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RBSE 12th Hindi Sahitya Model Paper Set 3 with Answers

April 7, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 12th Hindi Model Papers Set 3 with Answers provided here.

RBSE Class 12 Hindi Sahitya Model Paper Set 3 with Answers

समय :2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  • परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  • सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
  • जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

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खण्ड – (अ)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए (6 x 1 = 6)

पुस्तकालय से सबसे बड़ा लाभ है ज्ञानवृद्धि। मनुष्य को बहुत थोड़े शुल्क के बदले बहुत सारी पुस्तकें पढ़ने को मिल जाती हैं। वह चाहे तो एक ही विषय की अनेक पुस्तकें पढ़ सकता है। दूसरे, उसे किसी भी विषय की नवीनतम पुस्तक वहाँ से प्राप्त हो सकती है। तीसरे, उसे किसी भी विषय पर तुलनात्मक अध्ययन करने का अवसर मिल जाता है। चौथे, विश्व में प्रकाशित विभिन्न विषयों की पुस्तकें भी यहाँ मिल जाती हैं। यही कारण है कि उच्च कक्षा तथा किसी विषय में विशेष योग्यता प्राप्त करने वाले विद्यार्थी अपना अधिकांश समय पुस्तकालय में ही व्यतीत करते हैं। पुस्तकालय मनुष्य में पढ़ने की रुचि उत्पन्न करता है। यदि आप एक बार किसी पुस्तकालय में चले जाएँ, तो वहाँ की पुस्तकों को देखकर आप उन्हें पढ़ने के लिए लालायित हो जाएंगे। इस प्रकार पुस्तकालय आपकी रुचि को ज्ञान-वर्द्धन की ओर बदलता है। दूसरे, अवकाश के समय में पुस्तकालय हमारा सच्चा साथी है जो हमें सदुपदेश भी देता है और हमारा मनोरंजन भी करता है। शेष मनोरंजन के साधनों में धन अधिक खर्च होता है, जबकि यह सबसे सुलभ और सस्ता मनोरंजन है।

(i) पुस्तकालय की सबसे बड़ी उपयोगिता है- (1)
(अ) मनुष्य का ज्ञान बढ़ाने में
(ब) मनुष्य को राजनीति का परिचय देने में
(स) मनुष्य की वैज्ञानिक ज्ञान वृद्धि में
(द) मनुष्य को भूगोल का परिचय देने में।
उत्तर :
(अ) मनुष्य का ज्ञान बढ़ाने में

(ii) मनुष्य के लिए पुस्तकालय का योगदान नहीं है- (1)
(अ) पढ़ने की रुचि उत्पन्न करने में।
(ब) अवकाश के क्षणों में सच्चा साथ देने में
(स) उपदेश और मनोरंजन के रूप में
(द) अमानवीय बुराइयों को उभारने के रूप में।
उत्तर :
(द) अमानवीय बुराइयों को उभारने के रूप में।

(iii) कौन-से छात्र अपना अधिकांश समय पुस्तकालय में बिताते हैं? (1)
(अ) समय का दुरुपयोग करने वाले
(ब) समय का सदुपयोग करने वाले
(स) उच्च कक्षा एवं विशिष्ट योग्यता के इच्छुक
(द) खेलों में दक्षता के अभिलाषी।
उत्तर :
(स) उच्च कक्षा एवं विशिष्ट योग्यता के इच्छुक

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(iv) ‘पुस्तकालय’ शब्द ‘पुस्तक + आलय’ दो शब्दों के मेल से बना है। प्रयुक्त सन्धि का नाम है (1)
(अ) व्यंजन सन्धि
(ब) स्वर सन्धि
(स) विसर्ग सन्धि
(द) अयादि सन्धि।
उत्तर :
(ब) स्वर सन्धि

(v) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है (1)
(अ) पुस्तकालय का महत्त्व
(ब) ज्ञान का भण्डार
(स) पुस्तकों की उपयोगिता
(द) अध्यापक
उत्तर :
(अ) पुस्तकालय का महत्त्व

(vi) मनुष्य में पढ़ने की रुचि उत्पन्न करता है (1)
(अ) विद्यालय
(ब) सहपाठी
(स) पुस्तकालय
(द) सच्चा साथी।
उत्तर :
(स) पुस्तकालय

निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 1 = 6)

