Students must start practicing the questions from RBSE 12th Economics Model Papers Set 8 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Economics Model Paper Set 8 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पी प्रश्न
(i) प्रकृति द्वारा प्रदत्त निःशुल्क सभी चीजें शामिल होती हैं – (1)
(अ) पूँजी में
(ब) श्रम में।
(स) भूमि में
(द) फर्म में
उत्तर :
(स) भूमि में
(ii) समष्टि अर्थशास्त्र के विषय क्षेत्र में शामिल हैं – (1)
(अ) राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त
(ब) रोजगार का सिद्धान्त
(स) सामान्य कीमत का स्तर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(द) उपरोक्त सभी
(iii) वस्तु एवं सेवाओं की माँग आती हैं – (1)
(अ) परिवार से
(ब) फर्म से
(स) सरकार से
(द) इन सभी से
उत्तर :
(अ) परिवार से
(iv) भारत का केन्द्रीय बैंक है – (1)
(अ) सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
(ब) बैंक ऑफ इण्डिया
(स) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
(द) स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया
उत्तर :
(स) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
(v) निम्नांकित में से कौन-सा साख-नियंत्रण का परिमाणात्मक उपाय नहीं है? – (1)
(अ) खुले बाजार की क्रियाएँ
(ब) बैंक दर
(स) नैतिक दबाव
(द) नकद कोष अनुपात में परिवर्तन
उत्तर :
(स) नैतिक दबाव
(vi) स्फीति अंतराल को ठीक करने के लिए प्रमुख मौद्रिक उपाय कौन-सा है? – (1)
(अ) बैंक दर में वृद्धि
(ब) खुले बाजार में प्रतिभूतियाँ बेचना
(स) नकद कोष अनुपात में वृद्धि
(द) इनमें से सभी
उत्तर :
(द) इनमें से सभी
(vii) आर्थिक क्रिया है: – (1)
(अ) उत्पादन
(ब) उपभोग
(स) निवेश
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(द) उपरोक्त सभी
(viii) किसी वस्तु की कीमत लोच हो सकती है – (1)
(अ) इकाई से अधिक
(ब) इकाई के बराबर
(स) इकाई से कम
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(द) उपरोक्त सभी
(ix) जब कीमत में वृद्धि होने के कारण वस्तु की माँग में कमी होती है तो उसे कहते हैं – (1)
(अ) माँग में कमी
(ब) माँग में संकुचन
(स) माँग में वृद्धि
(द) माँग में विस्तार
उत्तर :
(ब) माँग में संकुचन
(x) निम्न में से कौन-सा कथन सत्य है – (1)
(अ) औसत लागत = कुल स्थिर लागत – कुल परिवर्तनशील लागत
(ब) औसत लागत = औसत स्थिर लागत + कुल परिवर्तनशील लागत
(स) औसत लागत = कुल स्थिर लागत + औसत परिवर्तनशील लागत
(द) औसत लागत = औसत स्थिर लागत + औसत परिवर्तनशील लागत
उत्तर :
(द) औसत लागत = औसत स्थिर लागत + औसत परिवर्तनशील लागत
(xi) औसत स्थिर लागत एवं औसत परिवर्ती लागत का योग कहलाता है – (1)
(अ) औसत लागत
(ब) कुल लागत
(स) कुल परिवर्ती लागत
(द) कुल स्थिर लागत
उत्तर :
(अ) औसत लागत
(xii) दीर्घकाल में जब हम उत्पादन में वृद्धि करते हैं तो हमें पैमाने के प्रतिफल प्राप्त होते हैं – (1)
(अ) स्थिर
(ब) वृद्धिमान
(स) ह्रासमान
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ब) वृद्धिमान
प्रश्न 2.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
(i) निर्गत को प्राप्त करने हेतु उद्यमी जिन साधनों का नियोजन करता है वे ……………………………….. कहलाते हैं। (1)
उत्तर :
आगत
(ii) राजकोषीय नीति को ……………………………….. नीति भी कहते हैं। (1)
उत्तर :
बजटीय
(iii) करों में कटौती से ……………………………….. और निर्गत में वृद्धि होती है। (1)
उत्तर :
उपभोग
(iv) ……………………………….. से आशय क्रेताओं तथा विक्रेताओं के बीच किसी साधन, वस्तु अथवा सेवा के लेन देन के तन्त्र से है। (1)
उत्तर :
बाजार
(v) जब उपभोक्ता अपने लिए उपलब्ध सभी बंडलों के प्रति तटस्थ रहता है तो इसे उपभोक्ता का ……………………………….. कहा जाता है। (1)
उत्तर :
अनधिमान
(vi) औसत स्थिर लागत ……………………………….. में उत्पादित इकाइयों की संख्या का भाग देकर प्राप्त की जाती है। (1)
उत्तर :
कुल स्थिर लागत।
प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर 10-20 शब्दों में दीजिए
(i) मुद्रा स्फीति से क्या आशय है?
