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RBSE Class 12 Hindi Compulsory Board Model Paper 2022 with Answers
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पी प्रश्न
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए-
हिन्दी में राम काव्य की विस्तृत परम्परा मिलती है। हिन्दी में सर्वप्रथम सं. 1342 में लिखित कवि भूपति कृत ‘रामचरित रामायण’ का संकेत मिलता है, परन्तु उसकी अभी तक कोई प्रतिलिपि उपलब्ध नहीं है। हिन्दी में तुलसी ही रामायण के प्रमुख कवि हैं। तुलसी के समकालीन कवियों में से मुनिलाल कृत ‘रामप्रकाश’ काव्य मिलता है, जो रीति शास्त्र के आधार पर लिखा गया है। महाकवि केशव ने ‘रामचन्द्रिका’ नामक महाकाव्य की रचना की है, जिसमें काव्य कौशल का तो प्राधान्य है, परन्तु चरित्र-चित्रण एवम् प्रबंधात्मकता की उपेक्षा की गई है। सेनापति ने भी अपने कवित्त रत्नाकार’ में चौथी एवम् पाँचवीं तरंगों के अन्तर्गत रामायण एवम् राम रसायन का वर्णन किया है। तुलसी के समकालीन कवियों के उपरान्त भी हिन्दी में राम-काव्य के दर्शन होते हैं। इनमें से हृदयाराम कृत ‘हनुमन्नाटक’ मिलता है। तदुपरान्त प्राणचंद्र चौहान कृत ‘रामायण महानाटक’ मिलता है जो संवाद रूप में लिखा गया है।
(i) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है- (1)
(अ) तुलसी काव्य
(ब) राम काव्य
(स) केशव काव्य
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(ब) राम काव्य
(ii) निम्न में से किस काव्य की अभी तक कोई प्रतिलिपि प्राप्त नहीं हुई है- (1)
(अ) रामचरित रामायण
(ब) रामप्रकाश काव्य
(स) रामचित्रण
(द) रामप्रकाश काव्य
उत्तर :
(अ) रामचरित रामायण
(iii) निम्न में से किस काव्य की अभी तक कोई प्रतिलिपि प्राप्त नहीं हुई हैं- (1)
(अ) रामचरित रामायण
(ब) रामप्रकाश
(स) हनुमन्नाटक
(द) रामचंद्रिका
उत्तर :
(ब) रामप्रकाश
(iv) ‘रामचन्द्रिका’ काव्य के कवि हैं- (1)
(अ) सूरदास
(ब) तुलसीदास
(स) केशव
(द) मुनिलाल
उत्तर :
(स) केशव
(v) निम्न में से कौनसा काव्य संवाद रूप में लिखा गया है- (1)
(अ) रामायण महानाटक
(ब) रामचरित रामायण
(स) राम प्रकाश
(द) रामचंद्रिक
उत्तर :
(अ) रामायण महानाटक
(vi) निम्न में से ‘राम भक्ति’ के कवि नहीं हैं- (1)
(अ) तुलसीदास
(ब) केशव
(स) हृदयाराम
(द) सूरदास
उत्तर :
(द) सूरदास
निम्नलिखित अपठित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखिए –
यह अंतिम जप, ध्यान में देखते चरण युगल
वह एक और मन रहा राम का जो न थका,
राम ने बढ़ाया कर लेने को नीलकमल।
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय,
कुछ लगा ना हाथ, हुआ सहसा स्थिर मन चंचल,
कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय,
ध्यान की भूमि से उतरे, खोले पलक विमल।
बुद्धि के दुर्ग पहुँचा विद्युतगति हतचेतन देखा,
वहाँ रिक्त स्थान, यह जप का पूर्ण समय,
राम में जगी स्मृति हुए सजग पा भाव प्रमन
आसन छोड़ना असिद्धि, भर गए नयनद्वय
“यह है उपाय” कह उठे राम ज्यों मन्द्रित धन
धिक जीवन को जो पाता ही आया है विरोध
“कहती थीं माता, मुझको सदा राजीव नयन।
धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध
दो नील कमल हैं शेष अभी, यह पुनश्चरण जानकी!
हाय उद्धार प्रिया का हो न सका,
पूरा करता हूँ देकर मातः एक नयन।”
(vii) राम की माता उन्हें क्या कहती थी? – (1)
(अ) रघुनंदन
(ब) राम
(स) राजीवनयन
(द) कमलनयन
उत्तर :
(स) राजीवनयन
(viii) राम की शक्तिपूजा में कमल पुष्प कौन चुरा लेता है? – (1)
(अ) रावण
(ब) जाम्बवान
(स) महाशक्ति
(द) हनुमान
उत्तर :
(स) महाशक्ति
(ix) राम ने किसको पराजित करने के लिए शक्ति की उपासना की? – (1)
(अ) रावण
(ब) मारीच
(स) कंस
(द) मेघनाद
उत्तर :
(अ) रावण
(x) ‘दो नील कमल हैं शेष अभी’ राम किन नील-कमलों की बात कर रहे हैं? – (1)
(अ) नेत्र
(ब) कर
(स) पुष्प
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(अ) नेत्र
(xi) ‘नीलकमल’ शब्द में अलंकार है- (1)
(अ) उपमा
(ब) रूपक
(स) उत्प्रेक्षा
(द) यमक
उत्तर :
(अ) उपमा
(xii) ‘नयन’ शब्द के पर्यायवाची शब्द हैं- (1)
(अ) नेत्र, आँख, चक्षु
(ब) चक्षु, कर, नेत्र
(स) दृग, लोचन, चरण
(द) लोचन, नेत्र, चरण
उत्तर :
(अ) नेत्र, आँख, चक्षु
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(i) जिस भाषा को बालक अपनी माँ तथा परिवार द्वारा सीखता है उसे ………………………………. कहते हैं। (1)
उत्तर :
मातृभाषा
(ii) हिन्दी ………………………………. लिपि में लिखी जाती है। (1)
उत्तर :
देवनागरी
(iii) “मेरा घर गंगा पर हैं”। वाक्य में ………………………………. शब्द शक्ति है। (1)
उत्तर :
लक्षणा
(iv) शब्द की जिस शक्ति से किसी शब्द के सबसे साधारण, लोक प्रचलित अर्थ का बोध हो ………………………………. होती है। (1)
उत्तर :
अभिधा
(v) “मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ।” उक्त काव्य पंक्ति में ………………………………. अलंकार है। (1)
उत्तर :
विरोधाभास
(vi) “भगवान भक्तों की भयंकर भूरि बिसारिये” उक्त काव्य पंक्ति में ‘भ’ वर्ण की ………………………………. अलंकार है। (1)
उत्तर :
आवृत्ति, अनुप्रास।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए –
(i) निम्न पारिभाषिक शब्दों के अर्थ लिखिए (1)
A-Applicant, B-Accuse
उत्तर :
Applicant – आवेदक, Accuse – आरोप।
(ii) ‘संक्षेप’ शब्द के लिए पारिभाषिक शब्द लिखिए। (1)
उत्तर :
संक्षेप – Brief
(ii) मेढ़क मंडली का दूसरा नाम क्या था? (1)
उत्तर :
मेढ़क मडली का दूसरा नाम इन्दर सेना था।
(iv) फीचर लेखन क्या है? (1)
