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RBSE Class 12 Hindi Compulsory Model Paper Set 4 with Answers
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पी प्रश्न
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए –
यह विडंबना की ही बात है कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज ‘कार्य कुशलता’ के लिए श्रम – विभाजन को आवश्यक मानता है और चूँकि जाति – प्रथा भी श्रम – विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। इस तर्क के सम्बन्ध में पहली बात तो यही आपत्तिजनक है कि जाति – प्रथा श्रम – विभाजन के साथ – साथ श्रमिक – विभाजन का भी रूप लिए हुए है। श्रम – विभाजन निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परन्तु किसी भी सभ्य समाज में श्रम – विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति – प्रथा की एक और विशेषता यह है कि यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक – दूसरे की अपेक्षा ऊँच – नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता। जाति – प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन – भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती हैं। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति – प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
(i) भारत में जाति – प्रथा की विशेषता है – (1)
(अ) श्रम का विभाजन नहीं करती है
(ब) श्रम के साथ – साथ श्रमिकों का भी विभाजन करती है
(स) श्रमिकों में ऊँच – नीच का भाव पैदा करती है
(द) (ब) व (स) दोनों ही।
उत्तर :
(द) (ब) व (स) दोनों ही।
(ii) पेशे के निर्धारण में जाति – प्रथा का योगदान है- (1)
(अ) श्रमिक पेशा अपनाने में स्वतन्त्रता रहता है
(ब) उसे पेशा बदलने की स्वतन्त्रता रहती है
(स) बेरोजगारी का प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण है।
(द) मनुष्य को अपना पैतृक पेशा ही अपनाना पड़ता है।
उत्तर :
(द) मनुष्य को अपना पैतृक पेशा ही अपनाना पड़ता है।
(iii) बेरोजगारी का प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण है- (1)
(अ) अशिक्षा
(ब) अज्ञान
(स) जाति – प्रथा
(द) सर्व शिक्षा !
उत्तर :
(स) जाति – प्रथा
(iv) ‘श्रम-विभाजन’ का समास-विग्रह है- (1)
(अ) श्रम के लिए विभाजन
(ब) श्रम से विभाजन
(स) श्रम में विभाजन
(द) श्रम का विभाजन।
उत्तर :
(द) श्रम का विभाजन।
(v) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है- (1)
(अ) जाति प्रथा के दोष।
(ब) जाति-प्रथा का महत्त्व
(स) जाति प्रथा का योगदान
(द) श्रम-विभाजन की अनिवार्यता।
उत्तर :
(अ) जाति प्रथा के दोष।
(vi) जातिप्रथा का दोषपूर्ण विभाजन मनुष्य को जीवनभर के लिए बाँध देता है- (1)
(अ) एक विश्वास से
(ब) एक पेशे से
(स) एक धर्म से
(द) एक जाति से
उत्तर :
(ब) एक पेशे से
निम्नलिखित अपठित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखिए –
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था,
माना, वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया।
अंबर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फिर कहाँ मिले;
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है।
जो बीत गई सो बात गई।
जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उस पर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया;
मधुवन की छाती को देखो,
सूखीं कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाई कितनी वल्लरियाँ जो
मुरझाईं फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर,
कब मधुवन शोर मचाता है ?