उत्तर :
वह स्थिति जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता है तथा वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होती है।
(ii) मंदी किसे कहते हैं?
उत्तर :
अर्थव्यवस्था की वह स्थिति जिसमें रोजगार तथा उत्पादन का स्तर गिरता है।
(ii) समष्टि अर्थशास्त्र का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जॉन मेनार्ड कीन्स को।
(iv) वस्तु विनिमय का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
वह प्रणाली जिसमें एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान किया जाता है वस्तु विनिमय कहलाती है।
(v) वस्तु विनिमय के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर :
- आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव होना।
- मूल्य के मापन में कठिनाई आना।
(vi) गैर कर आगम से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
करों के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से प्राप्त आय।
(vii) राजस्व प्राप्तियों की एक विशेषता बताइए।
उत्तर :
राजस्व प्राप्तियों से वित्तीय परिसम्पत्तियों में कोई कमी नहीं होती है।
(viii) अवसर लागत किसे कहा जाता है?
उत्तर :
किसी वस्तु की एक इकाई की अवसर लागत दूसरी वस्तु की छोड़ी गयी अथवा त्यागी गयी मात्रा के बराबर होती है।
(ix) सीमान्त उपयोगिता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त होने वाली उपयोगिता सीमान्त उपयोगिता कहलाती है।
(x) सीमान्त लागत का सूत्र लिखिए।
उत्तर :
सीमान्त लागत \(=\frac{\text { कुल लागत में परिवर्तन }}{\text { निर्गत में परिवर्तन }} \text { या } \frac{\Delta \mathrm{TC}}{\Delta q}\)
(xi) स्थिर लागत किसे कहते हैं?
उत्तर :
उत्पादन के स्थिर साधनों पर जो व्यय किया जाता है, वह स्थित लागत है।
(xii) वस्तु की पूर्ति में वृद्धि’ का एक कारण बताइए।
उत्तर :
उत्पादन के आगतों की कीमत में कमी होना।
खण्ड – (ब)
प्रश्न 4.
मध्यवर्ती वस्तुओं तथा अन्तिम वस्तुओं के मध्य अंतर उदाहरण सहित सभझाइए।
उत्तर:
अन्तिम एवं मध्यवर्ती वस्तुओं में निम्नलिखित अन्तर हैं-
प्रश्न 5.
निम्न आँकड़ों से सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय की गणना करें –
(₹) करोड़ | |
(i) विदेशों से शुद्ध साधन आय | 40 |
(ii) राष्ट्रीय आय | 1,500 |
(iii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर | 80 |
(iv) शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण | 150 |
(v) स्थायी पूँजी का उपभोग | 100 |
उत्तर :
सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + मूल्यह्रास + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण
= 1500 + 80 + 100 + 150
= ₹1830 करोड़।
प्रश्न 6.
विधिग्राह्य मुद्रा से क्या आशय है?
