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RBSE 12th Hindi Sahitya Model Paper Set 6 with Answers

April 8, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 12th Hindi Model Papers Set 6 with Answers provided here.

RBSE Class 12 Hindi Sahitya Model Paper Set 6 with Answers

समय :2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  • परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  • सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
  • जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

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खण्ड – (अ)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 1 = 6)

यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है तो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति-शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाजार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी। इस सद्भाव के ह्रास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे ग्राहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक की हानि में दूसरे का अपना लाभ दीखता है और यह बाजार का, बल्कि इतिहास का सत्य माना जाता है ऐसे बाजार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना हैं और जो ऐसे बाजार का पोषण करता है, जो उसका शास्त्र बना हुआ है; वह अर्थशास्त्र सरासर औंधा है, वह मायावी शास्त्र है, वह अर्थशास्त्र अनीति-शास्त्र है।

(i) किसी बाजार की सार्थकता कब सिद्ध होगी ?
(अ) जब वह बड़ा होगा
(ब) जब वह पास होगा
(स) जब वह छोटा होगा
(द) जब वह लोगों की आवश्यकता को पूरा करेगा।
उत्तर :
(द) जब वह लोगों की आवश्यकता को पूरा करेगा।

(B) बाज कार कौन लोग बताते हैं ?
(अ) जा रहुत कुछ खरीदने की शक्ति है
(ब) जो बहुत गरीब हैं
(स) जो बाजार में पहुँचकर कुछ नहीं खरीदते
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(अ) जा रहुत कुछ खरीदने की शक्ति है

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(ii) कैसा अर्थशास्त्र अनीतिशास्त्र कहलाता है?
(अ) जब क्रेता वस्तुएँ उपयोग के लिए नहीं बल्कि शक्ति प्रदर्शन के लिए खरीदता है
(ब) विक्रेता विज्ञापन करके वस्तुएँ बेचे
(स) जब बाजार में आवश्यकता पूर्ति न हो केवल कपट हो
(द) इनमें से कोई नहीं।।
उत्तर :
(द) इनमें से कोई नहीं।।

(iv) ‘बेचक’ शब्द का तत्सम शब्द ढूंढ़िए
(अ) बेहिचक
(ब) बेचकह
(स) विक्रय
(द) विक्रेता।
उत्तर :
(द) विक्रेता।

(v) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक चुनिए–
(अ) आवश्यकताओं का आदान-प्रदान
(स) बाजारूपन
(ब) सस्ता बाजार
(द) कपट और शोषण से युक्त बाजार
उत्तर :
(ब) सस्ता बाजार

(vi) कैसा बाजार मानवता के लिए विडंबना है
(अ) महँगा बाजार
(स) सच्चा बाजार
(ब) बाजार
(द) बाजार की सार्थकता।
उत्तर :
(द) बाजार की सार्थकता।

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निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 1 = 6)

यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना, जब असम्भव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना, तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी, सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना, हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है, तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले; पूर्व चलने के, बटोही, बाट की पहचान कर ले। कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में, देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में, और तू कर यत्न भी तो मिल नहीं सकती सफलता, ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय, किन्तु जग के पन्थ पर यदि स्वप्न दो तो सत्य दो सौ, स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले पूर्व चलने के, बटोही, बाट की पहचान कर ले। –

(i) हर सफल व्यक्ति किस ध्येय को अपनाकर सफल हुआ है ?
(अ) दृढ़-निश्चय
(ब) निरन्तर परिश्रम
(स) आशावादिता
(द) विश्वास।
उत्तर :
(अ) दृढ़-निश्चय

(ii) ‘स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले’ पंक्ति का आशय बताइए
(अ) हमें अच्छे-अच्छे स्वप्न देखने चाहिए।
(ब) स्वप्नों से मोहित न होकर वास्तविकता का ज्ञान करना चाहिए
(स) हमें स्वप्न भी देखने चाहिए तथा सत्य का ज्ञान भी करना चाहिए
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(ब) स्वप्नों से मोहित न होकर वास्तविकता का ज्ञान करना चाहिए

(iii) बटोही और बाट से यहाँ क्या तात्पर्य है ?
(अ) रास्ता और राहगीर
(ब) लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील मनुष्य और उसका लक्ष्य मार्ग
(स) मार्ग पर चलने वाला पथिक
(द) पथिक और रास्ता।
उत्तर :
(ब) लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील मनुष्य और उसका लक्ष्य मार्ग

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(iv) “कौन कहता है कि स्वप्नों को” पंक्ति में अलंकार निर्देश कीजिए
(अ) अनुप्रास
(ब) श्लेष
(स) उपमा
(द) रूपक।
उत्तर :
(अ) अनुप्रास

