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RBSE Class 12 Hindi Compulsory Model Paper Set 8 with Answers
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पी प्रश्न
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए –
ईर्ष्या का यही अनोखा वरदान है। जिस मनुष्य के हृदय में घर बना लेती है, वह अपने अभावों से दुःखी नहीं होता है बल्कि उन वस्तुओं से दुःख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं। वह अपनी तुलना दूसरों के साथ करता है और इस तुलना में अपने वक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर दंश मारते रहते हैं। दंश के इस दाह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है। मगर, ईर्ष्यालु मनुष्य करे भी तो क्या ? आदत से लाचार होकर उसे यह वेदना भोगनी पड़ती है। एक उपवन को पाकर भगवान को धन्यवाद देते हुए उसका आनन्द नहीं लेना और बराबर इस चिन्ता में निमग्न रहना कि इससे भी बड़ा उपवन क्यों नहीं मिला ! एक ऐसा दोष है जिससे ईष्यालु व्यक्ति का चरित्र और भी भयंकर हो उठता है। अपने अभाव पर दिन-रात सोचते-सोचते वह सृष्टि की प्रक्रिया को भूलकर विनाश में लग जाता है और अपनी उन्नति के लिये उद्यम करना छोड़कर वह दूसरों को हानि पहुँचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्त्तव्य समझने लगता
(i) ईष्यालु व्यक्ति किस आदत के कारण दुःख उठाता है
(अ) अपने अभावों को देखकर
(ब) दूसरों की निन्दा करके
(स) दूसरों की वस्तुओं को देखकर
(द) अपनी वस्तुओं को देखकर।
उत्तर :
(अ) अपने अभावों को देखकर
(ii) ईर्ष्यालु अपनी पास की वस्तुओं से आनन्द नहीं ले पाता, क्योंकि
(अ) उसकी लालसा और अधिक पाने की होती है
(ब) उसके पास वस्तुओं का अभाव रहता है
(स) वह दिन-रात परिश्रम करता है
(द) वह चिन्तामग्न बना रहता है।
उत्तर :
(द) वह चिन्तामग्न बना रहता है।
(iii) अपने अभावों के बारे में निरन्तर सोचने से ईर्ष्यालु व्यक्ति
(अ) आनन्दित होता है
(ब) उद्यम प्रारम्भ करता है
(स) दु:ख को भूल जाता है
(द) दूसरों के विनाश में लग जाता है।
उत्तर :
(स) दु:ख को भूल जाता है
(iv) ‘ईर्ष्यालु’ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है
(अ) सालु
(ब) आलु
(स) ईर्ष्या
(द) लु।
उत्तर :
(ब) आलु
(v) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है
(अ) ईर्ष्या
(ब) निन्दा
(स) दु:ख
(द) ईर्ष्यालु।
उत्तर :
(अ) ईर्ष्या
(vi) वरदान का विपरीतार्थक शब्द लिखिए
(अ) आशीष
(ब) आशीर्वाद
(स) वर
(द) शाप
उत्तर :
(द) शाप
निम्नलिखित अपठित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखिए –
हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार। उषा ने हँस अभिनन्दन किया और पहनाया हीरक हार। जब हम लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक। तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक। विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत।
सप्तस्वर सप्तसिन्धु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत। बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय की शीत। अरुण केतन लेकर निज हाथ वरुण-पथ में हम बढ़े अभीत। सुना है दधीचि का वह त्याग हमारा जातीयता विकास। पुरंदर ने कवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास। विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर घूम। भिक्षु होकर रहते सम्राट दया दिखलाते घर-घर घूम।
यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि। मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि। किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं।