उत्तर :
विधिग्राह्य मुद्रा-वह मुद्रा जिसे भुगतान के साधन के रूप में सरकार की मान्यता प्राप्त है तथा जिसे स्वीकार करने की वैधानिक रूप से बाध्यता है उसे विधिग्राह्य मुद्रा कहते हैं। इस मुद्रा को भुगतान में लेने से अस्वीकार करने पर सजा का प्रावधान होता है।
प्रश्न 7.
सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए, क्यों ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
सरकार सार्वजनिक वस्तुओं के उत्पादन हेतु कर के रूप में जनता से अनिवार्य अंशदान प्राप्त करती है तथा अन्य कोई उपभोग शुल्क नहीं लेती है। अतः सार्वजनिक वस्तुओं के उत्पादन और वितरण को व्यवस्थित बनाये रखने के लिए इन्हें सरकार द्वारा ही प्रदान किया जाना चाहिए।
प्रश्न 8.
राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में भेद कीजिए।
उत्तर :
परिसम्पत्तियों के अतिरिक्त अन्य मदों पर होने बाला सरकारी व्यय, राजस्व व्यय कहलाता है जैसे राजस्व व्यय का सम्बन्ध वेतन के भुगतान, सम्पत्ति की देखभाल, जनता को निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करना आदि। इसके विपरीत परिसम्पत्तियों पर किये जाने वाले व्यय पूँजीगत व्यय कहलाते हैं। इनके अन्तर्गत भवन निर्माण, सड़क निर्माण, पुल निर्माण सम्बन्धी आदि व्ययों को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 9.
राजकोषीय घाटे से सरकार को ऋण-ग्रहण की आवश्यकता होती है, समझाइए।
उत्तर :
राजकोषीय घाटे से तात्पर्य सरकार के व्ययों की आय की अधिकता से है। व्ययों की अधिकता की पूर्ति, सरकार ऋण लेकर पूरा करती है। अतः राजकोषीय घाटा सरकार की ऋण-ग्रहण सम्बन्धी आवश्यकता को दर्शाता है।
सूत्र-सकल राजकोषीय घाटा = निवल घरेलू ऋण ग्रहण + भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण ग्रहण + विदेशों से ऋण ग्रहण।
प्रश्न 10.
सरकारी घाटे को कम करने के कोई दो उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
- सरकार को कुशलतापूर्वक तथा मितव्ययतापूर्वक सरकारी व्यय करने चाहिए तथा सरकारी व्ययों को व्यय करने का प्रयत्न करना चाहिए।
- सरकार को उचित नीति द्वारा करों के माध्यम से अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।
प्रश्न 11.
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण के अंतर्गत किसी विषय के अच्छे तथा बुरे परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है। यह मानवीय व्यवहार के लिए आदर्श प्रस्तुत करता है तथा ‘क्या होना चाहिए? का उत्तर प्रदान करता है। इसके अंतर्गत हम संसाधन तथा उत्पादों के मध्य अपनायी गयी तकनीकी अनुकूलता अथवा प्रतिकूलता का अध्ययन करते हैं। इसके अध्ययन से यह पता चलता है कि कौन-सी आर्थिक क्रियाएँ सामाजिक कल्याण में वृद्धि करती हैं तथा कौन सी उत्पादन तकनीकें, कौन से संयोग समाज के लिए इष्टतम तथा वांछनीय हैं।
प्रश्न 12.
अनधिमान वक्र किसे कहते हैं ? कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को दर्शाने वाला वह वक्र, जो उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्रदान करे, वह अनधिमान वक्र कहलाता है। विशेषताएँ-
- इसका ढाल ऋणात्मक होता है।
- यह मूल बिन्दु के प्रति उन्नतोदर होता है।
- प्रत्येक ऊँचा अधिमान वक्र अधिक संतुष्टि व्यक्त करता है।
- दो अनधिमान वक्र एक-दूसरे को नहीं काट सकते।
प्रश्न 13.