(v) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए –
(अ) बटोही
(ब) बाट
(स) स्वप्न और सत्य
(द) सफलता।
उत्तर :
(स) स्वप्न और सत्य

(vi) ‘अस्त’ शब्द का विपरीतार्थक पद्यांश से छाँटिए
(अ) उदय
(ब) उदयाचल
(स) अस्ताचल
(द) उगना।
उत्तर :
(अ) उदय

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प्रश्न 2.
दिए गए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए (6 x 1 = 6)

(i) जिस रचना को पढ़ने अथवा सुनने से पाठक अथवा श्रोता के मन में आवेग और उत्साह पैदा हो, उसमें गुण का होना समानता है।
उत्तर :
ओज

(ii) वाह रे अकबर, तेरे जे ठाठ। नीचे दरी और ऊपर खाट। पंक्तियों में दोष है।
उत्तर :
ग्रामत्व

(iii) वंशस्थ छन्द के प्रत्येक चरण में वर्ण होते हैं।
उत्तर :
12-12

(iv) मदिरा सवैया के प्रत्येक चरण में। वर्ण होते हैं।
उत्तर :
22

(v) ‘पद बिनु चलै सुनै बिनु काना’ पंक्ति में अलंकार है।
उत्तर :
विभावना

(vi) सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेस विवस पहिराइ न जाई।। पंक्ति में “” ‘अलंकार है।
उत्तर :
विशेषोक्ति

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द-सीमा 20 शब्द है। (12 x 1 = 12)

(i) ‘शोभा-सिन्धु न अन्त रही री’ इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर :
इस पंक्ति में ‘शोभा’ उपमेय पर ‘सिन्धु’ उपमान का आरोप किया गया है, अतः ‘रूपक’ अलंकार है।

(ii) श्लेष अलंकार की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
जहाँ एक ही शब्द अनेक अर्थों को प्रकट करता हुआ केवल एक बार प्रयुक्त होता है, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

(iii) समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के क्षेत्र कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
व्यापार जगत्, खेल, विज्ञान, कृषि, मनोरंजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध, रक्षा, विदेश, कानून, पर्यावरण एवं विभिन्न सामाजिक मुद्दे आदि विशेष लेखन के क्षेत्र है।

(iv) व्यापार-कारोबार से संबंधित रिपोर्टिंग की भाषा कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
व्यापार-कारोबार से संबंधित रिपोर्टिंग में जिस भाषा का इस्तेमाल किया जाये उसमें व्यापार जगत् में प्रचलित शब्दावली का प्रयोग होना चाहिए।

(v) विशेष लेखन की भाषा शैली के दो महत्वपूर्ण बिन्दु लिखिए।
उत्तर :

  • विशेष लेखन की भाषा सरल व समझ में आने वाली हो।
  • तकनीकी शब्दावली को भी सरल करके या प्रचलित शब्दों में ही लिखना चाहिए।

(vi) ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ में किस गाँव का उल्लेख हुआ है?
उत्तर :
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ में अमझर गाँव का उल्लेख हुआ है।

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(vii) मिल मालिक को मजदूरों के प्रति क्या विचार आया?
उत्तर :
मिल मालिक को मजदूरों के प्रति मजदूरों के चार-चार हाथ लग जाएँ, विचार आया।

(vii) रानी लक्ष्मणादेवी पर मुग्ध होकर कौन रमण करते हैं?
उत्तर :
रानी लक्ष्मणादेवी पर मुग्ध होकर राजा शिवसिंह रमण करते हैं।

(ix) पति बनै चारमुख पूत बने पंचमुख नाती बनै षटमुख तदपि नई-नई। पंक्ति का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। पुनरुक्ति तथा अतिशयोक्ति अलंकार हैं। षटमुख तत्सम जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है।

(x) कविता में वाक्य संरचना क्या है?
उत्तर :
कविता में वाक्य संरचना का ध्यान रखना भी अति आवश्यक है क्योंकि किसी पंक्ति की संरचना को बदल देने पर अर्थ भी बदल जायेगा।

(xi) नाटक में चरित्रों के संवाद कैसे होने चाहिए?
उत्तर :
नाटक में चरित्रों के संवाद सहज और स्वाभाविक होने चाहिए।

(xii) कहानी में कथानक का महत्व बताइए।
उत्तर :
कथानक-कहानी का केन्द्रबिन्दु कथानक होता है। इसमें प्रारम्भ से अन्त तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख होता है।।

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खण्ड – (ब)

निर्देश-प्रश्न सं 04 से 15 तक प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द सीमा 40 शब्द है।

