Students must start practicing the questions from RBSE 12th Hindi Model Papers Set 1 with Answers provided here.
RBSE Class 12 Hindi Compulsory Model Paper Set 1 with Answers
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पी प्रश्न
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए –
कार्य-कुशलता का पहला अंग तो यह है कि हम अपने कार्य को समय से निर्धारित कर उसे अच्छी तरह जानें। हम लोगों में अधिकतर लोग कार्य उठा तो लेते हैं, पर उसे अच्छी तरह जानते नहीं और न जानने का यत्न ही करते हैं। जब सफलता नहीं मिलती तो अपने को दोष न देकर हम दूसरे को दोष देते हैं और बार-बार कार्य बदलते हुए बड़े सन्ताप में जीवन व्यतीत करते हैं। छोटे-बड़े सभी कामों में यह देखा जाता है। हम लोगों में से अधिकतर लोग जो काम करते हैं उसमें पूरे तौर से योग्यता और निपुणता प्राप्त करने का यत्न नहीं करते। इसी से हमारा काम पूरा नहीं होता, और हमारे हाथ से सब काम निकलते जाने का यही कारण है कि दूसरे लोग उसी काम को ज्यादा अच्छी तरह करते हैं और हम स्वयं उनके काम को अपने काम से ज्यादा पसन्द करने लगते हैं। यदि हम लोग अपने-अपने काम के एक-एक अंग को अच्छी तरह समझें और उसमें प्रवीण होने का सदा ख्याल रखें तो हम अपनी और अपने काम दोनों की बहुत-कुछ वृद्धि और उन्नति कर सकते हैं। कार्य-कुशलता छोटे और बड़े का भेद नहीं जानती। जो कार्य-कुशल होगा, वह आरम्भ में कितना ही छोटा क्यों न हो, अवश्य उन्नति करेगा और जो नहीं होगा, वह आरम्भ में चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, अवश्य गिरेगा। इस कारण कार्य-कुशलता का प्रधान अंग परिश्रम है।
(i) कार्यकुशलता का पहला अंग है कार्य का/की (1)
(अ) सोच-समझकर निर्धारण करना
(ब) सभी बातों की जानकारी करना
(स) समय से निर्धारण एवं उसकी गहरी जानकारी
(द) समय पर समापन।
उत्तर :
(स) समय से निर्धारण एवं उसकी गहरी जानकारी
(ii) किसी कार्य में असफल हो जाने पर अधिकतर लोग (1)
(अ) दूसरों को दोष देते हैं, बार-बार कार्य बदलते हैं
(ब) निराश होकर कार्य को छोड़ देते हैं
(स) काम छोड़कर दूसरा कार्य करने लगते हैं
(द) असफल होकर बैठ जाते हैं।
उत्तर :
(अ) दूसरों को दोष देते हैं, बार-बार कार्य बदलते हैं
(iii) अधिकतर लोग अपने कार्य में असफल क्यों हो जाते हैं ? (1)
(अ) वे काम को कठिन समझ छोड़ देते हैं
(ब) स्वयं को उस कार्य को करने के योग्य नहीं पाते।
(स) वे पूरे उत्साह से कार्य को नहीं करते
(द) उन्हें कार्य में पूर्ण योग्यता, निपुणता प्राप्त नहीं होती।
उत्तर :
(द) उन्हें कार्य में पूर्ण योग्यता, निपुणता प्राप्त नहीं होती।
(iv) ‘संताप’ शब्द का समानार्थक है (1)
(अ) संघर्ष
(ब) संतोष
(स) दुःख
(द) गरमी।
उत्तर :
(स) दुःख
(v) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक होगा (1)
(अ) कार्य का महत्त्व
(ब) कौशलता
(स) कार्य-कुशलता
(द) परिश्रम।
उत्तर :
(स) कार्य-कुशलता
(vi) कार्यकुशलता किसका भेद नहीं जानती (1)
(अ) छोटे और बड़े का
(ब) पतन-उत्थान का
(स) उन्नति-अवनति का
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(अ) छोटे और बड़े का
निम्नलिखित अपठित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखिए –
सामने कुहरा घना है
मुझे यही कहता है
और मैं सूरज नहीं हूँ
अरे भई, तुम सूरज तो नहीं हो
क्या इसी अहसास में जिऊँ
और मैं कहता हूँ
या जैसा भी हूँ नन्हा-सा
न सही सूरज इक दीया तो हूँ
एक नन्हा दीया तो हूँ
क्यों न उसी की उजास में जिऊँ?
