैली में चित्रित किए लोकप्रिय विषय कौन-कौन से हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
काँगड़ा शैली का मुख्य विषय प्रेम है। जो लय, शोभा और सौन्दर्य के साथ प्रदर्शित किया गया है। भागवत पुराण, गीत गोविंद, नल दमयंती, बिहारी सतसई, रागमाला, नायिका भेद, रसिक प्रिया की प्रणय कथाएँ, बारहमासा, कृष्ण लीला, व्यक्ति चित्रण, श्रृंगारिक चित्रण, प्रकृति चित्रण आदि काँगड़ा शैली में चित्रित किए गये लोकप्रिय विषय रहे।
प्रश्न 11.
पहाड़ी चित्र शैली के ‘गुलेर-काँगड़ा चरण’ से आप क्या समझते हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
गुलेर-काँगड़ा चरण- अठारहवीं शताब्दी के पहले चौथाई भाग (1690 से 1730) के दौरान बसौली शैली के चित्रों में पूरी तरह से बदलाव देखने को मिला, जिससे एक नई शैली प्रचलन में आई, जिसे गुलेर-काँगड़ा चरण’ कहा गया। यह शैली बसौली की तुलना में अधिक परिष्कृत व सुरुचिपूर्ण है। इसका विकास पंडित सेऊ व उनके पुत्र मनकू व नैनसुख ने किया।
प्रश्न 12.
भोपा किसे कहा जाता है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
राजस्थान की फड़ चित्रण परम्परा के अन्तर्गत लोक देवताओं यथा गोगाजी, तेजाजी, देव नारायण जी, रामदेव जी, पाबूजी और हडबूजी आदि के पुजारियों को भोपा कहा जाता हैं। यह एक प्रकार की घुमंतू चारण जाति होती है, इनके द्वारा फड़ के समक्ष दीप जलाकर रात्रि जागरण किया जाता है और भक्ति गीत गाये जाते हैं।
प्रश्न 13.
पट्ट चित्रण के बारे में जानकारी दीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पट्ट या पाटा चित्रण चित्रकला मुख्य रूप से भारत के पश्चिम में गुजरात और राजस्थान, पूर्व में ओडिशा व पश्चिम बंगाल में मुख्य रूप से प्रचलित है। इसमें चित्र धरातल के लिए कपड़ा, ताड़ के पत्तों व कागज का उपयोग किया जाता है। इस कला को पाटा, पछड़ी या फड़ नाम से भी जाना जाता है।
खण्ड – स
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 14.
बूंदी चित्र शैली के प्रमुख चित्र रागदीपक और बारहमासा के बारे में लिखिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
कोटा चित्र शैली का विकास एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
रागदीपक- राग दीपक चित्र में रात्रि के दृश्य में नायक व नायिका को एक कक्ष में बैठे बनाया गया है। जहाँ चार दीपक बनाए गए हैं। दीपक से प्रकाश निकल रहा है। यहाँ दो दीपक मानव आकृति के समान हैं। चित्र में पीले रंग से चंद्रमा व तारे बनाए गए हैं। वहीं चित्र में एक जगह पीले रंग का स्थान रिक्त रखा गया है जो कि कुछ लिखने के लिए खाली छोड़ा गया है । इस पर दीपक राग के अलावा कुछ नहीं लिखा गया है। शायद चित्र में मुंशी द्वारा लेख लिखने से पूर्व ही चित्रकार ने पेंटिंग को समाप्त कर दिया था।
बारहमासा- बारहमासा बूंदी का एक लोकप्रिय विषय रहा है, जिसमें केशव दास द्वारा रचित कविप्रिया के दसवें अध्याय में 12 महीनों के दैनिक वातावरण में होने वाले परिवर्तन की व्याख्या है। जो ओरछा की प्रसिद्ध गायिका राय परवीन के लिए लिखी थी।
प्रश्न 15.
मुगलकालीन शैली के चित्र ‘जेब्रा’ का वर्णन करो? (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
उत्तर कालीन मुगल पेंटिंग की विशेषताओं का वर्णन करो। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
जेब्रा का वर्णन- जेब्रा नामक चित्र में चित्रित जेब्रा इथोपिया का है। जो तुर्कों द्वारा लाया गया था। इस जेब्रे को तुर्क मीर जाफर द्वारा जहाँगीर को भेंट किया गया था। जहाँगीर ने इस पर दरबारी फारसी भाषा में लिखा था कि एक खच्चर जिसे मीर जाफर की कम्पनी में तुर्क (रूमियान) इथोपिया (हबेशाल) से लाये थे। इसके समान चित्रण ही उस्ताद मंसूर (नादिर उल असर) द्वारा किया गया था। इस जानवर को जहाँगीर के समक्ष नवरोज (नए साल) के अवसर पर पेश किया गया था। जहाँगीर ने इसे ध्यान से देखा था क्योंकि कुछ लोगों ने सोचा था कि यह एक घोड़ा है जिस पर किसी ने पट्टियाँ बना दी हैं। जहाँगीर ने इसे ईरान के शाह अब्बास को भेजने का निर्णय लिया, जिनके साथ वह अक्सर जानवरों व पक्षियों सहित दुर्लभ व अनोखे उपहारों का आदान-प्रदान करता था। बदले में शाह भी उन्हें दुर्लभ उपहार भेजता था। यथा पहले बाज भेजा था। कालान्तर में यह चित्रण शाहजहाँ के अधिकार में आ गया और इसे शाही एल्बम में जोड़ा गया तथा चित्र की सीमाओं को चित्रकारी के साथ नया रूप दिया गया।
यह चित्र जहाँगीर के बाद उनके पुत्र शाहजहाँ को प्राप्त हुआ। शाहजहाँ द्वारा इस चित्र को शाही चित्रों और पुस्तकों में शामिल किया गया। चित्र में निर्मित अलंकृत हाशिए शाहजहाँ काल में चित्रित किए गए।
प्रश्न 16.
