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RBSE Class 12 Hindi Compulsory Model Paper Set 9 with Answers
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पी प्रश्न
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए –
निर्लिप्त रहकर दूसरों का गला काटने वालों से लिप्त रहकर दूसरों की भलाई करने वाले कहीं अच्छे हैं क्षात्रधर्म ऐकान्तिक नहीं है, उसका सम्बन्ध लोकरक्षा से है। अतः वह जनता के सम्पूर्ण जीवन को स्पर्श करने वाला है। ‘कोई राजा होगा तो अपने घर का होगा’.इससे बढ़कर झूठ बात शायद ही कोई और मिले। झूठे खिताबों के द्वारा वह कभी सच नहीं की जा सकती। क्षात्र जीवन के व्यापकत्व के कारण ही हमारे मुख्य अवतार—राम और कृष्ण क्षत्रिय हैं। कर्म-सौन्दर्य की योजना जितने रूपों में क्षात्र जीवन में सम्भव है, उतने रूपों में और किसी जीवन में नहीं। शक्ति के साथ क्षमा, वैभव के साथ विनय, पराक्रम के साथ रूप-माधुर्य, तेज के साथ कोमलता, सुखभोग के साथ परदुःख-कातरता, प्रताप के साथ कठिन धर्म-पथ का अवलम्बन इत्यादि कर्म-सौन्दर्य के इतने अधिक प्रकार के उत्कर्ष-योग और कहाँ घट सकते हैं ? इस व्यापार युग में, इस वणिग्धर्म-प्रधान युग में, क्षात्रधर्म की चर्चा करना शायद गई बात का रोना समझा जाय पर आधुनिक व्यापार की अन्याय रक्षा भी शस्त्रों द्वारा ही की जाती है। क्षात्रधर्म का उपयोग कहीं नहीं गया है केवल धर्म के साथ उसका असहयोग हो गया है।
(i) हमारे मुख्य अवतार राम और कृष्ण थे
(अ) ब्राह्मण
(ब) क्षत्रिय
(स) वैश्य
(द) शूद्र।
उत्तर :
(ब) क्षत्रिय
(ii) क्षात्रधर्म में कौन-कौन से गुण पाये जाते हैं ?
(अ) शक्ति के साथ क्षमा और तेज के साथ कोमलता
(ब) वैभव के साथ विनय व पराक्रम के साथ रूप की मधुरता
(स) दुःखभोग के साथ परदुःखकातरता व प्रताप के साथ कठिन धर्मपथ का अवलम्बन
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी।
(iii) आज किन गुणों की उपेक्षा हो रही है ?
(अ) धर्म, परोपकार और मानवता की
(ब) धनोपार्जन की
(स) वणिग्धर्म की
(द) व्यापारियों के व्यापार की।
उत्तर :
(अ) धर्म, परोपकार और मानवता की
(iv) ‘वणिग्धर्म’ का समास विग्रह बताइए
(अ) वणिक को धर्म
(ब) वणिक के लिए धर्म
(स) वणिक् का धर्म
(द) अयादि सन्धि।
उत्तर :
(स) वणिक् का धर्म
(v) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा
(अ) वणिग्धर्म की महत्ता
(ब) ब्राह्मण धर्म की महत्ता
(स) व्यापारी वर्ग की महत्ता
(द) क्षात्रधर्म की महत्ता।
उत्तर :
(द) क्षात्रधर्म की महत्ता।
(vi) धर्म के साथ किसका असहयोग हो गया है
(अ) मनुष्य का
(ब) अहिंसा का
(स) सुखभोग का
(द) क्षात्रधर्म का
उत्तर :
(द) क्षात्रधर्म का
निम्नलिखित अपठित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखिए –
ले चल माँझी मझधार मुझे दे-दे अब पतवार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रह कर प्यार मुझे।
क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत्-घन के नर्तन,
मुझे साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन।
मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन।
मैं विपदाओं में मुसकाता तब आशा के दीप लिए,
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान-पतन।
मैं अटका कब, कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल,
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल।
आँधी हो, ओले-वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन।
मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन,
मुझे पथिक कब रोक सके हैं अग्निशिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरन्तर तन-मन में उन्माद लिए,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत् नर्तन।
(vii) कवि पतवार लेकर मझधार में जाना चाहता है, क्योंकि
(अ) वह कठिनाइयों व मुसीबतों से घबराता नहीं है
(ब) उसे नाव चलाना अच्छा लगता है
(स) उसे मझधार में नाव में बैठना प्रिय है
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
(अ) वह कठिनाइयों व मुसीबतों से घबराता नहीं है
(viii) ‘फिर मुझको क्या डरा सकेंगे’ कवि किनसे नहीं डरता है, पंक्ति के आधार बताइए –
(अ) विघ्न-बाधाओं से
(ब) अभिमण्डल से
(स) आरोपों से
(द) लोगों की उचित-अनुचित टीका-टिप्पणी से।
उत्तर :
(द) लोगों की उचित-अनुचित टीका-टिप्पणी से।
(ix) इस पद्यांश में क्या सन्देश छिपा है ?