जितनी भी है लौ मुझ में
हर आने वाला क्षण
उसे लेकर जिया तो हूँ।
कम-से-कम मैं उनमें तो नहीं
उड़ते फिर रहे थे जो जुगनू आँगन में
जो चाँद दिल के बुझाए बैठे हैं
उन्हें भी मुट्ठियों में दबाए बैठे हैं।
हर रात को अमावस बनाए बैठे हैं
(vii) ‘सामने कुहरा घना है’ रेखांकित शब्द से तात्पर्य है : (1)
(अ) धुंध
(ब) अन्धेरा
(स) अंधकार
(द) हताशा-निराशा।
उत्तर :
(द) हताशा-निराशा।
(vi) काव्यांश में छिपा सन्देश है (1)
(अ) दीपक की सूरज को चुनौती
(ब) दीपक का जलना
(स) प्रकाश फैलाना
(द) शक्ति भर जीवन जीने का।
उत्तर :
(द) शक्ति भर जीवन जीने का।
(ix) दीपक और अमावस यहाँ प्रतीक हैं (1)
(अ) दिये और अमावस्या के
(ब) अँधेरे और प्रकाश के
(स) वस्तु और तिथि के
(द) आशा और गहन निराशा के।।
उत्तर :
(द) आशा और गहन निराशा के।।
(x) ‘हर रात अमावस बनाए बैठे हैं’, रेखांकित शब्द तद्भव शब्द है, इसका तत्सम रूप होगा- (1)
(अ) मावस
(ब) अमावस्या
(स) पूर्णिमा
(द) गहन अँधेरी रात।
उत्तर :
(ब) अमावस्या
(xi) उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक निम्न विकल्पों से चनिए (1)
(अ) घना कुहरा
(ब) सर्व शक्ति सम्पन्नता
(स) निराशा
(द) दीपक की जिजीविषा।
उत्तर :
(द) दीपक की जिजीविषा।
(xii) ‘पूर्णिमा’ का विपरीतार्थक शब्द होगा (1)
(अ) चतुर्थी
(ब) पूर्णता
(स) अमावस
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(स) अमावस
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) हिन्दी भाषा के परिवार में लगभग ………………………………… बोलियाँ सम्मिलित हैं। (1)
उत्तर :
15
(ii) पंजाबी भाषा ………………………………… लिपि में लिखी जाती है। (1)
उत्तर :
गुरुमुखी
(ii) जीवन में मनुष्य को अनेक पर्वत पार करने पड़ते हैं। वाक्य में ………………………………… शब्द शक्ति है। (1)
उत्तर :
लक्षणा
(iv) जब किसी विशेष प्रयोजन से लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग होता है तो वहाँ ………………………………… लक्षणा होती है। (1)
उत्तर :
प्रयोजनवती
(v) मंगन को देखि पट देत बार-बार है। काव्य पंक्ति में ………………………………… अलंकार है। (1)
उत्तर :
श्लेष
(vi) सुन्यौ कहूँ तरु अरक ते, अरक समान उदोतु। पंक्ति में ‘अरक’ शब्द की ………………………………… हुई है। दोनों बार अर्थ अलग हैं। अतः ………………………………… अलंकार है। (1)
उत्तर :
आवृत्ति, यमक
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर :एक पंक्ति में दीजिए। (1)
(i) निम्न पारिभाषिक शब्दों के अर्थ लिखिए (1)
A. Quorum,
B. Pact
उत्तर :
A. गणपूर्ति,
B. समझौता।
(ii) ‘प्रेक्षक’ शब्द के लिए पारिभाषिक शब्द लिखिए। (1)
उत्तर :
Observer
(iii) संसार में अति प्रामाणिक सत्य क्या है? ‘शिरीष के फूल’ पाठ के संदर्भ में बताइए। (1)
उत्तर :
वृद्धावस्था और मृत्यु जगत् के दो अति प्रामाणिक और परिचित सत्य हैं।
(iv) आलेख में किसी विषय का वर्णन कैसे किया जाता है? (1)
उत्तर :
आलेख में किसी विषय का विषयानुकूल भाषा में क्रमबद्ध वर्णन तथा विश्लेषण होता है।
(v) जूझ’ के लेखक के मन में कवियों के प्रति क्या धारणा बन गई? (1)
उत्तर :