प्रश्न 4.
पत्रकारीय लेखन साहित्यिक लेखन से भिन्न होता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन साहित्यिक या सृजनात्मक लेखन से भिन्न होता है क्योंकि इसमें तथ्य होते हैं, कल्पना नहीं। दूसरे यह तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है जबकि साहित्यिक या सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है।

प्रश्न 5.
क्या समाचार लेखन की कोई विशेष शैली होती है ? या समाचार कैसे लिखे जाते हैं ?
उत्तर :
समाचारपत्रों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक विशेष शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे मुख्य तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले लिखा जाता है। उसके पश्चात् कम महत्त्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी जाती है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि समाचार समाप्त नहीं होता। इसे समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली कहते हैं।

प्रश्न 6.
शेर के मुँह और रोजगार के दफ्तर के बीच क्या अंतर बताया गया है? इस लघुकथा के माध्यम से लेखक ने हमारे समाज की किस व्यवस्था पर व्यंग्य किया है?
उत्तर :
शेर के मुँह में जो एक बार जाता है, वहाँ से वापस नहीं आता। रोजगार दफ्तर के लोग बार-बार चक्कर लगाते हैं, अर्जी देते हैं पर उन्हें नौकरी नहीं मिलती। शेर जानवरों को निगल लेता है पर रोजगार दफ्तर नौकरी चाहने वालों को निगलता नहीं लेकिन उन्हें रोजगार प्रदान करके जीने का अवसर भी उनको नहीं देता। इस लघुकथा के माध्यम से लेखक ने वर्तमान शासन व्यवस्था पर व्यंग्य किया है?

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प्रश्न 7.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘गीत गाने दो मुझे कविता का प्रतिपाद्य है कि यह निराशा में आशा का संचार करने वाली कविता है। आज के वातावरण में व्यक्ति का दम घुट रहा है। वह स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर रहा है। लोगों का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष करते हुए व्यतीत हुआ है, इस कारण वे निराश हो गए हैं।

इस कविता के द्वारा कवि लोगों को निराशा छोड़कर आशावादी बनने की प्रेरणा देता है। वह दुःख और निराशा से लड़ने की प्रेरणा देता है इसीलिए-‘जल उठो फिर सींचने को’, पृथा की बुझी हुई आग को गीत गाकर वह जगाने का प्रयत्न करता है।

प्रश्न 8.
तुलसीदास अथवा जयशंकर प्रसाद में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर :
साहित्यिक परिचय-भाव-पक्ष आपके काव्य में निर्गुण और सगुण, ज्ञान, भक्ति और कर्म, शैव और वैष्णव, द्वैत और अद्वैत के समन्वय का सन्देश है। कला-पक्ष तुलसी ने अवधी तथा ब्रजभाषा में काव्य-रचना की है। उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रचुरता है। तुलसी की अवधी परिष्कृत तथा साहित्यिक है। तुलसी ने दोहा, चौपाई,सोरठा, छप्पय, कवित्त, सवैया इत्यादि का प्रयोग अपनी काव्य-रचनाओं में किया है।

अपने समय में प्रचलित समस्त प्रमुख अलंकारों उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, यमक, श्लेष, विभावना, प्रतीप इत्यादि को तुलसी के काव्यों में स्थान मिला है। तुलसी के काव्य में सभी रसों का परिपाक हुआ है।

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प्रमुख कृतियाँ-

  • रामचरितमानस,
  • विनयपत्रिका,
  • गीतावली,
  • कवितावली,
  • दोहावली,
  • बरवै रामायण,
  • श्रीकृष्ण गीतावली,
  • जानकीमंगल,
  • पार्वतीमंगल,
  • वैराग्य संदीपनी,
  • रामलला नहछु,
  • रामाज्ञा प्रश्नावली।

प्रश्न 9.
‘डिजिटल इंडिया’ के दौर में संवदिया की क्या कोई भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
वर्तमान में ‘डिजिटल इंडिया’ होने पर संचार के अनेकानेक माध्यम विकसित हो गए हैं। जो किसी भी समाचार को दृश्य-श्रव्य माध यम से दुनिया के किसी भी कोने में क्षणभर में पहुँचा देते हैं। अतः डिजिटल इंडिया में संवदिया की प्रत्यक्षतः कोई भूमिका नजर नहीं आती। लेकिन संवदिया एक विश्वसनीय व्यक्ति होता है, अतः विशेष क्षेत्रों, परिस्थितियों में तथा परंपरा के अनुसार संवदिया का आज भी महत्व है।