(अ) निर्भीकतापूर्वक विघ्न-बाधाओं से टक्कर लेते हुए आगे बढ़ना
(ब) सोच-समझकर खतरों को भाँपते हुए आगे बढ़ना
(स) विघ्न-बाधाओं से डरकर चुप बैठना
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
(अ) निर्भीकतापूर्वक विघ्न-बाधाओं से टक्कर लेते हुए आगे बढ़ना
(x) ‘नव आशा के दीप लिए’ में प्रयुक्त अलंकार का नामोल्लेख कीजिए
(अ) यमक
(ब) रूपक
(स) अनुप्रास
(द) श्लेष।
उत्तर :
(ब) रूपक
(xi) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है
(अ) निर्भीकता व निडरता
(ब) माँझी और पतवार
(स) अविराम बढ़ना
(द) जगत की रीति।
उत्तर :
(अ) निर्भीकता व निडरता
(xii) शत्रु शब्द का विपरीतार्थक पद्यांश से छाँटिए
(अ) मित्र
(ब) अरि
(स) सखा
(द) साथी
उत्तर :
(अ) मित्र
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए ……………………………………… का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर :
भाषा
(ii) प्रत्येक भाषा को स्थिर, मानक एवं परिनिष्ठित रूप प्रदान करने के लिए ……………………………………… की आवश्यकता रहती है।
उत्तर :
लिपि
(iii) “यह यमुना पुत्रों का नगर है” वाक्य में ……………………………………… शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है।
उत्तर :
लक्षणा
(iv) लक्ष्यार्थ का बोध कराने वाली शब्द शक्ति को ……………………………………… शब्द शक्ति कहते हैं।
उत्तर :
लक्षणा
(v) ‘मन-सागर, मनसा लहरि, बूढ़े-बहे अनेक।’ पंक्ति में ……………………………………… अलंकार है।
उत्तर :
रूपक
(vi) “जनक बाम दिसि सोह सुनयना, हिमगिरि संग बनी जनु मयना”। उपमेय में ……………………………………… की संभावना व्यक्त की गई है। इसमें ……………………………………… अलंकार है।
उत्तर :
उपमान, उत्प्रेक्षा
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर :एक पंक्ति में दीजिए
(i) निम्न पारिभाषिक शब्दों के अर्थ लिखिए
A. Security,
B. Tribunal
उत्तर :
A. प्रतिभूति,
B. अधिकरण।
(ii) ‘सत्यापन’ शब्द के लिए पारिभाषिक शब्द लिखिए।,
उत्तर :
Verification
(iii) ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ में रात्रि में किन जानवरों की डरावनी आवाजें आती थीं?
उत्तर :
सियारों के क्रन्दन, पेचक की डरावनी आवाज तथा कुत्तों के रोने की आवाजें आती थीं।
(iv) फीचर से आप क्या समझते हो? लिखिए।
उत्तर :
जब कोई लेखक किसी घटना को इस प्रकार सजीव और रोचक शैली में प्रस्तुत करता है कि उसका स्वरूप पूर्णतः स्पष्ट हो जाए तो उसको फीचर कहते हैं।
(v) लेखक की माँ के अनुसार पढ़ाई की बात करने पर लेखक का पिता कैसे गुर्राता है?