शांति नहीं तब-तक, जब तक, सुख भाग न नर का सम हो,
नहीं किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो।
ऐसी शांति राज्य करती है, तन पर नहीं हृदय पर,
नर के ऊँचे विश्वासों पर, श्रद्धा, भक्ति प्रणय पर।
न्याय शांति का प्रथम न्यास है, जब तक न्याय न आता,
जैसा भी हो महल शांति का सुदृढ़ नहीं रह पाता।
कृत्रिम शांति सशंक आप, अपने से ही डरती है,
खड्ग छोड़ विश्वास किसी का, कभी नहीं करती है।
और जिन्हें इन शान्ति व्यवस्था, में सुख-भाग सुलभ है,
उनके लिये शांति ही जीवन-सार, सिद्धि दुर्लभ है।
पर, जिनकी अस्थियाँ चबाकर, शोणित पीकर तन का,
जीती है यह शांति, दाह समझो कुछ उनके मन का।
स्वत्व माँगने से न मिलें, तो लड़ के,
तेजस्वी छीनते समर को जीत, या कि खुद मर के।
किसने कहा, पाप है समुचित, स्वत्व-प्राप्ति-हित लड़ना?
उठा न्याय का खड्ग समर में, अभय मारना-मरना?
क्षमा, दया, तप, तेज, मनोबल, की दे वृथा दुहाई, धर्मराज,
व्यंजित करते तुम, मानव की कदराई,
हिंसा का आघात तपस्या ने, कब कहाँ सहा है?
देवों का दल सदा दानवों, से हारता रहा है।

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(i) मनुष्य को स्थाई शान्ति कब प्राप्त होती है? (1)
(अ) प्रत्येक के भाग का असमान वितरण हो
(ब) मनुष्य ताकत के बल से शान्ति प्राप्त करता है
(स) सिद्धियाँ प्राप्त होने के बाद
(द) प्रत्येक मनुष्य की सुख-सुविधाओं का न्यायपूर्ण वितरण हो।
उत्तर :
(द) प्रत्येक मनुष्य की सुख-सुविधाओं का न्यायपूर्ण वितरण हो।

(ii) “स्वत्व माँगने से न मिलें, तो लड़ के” पंक्ति का आशय है (1)
(अ) अधिकार लड़कर नहीं शान्ति से प्राप्त करें
(ब) अपने अधिकार मांगकर नहीं मिलते हैं
(स) माँगने से अधिकार न मिले तो वीर पुरुष लड़कर प्राप्त करते हैं
(द) लड़कर अपने अधिकार प्राप्त करें।
उत्तर :
(स) माँगने से अधिकार न मिले तो वीर पुरुष लड़कर प्राप्त करते हैं

(iii) अपना अधिकार पाने के लिए युद्ध करना कवि के अनुसार – (1)
(अ) पाप है
(ब) पुण्य है
(स) वीरोचित है।
(द) पाप नहीं।
उत्तर :
(द) पाप नहीं।

(iv) “नहीं किसी को कम हो” पंक्ति में निहित अलंकार है – (1)
(अ) अनुप्रास
(ब) यमक
(स) श्लेष
(द) रूपक।
उत्तर :
(अ) अनुप्रास

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(v) पद्यांश का उचित शीर्षक है (1)
(अ) स्वत्व की लड़ाई
(ब) हिंसा का आघात
(स) स्थाई शान्ति का आधार
(द) न्याय क
उत्तर :
(स) स्थाई शान्ति का आधार

(vi) शांति का प्रथम न्यास है (1)
(अ) शक्ति
(ब) विनम्रता
(स) अहिंसा
(द) न्याय
उत्तर :
(द) न्याय

प्रश्न 2.
दिए गए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए – (6 x 1 = 6)

(i) आचार्य दण्डी ने काव्य गुणों की संख्या …………………………………………. मानी है। (1)
उत्तर :
दस

(ii) जहाँ वाक्य में शब्दों का क्रम ठीक नहीं होता वहाँ ………………………………………….  दोष होता है। (1)
उत्तर :
अक्रमत्व

(iii) छंद के किसी चरण में उसको पढ़ते समय जहाँ विराम की आवश्यकता होती है। उसको …………………………………………. कहते हैं। (1)
उत्तर :
यति

(iv) मनहरण कवित्त छन्द में …………………………………………. वर्ण होते हैं। (1)
उत्तर :
31

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(v) जहाँ कारण के अभाव में कार्य होने का वर्णन किया जाता है। वहाँ …………………………………………. अलंकार होता है। (1)
उत्तर :
विभावना

(vi) जहाँ कारण उपस्थित होने पर भी कार्य नहीं होता, वहाँ …………………………………………. अलंकार होता है। (1)
उत्तर :
विशेषोक्ति

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर : दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द-सीमा 20 शब्द है। (12 x 1 = 12)

(i) निम्नलिखित दोहे में कौन-सा अलंकार है? उसका नाम लिखिए। (1)
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग॥
उत्तर :
उपर्युक्त दोहे में दृष्टान्त अलंकार है।

(ii) समासोक्ति अलंकार के लक्षण लिखिए। (1)
उत्तर :
समासोक्ति अलंकार में प्रस्तुत वृत्तान्त के वर्णन किये जाने पर विशेषण के साम्य से अप्रस्तुत वृत्तान्त का भी वर्णन किया जाता है।

(iii) फीचर में किन घटनाओं को शामिल किया जाना चाहिए? (1)
उत्तर :
फीचर में एक या दो ऐसी घटनाओं को शामिल किया जा सकता है जो न सिर्फ दिलचस्प और अनोखी हों बल्कि उससे जीवन के अहम् क्षणों पर प्रकाश पड़ता हो।

