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RBSE Class 12 Geography Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi
समय : 2:45 घण्टे
पूर्णांक : 56
सामान्य निर्देश :
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 × 9 = 9)
(i) “मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संश्लेषित सम्बन्धों का अध्ययन है।” मानव भूगोल की उक्त परिभाषा किसने दी?
(अ) एलन सी. सेम्पल
(ब) रैटनेल
(स) ग्रिफिथ टेलर
(द) विडाल-डी-ला ब्लॉश
उत्तर:
(ब) रैटनेल
(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाला आर्थिक कारक है?
(अ) भू-आकृति
(ब) जलवायु
(स) औद्योगीकरण
(द) मुद्राएँ
उत्तर:
(स) औद्योगीकरण
(iii) निम्नलिखित में से कौन-सी फसल भूमध्यसागरीय कृषि का प्रमुख उदाहरण है?
(अ) गेहूँ
(ब) चावल
(स) अंगूर
(द) मक्का
उत्तर:
(स) अंगूर
(iv) कच्चे लोहे में क्या मिलाकर इस्पात बनाया जाता है?
(अ) कैल्शियम
(ब) मैंगनीज
(स) सल्फर
(द) सिलिका
उत्तर:
(ब) मैंगनीज
(v) विश्व की प्रथम मेगासिटी कौन-सी है?
(अ) शिकागो
(ब) टोक्यो
(स) न्यूयार्क
(द) लंदन
उत्तर:
(स) न्यूयार्क
(vi) भारत की प्रथम जनगणना कब आयोजित की गयी थी?
(अ) 1872
(ब) 1873
(स) 1874
(द) 1875
उत्तर:
(अ) 1872
(vii) भारत की जनगणना नगरों को कितने वर्गों में वर्गीकृत करती है?
(अ) 5
(ब) 6
(स) 7
(द) 8
उत्तर:
(ब) 6
(viii) निम्नलिखित में से कौन-सी रबी की फसल है?
(अ) चावल
(ब) कपास
(स) मक्का
(द) गेहूँ
उत्तर:
(द) गेहूँ
(ix) निम्नलिखित में से किस अयस्क का प्रयोग एल्यूमिनियम के विनिर्माण में किया जाता है?
(अ) हेमेटाइट
(ब) मेग्नेटाइट,
(स) बॉक्साइट
(द) गेलेना
उत्तर:
(स) बॉक्साइट
प्रश्न 2.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए: [1 × 4 = 4]
(i) प्रत्येक सड़क जो दो नोडों को जोडती है ………………. कहलाती है।
उत्तर:
योजक
(ii) भारत का चावल उत्पादन में विश्व में …………….. स्थान है।
उत्तर:
दूसरा
(iii) ……….. संसाधनों के संरक्षण से है।
उत्तर:
जल
(iv) नेशनल रिमोट सेसिंग सेन्टर ………………… में स्थित है।
उत्तर:
हैदराबाद।
प्रश्न 3.
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न [1 × 4 = 4]
(i) प्रतिकर्ष कारकों के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
(i) बेरोजगारी,
(ii) रहन-सहन की निम्न दशाएँ
(ii) विवृत्त खनन खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका क्यों हैं?
उत्तर:
क्योंकि विवृत्त खनन में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है और उत्पादक शीघ्र व अधिक होता है।
(iii) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों में कोई एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग सरकार के अधीन होते हैं जबकि निजी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व व्यक्तिगत निवेशकों के पास होता है।
(iv) विकासशील देशों में अंकीय विभाजक को कम करने हेतु एक सुझाव दीजिए।
उत्तर:
आम जनता तक सूचना और संचार तकनीक की पहुँच सुनिश्चित करना।
खण्ड – (ब)
लघूत्तरात्मक प्रश्न (1. 5 × 12 = 18)
प्रश्न 4.
संभववाद को स्पष्ट कीजिए। [1.5]
उत्तर:
मानव-पर्यावरण सम्बन्धों के परिणामस्वरूप विकसित हुई अवधारणा संभववाद कहलाती है जिसका प्रतिपादन फ्रांसीसी विद्वान पाल-विडाल-डी-ला-ब्लाश ने किया था। इस अवधारणा में प्रकृति प्रदत्त अवसरों का प्रयोग मानवीय कल्याण हेतु किया जाता है जिससे पृथ्वी पर मानवीय कार्यों की छाप पड़ती है। यह विचारधारा प्रकृति की तुलना में मानव को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है।
प्रश्न 5.