उत्तर :
पढ़ाई की बात करने पर लेखक का पिता जंगली सूअर के समान गुर्राता है।
(vi) यशोधर बाबू सर्वप्रथम किस पद पर नियुक्त हुए?
उत्तर :
यशोधर बाबू सर्वप्रथम मैस के रसोइए बॉय सर्विस पद पर नियुक्त हुए।
(vii) लेखक की माँ के अनुसार उसका पति दिनभर किसके पास रहता है?
उत्तर :
लेखक की माँ के अनुसार उसका पति दिनभर रखमाबाई के पास रहता है।
(viii) यशोधर का पूरा नाम क्या है?
उत्तर :
यशोधर बाबू का पूरा नाम यशोधर बाबू पंत (वाई.डी.पंत) है।
(ix) सौंदलगेकर किस विषय का अध्यापक था?
उत्तर :
सौंदलगेकर मराठी का अध्यापक था।
(x) हजारी प्रसाद द्विवेदी की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
रचनाएँ-
- अशोक के फूल
- आमदास का पोथा।
(xi) गजानन माधव मुक्तिबोध’ का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर :
गजानन माधव मुक्तिबोध’ का जन्म 13 नवम्बर, 1917 श्योपुर, ग्वालियर (म.प्र.) में हुआ था।
खण्ड – (ब)
निम्नलिखित लघूत्ततरात्मक प्रश्नों के उत्तर :अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 4.
मुद्रित माध्यम चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम किस प्रकार है ?
उत्तर :
मुद्रित माध्यम चिन्तन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है। इसमें गम्भीर और गूढ़ बातें भी लिख सकते हैं। इसका कारण है कि पाठक साक्षर होता है और उसके पास न केवल समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसमें योग्यता भी होती है।
प्रश्न 5.
शोध (रिसर्च) का काम इंटरनेट ने किस प्रकार आसान कर दिया है ?
उत्तर :
टेलीविजन या अन्य समाचार माध्यमों में समाचारों के बैक ग्राउंडर तैयार करने या किसी समाचार की पृष्ठभूमि तुरन्त जानने के लिए जहाँ पहले अनेक अखबारी कतरनों की फाइलों को ढूँढ़ना पड़ता था वहीं आज क्षणों में ही इंटरनेट पर विश्वभर में से कोई भी बैक ग्राउंड या पृष्ठभूमि को खोजा जा सकता है। इस प्रकार शोध का कार्य इंटरनेट के कारण आसान हो गया है।
प्रश्न 6.
‘निःशुल्क कन्या शिक्षा के परिणाम’ विषय पर एक आलेख तैयार कीजिए।
उत्तर :
कन्या – शिक्षा को निःशुल्क किए जाने से गरीब कन्याओं को भी शिक्षित होने का अवसर प्राप्त हुआ है। इसके सुपरिणाम भी सामने आ रहे हैं। लड़के और लड़कियों के शिक्षा अनुपात में संतुलन आ रहा है। निःशुल्क शिक्षा ने लोगों को कन्याओं को शिक्षा दिलाने को प्रोत्साहित किया है।
फिर भी कुल मिलाकर परिणाम बहुत उत्साहजनक नहीं कहे जा सकते। केवल निःशुल्क शिक्षा ग्रामीण जनता को प्रेरित करने के लिए काफी नहीं है। उनकी कन्याओं के प्रति मनोवृत्ति को भी बदलना होगा।
लड़की और लड़के में भेदभाव दूर कराया जाय तथा दहेज प्रथा पर कठोर नियंत्रण किया जाय तभी कन्याएँ निःशुल्क शिक्षा का पूरा लाभ उठा सकेंगी।
प्रश्न 7.
