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RBSE 12th Hindi Sahitya Model Paper Set 4 with Answers

April 7, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 12th Hindi Model Papers Set 4 with Answers provided here.

RBSE Class 12 Hindi Sahitya Model Paper Set 4 with Answers

समय :2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  • परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  • सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
  • जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

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खण्ड – (अ)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 1 = 6)

यह विडंबना की ही बात है कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज ‘कार्य कुशलता’ के लिए श्रम-विभाजन को आवश्यक मानता है और चूंकि जाति-प्रथा भी श्रम-विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। इस तर्क के सम्बन्ध में पहली बात तो यही आपत्तिजनक है कि जाति-प्रथा श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन का भी रूप लिए हुए है। श्रम-विभाजन निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परन्तु किसी भी सभ्य समाज में श्रम-विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति-प्रथा की एक और विशेषता यह है कि यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता। जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

(i) भारत में जाति-प्रथा की विशेषता है (1)
(अ) श्रम का विभाजन नहीं करती है
(ब) श्रम के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन करती है
(स) श्रमिकों में ऊँच-नीच का भाव पैदा करती है
(द) (ii) व (ii) दोनों ही।
उत्तर :
(द) (ii) व (ii) दोनों ही।

(ii) पेशे के निर्धारण में जाति-प्रथा का योगदान है (1)
(अ) श्रमिक पेशा अपनाने में स्वतन्त्रता रहता है
(ब) उसे पेशा बदलने की स्वतन्त्रता रहती है
(स) उसे उचित रोजगार प्राप्त होता है
(द) मनुष्य को अपना पैतृक पेशा ही अपनाना पड़ता है।
उत्तर :
(द) मनुष्य को अपना पैतृक पेशा ही अपनाना पड़ता है।

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(iii) बेरोज़गारी का प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण है (1)
(अ) अशिक्षा
(ब) अज्ञान
(स) जाति-प्रथा
(द) सर्व शिक्षा।
उत्तर :
(स) जाति-प्रथा

(iv) ‘श्रम-विभाजन’ का समास-विग्रह है (1)
(अ) श्रम के लिए विभाजन
(ब) श्रम से विभाजन
(स) श्रम में विभाजन
(द) श्रम का विभाजन।
उत्तर :
(द) श्रम का विभाजन।

(v) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक (1)
(अ) जाति प्रथा के दोष
(ब) जाति-प्रथा का महत्त्व
(स) जाति प्रथा का योगदान
(द) श्रम-विभाजन की अनिवार्यता।
उत्तर :
(अ) जाति प्रथा के दोष

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(vi) श्रम विभाजन का दूसरा रूप है। (1)
(अ) पेशा
(ब) रोजगार
(स) जाति प्रथा
(द) अशिक्षा
उत्तर:
(स) जाति प्रथा

निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 1 = 6)

ऋषि-मुनियों; साधु-सन्तों को
नमन, उन्हें मेरा अभिनन्दन।
जिनके तप से पूत हुई है
भरत देश की स्वर्णिम माटी
जिनके श्रम से चली आ रही
युग-युग से अविरल परिपाटी।
जिनके संयम से शोभित है
जन-जन के माथे पर चंदन।
कठिन आत्म-मंथन के हित
जो असि-धारा पर चलते हैं।
पर-प्रकाश हित पिपल-पिवल कर
मोम-दीपं-सा जलते हैं।
जिनके उपदेशों को सुनकर
संवर जाए जन-जन का जीवन
सत्य-अहिंसा जिनके भूषण
करुणामय है जिनकी वाणी
जिनके चरणों से है पाचनः।
भारत की यह अमिट कहानी।
उनसे ही आशीष, शुभेच्छा,
पाने को करता पद-वंदन।

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(i) ऋषि-मुनि व साधु-सन्त नमन करने योग्य हैं, क्योंकि (1)
(अ) तप, श्रम एवं संयम का आदर्श प्रस्तुत किया है
(ब) जंगल में रहकर तपस्या करते हैं
(स) उन्होंने धन-संचय नहीं किया है
(द) वे पूज्य होते हैं।
उत्तर :
(अ) तप, श्रम एवं संयम का आदर्श प्रस्तुत किया है

(ii)असि धारा पर चलते हैं” से क्या आशय है (1)
(अ) तलवार की धार पर चलते हैं
(ब) लोकहित में कष्ट झेलते हैं
(स) कष्टों को बुलाते हैं
(द) तलवार से कष्टों को हटाते हैं।
उत्तर :
(ब) लोकहित में कष्ट झेलते हैं

(iii) दीपक के समान जलकर वह (1)
(अ) जन-जीवन को सँवारते हैं
(ब) अन्धकार हटाकर उजाला करते हैं
(स) गरीबों का कष्ट दूर करते हैं
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(अ) जन-जीवन को सँवारते हैं