लेखक के मन में कवियों के बारे में यह धारणा बन गई कि कवि भी हमारी तरह हाड़-मांस और लोभ-मोह का मनुष्य होता है। इससे लेखक के मन में यह बात बैठ गई कि वह भी कवि बन सकता है।
(v) “क्या यह ‘बैटर’ नहीं रहता कि किशनदा की तरह, घर-गृहस्थी का बवाल ही न पाला होता और ‘लाइफ’ कम्यूनिटी के लिए ‘डेडीकेट’ कर दी होती।”-यशोधर बाबू के इस विचार से जकी किस मनोदशा का पता चलता है? (1)
उत्तर :
यशोधर बाबू के इस विचार से पता चलता है कि वह अपनी गृहस्थी से प्रसन्न और संतुष्ट नहीं हैं। अपने बच्चों और पत्नी के उपेक्षापूर्ण व्यवहार से वह मन-ही-मन दुःखी रहते हैं।
(vii) लेखक के दादा (पिता) की कैसी प्रवृत्ति थी? (1)
उत्तर :
लेखक के दादा (पिता) की प्रवृत्ति गुस्सैल और हिंसक थी।
(vii) यशोधर बाबू किशनदा को अपने घर में जगह क्यों नहीं दे पाये ? (1)
उत्तर :
यशोधर अपने परिवार सहित सरकारी क्वार्टर में रहते थे। अतः किशनदा को वहाँ न ठहराने की उनकी मजबूरी थी।
(ix) जिस शरारती लड़के ने लेखक के सिर से गमछा छीना था, उसका नाम क्या था? (1)
उत्तर :
जिस शरारती लड़के ने लेखक के सिर से गमछा छीना था, उसका नाम चह्वाण था।
(x) भादेवी वर्मा की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए। (1)
उत्तर :
- अतीत के चलचित्र,
- शृंखला की कड़ियाँ।
(xi) आलोक धन्या का जन्म कब और कहाँ हुआ? (1)
उत्तर :
आलोक धन्वा का जन्म सन् 1948 में बिहार राज्य के मुंगेर में हुआ था।
खण्ड – (ब)
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर :अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 4.
भारत में इंटरनेट पत्रिका का प्रारम्भ किस प्रकार हुआ ? संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
भारत में इंटरनेट पत्रिका का पहला दौर 1993 से शुरू हुआ। दूसरा दौर 2003 से शुरू हुआ। पहले दौर में भारत में भी प्रयोग हुये, डॉटकाम का तूफान आया और शीघ्र चला गया। अंत में वे ही टिके रह पाये जो मीडिया उद्योग में पहले से ही थे। रीडिफ भारत की पहली साइट है जो गम्भीरता से इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है।
प्रश्न 5.
श्रोता या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी. वी में सबसे सशक्त माध्यम कौन है तथा क्यों ? (2)
उत्तर :
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से सबसे शक्तिशाली माध्यम टी.वी. है। टी.वी. में कोई घटना चित्र सहित दिखाई जाती है, उसके बारे में बताया जाता है तथा उसकी सत्यता की पुष्टि प्रत्यक्षदर्शियों को दिखाकर और उनकी बातें सुनाकर की जाती है।
प्रश्न 6.
मोबाइल फोन : वरदान या अभिशाप पर एक आलेख लिखिए। (2)
उत्तर :
मोबाइल एक उपयोगी यंत्र है। अपनी बात दूसरे तक पहुँचाने तथा उसकी बात सुनने में यह यंत्र हमारी सहायता करता है। अत्यन्त छोटा और कम भार का होने के कारण इसको अपने पास रखना और एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना-ले जाना बहुत आसान है। यह संचार क्रान्ति का युग है। इस क्रान्ति में मोबाइल का बड़ा योगदान है। मोबाइल के अनेक लाभों को देखते हुए यह एक वरदान ही कहा जायगा। किन्तु इसका दुरुपयोग करने से यह अभिशाप भी बन जाता है।
प्रश्न 7.