माँग वक्र के शिफ्ट को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आय में वृद्धि होने पर सामान्य वस्तुओं की माँग में वृद्धि हो जाती है तथा आय में कमी होने पर माँग कम हो जाती है। यह निम्न रेखाचित्रों द्वारा समझा जा सकता है।
उपरोक्त रेखाचित्रों से स्पष्ट है कि आय में वृद्धि से माँग वक्र दायीं तरफ तथा आय में कमी होने पर यह बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है।
प्रश्न 14.
उत्पादन फलन की संकल्पना को समझाइए।
उत्तर :
उत्पादन फलन (Production Function) उत्पादन की आगतों और निर्गतों (अन्तिम उत्पाद) के बीच तकनीकी सम्बन्ध को उत्पादन फलन कहते हैं। उत्पादन फलन को सूत्र रूप में निम्न प्रकार लिख सकते हैं-
q = f (x1, x2)
यह बतलाता है कि हम एक आगत (कारक) की x1 मात्रा तथा दूसरे आगत की x2 मात्रा का प्रयोग करके वस्तु की किस अधिकतम निर्गत मात्रा का उत्पादन कर सकते हैं।
प्रश्न 15.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ?
उत्तर :
यदि उत्पादन की एक आगत की कीमत (जैसे, श्रम की मजदूरी दर) में वृद्धि होती है तो इससे निर्गत की उत्पादन लागत बढ़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप निर्गत के किसी भी स्तर पर फर्म की औसत लागत तथा सीमान्त लागत में भी वृद्धि हो जाती है। अब सीमान्त लागत वक्र बायीं ओर (ऊपर की ओर) शिफ्ट करता है।
प्रश्न 16.
औसत सम्प्राप्ति एवं सीमान्त सम्प्राप्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
औसत सम्प्राप्ति से अभिप्राय प्रति आगम विक्रय से प्राप्त सम्प्राप्ति से है। इसे कुल सम्प्राप्ति में बेची गई मात्रा का भाग देकर प्राप्त किया जाता है। जबकि, फर्म द्वारा एक अतिरिक्त इकाई की बिक्री से प्राप्त आय, सीमान्त सम्प्राप्ति कहलाती है।
खण्ड – (स)
प्रश्न 17.
सकल घरेलू उत्पाद, सकल राष्ट्रीय उत्पाद तथा निवलराष्ट्रीय उत्पाद की अवधारणाओं को स्पष्ट कीजिए। 3
अथवा
स्टॉक एवं प्रवाह चर के मध्य में अन्तर कीजिए। माल सूची की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
स्टॉक एवं प्रवाह चर के मध्य अन्तर अर्थशास्त्र में हम दो प्रकार के चरों का प्रयोग करते हैं-स्टॉक चर एवं प्रवाह चर। स्टॉक किसी आर्थिक चर की वह मात्रा है जिसे एक निश्चित समय बिन्दु पर मापा जाता है तथा किसी आर्थिक चर की वह मात्रा जिसे एक समयावधि, जैसे-एक घण्टा, एक माह, एक वर्ष के दौरान मापा जाता है उसे प्रवाह कहते हैं। स्टॉक एवं प्रवाह के बीच अन्तर का आधार समय सन्दर्भ है।
एक स्टॉक का कोई समय सन्दर्भ नहीं होता है जबकि प्रवाह में अनिवार्य रूप से समय सन्दर्भ होता है। इसे प्रति समयावधि प्रवाह के रूप में व्यक्त किया जाता है। एक उदाहरण के माध्यम से हम स्टॉक एवं प्रवाह के सम्बन्ध एवं अन्तर को समझने का प्रयास करेंगे। एक टंकी में पानी की मात्रा, यह स्टॉक को व्यक्त करता है। इससे हमें एक निश्चित समय बिन्दु पर टंकी में पानी की मात्रा का पता चलता है।
टंकी में आने वाली पानी की मात्रा प्रवाह है, यह प्रति इकाई समय में टंकी में आने वाली पानी की मात्रा को बताता है। जब हम यह कहते हैं कि सोमवार को पानी की टंकी में 50 गैलन पानी था, तो यह स्टॉक को बताता है और जब हम यह कहते हैं कि प्रति मिनट 2 गैलन की गति से टंकी में पानी भरा जा रहा है, तो यह प्रवाह को बताता है।
इस प्रकार टंकी में पानी का स्टॉक नल से आने वाले पानी के संचय को बताता है और पानी का प्रवाह स्टॉक में परिवर्तन को बताता है।
प्रश्न 18.