आपके अनुसार नवनिश्चयवाद का क्या महत्त्व है? [1.5]
उत्तर:
नवनिश्यचयवाद विचारधारा यह बताती है कि हमें प्रकृति का सहयोग प्राप्त करने के लिए उनके द्वारा निर्धारित सीमाओं को नहीं तोडना चाहिए। मानव को विकास की योजनाएँ क्रियान्वित करते समय प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए।
प्रश्न 6.
मानव बस्ती को परिभाषित कीजिए। [1.5]
उत्तर:
मानव बस्ती का अध्ययन मानव भूगोल का मूल है क्योंकि किसी भी क्षेत्र में बस्तियों का रूप उस क्षेत्र के वातावरण से मानव का संबंध दर्शाता है। एक स्थान जो साधारणतया स्थायी रूप से बसा हुआ हो उसे मानव बस्ती कहते हैं। दूसरे शब्दों में किसी भी प्रकार और आकार के घरों का समूह जिनमें मानव निवास करते हैं। मानव बस्ती कहलाता है।
प्रश्न 7.
ग्रामीण बस्तियों की समस्याओं को दूर करने के कोई तीन उपाय सुझाइए। [1.5]
उत्तर:
ग्रामीण बस्तियों की समस्याओं को दूर करने के तीन उपाय
(i) ग्रामीण बस्तियों में पर्याप्त जल की आपूर्ति करना।
(ii) शौचघर और कूडा-कचरा निस्तारण की सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
(iii) पक्की सडकें एवं आधुनिक संचार के साधनों की व्यवस्था करना।
प्रश्न 8.
प्रवास के कोई 2 कारण बताइए। [1.5]
उत्तर:
(i) प्रतिकर्ष कारक-ये वे कारक होते हैं जो लोगों को अपने निवास अथवा उदगम स्थान छुडवाने के लिए उत्तरदायी होते हैं; जैसे रोजगार के स्त्रोतों का अभाव, प्राकृतिक आपदाएँ तथा युद्ध आदि।
(ii) अपकर्ष कारक-ये वे कारक हैं जो विभिन्न स्थानों से लोगों को आकर्षित करते हैं; जैसे काम के बेहतर अवसर, शिक्षा के बेहतर अवसर, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ आदि।
प्रश्न 9.
जनसंख्या घनत्व को परिभाषित कीजिए। [1.5]
उत्तर:
प्रति वर्ग किलोमीटर या प्रति इकाई क्षेत्रफल पर निवासित व्यक्तियों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहा जाता जनसंख्या है।
प्रश्न 10.
भारत में गुच्छित बस्तियों के कोई 2 उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में गुच्छित बस्तियाँ प्रायः उपजाऊ जलोढ़ मैदानों और उत्तर:पूर्वी राज्यों में पायी जाती हैं। मध्य प्रदेश के बुदेलखण्ड क्षेत्र एवं नागालैण्ड में गुच्छित बस्तियाँ देखने को मिलती हैं।
प्रश्न 11.
आपके अनुसार अंग्रेजों ने भारत में तटीय स्थानों पर नगरों का विकास क्यों किया? [1.5]
उत्तर:
ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने भारत में अनेक नगरों का विकास किया। अंग्रेजों ने भारत में तटीय स्थानों पर नगरों का विकास किया क्योंकि प्रारम्भ में अंग्रेज भारत में व्यापार करने आये थे। उन्होंने भारत से समुद्र के रास्ते अन्य देशों में व्यापार करना था तथा भारत से विभिन्न सामग्रियों को अपने देश को पहुँचाना था। अतः उन्होनें भारत के तटीय मार्गों पर सूरत, दमन, गोवा, व पांडिचेरी आदि में व्यापारिक पत्तनों का विकास कर अपने निवास एवं व्यापार हेतु तटीय स्थानों पर नगरों का विकास किया।
प्रश्न 12.
साझा सम्पत्ति संसाधनों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (1.5)
चारागाह, ग्रामीण जलीय क्षेत्र तथा अन्य सार्वजिनक स्थल साझा सम्पत्ति के उदाहण हैं। इन संसाधनों से पशुओं के लिए चारा, घरेलू उपयोग हेतू, ईंधन, लकड़ी तथा अन्य वन उत्पाद; जैसे-फलं, रेशे, गिरी तथा औषधीय पौधे आदि उपलब्ध होते हैं। इन संसाधनों से ग्रामीण गरीब महिलाएँ चारा व ईंधन को इकट्ठा करती हैं।
प्रश्न 13.