(iv) समाचार जगत् में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए कौन-सा सिद्धांत मानना चाहिए? (1)
उत्तर :
समाचार जगत् में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए पत्रकार को ‘मास्टर ऑफ वन’ का सिद्धान्त मानना चाहिए।

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(v) विशेष लेखन क्या है? (1)
उत्तर :
तकनीकी रूप से जटिल किसी विषय या क्षेत्र, जो सामान्य विषय से भिन्न होता है, पर लिखा गया लेख विशेष लेखन कहलाता है।

(vi) बुढ़िया ने मूर्ति देने के बदले कितने रुपये लिए थे? (1)
उत्तर :
बुढ़िया ने मूर्ति के बदले दो रुपये लिए थे।

(vii) ‘ढेले चुन लो’ वृत्तांत में भारतेंदु हरिश्चन्द्र के किस नाटक का उल्लेख किया है? (1)
उत्तर :
ढेले चुन लो’ वृत्तांत में भारतेंदु हरिश्चन्द्र के दुर्लभ बंधु नाटक का उल्लेख किया है।

(vii) ‘यह दीप अकेला’ कविता अज्ञेय के किस काव्य संग्रह से ली गई है? (1)
उत्तर :
‘यह दीप अकेला’ कविता अज्ञेय के बावरा अहेरी काव्य संग्रह से ली गई है।

(ix) “और खाली होता है यह शहर” यहाँ ‘शहर’ शब्द किस नगर के लिए प्रयुक्त है? (1)
उत्तर :
“और खाली होता है यह शहर” यहाँ ‘शहर’ शब्द बनारस नगर के लिए प्रयुक्त है।

(x) कविता हमें जीने की कला सिखाती है। स्पष्ट कीजिए। (1)
उत्तर :
कविता हमें अपनी ओर खींचती तो है ही, उसे बार-बार सुनने पर उसकी अनुगूंज हमारे अन्तर्मन को सुंदर बनाकर जीने की कला सिखाती है।

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(xi) नाटक विधा में समय का महत्व बताइए। (1)
उत्तर :
नाटककार को समय का विशेष ध्यान रखना पड़ता है । उसे एक निश्चित समयसीमा में ही नाटक पूरा करना पड़ता है।

(xii) कथानक की पूर्णता की आवश्यक शर्त क्या है? (1)
उत्तर :
कथानक की पूर्णता की आवश्यक शर्त यही है कि एक बाधा के समाप्त होने या किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाने के कारण कथानक पूरा हो जाये।

खण्ड – (ब)

निर्देश-प्रश्न सं 04 से 15 तक प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द सीमा 40 शब्द है।

प्रश्न 4.
पत्रकारीय लेखन और सृजनात्मक लेखन में क्या अन्तर है? (2)
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन समसामयिक और वास्तविक घटनाओं पर तथ्याधारित लेखन है किन्तु सृजनात्मक लेखन कल्पित घटनाओं पर आधारित होता है। पत्रकारीय लेखन में तात्कालिकता तथा पाठकों की रुचियों का ध्यान रखना होता है। सृजनात्मक लेखन में इनका ध्यान रखना जरूरी नहीं है तथा लेखक अपनी रुचि के अनुसार एक विशिष्ट पाठक वर्ग की अपेक्षा के अनुरूप अपना आलेख प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 5.
संपादकीय लेखन से आप क्या समझते हैं? (2)
उत्तर :
संपादकीय पृष्ठ पर जो आलेख छपता है वह वास्तव में उस अखबार की अपनी आवाज माना जाता है। संपादकीय किसी घटना या समस्या के प्रति अपनी राय प्रकट करता है। संपादकीय लिखने का दायित्व पत्र के संपादक और उसके सहयोगियों का होता है। कोई बाहर का व्यक्ति संपादकीय नहीं लिख सकता। सम्पादकीय को सम्पादक का मत नहीं माना जाता बल्कि वह समाचार-पत्र का। विचार होता है।

प्रश्न 6.
“इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।” यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया है और क्यों? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
उक्त कथन उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ के संदर्भ में कहा गया है। वे भारतेंदु मंडल के प्रमुख कवि थे और नयी पीढ़ी के रामचंद्र शुक्ल जैसे लेखक और उनकी मित्र-मण्डली प्रेमघन जी को पुरानी चीज समझा करते थे।

इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था जिसके वशीभूत होकर वे चौधरी साहब के यहाँ जाया करते थे अर्थात् शुक्ल जी और उनके मित्र प्रेमघन जी से श्रद्धा भी रखते थे और उनके बारे में जानने को उत्सुक भी रहते थे।

