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RBSE 12th Hindi Sahitya Model Paper Set 1 with Answers

April 7, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 12th Hindi Model Papers Set 1 with Answers provided here.

RBSE Class 12 Hindi Sahitya Model Paper Set 1 with Answers

समय :2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  • परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  • सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
  • जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

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खण्ड – (अ)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 1 = 6)

कार्य-कुशलता का पहला अंग तो यह है कि हम अपने कार्य को समय से निर्धारित कर उसे अच्छी तरह जानें। हम लोगों में अधिकतर लोग कार्य उठा तो लेते हैं, पर उसे अच्छी तरह जानते नहीं और न जानने का यत्न ही करते हैं। जब सफलता नहीं मिलती तो अपने को दोष न देकर हम दूसरे को दोष देते हैं और बार-बार कार्य बदलते हुए बड़े सन्ताप में जीवन व्यतीत करते हैं। छोटे-बड़े सभी कामों में यह देखा जाता है। हम लोगों में से अधिकतर लोग जो काम करते हैं उसमें पूरे तौर से योग्यता और निपुणता प्राप्त करने का यत्न नहीं करते। इसी से हमारा काम पूरा नहीं होता, और हमारे हाथ से सब काम निकलते जाने का यही कारण है कि दूसरे लोग उसी काम को ज्यादा अच्छी तरह करते हैं और हम स्वयं उनके काम को अपने काम से ज्यादा पसन्द करने लगते हैं। यदि हम लोग अपने-अपने काम के एक-एक अंग को अच्छी तरह समझें और उसमें प्रवीण होने का सदा ख्याल रखें तो हम अपनी और अपने काम दोनों की बहुत-कुछ वृद्धि और उन्नति कर सकते हैं। कार्य-कुशलता छोटे और बड़े का भेद नहीं जानती।

जो कार्य-कुशल होगा, वह आरम्भ में कितना ही छोटा क्यों न हो, अवश्य उन्नति करेगा और जो नहीं होगा, वह आरम्भ में चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, अवश्य गिरेगा। इस कारण कार्य-कुशलता का प्रधान अंग परिश्रम है।

(i) कार्यकुशलता का पहला अंग है कार्य का/की
(अ) सोच-समझकर निर्धारण करना
(ब) सभी बातों की जानकारी करना
(स) समय से निर्धारण एवं उसकी गहरी जानकारी
(द) समय पर समापन।
उत्तर :
(स) समय से निर्धारण एवं उसकी गहरी जानकारी

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(ii) किसी कार्य में असफल हो जाने पर अधिकतर लोग
(अ) दूसरों को दोष देते हैं, बार-बार कार्य बदलते हैं
(ब) निराश होकर कार्य को छोड़ देते हैं
(स) काम छोड़कर दूसरा कार्य करने लगते हैं
(द) असफल होकर बैठ जाते हैं।
उत्तर :
(अ) दूसरों को दोष देते हैं, बार-बार कार्य बदलते हैं

(iii) अधिकतर लोग अपने कार्य में असफल क्यों हो जाते हैं?
(अ) वे काम को कठिन समझ छोड़ देते हैं
(ब) स्वयं को उस कार्य को करने के योग्य नहीं पाते
(स) वे पूरे उत्साह से कार्य को नहीं करते
(द) उन्हें कार्य में पूर्ण योग्यता, निपुणता प्राप्त नहीं होती।
उत्तर :
(द) उन्हें कार्य में पूर्ण योग्यता, निपुणता प्राप्त नहीं होती।

(iv) ‘संताप’ शब्द का समानार्थक है
(अ) संघर्ष
(ब) संतोष
(स) दुःख
(द) गरमी।
उत्तर :
(स) दुःख

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(v) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक होगा
(अ) कार्य का महत्त्व
(ब) कौशलता
(स) कार्य-कुशलता
(द) परिश्रम।
उत्तर :
(स) कार्य-कुशलता

(vi) कार्य कुशलता का मुख्य अंग है
(अ) संघर्ष
(ब) सफलता
(स) परिश्रम
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(स) परिश्रम

निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 1 = 6)

चल माँझी मझधार मुझे दे-दे अब पतवार मुझे। इन लहरों के टकराने पर आता रह-रह कर प्यार मुझे। क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत्-घन के नर्तन, मुझे साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन। मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण, शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन। मैं विपदाओं में मुसकाता तब आशा के दीप लिए, फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान-पतन। मैं अटका कब, कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल, रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल।

आँधी हो, ओले-वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन। मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन, मुझे पथिक कब रोक सके हैं अग्निशिखाओं के नर्तन। मैं बढ़ता अविराम निरन्तर तन-मन में उन्माद लिए, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत् नर्तन।