हमारी जन्मभूमि थी यही, कहीं से हम आये थे नहीं।
(vii) हिमालय का आँगन जहाँ सूर्य की पहली किरणें आती हैं, वह है-
(अ) आर्य देश भारत
(ब) वर्मा
(स) एशिया
(द) हिमालय का मैदानी भाग।
उत्तर :
(द) हिमालय का मैदानी भाग।
(viii) ‘सप्त स्वर सप्त सिन्धु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत।” पंक्ति का आशय है-
(अ) सात सागरों में सात स्वरों का मधुर संगीत बज उठा
(ब) सात सागरों ने मिलकर सात स्वरों की उत्पत्ति की
(स) भारतवर्ष में ही सर्वप्रथम संगीत के वेद ‘सामवेद’ की रचना हुई
(द) साम-संगीत सात स्वरों में सागरों के तट पर बजा था।
उत्तर :
(द) साम-संगीत सात स्वरों में सागरों के तट पर बजा था।
(ix) ‘किसी का हमने छीना नहीं प्रकृति का रहा पालना यहीं’ से कवि क्या कहना चाहता है
(अ) भारत आर्यों का आदि देश है, हम बाहर से नहीं आए
(ब) प्रकृति का पालना यहीं पर था कहीं से छीनकर नहीं लाए
(स) प्रकृति यहाँ पलकर विकसित हुई है कहीं बाहर से नहीं आई
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
(ब) प्रकृति का पालना यहीं पर था कहीं से छीनकर नहीं लाए
(x) ‘उजाला’ शब्द का समानार्थक शब्द काव्यांश से चुनिए
(अ) आलोक
(ब) ऊषा
(स) विश्व-लोक
(द) अरुण केतन।
उत्तर :
(ब) ऊषा
(xi) इस पद्यांश का उचित शीर्षक निम्न विकल्पों से चुनिए
(अ) भारतवर्ष के विश्व को अनुदान
(ब) भारत देश
(स) आदि देश भारत
(द) स्वर्ण-भूमि।
उत्तर :
(द) स्वर्ण-भूमि।
(xii) यवन को दिया दया का दान। पंक्ति में अलंकार है
(अ) यमक
(ब) उपमा
(स) अनुप्रास
(द) उत्प्रेक्षा।
उत्तर :
(स) अनुप्रास
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) भाषा के दो प्रकार होते हैं, मौखिक तथा ……………………………………. भाषा।
उत्तर :
लिखित
(ii) मराठी भाषा ……………………………………. लिपि में लिखी जाती है।
उत्तर :
देवनागरी
(iii) “अँधेरा हो गया है’ सेठ ने नौकर से कहा। वाक्य में ……………………………………. शब्द शक्ति है।
उत्तर :
व्यंजना
(iv) जहाँ अभीष्ट अर्थ न तो मुख्यार्थ से प्राप्त हो और नहीं लक्ष्यार्थ से, तो उसे ……………………………………. कहा जाता है।
उत्तर :
व्यंग्यार्थ
(v) किसलय कर स्वागत हेतु हिला करते हैं। पंक्ति में ……………………………………. अलंकार है।
उत्तर :
रूपक
(vi) अपलक नत: नील नयन विशाल। पंक्ति में खुले आकाश पर अपलक विशालनयन का ……………………………………. अतः यहाँ ……………………………………. अलंकार है।
उत्तर :
आरोप, अनुरूपक
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर :एक पंक्ति में दीजिए
(i) निम्न पारिभाषिक शब्दों के अर्थ लिखिए
A. Resignation,
B. Gradation
उत्तर :
A. त्यागपत्र,
B. श्रेणीकरण
(ii) ‘अध्येता वृत्ति’ शब्द के लिए पारिभाषिक शब्द लिखिए।
उत्तर :
Fellowship
(iii) काले मेघा पानी दे’ के आधार पर बताइए कि जीवन में त्याग और दान का महत्त्व क्या है?
उत्तर :
जीवन में मानवता की रक्षा के लिए त्याग और दान का बहुत महत्त्व है।
(iv) फीचर लेखन और समाचार लेखन में एक अंतर बताइए।
उत्तर :
समाचार की भाषा सरल जनता में प्रचलित तथा शैली विवरणात्मक होती है। फीचर की भाषा तथा शैली साहित्यिक होती है।
(v) स्कूल से छुट्टी के बाद लेखक को कितने घंटे पशु चराने होते थे?
उत्तर :
स्कूल से छुट्टी के बाद लेखक को एक घंटा पशु चराने होते थे।
(vi) ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के कथानायक का नाम क्या है?
उत्तर :
सिल्वर वैडिंग कहानी के कथानायक का नाम यशोधर पंत है।
(vi) लेखक का दादा जल्दी कोल्हू क्यों चलाता था?
