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RBSE 12th Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

April 8, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 12th Drawing Model Papers Set 9 with Answers in Hindi Medium provided here.

RBSE Class 12 Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 24

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देशः

  1. परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  2. सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  3. प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
  4. जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

खण्ड – अ

प्रश्न 1.
दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें-
(i) बुद्धि महल की शाही चित्रशाला में भित्ति चित्रण का कार्य किस शासक के समय में हुआ? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) रायसिंह
(ब) शेख हसन शेख अली
(स) उम्मेद सिंह
(द) बुद्धसिंह
उत्तर:
(अ) रायसिंह

(ii) राजस्थानी शैलियों में सबसे प्रसिद्ध चित्र शैली है- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) मेवाड़ शैली
(ब) किशनगढ़ शैली
(स) जयपुर शैली
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) किशनगढ़ शैली

(iii) ‘जहाँगीर का सपना’ नामक चित्र के चित्रकार कौन थे? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) अबुल हसन
(ब) शेख हसन
(स) विहजाद
(द) रेमब्रांट
उत्तर:
(अ) अबुल हसन

(iv) किस शैली के चित्रों में चित्रित सोने से सुसज्जित सुंदर आभूषण हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) बीजापुर
(ब) गोलकुण्डा
(स) अहमदनगर
(द) मुगल
उत्तर:
(ब) गोलकुण्डा

(v) अभिसारिका नायिका का चित्रण किस चित्र शैली में हुआ है- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) काँगड़ा
(ब) गुलेर
(स) बीजापुर
(द) बसौली
उत्तर:
(अ) काँगड़ा

(vi) मधुबनी चित्र परम्परा का संबंध किस स्थान से है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) मिथिला
(ब) जयपुर
(स) लखनऊ
(द) कलकत्ता
उत्तर:
(अ) मिथिला

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) महाभारत के फारसी अनुवाद को ……………………… के नाम से जाना जाता है। (\(\frac {1}{2}\))
(ii) हजरत निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो दक्षिण की प्रांतीय शैली ……………….. का चित्र है। (\(\frac {1}{2}\))
(iii) अवनींद्र नाथ टैगोर को …………………… कहा जाता है। (\(\frac {1}{2}\))
(iv) राजस्थान में भीलवाड़ा के आस-पास होने वाला ………………….. प्रसिद्ध है। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) रज्मनामा,
(ii) हैदराबाद,
(iii) आधुनिक कला का पिता,
(iv) फड़ चित्र

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) किशनगढ़ शैली का सबसे अधिक विकास किस शासक के समय में हुआ था? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
राजा सावंत सिंह (नागरीदास) के समय में।

(ii) संगीत से सम्बन्धित ग्रन्थ नौरस नामा किसकी कृति है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
बीजापुर के शासक इब्राहिम द्वितीय की।

(iii) यात्रा का अंत किस चित्रकार की कृति है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
अवनीन्द्र नाथ टैगोर की।

(iv) वी परम्परा में चौक पर किसकी आकृतियाँ बनाई जाती हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
माँ देवी (पालघाट) की आकृतियाँ।

(v) पिथौरा देव का अंकन किस कला में किया जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
पिथौरा कला में।

(vi) पिछवाई का सम्बन्ध राजस्थान के किस स्थान से है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
नाथद्वारा से।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

खण्ड – ब

निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 4.
अकबर के सांस्कृतिक एकीकरण को बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
अकबर ने सांस्कृतिक एकीकरण के उद्देश्य से हिन्दू ग्रन्थों के अनुवाद के साथ-साथ संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद व चित्रण करवाया, जिसमें हिन्दू महाकाव्य महाभारत का फारसी भाषा में अनुवाद और चित्रण करवाया। महाभारत के फारसी अनुवाद को रज्मनामा के नाम से जाना जाता है। रज्मनामा में अलंकृत सुलेखों के साथ 169 चित्र बने हैं। रामायण का अनुवाद और चित्रण भी इसी समय में किया गया था।

