Students must start practicing the questions from RBSE 12th Economics Model Papers Set 1 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Economics Model Paper Set 1 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पी प्रश्न
(i) NNPMP बराबर होता है
(a) GNPMP – घिसावट
(b) GNPMP + अप्रत्यक्ष कर
(c) NNPMP – घिसावट
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(a) GNPMP – घिसावट
(ii) निम्न में से कौन-सा सत्य है
(a) GNP = SDP + घिसावट
(b) GNP = NNP + घिसावट
(c) NNP = GNP – घिसावट
(d) NNP = GNP + घिसावट
उत्तर :
(c) NNP = GNP – घिसावट
(iii) चक्रीय प्रवाह में शामिल किया जाता है
(a) कच्चे माल को
(b) मशीनरी को
(c) मध्यवर्ती वस्तुओं को
(d) अन्तिम वस्तु एवं सेवाओं को।
उत्तर :
(d) अन्तिम वस्तु एवं सेवाओं को।
(iv) M2 का आशय है
(अ) M3 + डाकघर में कुल जमाएँ
(ब) M1 + डाकघर में बचत जमाएँ
(स) लोगों द्वारा अपने पास रखे नोट
(द) M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल जमा
उत्तर :
(ब) M1 + डाकघर में बचत जमाएँ
(v) वस्तुओं के प्रत्यक्ष आदान-प्रदान के माध्यम से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना कहलाता है-
(अ) मुद्रा विनिमय
(ब) वस्तु विनिमय
(स) अप्रत्यक्ष विनिमय
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ब) वस्तु विनिमय
(vi) मात्रात्मक साख नियंत्रण का एक प्रकार है
(अ) नैतिक दबाव
(ब) साख की राशनिंग करना
(स) चयनात्मक साख नियंत्रण
(द) बैंक दर में परिवर्तन
उत्तर :
(द) बैंक दर में परिवर्तन
(vii) अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या है-
(अ) साधनों का आबंटन
(ब) साधनों का कुशलतम उपयोग
(स) आर्थिक विकास
(द) इनमें से सभी।
उत्तर :
(अ) साधनों का आबंटन
(viii) स्थानापन्न वस्तुएँ हैं
(अ) पैन-स्याही
(ब) कार और पैट्रोल
(स) चाय और कॉफी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(स) चाय और कॉफी
(ix) सम-सीमान्त उपयोगिता नियम के प्रतिपादक हैं
(अ) एच.एस.गोसेन
(ब) क्रीन्स
(स) एडम स्मिथ
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ब) क्रीन्स
(x) कोई भी आगत स्थिर नहीं होता है
(अ) अल्पकाल में
(ब) दीर्घकाल में
(स) दोनों में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ब) दीर्घकाल में
(xi) वह प्रक्रिया जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होता है कहलाती है
(अ) उत्पादन
(ब) उत्पादन फलन
(स) कुल उत्पाद
(द) सीमांत उत्पाद
उत्तर :
(अ) उत्पादन
(vii) फर्म द्वारा वस्तु के उत्पादन के लिए जो व्यय किये जाते हैं उन्हें कहते हैं
(अ) आगत
(ब) निर्गत
(स) लागत
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(स) लागत
प्रश्न 2.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
(i) उत्पादन करने वाली इकाइयाँ ……………………………………….. कहलाती हैं।
(ii) ……………………………………….. अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 1
(i) सार्वजनिक वस्तुओं जिनकी पूर्ति बाजार तंत्र से नहीं हो सकती है उनकी पूर्ति एवं आबंटन करने के कार्य को ……………………………………….. फलन कहते हैं। 1
(iv) मनुष्य की आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली मूर्त तथा स्पर्शनीय सामग्री ……………………………………….. कहलाती है। 1.
(v) वस्तुओं की मात्राओं की सम्मिलित राशि संक्षेप में उपभोक्ता ……………………………………….. कहलाती है। 1
(vi) विभिन्न आगतों की प्राप्ति हेतु उत्पादक जो व्यय करता है, उसे ……………………………………….. कहते हैं। 1
उत्तर :
(i) फर्म,
(ii) मिश्रित,
(iii) नियतन,
(iv) वस्तुएँ,
(v) बंडल,
(vi) उत्पादन लागत
प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर 10-20 शब्दों में दीजिए
(i) स्वतन्त्र चर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
वे चर जिनके कारण दूसरे चरों में परिवर्तन होता है।
(ii) गैर-टिकाऊ वस्तुओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
वे वस्तुएँ जिनका एक ही बार प्रयोग किया जा सकता है।
(iii) संप्राप्ति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
उत्पादक द्वारा निर्गत (Output) के बाजर से बेचने से प्राप्त मुद्रा।
(iv) मुद्रा के दो प्रमुख प्राथमिक कार्य कौन से है?