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प्रश्न 7.
‘जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
इस पंक्ति में भारतीय संस्कृति का वर्णन है। भारतवासियों का हृदय बड़ा विशाल है। इस देश में जो भी आता है उसे शरण दी जाती है। रंग, रूप, वेश-भूषा, भाषा, सभ्यता, संस्कृति, आकार किसी भी आधार पर भेद नहीं किया जाता। अनजान लोगों को भी आश्रय प्राप्त होता है। पक्षी भी इसी देश में आकर अपना घोंसला बनाते हैं। यहाँ आकर सभी शान्ति और सन्तोष प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 8.
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ अथवा ‘जयशंकर प्रसाद’ में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय लिखिए। (2)
उत्तर :
साहित्यिक परिचय-भाव पक्ष – प्रसाद जी आधुनिक कविता की छायावादी प्रवृत्ति से सम्बन्धित थे। आपकी रचनाओं में राष्ट्रवाद का स्वर प्रमुख है। आप करुणा, सौन्दर्य और प्रेम के चित्रकार थे। प्रकृति का मनोरम सजीव चित्रण भी आपकी विशेषता है। आपकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति की मनोरम तथा गरिमामयी प्रतिष्ठा हुई है। कला पक्ष-प्रसाद जी की भाषा परिष्कृत साहित्यिक हिन्दी है। वह प्रभावपूर्ण तथा संस्कृतनिष्ठ है।

कहीं-कहीं वह क्लिष्ट भी हो गई है। वह ध्वन्यात्मक तथा लाक्षणिक है। उनकी शैली में प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता और चित्रात्मकता है। आपने मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय आदि नवीन अलंकारों का भी प्रयोग किया है। कृतियाँ-प्रसाद कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार तथा निबन्धकार हैं।

आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं-

  • काव्य-कृतियाँ-आँसू, झरना, लहर तथा कामायनी (महाकाव्य)।
  • नाट्य-कृतियाँअजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त।
  • उपन्यास-कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
  • कहानी-संग्रह-आँधी, इंद्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि।
  • निबन्ध संग्रह काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध।

प्रश्न 9.
बड़ी बहुरिया का संवाद हरगोबिन क्यों नहीं सुना सका? (2)
उत्तर :
बड़ी बहुरिया पूरे गाँव की लक्ष्मी थी। यदि वह बड़ी बहुरिया की विपत्ति कथा उसकी माँ से कहता तो वह उसे अपने पास बुला लेती। यह पूरे गाँव की बदनामी थी। गाँव की लक्ष्मी गाँव छोड़कर चली जायेगी तब गाँव में क्या रह जाएगा। सुनने वाले हरगोबिन के गाँव का नाम लेकर थूकेंगे-कैसा गाँव है, जहाँ लक्ष्मी जैसी बहुरिया दुःख भोग रही है। इसी कारण हरगोबिन बड़ी बहुरिया का संवाद उनकी माँ को नहीं सुना सका।

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प्रश्न 10.
‘जनम अबधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल’ उक्त काव्य पंक्ति के आधार पर विद्यापति की नायिका की मनोदशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (2)
उत्तर :
प्रेम में कभी तृप्ति नहीं मिलती। मन सदैव अतृप्त रहता है। नायिका (राधा) के नेत्र आज भी नायक (कृष्ण) के दर्शन को व्याकुल हैं। उसके नेत्र कभी भी प्रिय की सांवली-सलोनी सूरत को देखकर तृप्त नहीं होते। यह अतृप्ति उसके प्रेम की परिचायक है। नायिका के मन में नायक के रूप दर्शन की लालसा है, यही कवि इस पंक्ति के माध्यम से व्यक्त करना चाहता है।

प्रश्न 11.
रामचन्द्र शुक्ल अथवा ममता कालिया में से किसी एक साहित्यकार का साहित्यिक परिचय लिखिए। (2)
उत्तर :
साहित्यिक परिचय-आचार्य रामचंद्र शुक्ल उच्चकोटि के आलोचक, निबंधकार, साहित्यचिंतक एवं इतिहास लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने अपने मौलिक लेखन, संपादन, अनुवादों से हिन्दी साहित्य में पर्याप्त वृद्धि की।

भाषा-आचार्य शुक्ल ने संस्कृत तत्सम शब्दावली युक्त तथा मुहावरेदार परिष्कृत खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग किया है। आवश्यकतानुसार वे अपनी भाषा में अंग्रेजी और फारसी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी करते हैं।

शैली – शुक्ल जी की गद्य शैली विवेचनात्मक है जिसमें विचार-प्रधानता, सूक्ष्म तर्क योजना, सदृश्यता, व्यंग्य-विनोद का भी योगदान है। विषय के अनुसार वे कभी व्याख्यात्मक शैली का, कभी आलोचनात्मक शैली का तो कभी हास्य-व्यंग्य प्रधान शैली का प्रयोग करते हैं।