प्रश्न 5.
जहाँगीर कालीन चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
जहाँगीर के समय में चित्रों के एलबम बनाए जाते थे, जिन्हें मुरक्का कहा जाता था। इनके साथ में चित्रों में हाशिए या बॉर्डर को सोने के रंग से बनाया जाता था। कई बार वनस्पतियों, जीवों और मानव आकृतियों को भी इन हाशियों पर चित्रित किया जाता था। जहाँगीर के समय में ईसाई धर्म की विषयवस्तु का भी चित्रण हुआ।

प्रश्न 6.
गोलकुण्डा के चित्रों की विशेषता क्या है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
गोलकुण्डा की कला में नारी चित्रण विशेष शैली के रूप में विकसित हुआ है। यहाँ के चित्रों का नारी सौन्दर्य प्रशंसनीय है। ‘मैना और स्त्री’ शीर्षक वाला चित्र इसका सुन्दर उदाहरण है। इसके अतिरिक्त दरबारियों, राग-रागनियों तथा उमरावों के सुन्दर चित्रण भी किये गए हैं। तुजुक-ए-आसफी यहाँ का एक उल्लेखीय चित्रित ग्रंथ है।

प्रश्न 7.
मोहम्मद कुतुब शाह नामक चित्र का वर्णन कीजिए? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
गोलकुंडा शासक मोहम्मद कुतुब शाह (1611 ई. -1626 ई.) चित्र में उन्हें एक दीवान पर बैठे दिखाया गया है। शरीर पर गोलकुण्डा की विशिष्ट पोशाक व सुरुचिपूर्ण तंग टोपी पहने चित्रित किया गया है। यह चित्र कलाकार की परिष्कृत व कुशलता पूर्ण शैली का परिचय देता है, इस चित्र पर मुगल शैली का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

प्रश्न 8.
सूफी कविताओं पर आधारित चित्रों का वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
सूफी कविताओं पर आधारित चित्रों का निर्माण गोलकुण्डा शैली में हुआ। ये 20 से अधिक लघु चित्र हैं। इन चित्रों में सोने का प्रयोग अधिक मात्रा में किया गया है। आसमान को नीले व सुनहरे रंगों से चित्रित किया गया है जो. इन चित्रों की मख्य विशेषता है। महिला और पुरुषों की वेशभूषा इब्राहिम द्वितीय (बीजापुर) के समय में चित्रित चित्रों के समान है। चित्रों में वृक्षों और छोटे पौधों का अंकन सुंदर रंगों से किया गया है।

प्रश्न 9.
‘हजरत निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो’ किस शैली का चित्र है और यह वर्तमान में कहाँ संग्रहित है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
यह दक्षिण की प्रांतीय शैली हैदराबाद का चित्र है, जो राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित है। इस चित्र में हजरत निजामुद्दीन औलिया को अपने शिष्य अमीर खुसरो के साथ संगीत सुनते हुए चित्रित किया गया है। चित्र को सरल व सादगी से युक्त चित्रित किया गया है जो आकर्षक व लोकप्रिय भारतीय शैली का अंग है।

प्रश्न 10.
‘पूर्व काँगड़ा’ या ‘गुलेर-काँगड़ा कलाम’ से क्या अभिप्राय है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पूर्व कॉगड़ा या गुलेर-काँगड़ा कलाम-
चित्रकार पण्डित सेउ और उनके पुत्र मनकू व नैनसुख ने बसौली चित्र शैली में कुछ बदलाव करते हुए 1730-40 के आस-पास चित्रों की एक श्रृंखला बनाई। जो एक नयो शैली के रूप में परिवर्तित हो गयी। इस परिवर्तित नयी शैली को ही आमतौर पर ‘पूर्व काँगड़ा’ या ‘गुलेर काँगड़ा कलाम’ कहा जाता है। इस शैली का सबसे परिपक्व संस्करण 1780 के दशक में देखा गया।