उत्तर :
(i) विनिमय का माध्यम
(ii) मूल्य का मापन।
(v) पत्र मुद्रा से क्या आशय है?
उत्तर:
सरकार या केन्द्रीय बैंक द्वारा कागज पर छापकर बनाई गई मुद्रा।
(vi) सरकारी बजट से क्या आशय है?
उत्तर :
सरकार की अनुमानित प्राप्तियों तथा व्ययों का वार्षिक विवरण, सरकारी बजट कहलाता है।
(vii) सन्तुलित बजट क्या होता है?
उत्तर :
जब कुल आय तथा कुल व्यय बराबर हो तो उसे सन्तुलित बजट कहते हैं।
(vii) साधनों की सीमितता से क्या आशय है?
उत्तर :
साधनों की सीमितता से आशय है कि उत्पत्ति के साधनों, जैसे- भूमि, श्रम, पूँजी आदि की कुल पूर्ति उनकी कुल माँग से कम हैं।
(ix) माँग की कीमत लोच की किन्हीं दो श्रेणियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
(i) पूर्णतया लोचदार माँग,
(ii) पूर्णतया बेलोचदार माँग।
(x) अल्पकालीन उत्पादन फलन क्या है?
उत्तर :
जब उत्पादन के अन्य आगतों की मात्रा को स्थिर रखते हुए एक परिवर्ती साधन की मात्रा में वृद्धि की जाये।
(xi) यदि सीमान्त लागत (MC) औसत लागत (AC) से अधिक है तो (AC) पर क्या प्रभाव पड़ेगा? बताइए। 1
उत्तर :
इस स्थिति में AC न्यूनतम होने के बाद बढ़ने लगती है।
(xii) बाजार पूर्ति से क्या आशय है?
उत्तर :
सभी फर्मों द्वारा बाजार में विभिन्न कीमतों पर बेची जाने वाली वस्तु की मात्रा।
खण्ड – (ब)
प्रश्न 4.
यदि एक राष्ट्र का कुल उपभोग व्यय (C) ₹ 1000 करोड़, कुल निजी विनियोग (1) ₹ 400 करोड़ तथा सरकारी विनियोग (G) की राशि ₹ 600 करोड़ हो तो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का मूल्य ज्ञात कीजिए। 2
उत्तर :
सकल घरेलू उत्पाद = कुल उपभोग व्यय + कुल निजी विनियोग + सरकारी विनियोग
= 1000 + 400 + 600
= ₹ 2000 करोड़।
प्रश्न 5.
पूँजीवाद क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
पूँजीवाद (Capitalism)-एक ऐसी आर्थिक प्रणाली जिसमें उत्पत्ति के साधनों पर व्यक्तियों का निजी अधिकार होता है और सभी व्यक्ति अपने साधनों का प्रयोग लाभ कमाने के लिए करते हैं, पूँजीवाद कहा जाता है। पूँजीवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था मूल्य यन्त्र के द्वारा नियंत्रित होती है।
- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय योजना का अभाव पाया जाता है। (iii) पूँजीवाद में उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों स्वतंत्र होते हैं।
- पूँजीवाद में उत्पादक इकाइयों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।
प्रश्न 6.
भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषा क्या है ?
उत्तर :
एक निश्चित समय में लोगों में संचरण करने वाली कुल मुद्रा को मुद्रा की पूर्ति कहते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा की पूर्ति के वैकल्पिक मापों को निम्नलिखित चार रूपों में प्रकाशित एवं परिभाषित करता है – M1 = लोगों द्वारा अपने पास रखे गये नोट और सिक्के + व्यावसायिक बैंकों में रखी गई निवल माँग जमा M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ M3 = M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल आवधिक जमाएँ M4 = M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों NSC को छोड़कर)
प्रश्न 7.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
सरकार द्वारा बजट घाटे को पूरा करने हेतु लिये गये ऋण को सार्वजनिक ऋण कहा जाता है। सार्वजनिक ऋण से प्राप्त धनराशि को वर्तमान पीढ़ी के कल्याण पर व्यय कर दिया जाता है लेकिन इसे चुकाने का भार भावी पीढ़ी को अंतरित हो जाता है। इस प्रकार वर्तमान में लिया गया ऋण भावी पीढ़ी के लिए बोझ बन जाता है।
प्रश्न 8.