(iv) ‘निरन्तर’ शब्द का समानार्थक पद्यांश से चुनिए (1)
(अ) लगातार
(ब) चलते हैं
(स) अविरल
(द) चली आ रही।
उत्तर :
(स) अविरल

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(v) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक है (1)
(अ) हमारे पूजनीय ऋषि-मुनि
(ब) अहिंसा-व्रती
(स) आत्मजयी साधु-सन्त
(द) महापुरुष।
उत्तर :
(अ) हमारे पूजनीय ऋषि-मुनि

(vi) भारत देश की माटी पवित्र हुई है (1)
(अ) परिश्रम से
(ब) गंगाजी से
(स) वर्षा से
(द) तप से।
उत्तर :
(द) तप से।

प्रश्न 2.
दिए गए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-

(i) आचार्य भारत ने काव्य गुणों की संख्या ……………………………………… मानी है। (1)
उत्तर :
दस

(ii) जब किसी कविता के पढ़ने या सुनने मात्र से कानों में कटुता उत्पन्न हो जाए तो वहाँ ……………………………………… होता है। (1)
उत्तर :
श्रुति कटुत्व

(iii) सामान्यतः प्रत्येक छन्द में चार पंक्तियाँ होती हैं, इनको” ……………………………………… या पाद कहा जाता है। (1)
उत्तर :
चरण

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(iv) कुण्डलियाँ छन्द के प्रत्येक चरण में ……………………………………… मात्राएँ होती हैं। (1)
उत्तर :
24

(v) जड़ वस्तुओं पर मानवीय गुणों का आरोपण होने पर वहाँ ……………………………………… अलंकार होता है। (1)
उत्तर :
मानवीकरण

(vi) ……………………………………… अलंकार में उपमान की अपेक्षा उपमेय का उत्कर्ष दिखाया गया है। (1)
उत्तर :
व्यतिरेक

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द-सीमा 20 शब्द है। (12 x 1 = 12)

(i) विशेषोक्ति अलंकार का एक उदाहरण लिखिए। (1)
उत्तर :
विशेषोक्ति अलंकार का उदाहरण नेताजी की सम्पत्ति कुबेर के समान बढ़ी। किन्तु वह चुनाव में घमंड से बचे॥

(ii) दृष्टान्त अलंकार के लक्षण लिखिए। (1)
उत्तर :
दृष्टान्त अलंकार वहाँ होता है जहाँ दो कथनों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है। पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती-जुलती बात कही जाती है।

(iii) समाचार-पत्र की सबसे बड़ी विशेषता क्या है ? (1)
उत्तर :
जब उसमें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों, घटित घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों आदि के बारे में नियमित रूप से जानकारी दी जाए।

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(iv) मीडिया की भाषा में विशेष लेखन क्या कहलाता है? (1)
उत्तर :
मीडिया की भाषा में इसे बीट कहते है।

(v) किसी भी लेखन को विशिष्टता प्रदान करने वाली बातें कौन-सी हैं ? (1)
उत्तर :
दो बातों का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है कि उसकी बात पाठक की समझ में आ रही है या नहीं। उसके लिखे तथ्य और तर्क में एकरूपता है या नहीं।

(vi) ‘संवदिया’ पाठ में संवदिया का नाम क्या है? (1)
उत्तर :
‘संवदिया’ पाठ में संवदिया का नाम हरगोबिन है।

(vii) तीन गृह्यसूत्रों का नाम बताइये, जिसमें ढेलों की लाटरी का जिक्र है? (1)
उत्तर :
तीन गृह्यसूत्र, जिसमें ढेलों की लाटरी का उल्लेख है-आश्वलायन, गोभिल और भारद्वाज।

(viii) सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस की बेटी कौन थी? (1)
उत्तर :
सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस की बेटी कार्नेलिया थी।

(ix) गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। – इन पंक्तियों का भावार्थ लिखो। (1)
उत्तर :
कवि अपने जीवन में मिलने वाले दुखों से संघर्ष करते-करते थक गया है। कवि अपने दुःख को कम करने के लिए गीत गाना चाहता है।

(x) कविता में परिवेश का क्या महत्व है? बताइए। (1)
उत्तर :
कविता का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व परिवेश होता है। उसी के अनुरूप कविता के सारे घटक परिचालित होते हैं। और भाषा, संरचना, बिंब, छंद आदि का चुनाव किया जाता है।

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(xi) ‘नाटक’ विधा से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए। (1)
उत्तर :
नाटक साहित्य की वह विधा है जिसे पढ़ा, सुना और देखा जा सकता है।

(xii) कहानी की परिभाषा लिखिए। (1)
उत्तर:
किसी घटना, पात्र या समस्या की क्रमबद्ध जानकारी प्रस्तुत करना जिसमें परिवेश, द्वन्द्वात्मकता का भी समावेश हो तथा चरम उत्कर्ष का बिन्दु हो, उसे कहानी कहा जा सकता है।

