Students must start practicing the questions from RBSE 12th Drawing Model Papers Set 8 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Drawing Model Paper Set 8 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 24
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – अ
प्रश्न 1.
दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें-
(i) ओरछा की एक प्रसिद्ध गायिका राय परवीन के लिए लिखा गया काव्य है- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) गीत गोविन्द
(ब) रसिक प्रिया
(स) कवि प्रिया
(द) बिहारी सतसई
उत्तर:
(स) कवि प्रिया
(ii) राजस्थानी शैली की आरम्भिक व प्रमुख शैली है- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) मेवाड़
(ब) बूंदी
(स) कोटा
(द) बीकानेर
उत्तर:
(अ) मेवाड़
(iii) मुगल शासक जहाँगीर के समय में चित्रों के एलबम बनाये जाते थे। इन एलबम को कहा जाता था- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) मुनक्का
(ब) रुक्का
(स) चित्रशाला
(द) मुरक्का
उत्तर:
(द) मुरक्का
(iv) उड़ते सारस, शेर व चीनी बादलों का अंकन किस चित्र में किया गया है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) पोलो खेलते चांद बीबी
(ब) योगनी
(स) समग्र घोड़ा
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) समग्र घोड़ा
(v) भारतीय शैलियों में सबसे अधिक काव्यात्मक और गीतात्मक चित्रण शैली है- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) काँगड़ा
(ब) बसौली
(स) गुलेर
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) काँगड़ा
(vi) पिछवाई चित्र परम्परा का सम्बन्ध किस स्थान से है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) जयपुर
(ब) किशनगढ़
(स) नाथद्वारा
(द) मिथिला
उत्तर:
(स) नाथद्वारा
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) ‘दाराशिकोह की बारात’ नामक चित्र …………… के द्वारा बनाया गया। (\(\frac {1}{2}\))
(ii) गोलकुंडा चित्र. शैली के शुरुआती प्रभाव ……………… के 5 लघु चित्र हैं। (\(\frac {1}{2}\))
(iii) गगेन्द्र नाथ टैगोर पहले भारतीय चित्रकार थे जिन्होंने अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए …………….. का प्रयोग किया। (\(\frac {1}{2}\))
(iv) प्राचीन काल से ही ………………. का प्रतीकात्मक प्रभाव माना गया है। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) हाजी मदानी,
(ii) दीवाने-ए-हसिफ,
(iii) क्यूविज्म शैली
(iv) लोककला परम्परा।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) बीकानेर के किस शासक ने पाण्डुलिपियों व चित्रों के संरक्षण हेतु एक पुस्तकालय का निर्माण करवाया। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
अनूप सिंह ने।
(ii) किस चित्र शैली के चित्रों में चित्रित सोने से सुसज्जित सुंदर आभूषण हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
गोलकुंडा चित्र शैली।
(iii) महिला के साथ बालक किस चित्रकार का चित्र है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
यामिनी राय का।
(iv) टेराकोटा क्या है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मिट्टी को पकाकर मूर्ति बनाने की कला टेराकोटा कहलाती है।
(v) मोम को हटाकर बनाई जाने वाली मूर्ति कला का क्या नाम है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
ढोकरा ढलाई।
(vi) राम सीता के विवाह का सम्बन्ध किस कला से है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मिथिला कला से।
खण्ड – ब
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 4.
मुगल चित्रकला पर किन शैलियों का प्रभाव दृष्टिगत होता है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मुगल चित्रकला शैली में फारसी, भारतीय और.यूरोपीय विषयों का प्रभाव दिखाई देता है। मुगल चित्रकला में हिन्दू-मुस्लिम और यूरोपीय संस्कृति का समावेश है। इन शैलियों के सम्मिश्रण से बने चित्र उस समय की भारतीय और ईरानी शैली से भी अधिक सुंदर थे।
मुगल चित्रकारों ने अपने आस-पास कौशल, परिकल्पनायें और विश्वासों को चित्रित किया।
प्रश्न 5.
अकबर के समय चित्रकारों ने कौन-कौन से विषयों को चित्रित किया? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
अकबर के समय चित्रकारों ने विभिन्न विषयों को चित्रित किया जिसमें राजनीतिक विषय, दरबारी दृश्य, धार्मिक-पौराणिक कथाएँ, महत्वपूर्ण व्यक्तियों के व्यक्ति चित्र तथा फारसी व इस्लामी विषय सम्मिलित थे।
प्रश्न 6.