प्रश्न 10.
‘यह अद्वितीय-यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित’ पंक्ति के आधार पर व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए।
उत्तर :
व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी अकेला है। उसकी सार्थकता तभी है जब वह समाज के साथ मिल जाए। समाज का भला भी तभी है जब वह व्यक्ति को अपने साथ मिला ले। इस प्रकार व्यष्टि और समष्टि दोनों का हित होता है, सामाजिक सत्ता बढ़ती है। व्यक्ति के गुणों का लाभ समाज को भी मिलता है तथा राष्ट्र भी मजबूत होता है। दीप और व्यक्ति का पंक्ति और समाज में विलय ही दोनों का सार्वभौमीकरण है। व्यक्ति सामाजिक प्राणी है। अतः अपनी विशेषताएँ रखते हुए भी उसका समाज में विलय होना अति आवश्यक है।

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प्रश्न 11.
ब्रजमोहन व्यास अथवा फणीश्वनाथ रेणु में से किसी एक साहित्यकार का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर :
साहित्यिक परिचय-भाषा-व्यास जी संस्कृत साहित्य के अध्येता थे। आपकी भाषा परिष्कृत प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली हिन्दी है। आपकी भाषा में तत्सम शब्दों के साथ अरबी, फारसी शब्द, लोक प्रचलित शब्द, अंग्रेजी के शब्द आदि भी मिलते हैं। संस्कृत भाषा के यथास्थान दिये गये उद्धरण भाषा को सशक्त बनाने वाले हैं। यत्र-तत्र मुहावरों का प्रयोग भी आपने किया है। शैली-व्यास जी ने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसके साथ-साथ विवरणात्मक शैली को भी अपनाया है। जीवनी तथा आत्मकथा के लिए ये शैलियाँ उपयुक्त भी हैं।

कृतियाँ व्यास जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • जानकी हरण (कुमारदास कृत) का अनुवाद।
  • पं बालकृष्ण भट्ट (जीवनी)।
  • पं मदन मोहन मालवीय (जीवनी)।
  • मेरा कच्चा चिट्ठा (आत्मकथा)।

प्रश्न 12.
सुभागी कौन थी ? वह रात भर अमरूद के बाग में क्यों छिपी रही थी?
उत्तर :
सुभागी भैरों की पत्नी थी। भैरों उसको पीटता भी था। एक बार उसकी पिटाई से बचने के लिए सुभागी सूरदास की झोपड़ी में छिप गई थी। भैरों भी वहाँ आ गया। सूरदास ने उसको पिटने से बचाया था। उस रात भी जब भैरों ने सूरदास की झोपड़ी में आग लगाई थी, सुभागी रातभर मंदिर के पिछवाड़े अमरूद के बाग में भैरों की मार से बचने के लिए छिपी रही थी।

प्रश्न 13.
भूपसिंह साँप, छिपकली, वनमानुष या रोबोट थे। रूपसिंह की इस सोच का कारण क्या है ?
उत्तर :
रूपसिंह तथा शेखर हिमांग पर्वत पर नहीं चढ़ पा रहे थे। तब भूपसिंह ने अपना मफलर अपनी कमर में बाँधा। उसके दोनों किनारे उन्होंने रूपसिंह को पकड़ाये और वह उसे खींचते हुए पहाड़ पर चढ़ने लगे। एक घंटे में वे ऊपर पहँच चुके थे। भूप दादा की पहाड़ – पर चढ़ने में प्रवीणता को देखकर ही रूपसिंह को भ्रम हो रहा था कि वह साँप, छिपकली, वनमानुष या रोबोट थे।

प्रश्न 14.
‘चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता ?’ इस कथन के आधार पर सूरदासं की मनःस्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
झोंपड़ी जलने पर लोग दुख जता रहे थे, लेकिन सूरदास का किसी की बातों की ओर कोई ध्यान नहीं था। उसे अपनी झोंपड़ी अथवा अपने बरतन आदि जल जाने की चिन्ता नहीं थी। उसे अपनी उस पोटली के जल जाने का दुःख था, जिसमें उसके जीवन-भर की कमाई थी। उन रुपयों से वह पितरों का पिंडदान, अपने पौत्र मिठआ की शादी आदि अनेक योजनाएँ पूरी करना चाहता था। इस प्रकार उसकी मनःस्थिति निराशापूर्ण थी।