प्रमुख कृतियाँ-चिन्तामणि, रस मीमांसा (निबन्ध), हिन्दी साहित्य का इतिहास (इतिहास), तुलसीदास, सूरदास त्रिवेणी (समालोचना), जायसी ग्रंथावली, भ्रमरगीत सार, हिन्दी शब्द सागर, काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, आनन्द एवं कादम्बिनी पत्रिका (सम्पादन), ग्यारह वर्ष का समय (कहानी), अभिमन्यु वध, बुद्धचरित (काव्य ग्रंथ)।

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प्रश्न 12.
सुभागी मारपीट सहकर भी भैरों के घर में क्यों रहना चाहती थी? (2)
उत्तर :
सुभागी ने भैरों का घर छोड़ दिया था। भैरों उसे मारता-पीटता था। झोपड़ी में आग लगने के बाद वह मारपीट सहकर भी भैरों के घर में रहना चाहती थी। वहाँ रहकर वह यह पता करना चाहती थी कि क्या भैरों ने ही रुपये चुराये थे ? यदि चुराये थे तो कहाँ छिपाकर रखे थे ? वह चाहती थी कि उसे रुपये मिल जायें और वह सूरदास को उसके रुपये लौटा दे।

प्रश्न 13.
‘अमेरिका की घोषणा है कि वह अपनी खाउ-उजाड़ जीवन-पद्धति पर कोई समझौता नहीं करेगा।’ इस घोषणा पर अपनी टिप्पणी कीजिए। (2)
उत्तर :
आज अमेरिका को विश्व की महाशक्ति माना जाता है। अमेरिका में चल रहे विशाल उद्योगधन्धे ही उसकी इस सफलता का कारण हैं। उसके विशाल उद्योगों में भारी मात्रा में उत्पादन होता है जो विश्व के अनेक देशों के बाजार में बिकता है। इससे अमेरिका को अपार धन प्राप्त होता है। वह संसार की एक बड़ी आर्थिक शक्ति बन चुका है। उसकी यह प्रगति विश्व के लिए अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध हो रही है। परन्तु अमेरिका इसे मानने के लिए तैयार नहीं है।

प्रश्न 14.
‘ऊँचाइयाँ तनहा भी तो करती हैं’ शेखर के इस कथन का क्या तात्पर्य है? (2)
उत्तर :
भूप दादा तलहटी का गाँव माही छोड़कर सीधे हिमांग पर्वत के ऊपर जा बसे थे। बेटा महीप अपने पिता को अपनी माँ की मौत का दोषी मानकर उन्हें छोड़कर चला गया था। वे हिमांग पर्वत के नीचे माही वालों से कोई बात नहीं करते थे। शेखर के प्रस्तुत कथन का आशय यह भी है कि जब मनुष्य अपने जीवन में ऐसी मनोदशा में पहुँच जाता है, तो सामान्य जनों से उसका सम्पर्क टूट जाता है। उसका अपना अलग संसार बन जाता है और वह उसी में मग्न रहता है।

प्रश्न 15.
सूरदास के झोंपड़ी में घुसने का प्रयत्न करने पर क्या हुआ? वह उसमें कैसे प्रवेश कर सका? (2)
उत्तर :
सूरदास रुपयों की पोटली के बारे में पता करना चाहता था। वह सोच रहा था कि रुपये पिघल गए होंगे तो चाँदी तो वहाँ होगी ही। वह अटकल से द्वार की ओर से झोंपड़ी के अन्दर घुसा। एकाएक पैर भूबल में पड़ गया। उसने तुरन्त पैर पीछे हटाया। फिर उसने डरते-डरते पैर आगे रखा। राख गरम तो थी, मगर असह्य न थी। इस प्रकार वह झोंपड़ी के अन्दर जा पहुँचा।

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खण्ड – (स)

प्रश्न 16.
असगर वजाहत की कहानी ‘साझा’ में हाथी ने किसान से गन्ने की फसल का बंटवारा कैसे किया? कहानी में ‘हाथी’ के प्रतीकार्थ को स्पष्ट कीजिए। (उत्तर :-सीमा 60 शब्द) (3)
अथवा
भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय परिचय बहुत शीघ्र गहरी मैत्री में परिणित हो गया। कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘साझा’ नामक लघु कथा असगर वजाहत द्वारा लिखी गई है जिसमें एक किसान और हाथी द्वारा साझे की खेती करने का उल्लेख है। दोनों ने ‘गन्ने’ की खेती साझे में की। किसान इसके लिये तैयार न था पर हाथी ने उसे ऐसी पट्टी पढ़ाई कि अन्ततः किसान साझे की खेती करने हेतु तैयार हो गया। हाथी जंगल में जाकर मुनादी करवा आया कि गन्ने का खेत उसका है अतः कोई जानवर उसे हानि पहुँचाने का दुस्साहस न करे अन्यथा ठीक न होगा।

फसल तैयार होने पर किसान हाथी को लेकर खेत पर गया और कहा कि आधी-आधी फसल बाँट लें, पर हाथी ने नाराज होकर कहा-हम दोनों ने मेहनत की है, मेरा-तेरा कैसा ? बस आओ मिलकर गन्ने खायें। यह कहकर हाथी ने एक गन्ना सैंड से तोड़ा तथा उसके दूसरे सिरे को आदमी को पकड़ाया।