बीजापुर चित्रकला को किसने व कैसे पोषित किया था? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
बीजापुर के चित्रकला विद्यालय को आदिल शाह प्रथम (1558-1580) व उनके उत्तराधिकारी इब्राहिम द्वितीय (1580-1627) द्वारा संरक्षण प्रदान किया गया था। इन दोनों ने कला व साहित्य को संरक्षण दिया था। इब्राहिम द्वितीय भारतीय संगीत के विशेषज्ञ थे जिन्होंने नौरस नामक पुस्तक भी लिखी थी। इब्राहिम द्वितीय नुजुम-अल-उलुम पाण्डुलिपि के स्वामी होने के साथ-साथ रागमाला श्रृंखला (1590) को चालू करने वाले भी थे। बीजापुर और तुर्की का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध था, जिसके कारण नुजुम-अल-उलुम के खगोलीय चित्रों को तुर्की पाण्डुलिपियों में दिया है।
प्रश्न 7.
बगीचे में कवि चित्र का वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
बगीचे में कवि चित्र- इस चित्र का चित्रण मोहम्मद अली के द्वारा किया गया है। यह गोलकुण्डा शैली का चित्र है, जिसे 16051615 के दौरान निर्मित किया गया था। यह चित्र वर्तमान में बोस्टन के कला संग्रहालय (संयुक्त राज्य अमेरिका) में संग्रहित है। इसमें कवि को बगीचे के बीच बैठकर रचना करने के लिए कल्पना करते चित्रित किया गया है। इस चित्र में कवि घुटनों के बल बैठा है उसने भूरे रंग का लबादा, गुलाबी रंग का दुपट्टा व सफेद रंग की फारसी शैली की पगड़ी पहन रखी है। चित्र के पश्च भाग में फूल-पत्तियों को तथा अग्रवर्ती भाग में हरी घास को चित्रित किया गया है। कवि के पास आगे की ओर कुछ बर्तन भी चित्रित किये गये हैं जो शायद स्याही, पानी आदि हेतु रखे गये हैं।
प्रश्न 8.
सुल्तान आदिल शाह के चित्र की विशेषताएँ लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
यह एक असाधारण ऊर्जा व संवेदनशीलता से युक्त चित्र है, जिसमें घोड़े के अंगों व पूँछ पर शानदार लाल रंग प्रयुक्त किया गया है तथा सुल्तान आदिल शाह का बहता हुआ वस्त्र एक मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
सुल्तान के चेहरे व घोड़े तथा चट्टानों पर फारसी प्रभाव देखने को मिल रहा है। सरपट दौड़ता घोड़ा ऊर्जा उत्पन्न कर रहा है। पौधों व घने परिदृश्य से देशी शैली नजर आ रही है। सफेद बाज को नाजुकता के साथ दर्शाया गया है। यह चित्र मनोरम परिदृश्य को उत्पन्न करता है। यह चित्र विज्ञान लेनिनग्राद रूस में संग्रहित है।
प्रश्न 9.
राग हिंडोला की रागिनी पाठमशिका चित्र की कोई चार विशेषताएँ बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
- यह चित्र रागमाला परिवार की संगीत विद्या को दर्शाता है।
- चित्र में मुगल व फारसी प्रभाव भी परिलक्षित होता है।
- चित्र में आकृतियाँ शैलीबद्ध हैं और शरीर का अंकन वैज्ञानिक ढंग से किया गया है।
- चित्र में हाथी का अंकन सँड़ उठाए स्वागत मुद्रा में चित्रित है, जिस पर अजंता के भित्ति चित्रों का प्रभाव प्रदर्शित होता है।
प्रश्न 10.
काँगड़ा शैली में नारी आकृतियों के चित्रण का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
काँगड़ा शैली में नारियों की आकृति को निम्न प्रकार से चित्रित किया गया है-
- शरीर छरहरा तथा गोल मुखाकृति।
- धनुषाकार बड़ी-बड़ी भाव प्रवण आँखें।
- लोचदार अँगुलियाँ।
- चोली, लहँगा व पारदर्शी चुनरी पहने हुए।
- गले में माला, माथे पर बिंदी, पैरों में पायल, हाथों में चूड़ियाँ एवं अँगूठी पहने हुए।
प्रश्न 11.