खण्ड – (ब)

निर्देश-प्रश्न सं 04 से 15 तक प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द सीमा 40 शब्द है।

प्रश्न 4.
पत्रकारीय लेखन क्या है ? (2)
उत्तर:
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में कार्यरत पत्रकार लोकतांत्रिक समाज में एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत निर्माता के रूप में भूमिका अदा करते हैं। उनके लेखन से असंख्य पाठक प्रतिदिन प्रात:काल देश, दुनिया और अपने आसपास की घटनाओं, समस्याओं और विचारों से अवगत होते हैं। ये पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का प्रयोग करते हैं। इसी को पत्रकारीय लेखन कहते हैं।

प्रश्न 5.
उल्टा पिरामिड शैली की किन्हीं दो विशेषताओं को बताइये। (2)
उत्तर :
उल्टा पिरामिड. शैली की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • सबसे पहले समाचार का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य लिखा जाता है।
  • उसके बाद घटते क्रम में अन्य तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है।

प्रश्न 6.
गाँव की मान्यता के अनुसार संवदिया किसे कहा जाता है? उसके स्वभाव की दो विशेषताएं लिखिए। (2)
उत्तर:
संवाद के प्रत्येक शब्द को याद रखना तथा जिस सुर और स्वर में संवाद सुनाया गया है, ठीक उसी ढंग से जाकर सुनाना संवदिया की विशेषताएँ हैं। यह सहज काम नहीं है। गाँववालों की संवदिया के विषय में धारणा है कि निठल्ला, कामचोर और पेटू आदमी ही संवदिया का काम करता है। बिना मजदूरी लिए वह गाँव-गाँव संवाद पहुँचाता है।

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प्रश्न 7.
‘दिशा’ शीर्षक कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है ? (2)
उत्तर :
‘हिमालय किधर है’ कवि के इस प्रश्न के उत्तर में पतंग उड़ाने में तल्लीन बच्चे पतंग की दिशा में संकेत करते हैं। कवि संदेश देना चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति की सोच अलग होती है। प्रत्येक व्यक्ति का यथार्थ भी अलग होता है। प्रत्येक व्यक्ति से कुछ सीखा जा सकता है। अपने कार्य में तल्लीन रहने का सन्देश भी यह कविता देती है।

प्रश्न 8.
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ अथवा केदारनाथ सिंह में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय लिखिए। (2)
उत्तर:
साहित्यिक परिचय – भाव पक्ष – निराला छायावादी कवि होने के साथ – साथ प्रगतिवादी कवि भी हैं क्योंकि उनकी कविता में शोषण का विरोध और शोषकों के प्रति घृणा की अभिव्यक्ति हुई है। वे क्रान्तिदर्शी कवि हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति का चित्रण भी अपनी रचनाओं में किया है।

कला पक्ष – निराला छायावाद तथा स्वच्छन्दतावादी कविता के आधार स्तम्भ थे। उनका काव्य जगत बहुत व्यापक है। उनके काव्य में विचारों की व्यापकता, विविधता और गहराई मिलती है। उन्होंने छन्द मुक्त तथा छन्दबद्ध कवितायें लिखी हैं।

प्राचीन तथा मानवीकरण, विशेषण विपर्यय आदि अंग्रेजी काव्य के अलंकार उनकी कविता की शोभा बढ़ाते हैं। बोलचाल की भाषा तथा संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त भाषा – उनकी भाषा के ये दो रूप हैं। उन्होंने हिन्दी में गजलें भी लिखी कृतियाँ – प्रमुख काव्य कृतियाँ – परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते। उपन्यास – बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, प्रभावती। कहानियाँ सुकुल की बीबी, लिली।

प्रश्न 9.
राजा ने जनता को हुक्म क्यों दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद कर लें ? (2)
उत्तर :
राजा ने जनता को आँख बंद कर लेने का हुक्म दिया और कहा इससे शांति मिलती रहेगी पर उसके पीछे असली कारण यह था कि जनता बिना कुछ देखे, बिना कुछ सोचे – विचारे आँख बंद करके उसकी आज्ञा का पालन करती रहे। यदि प्रजा आँखें खोलकर देखेगी तो उसे प्रजा के हित के नाम पर राजा द्वारा किया गया शोषण दिखाई देगा। उसे सत्ता के स्वार्थ सिद्ध करने वाले काम समझ में आ जायेंगे।