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(i) कवि पतवार लेकर मझधार में जाना चाहता है, क्योंकि
(अ) वह कठिनाइयों व मुसीबतों से घबराता नहीं है
(ब) उसे नाव चलाना अच्छा लगता है
(स) उसे मझधार में न ! में बैठना प्रिय है
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
(अ) वह कठिनाइयों व मुसीबतों से घबराता नहीं है

(ii) ‘फिर मुझको क्या डरा सकेंगे’ कवि किनसे नहीं डरता है, पंक्ति के आधार बताइए
(अ) विघ्न-बाधाओं से।
(ब) अभिमण्डल से
(स) आरोपों से
(द) लोगों की उचित-अनुचित टीका-टिप्पणी से।
उत्तर :
(द) लोगों की उचित-अनुचित टीका-टिप्पणी से।

(iii) इस पद्यांश में क्या सन्देश छिपा है?
(अ) निर्भीकतापूर्वक विघ्न-बाधाओं से टक्कर लेते हुए आगे बढ़ना।
(ब) सोच-समझकर खतरों को भांपते हुए आगे बढ़ना
(स) विघ्न-बाधाओं से डरकर चुप बैठना
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
(अ) निर्भीकतापूर्वक विघ्न-बाधाओं से टक्कर लेते हुए आगे बढ़ना।

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(iv) ‘नव आशा के दीप लिए’ में प्रयुक्त अलंकार का नामोल्लेख कीजिए
(अ) यमक
(ब) रूपक
(स) अनुप्रास
(द) श्लेष।
उत्तर :
(ब) रूपक

(v) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है
(अ) निर्भीकता व निडरता
(ब) माझी और पतवार
(स) अविराम बढ़ना
(द) जगत की रीति।
उत्तर :
(अ) निर्भीकता व निडरता

(vi) पद्यांश में युग की प्राचीर को बताया है
(अ) सबल
(ब) दुर्लंघ्य
(स) ऊँची
(द) निबल
उत्तर :
(द) निबल

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प्रश्न 2.
दिए गए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए (6 x 1 = 6)

(i) …………………………… गुण के कारण रचना में मधुरता उत्पन्न होती है।
उत्तर :
माधुर्य

(ii) मुख्यार्थ में बाधा पहुँचाने वाले कारकों को …………………………… कहते हैं।
उत्तर :
काव्य दोष

(ii) द्रुत विलम्बित छंद के चारों चरण में …………………………… वर्ण होते हैं।
उत्तर :
12-12

(iv) गीतिका तथा हरिगीतिका दोनों मात्रिक …………………………… छन्द हैं।
उत्तर :
सम

(v) काव्य में जहाँ चमत्कार शब्द में स्थित होता है, वहाँ …………………………… होता है।
उत्तर :
शब्दालंकार

(vi) जहाँ काव्यगत चमत्कार शब्द पर नहीं अर्थ पर निर्भर होता है वहाँ …………………………… होता है।
उत्तर :
अर्थालंकार

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द-सीमा 20 शब्द है। (12 x 1 = 12)

(i) अन्योक्ति अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर :
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल। अली कली सों बिंध्यौ आगे कौन हवाल।।

(ii) समासोक्ति अलंकार की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
जहाँ संक्षिप्त उक्ति के द्वारा प्रस्तुत और अप्रस्तुत अर्थ का बोध होता है, वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है।

(iii) मीडिया की भाषा में ‘डेस्क’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
विशेष लेखन के लिए अलग से डेस्क होता है तथा उस डेस्क पर उस विषय के विशेषज्ञ पत्रकार या पत्रकारों का समूह कार्य करता है।

(iv) विशेष रिपोर्ट की भाषा किस तरह की होनी चाहिए?
उत्तर :
विशेष रिपोर्ट की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की होनी चाहिए। रिपोर्ट बहुत विस्तृत और बड़ी हो तो उसे शृंखलाबद्ध करके किश्तों में छापा जाता है।

(v) छह ककार मुख्यतः किस पर आधारित होते हैं?
उत्तर :
छह ककारों में पहले चार ककार- क्या, कौन, कब और कहाँ सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं। अन्तिम दो ककार कैसे और क्यों पहलू पर आधारित होते हैं।

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(vi) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ से परिचय कहाँ हुआ?
उत्तर :
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का बदरी नारायण चौधरी प्रेमघन से परिचय मिर्जापुर में हुआ था।

(vii) घड़ी के दृष्टांत से लेखक ने किस पर व्यंग्य किया है?
उत्तर :
घड़ी के दृष्टांत से लेखक ने धर्म उपदेशकों पर व्यंग्य किया है।