जो बीत गई सो बात गई।
(vii) ‘जो बीत गई सो बात गई’ कवि का उक्त कथन से क्या आशय है ?- (1)
(अ) जो बीत चुका उसे बीत जाने दो
(ब) जो बात बीत गई, वह चली गई
(स) बीती बातों को ध्यान में रखो
(द) बीती बातों पर चिन्तित व दुःखी न होकर भविष्य का विचार करना।
उत्तर :
(द) बीती बातों पर चिन्तित व दुःखी न होकर भविष्य का विचार करना।
(viii) आकाश से टूटते तारों को देखकर क्या प्रेरणा मिलती है ?- (1)
(अ) रात में टूटते सितारे बहुत सुन्दर लगते हैं।
(ब) आकाश से टूटते सितारे हमें दुःखी और निराश करते हैं
(स) तारे टूटने का आकाश शोक नहीं करता है, उसी प्रकार प्रियजन के विछोह का हमें शोक नहीं करना चाहिए।
(द) आकाश में बहुत से तारे हैं, एक-दो तारे टूटने से वह शोक नहीं मनाता।
उत्तर :
(स) तारे टूटने का आकाश शोक नहीं करता है, उसी प्रकार प्रियजन के विछोह का हमें शोक नहीं करना चाहिए।
(ix) ‘जीवन में वह था एक कुसुम’ यहाँ ‘कुसुम’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया है ?- (1)
(अ) फूल के लिए
(ब) प्रियजन के लिए
(स) मधुवन के लिए
(द) वल्लरियों के लिए।
उत्तर :
(ब) प्रियजन के लिए
(x) ‘कुसुम’ शब्द का पर्यायवाचक निम्न विकल्पों में से चुनिए- (1)
(अ) कानन
(ब) सुमन
(स) पराग
(द) कलियाँ।
उत्तर :
(ब) सुमन
(xi) उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक है- (1)
(अ) जो बीत गई सो बात गई
(ब) अंबर का आनन
(स) मधुवन
(द) सन्तोष।
उत्तर :
(द) सन्तोष।
(xii) पृथ्वी का विपरीतार्थक शब्द पद्यांश में आया है?- (1)
(अ) अंबर
(ब) मनुष्य
(स) कुसुम
(द) बल्लरियाँ
उत्तर :
(अ) अंबर
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) व्यक्त वाणी के रूप में जिसकी अभिव्यक्ति की जाती है, उसे ……………………………….. कहते हैं।- (1)
उत्तर :
भाषा
(ii) देवनागरी लिपि का विकास भारत की ……………………………….. लिपि से हुआ है।- (1)
उत्तर :
ब्राह्मी
(iii) ‘यह ताजमहल कब तक पूरा होगा।’ वाक्य में ……………………………….. शब्द शक्ति है।- (1)
उत्तर :
लक्षणा
(iv) जहाँ विशेष प्रयोजन से प्रेरित होकर शब्द का प्रयोग लक्ष्यार्थ में किया जाता है, तो वहाँ ……………………………….. लक्षणा मानी जाती है।- (1)
उत्तर :
प्रयोजनवती
(v) ‘सुनतहिं जोग लगत ऐसौ अलि! ज्यों करुई ककरी।’ काव्य पंक्ति में ……………………………….. अलंकार है।।- (1)
उत्तर :
उपमा
(vi) “मारिए आसा संपनी, जिन डसिया संसार”। काव्य पंक्ति में आसा उपमेय में ‘सापनी’ ……………………………….. का अभेद आरोप है। अतः यहाँ ……………………………….. अलंकार है।- (1)
उत्तर :
उपमान, रूपक
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर :एक पंक्ति में दीजिए –
(i) निम्न पारिभाषिक शब्दों के अर्थ लिखिए।- (1)
A. Witness
B. Privilege
उत्तर :
A. साक्षी,
B. विशेषाधिकार।
(ii) ‘प्रावधान’ शब्द के लिए पारिभाषिक शब्द लिखिए।- (1)
उत्तर :
Provision
(iii) भक्तिन का असली नाम क्या था?- (1)
उत्तर :
भक्तिन का असली नाम लछमिन या लक्ष्मी था।
(iv) फीचर का प्रारंभ कैसा होता है?- (1)
उत्तर :
फीचर का आरंभ आकर्षक, कलात्मक तथा उत्सुकतापूर्ण होता है।
(v) ‘जूझ’ पाठ के रचयिता का नाम क्या है?- (1)
उत्तर :
जूझ’ पाठ के रचयिता का नाम है-आनंद यादव।
(ii) ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के लेखक का नाम क्या है?- (1)
उत्तर :
सिल्वर वैडिंग पाठ के लेखक का नाम मनोहर श्याम जोशी है।
(vii) पाठशाला पहुँचते ही लेखक का मन खट्टा हो जाता है, वह अब पाठशाला जाने से कतराता है – ऐसा क्यों हुआ? बताइए।- (1)
उत्तर :
उसके साथ के विद्यार्थी आगे की कक्षा में चले गये हैं। शेष सब उससे उम्र में कम हैं। अतः उनके द्वारा उसका मजाक उड़ाया जाता है। अतः वह कक्षा में जाने से कतराने लगता है।
(viii) यशोधर बाबू किसको अपना आदर्श मानते थे?- (1)
उत्तर :
यशोधर बाबू किशन दा को अपना आदर्श मानते थे।
(ix) ‘जूझ’ कहानी से लेखक की किस प्रवृत्ति का उद्घाटन हुआ है?- (1)
उत्तर :
जूझ’ कहानी से लेखक की संघर्षमयी प्रवृत्ति का उद्घाटन हुआ है।
(x) शमशेर बहादुर सिंह की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।- (1)
उत्तर :
रचनाएँ-
- बात बोलेगी
- काल तुझसे है होड़ मेरी।
(xi) फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का जन्म कब और कहाँ हुआ?- (1)
उत्तर :
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का जन्म 4 मार्च, सन् 1921, औराही हिंगना (जिला पूर्णिया अब अररिया) बिहार में हुआ था।
खण्ड – (ब)
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर :अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 4.