उत्तर :
लेखक का दादा जल्दी कोल्हू अधिक पैसों के लिए चलाता था।
(vi) यशोधर बाबू अपने बच्चों तथा पत्नी से क्या चाहते थे?
उत्तर :
यशोधर बाबू अपने बच्चों तथा पत्नी से परम्पराओं का पालन चाहते थे।
(ix) खेत का कौन-सा काम समाप्त होने के बाद लेखक ने माँ से पढ़ाई की बात की?
उत्तर :
कोल्हू का काम समाप्त होने के बाद लेखक ने माँ से पढ़ाई की बात की।
(x) धर्मवीर भारती की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
रचनाएँ-
- गुनाहों का देवता,
- सूरज का सातवाँ घोड़ा।
(xi) शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर :
शमशेर बहादुर सिंह का जन्म सन् सन् 1911 ई. में देहरादून में हुआ था।
खण्ड – (ब)
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर :अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 4.
आधुनिक युग में जनसंचार का सबसे पुराना माध्यम क्या है ?
उत्तर :
प्रिंट अर्थात् मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। आधुनिक युग का प्रारम्भ ही मुद्रण या छपाई के आविष्कार से हुआ। यद्यपि मुद्रण का प्रारम्भ चीन में हआ पर आज हम जिस छापेखाने (प्रेस) को देखते हैं इसका श्रेय जर्मनी के गुटेनवर्ग को है।
प्रश्न 5.
इंटरनेट का प्रयोग निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है, सिद्ध कीजिए ?
उत्तर :
भारत में इंटरनेट का प्रयोग लगातार बढ़ता ही जा रहा है। प्रत्येक वर्ष लगभग 50 – 55 प्रतिशत की गति से इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ रही है। इसका कारण है कि इंटरनेट पर एक ही झटके में झुमरी तलैया से लेकर होनोलूलू तक का समाचार पढ़ सकते हैं, संसारभर की चर्चाओं – परिचर्चाओं में भाग ले सकते हैं और अखबारों की पुरानी फाइलें खंगाल सकते हैं।
प्रश्न 6.
पेट्रोलियम उत्पादों यथा पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और एल.पी.जी. आदि के जनजीवन पर प्रभाव पर एक आलेख तैयार कीजिए।
उत्तर :
पेट्रोलियम उत्पाद आज सारे विश्व के जनजीवन की जीवन – रेखा बने हुए हैं। भारत लगभग 70 प्रतिशत पेट्रोलियम बाहर से मँगाता है। हमारी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का एक बड़ा भाग पैट्रोलियम उत्पादों की भेंट चढ़ जाता है। पेट्रोल और डीजल का सबसे अधिक उपयोग वाहनों में होता है।
एल.पी.जी. सार्वजनिक ईंधन बन चुकी है। मजे की बात यह है कि एक ओर पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतों का रुदन होता है और दूसरी ओर वैकल्पिक ऊर्जा और ईंधन की यदा – कदा चर्चाएँ होकर रह जाती हैं। इनके व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन को लेकर कभी कोई प्रभावशाली कदम नहीं उठाया जाता।
प्रश्न 7.
कवि ने कविता की उड़ान और खिलने को चिड़िया और फूलों से किस प्रकार भिन्न बताया है?
उत्तर :
चिड़िया पंखों के सहारे उड़ती है तो कविता कल्पना के सहारे उड़ती है। इस तरह कविता का ‘उड़ने’ से सम्बन्ध यह है कि वह कल्पना के माध्यम से दूर – दूर तक लोगों को प्रभावित कर सकती है। फूल खिलता है। ‘खिलने’ का कविता से सम्बन्ध उसके विकसित होने से है। विकसित होने पर फूल सुगन्ध बिखेरता है। कुछ समय बाद वह मुरझा जाता है, परन्तु कविता अनन्तकाल तक लोगों को आनन्दित करती है।
प्रश्न 8.
कवि ने अपने प्रियतम भूल जाने को दण्ड क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने अपने प्रियतम से माँगा है – ‘सचमुच मुझे दण्ड दो कि भूलूँ मैं, भूलूँ मैं तुम्हें’। स्वयं माँगे गए इस वरदान को कवि दण्ड कहता है क्योंकि कवि जानता है कि वह जो माँग रहा है, वह उसे उसके प्रीतम से वियुक्त कर देगा। प्रियतम का यह वियोग उसे सहन नहीं होगा। यह एक कठोर दण्ड के ही समान होगा।
प्रश्न 9.