पहाड़ी शैली के चित्र प्रतीक्षारत कृष्ण और संकोची राधा का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
वासक सज्जा नायिका का क्या तात्पर्य है? (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
प्रतीक्षारत कृष्ण और संकोची राधा- जयदेव रचित गीत गोविंद पर मानक द्वारा बनाए गए चित्रों की श्रेष्ठ श्रृंखला है, जिसमें राधा कृष्ण के यमुना तट पर प्यार या प्रेम से शुरुआत होती है। गीत गोविंद में बसंत ऋतु का सुंदर वर्णन तथा गोपियों के साथ कृष्ण के खेल का वर्णन भी है। कृष्ण द्वारा उपेक्षित दुखी होकर राधा मंडप में बैठी अपनी एक सखी को रोते हुए कृष्ण के बारे में बताती है कि वह सुंदर चरवाहों की कन्याओं के साथ खेलते और घूमते रहते हैं। कुछ समय पश्चात कृष्ण को पश्चात्ताप होता है और वे राधा को ढूँढ़ने के लिए आते हैं। राधा के न मिलने पर विलाप करते हैं। संदेशवाहक राधा के पास जाता है और कृष्ण की मनोदशा से उसे अवगत करवाता है।
इसे सुनकर राधा उनसे मिलने के लिए तैयार हो जाती है फिर राधा और कृष्ण का भक्तिपूर्ण मिलन का वर्णन होता है। यहाँ सभी पात्र दिव्य रूप में हैं, जहाँ राधा को एक भक्त या आत्मा के रूप में और कृष्ण को ब्रह्मांड की शक्ति के रूप में दिखाया है जिसमें राधा को आत्मसात हो जाना है। यहाँ खेला गया प्रेमीरूपी खेल मानवीय है। इस चित्र में राधा को शर्माते और झिझकते हुए चित्रित किया गया है। वह कृष्ण से मिलने के लिए वन क्षेत्र में पहुँचती है जहाँ कृष्ण उसकी व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।
खण्ड – द
निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 17.
बीकानेर चित्रकला शैली का वर्णन कीजिए। (2)
अथवा
कोटा और बूंदी चित्रकला शैलियों की विषयवस्तु का वर्णन कीजिए। (2)
उत्तर:
बीकानेर चित्रकला शैली:- 1488 ई. में राव बीका के द्वारा बीकानेर की स्थापना की मई । बीकानेर शैली में अनूप सिंह द्वारा (1659-1698 ई.) में पाण्डुलिपियों व चित्रों के संरक्षण हेतु एक पुस्तकालय का निर्माण करवाया गया। वहीं बीकानेर का मुगलों से मधुर संबंध होने के कारण इसके प्रभाव से यहाँ के चित्रों में हल्की रंग संगति देखने को मिलती है । बीकानेर शैली के विकास में दिल्ली दरबार से आए कलाकार उस्ताद अली रजा को महाराजा करणसिंह ने अपने दरबार में आश्रय दिया। अली रजा के चित्रों से ही बीकानेर शैली के आरंभिक उदाहरण देखने को मिलते हैं। अनूपसिंह ने चित्रकार रुकनुद्दीन (जिसके पूर्वज मुगल कलाकार थे) को आश्रय दिया। चित्रकार रुकनुद्दीन की शैली में मुगल व दक्षिण शैली का प्रभाव दिखाई देता है।
चित्रकार रुकनुद्दीन ने रामायण, रसिकप्रिया और दुर्गा सप्तशती आदि ग्रंथों का चित्रण किया। बीकानेर में इब्राहिम, नाथू, साहिबदीन, ईसा आदि प्रमुख चित्रकार थे। अनूपसिंह के समय बीकानेर शैली में कई ‘कला केन्द्र’ (आर्ट स्टूडियो) बने हुए थे, इन स्टूडियो को ‘मंडी’ कहा जाता था, मंडियों में नए लघु चित्रों के साथ-साथ पुराने चित्रों को ठीक करने के साथ पुराने चित्रों की प्रकृतियां भी बनायी जाती थीं। बीकानेर में मुख्य कलाकारों के निर्देशन में अन्य सहायक कलाकार कार्य किया करते थे। बीकानेर में रुकनुद्दीन इब्राहीम और नाथू ने मंडियों की स्थापना कर रखी थी। बीकानेर शैली में चित्रों के पूर्ण हो जाने पर मुंशी द्वारा चित्रकार का नाम, दिनांक व चित्र का विवरण लिखा जाता था। मुख्य चित्रकार अपने शिष्यों के द्वारा बने चित्रों पर अंतिम कार्य (फिनिशिंग टच) किया जाता था जिसे ‘गुडरायी’ कहा जाता था। इसका अथ उठाना होता था।