‘कैमरे में बन्द अपाहिज’ शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
कवि ने इस कविता में एक अपाहिज व्यक्ति की पीड़ा को चित्रित किया है। अपाहिज व्यक्ति की पीड़ा वह है जो उसको दूरदर्शन पर कैमरे के सामने उद्घोषक के प्रश्नों का सामना करने से होती है। कैमरे के सामने अनर्गल प्रश्न पूछे जाने से वह स्वयं को तमाशे की वस्तु समझता है और अपमान का अनुभव करता है। अपनी पीड़ा का सार्वजनिक प्रदर्शन उसके लिए अत्यन्त अपमानजनक है। इस प्रकार कविता का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है।
प्रश्न 8.
‘चाँद का टुकड़ा’ किसे कहा गया है? शायर ने उसके बारे में क्या बताया है?
उत्तर :
‘चाँद का टुकड़ा’ सुन्दर बच्चे को कहा गया है। शायर ने बताया है कि माँ अपने सुन्दर बच्चे को घर के आँगन में अपनी गोद में लेकर खड़ी है तथा अपने हाथों में लेकर झूला झुला रही है। वह उसे बार – बार हवा में उछाल देती है। इससे बच्चा खिलखिलाकर हँस पड़ता है। उसकी हँसी चारों ओर गूंज उठती है।
प्रश्न 9.
नमक की पुड़िया ले जाने के सम्बन्ध में सफ़िया के मन में क्या द्वन्द्व था ?
उत्तर :
सफ़िया का मन इस सम्बन्ध में द्वन्द्व में पड़ा हुआ था कि वह नमक को कैसे ले जाए? वह नमक को चोरी – छिपे ले जाना नहीं चाहती थी और दिखाकर ले जाने में रोके जाने का डर था। उसने अंत में यह निश्चय किया कि प्रेम की यह भेंट चोरी से नहीं जाएगी। अतः उसने नमक की पुड़िया के बारे में अधिकारियों को बता दिया। अधिकारियों ने भी प्रेम की इस भेंट को ले जाने से नहीं रोका।
प्रश्न 10.
द्विवेदी जी ने ‘शिरीष के फूल’ पाठ में शिरीष के माध्यम से क्या संदेश दिया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘शिरीष के फूल’ पाठ में द्विवेदी जी ने बताया है कि शिरीष भीषण गर्मी और तप्त लू से अप्रभावित रहता है तथा शान्त भाव से सुंदर फूलों की सृष्टि करता है। इस प्रकार शिरीष के माध्यम से द्विवेदी जी यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य को भी जीवन की कठिन और संघर्षपूर्ण स्थिति में व्याकुल और विचलित नहीं होना चाहिए। उसे शान्त रहकर अपने कर्त्तव्य – कर्म करने चाहिए।
प्रश्न 11.
‘जूझ’ के नायक का नाम आनंदा किसने रखा था और क्यों ?
उत्तर :
लेखक का माँ – बाप द्वारा रखा गया नाम ‘जकाते’ था, लेकिन मास्टर ने उसकी पढ़ाई की रुचि देखकर उसका नाम ‘आनंदा’ रख दिया था। कम उम्र के किशोर वसंत पाटील की प्रतिभा से प्रभावित होकर वह स्वयं भी परिश्रम करने लगा और गणित में होशियार हो गया। दोनों मिलकर कक्षा के सभी बच्चों के सवाल जाँचने लगे। अतः उसकी योग्यता और लगन को देख मास्टर ने उसका नाम आनंदा रख दिया था।
प्रश्न 12.
यशोधर बाबू संयुक्त परिवार शैली के पक्षधर थे। कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
यशोधर बाबू पहाड़ी ग्रामीण जीवन के वातावरण में पले – बढ़े थे। जहाँ सभी लोग मिलजुलकर प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवनयापन करते हैं। अतः अपने निजी परिवार के साथ – साथ अन्य नजदीकी पारिवारिक सदस्यों के साथ आत्मीय सम्बन्ध बनाकर रहना वहाँ की आवश्यकता थी।
वे अपनी बहन को निरन्तर पैसे भेजते थे। अपने बीमार जीजा को देखने के लिए जाना चाहते थे। अतः यह सही है कि यशोधर बाबू संयुक्त परिवार शैली के पक्ष पर थे।
खण्ड – (स)
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 13.
‘उषा’ कविता की प्रमुख शिल्पगत विशेषता क्या है ?