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प्रश्न 15.
आप कैसे कह सकते हैं कि रूपसिंह को अपने घर-गाँव से अब भी प्रेम था ?
उत्तर :
रूपसिंह ग्यारह वर्ष पश्चात् अपने गाँव माही लौट रहा था। गाँव ज्यों-ज्यों निकट आ रहा था, उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह सोच रहा था कि पहाड़ की तलहटी में उसका गाँव है। वहाँ उसके खेत होंगे, उसका घर होगा। उसके बाबा, माँ और भूप दादा तथा अन्य लोग होंगे। अभी कुछ दूर हैं केदार काँठा और दुर्योधन जी का मंदिर। बस, फिर वह अपने वतन पहुँच जाएगा। ये सभी बातें अपने घर-गाँव के प्रति रूपसिंह के प्रेम को प्रकट करती हैं।

खण्ड – (स)

प्रश्न 16.
निर्मल जी सिंगरौली क्यों गए थे और उन्होंने वहाँ जाकर क्या निष्कर्ष निकाला? (उत्तर-सीमा 60 शब्द) 3
अथवा
ब्रजमोहन व्यास ने प्रयाग संग्रहालय के लिए क्या योगदान दिया? संक्षेप में बताइए। 3
उत्तर :
सिंगरौली प्राकृतिक खनिज संपदा से भरा क्षेत्र था अतः उसका दोहन करने के लिए यहाँ सेंट्रल कोल फील्ड एवं एन टी पी सी ने तमाम स्थानीय लोगों को विस्थापित कर दिया था। नयी सड़कें, नये पुल बने। कोयले की खदानों और उन पर आधारित ताप विद्युत गृहों का निर्माण हुआ।

विकास की इस प्रक्रिया से कितने व्यापक पैमाने पर ‘विनाश’ हुआ, इसका जायजा लेने के लिए दिल्ली की ‘लोकायन’ नामक संस्था ने निर्मल जी को सिंगरौली भेजा था। वहाँ पहुँचकर लेखक ने देखा कि औद्योगीकरण और विकास के चक्के में आम आदमी को अपने परिवेश एवं संस्कृति से विस्थापित होना पड़ा था। विकास का चेहरा मानवीय होना चाहिए अर्थात् विकास तो हो पर उससे मानव को कोई हानि न पहुँचे।

हमारे सत्ताधारियों ने विकास के लिए यूरोपीय मॉडल को अपनाकर उनकी नकल की है जो भारतीय परिवेश के लिए ठीक नहीं है। यही लेखक का निष्कर्ष है।

प्रश्न 17.
‘वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया (उत्तर-सीमा 80 शब्द) 4
अथवा
‘कार्नेलिया का गीत’ कविता के आधार पर भारत की प्रमुख प्राकृतिक और सांस्कृतिक विशेषता भों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कवि यह उद्घाटित करना चाहते हैं कि बेटी! जिस लता पर तुम कली बनकर खिली वह लता भी वहीं की थी, उसी जमीन की थी। कवि ने सरोज की माता को लता और सरोज को कली बताया है। सरोज की माता को अपने पीहर (मायके) में सुख मिला था और सरोज को भी अपनी नानी के घर स्नेह मिला।

एक भाव यह भी प्रकट होता है कि सरोज का ननिहाल लता है और सरोज कली है, क्योंकि सरोज बचपन से वहीं रही और वहीं बड़ी हुई। कविता की यह पंक्ति दोनों प्रसंगों को उद्घाटित करती है।

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प्रश्न 18.
भैरों, जगधर तथा सूरदास के बारे में सुधागी क्या सोचती थी ? (उत्तर-सीमा 80 शब्द) 4
अथवा
रूपसिंह पहाड़ पर चढ़ना सीखने के बावजूद भूपसिंह के सामने बौना क्यों पड़ गया था? (उत्तर-सीमा 80 शब्द) 4
उत्तर :
सुभागी भैरों की पत्नी थी। प्रस्तुत कहानी के पात्र भैरों, जगधर तथा सूरदास के बारे में सुभागी की सोच निम्नवत है-

  1. भैरों-सुभागी की दृष्टि में भैरों अच्छा आदमी नहीं था। वह उसकी परवाह नहीं करता था। उसने कभी अपने मन से सुभागी को धेले का सिंदूर भी नहीं दिया था। भैरों सदैव उसके चरित्र पर शंका करता था। इसलिए वह उसके साथ रहना नहीं चाहती थी।
  2. जगधर-सुभागी जगधर को भी भैरों से कम नहीं समझती थी। वह उसे भैरों का अवतार मानती थी। उसका विचार था कि सूरदास की झोंपड़ी में आग लगाने तथा उसके रुपये चुराने की शिक्षा भैरों को जगधर ने ही दी होगी। जगधर के ईर्ष्या-भाव से वह अपरिचित न थी।
  3. सूरदास-सुभागी की दृष्टि में सूरदास एक अच्छा आदमी था। वह किसी को सताता नहीं था, न धोखा देता था। उसने भैरों की मार से उसे बचाया था। वह भैरों के घर से सूरदास के रुपये खोजकर उसे लौटाना चाहती थी। इस कारण मारपीट सहन करके भी वह भैरों के घर में रहना चाहती थी।

