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RBSE Class 12 Hindi Sahitya Model Paper Set 9 with Answers
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश :
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए (6 x 1 = 6)
जल और मानव-जीवन का सम्बन्ध अत्यन्त घनिष्ठ है। वास्तव में जल ही जीवन है। विश्व की प्रमुख संस्कृतियों का जन्म बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे ही हुआ है। बचपन से ही हम जल की उपयोगिता, शीतलता और निर्मलता के कारण उसकी ओर आकर्षित होते रहे हैं। किन्तु नल के नीचे नहाने और जलाशय में डुबकी लगाने में जमीन-आसमान का अन्तर है। हम जलाशयों को देखते ही मचल उठाते हैं, उनमें तैरने के लिए। आज सर्वत्र सहस्रों व्यक्ति प्रतिदिन सागरों, नदियों और झीलों में तैरकर मनोविनोद करते हैं और साथ ही अपना शरीर भी स्वस्थ रखते हैं। स्वच्छ और शीतल जल में तैरना तन को स्फूर्ति ही नहीं, मन को शान्ति भी प्रदान करता है। तैरने के लिए आदिम मनुष्य को निश्चय ही प्रयत्न और परिश्रम करना पड़ा होगा, क्योंकि उसमें अन्य प्राणियों की भाँति तैरने की जन्म-जात क्षमता नहीं है। जल में मछली आदि जलजीवों को स्वच्छंद विचरण करते देख मनुष्य ने उसी प्रकार तैरना सीखने का प्रयत्न किया और धीरे-धीरे उसने इस कार्य में इतनी निपुणता प्राप्त कर ली कि आज तैराकी एक कला के रूप में गिनी जाने लगी। विश्व में जो भी खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, उनमें तैराकी प्रतियोगिता अनिवार्य रूप से सम्मिलित की जाती है।
(i) तैराकी के द्वारा कौन-से लाभ प्राप्त होते हैं ? (1)
(अ) मनोविनोद, शारीरिक स्फूर्ति व मानसिक शान्ति
(ब) शीतलता और निर्मलता
(स) शीतल जल के सान्निध्य का सुख
(द) मछलियों-सा अनुभव।
उत्तर :
(अ) मनोविनोद, शारीरिक स्फूर्ति व मानसिक शान्ति
(ii) आदिमानव को तैराकी की प्रेरणा कहाँ से मिली ? (1)
(अ) नभचरों से
(ब) निशाचरों से
(स) जलचरों से
(द) थलचरों से।
उत्तर :
(स) जलचरों से
(iii) मनुष्य के लिए तैराकी है (1)
(अ) जन्मजात क्षमता
(ब) भाग्य से प्राप्त क्षमता
(स) अनायास प्राप्त हुई क्षमता
(द) निरन्तर अभ्यास से प्राप्त क्षमता।
उत्तर :
(द) निरन्तर अभ्यास से प्राप्त क्षमता।
(iv) ‘अत्यन्त’ में उपसर्ग व मूलशब्द का उचित रूप है (1)
(अ) अत् + अन्त
(ब) अति + अन्त
(स) अत्य + अंत
(द) अत्यं + त।
उत्तर :
(ब) अति + अन्त
(v) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक होगा (1)
(अ) शीतल जल का महत्त्व
(ब) जल ही जीवन है
(स) तैराकी : एक कला
(द) शीतलता और निर्मलता।
उत्तर :
(स) तैराकी : एक कला
(vi) तैरने की जन्मजात प्रतिभा नहीं है (1)
(अ) पक्षियों में
(ब) मछलियों में
(स) जानवरों में
(द) मनुष्यों में।
उत्तर :
(द) मनुष्यों में।
निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए- (1 x 1 = 6)
हँस लो दो क्षण खुशी मिली पर
आसमान को छूने वाली,
वरना जीवन-भर क्रंदन है।
वे ऊँची-ऊँची मीनारें।
किसका जीवन हँसी-खुशी में
मिट्टी में मिल जाती हैं
वे इस दुनिया में रहकर बीता ?
छिन जाते हैं, सभी सहारे।
सदा-सर्वदा संघर्षों को
दूर तलक धरती की गाथा
इस दुनिया में किसने जीता ?