‘स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी है किसी ने’, ‘उषा’ कविता की यह पंक्ति बाल-मनोविज्ञान पर प्रकाश डालती है। कैसे ? समझाइए। (2)
उत्तर :
पहले बच्चों की शिक्षा देने के लिए स्लेट का प्रयोग होता था। उस पर खड़िया से बनी चाक-बत्ती द्वारा अक्षर लिखे जाते थे। बच्चे कभी खेल-खेल में स्लेट पर लिखते और मिटाते थे। ‘उषा’ कविता की इस पंक्ति का सम्बन्ध बच्चों से होने के कारण हम कह सकते हैं कि यह बाल-मनोविज्ञान पर प्रकाश डालती है।
प्रश्न 8.
‘परदे पर वक्त की कीमत है’ कहकर कवि रघुवीर सहाय ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है? (2)
उत्तर :
साक्षात्कार में न विकलांग अपनी पीड़ा बताता – है और न रोता है, न दर्शक ही आँसू बहाते हैं। उद्घोषक अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता तो कार्यक्रम समाप्त करने को कह देता है। दूरदर्शन पर समय की कीमत है। प्राप्त धन के अनुरूप ही दूरदर्शन पर समय दिया जाता है। कवि ने इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है और उसे निंदनीय माना है।
प्रश्न 9.
भक्तिन’ पाठ के आधार पर भक्तिन की चरित्रगत विशेषता का वर्णन कीजिए। (2)
उत्तर :
भक्तिन के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ उसका सेवाभाव तथा स्नेह है। वह एक स्नेही अभिभाविका थी महादेवी भी उसको सेविका नहीं मानती। वह महादेवी से अत्यन्त स्नेह करती थी तथा सदा उनका हित चाहती थी। वह जेल जाने से डरती थी परन्तु महादेवी के साथ जेल जाने को भी तैयार हो गई थी। वह एक पल भी उनका साथ नहीं छोड़ना चाहती।
प्रश्न 10.
बाजारूपन से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजार की सार्थकता किसमें है? (2)
उत्तर :
बाज़ारूपन का तात्पर्य है-बाज़ार नामक संस्था को भ्रष्ट करना। बाज़ार का लक्ष्य मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है। जो व्यक्ति अपनी जरूरत के बारे में भलीभाँति जानता है और उसकी पूर्ति बाज़ार से करता है, वह बाज़ार को सार्थकता प्रदान करता है। लोगों की आवश्यकता को पूरा करना ही बाज़ार की सार्थकता है।
प्रश्न 11.
‘किशनदा कहा करते थे कि आना सब कुछ चाहिए, सीखना हर एक की बात ठहरी, लेकिन अपनी छोड़नी नहीं हुई’-किशनदा के इस विचार को स्पष्ट कीजिए। क्या यशोधर बाबू ने अपने जीवन में इसे अपनाया? (2)
उत्तर :
किशनदा यशोधर बाबू के आदर्श थे। उनका कहना था कि मनुष्य को सब कुछ आना चाहिए उसे दूसरी संस्कृतियों को भी जानना चाहिए। उसे अंग्रेजी सभ्यता और रहन-सहन का तरीका भी आना चाहिए। दूसरों की बातें सीखना अच्छा गुण है। किन्तु विदेशी सभ्यता के फेर में पड़कर अपनी सभ्यता को छोड़ना अच्छी बात नहीं है, ऐसा कदापि न करना चाहिए। यशोधर बाबू ने किशनदा के विचार को अपने जीवन में सफलतापूर्वक अपनाया।
प्रश्न 12.
पाठशाला भेजने के लिए लेखक के दादा ने उससे क्या-क्या वचन लिए थे? (2)
उत्तर :
लेखक के दादा ने कहा-सवेरे स्कूल जाते समय बस्ता लेकर ही खेत पर जाएगा और आते समय छुट्टी होते ही बस्ता घर पर रखकर सीधा खेत पर आ जाएगा और घण्टे भर तक ढोरों को चराएगा। यदि कभी खेत पर ज्यादा काम निकल आए तो उस दिन पाठशाला जाने से छुट्टी लेनी होगी। इन शर्तों के बाद ही स्कूल जाने की अनुमति दी जाएगी।
खण्ड – (स)
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर :लगभग 250 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 13.