प्रश्न 11.
काँगड़ा चित्र शैली की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्र की ‘काँगड़ा चित्रशैली’ अब तक ज्ञात भारतीय चित्र शैलियों में सबसे काव्यात्मक और गीतात्मक शैली है। यह शैली सौन्दर्य और कोमलता के साथ प्रस्तुत की गई। इस शैली की मुख्य विशेषता रंगों की चमक, सूक्ष्मता से सजावटी विवरण, रेखा की कोमलता, स्त्री चेहरे का चित्रण आदि हैं। स्त्री चेहरे का चित्रण माथे के साथ तथा सीधी नाक के साथ किया गया है जो 1790 के आस-पास प्रचलन में आया। स्त्री चेहरे में गोल मुखाकृति, बड़ी-बड़ी भाव प्रवण आँखों को दर्शाया गया है।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

प्रश्न 12.
पुरी के पट्ट चित्रण के बारे में बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
पुरी (ओडिशा) में पट्ट चित्रण की परम्परा विद्यमान है, जिसमें कलाकार द्वारा ताड़ के पत्तों, कपड़ों और कागज पर चित्रों की श्रृंखलाएँ चित्रित की जाती हैं। इसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का अंकन विभिन्न रूप से जैसे-बड़ा सिंगार वेश, रघुनाथ वेश, पदम वेश, कृष्ण-बलराम वेश, हरिहरन वेश आदि में किया जाता है। गर्भ गृह के चिह्नों को प्रदर्शित करने के लिए अंसारा पट चित्र भी बनाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
घड़वा के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
घड़वा- बस्तर के धातु शिल्कार घड़वा कहलाते हैं। शब्द व्युत्पत्ति के अनुसार घड़वा का तात्पर्य आकृति निर्माण के कार्य से है। घड़वा शिल्पकार ग्रामवासियों के लिए पारम्परिक रूप से दैनिक उपयोग के बर्तन की आपूर्ति करने के अतिरिक्त आभूषण, स्थानीय सम्मान प्राप्त देवी-देवताओं की मूर्ति, पूजा के लिए सर्प, हाथी, घोड़े इत्यादि के प्रतीक भी बनाते हैं।

खण्ड – स

निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 14.
किशनगढ़ चित्रशैली का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
मालवा शैली के प्रमुख चित्र ‘भागवत पुराण’ के बारे में लिखिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
किशनगढ़ चित्रकला शैली:- राजस्थानी शैलियों में सबसे प्रसिद्ध किशनगढ़ शैली उन्नत ललाट, उठी धनुषाकार भौहें, कमल के समान गुलाबी रंग के अधखुले नयन, पतली और लंबी नाक, पतले होठ इस शैली को सभी शैलियों से भिन्न बनाते हैं। 1609 ई. में जोधपुर महाराजा के पुत्र किशनसिंह ने किशनगढ़ की नींव रखी। 17वीं शाताब्दी में मानसिंह (1658-1706) के समय में पहले से भी चित्रकार कार्य कर रहे थे।

18वीं शताब्दी में राजसिंह (1706-1748) के शासनकाल में वल्लभ संप्रदाय में कृष्ण संबंधी विषयों का चित्रण व हरे रंग का प्रयोग प्रमुखता से हुआ। इस समय बनी आकृतियाँ लम्बी हैं जिनमें छरहरापन देखने को मिलता है। किशनगढ़ शैली का सबसे अधिक विकास राजा सावंतसिंह (नागरीदास) के समय (1735-1757) चित्रकार निहालचंद के द्वारा हुआ। निहालचंद ने सावन्त सिंह की रचनाओं के आधार पर राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम, दरबारी परिवेश व मनोरम प्राकृतिक परिदृश्य को चित्रित किया।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