खण्ड – (द)

प्रश्न 19.
निम्नलिखित पठित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (1 + 4 = 5)

भूपति मरन पेम पनु राखी। जननी कुमति जगतु सबु साखी।। देखि न जाहिं बिकल महतारीं। जरहिं दुसह जर पुर नर नारी।। महीं सकल अनरथ कर मूला। सो सुनि समुझि सहिउँ सब सूला।। सुनि बन गवनु कीन्ह रघुनाथा। करि मुनि बेष लखन सिय साथा।। बिन पानहिन्ह पयादेहि पाएँ। संकरु साखि रहे ऐहि घाएँ।। बहुरि निहारि निषाद सनेहू। कुलिस कठिन उर भयउ न बेहू।। अब सबु आँखिन्ह देखेउँ आई। जिअत जीव जड़ सबइ सहाई।। जिन्हहि निरखि मग साँपिनि बीछी। तजहिं बिषम बिषु तामस तीछी। तेइ रघुनंदनु लखनु सिय अनहित लागे जाहि। तासु तनय तजि दुसह दुख दैउ सहावइ काहि।।
अथवा
1947 के बाद से इतने लोगों को इतने तरीकों से आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए तो जान लेता हूँ मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ कंगाल या कोढ़ी या मैं भला चंगा हूँ और कामचोर और एक मामूली धोखेबाज है।
उत्तर :
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के ‘अयोध्याकाण्ड’ से ली गई हैं जिन्हें हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में ‘भरत-राम का प्रेम’ शीर्षक से संकलित किया गया है।

प्रसंग-भरत जी राम को अयोध्या लौटा लाने के लिए चित्रकूट गए हैं। चित्रकूट में आयोजित सभा में वे अपने मनोभाव व्यक्त कर रहे हैं।

व्याख्या-भरत कहते हैं राजा दशरथ ने तो राम के प्रति अपने प्रेम-प्रण का निर्वाह करते हुए राम के वन-गमन करते ही प्राण त्याग दिए। दशरथ मरण और माता कैकेयी की दुर्बुद्धि का साक्षी (गवाह) तो सारा संसार है। राम, लक्ष्मण और सीता के वियोग में माताओं की जो दीन दशा हो गयी है वह देखी नहीं जाती।

इनके वियोग की असहनीय ज्वाला में अयोध्या के समस्त नर-नारी भी व्याकल हैं। इस सारे अनर्थ की जड़ मैं हूँ क्योंकि मुझे राजा बनाने के लिए ही तो माता कैकेयी ने यह सारा छल-प्रपंच किया। जब इस बारे में सोचता हूँ तो असहनीय पीड़ा से हृदय फटता-सा प्रतीत होता है पर क्या करूँ, इसे सहन करना ही पड़ता है।

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यह सुनकर कि राम ने लक्ष्मण और सीता को साथ लेकर मुनिवेश धारण कर वनगमन किया है और वे बिना पदत्राण (जूतों) के पैदल ही गए हैं, मेरा कठोर हृदय नहीं फटा किन्तु उसमें भयंकर घाव (पीड़ा, कष्ट) हो गया है। शंकर को साक्षी रखकर कह रहा हूँ कि मैं उस कष्ट को बड़ी कठिनाई से सहन कर पा रहा हूँ।

फिर निषादराज के स्नेह को देखकर और भी मन में लज्जित हो रहा हूँ कि जो पराए हैं वे तो राम से इतना स्नेह करते हैं और जो अपने हैं वे राम जैसे साधु पुरुष के दुःख का कारण बने। मेरा हृदय निश्चय ही वज्र का बना है और शायद इतना कठोर है कि वह राम को इस वेश में देखकर भी विदीर्ण नहीं हुआ। सब कुछ मुझे अपनी आँखों से देखना पड़ रहा है। क्या करूँ विधाता जीव को (प्राणी को) हर स्थिति में जीवित रखता है।

वे जो इतने सरल, स्नेही हैं कि उन्हें देखकर रास्ते के साँप-बिच्छू तक अपना विष त्याग देते हैं और तामसी प्रवृत्ति वाले भी अपने तीव्र क्रोध को छोड़ देते हैं, ऐसे राम, लक्ष्मण और सीता जिसे अपने शत्रु लगे हों ऐसी कैकेयी के पुत्र होने का अपार दुःख मुझे सहन करना पड़ रहा है। भला मुझे छोड़कर ऐसा दुःख विधाता और किसी को क्यों सहन कराएगा।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (1 + 4 = 5)