अथवा
बच्चा क्या जिद करता है? बच्चे की जिद को माता किस प्रकार पूरा करती है, फिराक गोरखपुरी की रुबाइयों के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
‘उषा’ कविता का कथ्य भोर की पल – पल बदलती प्रकृति का रम्य रूप है। यह बाह्य प्रकृति का चित्रण है। कवि ने इसके लिए बिम्बों का सहारा लिया है। प्रात:कालीन यह दृश्य निरन्तर परिवर्तित हो रहा है। कवि भी नए – नए बिम्ब उपस्थित करके उसका सजीव चित्रण कर रहा है।
सबेरे सूर्योदय से पहले प्रकाश की कमी के कारण आकाश में नीलेपन के साथ कालापन भी मिल गया है। उसी समय उषा के हल्के से लाल रंग की झलक इस पर पड़ रही है। काले – नीले – लाल रंगों के मिलने से बने सुन्दर दृश्य, राख से लीपा हुआ चौका, लाल केसर से धुली काली सिल तथा लाल खड़िया लिपटी स्लेट आदि उपमानों से व्यंजित किया है। ‘उषा’ एक प्रयोगधर्मी कवि की रचना है।
कवि ने भोर की पल – पल बदलती प्रकृति का सजीव चित्र अंकित करने के लिए बिम्ब – योजना को अपनाया है। कवि ने ‘राख से लीपा हुआ चौका’ जो ‘अभी गीला पड़ा है’, ‘लाल केसर से धुली काली सिल’ तथा ‘लाल खड़िया चाक मली हुई स्लेट’ आदि बिम्बों के द्वारा भोर के सौन्दर्य को व्यक्त किया है।
प्रश्न 14.
‘बाजार-दर्शन’ पाठ में जैनेन्द्र ने मन की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
अथवा
‘काले मेघा पानी दे’ के आधार पर समझाइए कि लेखक ने भारतीयों के अंग्रेजों से पिछड़ने व उनका गुलाम बनने के क्या करण बताए हैं?
उत्तर :
लेखक ने मन.के तीन रूपों की चर्चा की है खाली मन, भरा मन और बन्द मन। इनकी विशेषताएँ निम्नवत् बताई गई हैंखाली मन – जब मनुष्य को यह पता नहीं होता कि उसको किस वस्तु की आवश्यकता है और इस दशा में वह बाज़ार जाता है तो इसको खाली मन कहा गया है।
भरा मन – यह वह अवस्था है जब मन में यह ठीक प्रकार पता हो कि बाजार जाने पर उसको अपनी ज़रूरत की कौन – सी चीजें खरीदनी हैं। बन्द मन – संसार के आकर्षण, इच्छा, तृष्णा आदि के प्रति मन को बलात् रोकना मन को बन्द करना है। जब मन का दमन होने से उसमें इच्छाएँ उठना बन्द हो जाती हैं तो इसे बन्द मन कहा गया है।
प्रश्न 15.
यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं, ऐसा क्यों ?
अथवा
‘जूझ’ कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष की प्रेरक कथा है। इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
यशोधर बाबू अल्मोड़ा के रहने वाले पहाड़ी व्यक्ति थे जो कि कुमाऊँनी संस्कृति में रचे – पचे थे; उनकी पत्नी अपने मूल संस्कारों में किसी भी तरह आधुनिक नहीं थी। लेकिन अपने बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी के कारण उन्होंने आधुनिक जीवन अपना लिया था।
वह समय के साथ ढलने में सफल हुईं। किशनदा की परंपरा – कुमाऊँनी संस्कृति को विरासत मानकर यशोधर बाबू ने सदैव अपनी पत्नी और बच्चों से उसका पालन करने का आग्रह किया लेकिन उनकी एक नहीं चली। यशोधर बाबू आधुनिक संस्कृति को स्वयं नहीं मानते थे पर उसका विरोध भी नहीं करते थे। इस प्रकार यशोधर बाबू। मध्यवर्गीय संस्कारों के संवाहक होने के कारण स्वयं तो आधुनिक नहीं बन पाये, जबकि।
उनकी पत्नी ने आधुनिक जीवन अपना लिया। वह होठों पर लाली लगाती, बाँहरहित ब्लाउज पहनती और वैडिंग पार्टी में बढ़ – चढ़कर भाग लेती थी। यशोधर बाबू वह मन्दिर जाते थे, प्रवचन सुनते थे और गीता प्रेस, गोरखपुर की पुस्तकें पढ़ते थे, अपने घर पर आयोजित सिल्वर वैडिंग पार्टी में स्वयं भाग नहीं लिया यह सब उनके आधुनिक न बनने के लक्षण हैं।
प्रश्न 16.