उत्तर :
जब कोई लेखक किसी घटना को इस प्रकार सजीव और रोचक शैली में प्रस्तुत करता है कि उसका स्वरूप पूर्णतः स्पष्ट हो जाये तो उसको फीचर कहते हैं।
(v) किशन दा की कौन सी छवि यशोधर बाबू के मन में बसी हुई थी? (1)
उत्तर :
कुर्ते-पाजामे के ऊपर ऊनी-गाउन पहने, सिर पर गोल विलायती टोपी और पाँवों में देशी खड़ाऊँ तथा हाथ में एक छड़ी लिए हुए सुबह की सैर करते किशनदा की छवि यशोधर बाबू के मन में बसी हुई थी।
(vi) कौन सी बात यशोधर बाबू कभी-कभी तजिया (व्यंग्यात्मक) कहते हैं? (1)
उत्तर :
‘समहाउ इंप्रापर’ तथा ‘जो हुआ होगा’ आदि शब्दों को यशोधर बाबू कहते थे।
(vii) पाठशाला में लेखक का विश्वास क्यों बढ़ने लगा। ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए। (1)
उत्तर :
शिक्षकों के अपनेपन के व्यवहार और वसंत पाटिल से दोस्ती के कारण आनंद यादव (लेखक) का विश्वास पाठशाला में बढ़ने लगा।
(viii) जूझ’ पाठ आनंद यादव के किस प्रकार के उपन्यास का अंश है? (1)
उत्तर :
‘जूझ’ पाठ आनंद यादव के बहुचर्चित एवं बहुप्रकाशित मराठी उपन्यास ‘जूझ’ का एक अंश है।
(ix) लेखक को कब लगा कि उसके नए पंख निकल आए हैं। ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए। (1)
उत्तर :
मास्टर ने जब लेखक से पाठशाला के एक समारोह में कविता पाठ करवाया तो उसे लगा कि उसके नए पंख निकल आए हैं।
(x) कुँवर नारायण की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए। (1)
उत्तर :
कुँवर नारायण की दो रचनाएँ
- चक्रव्यूह
- अपने सामने।
(xi) हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म कब और कहाँ हुआ? (1)
उत्तर :
हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई. में, उत्तरप्रदेश के ‘दुबे का बलिया’ जिले के छपरा गाँव में हुआ था।
खण्ड – (ब)
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 4.
प्रिंट माध्यम की किन्हीं दो कमियों को समझाइए। (2)
उत्तर :
मुद्रित माध्यम की मुख्य निम्न कमियाँ हैं
- मुद्रित माध्यम की कमी या कमजोरी है कि यह निरक्षरों के लिए अनुपयोगी है।
- मुद्रित माध्यम एक निश्चित समय सीमा में प्रकाशित होते हैं।
अतः इसमें रेडियो, टी.वी. या इंटरनेट की भाँति तुरन्त घटी घटनाओं का विवरण उपलब्ध नहीं होता।
प्रश्न 5.
हिन्दी में “नेट पत्रकारिता” पर टिप्पणी लिखिए। (2)
उत्तर :
इंटरनेट पर समाचार-पत्रों का प्रकाशन या समाचारों के आदान-प्रदान को इंटरनेट पत्रकारिता कहते हैं। इंटरनेट पर किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचर, झलकियों के माध्यम से यदि हम अपने समय की धड़कनों को अनुभव करने का काम करते हैं तो यही इंटरनेट पत्रकारिता है।
प्रश्न 6.
‘खेलों की ओर बढ़ता रुझान’ विषय पर एक संक्षिप्त आलेख तैयार कीजिए। (2)
उत्तर :
खेलों की ओर बढ़ता रुझान-खेल मनुष्य के व्यक्तित्व विकास का श्रेष्ठ उपाय है। इसलिए आज खेलों को शिक्षा के साथ जोड़ दिया गया है। खेलों की ओर बढ़ते रुझान के कारण कुश्ती, भारोत्तोलन, टेनिस, मुक्केबाजी, निशानेबाजी आदि खेलों में भी भारतीय खिलाड़ियों ने पदक प्राप्त किए हैं। लेकिन इतनी विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए यह उपलब्धि संतोषजनक नहीं है। भारत को यदि खेल जगत में अन्य देशों की तरह आगे बढ़ना है तो इसके लिए उचित प्रशिक्षण केन्द्र तथा आवश्यक बजट का प्रावधान भी करना होगा। आज भारत में खेलों के प्रति रुझान बढ़ा है, जो खेल-जगत के लिए शुभ संकेत है।
प्रश्न 7.
‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता की मूल संवेदना लिखिए। (2)
उत्तर :
‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता का प्रतिपाद्य किसी की पीड़ा का प्रदर्शन करके दूरदर्शन की प्रसार संख्या को बढ़ाने के कदम को अनुचित ठहराना है तथा दूरदर्शन के कार्यक्रमों के सोच और स्तर पर प्रकाश डालना है। कविता में संदेश निहित है कि दीन-दुखियों की पीड़ा बेचने की चीज नहीं है। अप्रत्यक्ष रूप से कविता में अपाहिज-जनों के प्रति सहानुभूति तथा करुणा का भाव मन में रखने की प्रेरणा दी गई है।
प्रश्न 8.
‘कविता एक खेल है बच्चों के बहाने। पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
बच्चे खेलते समय किसी विशेष घर तक ही सीमित नहीं रहते। वे घर-घर जाते और खेलते-कूदते हैं। वे समाज में समानता तथा एकता की स्थापना करते हैं। कविता भी शब्दों का खेल है। कवि सभी वर्गों के भावों, विचारों, सुख-दुख इत्यादि का निष्पक्ष होकर अपनी कविता में चित्रण करता है। इस प्रकार बच्चे तथा कविता दोनों मानव-एकता का सन्देश देते हैं।
प्रश्न 9.
भगत जी पर बाजार का जादू नहीं चलता। क्यों? (2)
उत्तर :
भगत जी निर्लोभी और संतोषी हैं। बाज़ार में माल बिछा रहता है परन्तु भगत जी अपनी ज़रूरत की चीजें- काला नमक और जीरा खरीदने के बाद बाजार में कोई रुचि नहीं लेते। आवश्यकता की पूर्ति के बाद बाज़ार उनके लिए महत्त्वहीन हो जाता है। इसी कारण बाज़ार का जादू उन पर नहीं चलता।
प्रश्न 10.
“भक्तिन का दर्भाग्य भी उससे कम ही नहीं था।” कैसे? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
महादेवी के इस कथन का आशय है कि भक्तिन पर एक के बाद एक संकट आते रहे। उसकी बड़ी बेटी विधवा हो गई। जेठ के बेटे ने षडयंत्र रचकर उसकी विधवा बेटी का अपने आवारा साले से विवाह करा दिया। घर की आमदनी घटती चली गई। लगान जमा न होने से जमींदार ने भक्तिन को धूप में खड़ा करके उसका अपमान किया। अंत में भक्तिन गाँव छोड़कर शहर में नौकरी करने चली आई।
प्रश्न 11.