‘रुबाइयाँ’ के आधार पर घर-आँगन में दीवाली और राखी के दृश्य-बिम्ब को अपने शब्दों में समझाइए। (3)
अथवा
‘उषा’ कविता के आधार पर गाँव की सुबह का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
दीपावली पर घर को रंग-रोगन करके सजाया गया है। शाम होने पर घर की स्वामिनी घर में दीपक जलाती है। यह घर बच्चे के लिए घरौंदा जैसा है। दीपक जलने से सुन्दरी गृह-स्वामिनी का मुख कोमलता से दमकने लगता है। उसके मुख पर उत्साह और प्रसन्नता की चमक है। वह लक्ष्मी पूजा के लिए खाँड़ के खिलौने तथा खीलें भी खरीद कर लाती है।
राखी का त्यौहार है। आकाश में घटा छाई है। छोटी बच्ची की चाँदी की पाजेबें बिजली की तरह चमक रही हैं। भाई-बहिन रक्षाबंधन के त्योहार को प्रसन्नतापूर्वक मना रहे हैं। हर्ष-उल्लास पूर्वक बहिन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँध रही है। इस प्रकार फिरोज गोरखपुरी से अपनी रूबाइयों के दीपावली और रक्षाबंधन के त्यौहार का दृश्य शिक्षा उपस्थित कर दिया।
प्रश्न 14.
दो कन्याओं को जन्म देने के बाद भी भक्तिन पुत्र की इच्छा में अंधी अपनी जिठानियों की घृणा एवं उपेक्षा की पात्र बनी रही। इस प्रकार के उदाहरण भारतीय समाज में अभी भी देखने को मिलते हैं। इसका कारण और समाधान प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
लेखक इंदर सेना पर पानी फेंकने का समर्थक क्यों नहीं था? उसके रूठ जाने पर जीजी ने उसे क्या कहकर समझाया? (3)
उत्तर :
कारण-भारतीय समाज में पुत्रों को अधिक महत्त्व प्राप्त है। पुत्रियों को तो खोटा सिक्का ही माना जाता है। यह भेदभावपूर्ण व्यवहार उनके पालन-पोषण में स्पष्ट दिखाई देता है। पुत्रों को अच्छे भोजन, वस्त्र तथा शिक्षा मिलती है, पुत्रियों को नहीं। पुत्रियों को जन्म देने वाली माता को भी कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
इसका कारण धार्मिक मान्यताएँ तथा अन्धविश्वास हैं। लड़के को वंश की वृद्धि करने वाला तथा कमाऊ माना जाता है। उसको बुढ़ापे का सहारा कहते हैं। समाधान-पुत्रियाँ, पुत्रों से कम बुद्धिमती तथा क्षमतावाली नहीं होती। उनको पुत्रों के समान ही सुविधाएँ, शिक्षा तथा स्नेह दिया जाना चाहिए।
अच्छी शिक्षा मिलने पर लड़कों के समान ही प्रत्येक क्षेत्र में लड़कियाँ काम कर सकती हैं। उनको नौकरी, व्यवसाय आदि में धनोपार्जन करने तथा मालकिन बनने का अवसर देना चाहिए।
प्रश्न 15.