(viii) कविता ‘एक कम’ का वर्ण्य विषय क्या है?
उत्तर :
कविता ‘कम’ में कवि ने भ्रष्टाचारी लोगों की निंदा की है और जिन लोगों को धोखाधड़ी और गलत तरीकों से धन अर्जित किया है, उनकी भी निंदा की है।

(ix) ‘खाली कटोरों में बसन्त का उतरना’ पंक्ति का आशय क्या है?
उत्तर :
‘खाली कटोरों में बसन्त का उतरना’ पंक्ति का आशय भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं।

(x) कविता के प्रमुख घटक कितने होते हैं?
उत्तर :
कविता के प्रमुख घटक सात होते हैं।

(xi) नाटक साहित्य की कैसी विधा है?
उत्तर :
नाटक साहित्य की वह विधा है जिसे पढ़ा, सुना और देखा जा सकता है।

(xi) कहानी क्या है? लिखिए।
उत्तर :
कहानी साहित्य की एक ऐसी विधा है, जो अपने ही सीमित क्षेत्र में पूर्ण, स्वतंत्र एवं प्रभावशाली है।

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खण्ड – (ब)

निर्देश-प्रश्न सं. 04 से 15 तक प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द सीमा 40 शब्द है।

प्रश्न 4.
क्या समाचार लेखन की कोई विशेष शैली होती है? या समाचार कैसे लिखे जाते हैं?
उत्तर :
समाचारपत्रों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक विशेष शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे मुख्य तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले लिखा जाता है। उसके पश्चात् कम महत्त्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी जाती है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि समाचार समाप्त नहीं होता। इसे समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली कहते हैं।

प्रश्न 5.
पत्रकारिता लेखन में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? किन्हीं चार सावधानियों को लिखिए। 2
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • वाक्य छोटे हों।
  • आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हो।
  • लेखन में नीरसता न हो इसके लिए मुहावरे, लोकोक्ति का भी प्रयोग कहीं-कहीं किया जा सकता है।
  • लेखन में शुद्धता के साथ ही विचारों की
  • तारतम्यता भी आवश्यक है।

प्रश्न 6.
लेखक ब्रजमोहन व्यास कौशाम्बी लौटते हुए अपने साथ क्या-क्या लाया?
उत्तर:
लेखक ब्रजमोहन व्यास जहाँ कहीं भी जाते वहाँ से कुछ न कुछ ऐसी सामग्री अवश्य लाते जिसे संग्रहालय में रखा जा सके। कौशाम्बी लौटते समय वे अपने साथ पसोवा गाँव से कुछ बढ़िया मृण्मूर्तियाँ, सिक्के और मनके तो लाए ही, साथ ही 20 सेर वजन वाली चतुर्मुखी शिव की प्रतिमा भी ले आए जो गाँव के बाहर एक पेड़ के नीचे रखी थी।

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प्रश्न 7.
“मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई”-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
देवसेना निराश और दुखी होकर जीवन के उस समय को याद करती है जब उसने स्कन्दगुप्त से प्रेम किया था। उन्हीं क्षणों को याद करते हुए वह कहती है कि मैंने स्कन्दगुप्त से प्रेम किया और उन्हें पाने की चाह मन में पाली, किन्तु यह मेरा भ्रम ही था। मैंने आज जीवन की आकांक्षारूपी पूँजी को भीख की तरह लुटा दिया है। मैं इच्छा रखते हुए भी स्कन्दगुप्त का प्रेम नहीं पा सकी। आज मुझे अपनी इस भूल पर पश्चात्ताप होता है।

प्रश्न 8.
विष्णु खरे अथवा तुलसीदास में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर :
साहित्यिक परिचय-भाव-पक्ष-विष्णु खरे कवि, लेखक और अनुवादक हैं। कवि के रूप में वह जनता की समस्याओं से जुड़े हैं। अपनी कविताओं में अपनी भाषा के माध्यम से अभ्यस्त जड़ताओं और अमानवीय स्थितियों के विरुद्ध एक शक्तिशाली नैतिक विरोध को अभिव्यक्ति प्रदान की है। कला-पक्ष-विष्णु खरे की भाषा सशक्त और वर्ण्य-विषय के अनुकूल है। आपने तत्सम शब्दों के साथ ही बोलचाल के प्रचलित शब्दों को अपनाया है। आपने मुक्त छन्द को अपनाया है तथा जो अलंकार स्वाभाविक रूप से आ गये हैं, उनको अपनी कविताओं में स्थान दिया है।

प्रमुख कृतियाँ-

  • मरु प्रदेश और अन्य कविताएँ (1960) – टी. एस. इलियट की कविताओं का अनुवाद
  • एक गैर रूमानी समय में (1970) – कविता संग्रह
  • खुद अपनी आँख से (1978) – कविता संग्रह
  • सबकी आवाज के परदे में (1994) – कविता संग्रह
  • पिछला बाकी – कविता संग्रह।