जल संभर प्रबंधन से आप क्या समझते हैं? [1.5]
उत्तर:
धरातलीय और भौम जल संसाधनों का कुशल प्रबन्धन जल संभर प्रबन्धन कहा जाता है। विस्तृत अर्थ में जल संभर प्रबन्धन के अन्तर्गत सभी प्राकृतिक (जैसे-भूमि, जल, पौधे तथा प्राणियों) और जल संभर सहित मानवीय संसाधनों के संरक्षण, पुरुत्पादन और विवेकपूर्ण उपयोग को सम्मिलित किया जाता है। जल संभर प्रबन्धन का प्रमुख उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों तथा समाज के मध्य सन्तुलन स्थापित करना है।
प्रश्न 14.
जलमार्ग | विस्तार |
राष्ट्रीय जलमार्ग 1 | सदिया-धुवरी विस्तार |
राष्ट्रीय जलमार्ग 2 | कोट्टापुरम-कोलम विस्तार |
राष्ट्रीय जलमार्ग 3 | इलाहाबाद-हल्दिया विस्तार |
उत्तर:
जलमार्ग | विस्तार |
राष्ट्रीय जलमार्ग 1 | इलाहाबाद-हल्दिया विस्तार |
राष्ट्रीय जलमार्ग 2 | सदिया-धुवरी विस्तार |
राष्ट्रीय जलमार्ग 3 | इलाहाबाद-हल्दिया विस्तार |
प्रश्न 15.
बड़ी लाइन एवं मीटर लाइन में अंतर स्पष्ट कीजिए। (1.5)
उत्तर:
बड़ी लाइन-बड़ी लाइन में रेल पटरियों के बीच की दूरी 1.616 मीटर होती है। बड़ी लाइन की कुल लम्बाई सन् 2016 में 60510 किमी. थी। मीटर लाइन-इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी एक मीटर होती है। इसकी कुल लंबाई 2016 में 3880 किमी थी।
खण्ड – (स)
दीर्घउत्तरीय प्रश्न (3× 3 = 9)
प्रश्न 16.
भारत में चिकित्सा पर्यटन को बढ़ाने के लिए क्या प्रयास किए जाने चाहिए। [3]
उत्तर:
जब लोग अपनी चिकित्सा या उपचार के लिए अपने देश से बाहर अन्य किसी देश की यात्रा करते हैं तो यह चिकित्सा पर्यटन कहलाता है। भारत चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में विश्व में एक प्रमुख स्थान के रूप में उभरा है। भारत में चिकित्सा पर्यटन को बढाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए।
(i) देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा केन्द्र (वेलनेस सेंटर) स्थापित किये जाएँ।
(ii) चिकित्सा पर्यटन को बढावा देने के लिए मेडिकल वीजा जारी करने में शीघ्रता लायी जाये। इस हेतु वीजा कानूनों में सरलता लायी जाये।
(iii) चिकित्सा सेवा की लागत को अन्य देशों के मुकाबले कम किया जाये।
(iv) भारत आने वाले रोगियों के लिए आवास की लागत में कमी लायी जाये।
(v) विदेशी मरीजों की बढ़ती संख्या भारतीय मरीजों के लिए परेशानी का कारण बन सकती है अतः ऐसे में सरकार को समय रहते इस उद्योग को विकसित करना चाहिए।
(vi) भारत को चिकित्सा और स्वास्थ पर्यटन स्थल के साथ में विकसित और प्रोत्साहित करने के लिए मान्यता प्राप्त अस्पतालों की संख्या को बढ़ाया जाये।
(vii) देश के चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों के बारे में एक डाटा बैंक तैयार किया जाये ताकि सम्बधित सूचनाओं का दायरा बढाने के लिए कार्य पद्धति तैयार की जा सके।
अथवा
फुटकर व्यापार का विश्लेषण कीजिए। [3]
उत्तर:
फुटकर व्यापार-उपभोक्ताओं को वस्तुओं के प्रत्यक्ष विक्रय से सम्बन्धित व्यापारिक क्रियाकलापों को फुटकर व्यापार कहा जाता है। फुटकर व्यापार अधिकांशत, विक्रय के नियत प्रतिष्ठानों एवं भंडारों में सम्पन्न होता है। फेरी, रेहड़ी, ट्रक, द्वार से द्वार, डाक आदेश, दूरभाष, स्वचालित-बिक्री मशीनें तथा इंटरनेट फुटकर बिक्री के भंडार रहित उदाहरण हैं। फुटकर विक्रेता वह व्यापारी होते हैं जो थोक विक्रेताओं से और कभी-कभी सीधे उत्पादक से माल का क्रय कर, उपभोक्ता को बेच देते हैं। वे साधारणतया अपने कार्य की फुटकर दुकानों के माध्यम से करते हैं तथा माल का विक्रय थोड़ी मात्रा में करते हैं। वे दिन प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का व्यापार करते हैं। सामान्यतया थोक विक्रेता के मुकाबले फुटकर व्यापारी को बहुत कम पूँजी की आवश्यकता होती है तथा वह व्यापार में नकद लेनदेन करता है। फुकर व्यापारी के प्रमुख कार्य हैं- उपभोक्ताओं की आवश्यकता की सतत् पूर्ति करना। उपभोक्ताओं से अच्छे सम्बन्ध बनाकर उन्हें माल वापसी की सुविधा देना। उपभोक्ताओं को नकद माल बेचने के साथ ही कभी-कभी उधार माल देने की जोखिम उठाना। श्रेणी रहित वस्तुओं को श्रेणीबद्ध करना। फुटकर व्यापार में भंडार तीन प्रकार के होते हैं- की (i) उपभोक्ता भंडार: (ii) विभागीय भंडार (ii) शृंखला भंडार।
प्रश्न 17.