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प्रश्न 10.
केशवदास ने बानी जगरानी की प्रशंसा में जो उद्गार व्यक्त किए हैं, उनका भाव अपने शब्दों में लिखिए। (2)
उत्तर :
वाग्देवी सरस्वती की महिमा और उदारता का गुणगान करना इसलिए असंभव है क्योंकि वह अपरम्पार है। बड़े – बड़े देवता, ऋषि और तपस्वी ही नहीं अपितु चतुर्मुख ब्रह्मा जी, पंचमुख महादेव जी और षड्मुख कुमार कार्तिकेय भी उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सके तो भला एक मुख वाला मनुष्य उनकी अपार महिमा का वर्णन कैसे कर सकता हैं।

प्रश्न 11.
पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी अथवा फणीश्वरनाथ रेणु में से किसी एक साहित्यकार का साहित्यिक परिचय लिखिए। (2)
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, ब्रज, अवधी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, बांग्ला (भारतीय भाषा में) के साथ अंग्रेजी, लेटिन और फ्रेंच पर भी गुलेरी जी की अच्छी पकड़ थी। गुलेरी जी ने लेखन के लिए खड़ी बोली हिन्दी को अपनाया। उनकी भाषा सरल, सरस तथा विषयानुकूल है। उसमें सहज प्रवाह है। संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ ही लोक प्रचलित शब्दों और मुहावरों को आपकी भाषा में स्थान प्राप्त है।

शैली – साहित्यकार के नाते गुलेरी जी के विविध रूप हैं। इस कारण आपने विवेचनात्मक, वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैली को अपनाया है। आवश्यकतानुसार आपने समीक्षात्मक तथा नाटकीय शैली का भी प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में यत्र – तत्र व्यंग्य के भी छींटे हैं।

प्रमुख कृतियाँ – कहानियाँ – सुखमय जीवन, बुद्ध का काँटा, उसने कहा था। सिर्फ ‘उसने कहा था’ कहानी से गुलेरी जी हिन्दी कहानीकारों में अमर हो गये हैं।

सम्पादन –

  • समालोचक (1903 – 06 ई.),
  • मर्यादा (1911 से 12 ई.),
  • प्रतिभा (1918 – 20 ई.),
  • नागरी प्रचारिणी ‘पत्रिका (1920 – 22 ई.)।

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प्रश्न 12.
सूरदास की झोंपड़ी में आग किसने लगाई? यह जानने के लिए जगधर ने क्या किया ? (2)
उत्तर:
जगधर को भैरों की बातों से विश्वास हो गया था कि झोंपड़ी में आग उसी ने लगाई है। जगधर को अपने विश्वास को पक्का करने के लिए प्रमाण की जरूरत थी। उसका विश्वास तभी सच्चा सिद्ध होता जब भैरों स्वयं स्वीकार करता। इसलिए उसने भैरों से कहा कि सब लोग तुम पर ही शक करते हैं। “सच कहो, आग तुम्हीं ने लगाई ?” भैरों ने जगधर की बातों में आकर स्वीकार कर लिया कि उसने ही आग लगाई थी। इस प्रकार चतुराई से जगधर ने भैरों से झोंपड़ी में आग लगाने की बात स्वीकार करा ली।

प्रश्न 13.
रूपसिंह को माही पहुँचने के लिए सवारी की जरूरत थी। चाय वाले ने उसकी समस्या का समाधान किस प्रकार किया? (2)
उत्तर :
रूपसिंह शेखर को अपने गाँव माही तक पैदल ले जाना नहीं चाहता था। उसने चाय वाले के सामने अपनी समस्या रखी। चाय वाले ने कुछ सोचा फिर आगे बढ़कर गुमसुम – से बैठे नौ – दस साल के लड़के को पुकारकर कहा कि तुझे माही जाना है। लड़का चुपचाप उठकर चला गया और थोड़ी देर बाद दो घोड़ों के साथ चढ़ाई चढ़ता हुआ दिखाई दिया। मेहनताना चायवाले ने ही तय कर दिया था। शेखर और रूप घोड़ों पर चढ़कर महीप के साथ चल पड़े।

प्रश्न 14.
शिप्रा नदी के सम्बन्ध में लेखक ने क्या कहा है ? ‘अपना मालवा-खाऊ उजाडू सभ्यता में’ पाठ के आधार पर लिखिए। (2)
उत्तर :
नागदा से उज्जैन जाते समय लेखक को शिप्रा नदी मिली थी। उसमें खूब पानी बह रहा था। बहुत वर्षों बाद उसने उसमें इतना पानी बहते देखा था। नेमावर के रास्ते में केवड़ेश्वर है। शिप्रा यहाँ से ही निकलती है। कालिदास ने शिप्रा का अपने ग्रन्थों में खूब वर्णन किया है। शिप्रा बहुत बड़ी नदी नहीं है किन्तु उज्जैन में महाकालेश्वर के पाँव पखारने के कारण पवित्र हो गई है और लोगों की पूज्या बन गई है।