प्रश्न 9.
संभव की कौन-सी मनोकामना परिणाम लेकर आयी थी? जिस परिणाम से वह बहत खश हो गया था। 2
उत्तर :
पारो को अपने सम्मुख देख, संभव के चेहरे पर प्रसन्नता का भाव उत्पन्न हो गया। वह कुछ देर पहले ही इसी लड़की को पाने और देखने की चाहत में मंसा देवी के मंदिर में धागा बाँध कर आया था। वह मन्नत माँगकर मंदिर से बाहर ही निकला था कि वह लड़की देवी के मंदिर के बाहर बैठी हुई मिल गई थी। वह पारो को देख प्रसन्न हो उठा। उसको लग रहा था कि आज उसकी मनोकामना खूबसूरत परिणाम लेकर सामने आई थी।

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प्रश्न 10.
पंचवटी की महिमा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
पंचवटी प्राकृतिक रूप से सुन्दर स्थान है जहाँ ऋषि-मुनि, तपस्वी, साधु-संत रहते हैं। जो भी यहाँ निवास करता है वह इन साधु-सन्तों का सत्संग करके जीवन्मुक्त हो जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुषमा अपूर्व है। यह गुणों में भगवान शंकर के समान है। जो भी यहाँ रहता है उसके दुख अनायास मिट जाते हैं। यहाँ रहने वाले को अनायास ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 11.
असगर वजाहत अथवा फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ में से किसी एक साहित्यकार का साहित्यिक परिचय लिखिए। 2
उत्तर:
साहित्यिक परिचय रेणु जी हिन्दी के प्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। आपने अपनी रचनाओं द्वारा उपन्यास – सम्राट प्रेमचन्द की विरासत को आगे बढ़ाया है। आपकी रचनाओं की विषय – वस्तु अंचल विशेष के ग्राम्य जीवन पर आधारित है।

भाषा – रेणु जी की भाषा अत्यन्त सशक्त तथा संवेदनशील है। उसमें सम्प्रेषणीयता तथा भावानुकूलता है। उनकी भाषा में आंचलिक शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग सफलतापूर्वक हुआ है।

शैली – कथाकार होने के कारण रेणु जी ने वर्णनात्मक शैली को आधार बनाया है। कुछ स्थलों पर उन्होंने आत्मकथन शैली को भी अपनाया है। इसके साथ ही यत्र – तत्र व्यंग्य शैली का प्रयोग भी दर्शनीय है। इस शैली का पैनापन गहरा प्रहार करने वाला है। अभावों से पीड़ित जन की बेबसी और कष्टों के प्रति गहरी संवेदना के कारण ही वह आधुनिकता से दूर ग्रामीण समाज का सशक्त, प्राणवान् और यथार्थ चित्र प्रस्तुत कर सके हैं। उनकी रचनाओं में संवाद शैली का प्रयोग भी दर्शनीय है।

कृतियाँ – रेणु जी का प्रसिद्ध रचनाएँ निम्नलिखित हैं – उपन्यास – मैला आँचल तथा परती परिकथा। कहानी – संग्रह ठुमरी, अग्निखोर, आदिम रात्रि की महक, तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम (इस कहानी पर फिल्म भी बन चुकी है)।

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प्रश्न 12.
सूरदास पोटली को खोकर किस प्रकार पछता रहा था?
उत्तर:
रुपयों की पोटली के जल जाने से सूरदास को बहुत दुःख हुआ। उसे खोकर वह बहुत पछता रहा था। वह सोच रहा था कि उसे आग लगने के बारे में पता होता तो वह यहीं पर सोता। यदि किसी के द्वारा आग लगाने की आशंका उसे होती तो वह पोटली पहले से ही निकाल लेता। पाँच सौ रुपये से कुछ ऊपर ही थे। न गया जाकर पितरों का पिंडदान कर सका और न मिठुआ की शादी ही कर सका। बहू के हाथ की बनी दो रोटियाँ खाने की साध भी पूरी नहीं हुई।

प्रश्न 13.
‘पर्वतारोहण संस्थान’ से क्या आशय है?
उत्तर :
‘पर्वतारोहण संस्थान’ उस संस्थान को कहते हैं जो पर्वत पर चढ़ने की इच्छा रखने वालों को पर्वत पर चढ़ने की कला सिखाते हैं। इसके लिए इन संस्थानों में पर्वत पर चढ़ने की कला में दक्ष व्यक्ति पर्वत पर चढ़ने की कला सिखाते हैं। इसमें ये लोग पत्तरों, खूटियों, रस्सों, कुलहाड़ी तथा दूसरी चीजों की मदद लेते हैं। अब तो पर्वतारोहण शिक्षा के पाठ्यक्रम में स्थान पा चुका है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में बछेद्री पाल व संतोष यादव का नाम प्रसिद्ध हो चुका है।