“पहाड़ी शैली में गुलेर के चित्रों की एक लम्बी परम्परा रही है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
हाँ, ऐसा प्रतीत होता है कि पहाड़ी शैली में गुलेर के चित्रों की एक लम्बी परम्परा रही है। यह बात इससे प्रमाणित होती है कि दलीप सिंह के शासन काल (1695-1743) में हरिपुर-गुलेर में चित्रकार चित्रकारी के काम कर रहे थे क्योंकि दलीप सिंह और उनके पुत्र विशन सिंह के अनेकों चित्र 1730 से पहले अर्थात ‘गुलेर-काँगड़ा चरण’ के प्रारम्भ होने से पहले के पाये गये हैं।
प्रश्न 12.
मिथिला चित्रों की विशेषताएँ बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मिथिला चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- मिथिला चित्रों में चमकीले रंगों का प्रयोग किया जाता है।
- इन चित्रों को घर के तीन क्षेत्रों में चित्रित किया जाता है।
- इस कला में भागवत पुराण, रामायण के प्रसंग, शिव पार्वती की कथा, राधाकृष्ण की रासलीला, दुर्गा-काली आदि देवी-देवताओं का अंकन किया जाता है।
- इस कला के अन्तर्गत चित्रों में खाली स्थान नहीं रखा जाता है। शेष बचे स्थान पर पक्षी, फूल, जानवर, मछली, सर्प, सूर्य, चंद्रमा जैसे प्राकृतिक तत्वों को चित्र की सजावट कर चित्र को पूरित किया जाता है।
प्रश्न 13.
वर्ली समुदाय की चौक चित्रकला के बारे में लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
वर्ली समुदाय की विवाहित महिलाएँ विशेष अवसरों पर चौके नामक अपनी महत्वपूर्ण कला निर्मित करती हैं। यह विवाह, उर्वरता, फसल कटाई और बुवाई के समय निर्मित किए जाते हैं। चौक पर माँ देवी (पालघाट) की आकृति का प्रभुत्व होता है। इसे छोटे वर्गाकार खानों में चित्रित किया जाता है। जिसके बाहरी किनारों को नुकीले शहतीरों से सजाया जाता है।
खण्ड – स
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 14.
कोटा चित्र शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
चुनार रागमाला के चित्र राग दीपक का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बूंदी की उन्नत चित्र शैली के आधार पर ही कोटा चित्र शैली का आरंभ हुआ। कोटा चित्रकला शैली में शिकार के दृश्यों की बहुलता रही है। कोटा शैली में जानवरों का पीछा करते हुए दृश्यों का चित्रण प्रमुखता से किया गया है। 1625 ई. तक कोटा व बूंदी एक ही राज्य के भाग थे किंतु जहाँगीर के पुत्र शाहजहाँ के विद्रोह को दबाने के इनामस्वरूप रतन सिंह के पुत्र मधुसिंह को बूंदी का शासक बनाया गया। कोटा शैली के चित्र बूंदी से इतने मिलते-जुलते हैं कि उनमें भेद करना मुश्किल है। कोटा शैली में कुछ चित्रों में तो बूंदी के समान ही अलंकरण वास्तु व अन्य चीजों का चित्रण एक समान किया गया है।
सन् 1600 ई. में बूंदी ने अलग पहचान स्थापित की जिसका श्रेय जगतसिंह (1658-1683) को जाता है। इसी प्रकार रामसिंह प्रथम (1686-1708) के समय भी विभिन्न विषयों का चित्रण हुआ। कोटा शैली के चित्रकारों ने दृश्य चित्र बनाए जो कि प्रथम प्रयोग था। महाराजा उम्मेदसिंह (1770-1819) केवल दस वर्ष की उम्र में शासक बने। उम्मेद सिंह ने अपने आप को जंगली जानवरों के शिकार, खेलकूद व वनभ्रमण में व्यस्त कर लिया था। जिसको चित्रकारों ने चित्रित किया। कोटा में जानवरों का पीछा करने व उसमें महिलाओं की भागीदारी को भी दिखाया गया है। कोटा शैली में छायांकन प्रभाव, दोहरी आँखों की पुतलियों व शिकार के दृश्य विशेष हैं।
प्रश्न 15.