“पहलवान की ढोलक नामक कहानी में ‘लुट्टनसिंह’ एक ऐसा पात्र है, जो आरम्भ से लेकर मृत्युपर्यन्त जिजीविषा का अद्भुत दस्तावेज है।” कैसे ? समझाइए।
उत्तर :
लुट्टनसिंह का चरित्र जीवट और जिजीविषा का अद्भुत दस्तावेज है। अनाथ होने पर भी वह आत्मबल से बिना किसी मार्गदर्शक के पहलवानी सीखता है, और अपने क्षेत्र का नामी पहलवान बन जाता है। राज संरक्षण समाप्त होने पर वह गाँव में आकर युवकों को कुश्ती लड़ना सिखाता है, महामारी फैलने पर गाँव वालों को ढोलक बजाकर उससे लड़ने की शक्ति देता है. अपने पत्रों के मरने पर भी हिम्मत नहीं हारता और मृत्युपर्यन्त साहस के साथ जीवन बिताता है।
प्रश्न 10.
लेखक के मन में शिरीष को देखकर हूक क्यों उठती है ?
उत्तर :
लेखक जब – जब शिरीष को देखता है, तब – तब उसके मन में हूक उठती है कि वह अवधूत गाँधी आज कहाँ है ? आज भारत में भ्रष्टाचार और स्वार्थ का बोलबाला है। निर्धन जनता कराह रही है और अनाचार और शोषण का तूफान देश पर से गुजर रहा है। यदि गाँधी जी होते तो देश को ये दुर्दिन नहीं देखने पड़ते।
प्रश्न 11.
‘मंत्री’ नामक अध्यापक की विशेषता ‘जूझ’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर :
‘मंत्री’ नामक अध्यापक गणित पढ़ाते थे। वह आदर्श अध्यापक थे। वे बड़े अनुशासनप्रिय एवं कठोर स्वभाव के थे। सभी छात्र उनसे. डरते थे। लेकिन वे योग्य एवं होशियार बच्चों को हर तरह से प्रोत्साहन देते. थे। दूसरी ओर शरारती बच्चे उनसे ज्यादा उनके घूसे से डरते थे।
प्रश्न 12.
“हमें तो अब इस वर्ल्ड की नहीं, उसकी इस लाइफ’ की नहीं, उसकी चिन्ता करनी है।” यशोधर बाबू के इस कथन को ‘सिल्वर वैडिंग कहानी के आधार पर समझाइए।
उत्तर :
यशोधर अधिक धार्मिक और कर्मकाण्डी नहीं हैं परन्तु किशनदा के आदर्शों को मानते हैं। उनका मानना है कि उम्र बढ़ने के साथ आध्यात्मिक होना भी ठीक है। वह मंदिर जाने, धार्मिक प्रवचन सुनने, गीता प्रेस की पुस्तकें पढ़ने आदि के द्वारा भुलाना चाहते हैं। वे कहते हैं कि अब इस संसार की चिन्ता करने का नहीं, परलोक की जिन्दगी की चिन्ता करने का समय है। वह सोचते हैं – “अब तो माया – मोह के साथ – साथ भगवत् – भजन को भी कुछ स्थान देना होगा।
खण्ड – (स)
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर :लगभग 250 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 13.
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ में कवि ने किस सत्य का उद्घाटन किया है ?
अथवा
फिराक की गजल में प्रकृति को किस तरह चित्रित किया है? लिखिए।
उत्तर :
‘दिन जल्दी – जल्दी ढलता है’ में कवि ने मनुष्य की मनःस्थिति का चित्रण किया है। कवि कहता है कि पथिक को अपने घर पहुँचने की जल्दी है। उसे पता है कि उसकी मंजिल अब अधिक दूर नहीं है, उधर उसे यह भय भी सता रहा है कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए। वह थोड़ा जल्दी चले तो समय से वहाँ पहुँच सकता है। मंजिल के पास होने से वहाँ पहुँचने की जल्दी उसे तेजी से चलने के लिए प्रेरित करती है।
जब मनुष्य जल्दी में होता है और किसी काम को शीघ्र पूरा करने के लिए व्याकुल होता है तो उसे लगता है कि समय जल्दी ही बीता जा रहा है। समय तो अपनी ही गति से बीत रहा है परन्तु अपनी मन:स्थितिवश मनुष्य को यह भ्रम होता है कि समय तेजी से बीत रहा है।
प्रश्न 14.