दूसरे की मुद्रा की झनझनाहट गरीब आदमी के हृदय में उत्तेजना उत्पन्न करती है। उसी का आश्रय लिया। मैंने अपने जेब में पड़े हुए रुपयों को ठनठनाया। मैं ऐसी जगहों में नोट-वोट लेकर नहीं जाता, केवल ठनठनाता। उसकी बात ही और होती है। मैंने कहा, “ठीकै तो कहत हौ बुढ़िया। ई दुई रुपया लेओ। तुम्हार नुकसानौ पूर होए जाई। ई हियाँ पड़े अंडसै करिहैं। न डेहरी लायक न बँडेरी लायक।” बुढ़िया को बात समझ में आ गई और जब रुपया हाथ में आ गया तो बोली, “भइया ! हम मने नाही करित तुम लै जाव।”
अथवा
लड़की ने आज गुलाबी परिधान नहीं पहना था पर सफेद साड़ी में लाज से गुलाबी होते हुए उसने मंसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लेते हुए सोचा, “मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत, अनूठी है, इधर बाँधो उधर लग जाती है” पारो बुआ, पारो बुआ, इनका नाम है” मन्नू ने बुआ का आँचल खींचते हुए कहा। “संभव देवदास” संभव ने हँसते हुए वाक्य पूरा किया। उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।
उत्तर :
संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ ब्रजमोहन व्यास के आत्मकथा-अंश ‘कच्चा चिट्ठा’ नामक पाठ से ली गई हैं। यह पाठ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा-भाग-2’ में संकलित है।

प्रसंग-इस अवतरण में लेखक ने यह बताया है कि उन्हें बोधिसत्व की कुषाणकालीन मूर्ति किस तरह दो रुपयों में प्राप्त हुई। एक बुढ़िया के खेत पर पड़ी आठ फुट की वह प्राचीन मूर्ति पुरातात्विक दृष्टि से बेशकीमती थी। बुढ़िया उस पर अपना हक जता रही थी तब व्यास जी ने जेब में पड़े रुपयों को खनकाते हुए बुढ़िया को दो रुपए देकर संतुष्ट किया और मूर्ति अपने संग्रहालय के लिए ले ली।

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व्याख्या-संस्कृत में एक कहावत है- ‘उद्वेजयति दरिद्रं परमुद्रायाः झणत्कारम्।’ अर्थात् दूसरे की मुद्रा की झनझनाहट गरीब आदमी के हृदय में उत्तेजना पैदा करती है। व्यास जी ने जब खेत की मेड़ पर पड़ी आठ फुट लम्बी बोधिसत्व की उस प्रतिमा को उठवाने का उपक्रम किया तो खेत की मालकिन बुढ़िया ने यह कहते हुए एतराज किया कि यह मूर्ति मेरी है और मैं इसे नहीं दूंगी। यह मेरे खेत से निकली है।

दो दिन तक हमारा हल रुका रहा तब हम इसे निकलवा पाए हैं। हमारा नुकसान कौन भरेगा। तब व्यास जी ने जेब में पड़े सिक्कों (रुपयों) को खनखनाकर बुढ़िया के मन में लालच और उत्तेजना उत्पन्न कर दी और उसे दो रुपये देकर कहा-तुम ठीक कहती हो। ये दो रुपये लो। इससे तुम्हारा नुकसान भी पूरा हो जाएगा और ये मूर्ति यहाँ पड़े-पड़े जो रुकावट पैदा कर रही है वह भी दूर हो जाएगी।

साथ ही ये तुम्हारे किसी काम की भी नहीं है न तो देहरी (के स्थान) पर इन्हें लगा सकती हो, न छप्पर में बँडेरी (मोटा खम्भा) के रूप में ये लग सकेगी। बुढ़िया तुरंत मान गई और कहने लगी मैं मना नहीं करती आप इसे ले जाएँ। इस तरह दो रुपए में वह बेशकीमती बोधिसत्व की मूर्ति प्रयाग संग्रहालय हेतु व्यास ‘जी ने प्राप्त कर ली।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 400 शब्दों में सारगर्भित निबंध लिखिए।
(अ) जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान
(ब) आरक्षण : कब तक और क्यों?
(स) भारतीय नारी : कल और आज
(द) सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार
(य) बालश्रम : एक सामाजिक अभिशाप
उत्तर :
(अ) जब आवै संतोष धन सब
धन धूरि समान