प्रश्न 14.
अपना मालवा’ पाठ के आधार पर ‘खाऊ-उजाडू सभ्यता’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
वर्तमान सभ्यता मनुष्य को प्रकृति से दूर ले जा रही है। अमेरिका आदि देशों के विशाल उद्योगों में होने वाला उत्पादन विश्व के अन्य देशों में बिकता है जो वहाँ की आर्थिक तथा सांस्कतिक सभ्यता को नष्ट कर रहा है। इससे पूँजीवादी शोषण बढ़ रहा है तथा लोगों में गरीबी बढ़ रही है। यह सभ्यता लोगों की सुख – शांति को खाए जा रही है और उनकी धरती के सौन्दर्य और उर्वरापन को उजाड़ रही है। यह मानव जाति को भीषण विनाश की ओर धकेल रही है।

प्रश्न 15.
सूरदास रुपयों की थैली को अपना स्वीकार करने को क्यों तैयार नहीं हुआ?
उत्तर :
सूरदास झोपड़ी में आग लगने के बाद रुपयों के लिए अत्यन्त व्याकुल था परन्तु वह यह स्वीकारने को तैयार नहीं था कि भैरों के पास जो रुपयों की थैली है, वह उसकी झोंपड़ी से चुराई गई है। वह जानता था कि रुपयों को अपना मान लेने से उसकी बदनामी होगी। लोग सोचेंगे कि एक अन्धे भिखारी के पास पाँच सौ रुपये कहाँ से आए। अन्धे भिखारी के लिए दरिद्रता इतनी लज्जा की बात न थी, जितना धन – संचय। उसके लिए यह बात पाप करने से कम अपमानजनक नहीं थी।

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खण्ड – (स)

प्रश्न 16.
बाड़ी बहुरिया का संदेश देने में हरगोबिन ने क्या-क्या शारीरिक और मानसिक कष्ट सहे और क्यों? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए। (उत्तर-सीमा 60 शब्द)
अथवा
‘कच्चा चिट्ठा’ के आधार पर प्रयाग संग्रहालय को ‘ब्रजमोहन व्यास’ के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
हरगोबिन ईमानदार एवं दृढ़ – प्रतिज्ञ है। प्रथमतः तो वह बड़ी बहू के संदेश को लेकर बहुत मानसिक उलझन में हो गया। अगर वह संवाद ज्यों का त्यों देगा तो गाँव की बहुत बेइज्जती होगी। संवाद दिए बिना वहाँ से लौटते समय राह खर्च पास में न होने पर भी उसने बड़ी बहू के मायके से राह खर्च नहीं लिया यद्यपि बड़ी बहू के भाई ने राह खर्च के लिए पूछा था। कटिहार तक तो वह टिकट लेकर आ गया पर आगे की यात्रा के लिए पैसे न थे अतः वह बीस कोस पैदल चलकर भूखा – प्यासा अपने गाँव पहुँचा। उसने बिना टिकट रेलयात्रा करना उचित न समझा।

उसके पास बड़ी बहू की माँ जी द्वारा भिजवाया बासमती धान का चूड़ा था पर वह उस अमानत में से कैसे खा सकता था ? भूख, प्यास और थकान से बेहाल होकर वह जब गाँव पहुँचा तो बेहोश हो गया। यह सब उसने गाँव की बड़ी बहू के लिए किया था, क्योंकि वह उनका बहुत आदर करता था।

प्रश्न 17.
‘यह दीप अकेला’ कविता का मूलभाव लिखिए। (उत्तर-सीमा 60 शब्द) 3
अथवा
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘सरोज स्मृति’ की मूल संवेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
दीपक अकेला है। वह दीपों की पंक्ति की अपेक्षा एक लघु इकाई है। फिर भी वह कम्पित नहीं होता। वह अपनी लौ को ऊपर करके गर्व के साथ जलता है। उसका अपना एक महत्त्व है, अपना पृथक् अस्तित्व है। इसलिए अकेलेपन में भी सुशोभित है। उसका जलना सार्थक है। उसका जलना समूह के लिए विशेष महत्त्व रखता है। वह समाज के लिए आत्मत्याग करने को भी तत्पर रहता है। समाज के सम्मुख मानव अत्यन्त लघु है।