चाँद सिंह और लुट्टन की कुश्ती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में प्रस्तुत जन-विश्वास क्या देश और समाज की प्रगति में बाधक हैं? आप इस बारे में अपना मत तर्कों सहित पुष्टी कीजिए।
उत्तर :
राजा साहब की अनुमति मिलते ही बाजे बजने लगे। दर्शकों में उत्तेजना फैल गई। मेले के दुकानदार दुकानें बन्द करके कुश्ती देखने आ पहुँचे। ढोल की आवाज़ सुनाई दी। लुट्टन को चाँद सिंह ने कसकर दबा लिया। लुट्टन की गर्दन पर कुहनी डालकर चाँद उसे चित करने की कोशिश में लगा था।
लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटी जा रही थी। सभी चाँद सिंह को शाबाशी दे रहे थे। अचानक ढोल की आवाज़ आई – ‘धाक धिना, तिरकट – तिना’ अर्थात् ‘दाँव काटो बाहर हो जा।’ और लुट्टन ने चाँद की पकड़ से छूटकर उसकी गर्दन पकड़ ली।
उसने चालाकी से दाँव और जोर लगाकर चाँद को जमीन पर दे मारा। तभी ढोल की आवाज ‘धिना – धिना’ अर्थात् ‘चित करो’ सुनकर उसने अंतिम जोर लगाकर चाँद सिंह को चित कर दिया।
प्रश्न 15.
“शब्दों का नशा चढ़ने लगा और ऐसा लगने लगा कि मन में कोई मधुर बाजा बजता रहता है’ ‘जूझ’ कहानी के नायक आनंद का ऐसा कहने का क्या तात्पर्य है ?
अथवा
यशोधर पंत की पीढ़ी की विशेषता यह है कि वे पुराने को अच्छा समझते हैं और वर्तमान से तालमेल नहीं बिठा पाते। ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
मास्टर सौंदलगेकर बड़ी आत्मीयता से उसकी कविता देखते, उसमें अपेक्षित सुधार करते और उसको कविता की भाषा के बारे में समझाते। वे उसको छन्द, अलंकार आदि के बारे में भी बताते। वे शुद्ध लेखन के नियम बताते और शुद्ध लिखना क्यों आवश्यक होता है, यह भी समझाते।
वे उसको कुछ कविता – संग्रह पढ़ने के लिए देते तथा उसी तरीके से कविता लिखने के लिए प्रेरित करते। इन बातों से लेखक सौंदलगेकर के निकट पहुँच गया, उसकी उनसे आत्मीयता हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि उसकी मराठी भाषा दिनोंदिन सुधरने लगी।
कविता लिखते समय वह सतर्क रहकर लय, छंद, अलंकार आदि पर ध्यान देने लगा। उसको शब्दों का प्रयोग करने में आनंद आने लगा। कविता रचने में उसकी रुचि बढ़ गई और उसे ऐसा लगने लगा कि उसके मन में कोई मधुर बाजा बजा रहा है।
प्रश्न 16.
गजानन माधव मुक्तिबोध’ का कवि-परिचय लिखिए।
अथवा
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का लेखक-परिचय लिखिए।
उत्तर :
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का जन्म 4 मार्च, सन् 1921, औराही हिंगना (जिला पूर्णिया अब अररिया) बिहार में हुआ था। आपका निधन 11 अप्रैल, सन् 1977 में पटना में हुआ था। हिन्दी साहित्य में आंचलिक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु का जीवन उतार – चढ़ावों एवं संघर्षों से भरा हुआ था। साहित्य के अलावा विभिन्न राजनैतिक एवं सामाजिक आंदोलनों में भी उन्होंने सक्रिय भागीदारी की।
उनकी यह भागीदारी एक ओर देश के निर्माण में सक्रिय रही तो दूसरी ओर रचनात्मक साहित्य को नया तेवर देने में सहायक रही। प्रमुख रचनाएँ – मैला आँचल, परती परिकथा, दीर्घतपा, जुलूस, कितने चौराहे (उपन्यास); ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी की धूप (कहानी – संग्रह); ऋणजल धनजल, वनतुलसी की गंध, श्रुत – अश्रुत पूर्व (संस्मरण); नेपाली क्रांति कथा (रिपोर्ताज) तथा रेणु रचनावली (पाँच खंडों में समग्र)। सन् 1954 में उनका बहुचर्चित आंचलिक उपन्यास मैला आँचल प्रकाशित हुआ जिसने हिन्दी उपन्यास को एक नयी दिशा दी।
खण्ड-(द)
प्रश्न 17.
निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक-ठाक
पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत !
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा
“क्या तुमने भाषा को
सहुलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?
अथवा
फिर हम परदे पर दिखलाएँगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
(बस थोड़ी ही कसर रह गई)
धन्यवाद।
उत्तर :
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। इस अंश में कवि कहना चाहता है कि भाव को जोर – जबरदस्ती से कठिन भाषा में ठोंक देने से वह प्रभावहीन हो जाता है। सरल भाषा में भी मार्मिक भाव प्रकाशित किए जा सकते हैं।
व्याख्या – कवि कहता है कि जब वह चमत्कारपूर्ण भाषा का प्रयोग बलपूर्वक करके भी अपने सरल मनोभावों को व्यक्त नहीं कर पाया तो निराश होकर उसने भावों को उसी क्लिष्ट भाषा में भर दिया। उसका यह कार्य ऐसा ही था जैसे कि कोई पेंच की चूड़ी मर जाने पर उसे कील की तरह हथौड़े से ठोंक दे।
इससे वह पेंच ऊपर से तो ठीक लगता है परन्तु अन्दर से उसकी पकड़ में मजबूती तथा कसाव नहीं होता। ठीक इसी प्रकार क्लिष्ट भावहीन भाषा में व्यक्त मनोभावों में सौन्दर्य, आकर्षण तथा पाठक को प्रभावित करने की शक्ति नहीं होती।
अपनी असफलता पर कवि निराश था और बेचैन होकर बार – बार पसीना पोंछ रहा था। यह देखकर उसके मन के भाव किसी शरारती बच्चे की तरह उसे छेड़ने लगे। उन्होंने कवि से पूछा कि क्या वह सरल भावों की व्यंजना के लिए सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग नहीं सीख पाया है?
प्रश्न 18.
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (2 + 4 = 6)
शिरीष तरु सचमुच पक्के अवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरंगें जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना इतना सरस वह कैसे बना रहता है ? क्या ये बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू, अपने आप में सत्य नहीं हैं ? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है ? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों, मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गाँधी भी वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब तब हूक उठती है- हाय, वह अवधूत आज कहाँ है।
अथवा
सफिया ने हैंडबैग मेज़ पर रख दिया और नमक की पुड़िया निकालकर उनके सामने रख दी और फिर आहिस्ता-आहिस्ता रुक-रुक कर उनको सब कुछ बता दिया। उन्होंने पुड़िया को धीरे से अपनी तरफ सरकाना शुरू किया। जब सफिया की बात खत्म हो गई तब उन्होंने पुड़िया को दोनों हाथ में उठाया, अच्छी तरह लपेटा और खुद सफिया के बैग में रख दिया। बैग सफ़िया को देते हुए बोले, “मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।” वह चलने लगी तो वे भी खड़े हो गए और कहने लगे, “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।”
सफ़िया कस्टम के जंगले से निकलकर दूसरे प्लेटफार्म पर आ गई और वे वहीं खड़े रहे।
उत्तर :
संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग – 2’ में संकलित पाठ ‘शिरीष के फूल’ से लिया गया है। इसके लेखक ‘श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी’ हैं।
प्रसंग – इस गद्यांश में लेखक ने गाँधी जी को भी एक अनासक्त नायक के रूप में प्रस्तुत किया है।
व्याख्या – लेखक शिरीष के अनासक्त भाव से बहुत प्रभावित है। उसे शिरीष एक पक्के अवधूत के समान लगता है। उसको देखते ही लेखक के हृदय में भी ऊर्ध्वमखी तरंगें उठने लगती हैं जो उसके मन को सुख – दुख से मुक्त करके ऊपर की ओर ले जाती हैं। यदि शिरीष अनासक्त, अवधूत नहीं है तो ऐसी चमचमाती धूप और गर्मी में भी वह इतना हरा – भरा कैसे बना रहता है।
धूप, वर्षा, आँधी, लू भी अपने आप में सत्य हैं, किन्तु शिरीष इनसे अप्रभावित रहता है। लेखक कहता है कि भारत में विभाजन के समय जो अमानवीय कृत्य देखने में आए, जो भयंकर मार – काट हुई, हजारों निर्दोषों के घर जला दिए गए और भयंकर रक्तपात हुआ, क्या ऐसे हृदय को झकझोर देने वाले वातावरण में भी कोई मनुष्य स्थिर और अनासक्त रह सकता था?