मुगलकालीन चित्रकला के विकास में जहाँगीर के योगदान का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
शाहजहाँ कालीन चित्रकला की विशेषताओं का वर्णन करो। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मुगल कालीन चित्रकला के विकास में जहाँगीर का योगदान- जहाँगीर की आत्मकथा ‘तुजुक ए जहाँगीरी’ में जहांगीर की कला में रुचि और वनस्पति, जीवों या चित्रांकन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिए किये गए प्रयासों का विवरण मिलता है। जहाँगीर के संरक्षण में मुगल चित्रकला में प्राकृतिक और वैज्ञानिक सटीकता और उच्चता दिखाई देती है। जहाँगीर के समय में चित्रों के एल्बम बनाये जाते थे। इन एल्बम को ‘मुरक्का’ कहा जाता था।
जहाँगीर कालीन चित्रों में हाशिए या बॉर्डर को सोने के रंग से बनाया जाता था। कई बार वनस्पतियों, जीवों और मानव आकृतियों को भी इन हाशियों पर चित्रित किया जाता था। जहाँगीर कालीन कला में सूक्ष्म विवरण भव्य दरबार, अभिजात्य शाही व्यक्तित्व, वनस्पतियों और जीवों की विशेषताओं के साथ चित्रित किया। जहाँगीर के दरबार में जब यूरोपीय लोग आते तो अपने साथ श्रेष्ठ यूरोपीय चित्र और सजावटी सामान लाते जो उपहारस्वरूप बादशाह को भेंट करते। जहाँगीर के ब्रिटिश राजपरिवार से अच्छे संबंधों के कारण जहाँगीर का यूरोपीय कला और उनके विषयों के प्रति आकर्षण बढ़ा। इस आकर्षण से ही प्रेरित होकर जहाँगीर ने यूरोपीय चित्रों का संग्रह किया।
जहाँगीर के समय में ईसाई धर्म की विषयवस्तु का चित्रण हुआ, जिससे सांस्कृतिक और कलात्मक विशेषताओं का समागम हुआ। प्रचलित भारतीय व ईरानी शैली में यूरोपीय विचारों के मिश्रण से जहाँगीर कालीन कला और अधिक प्रभावशाली तथा जीवंत हो गई। मुगल चित्रशाला में चित्रकारों ने तीन शैलियों स्वदेशी, फारसी और यूरोपीय को आत्मसात किया।
प्रश्न 16.
बसौली शैली के चित्र ‘शृंगरी रामायण-राम का संपत्ति त्याग’ का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
गुलेर चित्रकला का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बसौली शैली के चित्र श्रृंगरी रामायण-राम का संपत्ति त्याग- बसौली शैली के इस चित्र में राम वनवास जाने से पूर्व अपनी पत्नी और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या छोड़ने की तैयारी में लगे हुए हैं। राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ अपनी संपूर्ण संपत्ति को जनता में बाँटते हुए चित्रित किया गया है। इस चित्र में बायीं ओर राम और लक्ष्मण को सीता के साथ कालीन पर खड़े दिखाया गया है, सामने की ओर दान प्राप्त करने वाले लोगों की भीड़ लगी है। चित्रकार द्वारा इस दृश्य में वैरागी, ब्राह्मणों, दरबारियों, घरेलू सेवकों, आम लोगों को चित्रित किया है। इस चित्र में गाय के बछड़े टकटकी लगाए खुले मुंह से राम को निहार रहे हैं।
स्थिति की गंभीरता को चित्रकार द्वारा अलग-अलग भावों में प्रदर्शित किया है जैसे-शांत और धीरे से मुस्कुराते राम, जिज्ञासु लक्ष्मण, आशंकित सीता, बिना चेहरे पर खुशी लाए दान प्राप्त करते ब्राह्मण आदि। ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक का निशान, गाल पर हल्की दाढ़ी और मूंछे का अंकन किया गया है। 1690-1700 में निर्मित यह चित्र लॉस ऐंजिल्स काउंटी कला संग्रहालय (संयुक्त राज्य अमेरिका) में सुरक्षित है।
खण्ड – द
निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 17.