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को वर्गीकृत कीजिए। [3]
उत्तर:
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों का वर्गीकरण-कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है
(i) कृषि आधारित उद्योग-इस वर्ग के उद्योग कृषि से प्राप्त उत्पादों का प्रयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं। ऐसे उद्योगों में भोजन प्रसंस्करण उद्योग, चीनी उद्योग, सूती व रेशमी वस्त्र उद्योग, जूट, चाय, कॉफी तथा रबड़ उद्योग सम्मिलित हैं।
(ii) खनिज आधारित उद्योग-इस वर्ग में वे उद्योग सम्मिलित हैं जो कच्चे माल के रूप में खनिजों का प्रयोग करते हैं। इनमें से कुछ उद्योग लौह अंश वाले धात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं जैसे-लौह-इस्पात उद्योग। जबकि कुछ उद्योग अलौह धात्विक खनिजों का प्रयोग करते हैं; जैसे-ताँबा, एल्यूमिनियम एवं रत्न-आभूषण उद्योग। दूसरी ओर कुछ उद्योग ऐसे होते हैं जो कच्चे माल के रूप में अधात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं; जैसे-सीमेण्ट व चीनी मिट्टी के बर्तनों का उद्योग।
(iii) रसायन आधारित उद्योग-इस वर्ग के उद्योग कच्चे माल के रूप में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं। पेट्रो-रसायन उद्योग, नमक उद्योग, गन्धक उद्योग, पोटाश उद्योग, प्लास्टिक उद्योग तथा कृत्रिम रेशे बनाने का उद्योग इस वर्ग के प्रमुख रसायन आधारित उद्योग हैं।
(iv) वनों पर आधारित उद्योग-इस वर्ग के उद्योग वनों से प्राप्त अनेक मुख्य व गौण उत्पादों का उपयोग अपने कच्चे माल के रूप में करते हैं। फर्नीचर उद्योग, कागज उद्योग तथा लाख उद्योग प्रमुख वन आधारित उद्योग हैं।
(v) पशु आधारित उद्योग-पशुओं से प्राप्त चमड़ा तथा ऊन ऐसे महत्त्वपूर्ण पशु उत्पाद हैं जिनका उपयोग कच्चे माल के रूप में क्रमशः चमड़ा उद्योग तथा ऊनी वस्त्र उद्योग द्वारा किया जाता है।
अथवा
आकार के आधार पर विनिर्माण उद्योगों को वर्गीकृत कीजिए। [3]
उत्तर:
आकार के आधार पर विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण:
आकार के आधार पर विनिर्माण उद्योगों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है
(1) कुटीर उद्योग:
कुटीर या घरेलू उद्योग वस्तु निर्माण की सबसे छोटी इकाई है। इसमें पूँजी का समावेश न्यूनतम तथा मानवीय श्रम का समावेश अधिकतम होता है। कुटीर उद्योग में साधारण औजारों द्वारा परिवार के अधिकांश सदस्य मिलकर विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। भारत में कुटीर उद्योग के अन्तर्गत जुलाहों द्वारा कपड़े बनाने, चमड़े से निर्मित वस्तुएँ, कुम्हार द्वारा मिट्टी के बर्तनों के निर्माण को प्रमुख रूप से शामिल किया जाता है। कुछ वस्तुएँ स्थानीय रूप से उपलब्ध वनोत्पादों से भी निर्मित की जाती हैं।
(2) छोटे पैमाने के उद्योग:
इस स्तर के उद्योगों में स्थानीय कच्चे माल, अर्द्ध-कुशल श्रमिक तथा शक्ति संचालित मशीनों का प्रयोग होता है। यह उद्योग घर से बाहर लगाए जाते हैं तथा इनमें उत्पादन की तकनीक कुटीर उद्योगों की तुलना में उत्तम होती है। छोटे पैमाने के उद्योग स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते
(3) बड़े पैमाने के उद्योग-बड़े पैमाने के लिए विस्तृत बाजार, विभिन्न प्रकार के कच्चे माल, पर्याप्त शक्ति आपूर्ति, कुशल श्रमिक, विकसित तकनीक, अधिक उत्पादन तथा पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है। प्रारम्भ में इन उद्योगों का विकास ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी भाग तथा यूरोपियन देशों में हुआ, लेकिन वर्तमान में इन उद्योगों का विकास विश्व के अधिकांश देशों में मिलता है।
प्रश्न 18.