प्रश्न 15.
मुगलकालीन चित्र पक्षी स्टैण्ड पर बाज एवं दाराशिकोह की बारात का वर्णन करो। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
उत्तरकालीन मुगल चित्रकला के विकास में दाराशिकोह के योगदान का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) पक्षी स्टैंड पर बाज:- यह चित्र मुगल शाहजहाँ जहाँगीर के दरबार के मुख्य चित्रकार उस्ताद मंसूर द्वारा बनाया गया है। वर्तमान में यह राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में संग्रहित है। जहाँगीर ने उस्ताद मैसूर को ‘नादिर उल असर’ की उपाधि से सम्मानित किया था। जहाँगीर के पास बाज पक्षियों का समूह था, जिसका चित्रण करवाकर उन्होंने जहांगीरनामा में इसको शामिल किया। फारसी सम्राट शाह अब्बास द्वारा जहाँगीर को एक बाज पक्षी उपहारस्वरूप प्रदान किया। इस बाज पक्षी को बिल्ली द्वारा मार दिया गया। सम्राट ने इसकी स्मृति में चित्रकारों द्वारा मृत बाज को चित्रित करने की इच्छा व्यक्त की। चित्र के शीर्ष पर देवनागरी लिपि में लेख उल्लेखित है।

(ii) दाराशिकोह की बारात:- यह चित्र हाजी मदानी चित्रकार द्वारा शाहजहाँ के काल में निर्मित किया गया। इस चित्र में मुगल सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह की बारात का चित्रण है। मुगल राजकुमार को पारंपरिक सेहरे के साथ भूरे रंग के घोड़े पर सवार दिखाया गया है तथा शाहजहाँ के सर के पीछे प्रभामंडल का अंकन किया गया। चित्र में संगीत, नृत्य और आतिशबाजी का अंकन भी किया गया है। यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में संग्रहित है।

प्रश्न 16.
काँगड़ा शैली में चित्रित भागवत पुराण’ चित्र का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
पहाड़ी शैली में चित्रित नायिकाओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
कांगड़ा शैली में चित्रित भागवत पुराण चित्र- कांगड़ा शैली में चित्रित चित्र शृंखला में भागवत पुराण का अंकन मुख्य रूप से हुआ है। इसमें प्राकृतिक सौंदर्य, चातुर्य भाव और असामान्य मुद्रा को कलाकार द्वारा विशुद्ध रूप से चित्रित किया गया, जो नाटकीय दृश्य का सुंदर प्रदर्शन है। ऐसा माना जाता है कि इन चित्रों को गुरु नैनसुख के वंशजों द्वारा बड़ी कुशलता और नियंत्रण के साथ चित्रित किया गया।

भागवत पुराण के चित्र में पांच अध्यायों के एक समूह का अंकन है, जिसे रास पंचाध्यायी के नाम से जाना जाता है। यह चित्र रस की दार्शनिक अवधारणा को समर्पित है। इस चित्र में गोपियों का कृष्ण के प्रति अथाह प्रेम स्पष्ट दिखाई देता है। कृष्ण के अचानक अदृश्य हो जाने पर गोपियों का वास्तविक दर्द कलाकार द्वारा सुंदर रूप से अंकित किया गया है। अलगाव और उदास अवस्थों में गोपियाँ हिरण, वृक्ष, लताओं को संबोधित करते हुए कृष्ण के ठिकाने के बारे में पूछ रही हैं। कृष्ण की यादों में खोई गोपियाँ उनकी लीलाओं को याद करते हुए कृष्ण का वेश धारण कर अभिनय करती हैं।