कथानायक ‘आनंदा’ (जकाते) की चरित्रगत विशेषताएं लिखिए।
अथवा
नवीन पीढ़ी और नवीन जीवन मूल्य, पुरानी पीढ़ी और प्राचीन जीवन-मूल्य- इन दोनों के मध्य सदैव टकराहट चलती रही है। ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए। (3)
उत्तर :
कथाकार आनंद यादव ने अपनी इस आत्मकथात्मक रचना में कथानायक या मुख्य पात्र के रूप में जिस किशोर को चुना है वह सामान्य किशोरों से भिन्न दिखाई देता है। उसकी चरित्रगत विशेषताएँ निम्न प्रकार हैंभविष्य के प्रति सचेत-लेखक किशोर अवस्था का है, पिता द्वारा खेती के काम में लगाए जाने को वह उचित नहीं मानता। अत: वह पढ़-लिखकर और कोई नौकरी या धन्धा करके पैसा कमाना चाहता है।
चतुराई से परिपूर्ण-वह एक चतुर किशोर है, वह जानता है कि उसका दादा पूरे गाँव में केवल दत्ता राव सरकार की बात मानकर उसे पढ़ने भेज सकता है, दत्ताराव से बात करने के लिए वह अपनी माता को तैयार करता है। इससे सिद्ध होता है कि वह एक चतुर किशोर है। पढ़ाई में लगन-वह स्कूल में पढ़ना चाहता है। उसकी कक्षा में वसंत पाटील नाम का एक विद्यार्थी पढ़ाई में बहुत होशियार है। वह देर से वहाँ जा पाता है।
लेखक उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर स्वयं लगन से पढ़ता है और अन्त में वह वसंत पाटील की तरह ही योग्य बन जाता है। अध्यापकों का प्रियपात्र एवं कवि-कक्षा में उसकी पढ़ाई के प्रति लगन देखकर मराठी के अध्यापक सौंदलगेकर उसे बहुत चाहते हैं, उसे घर पर बुलाकर कविता लिखने की प्रेरणा देते हैं, उसके द्वारा लिखी गई कविताओं को सही करते हैं। वह अच्छा कवि बन जाता है। निष्कर्ष-इस प्रकार अपनी लगन तथा बुद्धिमत्ता से वह एक श्रेष्ठ कवि बन जाता है।
प्रश्न 16.
आलोक धन्वा का कवि परिचय लिखिए।
अथवा
धर्मवीर भारती का लेखक परिचय लिखिए। (3)
उत्तर :
डॉ. धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर, – सन् 1926 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। आपकी शिक्षा इलाहाबाद में ही हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आपने एम. ए. पीएच. डी. किया। आप कुछ समय ‘संगम’ के सम्पादक रहे। इसके पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक हो गए। सन् 1959 में आप ‘धर्मयुग’ के प्रधान सम्पादक बने। सन् 1972 में आपको भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से अलंकृत किया गया।
सन् 1997 में आपका देहावसान हो गया। साहित्यिक परिचय-डॉ. भारती विद्यार्थी जीवन से ही लेखन-कार्य करने लगे थे। कहानी, उपन्यास, नाटक, समीक्षा, निबन्ध आदि गद्य-विधाओं पर आपने कुशलतापूर्वक लेखनी चलाई है। आपने सम्पादक के रूप में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। आपके सम्पादक काल में ‘धर्मयुग’ की उत्तरोत्तर हुई उन्नति इसका प्रमाण है।
कृतियाँ-डा. भारती की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं: . उपन्यास-गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश। कहानी-संग्रहचाँद और टूटे हुए लोग, बन्द गली का आखिरी मकान, गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी। नाटकएकांकी-नदी प्यासी थी, नीली झील। निबन्ध-कहनी-अनकहनी, ठेले पर हिमालय, पश्यन्ति। आलोचना-मानव मूल्य और साहित्य काव्य-ठंडा लोहा, कनुप्रिया, सात गीत वर्ष, अन्धायुग। सम्पादन-संगम, धर्मयुग। अनुवाद-देशान्तर।
खण्ड – द
प्रश्न 17.
निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (2 + 4 = 6)
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
अथवा
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है ?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है !
उत्तर :
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि शमशेर बहादुर सिंह की कविता ‘उषा’ से उद्धृत है। कवि ने इसमें भोर के समय का एक अनूठा शब्द-चित्र अंकित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि सबेरे के झुटपुटे में आकाश बहुत नीले शंख जैसा था। वह ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने अपने रसोईघर (के फर्श) को राख से लीप दिया हो। कुछ समय पूर्व ही लीपने के कारण वह अभी तक गीला पड़ा हो। झुटपुटे में प्रकाश की कमी से नीला आकाश कुछ काला-सा दिखाई देता है।
प्रश्न 18.