दीपक उसी का प्रतीक है। लघु मानव समाज का अंग होकर भी अपना एक विशिष्ट अस्तित्व रखता है। लघु मानव समाज के किस अंग के साथ जुड़े, इसका निर्णय वह स्वयं करता है। उसे बलपूर्वक समाज के किसी वर्ग के साथ जोड़ा नहीं जा सकता। वह स्वतंत्र है। वह अपने कार्यों द्वारा समाज का हित करता है। यही इस कविता का प्रतीकार्थ है।

अज्ञेय प्रयोगवाद के जनक हैं। ‘यह दीप अकेला’ एक प्रयोगवादी कविता है। इस कविता में नये प्रतीक, नये उपमान, नये बिम्ब और नये छन्द का प्रयोग हुआ है। उनकी अभिव्यक्ति भी नवीन है। भाषा में भी नवीनता है। इसलिए कह सकते हैं कि ‘यह दीप अकेला’ एक प्रयोगवादी कविता है।

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प्रश्न 18.
“तो हम सौ लाख बार बनाएँगे।” इस कथन के आलोक में उन जीवन-मूल्यों का उल्लेख कीजिए जो हमें सूरदास से प्राप्त होते हैं? (उत्तर-सीमा 80 शब्द) 4
अथवा
‘पहाड़ों में जीवन अत्यन्त कठिन होता है।” ‘आरोहण’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (उत्तर-सीमा 80 शब्द)4
उत्तर :
‘सूरदास की झोंपड़ी’ का नायक एवं प्रमुख पात्र सूरदास ही है। उसकी झोंपड़ी जला दी जाती है और जीवन – भर की संचित कमाई चोरी हो जाती है। वह निराश, उदास और दुःखी है। मिठुआ के पूछने पर वह अपनी झोंपड़ी को बार – बार बनाने का निश्चय प्रकट लि करता है और कहता है “तो हम सौ लाख बार बनाएँगे।” इस कथन के सन्दर्भ में सूरदास के चरित्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. दृढ़ – निश्चयी – सूरदास भिखारी होते हुए भी दृढ़ – निश्चयी है। उसकी झोंपड़ी को द्वेषवश भैरों जला देता है और रुपये चुरा लेता है। सूरदास बहुत दु:खी है, किन्तु उसमें निश्चय की कमी नहीं है।
  2. बालोचित सरलता – सूरदास में बालोचित सरलता है। झोंपड़ी के जलने पर और रुपयों के न मिलने पर वह दुःखी होकर रोने लगता है। परन्तु घीसू को मिठुआ से यह कहते सुनकर – “खेल में रोते हो” वह एकदम बदल जाता है, उसका पराजयभाव समाप्त हो जाता है।
  3. कर्मठ और उदार – सूरदास कर्मठ है। वह भीख माँगता है, परन्तु अपने कामों में लगा रहता है। द्वेषवश भैरों उसकी झोंपड़ी जला देता है तथा रुपये चुरा लेता है तब भी वह उसके प्रति उदार बना रहता है।
  4. सहनशील – सूरदास सहनशील व्यक्ति र है। झोंपड़ी जलने से उसकी सभी आशाएँ काला और योजनाएँ जल जाती हैं, पर वह सब कुछ – चुपचाप सह लेता है।

खण्ड (द)

प्रश्न 19.
निम्नलिखित पठित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

मैं ने देखा
एक बूँद सहसा
उछली सागर के झाग से:
रंग गई क्षणभर
ढलते सूरज की आग से।
मुझ को दीख गया :
सूने विराट के सम्मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से!
अथवा
तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में वसन्त का उतरना !
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज-रोज एक अनन्त शव
ले जाते हैं कंधे
अँधेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ
उत्तर :
सन्दर्भ – ‘मैं ने देखा, एक बूंद’ कविता प्रयोगवाद के जनक एवं ख्याति प्राप्त कवि सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की कृति ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ से हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अन्तरा भाग – 2’ में संकलित की गई है।

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प्रसंग उपर्युक्त काव्य – पंक्तियों में अज्ञेय ने समुद्र से अलग दीखने वाली बूंद की क्षणभंगुरता का वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि बूंद सागर की लहरों के झाग से उछलकर अलग हुई और पुनः उसी में समा गई। संध्याकालीन सूर्य की किरणें अरुणाभ थीं। वह बूंद भी उन किरणों का सम्पर्क प्राप्त करके लाल हो गई और झिलमिलाने लगी। वह बूंद क्षणिक थी किन्तु का उसकी क्षणभंगुरता निरर्थक नहीं थी। उस बूँद के उछलकर पुनः सागर में विलीन होने के दृश्य को देखकर कवि के मन में एक दार्शनिक भावना जाग्रत होती है कि व्यक्ति बूंद तथा सागर समाज के समान है। जिस प्रकार बूंद – बूंद से सागर बनता है उसी प्रकार व्यक्तियों के समूह से समाज बनता है।