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति 2002 की कोई 3 विशेषताओं का उल्लेख कीजिए? उत्तर: भारतीय राष्ट्रीय जल नीति 2002 की मुख्य विशेषताएँ-भारतीय राष्ट्रीय जल नीति 2002 की 3 मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं [3]
(1) जल का वितरण पहली प्राथमिकता में पीने के लिए, उसके बाद सिंचाई, पैम बिजली, पारिस्थितिकी, कृषि, उद्योगों और गैर कृषि उद्योगों, अन्वेषण और अन्य उपयोगों के लिए इसी क्रम में किया जाना चाहिए।
(2) सतही जल और भौमजल दोनों की गुणवत्ता की नियमित रूप से जाँच होनी चाहिए। प्राकृतिक धाराओं में निर्वहन से पहले अपशिष्ट को स्वीकार्य स्तर और मानकों के अनुसार शोधित किया जाना चाहिए। पारिस्थितिकी को बनाए. रखने के लिए धाराओं के बारहमासी न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित किया जाना चाहिए
(3) जल एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन, एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता और कीमती राष्ट्रीय सम्पत्ति है। जल – संसाधनों का नियोजन, विकास और प्रबंधन राष्ट्रीय दृष्टिकोण से संचालित किये जाने की आवश्यकता है।
अथवा
जल गुणवत्ता में ह्रास के कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए? [3]
उत्तर:
जल गुणवत्ता से आशय जल की शुद्धता अथवा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से होता है। सूक्ष्म जीव,
रासायनिक पदार्थ, औद्योगिक व अन्य अपशिष्ट जैसे पदार्थों के शुद्ध जल में मिश्रण से जल गुणवत्ता में झस होता है अर्थात जल के गुणों में कमी आती है। तथा वह जल प्रदूषित जल की श्रेणी में आ जाता है। झीलों, नदियों, सागरों तथा अन्य जलाशयों में जब बाह्य स्रोतों से निष्कासित विषैले पदार्थ आकर मिल जाते हैं तो जल के गुणों में कमी आने से जलीय तन्त्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। गंगा तथा यमुना देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदियाँ हैं। गंगा तथा यमुना सहित भारत की अधिकांश नदियों में प्रदूषकों का संकेन्द्रण ग्रीष्मकालीन अवंधि में बहुत अधिक होता है क्योंकि उस समय नदी में जल का प्रवाह बहुत कम रह जाता है। कभी-कभी प्रदूषित जल भूमि के अन्दर प्रवेश कर भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर देता है। वस्तुतः प्रदूषित जल मानव के उपयोग के योग्य नहीं रहता।
खण्ड – (द)
निबन्धात्मक प्रश्न [4× 2 = 8]
प्रश्न 19.