जीवन की विभिन्न लीलाएँ जैसे- पूतना वध, यशोदा द्वारा कृष्ण को ओखली से बाँधना, कृष्ण का यमला-अर्जुन को मुक्त करना, गोवर्धन पर्वत को उठाकर.ब्रजवासियों को वर्षा और इन्द्र के प्रकोप से बचाना, कालिया नाग को वश में करना, कृष्ण की बांसुरी की मादक पुकार, आदि विभिन्न मुद्राएँ निभाते हुए खेलों का अनुकरण करती हैं। कलाकार द्वारा इन संवेदनशील छवियों को चित्रों में उत्कृष्ट रूप में अंकित किया। इस समूह चित्र में बायीं ओर एक गोपी, कृष्ण वेश धारण किए अन्य गोपी की छाती का स्पर्श करते प्रतीत होती है, जो पूतना की भूमिका में है। गोपी पूतना राक्षसी की साँस कमजोर हो रही है और वह मर रही है। उसने अपना एक हाथ सिर से भी ऊपर उठा रखा है। एक अन्य गोपी यशोदा का अभिनय कर रही है। गोपियों कृष्ण द्वारा पूतना को मारने के वीरतापूर्ण कार्य के उपरांत कृष्ण को बुरी नजर से बचाने के लिए अपने वस्त्र रख रही हैं।

चित्र समूह में दायीं ओर यह गोपी कृष्ण वेश में कपड़े की बनी रस्सी से ओखली से बंधी हुई है तथा एक अन्य गोपी यशोदा वेश में छड़ी लिए खड़ी है। पास ही एक समूह में पगड़ी पहने गोपी कृष्ण का रूप धारण किए ओढनी को गोवर्धन पर्वत के समान उठाए हुए है तथा कुछ गोपियाँ ओढ़नी के नीचे शरण ले रही हैं।

चित्र के सबसे बायीं ओर कृष्ण वेश में गोपी बांसुरी बजा रही है, कुछ गोपियाँ उनके समक्ष नृत्य कर रही हैं। कुछ को जमीन पर रेंगते हुए दिखाया गया है, जो कृष्ण के पास जाने के लिए तत्पर हैं। कुछ गोपियाँ उन्हें कृष्ण के पास जाने से रोक रही हैं और पीछे की तरफ खींच रही हैं। चित्र में सबसे दायें तरफ अग्र भूमि में सबसे सुंदर दृश्य है जिसमें एक गोपी ने जमीन पर सोने से पूरित नीले रंग के वस्त्र को फेंक दिया है जो कई फनों वाले कालिया नाग का रूप ले लेता है जिस पर कृष्ण रूप में गोपी नृत्य मुद्रा में है।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

खण्ड – द

निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 17.
जयपुर चित्रकला के उद्भव एवं विकास के साथ-साथ उसकी विशेषताओं का वर्णन करो। (2)
अथवा
राजस्थानी शैली के निम्नलिखित चित्रों पर प्रकाश डालिए- (2)
1. राग दीपक
2. ढोला-मारू
उत्तर:
जयपुर चित्रकला का उदभव एवं विकास- जयपुर शैली का आरम्भ आमेर से हुआ। मुगलों से मधुर संबंधों का प्रभाव जयपुर शैली पर दिखाई देता है। भारमल की पुत्री का विवाह अकबर से हुआ, वहीं उनके पुत्र भगवंत दास व भगवंत दास के पुत्र मानसिंह भी अकबर के विश्वास पात्र थे। सवाई जयसिंह (1699 1743) के समय 1727 ई. में आमेर से राजधानी जयपुर स्थानांतरित हो गई। जयसिंह के समय कलाओं के विकास हेतु दिल्ली और अन्य राज्यों से श्रेष्ठ चित्रकारों को जयपुर आमंत्रित किया गया। चित्रकारों ने ‘सूरतखाना’ (स्टूडियो-जहाँ चित्रकार एक जगह बैठकर चित्रण कार्य किया करते थे) में कार्य किया।

सूरत खाना जहाँ चित्र तथा पांडुलिपियों का संरक्षण किया जाता था। सवाई जयसिंह द्वारा वैष्णव संप्रदाय को मानने के कारण इस समय वैष्णव संप्रदाय से संबंधित विषय जैसे-राधा कृष्ण के विषय, रसिकप्रिया, गीत गोविंद, बारहमासा आदि पर चित्रण हुआ। सवाई जयसिंह के समय में नायक के स्थान पर राजा (सवाई जयसिंह) को ही चित्रित किया गया है। जयसिंह के दरबार में व्यक्ति चित्रण में निपुण चित्रकार साहिबराम व अन्य चित्रकारों में मोहम्मद शाह थे।