क्या राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी है ?
उत्तर :
राजकोषीय घाटे की इस आधार पर आलोचना की जाती है कि यह सदैव स्फीतिकारी राजकोषीय घाटे के बढ़ने पर माँग में वृद्धि होती है तथा अप्रयुक्त साधनों का प्रयोग करके उत्पादन में वृद्धि कर दी जाती है तो इस स्थिति में यह स्फीतिकारी नहीं होता है।
प्रश्न 9.
घाटे में कटौती के विषय पर विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर :
करों में वृद्धि अथवा सार्वजनिक व्यय में कमी करके घाटे में कटौती की जा सकती है। घाटे में कमी करने के लिए सरकारी व्यय में कटौती अधिक प्रभावी हो सकती है। सरकारी व्यय में कटौती सुनियोजित कार्यक्रमों को अपनाकर तथा प्रशासनिक कार्यकुशलता को बढ़ाकर की जा सकती है।
प्रश्न 10.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में सम्बन्ध बताइए।
उत्तर :
राजस्व घाटा सरकार की राजस्व प्राप्तियों पर राजस्व व्यय की अधिकता को बताता है। सूत्र रूप में- राजस्व घाटा = राजस्व व्यय-राजस्व प्राप्तियाँ राजकोषीय घाटा सरकार की कुल प्राप्तियों (ऋण ग्रहण को छोड़कर) पर कुल व्यय की अधिकता को बताता है। सूत्र रूप में- राजकोषीय घाटा = कुल व्यय-(राजस्व प्राप्तियाँ + गैर-ऋण से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ) अतः स्पष्ट है कि राजस्व घाटा तथा राजकोषीय घाटा दोनों में ही राजस्व व्यय तथा राजस्व प्राप्तियाँ सम्मिलित होती हैं।
प्रश्न 11.
उत्पादन सम्भावना वक्र अवनतोदर क्यों होता है ? समझाइए।
उत्तर :
एक वस्तु की अतिरिक्त इकाई के उत्पादन हेतु अन्य वस्तु की त्यागी जाने वाली इकाइयों की मात्रा बढ़ती जाती है अर्थात् सीमांत लागत बढ़ती जाती है। इसके कारण ही उत्पादन सम्भावना वक्र मूल बिन्दु की ओर अवनतोदर होता है।
प्रश्न 12.
अगर कीमतें और उपभोक्ता की आय दोनों दोगुनी हो जायें, तो बजट सेट कैसा होगा ?
उत्तर :
अगर कीमतें और उपभोक्ता की आय दोनों दोगुनी हो जायें तो बजट सेट अपरिवर्तित रहेगा, क्योंकि उपभोक्ता कीमतों के दोगुना होने के कारण दोगुनी आय में भी पहले के बराबर ही इकाइयाँ खरीद सकेगा।
प्रश्न 13.
मान लीजिए कि कोई उपभोक्ता अपनी पूरी आय का व्यय करके वस्तु 1 की 6 इकाइयाँ तथा वस्तु 2 की 8 इकाइयाँ खरीद सकता है। दोनों वस्तुओं की कीमतें क्रमशः ₹ 6 तथा ₹ 8 हैं। उपभोक्ता की आय कितनी है? 2
उत्तर :
दिया है –
X1 = 6, X2 = 8, P1 = 6, P2 = 8, M = ?
उपभोक्ता की आय (M) = P1X2 + P2X2 M = (6 x 6) + (8 x 8) = 36 + 64 = 100
अत: उपभोक्ता की आय ₹ 100 है।
प्रश्न 14.
एक आगत का सीमांत उत्पाद क्या होता है ?