जोधपुर चित्रशैली के उद्भव, विकास एवं इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2)
अथवा
राजस्थान शैली और मालवा शैली का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए। (2)
उत्तर:
जोधपुर चित्रशैली का उद्भव एवं विकास- जोधपुर क्षेत्र में पनपी और आसपास विकसित हुई चित्रकला मारवाड़ अथवा जोधपुर चित्रशैली के नाम से जानी जाती है। जोधपुर चित्रशैली को बढ़ावा व विकसित करने का श्रेय महाराजा ‘मालदेव’ (15321562 ई.) को जाता है। इस समय के चित्र ‘चौखे का महल एवं चित्रित उत्तराध्ययन सूत्र में प्राप्त करते हैं। मालदेव के पश्चात् राजा सूरसिंह (1568-1618ई.) के समय में ‘ढोला मारू”रसिक प्रिया’ व ‘भागवत पुराण’ आदि ग्रन्थों का चित्रांकन हुआ।
महाराजा गजसिंह (1618-1632 ई.) एवं महाराजा जसवंत सिंह (1638-1678 ई.) कला में अभिरुचि होने के कारण कला व साहित्य के संरक्षक थे। जोधपुर शैली का विकास इन्हीं के राज्यकाल में हुआ और इन्हीं के राज्यकल में जोधपुर शैली अपने उच्च स्थान को प्राप्त कर सकी। इसी समय अनेक ग्रन्थ व प्रेम से सम्बन्धित चित्र अधिक बने, धार्मिक ग्रन्थों की रचना भी इसी समय हुई। महाराजा अजीतसिंह (1707-1724 ई.) के शासनकाल में मारवाड़ी शैली का उद्भव व विकास स्वतन्त्र रूप से हुआ। मारवाड़ शैली के अत्यधिक सुन्दर व सजीव चित्र इन्हीं के शासनकाल में बने हैं। श्रृंगार रस के प्रसिद्ध काव्य ‘रसिक प्रिया’, गीत-गोविन्द आदि को विषय के रूप में लेकर चित्रण किया गया है।
महाराजा अभयसिंह (1744-1749 ई.) भी अपने पूर्वजों की भांति कलाप्रिय राजा था, उसने कला को बहुत प्रोत्साहन दिया। ‘राधा-कृष्ण’ ‘ढोलामारू’ इन्हीं के काल के प्रमुख व विख्यात चित्र हैं।
विजयसिंह के समय (1753-1793 ई.) में ‘भक्ति व श्रृंगार रस’ के चित्रों का निर्माण हुआ। महाराजा भीमसिंह (1793-1803 ई.) के शासनकाल में व्यक्ति चित्र, दरबार एवं जुलूस से सम्बन्धित चित्रों का मुख्य रूप से अधिक चित्रण किया गया। जोधपुर शैली का सन् 1800 ई. में चित्रित चित्र ‘दशहरा दरबार’ इस समय का सुन्दर उदाहरण है।
मारवाड़ी शैली का अन्तिम महत्वपूर्ण चरण का प्रारम्भ महाराजा मानसिंह (1803-1843 ई.) के राज्यकाल से माना जाता है। मानसिंह के काल में नाथ सम्प्रदाय में आस्था बढ़ी, जिसके फलस्वरूप बड़ी संख्या में पुस्तकें लिखी गयी व उन्हीं से सम्बन्धित चित्रों का निर्माण हुआ। जिनमें प्रमुख चित्र हैंढोलामारू, शिवपुराण, नाथ चरित्र, दुर्गा चरित्र, पंचतंत्र, रागमाला व कामसूत्र आदि। जोधपुर चित्रशैली की प्रमुख विशेषताएंजोधपुर चित्रशैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) जोधपुर चित्रशैली में पुरुष आकृति को लम्बे चौड़े, गठीले बदनयुक्त, घनी दाढ़ी-मूं. युक्त, बड़ी-बड़ी आँखें एवं शिखरनुमा पगड़ियाँ युक्त व राजसी वैभव के वस्त्राभूषण युक्त चित्रित किया गया है। पुरुषाकृतियों को मुगल वेशभूषा में चित्रित किया गया है, जो मुगल प्रभाव का प्रतीक है।
(2) इस शैली के चित्रों में स्त्रियों के अंग-प्रत्यंगों का अंकन भी गठीला है। नारी-आकृति को छरहरी कद-काठी और आभूषणों से युक्त, सुन्दर मुख-मण्डल, उभरा ललाट, बादाम-सी आँखों युक्त दिखाया गया है। उनकी वेशभूषा में राजस्थानी लहंगा, ओढ़नी तथा लाल फुन्दों का प्रयोग प्रमुख रूप से हुआ है।
(3) जोधपुर शैली के चित्रों में मरु के टीलों, छोटे-छोटे झाड़ व पौधे दर्शाए गए हैं। आम्र वृक्षों का चित्रण अधिक हुआ है। प्रकृति चित्रण में मेघों में गहरे काले रंग में गोलाकार दिखाया गया है। क्षितिज में कुंडलित बादले भी दिखलाए गए हैं। बादलों में बिजली की चमक को साकार रूप में दर्शाया गया है। चित्रों में मरुप्रदेश का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
(4) इस शैली के चित्रों में रंग-संयोजन में चमकीले रंगों की प्रधानता है। लाल तथा पीले रंगों की बहुलता है, जो यहाँ की स्थानीय विशेषता है।
प्रश्न 18.