मौन मुखर कहता कण-कण है।
खिलता फल म्लान हो जाता
यदि तुमको मुसकान मिली तो
हँसता-रोता चमन-चमन है।
मुसकाओ सबके संग जाकर।
कितने रोज़ चमकते तारे
यदि तुमको सामर्थ्य मिला तो
कितने रह-रह गिर जाते हैं
थामो सबको हाथ बढ़ाकर
हँसता शशि भी छिप जाता है
झाँको अपने मन-दर्पण में
जब सावन घन घिर आते हैं।
प्रतिबिंबित सबका आनन है।
उगता-ढलता रहता सूरज
हँस लो दो क्षण खुशी मिली पर
जिसका साक्षी नील गगन है।
वरना जीवन-भर क्रंदन है।
(i) कवि के अनुसार जीवन में किसकी अधिकता है ? (1)
(अ) आनन्द की
(ब) सुख-सुविधाओं की
(स) दु:ख व कष्टों की
(द) शान्ति की।
उत्तर :
(स) दु:ख व कष्टों की
(ii) ऊँची-ऊँची इमारतें मिट्टी में मिलकर संकेत करती हैं (1)
(अ) उन्नति पर घमण्ड करना व्यर्थ है
(ब) सुख-दुख आते-जाते हैं
(स) नष्ट होना सत्य है
(द) निर्माण में विनाश छिपा है।
उत्तर :
(द) निर्माण में विनाश छिपा है।
(iii) सामर्थ्य की सार्थकता सिद्ध होती है (1)
(अ) अभिमान करने में
(ब) जीवन-जीने में
(स) सबको सहारा देने में
(द) स्वयं का उद्धार करने में।
उत्तर :
(स) सबको सहारा देने में
(iv) ‘प्रतिबिंबित’ शब्द मूल शब्द और प्रत्यय के योग से बना है, दोनों का सही क्रम है (1)
(अ) प्रतिबिंब + इत
(ब) प्रति + बिंबित
(स) प्रतिबिम् + बित
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(अ) प्रतिबिंब + इत
(v) उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए- (1)
(अ) खिलता फूल
(ब) रोता चमन
(स) व्यर्थ न गँवाएँ खुशियों के क्षण
(iv) मुसकान।
उत्तर :
(स) व्यर्थ न गँवाएँ खुशियों के क्षण
(vi) चन्द्रमा का पर्यायवाची शब्द पद्यांश में आया है (1)
(अ) आदित्य
(ब) भास्कर
(स) शशि
(द) चन्दा
उत्तर :
(स) शशि
प्रश्न 2.
दिए गए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
(i) प्रसाद गुण में …………………………………………… पदावली का प्रयोग होता है। (1)
उत्तर :
कोमलकांत
(ii) वाक्य दोष …………………………………………… प्रकार के होते हैं। (1)
उत्तर :
चार
(ii) गीतिका छंद में कुल …………………………………………… मात्राएँ होती हैं। (1)
उत्तर :
26
(iv) छन्द के चरणों के अंत में ध्वनि की समानता को …………………………………………… कहते हैं। (1)
उत्तर :
तुक
(v) सन्त हृदय नवनीत समाना। काव्य पंक्ति में …………………………………………… अलंकार है। (1)
उत्तर :
व्यतिरेक
(vi) उतरि नहाए जमुन जल, जो शरीर सम गात।’ काव्य पंक्ति में …………………………………………… अलंकार है। (1)
उत्तर :
प्रतीप
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द-सीमा 20 शब्द है। (12 x 1 = 12)
(i) दृष्टान्त अलंकार से आप क्या समझते हो? (1)
उत्तर :
कवि पहले एक कथन कहता है तथा उसकी पुष्टि दूसरे कथन में दृष्टान्त देकर करता है। ऐसे काव्य में दृष्टान्त अलंकार होता है।
(ii) विशेषोक्ति अलंकार के लक्षण दीजिए। (1)
उत्तर :
जहाँ कारण उपस्थित होने पर भी कार्य नहीं होता, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।
(iii) खेल बीट किसे सौंपी जानी चाहिए? (1)
उत्तर :
प्रायः किसी विशेष खेल के प्रसिद्ध खिलाड़ी अथवा किसी क्रीडा प्रशिक्षण संस्थान से संबंधित अधिकारी या कोच को ही खेल बीट सौंपी जाती है।
(iv) राजनीतिक रिपोर्टर को किन बातों की योग्यता होनी आवश्यक (1)
उत्तर :
राजनीतिक रिपोर्टर को समग्र राजनीतिक परिदृश्य के साथ उस पार्टी के पूरे इतिहास की जानकारी होनी चाहिए जिस पार्टी को कवर करना है।
(v) विशेष लेखन के पाठक वर्ग की क्या विशेषता होती है ? (1)
उत्तर :
विशेष लेखन के पाठक वर्ग की यह विशेषता होती है कि उसे उस विषय में अच्छी जानकारी होती है।