उत्तर :
उत्पादन की अन्य आगतों को स्थिर रखते हुए परिवर्ती आगत की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग करने से कुल उत्पादन में जो वृद्धि होती है, उसे सीमान्त उत्पाद कहते हैं। सूत्र रूप में –
सीमांत उत्पाद = \(\frac{\Delta q}{\Delta x_{1}}=\frac{\text { निर्गत में परिवर्तन }}{\text { आगत में परिवर्तन }}\)
अथवा सीमांत उत्पाद = f (x1, x2) – f (x1, – 1. x2)
= (कुल उत्पाद x1 इकाइयों पर) – (कुल उत्पादन x1 – 1इकाई पर)
जहाँ x1 = परिवर्ती आगत,
x2 = स्थिर आगत।
प्रश्न 15.
सीमान्त सम्प्राप्ति से क्या आशय है ?
उत्तर :
फर्म द्वारा अपनी उत्पादित वस्तु की एक इकाई कम या अधिक बेचने से कुल सम्प्राप्ति में जो परिवर्तन होता है, उसे सीमान्त सम्प्राप्ति कहते हैं।
सूत्र –
सीमान्त सम्प्राप्ति \(=\frac{\text { कुल सम्प्राप्ति में परिवर्तन }}{\text { बेची गई मात्रा में परिवर्तन }}\)
अथवा, MR = TRn – Tn-1
प्रश्न 16.
कीमत रेखा क्या है ?
उत्तर :
कीमत रेखा फर्म के माँग वक्र को प्रदर्शित करती है। यह बाजार कीमत तथा फर्म के निर्गत स्तर के मध्य सम्बन्ध को दर्शाती है। इसे x-अक्ष के समान्तर एक निश्चित कीमत के लिए खींचा जाता है। कीमत रेखा पर औसत आगम, सीमान्त आगम तथा वस्तु की कीमत तीनों बराबर होते हैं।
खण्ड – (स)
प्रश्न 17.
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करते समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
अथवा
समष्टिपरक आर्थिक विश्लेषण की सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समष्टिपरक आर्थिक विश्लेषण की मुख्य सीमाओं को निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है-
- सामान्यीकरण का गलत होनासामान्यतया व्यक्ति तथा समूहों से सम्बन्धित परिणामों के योग को समष्टिपरक विश्लेषण का आधार मान लिया जाता है लेकिन यह आवश्यक नहीं होता कि जो व्यक्तिगत या लघु समूहों के स्तर पर सही हो वह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर भी सही हो।
- समूहों की विभिन्नताएँ-समग्र की एक प्रवृत्ति अर्थव्यवस्था के सभी समूहों या क्षेत्रों को एक समान रूप से प्रभावित नहीं करती है, जैसे-कुछ व्यक्ति तो वस्तुओं की कीमत में वृद्धि से बुरी तरह प्रभावित होते हैं तथा कुछ व्यक्तियों पर कीमत वृद्धि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- समूह को मापने में कठिनाइयाँ-समूह को मापने में कठिनाइयाँ आती हैं। उदाहरण के लिए; हम जानते हैं कि 5 पैन और 10 पैन का योग 15 पैन होता है और इसे एक सार्थक समूह माना जा सकता है लेकिन 5 पैन और 10 कॉपियों का एक समूह निरर्थक होगा।
प्रश्न 18.
वस्तु विनिमय की कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मुद्रा के द्वारा वस्तु विनिमय की कमियों का निवारण कैसे हुआ?
उत्तर :
मुद्रा के द्वारा वस्तु विनिमय की कमियों का निवारण
- दोहरे संयोग की आवश्यकता नहीं-अब प्रत्येक व्यक्ति अपनी अनावश्यक वस्तु को बाजार में बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा मुद्रा से अपनी आवश्यक वस्तु प्राप्त कर सकता है।
- विभाजन की समस्या समाप्त-वस्तुओं का मूल्य मुद्रा में निर्धारित होता है तथा मुद्रा में विभाजनशीलता का गुण विद्यमान है।
- मूल्य के सामान्य मापक की समस्या का समाधान-वर्तमान में वस्तुओं के मूल्यों को मुद्रा में मापने के कारण मूल्य मापन की कठिनाई का समाधान हो गया है।
- धन संग्रह एवं हस्तान्तरण करने का समाधान-अब मूल्य का संग्रह एवं हस्तान्तरण मुद्रा के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है।
- भावी भुगतानों का समाधान-भावी भुगतानों को अब मुद्रा के द्वारा निर्धारित करके आसानी से किया जा सकता है।
- सेवाओं के विनिमय का समाधानसेवाओं का मूल्य अब मुद्रा में निर्धारित होता है तथा उनका भुगतान भी मुद्रा में ही किया जाता है। अतः सेवाओं का विनिमय भी मुद्रा के माध्यम से आसान हो गया है।
प्रश्न 19.