यशोधर बाबू को घर जल्दी लौटना पसंद नहीं था। क्यों? कारण स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
यशोधर बाबू अपनी गृहस्थी से प्रसन्न और संतुष्ट नहीं थे। अपने बच्चों और पत्नी के उपेक्षापूर्ण व्यवहार से वह मन ही मन दुखी रहते थे। यशोधर बाबू पुरानी परंपराओं के समर्थक थे जबकि परिवार के अन्य सदस्य आधुनिकता के रंग में रंगे थे। जल्दी घर आने पर किसी की बात को लेकर विवाद होने की संभावना रहती थी। पारिवारिक विवादों से बचने के लिए यशोधर बाबू देर से घर लौटते थे।
प्रश्न 12.
यदि आप दत्ता जी राव के स्थान पर होते तो लेखक की मदद कैसे करते? (2)
उत्तर :
दत्ता जी राव देसाई के पास जब लेखक और उसकी माँ गई और उनसे लेखक को पढ़ने के लिए विद्यालय भेजने के लिए दादा को कहने के लिए कहा। कछ शर्तों के साथ लेखक विद्यालय जाने लगा। यदि हम दत्ता जी राव देसाई की जगह होते तो हम भी यही करते, साथ ही लेखक के दादा को पढ़ाई के लाभ बताकर, समझाकर उस लेखक को विद्यालय भेज देने के लिए राजी करते।
खण्ड – (स)
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 13.
भूलना दंड’ सही, फिर भी पुरस्कार मानकर ही ग्रहण करना चाहिए। ‘सहर्ष स्वीकारा है।’ कविता के आधार उक्त कथन की समीक्षा कीजिए। (3)
उत्तर :
कवि अपने प्रिय से दण्ड माँगता है कि वह पाताल की अंधकारमय गुफाओं में लापता हो जाय। कवि अपने प्रियतम से दूर जाकर छिप जाना चाहता है, लापता हो जाना चाहता है। वह चाहता है कि उसका प्रियतम उसे ऐसा दण्ड दे कि वह धरती की अनन्त गहराई में बनी गुफाओं के बिलों में, छाए हुए धुएँ के बादलों के अँधेरे में पूरी तरह लापता हो जाय। वह उसके वियोग में जीना चाहता है।
किन्तु उसका हृदय जानता है कि यह दूरी व्यर्थ होगी क्योंकि वहाँ भी तो वह प्रिय के सहारे ही जिएगा। इस प्रकार कवि द्वारा प्रिय को भूल जाने की चेष्टा अपने आप को धोखा देने के समान है। इससे व्यक्त होता है कि कवि अपने प्रियतम से अलग हो ही नहीं सकता। उसके बिना उसका अस्तित्त्व ही नहीं है।
कवि मुक्तिबोध को अपने व्यक्तित्त्व पर छाया रहने वाला प्रिय का उजाला अब सहा नहीं जाता है। प्रिय की ममता के बादल की मँडराती कोमलता उसको भीतर पिराती है तथा भवितव्यता उसे डराती है। प्रिय का सतत् स्नेह तथा आत्मीयता अब उसे प्रिय नहीं है।
कवि अपने प्रियतम से भूल जाने का दण्ड माँगता है। वह विस्मरण के दक्षिणी ध्रुव पर छाए अमावस्या के अंधकार में नहाना चाहता है। आशय यह है कि प्रिय के स्नेहिल प्रकाश के विपरीत कवि उसके वियोग के घने अंधकार में डूब जाना चाहता है। इस दंड को भी यह पुरस्कार मानकर ही स्वीकार करता है।
अथवा
“फिराक गोरखपुरी की रूबाइयों की भाषा एवं प्रसंग सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी की याद दिलाता है।” उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तर :
फ़िराक ने एक माँ के अपने बच्चे के प्रति प्रेम अर्थात् वात्सल्य को अपनी रुबाई में प्रकट किया है। आँगन में गोद में उठकार बच्चे को हाथों पर झुलाना, बार-बार हवा में उछालना, उसे स्वच्छ पानी से कोमलता के साथ छींटे डालकर नहलाना, उसके उलझे बालों में कंघी करना, उसको दोनों घुटनों के बीच में पकड़कर कपड़े पहनाना इत्यादि माँ के कार्यों का इस रुबाई में सजीव चित्रण हुआ है। इस रुबाई में माँ के वात्सल्य का चित्र सजीव हो उठा है।
बालक आकाश में खिले चाँद को लेकर उससे खेलना चाहता है। वह उसे लेने के लिए अपनी माँ से ज़िद कर रहा है। माँ उसकी हठ चतुराई के साथ पूरा करती है। वह बच्चे के हाथों में एक दर्पण देकर उसमें चन्द्रमा की परछाई दिखाती है और कहती है कि – देखो, चाँद अब तुम्हारे हाथों में आ गया है।
सूरदास भी वात्सल्य वर्णन के सम्राट कवि हैं। उनके बहुचर्चित पद “मैया मैं तो चन्द खिलौना लैहौं” तथा अन्य पदों में भी वात्सल्य का सुन्दर वर्णन मिलता है।
प्रश्न 14.
“लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।” इस कथन के द्वारा लेखक क्या स्पष्ट करना चाहता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए। (3)
उत्तर :
यह कथन पाकिस्तानी कस्टम अफसर का है। वह दिल्ली से विस्थापित होकर पाक आया है। वह अब भी दिल्ली को अपना वतन मानता है। सफिया की भावना का आदर करते हुए वह उसको सिख बीबी के लिए लाहौरी नमक की सौगात ले जाने से नहीं रोकता। इस कथन का केन्द्रीय भाव यह है कि भारत-पाक विभाजन अस्वाभाविक और अनुचित है। देश-प्रेम को बाँटा नहीं जा सकता। धीरे-धीरे दोनों देशों के लोग पुनः एक हो जायेंगे।
कस्टम अधिकारी के कहने का आशय था कि अगर भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत जा पहुँचे लोगों के मन में अपनी-अपनी जन्मभूमि से ऐसी ही मुहब्बत बनी रही तो धीरे-धीरे दोनों देशों के बीच मधुर संबंध बन जाएँगे। लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए उस कस्टम अधिकारी की उम्मीद अभी सपना ही लगती है। दोनों ओर के कट्टर लोगों ने इसे मुश्किल बना रखा है।
अथवा
शिरीष की तुलना गांधी जी से करते हुए स्पष्ट कीजिए कि शिरीष को अवधूत क्यों माना गया है? (3)
उत्तर :
अवधूत संसार की कठोर स्थितियों से अप्रभावित तथा उनमें संतुलन बनाकर रहता है। शिरीष को एक अद्भुत अवधूत कहने का कारण यह है कि वह भीषण गर्मी, धूप और लू में भी हरा-भरा रहता है तथा उस पर नए पत्ते और फूल लदे रहते हैं। जब दूसरे वृक्ष सूख जाते हैं तब शिरीष पुष्पित-पल्लवित रहता है। लेखक देखता है कि शिरीष भीषण ताप सहकर भी हरा-भरा रहता है तथा कोमल पुष्पों से लद जाता है।
इससे कवि को वह एक अवधूत प्रतीत होता है। वह कवि देश, जाति और मानवता के हित में काम करने की प्रेरणा देता है। उसके मन में उच्च और महान् जनहितकारी विचार उत्पन्न होते हैं। मन में देश और समाज के उत्थान की भावना जागती है। लेखक ने शिरीष की तुलना गाँधी जी से की है।
जिस प्रकार शिरीष ग्रीष्म ऋतु की प्रचंडता से अप्रभावित रहकर सहज भाव से फलता-फूलता रहता है उसी प्रकार गाँधी जी भी देश की विषम परिस्थितियों से विचलित हुए बिना जनता का सही मार्गदर्शन करते रहे।
आज की परिस्थितियों में शिरीष की जीवन-शैली अपनाकर रह पाना बहुत कठिन है। आज मनुष्य धन के पीछे पागल है। उसे श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की परवाह नहीं। केवल गाँधी बनकर ही शिरीष जैसा जीवन बिता पाना संभव हो सकता है।
प्रश्न 15.