प्राकृतिक उत्पातों के बीच शिरीष रहा है और देश के दारुण दृश्यों के बीच एक वृद्ध व्यक्ति भी रह सका था। लेखक कहता है ऐसा कैसे संभव हो सका? लेखक के अनुसार शिरीष का फूल भी अवधूत है क्योंकि वह अत्यन्त विपरीत परिस्थितियों के बीच भी शांत भाव से रस खींचते हुए कोमल और कठोर बना रह सका है। गाँधी जी भी परिस्थितियों के बीच से अपना लक्ष्य रस प्राप्त करते हुए कभी अत्यन्त कोमल और कभी अत्यन्त कठोर बने रह सके थे।
लेखक जब – जब भी शिरीष की ओर देखता है तभी – तभी उसके मन में एक मूक वेदना – सी उठती है और वह अपने आपसे पूछने लगता है कि वह अवधूत – गाँधी कहाँ हैं। यदि वे आज होते तो देश में धर्म, संप्रदाय और राजनीति के नाम पर अमानवीय घटनाएँ न घट रही होती।
प्रश्न 19.
एक अर्द्धशासकीय पत्र, शासन सचिव, शिक्षा विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा आयुक्त, माध्यमिक शिक्षा, राजस्थान, बीकानेर को लिखकर विद्यालयों में शैक्षणिक वातावरण निर्माण हेतु ध्यान आकृष्ट किया जाए।
अथवा
आयुक्त, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, विभाग, जयपुर की ओर से सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति हेतु एक निविदा तैयार कीजिए।
उत्तर :
राजस्थान सरकार
विजय जैन
शासन सचिव
शिक्षा विभाग
शासन सचिवालय, जयपुर,
दि० 6 जुलाई, 20_ _
अशा०प०क्र० 114 (स)/सा/12 – 14
प्रिय वर्मा जी,
राजस्थान के सरकारी माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय शिक्षा के आधारभूत केन्द्र हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्र के अधिकतर विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। अतः शैक्षणिक वातावरण निरंतर बनाये रखने के लिए विषया यापकों की नियुक्ति, रिक्त पदों पर समायोजन द्वारा शिक्षण, समयबद्ध कार्य – योजना एवं शैक्षणिक कैलेण्डर अनुसार समस्त गतिविधि याँ संचालित की जानी चाहिए। इससे उत्तम व गुणवत्तापरक वातावरण निर्मित होगा। आशा है आप अपनी श्रेष्ठ भूमिका से इस पुनीत कार्य में सफल होंगे।
धन्यवाद।
भवदीय
है
(विजय जैन)
सेवा में,
श्री संजय वर्मा
आयुक्त, मा०शि०राजस्थान,
बीकानेर।
प्रश्न 20.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर सारगर्भित निबंध लिखिए। (शब्द सीमा 300 शब्द) 5
(1) शहरीकरण का दुष्प्रभाव
(2) समाज में नारी का महत्व
(3) बढ़ता भौतिक विज्ञान : घटते मानव य मूल्य
(4) राजस्थान के लोकगीत
उत्तर :
बढ़ता भौतिक विज्ञान : घटते मानवीय मूल्य रूपरेखा –
- प्रस्तावना,
- भौतिकवादी विचारधारा एवं मानवीय मूल्य,
- भौतिक विज्ञान और मनुष्य,
- मानवीय मूल्यों का ह्रास,
- उपसंहार।
प्रस्तावना – धर्म ही वह विशिष्ट गुण है जो मनुष्य को पशु से भिन्न सिद्ध करता है। धर्म का अर्थ है – मानवीय कर्तव्यों का बोध और उनको जीवन में धारण करना। अतः हमारे यहाँ धर्म का अर्थ कोई उपासना – प्रणाली नहीं, अपितु सत्य, करुणा, उपकार, प्रेम, मैत्री, उदारता, क्षमा आदि मानवीय मूल्यों का धारण किया जाना है। मानवीय मूल्यों से रहित मनुष्य और पशु में कोई अन्तर नहीं।