बूंद का सूर्य किरणों से प्रकाशित होकर चमकने और पुनः समुद्र में विलीन होने को देखकर कवि को आत्मबोध होता है कि विराट सत्ता निराकार और अखण्ड है। जीव खण्ड है, कवि को उसमें भी अखण्डता के दर्शन होते हैं। सत्य के दर्शन होते हैं। वह अनुभव करता है कि मानव जीवन के वे क्षण सार्थक हैं जो विराट के साथ विलय होने पर व्यतीत होते हैं।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (1 + 4 = 5)

धर्म के दस लक्षण वह सुना गया, नौ रसों के उदाहरण दे गया। पानी के चार डिग्री के नीचे शीतता में फैल जाने के कारण और उससे मछलियों की प्राणरक्षा को समझा गया, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान दे गया, अभाव को पदार्थ मानने न मानने का शास्त्रार्थ कह गया और इग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम और पेशवाओं का कुर्सीनामा सुना गया। यह पूछा गया कि तू क्या करेगा। बालक ने सीखा सिखाया उत्तर दिया कि मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा। सभा ‘वाह-वाह’ करती सुन रही थी, पिता का हृदय उल्लास से भर रहा था।
अथवा
संग्रह में तो आशातीत सफलता हुई। इतनी संख्या में और इतनी महत्त्वपूर्ण सामग्री आई कि धरते-उठाते नहीं बनता था। लगभग दो हजार पाषाण-मूर्तियाँ, पाँच-छह हजार मृण्मूर्तियाँ, कई हजार चित्र, चौदह हजार हस्तलिखित पुस्तकें, हजारों सिक्के, मनके, मोहरें इत्यादि। इनका प्रदर्शन और संरक्षण कोई हंसी-खेल नहीं है। लोगों की शिकायत थी कि म्युनिसिपैलिटी में इनके लिए स्थान बहुत छोटा है। बात ठीक ही थी।
उत्तर :
संदर्भ प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘सुमिरिनी के मनके’ नामक पाठ के प्रथम खण्ड ‘बालक बच गया’ से ली गई हैं। पंडित चंद्रधर शर्मा का यह पाठ हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अंतरा भाग – 2’ में संकलित है।

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प्रसंग – एक विद्यालय के वार्षिकोत्सव में प्रधानाचार्य अपने बालक की योग्यता का प्रदर्शन कर रहे थे। उस पढ़ाकू बालक से विभिन्न विषयों के प्रश्न पूछे जा रहे थे और वह उनका रटा – रटाया उत्तर दे रहा था और लोग ‘वाह – वाह’ कर रहे थे किन्तु वास्तविकता यह थी कि ऐसा करके उसकी – बाल प्रवृत्तियों का दमन किया गया था।

व्याख्या – बालक से वार्षिकोत्सव में तरह – तरह के प्रश्न पूछे जा रहे थे जिनके रटे – रटाए उत्तर वह दे रहा था। इस प्रकार बालक की प्रतिभा का प्रदर्शन कर उसकी स्वाभाविक प्रवृत्तियों को दबाया जा रहा था। बालक से धर्म के दस लक्षण बताने को कहा गया, उसने रटे हुए लक्षण सुना दिए। पूछने पर नौ रसों के नाम उदाहरण सहित बता दिए। विज्ञान और भूगोल से जुड़े प्रश्नों – शीतता, चंद्रग्रहण आदि के कारण भी उसने सही – सही बताये।

उसने दर्शनशास्त्र के प्रश्नों के सही उत्तर दिए और यह भी बता दिया कि इंग्लैंड के राजा हेनरी आठवें की स्त्रियों के क्या नाम थे और पेशवाओं का कुर्सीनामा भी उसने सुना दिया। उससे यह भी पूछा गया कि तू क्या बनना चाहता है। इसका रटा – रटाया जवाब भी उसने दिया कि मैं जीवन – पर्यन्त लोकसेवा करूँगा।

उसके उत्तर को सुनकर वहाँ उपस्थित लोग वाह – वाह करते हुए उसकी प्रशंसा कर रहे थे तथा पिता का हृदय अपने पुत्र के इस प्रतिभा – प्रदर्शन पर उल्लास से भर रहा था।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 400 शब्दों में सारगर्भित निबंध लिखिए।
(अ) मानव की चिरसंगिनी प्रकृति
(ब) हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
(स) जहर फैलाते शहर
(द) विज्ञान वरदान या अभिशाप
(य) राजस्थान में जल संरक्षण
उत्तर :
(अ) मानव की चिरसंगिनी प्रकृति
प्रस्तावना – भारतीय मनीषियों ने सृष्टि को चेतन जीव और जड़ प्रकृति का संयोग माना है। विज्ञान जीव या जीवन को भी जड़ प्रकृति का ही एक उत्पाद मानता है। उसके अनुसार जीवन कुछ ‘अमीनो एसिड्स’ का विशिष्ट संयोग मात्र है। वैज्ञानिक हर मानवीय संवेदना और व्यवहार की ‘जेनेटिक’ व्याख्या करने में जी – जान से जुटे हुए हैं।