‘सिल्वर वैडिंग’ पीढ़ी के वैचारिक अंतराल की कहानी है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तर :
पुरानी और नई पीढ़ियों के बीच विचारों की टकराहट सदा चलती रही है। पुरानी पीढ़ी को पुरानी बातें, पुराने विचार और मान्यताएँ प्रिय होती हैं। नई पीढ़ी को वे सभी विकास में बाधक लगती हैं और वह नए विचारों और जीवन शैली को अपनाने की पक्षधर होती है। दोनों पीढ़ियों का यह विचार-भेद कभी मिटता नहीं। हर युग में यह समाज के सामने प्रकट होता है।
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में यशोधर और किशन दा पुरानी पीढ़ी को और पुराने जीवन मूल्यों के पक्षधर और प्रतीक हैं। यशोधर के पुत्र-पुत्री और दफ्तर के चड्ढा बाबू नई पीढ़ी और नए जीवन मूल्यों को मानने वाले हैं। पूरी कहानी में इनका टकराव दिखाई देता है।
यशोधर का संयुक्त परिवार को पसन्द करना, पुराने गरीब रिश्तेदारों और मिलने वालों से घुलना-मिलना, उनकी आर्थिक मदद करना, पुरानी तरह के कपड़े पहनना, साइकिल पर दफ्तर जाना, मंदिर जाना आदि, पश्चिमी रीति-रिवाजों को बुरा समझना उनके बच्चों तथा पत्नी को पसन्द नहीं है। बच्चों और पत्नी को पाश्चात्य रहन-सहन को अपनाना यशोधर को अच्छा नहीं लगता। आरम्भ से अन्त तक कहानी में वैचारिक संघर्ष का चित्रण है।
अथवा
एक गुरु किस प्रकार एक विद्यार्थी के जीवन को नई दिशा दे सकता है, जूझ पाठ के आधार पर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। आनंद यादव के स्कूल में सौंदलगेकर नामक शिक्षक थे। वह मराठी भाषा पढ़ाते थे। वह कवि भी थे। कक्षा में कविताएँ गाकर सुनाते भी थे। आनन्द यादव की रुचि उनकी प्रेरणा से कविता की ओर बढ़ी। वह स्वयं कविता लिखता और उनको दिखाता। वे उसमें सुधार करते। धीरे-धीरे आनन्द की उनके प्रति आत्मीयता बढ़ी।
आनंद उनके घर जाने लगा। मास्टर जी उसको कवि की भाषा के बारे में समझाते थे। छंद और अलंकारों के बारे में बताते थे। शुद्ध लेखन का ढंग बताते थे तथा अन्य अनेक बातें बताते रहते थे। वे लेखक को पुस्तकें तथा कविता-संग्रह पढ़ने के लिए देते थे। इन बातों तथा सौंदलगेकर से निकटता और अपनापन होने के कारण आनन्द यादव का मराठी भाषा का ज्ञान बढ़ता गया तथा जाने-अनजाने पर उसकी मराठी भाषा सुधरने लगी।
सौंदलगेकर का मराठी भाषा पढ़ाने का ढंग अत्यन्त रोचक था। वह अत्यन्त तन्मयता के साथ मराठी पढ़ाते थे। उनका व्यवहार भी छात्रों के प्रति स्नेहपूर्ण था। अतः लेखक के जीवन पर उनका सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता और अच्छा गुरु मिल जाय तो लोहा भी खरा सोना बन सकता है। लेखक के साथ ऐसा ही हुआ। मास्टर सौंदलगेकर के साथ रहने से लेखक एक अच्छा कवि बन गया।
प्रश्न 16.
शमशेर बहादुर सिंह का कवि परिचय लिखिए। (3)
उत्तर :
कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म सन् 1911 ई. में देहरादून में हुआ था। आठ वर्ष की आयु में उनकी माँ का देहावसान हो गया। 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। उनकी पत्नी भी छः वर्षों के बाद क्षयरोग से पीड़ित होकर चल बसी। इन पीड़ादायक अनुभवों और अभावों से गुजरने पर भी उनका आत्मविश्वास नहीं डगमगाया। इन संकटों ने उनकी कविता को और भी हृदयस्पर्शी बनाया। कवि शमशेर सिंह अपने अनूठे कल्पना-चित्रों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। वह प्रगतिशील विचारक थे और कविता में नए-नए प्रयास भी करते रहे। वह सुन्दरता को नए-नए और लुभावने रूपों में प्रस्तुत करते रहे।
रचनाएँ-शमशेर सिंह की प्रमुख रचनाएँ हैं-‘कुछ कविताएँ’, ‘कुछ और कविताएँ’, ‘चुका भी नहीं हूँ मैं’, ‘इतने पास अपने’, ‘बात बोलेगी’, तथा ‘काल तुझसे है होड़ मेरी’। आपकी साहित्यिक सेवाओं के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मई, 1993 में अहमदाबाद में आपका निधन हो गया।
महादेवी वर्मा का लेखिका परिचय लिखिए। उत्तर महादेवी का जन्म सन् 1907 ई० उत्तर प्रदेश फर्रुखाबाद में एक शिक्षित कायस्थ परिवार में हुआ था। आपके पिताजी गोविन्द प्रसाद भागलपुर में प्रधानाचार्य थे। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा इंदौर में हुई। प्रयाग के क्रास्थवेट 11 कॉलेज से हिन्दी तथा संस्कृत में एम.ए. करने के बाद आप महिला विद्यापीठ प्रयाग में प्रधानाध्यापिका रहीं, 19 सितम्बर 1987 को आपका देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय-महादेवी जी ने काव्य और गद्य के क्षेत्र में समान अधिकार के साथ साहित्य सृजन किया। है। आप छायावाद की स्तम्भ हैं। गद्य के क्षेत्र में आपके संस्मरणात्मक रेखाचित्र प्रसिद्ध हैं। आप ‘चाँद’ नामक पत्रिका की सम्पादिका रही हैं। आपको अपनी काव्य-रचना ‘नीरजा’ पर मंगला प्रसाद तथा सेकसरिया पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। भारत सरकार ने आपकी साहित्य सेवा के लिए आपको ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया है।
गद्य के क्षेत्र में आपने निबन्ध तथा समालोचना पर लेखन किया है। आपके संस्मरण और रेखाचित्र विशेष प्रसिद्ध हैं। महादेवी की भाषा परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ, तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। उसमें सुकुमारता तथा प्रवाह है। महादेवी ने वर्णनात्मक, विचार-विवेचनात्मक तथा चित्रात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं व्यग्य का पुट भी है।
कृतियाँ-महादेवी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं –
- संस्मरण और रेखाचित्र-अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार, पथ के साथी, संचयन आदि।
- निबन्ध-श्रृंखला की कड़ियाँ, साहित्यकार की आस्था आदि।
- समालोचना-हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य, विविध आलोचनात्मक निबन्ध इत्यादि।
- काव्य-नीहार, रश्मि, यामा, नीरजा, दीपशिखा, सांध्य गीत इत्यादि।
खण्ड-(द)
प्रश्न 17.
निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए- (2 + 4 = 6)
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना।
अथवा
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं।
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
उत्तर :
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन’ की रचना ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। यहाँ कवि अपना तथा संसार का लक्ष्य अलग-अलग बता रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है कि अपने प्रियतम के विरह में जब उसके नेत्रों से आँसू टपकते हैं, तो उनमें भी संगीत का राग छिपा होता है।-विरह की यह अग्नि ही उसके शीतल और मधर वाणी में कहे गए गीतों में व्यक्त होती है कवि को विशाल राजभवनों की दरकार नहीं है। वह तो सिर छिपाने के लिए एक टूटे-फूटे भवन को पाकर ही सन्तुष्ट हो जाता है। कवि कहता है कि जब वह अपने मन की पीड़ा को प्रकट करता है तो लोग उसे गीत कहने लगते हैं।
लोग उसको कवि मानकर उसका सम्मान करना चाहते हैं किन्तु कवि को अपनी यह पहचान स्वीकार नहीं है। वह तो चाहता है लोग उसे एक नए प्रेम दीवाने के रूप में जानें। छंदों के रूप में उसकी वेदना ही फूट-फूटकर रोई है। वह कवि नहीं बल्कि एक पागल-प्रेमी है।
अथवा
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि आलोक धन्वा की कविता ‘पतंग’ से लिया गया है। इस अंश में कवि पतंग उड़ाते बालकों के विभिन्न क्रियाकलापों का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है कि बच्चे जन्म से ही कपास के समान कोमल होते हैं। वे अत्यन्त साहसी और चंचल होते हैं। उनमें चोट-फेंट को सहने की अद्भुत क्षमता होती है। लगता है वे धरती पर नहीं दौड़ते बल्कि पृथ्वी ही घूमती हुई उनके चंचल पैरों के पास आ जाती है। पतंग उड़ाते हुए ये बच्चे पतंगों के पीछे धूप, गर्मी, कठोर छत, छत के किनारे आदि की परवाह न करते हुए दौड़ते हैं। उनको छतों की कठोरता का पता ही नहीं चलता।
उनके कदमों की आहट को सुनकर लगता है कि दिशाएँ मृदंग की तरह बज रही हैं। वे पतंग की डोर के सहारे पेंग बढ़ाते और झूला झूलते से चलते हैं। किसी पेड़ की लचीली डाल की तरह ये बच्चे तेजी से छतों के खतरनाक कोनों पर पहुँच जाते हैं। उस समय उनका रोमांचित शरीर ही उन्हें गिरने से बचाता है। ऐसा लगता है कि आकाश में उड़ती पतंग ने अपनी डोर का सहारा देकर उनको गिरने से बचा लिया है।
प्रश्न 18.
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (2 + 4 = 6)
इन बातों को आज पचास से ज्यादा बरस होने को आए पर ज्यों की त्यों मन पर दर्ज हैं। कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भो में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या है? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे है? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति।
अथवा
किन्तु रात में फिर पहलवान की ढोलक की आवाज, प्रतिदिन की भाँति सुनाई पड़ी। लोगों की हिम्मत दुगुनी बढ़ गई। संतप्त पिता माताओं ने कहा-“दोनों पहलवान बेटे मर गए, पर पहलवान की हिम्मत तो देखो, डेढ़ हाथ का कलेजा है।”
चार-पाँच दिनों के बाद। एक रात को ढोलक की आवाज नहीं सुनाई पड़ी। ढोलक नहीं बोली। पहलवान के कुछ दिलेर, किन्तु रुग्ण शिष्यों ने प्रातः काल जाकर देखा-पहलवान की लाश ‘चित’ पड़ी है। आँसू पोंछते हुए एक ने कहा “गुरु जी कहा करते थे कि जब मैं मर जाऊँ तो चिता पर मुझे चित नहीं, पेट के बल सुलाना। मैं जिंदगी में कभी ‘चित’ नहीं हुआ और चिता सुलगाने के समय ढोलक बजा देना।” वह आगे बोल नहीं सका।
उत्तर :
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित पाठ ‘काले मेघा पानी दे’ से लिया गया है। इसके लेखक धर्मवीर भारती हैं। प्रसंग-लेखक देशवासियों को देश के प्रति उनके कर्तव्यों का स्मरण करा रहा है।
व्याख्या-आज देश और सरकार से आशा की जाती है कि वे देश के नागरिकों की सभी सुख-सुविधाओं का प्रबंध करें। पर क्या हम देशवासी कभी यह सोचते हैं कि वे देश के लिए क्या कर रहे हैं। हर क्षेत्र का नागरिक देश से बड़ी-बड़ी उम्मीद लगाए बैठा है, पर उसमें देश के लिए त्याग की भावना नाम मात्र को भी नहीं मिलती। सभी लोग इस चेष्टा में लगे हैं कि कैसे उनके स्वार्थों की पूर्ति हो।
लोग स्वयं को बड़े ईमानदार समझते हुए दूसरों के दुर्गुणों का बखान किया करते हैं। इस काम में उन्हें बड़ा रस आता है। किस-किस ने क्या-क्या भ्रष्टाचार और घोटाले किये हैं यह तो हमें पता है पर हम अपने भीतर झाँक कर नहीं देखते कि कहीं वे स्वयं भी तो इस भ्रष्टाचार में सहायक नहीं हैं। हम सभी जाने-अनजाने इस भ्रष्ट आचरण को बढ़ावा दे रहे हैं।
यही कारण है कि देश पूरी गति से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। अनेक योजनाएँ बनती हैं। लाखों-करोड़ों की धनराशि व्यय होती है लेकिन जनता के हाथ कुछ नहीं पड़ता। उसकी झोली तो खाली की खाली ही रह जाती है। मेघ खूब बरसते हैं पर जनता के दुर्भाग्य की फूटी गगरी रीती की रीती रह जाती है। इतनी वर्षा में भी बैल बेचारे प्यासे रह जाते हैं। क्या देश की यह दुर्दशा कभी दूर होगी? लोग देश के प्रति अपने कर्तव्यों का दृढ़ता से पालन करेंगे? कोई नहीं जानता।
अथवा
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से लिया गया है। इसके लेखक फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। प्रसंग-प्रस्तुत अंश में लेखक लुट्टन पहलवान के दोनों पुत्रों की मृत्यु और पहलवान के धैर्य का परिचय करा रहा हैं।
व्याख्या-पहलवान के दोनों बेटे बीमार हो गए, चिकित्सा के अभाव में दोनों की मृत्यु हो गई। पहलवान दोनों बेटों के शव कंधे पर लाद कर नदी में बहा आया। लोगों को पता चला तो बड़ा दःख हआ। लोगों को लगा कि अब पहलवान टूट जाएगा। ढोलक बजना बंद हो जाएगा। किन्तु रात में पहलवान की ढोलक की आवाज सदा की तरह बजने लगी। यह देखकर गाँव के निराश-हताश लोगों की हिम्मत दूनी हो गई। गाँव के दुखी माता-पिता कहने लगे कि देखो लुट्टन के दोनों पहलवान बेटों की मृत्यु हो गई लेकिन उसका साहस तो देखो जरा भी मन व्याकुल नहीं हुआ। ऐसा साहस और धैर्य कहाँ मिलेगा?