निम्नलिखित चित्रों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए- (2)
1. राधिका
2. रात में शहर
3. यात्रा का अंत
अथवा
नंदलाल बसु के कलात्मक योगदान का उल्लेख कीजिए। (2)
उत्तर:
राधिका- यह चित्र चित्रकार अब्दुल रहमान चुगताई (1899-1975) द्वारा बनाया गया है। चित्र को कागज पर वॉश तकनीक में चित्रित किया गया है। चुगताई के वंशज, शाहजहाँ के वास्तुकार उस्ताद अहमद जो दिल्ली के जामा मस्जिद, लाल किला व आगरा ताजमहल के वास्तुकार थे। आप अवनींद्र नाथ टैगोर, गगनेंद्रनाथ टैगोर और नंदलाल बसु से प्रभावित थे। चुगताई के चित्रों में मुगल फारसी प्रभाव व रेखाओं का प्रभाव दिखाई देता है। चित्र में राधिका को गहरी पृष्ठभूमि में जलते हुए दीपक से दूर जाते हुए लज्जाशील दिखाया गया है। चुगताई ने अपने चित्रों में किंवदंतियों, लोक कथाओं और इन्डो इस्लामिक, राजपूत और मुगल के ऐतिहासिक पात्रों को चित्रित किया है। चुगताई के चित्रों के विषय हिंदू और पौराणिक रहे हैं। चुगताई की अन्य रचनाओं में उदास राधिका, उमरख्याम, हीरामन तोता, एक पेड़ के नीचे महिला, संगीतकार महिला, एक मकबरे के पीछे आदमी, एक कब्र के पास महिला व दीपक जलाती महिला प्रमुख हैं।
रात में शहर- यह चित्र 1922 में गगनेन्द्र नाथ टैगोर (1869-1938) द्वारा बनाया गया था। चित्र का माध्यम जलरंग है। यह पहले भारतीय चित्रकार थे, जिन्होंने अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए क्यूविज्म शैली का प्रयोग किया। आपके चित्रों में रहस्यमयी और काल्पनिक नगर जैसे- द्वारका (भगवान कृष्ण का पौराणिक निवास) या स्वर्णपुरी (द गोल्डन सिटी). की कल्पना की गयी है। आपने हीरे के आकार के विमानों और प्रिज्म जैसे रंगों को चित्रित किया। पेंटिंग में जिकजैक पर्वत श्रृंखला और विमान बनाये गये। जिसमें से कृत्रिम रोशनी निकल रही है। चित्रकार ने स्टेज प्रॉप्स, पार्टीशन स्क्रीन, कृत्रिम लाइटिंग का प्रयोग किया गया है। चित्रों में कहीं-कहीं अंतहीन गलियारे, खम्भे, हॉल, आधे खुले दरवाजे, रोशनी वाली खिड़कियाँ, मेहराव आदि जादू की दुनिया के समान बनाये गये हैं।
यात्रा का अंत- 1913 में अवनींद्रनाथ टैगोर (1871-1951) द्वारा निर्मित यह पेंटिंग जलरंग वॉश द्वारा कागज पर बनाई गई है। अवनींद्रनाथ को आधुनिक कला का पिता कहा जाता है क्योंकि इन्होंने विषयों, शैली और तकनीकों में भारतीय और प्राचीन कला को पुनर्जीवित किया। आपने वॉश चित्रण तकनीक का भी आविष्कार किया। धोने की इस तकनीक में रंग धुंधले और सुहाने दिखाई देते हैं। चित्र में एक थके हुए ऊँट को लाल पृष्ठभूमि में दिखाया गया है। दिन के अंत के साथ ही ऊँट की भी यात्रा खत्म दिखाई है। ऊँट की शारीरिक विशेषताओं को रंगों तथा रेखाओं के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। चित्र का विषय व चित्रण संवेदनशील दिखाई देता है। अवनींद्रनाथ ने अपने चित्रों में द फॉरेस्ट, कमिंग ऑफ नाईट, माउंटेन ट्रेवलर, क्वीन ऑफ द फॉरेस्ट और द अरेबियन नाईट्स पर आधारित 45 चित्रों की एक श्रृंखला बनाई।
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