इंटरनेट पत्रकारिता के विकास में सरकार के सहयोग के बारे में विचार लिखिए। (2)
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता के विकास में सरकार भी प्रचुर मात्रा में सहयोग कर रही है। सरकार के सभी मंत्रालय, विभाग, सार्वजनिक उपक्रम और बैंकों ने अपने अनुभाग प्रारम्भ किये हैं जो चाहे कुछ स्थानों पर आज तकनीकी उपेक्षा के शिकार हैं फिर भी डाटाबेस तो तैयार हो ही रहा है। ये सभी मिलकर हिन्दी की ऑनलाइन पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।
प्रश्न 5.
उल्टा पिरामिड शैली में समाचार के कितने हिस्से होते हैं ? उनके बारे में आप क्या जानते हैं ? (2)
उत्तर :
उलटा पिरामिड शैली में समाचार के तीन हिस्से होते हैं :
- इंट्रो
- बॉडी
- समापन।
समाचार के इंट्रो को लीड या हिन्दी में मुखड़ा भी कहते हैं। यह खबर का मूल तत्व होता है जिसे प्रथम दो या तीन पंक्तियों में बताया जाता है। बॉडी में समाचार का विस्तृत ब्यौरा दिया जाता है जो घटते हुए महत्त्वक्रम में दिया जाता है। इस शैली में समापन जैसी कोई चीज नहीं होती।
प्रश्न 6.
आज की तनावपूर्ण जीवन – शैली पर एक फीचर लिखिए। (2)
उत्तर :
तथाकथित विकास और प्रगति ने जहाँ मनुष्य को सुख-सुविधाओं की अमूल्य भेंट प्रदान की है वहीं उसने मानसिक तनाव के जंजाल को भी उसके पीछे लगा दिया है। वह उचित-अनुचित सभी तरीकों से वैभव, सत्ता और सामाजिक प्रतिष्ठा पाने को बेचैन है। इन सबको पाने के लिए उसे नाना प्रकार के तनावों को झेलना पड़ रहा है। माता-पिता को बच्चों के अच्छे लालन-पालन और उत्तम शिक्षा दिलाने का तनाव है।
युवाओं को अच्छी नौकरी या व्यवसाय पाने का तनाव है। बेरोजगारी का तनाव है। यात्रा में राजी-खुशी पहुँचने का तनाव है। अब तो राह चलते लुटने का तनाव है। आयकर वालों के छापों का तनाव है। बीमारी का तनाव है। गृहस्थ ही नहीं नेता, अभिनेता, साधु-संत और कलाकार सब इस्र तनाव के आतंक से व्याकुल हैं। जीवनशैली को सहन, सादगीपूर्ण और ईश्वर में विश्वास से युक्त बनाकर ही इस प्रेत से पीछा छूट सकता है।
प्रश्न 7.
‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय है ? (2)
उत्तर :
भाषा को सहूलियत से बरतने से अभिप्राय यह है कि कवि को भावानुकूल भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। सीधी-सरल बात को सरल, सुबोध भाषा में व्यक्त करना ही उचित होता है। अनावश्यक दुरूह भाषा का प्रयोग करने से भावों का सौन्दर्य, स्वाभाविकता तथा मौलिकता नष्ट हो जाती है।
प्रश्न 8.