प्रस्तावना-गौधन गजधन, वाजिधन, और रतन धन खानि।

जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान।। आज भले ही संतोषी स्वभाव वाले व्यक्ति को मूर्ख और कायर कहकर हँसी उड़ाई जाय लेकिन संतोष ऐसा गुण है जो आज भी सामाजिक सुख-शांति का आधार बन सकता है। असंतोष और लालसा ने श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को उपेक्षित कर दिया है। चारों ओर ईर्ष्या, द्वेष और अस्वस्थ होड़ का बोलबाला है। परिणामस्वरूप मानव जीवन की सुख-शान्ति नष्ट हो गई है।

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संसार की अर्थव्यवस्था में असंतोष-आज सारा संसार पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाकर अधिक-से-अधिक धन कमाने की होड़ में लगा हुआ है। उसकी मान्यता है कि कैसे भी हो अधिक-से-अधिक धन कमाना चाहिए। धनोपार्जन में साधनों की पवित्रताअपवित्रता का कोई महत्त्व नहीं रहा है। रिश्वत लेकर, मादक पदार्थ बेचकर, भ्रष्टाचार कर, टैक्स चोरी करके, मिलावट करके, महँगा बेचकर धन कमाना ही लोगों का लक्ष्य है। यही काला धन है।

इससे ही लोग सुख और ऐश्वर्य का जीवन जीते हैं। इसमें से थोड़ा-बहुत धार्मिक कार्यों में दान देकर अथवा सामाजिक संस्थाओं को देकर वे दानदाता और उदार पुरुष का गौरव पाते हैं।

इस प्रकार संसार की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था दूषित हो गई है। अनैतिक आचरणों से धन कमाना आज का शिष्टाचार बन गया है। एक ओर अधिक-से अधिक धन बटोरने की होड़ मची है तो दूसरी ओर भुखमरी और घोर गरीबी है। ये दोनों पक्ष आज की अर्थव्यवस्था के दो पहलू हैं, दो चेहरे हैं। अमीर और अमीर बन रहा है, गरीब और गरीब होता जा रहा है।

असंतोष का कारण-सम्पूर्ण मानव जाति आज जिस स्थिति में पहुंच गई है इसका कारण कहीं बाहर नहीं है स्वयं मनुष्य के मन में ही है। आज का मानवः इतना स्वार्थी हो गया है कि उसे केवल अपना सुख ही दिखाई देता है। वह स्वयं अधिक-से-अधिक धन कमाकर संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बनना चाहता है। ‘फोर्स’ नामक पत्रिका ने इस स्पर्धा को और बढ़ा दिया है।

इस पत्रिका में विश्व के धनपतियों की सम्पूर्ण सम्पत्ति का ब्यौरा होता है तथा उसी के अनुसार उन्हें श्रेणी प्रदान की जाती है। अतः सबसे ऊपर नाम लिखाने की होड़ में धनपतियों में आपाधापी मची हुई है। यह संपत्ति असंतोष का कारण बनी हुई है। इसके अतिरिक्त घोर भौतिकवादी दृष्टिकोण भी असंतोष का कारण बना हुआ है। ‘खाओ, पियो, मौज करो’ यही आज का जीवन-दर्शन बन गया है।

इसी कारण सारी नीति और मर्यादाएँ भूलकर आदमी अधिक-से-अधिक धन और सुख-सुविधाएँ बटोरने में लगा हुआ है। कवि प्रकाश जैन के शब्दों में –

हर ओर धोखा, झूठ, फरेब, हर आदमी टटोलता है दूसरे की जेब। संतोष में ही समाधान-इच्छाओं का अंत नहीं, तृष्णा कभी शांत नहीं होती। असंतुष्टि की दौड़ कभी खत्म नहीं होती। जो धन असहज रूप से आता है वह कभी सुख-शांति नहीं दे सकता।

झूठ बोलकर, तनाव झेलकर, अपरा-भावना का बोझ ढोते हुए, न्याय, नीति, धर्म से विमुख होकर जो धन कमाया जाएगा उससे चिन्ताएँ, आशंकाएँ और भय ही मिलेगा, सुख नहीं। इस सारे जंजाल से छुटकारे का एक ही उपाय है – संतोष की भावना।

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उपसंहार-आज नहीं तो कल धन के दीवानेपन को अक्ल आएगी। धन समस्याओं को हल कर सकता है, भौतिक सुख-सुविधाएं दिला सकता है, किन्तु मन की शांति तथा चिन्ताओं और शंकाओं से रहित जीवन धन से नहीं संतोष से ही प्राप्त हो सकता है। ‘संतोषी सदा सुखी’ यह कथन आज भी प्रासंगिक है। असंतोषी जब सिर धुनता है तब संतोषी सुख की नींद सोता है।

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