एक विकासशील अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंकों की भूमिका के कोई तीन बिन्दु बताइए।
अथवा
उत्पादन के क्षेत्र में मुद्रा के महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
एक विकासशील अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंकों की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है-
- पूँजी निर्माण में सहायक-विकासशील अर्थव्यवस्था में पूँजी की कमी होती है। ये बैंक लोगों की छोटी-छोटी बचतों को एकत्रित करके पूँजी का निर्माण करते हैं तथा निवेशकों को उधार देकर देश के विकास में योगदान देते हैं। इससे लोगों में मितव्ययिता की आदत का विकास होता है।
- बैंकिंग आदतों का विकास-व्यावसायिक बैंक ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में बैंक शाखाओं का विस्तार करके लोगों में बैंकिंग आदतों का विस्तार करते हैं इससे देश में साख निर्माण को बल मिलता है।
- पूँजी एवं साख की व्यवस्था-व्यावसायिक बैंक पूँजी एवं साख की व्यवस्था करते हैं। ये बैंक निवेशकर्ताओं को ऋण प्रदान करते हैं जिससे औद्योगिक विकास हेतु नयी मशीनों का आयात करना तथा नई तकनीकी को अपनाना आसान हो जाता है।
प्रश्न 19.
आपके अनुसार मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक समस्याओं का समाधान किस प्रकार होता है? 3
अथवा
“सकारात्मक तथा आदर्श आर्थिक विश्लेषण एक-दूसरे पर निर्भर हैं।” इस कथन पर अपने शब्दों में प्रकाश डालिए।
उत्तर :
ये दोनों विश्लेषण अर्थव्यवस्था के दो पहलू हैं। इनमें से किसी एक को भी पूर्ण रूप से उपेक्षित नहीं किया जा सकता है। वास्तविक स्थिति का ज्ञान होने पर ही किसी निर्णय पर पहुँचा जा सकता है तथा अर्थशास्त्री द्वारा अपनी राय दी जा सकती है।
प्रश्न 20.
लाभ अधिकतमीकरण को आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
अथवा
पूर्ति के नियम को एक तालिका तथा रेखाचित्र के माध्यम से समझाइए।
उत्तर :
पूर्ति का नियम बताता है कि यदि अन्य बातें समान रहें. तो किसी वस्तु या सेवा की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी पूर्ति में भी वृद्धि हो जाती है तथा कीमत में कमी होने पर उसकी पूर्ति में भी कमी आ जाती है। अतः यह नियम वस्तु की कीमत तथा पूर्ति की मात्रा के बीच सम्बन्ध को बताता है। पूर्ति के नियम को नीचे दी गई तालिका तथा रेखाचित्र के माध्यम से स्पष्ट किया गया है –
तालिका –
वस्तु की कीमत (₹) | पूर्ति की मात्रा (इकाइयों की) |
1 | 2 |
2 | 7 |
3 | 11 |
4 | 14 |
5 | 16 |
खण्ड – (द)
प्रश्न 21.
वस्तु विनिमय की दो कठिनाइयाँ बताते हुए स्पष्ट कीजिए कि मुद्रा ने उन्हें कैसे समाप्त किया है?