‘आत्म – परिचय’ कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है? (2)
उत्तर :
‘आत्म-परिचय’ कविता हमें अपने मन के अनुकूल जीवन जीने की प्रेरणा देती है। हमें सांसारिक जीवन की समस्याओं से जूझते हुए भी सभी से स्नेह करना चाहिए। जीवन के चाहिए। परछिद्रान्वेषण तथा चाटुकारिता से दूर रहना चाहिए। सत्य की प्राप्ति के लिए ‘अहंकारमुक्त होना चाहिए।
प्रश्न 9.
‘लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा’ या ‘मेरा वतन ढाका है’ जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं? (2)
उत्तर :
इस कहानी के तीन प्रमुख पात्र हैं। पहली सिख बीबी जो लाहौर को अपना वतन बताती है। दूसरे पाकिस्तानी कस्टम ऑफिसर जो दिल्ली को अपना वतन मानते हैं और तीसरे भारतीय कस्टम ऑफिसर गुप्त जो अपना वतन ढाका मानते हैं। ये बातें इस सामाजिक यथार्थ की ओर संकेत करती हैं कि भारत का विभाजन लोगों की भावनाओं को नहीं बाँट सका है। अपनी जन्मभूमि के प्रति उनका प्यार पहले जैसा ही है।
प्रश्न 10.
लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है ? (2)
उत्तर :
कालजयी उसे कहते हैं जो समय के परिवर्तन से अप्रभावी रहता है। जीवन में आने वाले सुख-दु:ख, उत्थान-पतन, हार-जीत उसे प्रभावित नहीं कर पाते। वह इनमें संतुलन बनाकर जीवित रहता है। यह गुण अवधूत अर्थात् संन्यासी में होते हैं। शिरीष का वृक्ष भी भीषण गर्मी और लू में हरा-भरा और फूलों से लदा रहता है। इस कारण इसे कालजयी अवधूत की तरह माना गया है।
प्रश्न 11.
‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा – नायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है। (2)
उत्तर :
‘जूझ’ का कथानायक आनंदा एक संघर्षशील व्यक्तित्व का धनी है। अपने जीवन में विपरीत और कठिन परिस्थितियों से निरन्तर जूझता है और सफलता प्राप्त करता है। नायक के संघर्षपूर्ण जीवन की कथा होने के कारण इसका शीर्षक कथानक की प्रमुख समस्या पर आध पारित होने के कारण अत्यन्त उचित तथा सटीक है। इससे नायक के चरित्र की प्रमुख – विशेषता-संघर्षशीलता भी उजागर होती है।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किसे आप ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/ कहेंगी और क्यों? (2)
(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
(ख) पीढ़ी का अन्तराल
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
उत्तर :
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी पीढ़ियों का अन्तराल, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव और मानवीय मूल्यों का ह्रास स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पुत्रों-पुत्री, और साले द्वारा यशोधर बाबू के पुराने विचारों की अनदेखी की जाती है। यह पीढ़ियों के अन्तराल का स्पष्ट प्रमाण है। दो पीढ़ियों के अन्तराल में मानवीय मूल्यों की उपेक्षा होना स्वाभाविक ही है। ये तीनों ही बातें इस कहानी की मूल संवेदना हैं।
खण्ड – (स)
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर :लगभग 250 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 13.
‘कविता के बहाने’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए। (3)
अथवा
बहलाती, सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में आप कैसा अन्तर्विरोध पाते हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता के बहाने-‘कविता के बहाने’ कुँवर नारायण के काव्य-संग्रह ‘इन दिनों’ से ली गई है। आज का समय यांत्रिकता के दबाव के कारण कविता के अस्तित्व को लेकर आशंकित है, ‘कविता के बहाने’ में कवि ने इस शंका से असहमति प्रकट की है तथा कविता के अस्तित्व की अपार सम्भावना में विश्वास व्यक्त किया है। कविता की उड़ान की तुलना चिड़िया की उड़ान से नहीं की जा सकती। चिडिया की उडान की एक सीमा है।
वह इस घर से उस घर तक ही उड़ सकती है। किन्तु कविता की उड़ान की सीमा अनन्त है। उसका प्रभाव समस्त संसार तथा सभी कालों में व्याप्त होता है। कविता की सुगन्ध की तुलना फूल की सुगन्ध से नहीं की जा सकती। फूल खिलता है तो उसकी सुगन्ध कुछ दूर तक ही फैलती है। फूल जल्दी ही मुरझा जाता है किन्तु कविता सदा सजीव रहती है। वह बिना मुरझाए हर घर को अपने संदेश से प्रेरित करती है।
कविता के प्रभाव की तुलना बच्चों के खेल से की जा सकती है। बच्चे घर के बाहर-भीतर सब जगह खेलते हैं। कविता भी शब्दों का खेल है। कविता का प्रभाव भी दूर-दूर तक हर देश-प्रदेश तक व्यापक होता है। उसमें स्थान तथा समय की कोई सीमा नहीं होती। वह समस्त संसार तथा भूत, वर्तमान और भविष्य तक में फैल जाती है।
प्रश्न 14.