भौतिकतावादी विचारधारा एवं मानवीय मूल्य – मनुष्य भी अन्य जीवों की भाँति एक भौतिक प्राणी है। अन्य प्राणियों के समान खाना, पीना, सोना, कामेच्छा – पूर्ति आदि उसकी भी भौतिक आवश्यकताएँ हैं। भौतिक दृष्टि से इन इच्छाओं की पूर्ति ही जीने का उद्देश्य है। यदि इसी को मानव – जीवन का ध्येय माना जाय तो जीवन – मूल्यों की बात करना ही व्यर्थ है।
जिसे मानव समाज सभ्यता और संस्कृति कहकर गर्व से फूला नहीं समाता, उसकी संरचना के आधारस्तम्भ दधीचि, रंतिदेव, सुकरात, ईसा, अशोक, गौतम और गाँधी जैसे महापुरुष हैं, जो मानवीय मूल्यों के ध्वजवाहक हैं।
भौतिक विज्ञान और मनुष्य – आज की दुनियाँ विचित्र नवीन, प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन। प्रायः विज्ञान और मानवीय मूल्यों को एक – दूसरे का विरोधी दर्शाया जाता है। सच तो यह है कि आदिकाल से ही विज्ञान और मानवीय मूल्य मनुष्य के जीवन – साथी रहे हैं। आग जलाने से लेकर परमाणु बम बनाने तक की यात्रा मनुष्य के वैज्ञानिक विकास की कहानी है। विज्ञान की असीमित शक्ति मनुष्य के हाथ में है परन्तु इसी के समानान्तर मनुष्य ने जीवन – मूल्यों का भी विकास किया है।
कोई भी ज्ञान – विज्ञान अपने आप में लाभकारी या हानिकारक नहीं होता। मनुष्य का उसके प्रति दृष्टिकोण ही उसका स्थान निश्चित किया करता है। उन्नीसवीं सदी से विज्ञान की प्रगति में जो तीव्रता आई, वह इक्कीसवीं सदी में अपने चरम विकास की ओर बढ़ रही है। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, मनोरंजन, व्यवसाय, सैन्य सामग्री सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक उपकरणों की धूम मची हुई है। विज्ञान की यह प्रगति यदि विश्व के हितार्थ नहीं है तो विज्ञान का होना ही बेकार है-
लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ? यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञान का श्रम व्यर्थ। मानवीय मूल्यों का ह्रास – सच पूछा जाए तो भौतिक विज्ञान ने मनुष्य के सामने इतनी विलास – सामग्री परोस दी है कि वह उन्हें पाने के लिए अत्यन्त लालायित ही नहीं पागल हो रहा है।
मूल्यवान् वस्त्र, कीमती भोज्य पदार्थ, बढ़िया मकान, टी.वी., फ्रिज, ए.सी., कार और अन्यान्य विलास – व्यवस्थाएँ ही जीवन का लक्ष्य बन गये हैं। भौतिक विज्ञान की इस धूमधाम ने मानवीय मूल्यों को अपूरणीय क्षति पहुँचाई है। आज समाज में व्याप्त आपा – धापी, नैतिक अराजकता और मूल्यों के तिरस्कार के लिए भौतिक विज्ञान ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तरदायी है।
उपसंहार – भौतिकवादी दृष्टि का यह भयावह विस्तार मानव – समाज को संकट के ऐसे बिन्दु की ओर धकेल रहा है, जहाँ से मानव – मंगल की ओर लौट पाना असम्भव हो जाएगा। अतः भौतिक विज्ञान की उपलब्धियों पर मुग्ध मानव – समाज को मानवीय मूल्यों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
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