इनके पश्चात सवाई ईश्वरीसिंह (1743-1750) के समय धार्मिक व साहित्य विषयों के अलावा दैनिक विषय जैसे हाथी की सवारी, सूअर और बाघ का शिकार हथियों की लड़ाई के चित्र विशेष रूप से बने। सवाई माधोसिंह के समय दरबारी जीवन का चित्रण हुआ।

18वीं शताब्दी में सवाई प्रताप सिंह (1779-1803) के समय मगल प्रभाव कम हुआ। इस समय की शैली में स्वदेशी व मुगल मिश्रित प्रभाव दिखाई देता है। इन्होंने 50 से अधिक कलाकारों को आश्रय दिया। प्रताप सिंह एक विद्वान, कवि, कलाप्रेमी, कृष्ण के अनुरागी थे। इनके समय गीत गोविन्द, रागमाला, भागवत पुराण व दरबारी चित्रों का चित्रण हुआ। आदमकद के चित्रों का निर्माण, ट्रेसिंग माध्यम से एक से अधिक चित्रों की प्रतिकृतियाँ बनाना व चित्रों में सोने व चाँदी का प्रयोग जयपुर शैली की अपनी निजी विशेषता रही है। जयपुर चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँजयपुर चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ, निम्नलिखित हैं-

(1) इस शैली के अन्तर्गत पुरुषाकृतियाँ मध्यम कद-काठी की बनाई गई हैं। पुरुष व स्त्रियों के चेहरे गोल बनाये गये हैं, होंठ कुछ मोटे बनाये गये हैं। मत्स्याकार आँखें हैं, कमर क्षीण, लालिमा से युक्त गोल चेहरे बनाये गये हैं। गालों पर झूलती हुयी लटों का चित्रण किया गया है। मांसल यौवनी काया, अलंकृत राजस्थानी मुगल वस्त्राभूषणों से युक्त चित्रण ‘कुशलतापूर्वक किया गया है।

(2) जयपुर शैली में पुरुषाकृतियों को प्रायः पगड़ी बाँधे, घेरदार जामा पहने व दुपट्टे से कमर कसे हुए बनाया गया। साधारणतः पुरुषों को भरे हुए शरीर के साथ चित्रित किया गया है। नाक मझले. आकार की बनी है। कान तक बड़े बाल बनाये गये हैं। चेहरा कुछ पीलापन लिए बनाया गया है। स्त्रियों की आँखें मछली के आकार की बनी हैं। आँखों में काजल की रेखायें मोटी तथा आँखें लम्बी बनी हैं।

(3) चित्रों में हल्की रंग योजना की गयी है। स्वर्ण रंग की अधिकता व माणिक, पन्ना व मोती आदि रत्नों की जड़ाई का काम जयपुर शैली की अपनी व्यक्तिगत विशेषता रही है और यही विशेषता उसे अन्य शैलियों से अलग व श्रेष्ठता प्रदान करती है। चित्रों की पृष्ठभूमि में उद्यानों व फूल-पत्तियों का चित्रण भी यहाँ की विशेषता रही है।