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के किस – किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या क्या परिवर्तन आए? (3)
अथवा
‘नमक’ कहानी में हिन्दुस्तान – पाकिस्तान के रहने वाले लोगों की भावनाओं, संवेदनाओं को उभारा गया है। वर्तमान संदर्भ में इन संवेदनाओं की स्थिति को तर्क सहित स्पष्ट कीजिए। स्पष्ट काजिए।
उत्तर :
कहानी के कथानक में निम्नलिखित मोड़ हैं और उनसे आने वाले परिवर्तन इस प्रकार है।
- कहानी का आरम्भ-पहलवान का बचपन में अनाथ होना। विधवा सास द्वारा उसका लालन-पालन होना। गाय-भैंसें चराना, दूध पीना और कसरत करना।
- मध्य बिन्दु की ओर कथानक की गति-कुश्ती तथा कसरत में रुचि बढ़ते जाना। अपनी सास का अपमान करने वालों को सबक सिखाने के इरादे से कुश्ती में दृढ़ता दिखाना।
- मध्य बिन्दु-श्यामनगर के मेले में जाना। अचानक नामी पहलवान चाँद सिंह से कुश्ती लड़ना तथा उसको पराजित करना। राजा साहब का दरबारी पहलवान बनना।।
- आगे विकास होना-राजा साहब की मृत्यु, राजकुमार का राज्याधिकार होना, फालतू मानकर पहलवान तथा उसके बेटों की छुट्टी होना। गाँव में आकर रहना।
- चरम बिन्दु-गाँव में महामारी फैलना। ढोलक बजाकर लोगों के मन में साहस पैदा करना। महामारी से दोनों बच्चों की मृत्यु के बाद स्वयं पहलवान की मौत होना।
प्रश्न 15.
श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें, जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई। (3)
अथवा
‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारम्भ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथन से क्या संबंध बनता है?
उत्तर :
श्री सौंदलगेकर पाठशाला में मराठी के शिक्षक थे। वह शिक्षक होने के साथ ही स्वयं एक कवि थे तथा काव्य रसिक भी थे। उनके अध्यापन की विशेषताएँ निम्नलिखित र्थीवह कविता पढ़ाते समय उसको स्वर सहित पढ़ते थे। कविता का लय और गति के साथ वाचन करने से उसका भाव छात्रों को सरलता से समझ में आ जाता था।
वह कविता पढ़ाते समय उसको लीन हो जाते थे तथा सस्वर वाचन करने के साथ ही हाव-भावों द्वारा अभिनय करके भी उसको छात्रों के लिए बोधगम्य बना देते थे। श्री सौंदलगेकर को मराठी के साथ ही अंग्रेजी भाषा की अनेक कविताएँ भी कंठस्थ थीं। वह छंदशास्त्र के विद्वान थे। वह स्वयं भी कविताएँ लिखते थे। वह छात्रों को अन्य कवियों की कविताओं के साथ-साथ स्वरचित कविताएँ भी सुनाते थे।
इस प्रकार छात्रों को तुलनात्मक अध्ययन का अवसर प्रदान करते थे। विषय को रोचक बनाने के लिए वह अन्य कवियों के साथ अपनी भेंट के संस्मरण भी सुनाते थे। वह अपने छात्रों को काव्य-रचना करने तथा उसका वाचन करने के लिए प्रेरित करते थे। उनके इस शिक्षण-कौशल के कारण लेखक को कविताओं के प्रति रुचि जाग्रत हुई।
प्रश्न 16.