चार-पाँच दिन ही बीते थे कि एक रात को ढोलक की आवाज सुनाई नहीं पड़ी। पहलवान के कुछ साहसी परन्तु रोगी शिष्यों ने सबेरे पहलवान के घर जाकर देखा कि पहलवान का शव चित पड़ा हुआ था। एक शिष्य आँसू पोंछते हुए बोला कि गुरुजी (पहलवान) कहा करते थे कि जब वह मर जाएँ तो चिता पर उसके शव को ‘चित’ नहीं पेट के बल सुलाया जाए। वह जिंदगी में कभी किसी पहलवान के हाथों ‘चित’ नहीं हुए। उनकी चिता को आग लगाते समय ढोलक बजा दी जाए।
इतना कहते-कहते शिष्य का गला भर आया और वह आगे कुछ नहीं बोल पाया।
प्रश्न 19.
अपने विद्यालय के लिए आवश्यक परीक्षा सामग्री हेतु निविदा तैयार कीजिए। (4)
अथवा
सचिव मा. शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर की ओर से रीट भर्ती परीक्षा की तिथि में परिवर्तन की विज्ञप्ति तैयार कीजिए।
उत्तर :
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
उदयपुर (राजस्थान)
दिनांक-3 जनवरी, 20_ _
क्रमांक :- 1419
निविदा सूचना
बारहवीं बोर्ड परीक्षा-20_ _ के लिए उत्तरपुस्तिका एवं अन्य सामग्री सप्लाई करने हेतु प्रतिष्ठित फर्मों से मोहरबंद निविदाएँ आमंत्रित की जाती हैं। निविदा प्रपत्र विद्यालय के कार्यालय से निर्धारित शुल्क पर कार्यालय समय में प्राप्त किया जा सकता है। निविदाएँ दिनांक 16 जनवरी, 20_ _ को अपराह्न 2.00 बजे तक प्राप्त की जाएँगी एवं सायं 4.00 बजे उपस्थित निविदादाताओं के समक्ष खोली जायेगी।
शर्ते :
- निविदा खोलने की तिथि में परिवर्तन या रद्द करने का पूर्ण अधिकार अधोहस्ताक्षरकर्ता का होगा।
- आपूर्ति में विलम्ब या गुणवत्ता में कमी पर निविदादाता के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
- किसी भी विवाद की स्थिति में न्यायिक क्षेत्र उदयपुर होगा।
हस्ताक्षर (क, ख, ग)
प्रधानाचार्य
उ. मा. विद्यालय उदयपुर
अथवा
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान
अजमेर (राज.)
दिनांक : 27 / 10 / 2021
क्रमांक- 1419
विज्ञप्ति
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान, अजमेर (राज.) विभाग की ओर से ली जाने वाली रीट परीक्षा अपरिहार्य कारणों से दिनांक 5 नवंबर 2021 के स्थान पर 15 दिसंबर 2021 को होगी। परीक्षा केन्द्र व अन्य सूचनाएँ यथावत् रहेंगी।
अ, ब, स
सचिव
प्रश्न 20.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर सारगर्भित निबंध लिखिए। (शब्द सीमा 300 शब्द) (5)
(1) वैश्विक महामारी के दौर में ऑनलाइन शिक्षण
(2) राजस्थान की सतरंगी संस्कृति
(3) महिला सशक्तीकरण।
(4) पेट्रोल एवम् डीजल की बढ़ती कीमतें।
उत्तर :
(1) वैश्विक महामारी के दौर में ऑनलाइन शिक्षण
भारत में हजारों वर्षों से शिष्यगण गुरुओं के सम्मुख उपस्थित होकर शिक्षा ग्रहण करते आ रहे हैं। शिक्षा की इस गुरु-शिष्य परंपरा और आश्रम शिक्षा शैली ने न केवल भारत को बल्कि विश्व के अनेक देशों में महान विद्वानों, वैज्ञानिकों, उद्यमियों, राजनीतिज्ञों और धर्माचार्यों को जन्म दिया है। आज भी माता-पिता और छात्र कक्षा में शिक्षक महोदय के सम्मुख बैठकर शिक्षा ग्रहण करने में अधिक विश्वास रखते हैं।
अभी भी भारत और विश्व के अनेक देश कोरोना महामारी के भीषण प्रहार को भूल नहीं पाए हैं। यह राष्ट्रीय आपात काल था। सारे देश में लाकडाउन के कारण शिक्षण संस्थाएँ बंद होती चली गई थीं। ऐसे समय में ऑनलाइन शिक्षा-प्रणाली ने छात्रों की सुरक्षा करने में भारी योगदान किया था। आज इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा से जुड़े हुए छात्र काफी खुश और संतुष्ट नजर आ रहे हैं। इस शिक्षण प्रणाली द्वारा छात्र कक्षा में बैठकर पढ़ने के बजाय, इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे पढ़ाई कर सकते हैं। इस शिक्षा पद्धति में एक कम्प्यूटर, लैपटॉप अथवा स्मार्टफोन होना आवश्यक होता है।
इस माध्यम से छात्र, दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर अपने शिक्षक से उत्तम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। इस तकनीक में शिक्षक अपने लैपटॉप में स्थित स्काइप, जूम, गूगल क्लासरूम आदि अनेक एपों के जरिए अपने छात्रों से जुड़ सकते हैं। अनेक कम्पनियों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा के लिए विशेष लर्निंग एप भी बनाए गए है। इस प्रकार ऑनलाइन, शिक्षा छात्रों और अध्यापकों के बीच ज्ञानार्जन के एक विश्वसनीय सेतु का काम करती है।
ऑनलाइन शिक्षा, शिक्षा का एक सर्वथा नवीन माध्यम है। ऑनलाइन शिक्षा ने इन सभी मानवीय आवश्यकताओं की आपर्ति में प्रशंसनीय भमिका निभाई है। इस प्रणाली से प्राप्त होने वाले लाभों को आज हम भली-भाँति देख रहे हैं। ये लाभ संक्षेप में इस प्रकार हैं –
- ऑन लाइन शिक्षा घर बैठे-बैठे प्राप्त की जा सकती है।
- देश और विदेशों की शिक्षण संस्थाओं से शिक्षण प्राप्त किया जा सकता है।
- समय और धन की काफी बचत इस प्रणाली से होती है।
- इस प्रणाली द्वारा दिए जाने वाले शिक्षण कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग भी की जा सकती है। जो भविष्य में कभी भी संदर्भ के रूप में प्राप्त हो सकती है।
- ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से छात्र घर बैठे ही अपनी किसी शिक्षा संबंधी समस्या को सुलझा सकते हैं।
- अब तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी ऑनलाइन, क्लासेज के माध्यम से की जा सकती है।