एक सिरे पर हाथी ने खाना आरम्भ किया। गन्ने के साथ जब आदमी भी हाथी की ओर खिंचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया। हाथी ने कहा देखो हमने एक गन्ना खा लिया। इस तरह हाथी खेत के पूरे गन्ने खा गया। इस कहानी में धनाढ्यों एवं पूँजीपतियों का प्रतीक है।

प्रश्न 17.
‘उड़ते खग’ और ‘बरसाती आँखों के बादल’ में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है? (उत्तर :-सीमा 60 शब्द) (3)
अथवा
‘बनारस’ कविता में बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने कैसे सजीव किया है। विस्तार से लिखिए।
उत्तर :
‘उड़ते खग’ एक माध्यम है जिसके द्वारा यह विशेष अर्थ व्यंजित होता है कि भारत शरण में आये हुए सभी लोगों की शरणस्थली है। यहाँ रंग, रूप, आकार, सभ्यता, संस्कृति, भाषा, वेश-भूषा आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। इस देश में आकर सभी को शान्ति एवं सन्तोष प्राप्त होता है। यहाँ अनजान को भी सहारा प्रदान किया जाता है।

‘बरसाती आँखों के बादल’ से यह विशेष अर्थ व्यंजित होता है कि यहाँ के निवासी अपने दुःख से ही दुखी नहीं होते अपितु दूसरों के प्रति भी करुणा और सहानुभूति का भाव रखते हैं। वे दूसरों के दुःख से दुखी हो जाते हैं। करुणा भारतीय लोगों के हृदय का प्रमुख भाव है।

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प्रश्न 18.
‘सूरदास की झोपड़ी’ पाठ की वर्तमान समय में प्रासंगिकता क्या है? अपने विचार लिखिए। (उत्तर : सीमा 80 शब्द) (4)
अथवा
आरोहण’ कहानी की प्रतिपाद्य समस्या क्या है? (उत्तर : सीमा 80 शब्द) (4)
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ ‘सूरदास की झोंपड़ी’ प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास ‘रंगभूमि’ का एक अंश है। सूरदास इसका मुख्य पात्र तथा नायक है। सूरदास अन्धा है, भिखारी है। वह अपना गुजारा भीख माँगकर करता है। वह फूस की झोंपड़ी में शांति से रहता है। वह किसी को सताता नहीं। अपने दयालु स्वभाव के कारण वह भैरों की पत्नी सुभागी को उसके पति की पिटाई से बचाता है। इस कारण उसको भैरों की दुश्मनी का शिकार बनना पड़ता है।

भैरों उसकी झोंपड़ी जला देता है और रुपये चुरा लेता है। वह उसे रोता हुआ देखना चाहता है। फिर भी, सूरदास उसके प्रति दुर्भावना नहीं रखता। सूरदास के माध्यम से प्रेमचंद संदेश देना चाहते हैं कि मनुष्य को निराशा, अवसाद और ग्लानि से बचना चाहिए। उसे दूसरों पर दोषारोपण न करके स्वयं अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर भरोसा रखना चाहिए।

मनुष्य को आशा की भावना नहीं त्यागनी चाहिए। उसे आत्म-विश्वास की भावना के साथ कठोर श्रम करके अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए।

खण्ड – (द)

प्रश्न 19.
निम्नलिखित पठित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए- (1 + 4 = 5)

अरुण यह मधुमय देश हमारा!
जहाँ पहुँचअनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकुम सारा!
लघु सरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए-समझ नीड़ निज प्यारा।
बरसाती आखो के बादल-बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकराती अनंत की-पाकर जहाँ किनारा।
हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊंघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।
अथवा
अ गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को।
चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छुटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रुकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो।
उत्तर :
सन्दर्भ-प्रस्तुत गीत छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद की कालजयी नाट्य-कृति ‘चन्द्रगुप्त’ से लेकर हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग 2’ में संकलित किया गया है।

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प्रसंग-‘चन्द्रगुप्त’ नाटक के दूसरे अंक में ग्रीक सेनापति सेल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया सिन्धु नदी के किनारे ग्रीक-शिविर के पास वृक्ष के नीचे बैठकर यह गीत गाती है। इसमें भारतभूमि की महिमा, गौरव और प्राकृतिक सुषमा का मनोहारी चित्रंण है। भारत से प्रभावित कार्नेलिया उसे अपना देश मानती है।

व्याख्या-प्रभातकालीन अरुणिमा से युक्त हमारा यह भारत देश मधुरिम और मनोहारी है। सूर्य की सुनहली किरणों के कारण इसकी प्राकृतिक सुषमा बढ़ जाती है, मधुमय हो जाती है। विश्व के कोने-कोने से ज्ञान-पिपासु यहाँ आकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह देश जिज्ञासुओं को सहारा देता है।