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प्रश्न 15.
सूरदास को किस बात का दुःख था तथा क्यों ? (2)
उत्तर :
सूरदास को अपनी झोंपड़ी के जलने का दुःख नहीं था। उसको झोंपड़ी के साथ जल गए बर्तन आदि के जलने का भी दुःख नहीं था। उसको दुःख था उस पोटली के गायब होने का. जिसमें उसकी उम्रभर की कमाई रखी थी। उस पोटली में उसके द्वारा संचित पाँच सौ से अधिक रुपये रखे थे। उसने ये रुपये बड़े कष्ट से भीख माँगकर एकत्र किए थे। रुपयों से वह अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहता था। वह पोटली उसके लोक – परलोक, उसकी दीन – दुनिया का आशा – दीप थी।

खण्ड – (स)

प्रश्न 16.
‘प्रेमधन की छाया स्मृति’ नामक संस्मरण के लेखक शुक्ल जी ने उनकी विनोदप्रियता को भी उजागर किया है। बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की विनोदप्रियता का उदाहरण पाठ के आधार प्रस्तुत कीजिए। (उत्तर-सीमा 60 शब्द) (3)
अथवा
जहाँ धर्म पर कुछ मुट्ठीभर लोगों का एकाधिकार धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है, वहीं धर्म का आम आदमी से संबंध उसके विकास एवं विस्तार का घोतक है। तर्क सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
चौधरी बदरीनारायण ‘प्रेमघन’ जी की विनोदप्रियता तथा उनके कथनों में विलक्षण वक्रता रहती थी जिससे रोचकता की सृष्टि होती थी। ऐसी तीन घटनाएँ अनलिखित हैं-

  • चौधरी साहब का नौकरों तक के साथ संवाद सुनने लायक होता था।
  • अगर किसी नौकर के हाथ से गिलास गिरता तो वे फौरन कहते – “कारे बचा त नाही” अर्थात् क्यों रे बचा तो नहीं।
  • एक दिन चौधरी साहब अपने बरामदे में कंधों तक बाल बिखेरे खंभे का सहारा लिए खड़े थे।
  • वामनाचार्य गिरि मिर्जापुर के एक प्रतिभाशाली कवि थे जो चौधरी साहब पर एक छंद बना रहे थे जिसका अंतिम चरण ही बनने को रह गया था।
  • इस रूप में जब उन्होंने चौधरी साहब को देखा तो झट से छंद का अंतिम चरण बना डाला “खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।”
  • एक दिन रात को छत पर चौधरी साहब कुछ लोगों के साथ बैठे गपशप कर रहे थे, पास में लैम्प जल रहा था, अचानक बत्ती भकभकाने लगी।
  • जब रामचंद्र शक्ल ने बत्ती ‘ कम करने का मन बनाया तो उनके मित्र ने तमाशा देखने के विचार से रोक दिया।
  • चौधरी साहब ने नौकर की आवाज लगाई – “अरे ! जब फूट जाई तबै चलत आंवह।”
  • अंत में चिमनी ग्लोब के साथ चकनाचूर हो गई पर चौधरी साहब का हाथ लैम्प की ओर न बढ़ा।

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प्रश्न 17.
‘श्रीरघुनाथ-प्रताप की बात तुम्हें दसकंठ न जानि परी’ के काव्य-सौन्दर्य को उद्घाटित कीजिए। (उत्तर-सीमा 60 शब्द) (3)
अथवा
राम के वनगमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती है? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
काव्य – सौन्दर्य (भाव – पक्ष) – राम का प्रताप तथा रावण की मूर्खता का चित्रण हुआ है। अगंद रावण की बुद्धि पर तरस खाता हुआ कहता है कि इतना सब कुछ हो गया और तुम्हें राम के प्रताप का बोध नहीं हुआ? समुद्र पर पुल बंध गया, तुम हनुमान को बांधकर रख नहीं पाए, तुम्हारी सोने की लंका जल गई – ये सब राम के प्रताप से ही तो संभव हो पाया है, पर तुम्हारी बुद्धि में यह बात नहीं आई।

तुम तो दसकंठ हो अर्थात् तुम्हारे दस सिर हैं तो बुद्धि भी दस गुनी होनी चाहिए पर तुमने यह पूछकर कि राम का क्या प्रताप है, अपनी बुद्धिहीनता का ही परिचय दिया है। कला – पक्ष – कवि ने ब्रजभाषा में रचना की है। संस्कृत की तत्सम शब्दावली युक्त भावानुकूल भाषा है। इसमें सवैया नामक छन्द है। दसकंठ में व्यंजना का सौन्दर्य है। इसका व्यंग्यार्थ है रावण अत्यन्त मूर्ख है।