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या क्या है?
अथवा
अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
अर्थव्यवस्था की प्रमुख केन्द्रीय समस्याएँ अर्थव्यवस्था की तीन प्रमुख केन्द्रीय समस्याएँ निम्नलिखित हैं
(i) किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाय और कितनी मात्रा में ?-उत्पादन के साधन सीमित होते हैं तथा उनके वैकल्पिक उपयोग भी होते हैं, अतः प्रत्येक समाज को इस बात का निर्णय करना होता है कि उत्पादन के साधनों का प्रयोग किस सेवा या वस्तु के उत्पादन में किया जाय तथा उस वस्तु की कितनी मात्रा उत्पादित की जाय। दूसरे शब्दों में, कहा जाए तो अर्थव्यवस्था को यह निर्णय करना होता है कि उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन किया जाय या पूँजीगत वस्तुओं का या विलासिता की वस्तुओं का या युद्धकालीन वस्तुओं का या किसी अन्य वस्तु का। जब यह निश्चित हो जाता है कि किस वस्तु का उत्पादन करना है तो उसकी उत्पादन की मात्रा भी निश्चित कर ली जाती है।
(ii) वस्तुओं का उत्पादन कैसे किया जाय?- उत्पादन की वस्तु एवं मात्रा निश्चित हो जाने के पश्चात् यह समस्या आती है कि उसका उत्पादन कैसे किया जाय? वस्तु के उत्पादन हेतु श्रम प्रधान तकनीक अपनाई जाये या पूँजी प्रधान। इसमें निर्णय लेते समय यह ध्यान रखना होगा कि कम से कम संसाधनों का उपयोग करके अधिक से अधिक उत्पादन हो सके वही तकनीक श्रेष्ठ होगी।
(ii) वस्तुओं का उत्पादन किसके लिए किया जाय ?-उत्पादन के पश्चात् यह समस्या उत्पन्न होती है कि उत्पादित वस्तु एवं सेवाओं का वितरण किस प्रकार किया जाए। वस्तुएँ किस वर्ग को अधिक मात्रा में प्रदान की जाएँ तथा किस वर्ग को कम मात्रा में प्रदान की जाएँ। इस बात का भी निर्णय करना होता है कि क्या यह निश्चित करना उचित होगा कि , प्रत्येक व्यक्ति को वस्तु की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध हो सके अथवा नहीं। अतः प्रत्येक अर्थव्यवस्था को यह निश्चित करना होता है कि सीमित संसाधनों का विनिधान कैसे किया जाय तथा उत्पादित वस्तुएँ अर्थव्यवस्था के सदस्यों में कैसे वितरित की जायें। यही अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ हैं।
प्रश्न 20.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की किन्हीं तीन शर्तों को समझाइए। 3
अथवा
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमान्त लागत घट रही हो। व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत रेखाचित्र से स्पष्ट है कि यदि फर्म निर्गत की q1 मात्रा का उत्पादन करती है तो सीमान्त लागत, सीमान्त सम्प्राप्ति से अधिक होगी जिससे फर्म को हानि उठानी पड़ेगी।
फर्म उत्पादन मात्रा को तब तक बढ़ायेगी जब तक MC =MR न हो जाये। बिन्दु B पर MC = MR है। q2 फर्म का सकारात्मक निर्गत स्तर है। q2 से q2 निर्गत स्तरों के बीच सीमान्त लागत कम होती जा रही है इसलिए इनके बीच का कोई भी निर्गत स्तर सकारात्मक निर्गत स्तर नहीं हो सकता है। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन नहीं कर सकती है, जब सीमान्त लागत घट रही हो।
खण्ड – (द)
प्रश्न 21.
वस्तु विनिमय प्रणाली की चार कठिनाइयाँ बताइए? इन्हें मुद्रा ने किस प्रकार दूर किया है?