- गूगल सर्च, वीडियो, चित्र, एनीमेटेड चित्र तथा गूगल मैप्स आदि के प्रयोग से इस प्रणाली को काफी रोचक बनाया जा सकता है।
- कुकिंग, सिलाई, कढ़ाई, पेटिंग आदि क्रियात्मक विषयों की भी ऑनलाइन पढ़ाई अब संभव है।
- छात्र अनेक आयोजनों, उत्सवों, यात्राओं तथा पर्यटन स्थलों एवं प्रसिद्ध मंदिरों तथा तीर्थों के बारे में घर बैठे ही जान सकते हैं अथवा ज्ञानवर्धन कर सकते हैं।
- आज केवलं डिग्रीधारी नहीं बल्कि अपनी जॉब में कुशल कर्मियों को वरीयता दी जा रही है। अतः ऑनलाइन शिक्षा द्वारा अपनी कार्यकुशलता और दक्षता बढ़ाकर छात्र अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं।
किसी को यह पता नहीं कि कोरोना महामारी कब खत्म होगी या इसके साथ ही जीवन बिताना सीखना होगा। अतः हर छात्र-छात्रा को ऑनलाइन प्रशिक्षण में दक्षता प्राप्त करना आवश्यक हो गया है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ऑनलाइन व्यवहार के महत्व को निरंतर समझाते और उसके लिए प्रेरित करते रहते हैं।
(2) राजस्थान की सतरंगी संस्कृति
संसार में अनेक भूभाग हैं। प्रत्येक की अपनी कोई-न-कोई विशेषता है। इन विशेषताओं से ही उसकी पहचान होती है। इनके बिना उसका परिचय अधूरा ही रह जाता है।।
भारत एक विशाल गणतन्त्र है। इसका स्वरूप संघीय है। राज्यों के इस संघ में अनेक राज्य सम्मिलित हैं। हमारा प्रदेश राजस्थान भी भारत का एक राज्य है। पन्द्रह अगस्त 1947 ई. को जब भारत स्वतंत्र हुआ, इस देश में अनेक छोटी-बड़ी रियासतें थीं। राजस्थान को तब राजपूताने के नाम से जाना जाता था। इस प्रदेश की अनेक रियासतों का भारत में विलय होने के पश्चात् जब राज्यों का गठन हुआ तो इस प्रदेश को राजस्थान नाम दिया गया। हमारे प्रदेश राजस्थान के अनेक रंग हैं, वह सतरंगी है। सतरंगी होने का आशय यह है कि इस प्रदेश की अनेक विविधताएँ हैं।
राजस्थान के लोग, इनकी सभ्यता और संस्कृति, उनकी मान्यताएँ, उनके विश्वास आदि के अनेक रूप ही राजस्थान के अनेक रंग हैं। इन विभिन्न रंगों में रँगा होने के कारण ही वह सतरंगी है। हमारा यह सतरंगी राजस्थान बड़ा आकर्षक और प्यारा है। राजस्थान की धरती के दो रूप हैं। उसका पश्चिम-उत्तरी भाग रेतीला है तो दक्षिण-पूर्वी भाग हरा-भरा है। अरावली पर्वतमाला इसके बीच में फैली हुई है।
इस प्रदेश के डूंगरों, ढाणियों और धोरों में जल का अभाव है। वहाँ सखा रेत फैला है। वैसे प्रदेश की प्रकृति के ये दोनों ही रूप आकर्षक हैं। राजस्थान एक प्राचीन प्रदेश है। इसका इतिहास यहाँ के निवासियों की वीरता के किस्सों से भरा हुआ है। यहाँ के युवकों ने स्वदेश हित के लिए तलवार की धार पर चलने में परहेज नहीं किया है, नारियाँ भी जौहर-व्रत में कभी पीछे नहीं रही हैं। यहाँ के पुरुष बलवान और नारियाँ सुन्दर और कोमल होती हैं।
राजस्थान में पुरातत्त्व के महत्व की अनेक चीजें मिलती हैं। अनेक प्राचीन किले, महल, हवेलियाँ और मंदिर राजस्थानी कला का प्रभाव प्रस्तुत करते हैं। हल्दीघाटी आज भी इस प्रदेश को प्राचीन गौरव की कथा सुनाती है। राजस्थान में सभी धर्मों के अनयायियों का निवास है। सभी के धार्मिक स्थल और उपासना केन्द्र : मिलते हैं। यहाँ नाथद्वारे के प्रसिद्ध मंदिर हैं तो अजमेर की दरगाह शरीफ भी है। श्री महावीर जी, कैलादेवी, मेंहदीपुर के बालाजी, पुष्कर आदि तीर्थस्थल, इस प्रदेश में मान्य विविध विश्वासों और उनकी एकता का प्रमाण हैं।
राजस्थान की सभ्यता-संस्कृति अनुपम है। यहाँ होली, दीपावली, रक्षाबंधन, तीज, गणगौर आदि त्योहार मनाए जाते हैं। अनेक मेलों का आयोजन भी होता है। यहाँ पद्मिनी, पन्ना आदि वीरांगनाएँ हुई हैं तो सहजोबाई और मीरा जैसी भक्त नारियाँ भी जन्मी हैं। राजस्थान आज विकास के पथ पर है। आगे बढ़ता हुआ.भी वह अपनी परम्परागत सतरंगी संस्कृति से बँधा हुआ है।
यहाँ संगमरमर तथा अन्य पत्थर, ताँबा तथा शीशा आदि अनेक खनिज पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। यहाँ पुराने ढंग के गाँव हैं तो जयपुर, जोधपुर, उदयपुर आदि महानगर भी हैं। प्राचीन हस्तकलाओं के साथ नये और विशाल उद्योग भी इस प्रदेश में स्थापित हैं।
राजस्थान का भविष्य उज्ज्वल है। यह प्रदेश निरन्तर विकास के राजमार्ग पर आगे बढ़ रहा है। लोगों में शिक्षा और समृद्धि बढ़ रही है। वे राजस्थान के नवनिर्माण में लगे हैं। राजस्थान की संस्कृति को सतरंगी बनाने में यहाँ के परिश्रमी लोगों का भारी योगदान है।
(3) महिला सशक्तीकरण
मानव समाज के दो पक्ष हैं-स्त्री और पुरुष। प्राचीनकाल से ही पुरुषों को स्त्री से अधिक अधिकार प्राप्त रहे हैं। स्त्री को पुरुष के नियंत्रण में रहकर ही काम करना पड़ा है। ‘नारी स्वतंत्रता के योग्य नहीं है’, कहकर स्मृतिकार मनु ने स्त्री को बन्धन में रखने का मार्ग खोल दिया है, किन्तु वर्तमान शताब्दी प्राचीन रूढ़ियों को तोड़कर आगे बढ़ने का समय है। स्त्री भी पुराने बन्धनों से मुक्त होकर आगे बढ़ रही है।
समाज में स्त्रियों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक माना जाता है। उनको पुरुष के समान स्थान तथा महत्त्व आज भी प्राप्त नहीं है। उसे बचपन से वृद्धावस्था तक परम्परागत घर-गृहस्थी के काम करने पड़ते हैं। अब बालिकाओं को स्कूलों में पढ़ने जाने का अवसर मिलने लगा है, परन्तु काफी महिलाएँ शिक्षा से अब भी वंचित हैं। शिक्षा के ‘ अभाव में स्त्रियाँ आगे नहीं बढ़ पार्ती और समाज में अपना अधिकार तथा स्थान प्राप्त नहीं कर पाती।