प्रश्न 18.
आशा से ज्यादा दीर्घजीवी और कोई वस्तु नहीं होती।” सूरदास की मनःस्थिति के आधार पर इस कथन की विवेचना कीजिए। (उत्तर-सीमा 80 शब्द) (4)
अथवा
‘तुमने सिर पर पहाड़ टूटने की कहावत तो बहुत सुनी होगी, सुनने में बहुत भली नहीं लगती। लेकिन इसकी सच्चाई वही जानता है जिस पर सचमुच का पहाड़ टूटा हो।’ आरोहण’ कहानी में भूपसिंह के उक्त कथन के आलोक में जीवन और जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए उसके संघर्ष पर प्रकाश डालिए। (उत्तर-सीमा 80 शब्द) 4
उत्तर :
सूरदास को झोंपड़ी में रखी हुई रुपयों की थैली की चिन्ता थी। वह सोच रहा था”रुपये पिघल भी गए होंगे तो चाँदी तो वहाँ पर ही होगी।” उसने इस आशा से उसी जगह, जहाँ छप्पर में थैली रखी थी, बड़े उतावलेपन और अधीरता से राख को टटोलना शुरू किया और पूरी राख छान डाली। उसे लोटा और तवा तो मिल गए परन्तु पोटली का कोई अता – पता न चला। झोंपड़ी के राख हो जाने पर भी सूरदास को रुपये नहीं तो चाँदी मिलने की आशा थी।

उसके मन में यह आशा बनी रही और वह राख को बार – बार टटोलता रहा। उसके पैर आशारूपी इसी सीढ़ी पर रखे थे। पैर का सीढ़ी से फिसलना आशा की डोर का टूटना था। जब आशा पूरी तरह नष्ट हो गई तो उसका मन गहरी निराशा के गड्ढे में जा पड़ा। जब उसके मन से रुपये मिलने की आशा पूरी तरह मिट गई तो वह राख के ढेर पर बैठकर रोने लगा।

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आशा के दीर्घजीवी होने का अर्थ है कि आशा मनुष्य के मन में लम्बे समय तक जीवित रहती है। काफी मुश्किलें आने पर भी वह आशा को नहीं छोड़ता। सवेरा होने पर वह फिर से राख को बटोरकर एक जगह करने लगा।

खण्ड – (द)

प्रश्न 19.
निम्नलिखित पठित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए जो है वह सुगबुगाता है जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ आदमी दशाश्वमेध पर जाता है और पाता है घाट का आखिरी पत्थर कुछ और मुलायम हो गया है सीढ़ियों पर बैठे बन्दरों की आँखों में एक अजीब सी नमी है और एक अजीब सी चमक से भर उठा है भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन (1 + 5 = 6)
अथवा
के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास। हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास।। एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए। सखि अनकर दुख दारुन रे जग के पतिआए।। मोर मन हरि हर लए गेल रे अपनो मन गेल। गोकुल तेजि मधुपुर बस रे कन अपजस लेल।। विद्यापति कवि गाओल रे धनि धरु मन आस। आओत तोर मन भावन रे एहि कातिक मास।।
उत्तर:
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘बनारस’ कविता से ली गई हैं, जिसके रचयिता आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अन्तरा भाग – 2’ में संकलित है।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि ने बनारस में वसन्तागमन का वर्णन किया है। वसन्त आने पर बनारस में नवीन जागृति, उल्लास और चेतना व्याप्त हो जाती है। पत्थरों तक में नरमी का एहसास होता है।

व्याख्या – कवि कहता है कि बनारस में वसन्त की हवा चलने से जो अस्तित्व में है उसमें सुगबुगाहट होने लगती है, उसमें जागृति आ जाती है। जो अस्तित्व हीन हैं उनमें भी नवांकुर फूटने लगते हैं। इस प्रकार वसन्त की हवा का सारे वातावरण पर प्रभाव पड़ता है। लोग विगत असफलताओं से निराश नहीं होते बल्कि उनमें नई उमंग और नया संकल्प भर जाता है। नवजीवन का संचार होने लगता है और वातावरण नवीन उत्साह से भर जाता है।

दशाश्वमेध घाट पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा लगता है मानो नदी का स्पर्श करने वाला घाट का अन्तिम पत्थर कुछ और नरम हो गया है, उसकी कठोरता कम हो गई है। यह ऐसा ही है जैसे पाषाण हृदय व्यक्ति का हृदय बदल जाता है, उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है।

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घाट पर बैठे बन्दरों की आँखों में एक विशेष प्रकार की नमी दिखाई देने लगती है। एक अजीब – सी चमक दिखाई देती है। घाट पर बैठे भिखारियों के कटोरे भिक्षा से भर जाते हैं जैसे उनमें वसन्त उतर आया हो। जो दीन – हीन हैं उनमें भी एक उमंग भर जाती है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (1 + 4 = 5)