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए। [4]
उत्तर:
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारक-जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारक निम्नलिखित हैं
(1) खनिज-खनिज संसाधनों से सम्पन्न क्षेत्र खनन कार्य के साथ-साथ अनके उद्योगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। खनन और औद्योगिक गतिविधियाँ रोजगार उत्पन्न करती हैं। अत: कुशल एवं अर्धकुशल लोग रोजगार हेतु इन क्षेत्रों में पहुँचते हैं जिसके कारण ऐसे क्षेत्रों में जनसंख्या का अधिक जमाव देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए अफ्रीका का कटंगा, जांबिया ताँबा पेटी।
(2) नगरीकरण-नगर अच्छी नागरिक सुविधाएँ, रोजगार के अधिक अवसर, चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाएँ तथा परिवहन और संचार के बेहतर साधन प्रस्तुत करते हैं। अच्छी नागरिक सुविधाएँ और नगरीय जीवन के आकर्षण लोगों को नगरों की ओर खींचते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास होता है और नगर आकार में बढ जाते हैं।
(3) औद्योगीकरण-औद्योगिक क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित होते हैं। जिसके कारण यह क्षेत्र अधिक जनघनत्व वाले क्षेत्र हो जाते है। उद्योग बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करते हैं। इनमें न केवल कारखानों के श्रामिक ही नहीं होते बल्कि परिवहन परिचालक, दुकानदार, बैंक कर्मी, चिकित्सक, अध्यापक तथा अन्य सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले भी होते हैं। जापान का कोबे-ओसाका प्रदेश अनेक उद्योगों के कारण सघन बसा हुआ है।
अथवा
लिंगानुपात से आप क्या समझते हैं? एशियाई देशों में कम लिंगानुपात के कारणों का उल्लेख कीजिए? [4]
उत्तर:
लिंगानुपात-जनसंख्या में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या के मध्य के अनुपात को लिंगानुपात कहा जाता है।
कुछ देशों में लिंगानुपात को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है
अथवा प्रति हजार स्त्रियों पर पुरुषों की संख्या।
भारत में लिंगानुपात की गणना निम्न सूत्र की सहायता से की जाती है
अथवा प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या।
लिंगानुपात किसी भी देश में स्त्रियों की स्थिति के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण सूचक होता है। लिंग भेदभाव से लिंगानुपात प्रभावित होता है। जिन क्षेत्रों अथवा देशों में लिंग भेदभाव अधिक होता है, वहाँ लिंगानुपात निश्चित रूप से स्त्रियों के प्रतिकूल होता है। इन क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या व कन्या शिशु हत्या एवं स्त्रियों के प्रति घरेलू हिंसा की प्रथा प्रचलित होती है। इसके विपरीत जिन देशों अथवा क्षेत्रों में लिंग भेदभाव नहीं किया जाता है, स्त्रियों को सम्मान दिया जाता है व उनका सामाजिक व आर्थिक स्तर ऊँचा होता है वहाँ लिंगानुपात स्त्रियों के अनुकूल होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि लिंग भेदभाव से लिंगानुपात प्रभावित होता है।
एशियाई देशों में कम लिंगानुपात के कारण-
एशियाई देशों में लिंगानुपात निम्न है। विशेषकर चीन, भारत, सऊदी अरब, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में लिंगानुपात की.बहुत अधिक निम्न स्थिति देखने को मिलती है।
एशियाई देशों में कम लिंगानुपात मिलने के निम्नलिखित कारण हैं-
(i) लिंग भेदभाव का अधिक होना।
(ii) स्त्री भ्रूण हत्या, स्त्री शिशु हत्या और स्त्रियों के प्रति घरेलु हिंसा की प्रथा का प्रचलित होना।
(iii) स्त्रियों के सामाजिक-आर्थिक स्तर का निम्न होना।
(iv) प्रजनन के दौरान महिलाओं की अधिक मृत्यु होना।
प्रश्न 20.
भारत में लौह-इस्पात उद्योग का विस्तार से वर्णन कीजिए? [4]
उत्तर:
भारत में लौह-इस्पात उद्योग-लौह-इस्पात उद्योग के विकास ने भारत में तीव्र औद्योगिक विकास के अवसर खोल दिए हैं। भारतीय लौह-इस्पात उद्योग के अन्तर्गत बडे एकीकृत इस्पात कारखाने और छोटी इस्पात मिलें भी सम्मिलित हैं।
1. टाटा लौह-इस्पात कम्पनी (TISCO):