गजानन माधव मुक्तिबोध’ का कवि – परिचय लिखिए। (3)
अथवा
‘रजिया सज्जाद जहीर’ का लेखिका परिचय लिखिए।
उत्तर :
कवि परिचय :- गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर सन् 1917, श्योपुर, ग्वालियर मध्य प्रदेश में हुआ था। छायावाद और स्वच्छंदतावादी कविता के बाद जब नयी कविता आई तो मुक्तिबोध उसवके अगुआ कवियों में से एक थे। मराठी संरचना से प्रभावित लम्बे वाक्यों ने उनकी कविता को आम पाठक के लिए कठिन बनाया लेकिन उनमें भावनात्मक और विचारात्मक ऊर्जा अटूट थी, जैसे कोई नैसर्गिक अंत:स्रोत हो जो कभी चुकता ही नहीं बल्कि लगातार अधिकाधिक वेग और तीव्रता के साथ उमड़ता चला आता है।
यह ऊर्जा अनेकानेक कल्पना-चित्रों और पैंटेसियों का आकार ग्रहण कर लेती हैं मुक्तिबोध का रचनात्मक ऊर्जा का एक बहत बड़ा अंश आलोचनात्मक लेखन और साहित्य संबंधी चिंतन में सक्रिय रहा। वे एक समर्थ पत्रकार भी थे। इसके अलावा राजनैतिक विषयों, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य तथा देश की आर्थिक समस्याओं पर लगातार लिखा है। 11 सितम्बर सन् 1964 में इस महान कवि व पत्रकार का नई दिल्ली में निधन हो गया।
आपकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है-चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल (कविता संग्रह); काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी (कथा साहित्य); कामायनी-एक पुनर्विचार, नयी कविता का आत्मसंघर्ष, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, (अब ‘आखिर रचना क्यों’ नाम से) समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी (आलोचना); भारत : इतिाहस और संस्कृति!
खण्ड – (द)
प्रश्न 17.
निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए हो जाए न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी – जल्दी चलता है ! दिन जल्दी – जल्दी ढलता है। बच्चे प्रत्याशा में होंगे, नीड़ों से झाँक रहे होंगे यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है ! दिन जल्दी – जल्दी ढलता है ! (2 + 4 = 6)
अथवा
पतंगों के साथ – साथ वे भी उड़ रहे हैं अपने रंधों के सहारे अगर घे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से और बच जाते हैं तब तो और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास।
उत्तर :
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ से अवतरित है। इस अंश में कवि ने संकेत किया है कि उसका जीवन यात्रा रूपी दिन ढलने वाला है।
व्याख्या-कवि कहता है कि दिनरूपी यात्री यद्यपि चलते-चलते थक गया है किन्तु वह यह सोचकर जल्दी-जल्दी कदम उठा रहा है कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए। उसका गन्तव्य अब अधिक दूर नहीं है, परन्तु उसे ऐसा लग रहा है कि दिन जल्दी ही ढलने वाला है।
कवि कहता है कि आकाश में उड़ने वाला पक्षी जब यह सोचता है कि घोंसले में बैठे बच्चे उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे होंगे और आतुरतापूर्वक घोंसले से झाँक रहे होंगे तो उसके पंख तेजी से गति करने लगते हैं और वह जल्दी-जल्दी अपने घोंसले की ओर उड़ने लगता है।
अपने प्रियजनों से मिलने की आतुरता उसके कदमों में तेजी ला देती है।
प्रश्न 18.