RBSE 12th Drawing Model Paper Set 9 with Answers in Hindi

प्रश्न 18.
निम्नलिखित चित्रों पर प्रकाश डालिए- (2)
(i) बच्चे के साथ महिला
(ii) समुद्र के गर्व पर विजय पाते राम
(iii) रासलीला
अथवा
अवनीन्द्र नाथ और ई. वी. हैवेल द्वारा भारतीय कला के पुनरुत्थान की व्याख्या कीजिए। (2)
उत्तर:
(i) बच्चे के साथ महिला- 1940 ई. में बना यह चित्र यामिनी राय (1887-1972) द्वारा कागज पर टैम्परा तकनीक से बनाया गया। उन्हें भारत के लोक पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है। आपने 1920 में लोकचित्रों (पट्ट चित्रण) को सीखने के लिए बंगाल के गाँवों की यात्रा की। इनके चित्रों में रेखाएँ मोटी, सरल व लयात्मक हैं। आपके चित्र माँ के साथ बच्चे में हल्के पीले और लाल (ईंट जैसे) रंगों का प्रयोग बाँकुरा गाँव के टेराकोटा की प्रमुखता दिखाई देती है। ये चित्र द्विआयामी हैं। पट्ट की शुद्धता को सीखने के लिए आरम्भ में आपने एक ही रंग से (मोनोक्रोम) चित्र बनाये। बाद में आपने सभी रंगों का श्रेष्ठता के साथ प्रयोग कर चित्र बनाना शुरू किया। यामिनी राय ने अपने रंगों में भारतीय लाल, गेरुआ पीला, हरे, सिंदरी. चारकोल ग्रे, कोबाल्ट नीला और सफेद कार्बनिक पदार्थ जैसे-रॉक डस्ट, इमली के बीज, पारा पाउडर, जलोड़ मिट्टी, इंडिगो (नीला) और चूने को रंगों में प्रयोग लिया। आपके चित्रों में बाहरी रेखांकन में काजल या लैम्प ब्लेक का प्रयोग किया गया है। चित्र धरातल के लिए घर में बने कपड़े, टाट, कागज या बैक पेपर का इस्तेमाल करते थे।

(ii) समुद्र के गर्व पर विजय पाते राम- यह चित्र राजा रवि वर्मा द्वारा ऑयल पेंट (तैल चित्रण) में बनाया गया है। रवि वर्मा को पौराणिक चित्रण हेतु लिथोग्राफी (पत्थर से छापने की विधि) में महारथ हासिल थी। दृश्य वाल्मीकि की रामायण से लिया गया है, जहाँ राम को दक्षिण भारत से लंका द्वीप तक अपनी सेना को ले जाने के लिए एक पुल की आवश्यकता थी। इसके लिए समुद्र को पार करने की अनुमति माँगते हैं। किन्तु गर्व में वरुण देव ने कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया। तब राम अपने धनुष के प्रहार करने की सोचते हैं। राजा रवि वर्मा के चित्रों के प्रमुख विषय अहिल्या की मुक्ति, सीता के विवाह पूर्व शिव के धनुष को तोड़ना, सीता और लक्ष्मण का सरयू नदी को पार करना, रावण द्वारा सीता हरण, जटायु का सीता को बचाने का प्रयास, अशोक वाटिका में सीता, राम के राज्याभिषेक आदि रहे।

(iii) रासलीला- यह चित्र क्षितिंद्रनाथ मजूमदार द्वारा बनाया गया है। यह चित्र श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित है। क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार, अवनींद्र नाथ टैगोर के शिष्य थे। यह चित्र कागज पर वॉश तकनीक में बनाया गया है। चित्र में आकृतियाँ दुबली-पतली हाव-भाव युक्त, सुहानी रंग संगती का प्रयोग किया गया है। चित्र में राधा कृष्ण और गोपियों को नृत्य करते दिखाया गया है। चित्र की पृष्ठभूमि में गहरे रंग के वृक्ष बनाए गए हैं। चित्र में ग्रामीण वातावरण, साधारण वस्त्र व कोमल रेखाओं का प्रयोग है। चित्र में श्रीकृष्ण को गोपियों की आकृतियों के आकार का बनाकर श्रीकृष्ण को साधारण मनुष्य के रूप में दिखाया गया है। आपने पौराणिक, धार्मिक विषयों का चित्रण विशेष रूप से किया। आपके चित्रों में राधा का मन भजन, राधा और सखी, लक्ष्मी और श्री चैतन्य का जन्म आदि थे।

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