झारखण्ड राज्य के जमशेदपुर नामक स्थान पर संचालित यह इस्पात संयन्त्र मुम्बई-कोलकाता रेलमार्ग के समीप अवस्थित है। इस संयन्त्र के लिए लौह अयस्क नोआमण्डी और बादामपहाड़ से, कोयला उड़ीसा राज्य की जोड़ा खानों से, कोककारी कोयला झरिया व पश्चिमी बोकारो से तथा जल सुवर्णरेखा एवं खारकोई नदियों से प्राप्त किया जाता है। इस संयन्त्र में उत्पादित इस्पात का निर्यात लगभग 240 किमी. दूर कोलकाता पत्तन से किया जाता है।
2. भारतीय लौह और इस्पात कम्पनी (IISCO):
भारतीय लौह और इस्पात कम्पनी (इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी) द्वारा लौह-इस्पात के संयन्त्र, आसनसोल (पश्चिम बंगाल राज्य) के समीप हीरापुर, कुल्टी तथा बर्नपुर नामक स्थानों पर स्थापित किए गये हैं। उक्त तीनों इस्पात संयन्त्र कोलकाता-आसनसोल रेलमार्ग पर दामोदर घाटी के कोयला क्षेत्रों (रानीगंज, झरिया तथा रामगढ़) के समीप अवस्थित हैं। इन संयन्त्रों को लौह-अयस्क सिंहभूम (झारखण्ड) से आता है, जबकि जल की आपूर्ति दामोदर नदी की सहायक नदी बराक से की जाती है।
3. विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील वर्क्स (VISW) लौह:
इस्पात का यह संयन्त्र कर्नाटक राज्य के भद्रावती नामक स्थान पर बाबाबूदन पहाड़ियों के लौह-अयस्क क्षेत्रों के समीप संचालित है। इस संयन्त्र को लौह-अयस्क के साथ-साथ चूना पत्थर व मैंगनीज की उपलब्धता भी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध है। जल की आपूर्ति भद्रावती नदी से की जाती है। इस संयन्त्र में विशिष्ट इस्पात एवं एलॉय उत्पादन किया जाता है।
4. राउरकेला इस्पात संयन्त्र:
उड़ीसा राज्य के सुन्दरगढ़ जिले में इस संयन्त्र की स्थापना कच्चे माल की निकटता के आधार पर की गई थी। इस संयन्त्र को कोयला समीपवर्ती झरिया क्षेत्र से तथा लौह अयस्क सुन्दरगढ़ व केंदुझर क्षेत्र से प्राप्त हो जाता है, जबकि विद्युत भट्टियों के लिए विद्युत शक्ति हीराकुंड जल विद्युत परियोजना से उपलब्ध हो जाती है।
5. भिलाई इस्पात संयन्त्र:
इस इस्पात संयन्त्र की स्थापना छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में रूस के सहयोग से की गई थी। इस संयन्त्र को लौह-अयस्क समीपवर्ती क्षेत्र में स्थित डल्ली राजहरा खानों से तथा कोयला कोरबा व करगाली खदानों से प्राप्त हो जाता है। इस संयन्त्र को विद्युत की आपूर्ति कोरबा तापीय शक्तिगृह से तथा जलं की आपूर्ति तंदुला बाँध से की जाती है। यह संयन्त्र कोलकाता-मुम्बई रेलमार्ग पर स्थित है। इस संयन्त्र में उत्पादित इस्पात का अधिकांश भाग विशाखापट्टनम बन्दरगाह से निर्यात कर दिया जाता है।
चित्र : भारत लौह-इस्पात के प्रमुख संयन्त्रों की अवस्थिति
6. दुर्गापुर इस्पात संयन्त्र :
ब्रिटेन सरकार के सहयोग से पश्चिम बंगाल राज्य के दुर्गापुर नामक स्थान पर संचालित यह संयन्त्र रानीगंज व झरिया कोयला पेटी में आता है। इस संयन्त्र को लौह अयस्क रेलमार्ग द्वारा नोआमंडी क्षेत्र से प्राप्त होता है। कोलकाता-दिल्ली रेलमार्ग पर स्थित इस संयन्त्र को जल विद्युत शक्ति दामोदर घाटी कारपोरेशन से प्राप्त होती है।
7. बोकारो इस्पात संयन्त्र:
रूस के सहयोग से झारखण्ड के बोकारो नामक स्थान पर इस इस्पात संयन्त्र की स्थापना न्यूनतम परिवहन लागत सिद्धान्त के आधार की गई है। जिसके अनुसार बोकासे तथा राउरकेला संयुक्त रूप से राउरकेला क्षेत्र से लौह अयस्क प्राप्त करते हैं तथा वापसी में मालगाड़ी के डिब्बे राउरकेला के लिए कोयला ले जाते हैं। इस संयन्त्र को जल तथा जल विद्युत की आपूर्ति दामोदर घाटी कारपोरेशन से की जाती है।
8. अन्य मुख्य इस्पात संयंत्र:
इन इस्पात संयत्रों के अतिरिक्त चतुर्थ योजना में तीन नए इस्पात संयंत्र भी स्थापित किये गये। ये तीनों संयंत्र दक्षिण भारत में स्थापित हैं
(i) विजाग इस्पात संयंत्र- पहला पत्तन आधारित यह इस्पात संयंत्र विशाखापट्टनम में स्थापित है। इसकी स्थापना 1992 में की गयी। इसकी पत्तन स्थिति लाभप्रद है।
(ii) विजयनगर इस्पात संयंत्र- यह इस्पात संयंत्र होसपेटे (कर्नाटक) में स्थापित किया जाय। इस कारखाने की स्थापना में स्वदेशी तकनीक का प्रयोग किया गया। यह संयंत्र समीपवर्ती लौह अयस्क और चूना पत्थर का उपयोग करता है।