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (2 + 4 = 6)
हम-आप न जाने कितनी बडी-बडी बातें जानते हैं। इससे यह तो हो सकता है कि वह चरन वाला भगत हम लोगों के सामने एकदम नाचीज़ आदमी हो। लेकिन आप पाठकों की विद्वान श्रेणी का सदस्य होकर भी मैं यह स्वीकार करना चाहता हूँ कि उस अपदार्थ प्राणी को वह प्राप्त है जो हम में से बहुत कम को शायद प्राप्त है। उस पर बाज़ार का जादू वार नहीं कर पाता। माल बिछा रहता है, और उसका मन अडिग रहता है। पैसा उससे आगे होकर भीख तक माँगता है कि मुझे लो। लेकिन उसके मन में पैसे पर दया नहीं समाती। वह निर्मम व्यक्ति पैसे को अपने आहत गर्व में बिलखता ही छोड़ देता है। ऐसे आदमी के आगे क्या पैसे की व्यंग्य-शक्ति कुछ भी चलती होगी? क्या वह शक्ति कुंठित रहकर सलज्ज ही न हो जाती होगी?
अथवा
‘शेर के बच्चे’ का असल नाम था चाँद सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ, पंजाब से पहले-पहल श्यामनगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग-प्रत्यंग से सुंदरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उम्र के सभी पट्ठों को पछाड़कर उसमें ‘शेर के बच्चे की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लैंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर बेटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान, उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपने टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँद सिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था।
उत्तर :
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित पाठ ‘बाजार दर्शन’ से लिया गया है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार प्रसंग-इस अंश में लेखक चूरन बेचने वाले भगतजी के चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डाल रहा है।
व्याख्या-लेखक कहता है कि वह और अन्य लोग अनेक बड़े-बड़े विषयों से संबंधि त जानकारियाँ रखते हैं। चूरन वाले भगत जी जानकारी के मामले में लोगों से बहुत पीछे हैं, यह बात मानी जा सकती है। लेकिन स्वयं लेखक यह मानता है कि वह भी पाठकों की ही तरह एक जानकार आदमी है। जानकार होते हुए भी वह मानता है कि चूरन वाले भगत में एक ऐसा गुण है जो हम जैसे बहुत कम लोगों में देखने को मिलेगा।
वह गुण है कि भगत के मन पर बाजार का जादू अपना प्रभाव नहीं दिखा पाता। वह बाजार जाता है तो ढेरों नई-नई वस्तुएँ वहाँ सजी रहती हैं, पर वे भगत के मन को तनिक भी आकर्षित नहीं कर पाती। इसके अतिरिक्त छह आने रोज की अपनी कमाई पूरी होते ही वह चूरन बेचना बंद कर देता है।
वह चाहे तो और भी पैसे कमा सकता है, लेकिन उसे यह स्वीकार नहीं। अधिक कमाई का तनिक भी मोह नहीं। पैसे को भी उसके स्वाभिमानी चरित्र को देखकर, उसके कठोर आत्मसंयम को देखकर अपने झूठे गर्व पर शर्म आती होगी।
गरीब की निर्धनता पर व्यंग्य करने वाले उसे उसकी औकात जताने वालों का सारा अहंकार इस भगत के सामने चूर-चूर हो जाता है। पैसे की ‘व्यंग्य शक्ति’ धरी की धरी रह जाती है। व्यंग्य शक्ति को भी अपनी इस उपेक्षा पर बड़ी लज्जा आती होगी।
प्रश्न 19.