बीकानेर शैली में चित्रकारों की जानकारी के साथ-साथ उनकी वंशावली भी प्राप्त होती है। बीकानेर में चित्रकार को उस्तास या उस्ताद कहा जाता था। चित्रकार रुकनुद्दीन ने अपने चित्रों में हल्के रंगों का प्रयोग किया। वहीं इब्राहिम के चित्रों में खूबसूरत चेहरों व स्वप्नलोक जैसा प्रभाव दिखाई देता है। इब्राहिम का नाम बारहमासा, रागमाला और रसिकप्रिया के चित्रों पर भी दिखाई देता है। बीकानेर शैली के लेख, अभिलेख, डायरी व पाण्डुलिपियाँ हैं, जो इसे अन्य शैलियों से भिन्न करती हैं। यहाँ चित्रों में कहीं-कहीं पर फारसी भाषा में कलाकारों के नाम, तिथि व स्थान आदि का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
प्रश्न 18.
कम्पनी शैली और राजा रवि वर्मा का विस्तृत वर्णन कीजिए। (2)
अथवा
भारतीय पुनरुत्थान कालीन कला की व्याख्या कीजिए। (2)
उत्तर:
कम्पनी शैली:- भारत में अंग्रेजों के आने से पूर्व भारतीय कला के अलग ही आयाम थे। जो कि लोक कलाओं के रूप में भारत के विभिन्न स्थानों पर देखे जा सकते हैं, जैसे-मंदिरों व घरों की दीवारों पर, लघु चित्रों व पांडुलिपियों आदि के रूप में। 18वीं शताब्दी में अंग्रेज भारतीय वनस्पतियों, जीव-जंतुओं, रीति-रिवाज, ऐतिहासिक स्थानों से प्रभावित हुए और उन्होंने भारतीय चित्रकारों को चित्रण हेतु नियुक्त किया। इन चित्रकारों ने भारत के जनजीवन व आसपास की स्मृति को बनाए रखने के लिए या अंग्रेज़ अधिकारियों को प्रसन्न करने के लिए चित्र बनाये। यह सभी चित्र कागज पर बनाए जाते थे। यहाँ कुछ चित्रकार मुर्शिदाबाद, लखनऊ, दिल्ली के दरबारों से आए चित्रकार थे। भारतीय और यूरोपीय कला तत्वों के सम्मिश्रण से जिस शैली का उदय हुआ उसे ‘कंपनी शैली’ के नाम से जाना जाता है। यह शैली भारत के साथ-साथ ब्रिटेन में भी लोकप्रिय थी। जहाँ इन चित्रों या श्रृंखला (एल्बम) की बहुत माँग थी।
राजा रवि वर्मा:- 19वीं शताब्दी के मध्य भारत में फोटोग्राफी के आविष्कार के साथ ही यथार्थ शैली का हास हुआ । अंग्रेजों द्वारा स्थापित कला विद्यालयों में पाश्चात्य ऑयल पेंटिंग में भारतीय विषयों का चित्रण करवाया गया। इस प्रकार के चित्रकारों में राजा रवि वर्मा का नाम उल्लेखनीय है। जो त्रावणकोर के राजघराने के दरबारी चित्रकार थे। रवि वर्मा एक आत्मदीक्षित चित्रकार थे (किसी भी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त नहीं की) इन्होंने पाश्चात्य (यथार्थ) शैली के चित्रों की अनुकृतियां बनाकर अपने आप यथार्थवादी शैली में सिद्धहस्त हुए। आपके चित्रों में पाश्चात्य तकनीक (तैल चित्रण) और भारतीय विषय का प्रयोग देखा जा सकता है, जिसका प्रयोग रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय विषयों हेतु किया गया।
रवि वर्मा ने अपने चित्रों की माँग को पूरा करने के लिए ओलियोग्राफ (कैलेंडर) छपवाकर बाजार में बेचे, साथ ही कैलेंडर के रूप में अपने चित्रों को घर-घर पहुँचाया। 19वीं सदी के अंत में बंगाल स्कूल के उदय के साथ ही राष्ट्रीय विचारों तथा भावनाओं का उदय हुआ। रवि वर्मा की कला को विद्वानों द्वारा पाश्चात्य प्रभावयुक्त माना गया। उन्होंने भारतीय पौराणिक विषयों को आधार मानकर चित्र रचनाएँ की।
Leave a Reply