(iii) सेलम इस्पात संयंत्र- यह इस्पात संयंत्र सेलम (तमिलनाडू) में स्थापित है। इन मुख्य इस्पात संयंत्रों के अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में 206 से अधिक इस्पात कारखाने संचालित हैं। इनमें से अधिकाश कारखाने अपने मुख्य कच्चे माल के रूप में रद्दी लोहे का उपयोग करते हैं।
अथवा
नई औद्योगिक नीति-1991 ने भारत में औद्योगिक विकास को किस प्रकार प्रभावित किया? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
नई औद्योगिक नीति-1991 भारत में नई औद्यागिक नीति की घोषणा 1991 में की गई। इस नीति के प्रमुख … उद्देश्य निम्नलिखित थे
- वर्तमान तक प्राप्त किए गए लाभ में वृद्धि करना
- अपेक्षित औद्योगिक प्रगति न होने के कारणों को दूर करना।
- उत्पादकता और लाभकारी रोजगार में स्वपोषित वृद्धि को बनाए रखना।
- औद्योगिक क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता प्राप्त करना। . उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण भारत की नई औद्योगिक नीति-1991 के प्रमुख लक्ष्य रहे।
नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत औद्योगिक विकास हेतु किए गए उपाय
- औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था की समाप्ति
- विदेशी तकनीक का निःशुल्क प्रवेश
- विदेशी निवेश नीति
- पूँजी बाजार में अभिगम्यता
- खुला व्यापार
- प्रावस्थबद्ध निर्माण कार्यक्रम की समाप्ति
- औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण
नई औद्योगिक नीति-1991 का भारत के औद्योगिक विकास पर प्रभाव:
नई औद्योगिक नीति के तहत भारत . में उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण से औद्योगिक विकास को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला है। इसके प्रमुख कारक निम्नलिखित रहे।
1. सुरक्षा, सामरिक अथवा पर्यावरण से सम्बन्धित 6 उद्योगों को छोड़कर भारत सरकार ने सभी उद्योगों को लाइसेंस व्यवस्था से मुक्त कर दिया।
2. सन् 1956 से सार्वजनिक सेक्टर के लिए सुरक्षित उद्योगों की संख्या को 17 से घटाकर 4 कर दिया। इस प्रकार 13 उद्योगों के लिए निजी क्षेत्र के दरवाजे सरकार द्वारा खोल दिए गये। केवल परमाणु-शक्ति तथा रेलवे से . सम्बन्धित उद्योग ही सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत बने रहे।
3. भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्योगों के शेयरों में से कुछ को सामान्य जनता, कामगारों तथा वित्तीय संस्थाओं के लिए आवंटित करने का निश्चय किया।
4. किसी भी उद्योग में पूंजी निवेश की सीमा को समाप्त कर दिया गया तथा इसके लिए लाइसेन्स व पूर्व अनुमति की व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया।
5. उद्योगों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment) को घरेलू. निवेश के रूप में मान्यता प्रदान की
गई। इससे भारतीय योगों में विदेशी निवेश के दरवाजे खुल गए जिसके परिणामस्वरूप उद्योगों में उन्नत तकनीक, वैश्विक कुशल प्रबन्धन व व्यावहारिकता का अभिगमन तथा प्राकृतिक व मानवीय संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग का समावेश होने से उनके विकास को एक नवीन दिशा प्राप्त हुई।
6. भारत की औद्योगिक नीति में घरेलू तथा बहुराष्ट्रीय दोनों व्यक्तिगत पूँजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए उदारता दिखाई गई। खनन, दूर-संचार, राजमार्ग निर्माण व व्यवस्था को निजी क्षेत्र की कम्पनियों के लिए खोल दिया गया।
7. इन सभी छूटों के बाद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत सरकार की आशाओं के अनुरूप नहीं रहा लेकिन विदेशी निवेश का एक बड़ा भाग घरेलू उपकरणों, वित्त, सेवा, इलेक्ट्रॉनिक, विद्युत उपकरण, खाद्य व दुग्ध जैसे उद्योगों में लगाए जाने से इन उद्योगों के विकास को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला है।
प्रश्न क्रमांक 21 से 22 मानचित्र कार्य से सम्बन्धित हैं। प्रत्येक प्रश्न-2 अंक का है।
प्रश्न 21.
दिए गए विश्व के रेखा मानचित्र में निम्नांकित सघन जनसंख्या वाले देशों को दर्शाइए: [4]
(अ) पाकिस्तान
(ब) श्रीलंका
(स) बांग्लादेश
(द) इण्डोनेशिया उत्तर
प्रश्न 22.
दिए गए भारत के रेखा मानचित्र में निम्नांकित वस्त्र उद्योग केन्द्रों को दर्शाहए: [4]
(अ) भीलवाड़ा
(ब) बड़ोदरा
(स) कोयम्बटूर
(द) वाराणसी।
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