उपखंड अधिकारी, सुमेरपुर (पाली) की ओर से विभिन्न कार्यों को करवाने के लिए पंजीकृत ठेकेदारों से निविदा आमंत्रित करने के लिए निविदा सूचना तैयार कीजिए। (4)
अथवा
आयुक्त, निर्वाचन आयोग, राजस्थान, जयपुर की ओर से सचिव, कार्मिक विभाग को एक अर्द्धशासकीय पत्र लिखिए, जिसमें राज्य कर्मचारियों का चुनाव कार्य हेतु सहयोग का उल्लेख हो। (4)
उत्तर :
राज्य निर्वाचन आयोग
बी. के. सिंह
आयुक्त
आयोग कार्यालय
जयपुर
दि० 30 मार्च, 20_ _
अ. शा. प. क्र. 942/ विशिष्ट
प्रिय श्री नागपाल जी,
भारतीय लोकतंत्र में चुनाव – प्रक्रिया एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्येक नागरिक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से मतदान कर सके। राज्य में विधानसभा चुनाव निकट है, इसकी पूर्व तैयारियों हेतु राज्य कर्मचारियों की सेवाएँ लेनी होती हैं। आप से आग्रह है कि समस्त विभागाध्यक्षों को निर्देश प्रदान करें कि निर्वाचन कार्य से संबंधित आदेश की पालना सुनिश्चित की जाए। आशा है, आपका सहयोग प्राप्त होगा।
सधन्यवाद।
भवन्निष्ठ –
ह०
(बी. के. सिंह)
प्रश्न 20.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर सारगर्भित निबंध लिखिए। (शब्द सीमा 300 शब्द) (5)
(1) बालश्रम से जूझता बचपन
(2) भारत के म्नति की ओर बढ़ते कदम
(3) मेरा प्रिय साहित्यकार
(4) बालिका शिक्षा
उत्तर :
बालिका शिक्षा
संकेत बिंदु –
- प्रस्तावना,
- बालिका शिक्षा का महत्व
- वर्तमान स्थिति
- प्रगति के प्रयास
- उपसंहार।
प्रस्तावना – बालिकाएँ ही आगे चलकर गृहणी और माताओं का पद संभालती हैं। परिवार के सुसंचालन में बराबरी की भूमिका निभाती हैं। हमारे देश में नारियों का गुणगान तो बहुत हुआ किन्तु उन्हें बराबरी का दर्जा देने में आज भी पुरुष वर्ग संकोच दिखाता है। बेटे और बेटी में आज भी परिजन अंतर करते दिखाई देते हैं। बेटी के लालन – पालन, शिक्षा और सुसंस्कार पर बेटे से कम ध्यान दिया जाता है। यह एक अप्रिय सच्चाई और अदूरदर्शितापूर्ण रवैया है। आज बालिका को उसके हिस्से का पूरा प्यार – दुलार और शिक्षा – दीक्षा मिलनी ही चाहिए तभी देश की आधी आबादी के साथ न्याय हो पाएगा।
बालिका शिक्षा का महत्व – मानव समाज के दो अनिवार्य पक्ष हैं – स्त्री और पुरुष। हमारा समाज सदा से पुरुष प्रधान रहा है। जितना ध्यान हमारे यहाँ बालक की शिक्षा और उसके भविष्य पर दिया जाता रहा है, उतना बालिका की शिक्षा पर नहीं। इसका कारण बालिका अर्थात् स्त्री की भूमिका घर की चहारदीवारी में ही सिमटी रहना है। आज की दुनिया में यह नहीं चल सकता। शिक्षित बालिकाएँ ही देश का भविष्य हैं।
वे जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर सकती हैं। शिक्षित स्त्री से परिवार और समाज दोनों ही सशक्त बनते हैं। शिक्षित बालिकाएँ आत्मविश्वास और आत्मनिर्णय से परिपूर्ण होती हैं। इसीलिए कहा जाता रहा है – ‘पढ़ी – लिखी लड़की रोशनी है घर की’। शिक्षित कन्याएँ ही गृहिणी बनने पर बच्चों का सही पालन – पोषण और मार्गदर्शन कर सकती हैं। वर्तमान स्थिति – पिछले कुछ वर्षों में बालिका शिक्षा के महत्व को समझा गया है।
उनके लिए शिक्षा के सुअवसरों में वृद्धि हुई है। गाँवों और नगरों में बालिका विद्यालयों की संख्या बढ़ी है। बालिकाओं हेतु उच्च शिक्षा में स्नातक स्तर तक निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध किया गया है। प्रगति के प्रयास – अभी बालिका शिक्षा की दिशा में काफी प्रयास किए जाने बाकी हैं। ग्रामीण और दूरस्थ अंचलों में अभी बालिका शिक्षा की सुव्यवस्था उपलब्ध नहीं है। शिक्षा संस्थानों और समाज में बालिकाओं की सुरक्षा का ज्वलंत प्रश्न सामने खड़ा है।
इस दिशा में समाज और सरकार दोनों के सहयोग से ही बालिकाएँ सुशिक्षित होकर अपनी महान भूमिकाएं निभा सकती हैं। उपसंहार – बालिका शिक्षा समाज का एक पवित्र दायित्व है। छात्रवृत्ति, मार्गदर्शन तथा बालिका विद्यालयों की सुव्यवस्था पर अधिक ध्यान देकर ही इस लक्ष्य को पाया जा सकता है।
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