उन्हें यहाँ अवलम्ब का सहज आभास होता है। कार्नेलिया भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य से प्रभावित होकर भावविभोर हो गीत के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहती है कि इस देश में प्रात:कालीन सूर्य वृक्षों की फुनगियों की हरियाली पर अपनी लालिमा बिखेरता है।

वृक्षों की शाखाओं से छनकर जब सूर्य की किरणें कमलों पर अपनी कान्ति बिखेरती हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो वे पुष्पों पर नृत्य कर रही हों और जीवन की हरियाली पर मांगलिक कुंकुम बिखर गया हो।

केवल मनुष्य ही नहीं पक्षी भी इस देश से प्रेम करते हैं। इसलिए दूर-दूर के विभिन्न पक्षी ‘अपने इन्द्रधनुषी पंखों को पसार कर सुगंधित वायु के सहारे इस देश की ओर ही आते हैं मानो यह देश ही उनका नीड़ (घोंसला) हो। भाव यह है कि विभिन्न देशों की सभ्यता-संस्कृति, भाषा, वेश-भूषा, आचारविचार वाले व्यक्ति यहाँ आते हैं और आश्रय पाते हैं।

कार्नेलिया भारत के लोगों की विशेषता बताती हुई गीत के माध्यम से कहती है कि यहाँ के निवासी करुणा और सहानुभूति वाले हैं। वे अपने दुःख से ही दुखी नहीं होते अपितु जीव मात्र के दुःख से उनकी आँखें आर्द्र हो जाती हैं। उनकी आँखों से निकले करुणा के आँसू ही मानो वाष्प (भाप) बनकर बादल बन जाते हैं और फिर बरस जाते हैं। यह वह देश है जहाँ सागर से आने वाली लहरें किनारा पाकर शान्त हो जाती हैं अर्थात् दूर देशों से आने वाले व्याकुल प्राणी यहाँ शान्ति का अनुभव करते हैं। यह देश दुखियों को शान्ति प्रदान करने वाला है।

प्रसाद जी कार्नेलिया के माध्यम से प्रभातकालीन प्राकृतिक सुषमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यहाँ की प्रात:कालीन प्रकृति अवर्णनीय है। जब रातभर चमकने वाले तारे मस्ती में ऊँघने लगते हैं तब उषा रूपी सुन्दरी अपने सूर्य रूपी सुनहरे घड़े को आकाशरूपी कुँए में डुबोकर जल लाती है और सुख बिखेरती जाती है। भाव यह है कि जब सूर्योदय होता है तो तारे छिपने लगते हैं और चारों ओर सुखद अनुभूति होने लगती है।

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प्रश्न 20.
निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (1+ 4 = 5)

हरगोबिन को अचरज हुआ तो आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है। इस जमाने में जबकि गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मारफत संवाद क्यों भेजेगा कोई? आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ का कुशल संवाद मंगा सकता है, फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई? हरगोबिन बड़ी हवेली की टूटी ड्योढ़ी पारकर अंदर गया। सदा की भाँति उसने वातावरण को सूंघकर संवाद का अंदाज लगाया।निश्चय ही कोई गुप्त समाचार ले जाना है।
अथवा
एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब खयाल आया करते थे जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा, सारे लोग मजदूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीजों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे, तब मजदूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, वगैरा-वगैरा। एक दिन उसके दिमाग में खयाल आया कि अगर मजदूरों के चार हाथ हों तो काम कितनी तेजी से हो और मुनाफा कितना ज्यादा। लेकिन यह काम करेगा कौन? उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये हैं किस मर्ज की दवा? उसने यह काम करने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाहों पर नौकर रखा और वे नौकर हो गए। कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज हो गया। उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया।
उत्तर :
संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी के सुप्रसिद्ध आंचलिक कहानीकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की कहानी ‘संवदिया’ से ली गई हैं जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित किया गया है।

प्रसंग-बड़ी हवेली की बहुरिया ने हरगोबिन को बुलाया है। संवाद पहुँचाना है उसे अपनी माँ के पास। हरगोबिन को इस बुलावे पर आश्चर्य हो रहा है कि आज तो डाकघर खुल जाने से चिट्ठी-पत्री की सुविधा है फिर भला उसकी बुलाहट क्यों हुई है ?