रघुवीर सहाय का कवि परिचय लिखिए।
अथवा
रजिया सज्जाद जहीर का लेखिका परिचय लिखिए।
उत्तर :
लेखिका रज़िया सज्जाद ज़हीर का जन्म 15 फरवरी, सन् 1917, अजमेर (राजस्थान) में हुआ था। रजिया सज्जाद जहीर मूलतः उर्दू की कथाकार हैं। उन्होंने बी.ए. तक की शिक्षा घर पर रहकर ही प्राप्त की। विवाह के बाद उन्होंने इलाहाबाद से उर्दू में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1947 में वे अजमेर से लखनऊ आईं और वहाँ करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज में पढ़ाने लगी। सन् 1965 में उनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई। आपका निधन – 18 दिसम्बर, सन् 1979 में हुआ था।
आधुनिक उर्दू कथा – साहित्य में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों लिखे हैं। उर्दू में बाल – साहित्य की रचना भी की है। मौलिक सर्जन के साथ – साथ उन्होंने कई अन्य भाषाओं से उर्दू में कुछ पुस्तकों के अनुवाद भी किए हैं।
रजिया जी की भाषा सहज, सरल और मुहावरेदार है। उनकी कुछ कहानियाँ देवनागरी में भी लिप्यांतरित हो चुकी हैं। प्रमुख रचनाएँ – जर्द गुलाब (उर्दू कहानी संग्रह) सम्मान – सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, उर्दू अकादेमी, उत्तरप्रदेश, अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड।
खण्ड- (द)
प्रश्न 17.
निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (2 + 4 = 6)
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना मैं पेंच को खोलने के बजाए उसे बेतरह कसता चला जा रहा था क्योंकि इस करतब पर मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी तमाशबीनों की शाबासी और वाह वाह।
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था ज़ोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई और वह भाषा में बेकार घूमने लगी !
अथवा
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं ये कीमत भी अदा करे हैं हम बद्रसस्ती-ए-हीशो-खाम तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी होते हैं।
उत्तर :
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। इस अंश में कवि क्लिष्ट शब्दों की कविता में अनुपयोगिता बता रहा है।
व्याख्या – कवि कहता है कि उसने सीधी – सादी बात को व्यक्त करने के लिए आकर्षक और कठिन भाषा का प्रयोग करने की भूल की। इससे कविता में निहित भाव अस्पष्ट हो गया। कवि ने इस कठिन समस्या पर धैर्यपूर्वक सोच – विचार नहीं किया। बजाय इसके कि वह ‘बात’ पर भाषा के कसाब को ढीला करता, उसे सरल बनाता; वह उसे और अधिक कसता जा रहा था।
कवि के इस प्रयास पर तमाशा देखने वाले लोग उसकी प्रशंसा और वाह – वाही कर रहे थे। इस शाबाशी से भ्रमित कवि भाषा के पेंच को और कसता जा रहा था। परिणाम यह हुआ कि कथन उसी प्रकार निष्प्रभावी हो गया जिस प्रकार पेंच को जबरदस्ती कसने पर उसकी चूड़ी मर जाती है और वह कसने के स्थान पर बेकार ही घूमने लगता है।
प्रश्न 18.