अथवा
भारतीय रिजर्व बैंक की दो साख नियंत्रण नीतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
साख नियंत्रण की दो नीतियाँ-
(i) बैंक दर में परिवर्तन-वह दर, जिस पर केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को प्रथम श्रेणी की प्रतिभूतियों पर ऋण प्रदान करता है, बैंक दर कहलाती है। देश में मुद्रा-प्रसार की स्थिति में बैंक दर में वृद्धि तथा मुद्रा-संकुचन की स्थिति में बैंक दर में कमी की जाती है।
(ii) आरक्षित कोषों के अनुपात में परिवर्तन करके- यह दो प्रकार से किया जाता है-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात नकद रूप में भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखना पड़ता है इसे नकद आरक्षित अनुपात (CRR) कहा जाता है। व्यावसायिक बैंकों को अपनी कुल देयताओं के एक न्यूनतम अनुपात को तरल सम्पत्तियों के रूप में अपने पास रखना होता है, इसे वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) कहा जाता है। अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति बढ़ाने हेतु रिजर्व बैंक इन अनुपातों में कमी करता है तथा मुद्रा की पूर्ति कम करने हेतु इन अनुपातों में वृद्धि करता है।
प्रश्न 22.
माँग को परिभाषित कीजिए। माँग को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
माँग को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
माँग-माँग से आशय एक वस्तु या सेवा की उस मात्रा से है जिसे उपभोक्ता एक बाजार में एक दिये हुए समय में तथा दी हुई कीमत पर खरीदना चाहता है। माँग को प्रभावित करने वाले कारक-माँग को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –
- वस्तु की कीमत-जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो उसकी माँग कम हो जाती है तथा जिस वस्तु की कीमत कम हो जाती है उसकी माँग में वृद्धि हो जाती है।
- उपभोक्ता की आय में परिवर्तन-यदि आय में वृद्धि हो जाती है तो सामान्य वस्तुओं की माँग में वृद्धि तथा घटिया वस्तुओं की माँग में कमी आती है और यदि आय में कमी हो जाती है इसकी विपरीत स्थिति होती है।
- सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन सम्बन्धित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं-स्थानापन्न वस्तुएँ और पूरक वस्तुएँ।
- यदि वस्तु का मूल्य स्थिर रहे और उसकी स्थानापन्न वस्तु का मूल्य कम हो जाय तो वस्तु की माँग कम हो जायेगी तथा कीमत बढ़ने पर विपरीत स्थिति होगी।
- यदि वस्तु का मूल्य स्थिर रहे और उसकी पूरक वस्तु का मूल्य बढ़ जाय तो पूरक वस्तु के साथ-साथ उस वस्तु की माँग भी कम हो जायेगी तथा मूल्य कम होने पर इसकी विपरीत स्थिति होगी।
(4) रुचि, फैशन एवं स्वभाव में परिवर्तन-फैशन में यदि परिवर्तन हो जाय तो पुराने फैशन की वस्तुओं की माँग कम हो जाती है तथा नये फैशन की वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है। इसी प्रकार अभिरुचि एवं स्वभाव में अनुकूल परिवर्तन होने पर वस्तु की माँग बढ़ जाती है तथा प्रतिकूल परिवर्तन होने पर वस्तु माँग कम हो जाती है।
प्रश्न 23.
अल्पकाल में लागत की विभिन्न संकल्पनाओं को समझाइए।
अथवा
कुल स्थिर लागत, कुल परिवर्ती लागत तथा कुल लागत के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
कुल स्थिर लागत (TFC), कुलपरिवर्ती लागत (TVC) तथा कुललागत (TC) के बीचसम्बन्ध –
(i) कुल लागत, कुल स्थिर लागत तथा कुल परिवर्ती लागत का योग होती है।
(ii) अल्पकाल में उत्पादन के शून्य होने पर कुल लागत, कुल स्थिर लागत के बराबर होती है तथा कुल परिवर्तनशील लागत शून्य होती है।
(iii) कुल लागत तथा कुल परिवर्तनशील लागत के बीच का अन्तर कुल स्थिर लागत के बराबर होता है।
(iv) कुल लागत तथा कुल स्थिर लागत के बीच का अन्तर कुल परिवर्ती लागत के बराबर होता है।
रेखाचित्र से यह स्पष्ट है कि TFC उत्पादन के किसी भी स्तर पर शून्य नहीं होती है तथा TC उत्पादन का स्तर बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती जाती है। उत्पादन के शून्य स्तर पर TC तथा TFC बराबर होती हैं क्योंकि इस स्तर पर TVC भी शून्य होती है।
Leave a Reply