व्याख्या-गाँव की बड़ी हवेली में रहने वाली बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को बुलवाया है। उसे अपनी माँ के पास कोई संदेश भिजवाना है। हरगोबिन संवदिया है अर्थात् ‘संवाद ले जाने वाला’। आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है यह जानकर हरगोबिन को अचरज हो रहा था। एक जमाना था जब डाक की समुचित व्यवस्था न थी पर अब तो गाँव-गाँव डाकघर खुल गए हैं अब भला संवदिया की क्या जरूरत।

पर बड़ी बहू जरूर कोई ऐसा संवाद भिजवाना चाहती हैं जिसे चिट्ठी-पत्री में नहीं लिख सकर्ती वरना चिट्ठी तो आज विदेशों तक भेजी जा सकती है। आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ से कुशलक्षेम का संवाद मँगा सकता है। पर आज बड़ी बहू ने हरगोबिन संवदिया को बुलाया है तो जरूर कोई खास बात होगी, कोई खास संवाद भिजवाना होगा तभी तो उसको बुलाया है।

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हरगोबिन संवदिया जब बड़ी हवेली के टूटे हुए दरवाजे पर पहुँचा तो सदैव की भाँति उसने वातावरण को भाँप कर यह अनुमान लगाने का प्रयास किया कि अवश्य ही उसे कोई महत्त्वपूर्ण समाचार पहुँचाने के लिए बुलाया गया है।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 400 शब्दों में सारगर्भित निबंध लिखिए। (6)
(अ) मेरे प्रिय कवि गोस्वामी तुलसीदास
(ब) सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तों हमारा
(स) मूल्य वृद्धि की समस्या
(द) विद्यार्थी और अनुशासन
(य) योग और छात्र जीवन।
उत्तर :
(द) विद्यार्थी और अनुशासन
भूमिका- जिस जीवन में कोई नियम या व्यवस्था नहीं, जिसकी कोई आस्था और आदर्श नहीं, वह मानव-जीवन नहीं पशु जीवन ही हो सकता है। ऊपर से स्थापित नियंत्रण या शासन सभी को अखरता है। इसीलिए अपने शासन में रहना सबसे सुखदायी होता है। बिना किसी भय या लोभ के नियमों का पालन करना ही अनुशासन है। विद्यालयों में तो अनुशासन में रहना और भी आवश्यक हो जाता है।

विद्यार्थी-जीवन और अनुशासन- वैसे तो जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन आवश्यक है किन्तु जहाँ राष्ट्र की भावी पीढ़ियाँ ढलती हैं उस विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। किन्तु आज विद्यालयों में अनुशासन की स्थिति अत्यन्त शोचनीय है। अनुशासन में रहना आज के विद्यार्थियों को शायद अपनी शान के खिलाफ लगता है। अध्ययन के बजाय अन्य बातों में छात्रों की रुचि अधिक देखने में आती है।।

अनुशासनहीनता के कारण- विद्यालयों में बढ़ती अनुशासनहीनता के पीछे मात्र छात्रों की उद्दण्डता ही कारण नहीं है। सामाजिक परिस्थितियाँ और बदलती जीवन-शैली भी इसके लिए जिम्मेदार है। टीवी ने छात्र को समय से पूर्व ही युवा बनाना प्रारम्भ कर दिया है।

उसे फैशन और आडम्बरों में उलझाकर उसका मानसिक और आर्थिक शोषण किया जा रहा है। बेरोजगारी, उचित मार्गदर्शन न मिलना तथा अभिभावकों का जिम्मेदारी से आँख चुराना भी अनुशासनहीनता के कारण हैं। दुष्परिणाम- छात्रों में बढ़ती अनुशासनहीनता न केवल इनके भविष्य को अंधकारमय बना रही है बल्कि देश की भावी तस्वीर को भी बिगाड़ रही है। आज चुनौती और प्रतियोगिता का जमाना है।

हर संस्था और कम्पनी श्रेष्ठ युवकों की तलाश में है। इस स्थिति में नकल से उत्तीर्ण और अनुशासनहीन छात्र कहाँ ठहर पायेंगे ? आदमी की शान अनुशासन तोड़ने में नहीं उसका स्वाभिमान के साथ पालन करने में है। अनुशासनहीनता ही अपराधियों और गुण्डों को जन्म दे रही है।

निवारण के उपाय- इस स्थिति से केवल अध्यापक या प्रधानाचार्य नहीं निपट सकते। इसकी जिम्मेदारी पूरे समाज को उठानी चाहिए। विद्यालयों में ऐसा वातावरण हो जिसमें शिक्षक एवं विद्यार्थी अनुशासित रहकर शिक्षा का आदान-प्रदान कर सकें। अनुशासनहीन राजनीतिज्ञों को भी अनुशासित होकर भावी पीढ़ी को प्रेरणा देनी होगी।

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उपसंहार- आज का विद्यार्थी आँख बंद करके आदेशों का पालन करने वाला नहीं है। उसकी आँखें और कान, दोनों खुले हैं। समाज में जो कुछ घटित होगा वह छात्र के जीवन में भी प्रतिबिम्बित होगा। समाज अपने आपको सँभाले तो छात्र स्वयं संभल जायेगा। अनुशासन की खुराक केवल छात्रों को ही नहीं बल्कि समाज के हर वर्ग को पिलानी होगी। जब देश में चारों ओर अनुशासनहीनता छायी हुई है, तो विद्यालयों में इसकी आशा करना व्यर्थ है।

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