अथवा
मुद्रा के कार्यों को कितने भागों में बाँटा गया है ? मुख्य कार्य बताइए।
उत्तर:
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो व्यापक क्षेत्र में विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, स्थगित भुगतानों के मान तथा मूल्यों के संचय के साधन के रूप में सामान्य स्वीकृति तथा राजकीय संरक्षण प्राप्त है। मुद्रा के कार्य-मुद्रा के प्रमुख कार्यों को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) प्राथमिक अथवा मुख्य कार्य, तथा
(ब) सहायक अथवा गौण कार्य।
(अ) मुद्रा के प्राथमिक अथवा मुख्य कार्य-मुद्रा के प्राथमिक कार्य अग्रलिखित
- विनिमय का माध्यम-मुद्रा सामान्य रूप से क्रय-शक्ति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है। मुद्रा से ही लोग क्रय-विक्रय का सभी कार्य करते हैं।
- मूल्य का मापक-समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मुद्रा में ही मापा जाता है। मुद्रा के अभाव में वस्तुओं के मूल्यों के मापन की कोई उचित व्यवस्था नहीं है।
प्रश्न 22.
अनधिमान वक्र का रेखाचित्र बनाकर समझाइए।
अथवा
इकाई से कम लोचदार माँग रेखाचित्र के माध्यम से समझाइए।
उत्तर :
इकाई से कम लोचदार माँग (eD < 1) – जब किसी वस्तु की माँग में आनुपातिक परिवर्तन उस वस्तु की कीमत में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन से कम होता है। रेखाचित्र में OP कीमत पर OQ माँग मात्रा है। अब यदि कीमत OP1 हो जाती है तो माँग OQ1 होगी और यदि कीमत बढ़कर OP2 हो जाती है तो माँग OQ2 होगी। अतः कीमत की तुलना में माँग में परिवर्तन कम होगा इसलिए माँग को इकाई से कम लोचदार माँग कहते है।
प्रश्न 23.
औसत उत्पाद एवं सीमान्त उत्पाद के मध्य सम्बन्ध की व्याख्या रेखाचित्र की सहायता से कीजिए।
अथवा
परिवर्ती अनुपात नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
परिवर्ती अनुपात नियम अथवा ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम अल्पकाल में, अन्य आगतों की मात्राओं को स्थिर रखते हुए एक परिवर्तनशील आगत की इकाइयों और उत्पादन की मात्रा के बीच सम्बन्ध बताने वाले नियम को ही परिवर्ती अनुपात नियम अथवा समान सीमांत उत्पाद नियम कहते हैं।
इस नियम की व्याख्या उत्पादन की निम्नलिखित तीन अवस्थाओं के माध्यम से की गयी है जिनमें भूमि तथा पूँजी स्थिर आगत तथा श्रम को परिवर्ती आगत माना है।
प्रथम अवस्था (First Stage)-प्रारम्भ में जब श्रम (परिवर्ती आगत) की इकाइयों में वृद्धि की जाती है तो तीव्र गति से बढ़ने लगता है तथा सीमान्त उत्पाद (MP) में भी उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। अतः इस अवस्था में कुल उत्पाद, सीमान्त उत्पाद तथा औसत उत्पाद (TP, MP, AP) तीनों में ही वृद्धि होती है। यह उत्पत्ति वृद्धि नियम या साधन के बढ़ते हुए प्रतिफल की अवस्था है।
द्वितीय अवस्था (Second Stage)-इस अवस्था में TP में घटती हुई दर से वृद्धि होती है अत: MP गिरने लगता है। जहाँ TP अधिकतम हो जाता है वहाँ MP शून्य हो जाता है। यह उत्पत्ति ह्रस नियम की अवस्था कहलाती है।
तृतीय अवस्था (Third Stage)-इस अवस्था में TP घटना आरम्भ हो जाता है। AP गिरने लगता है तथा MP ऋणात्मक हो जाता है। इस अवस्था में घटते हुए औसत उत्पादन का नियम लागू होता है तथा इस समय फर्म उत्पादन नहीं करेगी।
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