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (2 + 4 = 6)
यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाज़ार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति – शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाज़ार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाज़ार का बाज़ारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी।
अथवा
दूसरे दिन तड़के ही सिर पर कई लोटे औंधाकर उसने मेरी धुली धोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और पूर्व के अंधकार और मेरी दीवार से फटते हए सर्य और पीपल का, दो लोटे जल से अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरांत जब वह कोयले की मोटी रेखा से अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, तब मैंने समझ लिया कि इस सेवक का साथ टेढ़ी खीर है। अपने भोजन के सम्बन्ध में नितांत वीतराग होने पर भी मैं पाक – विद्या के लिए परिवार में प्रख्यात हूँ और कोई भी पाक – कुशल दूसरे के काम में नुक्ताचीनी बिना किए रह नहीं सकता। पर जब छूत – पाक पर प्राण देने वाले व्यक्तियों का, बात – बात पर भूखा मरना स्मरण हो आया और भक्तिन की शंकाकुल दृष्टि में छिपे हुए निषेध का अनुभव किया, तब कोयले की रेखा मेरे लिए लक्ष्मण के धनुष से खींची हुई रेखा के समान दुर्लंघ्य हो उठी।
उत्तर :
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित पाठ ‘बाजार दर्शन’ से लिया गया है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं।
प्रसंग-इस अंश में लेखक बता रहा है कि बाजार को सार्थकता देने वाले, उसकी उपयोगिता सिद्ध करने वाले लोग कौन से हैं।
व्याख्या-लेखक का कहना है कि बाजार का जन्म और विकास समाज की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए हुआ है। बाजार से खरीददारी करते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि कौन-कौन सी वस्तुएँ खरीदी जानी हैं। घर से चलते समय जो व्यक्ति ‘क्या खरीदना है’, यह निश्चय करके चलता है और व्यर्थ की अनावश्यक वस्तएँ नहीं खरीदता, वही बाजार को सार्थक बनाता है। जो लोग अपने मनीबैग की समर्थता का प्रदर्शन करते हैं।
अपनी क्रय शक्ति के अहंकार में बाजार आते हैं, वे बाजार को नकारात्मक छवि प्रदान करते हैं। उनके इस व्यवहार का नतीजा होता है कि बाजार ग्राहक पर हावी ही हो जाता है। उसकी विनाशक शक्ति, शोषण की ताकत और धनहीनों पर व्यंग्य-प्रहार करने की शक्तियाँ बढ़ जाती हैं। धम के घमण्ड में डूबे ऐसे लोग न तो बाजार से कोई लाभ उठा पाते हैं और न बाजार की सार्थकता को ही लाभ पहुँचाते हैं।
लेखक कहता है कि व्यर्थ पैसा बहाने वाले लोगों के कारण ही बाजार ठगी, लूट और शोषण का स्थल बन जाता है। इसके परिणामस्वरूप ग्राहकों को हर दुकानदार जेब खाली करा लेने वाला कपटी व्यक्ति प्रतीत होने लगता है। इससे समाज में परस्पर विश्वास की और सद्भाव की भावना घटती चली जाती है।
प्रश्न 19.
सचिव, शिक्षा विभाग, राजस्थान, जयपुर की ओर से आयुक्त, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को एक अर्द्धशासकीय पत्र लिखिए, जिसमें सरकारी विद्यालय के विद्यार्थियों की नियमित स्वास्थ्य जाँच का आग्रह हो। (4)
अथवा
सचिव ऊर्जा विभाग, शासन सचिवालय, जयपुर की ओर से वर्ष 2022 को उर्जा वर्ष मनाने की सूचना हेतु विज्ञप्ति तैयार कीजिए।
उत्तर :
राजस्थान सरकार
अविनाश तँवर शिक्षा विभाग सचिव शासन सचिवालय, जयपुर
दि० 17 अगस्त, 20..