इन्हीं गाँवों में एक का नाम है-अमझर, आम के पेड़ों से घिरा गाँव-जहाँ आम झरते हैं। किंतु पिछले दो-तीन वर्षों से पेड़ों पर सूनापन है, न कोई फल पकता है, न कुछ नीचे झरता है। कारण पूछने पर पता चला कि जब से सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएंगे, तब से न जाने कैसे आम के पेड़ सूखने लगे। आदमी उजड़ेगा तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे? टिहरी गढ़वाल में पेड़ों को बचाने के लिए आदमी के संघर्ष की कहानियों सुनी थीं, किन्तु मनुष्य के विस्थापन के विरोध में पेड़ भी एक साथ मिलकर मूक सत्याग्रह कर सकते हैं, इसका विचित्र अनुभव सिर्फ सिंगरौली में हुआ।
अथवा
खेतों की डाँड़-डाँड़ जा रहा था कि एक खेत की मेड़ पर बोधिसत्व की आठ फुट लंबी एक सुंदर मूर्ति पड़ी देखी। मथुरा के लाल पत्थर की थी। सिवाए सिर के पदस्थल तक वह संपूर्ण थी। मैं लौटकर पाँच-छह आदमी और लटकाने का सामान गाँव से लेकर फिर लौटा। जैसे ही उस मूर्ति को मैं उठवाने लगा वैसे ही एक बुढ़िया जो खेत निरा रही थी, तमककर आई और कहने लगी,बड़े चले हैं मूरत उठावै। ई हमार है। हम न देबै। दुइ दिन हमार हर रुका रहा तब हम इनका निकरवावा है। ई नकसान कउन भरी ? मैं समझ गया। बात यह है कि मैं उस समय भले आदमी की तरह कुरता धोती में था इसलिए उसे इस तरह बोलने की हिम्मत पड़ी। सोचा कि बुढ़िया के मुंह लगना ठीक नहीं।
उत्तर :
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ निर्मल वर्मा के यात्रा – वृत्तांत ‘धुंध से उठती धुन’ नामक संग्रह में संकलित यात्रावृत्त ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ से ली गई हैं। यह यात्रावृत्त हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अंतरा भाग – 2’ में संकलित है।

प्रसंग – निर्मल वर्मा को लोकायन संस्था ने सिंगरौली का जायजा लेने भेजा था। उन्होंने वहाँ जाकर देखा कि औद्योगिक विकास के नाम पर लोगों को बड़े पैमाने पर विस्थापित होना पड़ा था और पर्यावरण का भारी विनाश हुआ था। इसी क्षेत्र के अमझर गाँव के आम के पेड़ों पर फल आने बंद हो गए थे और लोगों के विस्थापन के फलस्वरूप पेड़ भी सूखने लगे थे।

व्याख्या सिंगरौली में निर्मल जी नवागाँव क्षेत्र में गए। इस क्षेत्र में छोटे – छोटे 18 गाँव बसे हैं जिनमें एक गाँव का नाम है – अमझर। आम के पेड़ों से घिरे गाँव का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ आम के पेड़ों से आम झरते (टपकते) हैं। किन्तु पिछले दो – तीन वर्षों से किसी पेड़ पर न कोई फल पकता है न नीचे गिरता है। कारण पूछने पर लोगों ने बताया कि जब से यह सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव क्षेत्र के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएँगे तब से न जाने कैसे आम के पेड़ सूखने लगे।

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जब आदमी उजड़ेगा तो पेड़ हरे – भरे रहकर क्या करेंगे? इसी कारण आम के पेड़ों पर न तो बौर आता है, न फल लगते हैं। निर्मल जी कहते हैं कि अभी तक मैंने यह सुना था कि उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल क्षेत्र के निवासियों ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए ‘चिपको आन्दोलन’ जैसे कई आन्दोलन चलाकर पेड़ों के लिए संघर्ष किया था पर जब सिंगरौली क्षेत्र के अमझर गाँव में गया तो देखा कि वहाँ आम के पेड़ सूखने लगे थे।

वहाँ आदमियों के विस्थापन के विरोध में पेड़ों ने एक साथ मिलकर सत्याग्रह कर दिया था। जब यहाँ से आदमी चले जाएंगे तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे? पेड़ों के इस मूक सत्याग्रह का अनुभव निर्मल जी को पहली बार सिंगरौली में ही हुआ।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 400 शब्दों में सारगर्भित निबंध लिखिए- (6)
(अ) वाहनों की वृद्धिः पातक समृद्धि
(ब) वरिष्ठ नागरिकों की समस्या
(स) मिलावट का रोग
(द) देश के उत्थान में युवावर्ग का योगदान
(य) राजस्थान और पर्यटन
उत्तर :
(य) राजस्थान और पर्यटन
प्रस्तावना – आज ‘पर्यटन’ शब्द का एक विशेष अर्थ में प्रयोग हो रहा है। आवागमन के साधनों की सुलभता के कारण विश्व में लाखों लोग पर्यटन के भौतिक और मानसिक लाभ उठाते हुए देश – देशान्तरों में भ्रमण कर रहे हैं। पर्यटन अब केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं है अपितु संसार के अनेक देशों की अर्थव्यवस्था ही पर्यटन पर आधारित हो गई है।