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22 मई, के समाचार – पत्रों में छपा है कि ‘साइन्स’ जर्नल ने एक शोध – पत्र ‘प्रयोगशाला में जीवन की उत्पत्ति’ में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है। जो प्रकृति और मानव के सम्बन्धों का स्पष्ट प्रमाण है। सत्य जो भी हो, किन्तु मानव और प्रकृति के बीच सम्बन्ध को लेकर दार्शनिकों, धार्मिकों और वैज्ञानिकों की राय अधिक भिन्न नहीं है।

प्रकृति और मानव का अटूट सम्बन्ध – मनुष्य इस पृथ्वी नामक ग्रह पर अपने जन्म से लेकर आज तक प्रकृति पर आश्रित रहा है। भले ही अपने विशिष्ट बौद्धिक – क्षमता के बल पर, वह प्रकृति पर शासन करने का अहंकार करता रहे, किन्तु कभी भूकम्प, कभी सुनामी और कभी प्रचण्ड तूफानों के रूप में प्रकृति उसे अपनी सर्वोपरि शक्ति का और उसकी औकात का परिचय कराती आ रही है। प्रसाद ने कहा है कि

प्रकृति रही दुर्जेय, पराजित हम सब थे भूले मद में।
भोले, हाँ तिरते केवल सब विलासिता के नद में।। – कामायनी

वर्तमान स्थिति – आज प्रकृति और मनुष्य के बीच सहयोग के स्थान पर संघर्ष छिड़ा हुआ है। मनुष्य प्रकृति को अपनी आज्ञाकारिणी दासी बनाने पर तुला हुआ है। प्राकृतिक देनों का निर्मम और अविवेकपूर्ण दोहन हो रहा है। जल हो या खनिज पदार्थ, वन हों या पर्वत, भूपृष्ठ हो या अन्तरिक्ष सभी मनुष्य द्वारा प्रकृति के शोषण की कहानी कह रहे हैं।

सुखसुविधाओं की लालसा और औद्योगीकरण के अन्ध – अभियान ने पर्यावरण को प्रदूषित कर डाला है। प्रकृति से युद्ध छेड़ने का यह कुत्सित प्रयास, मनुष्य को आत्महत्या की दिशा में ले जा रहा है।

आदर्श सम्बन्ध का विकास – यह निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य अपने जीवन के लिए प्रकृति पर निर्भर है। संस्कृति, सभ्यता और वैज्ञानिक प्रवृत्ति के कीर्तिस्तम्भ उसने प्रकृति के उदार प्रांगण में स्थापित किये हैं। उसे प्रकृति प्रदत्त सामग्री का प्रयोग धैर्य, विवेक और संयम के साथ करना चाहिए।

प्रकृति के साथ उसके सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण होने चाहिए। यदि उसने प्राकृतिक संसाधनों का अनियन्त्रित दोहन जारी रखा तो वे शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगे। पृथ्वी पर प्रकृति ने उसे जो वैभव उपलब्ध कराया है, वैसा आज तक किसी अन्य ग्रह पर उपस्थित नहीं है। श्रद्धा मनु से कहती है-

एक तुम, यह विस्तृत भूखण्ड प्रकृति वैभव से भरा अमन्द।

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उपसंहार – मनुष्य और प्रकृति के सम्बन्ध को विकृत बनाने में दो बातें प्रधान रही हैं। एक तो जनसंख्या की बेहिसाब वृद्धि और दूसरी मनुष्य की दिनों – दिन बढ़ रही सांस्कृतिक दरिद्रता। पश्चिम की भोगवादी संस्कृति ने वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर प्रकृति के निर्मम दोहन के मार्ग खोले हैं। अब तो पश्चिमी जीवन शैली के उपासकों की समझ में भी आ गया है कि प्रकृति से दो – दो हाथ न करके उसका साथ देने में ही भलाई है।

इसी कारण वहाँ प्रकृति के हर अंग को अप्रदूषित रखने पर अत्यन्त बल दिया जा रहा है। हर्बल उत्पादों की बढ़ती ग्राह्यता और ईको फ्रेण्डली उद्योगों पर बल दिया जाना इसी का प्रमाण है। न जाने भारत में लोग कब प्रकृति से अपने पूर्वजों जैसा नाता जोड़ेंगे?

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