अशा०प०क्र० 169 (ग) 741
प्रिय श्री हरगोविन्द जी,
आपको विदित है कि राजस्थान के लगभग 80% विद्यार्थी सरकारी विद्यालयों में ग्रामीण क्षेत्र में अध्ययनरत हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति मध्यम अथवा निम्न स्तर की है। इन विद्यार्थी के स्वास्थ्य की नियमित जाँच हेतु विभाग द्वारा नियमित रूप से शिविर लगाए जाते हैं। आप से आग्रह है कि जिला चिकित्सा अधि कारियों को अपनी विशिष्ट सेवाएँ इन शिविरों में देने हेतु पाबन्द करें, ताकि ग्रामीण-जीवन का एवं भावी नागरिकों का स्वास्थ्य उन्नत हो सके।
आशा है आपका सहयोग प्राप्त होगा।
धन्यवाद।
भवदीय
ह
(अविनाश तँवर)
प्रश्न 20.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर सारगर्भित निबंध लिखिए। (शब्द सीमा 300 शब्द) (5)
(1) मेरे सपनों का भारत
(2) भारतीय कृषक
(3) जल और वन : जीवन के आधार
(4) बाल विवाह : सामाजिक अभिशाप
उत्तर :
जल और वन : जीवन के आधार संकेत बिंदु –
- प्रस्तावना,
- जल का जीवन में महत्व,
- जल संरक्षण की आवश्यकता,
- वनों का महत्त्व,
- वनसंरक्षण की आवश्यकता,
- उपसंहार।।
प्रस्तावना – जल जीव – सृष्टि का आधार है। जहाँ जल है वहाँ जीवन है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि जल के बिना जीवन संभव नहीं। यही कारण है कि प्रकृति ने जीवों के लिए पृथ्वी पर जल के विशाल भण्डार उपलब्ध कराए हैं। मनुष्य मनुष्येतर जीव – जन्तु, पेड़ – पौधे सभी अपने अस्तित्व के लिए जल पर निर्भर हैं। ऐसे जीवनाधार जल की सुरक्षा और सदुपयोग मनुष्य मात्र का कर्तव्य है।
किन्तु खेद का विषय है कि भौतिक सुख – सुविधाओं की अन्धी दौड़ में फंसा मनुष्य इस मूल्यवान वस्तु का दुरूपयोग कर रहा है। जल का जीवन में महत्व – जल का मानव – जीवन में पग – पग पर महत्त्व है। हमें पीने के लिए जल चाहिए, नहाने के लिए जल चाहिए, भोजन बनाने और स्वच्छता के लिए जल चाहिए। खेतों की सिंचाई के लिए जल चाहिए, दूध – दही, घी और मिठाई के स्रोत पालतू पशुओं के लिए जल चाहिए।
झोंपड़ी और महल बनाने को, भगवान को मनाने को, पुण्य कमाने को, मनोरंजन और व्यापार को भी जल चाहिए। इसीलिए जल का एक नाम जीवन भी कहा जाता है। जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। संसार में स्थित मरुस्थल जल के अभाव का परिणाम दिखा रहे हैं। वहाँ रहने वाले लोगों का जीवन कितना कष्टदायक हैं।
जल संरक्षण की आवश्यकता – आज जल संरक्षण आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो गया है। जीना है तो जल को बचाना होगा। उसका सही और नियन्त्रित उपयोग करना होगा। जलाशयों को प्रदूषित होने से बचाना होगा।
वनों का महत्त्व – वनों का मानव जीवन में आदिकाल से बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मानव – संस्कृति का शैशवकाल वनों में ही बीता है। वन मनुष्य के लिए प्रकृति की अमूल्य देन है। भारतीय वन तो ऋषि – मुनियों की साधनास्थली और संस्कृति के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। वनों का उपयोगिता की दृष्टि से भी मानव – जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्व है। अनेक उद्योग वन सम्पदा पर ही निर्भर हैं।
फर्नीचर उद्योग, कागज निर्माण, गृह निर्माण, दियासलाई उद्योग आदि वनों पर ही निर्भर हैं। वनों से ही हमें नाना प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं। ईंधन, गोंद, मसाले, पशुचर्म, हाथी दाँत आदि उपयोगी वस्तुएँ भी वनों से ही प्राप्त होती हैं। वन वर्षा को आकर्षित करते हैं, बाढ़ों को नियन्त्रित करते हैं। उपजाऊ मिट्टी का क्षरण और रेगिस्तान का बढ़ना रोकते हैं।
वन – संरक्षण की आवश्यकता – वनों का संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है। सरकारों की
और से अभयारण्य और आरक्षित पार्क आदि बनाकर वनों और वन्य जीवों का संरक्षण किया जाता है। वन विभाग भी वनों की सुरक्षा और वृद्धि के कार्यक्रम चलाता है।
उपसंहार – वन और जल दोनों ही जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। दुर्भाग्य से आज दोनों ही संकटग्रस्त हैं। केवल सरकारी उपायों से ही इनकी सुरक्षा सम्भव नहीं है, जनता को भी इनके संरक्षण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जल और वनों का दुरुपयोग करने वाले उद्योगों पर कठोर नियन्त्रण होना चाहिए।
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