पर्यटन का महत्त्व – पर्यटन का अनेक दृष्टियों से उल्लेखनीय महत्त्व है। इसका सर्वाधिक महत्त्व मनोरंजन के साधन के रूप में है। प्राकृतिक – सौन्दर्य के दर्शन के साथ ही मानव कला – कौशल के अद्भुत नमूनों का परिचय पाने में पर्यटन अत्यन्त सहायक होता है। पर्यटन से विभिन्न देशों के निवासी एक – दूसरे के समीप आते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव और सम्पर्क में वृद्धि होती है।

छात्र ज्ञानवर्द्धन के लिए, व्यवसायी व्यापारिक सम्पर्क और बाजार की खोज के लिए, कलाकार आत्मतुष्टि और आर्थिक लाभ के लिए तथा वैज्ञानिक अनुसन्धान के लिए पर्यटन करते हैं। पर्यटकों से विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है तथा राजस्व में वृद्धि होती है।

पर्यटन से अनेक उद्योगों के विकास और विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ है। होटल उद्योग, गाइड व्यवसाय, कुटीर उद्योग तथा खुदरा व्यापार को पर्यटन ने बहुत लाभ पहुँचाया है। यही कारण है कि अब सरकारें भी पर्यटन को बढ़ावा दे रही हैं।

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पर्यटन – मानचित्र पर राजस्थान – यों तो भारत के अनेक प्रदेश अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और जैविक विविधता के कारण पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं, किन्तु राजस्थान का इस क्षेत्र में अपना अलग महत्त्व है। भारत के पर्यटन – मानचित्र पर राजस्थान का स्थान किसी अन्य प्रदेश से कम नहीं है। प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करने के कारण, आज राजस्थान भारत के पर्यटन – मानचित्र पर अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा चुकी हैं।

राजस्थान के पर्यटन स्थल – राजस्थान के पर्यटन स्थलों को प्राकृतिक, वास्तु – शिल्पीय तथा धार्मिक वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

(i) प्राकृतिक पर्यटन स्थलों में भरतपुर का घना पक्षी विहार प्रमुख है। यहाँ शीत ऋतु में साइबेरिया जैसे अतिदूरस्थ स्थलों से हजारों पक्षी प्रवास के लिए आते हैं। पक्षी – प्रेमियों और पर्यटकों के लिए यह सदैव ही आकर्षण का केन्द्र रहा है।

सरिस्का तथा रणथम्भौर का बाघ अभयारण्य भी महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल रहा है। अब राजस्थान सरकार इसे पुनः नवजीवन प्रदान करने में रुचि ले रही है। इसके अतिरिक्त राजस्थान की अनेक प्राकृतिक झीलें और गिरिवन भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। पुष्कर, जयसमन्द, राजसमन्द आदि उल्लेखनीय झीलें हैं।

(ii) वास्तुशिल्पीय पर्यटन स्थलों में राजस्थान के महल, दुर्ग और मन्दिर आते हैं। जैसलमेर, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर आदि के राजभवन उल्लेखनीय पर्यटन – स्थल हैं। राजस्थान में दुर्गों की भी दर्शनीय शृंखला है। इनमें जयपुर का नाहरगढ़, सवाई माधोपुर का रणथम्भौर, जैसलमेर का सोनार दुर्ग, बीकानेर का जूनागढ़, भीलवाड़ा का माण्डलगढ़, चित्तौड़गढ़ का भव्य चित्तौड़गढ़ आदि पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। राजस्थान में मन्दिर भी वास्तुशिल्प के अद्भुत नमूने हैं।

ओसियाँ का मन्दिर, अपूर्णा का मन्दिर, रणकपुर का जैन मन्दिर और मन्दिरों का सिरमौर आबू स्थित दिलवाड़ा आदि हैं। इनके अतिरिक्त चित्तौड़गढ़ स्थित कीर्तिस्तम्भ राजस्थान की कीर्ति का प्रमाण है। अजमेर की ख्वाजा साहब की दरगाह का भी पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है।

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उपसंहार – पर्यटन ने राजस्थान को विश्व के मानचित्र पर महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया है। प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक राजस्थान आते हैं। इनसे राज्य को ख्याति के अतिरिक्त पर्याप्त राजस्व भी प्राप्त होता है। पर्यटन – विभाग एवं राजस्थानवासियों के पारस्परिक सहयोग से इस दिशा में श्रेय और प्रेय दोनों की सिद्धि हो सकती है।

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