स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् भारत निरन्तर प्रगति कर रहा है। महिलाएँ किसी देश की आधी शक्ति होती हैं। जब तक महिलाओं की प्रगति न हो तब तक देश की प्रगति अधूरी होती है। भारत की प्रगति और विकास भी नारियों के पिछड़ी होने से अपूर्ण है। उद्योग-व्यापार, विभिन्न सेवाओं, सामाजिक संगठनों तथा राजनैतिक दलों में महिलाओं की उपस्थिति का प्रतिशत बहुत कम है। चुनाव के समय राजनैतिक दल उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं बनाते।
लोकसभा तथा विधानसभाओं में महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित करने का बिल पेश ही नहीं हो पाता। पुरुष नेता उन्हें वहाँ देखना ही नहीं चाहते।
आज के समाज में स्त्री को देवी, पूज्य, मातृशक्ति आदि कहकर भरमाया जाता है। वैसे उसे कदम-कदम पर अपनी कमजोरी और उसके कारण सामने आने वाली समस्याओं का सामना करना पड़ता है। घर तथा बाहर सभी उसकी कमजोरी का लाभ उठाते हैं। नारियों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यकता है-शिक्षित बनने की। शिक्षा ही महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर सकती है।
शिक्षित होने पर ही उनमें किसी क्षेत्र में सफलतापूर्वक काम कर सकने की क्षमता विकसित हो सकती है। घर के बाहर जाकर काम करने के लिए ही नहीं घर में परिवार के दायित्वों का निर्वाह करने के लिए भी शिक्षित होना बहुत सहायक होता है शिक्षित महिला अपने बच्चों का मार्गदर्शन अच्छी तरह करके उनका तथा देश का भविष्य सँभाल सकती हैं। यद्यपि महिलाएँ प्रशासन, शिक्षण, चिकित्सा विज्ञान, राजनीति आदि क्षेत्रों में आगे आई हैं और अच्छा काम किया है, वे पुलिस और सेना में भी काम कर रही हैं किन्तु उनकी संख्या अभी बहुत कम है।
शिक्षा के अवसरों के विस्तार से विभिन्न क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति निःसंदेह बढ़ेगी। शिक्षा से ही महिलाएँ शक्ति अर्जित करेंगी। शिक्षित और संशक्त महिलाएँ देश और समाज को भी शक्तिशाली बनाएँगी। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के लिए शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। शिक्षण संस्थाओं में उनके लिए स्थान आरक्षित होना तथा उनको आर्थिक सहयोग और सहायता दिया जाना भी परमावश्यक है।
(4) पेट्रोल एवं डीजल की बढ़ती कीमतें
पेट्रोल और डीजल आज दो अत्यन्त प्रभावी ईंधन बने हुए हैं। ये परिवहन का आधार हैं। विकास के सूत्रधार हैं। ये दोनों ईंधन पेट्रोलियम (कच्चा तेल) से प्राप्त होते हैं। पेट्रोलियम उत्पादक देशों में सऊदी अरब, इराक, ईरान, कतर, अम्मीरात, अमेरिका और रूस आदि प्रमुख हैं। पेट्रोलियम उत्पादक देशों के एक संगठन का नाम ‘ओपेक’ है जिसका प्रमुख सऊदी अरब है। ये ओपेक देश विश्व के पेट्रोलियम उत्पादक को मनचाहे ढंग से महँगा और सस्ता करते रहते हैं।
भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम पिछले कुछ समय से निरंतर बढ़ते आ रहे हैं। भारत को अपनी आवश्यकता का 87% पेट्रोलियम बाहर से आयात करना पड़ता है। भारत में पेट्रोलियम उत्पादन माँग की तुलना में बहुत कम है। असम, बोम्बे हाई और राजस्थान आदि गिने-चुने स्थानों से ही पेट्रोलियम प्राप्त होता है। माँग अधिक होने से इसकी कीमतें विश्व बाजार के मूल्यों पर आधारित रहती हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने का एक अन्तर्राष्ट्रीय कारण रुपये और डालर की कीमतों में अंतर होना भी है। प्रायः रुपये का मूल्य डालर की तुलना में कम ही रहता है।
अतः तेल के बदले भारतीय कंपनियों को अधिक रुपए अदा करने होते हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने के घरेलू कारण भी हैं। केन्द्र और राज्य पेट्रोल और डीजल पर अधिक कर वसूलते आ रहे हैं। बाहर से आयातित तेल पर टैक्स और शोधन के बाद कीमतें दुगने के लगभग हो जाती हैं। इसका सारा भार देश की जनता को ही उठाना पड़ता है। सरकारी तेल कंपनियाँ सरकार को लाखों रुपये का मुनाफा कमा कर देती रहती हैं।
तेल की कीमतें बढ़ने से परिवहन पर आश्रित सभी वस्तुओं के दाम भी बढ़ते जाते हैं। खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ने से लोगों के बजट बिगड़ जाते हैं। उनकी बचत बंद हो जाती है। अपनी अनेक प्रिय योजनाओं को विराम देना पड़ जाता है।
विदेशी मुद्रा भंडार पर भी तेल की महँगाई असर डालती है क्योंकि आयात और निर्यात दोनों ही तेल की कीमतों से प्रभावित होते हैं। जी. डी. पी. और विकास भी तेल की कीमतों से प्रभावित होते हैं।
तेल की कीमतों को नियंत्रित करने तथा वैकल्पिक ईंधन और ऊर्जा साधनों के विस्तार से तेल की माँग में कमी लाई जा सकती है। माँग घटेगी तो कीमतें भी नीचे आएँगी।
कंछ उपाय इस प्रकार हो सकते हैं –
- पेट्रोल तथा डीजल को भी जी. एस. टी. के अंतर्गत लाया जाय और उसकी कीमतों को स्थिर किया जाय।
- वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत विकसित करने पर बल दिया जाय।
- सौर ऊर्जा तथा बिजली से चलने वाले दो पहिया और चौपहिया वाहनों के उत्पादन को प्रधानता दी जाय।
- बायोगैस, सी.एन.जी., गोबर गैस जैसे ईंधनों का प्रयोग बढ़ाया जाय। इससे L.PG गैस पर दबाव घटेगा और दाम भी कम होंगे।
- अमेरिका की तरह शैल-पेट्रोलियम का उत्पादन किया जाए।
- चीनी उत्पादन की प्रक्रिया में प्राप्त शीरे से प्राप्त ईंधन को 10% तक पेट्रोल में मिलाया जाय।
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