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (2 + 4 = 6)
एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है। दुःख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस खींचता है। जरूर खींचता होगा। नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल तंतुजाल और ऐसे सुकुमार केसर को कैसे उगा सकता था ? अवधूतों के मुँह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर बहुत कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और बेपरवा, पर सरस और मादक।
अथवा
देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे।
उत्तर :
संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग – 2’ में संकलित पाठ ‘शिरीष के फूल’ से लिया गया है। इसके लेखक ‘श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी’ हैं। प्रसंग – इस अंश में लेखक शिरीष के फूल को एक अलमस्त अवधूत के समान बता रहा हैं।
व्याख्या – लेखक को कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि शिरीष एक निराला ही अवधूत है। जैसे अवधूत सदा हर देश और काल में एकरस और आत्मलीन रहता है उसी तरह यह शिरीष भी किसी भी स्थान पर हो, कठिन – से – कठिन समय से गुजर रहा हो, अपने आप में ही मस्त – सा दिखाई देता है। शिरीष सुख में या दुख में कभी हार नहीं मानता। उसे न किसी से कुछ लेना है और न किसी को कुछ देना है।
भयंकर ग्रीष्म ऋतु में जब धरती और आकाश सूर्य ताप से जले जाते हैं तब भी ये श्रीमान (शिरीष) न जाने कहाँ से अपने को उत्फुल्ल बनाए रखने को रस खींचते रहते हैं। अपने आस – पास के वातावरण से कुछ लेना – देना नहीं। यह तो आठों पहर अपनी मस्ती में डूबे रहते हैं। किसी वनस्पति विज्ञानी ने लेखक को बताया था कि शिरीष उस श्रेणी का वृक्ष है जो वायुमंडल से अपने लिए सीधे ही जीवन – रस प्राप्त कर सकते हैं।
लेखक सोचता है कि अवश्य ही यह बात सच है। शिरीष वायुमंडल से रस अवश्य ही खींचता होगा। यदि ऐसा न होता तो भयंकर लुएँ चलने पर भी यह अति कोमल तंतुओं को और ऐसे पराग को कैसे उत्पन्न कर सकता था। लेखक को ध्यान आता है शिरीष जैसे ही अलमस्त अवधूतों ने ही संसार की मधुरतम रचनाएँ सृजित की हैं। कबीर ऐसे ही अवधूत थे।
वह भी शिरीष की भाँति मस्त और बेपरवाह संत थे लेकिन उसकी रचनाएँ बड़ी रसपूर्ण और मस्त बना देने वाली हुआ करती थीं।
प्रश्न 19.
सचिव, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान, अजमेर की ओर से उच्च माध्यमिक परीक्षा 2022 की पूरक परीक्षाओं की तिथियों की सूचना हेतु एक विज्ञप्ति तैयार कीजिए।
अथवा
उपशासन सचिव, स्वायत्त शासन विभाग, जयपुर की ओर से ‘स्वच्छ नगर-स्वच्छ आवास’ अभियान के लिए एक अधिसूचना तैयार कीजिए।
उत्तर :
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान
अजमेर
क्रमांक – 1120
दिनांक – 20 जून, 20_ _
विज्ञप्ति
उच्च माध्यमिक परीक्षा – 20_ _ की पूरक परीक्षाएँ 7 जुलाई, 2018 से समस्त पंचायत समिति मुख्यालयों पर आयोजित की जायेंगी। परीक्षार्थी अपने प्रवेश पत्र व समय – सारिणी बोर्ड की वेबसाइट से डाउनलोड कर लें। अन्य किसी भी प्रकार की सूचना हेतु संबंधित केन्द्राधीक्षक से संपर्क करें।
(क, ख, ग)
सचिव
प्रश्न 20.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर सारगर्भित निबंध लिखिए। (शब्द सीमा 300 शब्द)
(1) स्वच्छ भारत अभियान
(2) अनुशासन का महत्व
(3) स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार
(4) बढ़ते अस्पताल : घटता स्वास्थ्य
उत्तर :
बढ़ते अस्पताल : घटता स्वास्थ्य संकेत बिंदु –
- प्रस्तावना,
- अस्वस्थता के कारण,
- स्वास्थ्य – सुविधाओं की भूमिका,
- चिकित्सा पर निर्भरता का परिणाम,
- उपसंहार।
प्रस्तावना – ईश्वर या प्रकृति ने मनुष्य को दवाओं के साथ पैदा नहीं किया। दवाएँ आदमी ने बनायीं। दवाओं की आवश्यकता अस्वस्थ होने पर पड़ी। स्वाभाविक और मुक्त जीवन बिताने वाले पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि को देखा जाये तो इन प्राणियों ने किसी चिकित्सा – प्रणाली की खोज नहीं की। न कोई अस्पताल ही खोले, पर वे मनुष्य से अधिक स्वस्थ हैं, अपनी पूरी आयु तक जीते हैं।
इसका सीधा – सा अर्थ यही है कि केवल चिकित्सा की सुविधाएँ बढ़ने से मनुष्यों का स्वस्थ रहना सम्भव नहीं है। आज जितने अस्पताल बढ़ते जा रहे हैं उतने ही रोग भी बढ़ते जा रहे हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिए क्या उपाय होने चाहिए, इस पर विचार करना आवश्यक है।
अस्वस्थता के कारण – वातावरण का प्रदूषण, अनियमित दिनचर्या, विषम जलवायु, संक्रमण, असन्तुलित भोजन, कुपोषण, अनियन्त्रित आचरण तथा स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता आदि अस्वस्थता के प्रमुख कारण हैं। यह बात कोविड – 19 महामारी के दौरान सही साबित हुई। स्वास्थ्य का सम्बन्ध तन और मन दोनों से है। केवल शरीर का स्वस्थ होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि मन का स्वस्थ होना भी परम आवश्यक है।
किसी भी रूप में शरीर की स्वाभाविक कार्य – प्रणाली में व्यतिक्रम उत्पन्न होना रोग है। रोग से मुक्त होने के लिए औषधि ली जाती है, चिकित्सा कराई जाती है। लेकिन तनिक – तनिक – सी बातों पर दवाओं का सेवन करना लाभ के बजाय हानि पहुँचाता है।
स्वास्थ्य – सुविधाओं की भूमिका – आजकल स्वास्थ्य – सुविधाओं अथवा चिकित्सासुविधाओं का पर्याप्त विस्तार हुआ है। विज्ञान की कृपा से नित्य नयी औषधियाँ सामने आ रही हैं। अस्पताल खुलते जा रहे हैं। डॉक्टरों की संख्या में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है।
किन्तु जैसे – जैसे अस्पताल, और क्लीनिक खुलते जा रहे हैं तथा परीक्षण के नये – नये उपकरण विकसित होते जा रहे है वैसे – वैसे रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। हम समझते थे कि जितने अधिक अस्पताल और डॉक्टर होंगे, लोगों का स्वास्थ्य उतना ही अच्छा होगा। परन्तु यह भ्रम अब टूटता जा रहा है।
चिकित्सा पर निर्भरता का परिणाम – रोगों से बचने की जो क्षमता हमें प्रकृति से प्राप्त हुई थी, बह निरन्तर कम होती जा रही है। औषधियाँ एक रोग को ठीक करती हैं तो दस को पैदा कर रही हैं। उनकी प्रतिक्रियाएँ बड़ी जटिल और दूरगामी हैं।
नये – नये रोग उत्पन्न हो रहे हैं। कैन्सर और एड्स जैसे असाध्य रोग आम होते जा रहे हैं। बच्चे भी मधुमेह तथा रक्तचाप से पीड़ित हैं। इसके साथ ही अस्पतालों में रोगियों का शोषण भी बड़ी समस्या बन चुका हैं। अनावश्यक जाँचें कराना मरीजों के शोषण का लज्जाजनक पहलू है।
उपसंहार – एक कहावत है – इलाज से बचाव अधिक महत्त्वपूर्ण है। रोगों से बचाव कैसे हो? इसके लिए स्वस्थ जीवनचर्या को अपनाना ही एकमात्र उपाय है। उचित आहार – विहार, व्यायाम, स्वच्छता, सावधानी अपनाने से शरीर बलवान, रोग प्रतिरोधी – क्षमतायुक्त और स्वस्थ रहेगा। अस्पतालों पर निर्भरता घटेगी।
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