(vi) रामचंद्र के पिता जी भारत जीवन प्रेस की किताबें छुपा देते थे, क्यों? (1)
उतर :
लेखक के पिताजी को डर था कि कहीं उनके बेटे यानि रामचंद्र शुक्ल जी का चित्त स्कूल की पढ़ाई से हट न जाए। इसलिए प्रेस की किताबें छुपा दिया करते थे।
(vii) साझा कहानी का प्रतीकार्थ क्या है? (1)
उत्तर :
पूंजीपतियों की नजर उद्योगों पर एकाधिकार करने के बाद किसानों की जमीन पर है। यह साझा कहानी का प्रतीकार्थ है।
(vii) किसकी आज्ञा पाकर भरत अपनी बात कहने के लिए सभा में खड़े हुए? (1)
उत्तर :
मुनि वशिष्ठ की आज्ञा पाकर भरत अपनी बात कहने के लिए सभा में खड़े हुए।
(ix) कवि केशव के अनुसार भगवान शिव की तरह मुक्ति कौन देती है? (1)
उत्तर :
कवि केशव के अनुसार भगवान शिव की तरह मुक्ति पंचवटी देती है।
(x) कविता से आप क्या समझते हैं? लिखिए। (1)
उत्तर :
कविता मनुष्य के भावों को अभिव्यक्त करने का एक सुन्दर प्रयास है। कविता को मानव-मात्र की मातृभाषा भी कहा जाता है।
(xi) नाटक साहित्य की अन्य विधाओं से कैसे अलग है’? स्पष्ट करें। (1)
उत्तर :
जहाँ साहित्य की अन्य विधाएं अपने लिखित रूप में एक निश्चित और अंतिम रूप को प्राप्त कर लेती हैं वहीं नाटक अपने लिखित रूप में सिर्फ एक पक्षीय ही होता है। जब उस नाटक का मंचन होता है तब वह पूर्ण रूप प्राप्त करता है।
(xii) कहानी की मौखिक परंपरा के बारे में बताइए। (1)
उत्तर :
हमारे देश में मौखिक कहानी की परंपरा बहुत पुरानी है और आज तक प्रचलित है। खासतौर से राजस्थान में आज भी यह परंपरा जीवित है।
खण्ड – (ब)
निर्देश-प्रश्न सं 04 से 15 तक प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द सीमा 40 शब्द है।
प्रश्न 4.
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए क्या आवश्यक है ? (2)
उत्तर :
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए साक्षात्कारकर्ता को अपने साक्षात्कार के विषय और साक्षात्कार किए जाने वाले व्यक्ति के बारे में सम्यक और पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। इसके साथ ही साक्षात्कारकर्ता को अपने उद्देश्य का भी भलीभांति ज्ञान होना चाहिए। उसे ऐसे प्रश्न पूछने चाहिए जो किसी अखबार के सामान्य पाठक के मन में होने सम्भावित हों।
प्रश्न 5.
समाचारपत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट, फीचर की अपेक्षा लेख किस प्रकार भिन्न होते हैं ? (2)
उत्तर :
रिपोर्ट और फीचर की अपेक्षा लेख इस मामले में बिल्कुल भिन्न होते हैं कि इसमें लेखक के विचारों की प्रमुखता दी जाती है। परन्तु ये विचार तथ्यों तथा सूचनाओं पर आधारित होते हैं और लेखक उन तथ्यों और सूचनाओं का विश्लेषण करता है और अपने तका के माध्यम से अपना विचार प्रकट करता है।
प्रश्न 6.
मजदूरों को चार हाथ देने के लिये मिल मालिक ने क्या किया और उसका क्या परिणाम निकला? (2)
उत्तर :
मिल मालिक ने सोचा कि अगर मजदूरों के चार हाथ होते तो उत्पादन दुगुना हो जाता। उसने वैज्ञानिकों की मोटी तनख्वाह पर नौकर रखा और उनसे इस दिशा में कार्य करने को कहा पर उन्होंने कहा कि यह असंभव है। तब उसने लकड़ी के हाथ लगवाये पर काम न बना। फिर उसने मजदूरों के लोहे के हाथ लगवा दिये इससे मजदूर मर गए।
प्रश्न 7.
प्रियतमा के दुःख के क्या कारण हैं? ‘विद्यापति’ के पदों के आधार पर लिखिए। (2)
उत्तर :
प्रियतम कृष्ण उस विरहिणी नायिका का मन अपने साथ हरण करके ले गए। वह सखी से कहती है कि मेरे दुःख को मेरी पीड़ा को भला दूसरा कैसे जान पाएगा, इसे तो वही जान सकता है जिसने मेरे जैसा विरह दुःख झेला हो। इस प्रकार प्रियतमा के दुःख का मूल कारण है प्रियतम का परदेश गमन जिससे उसे विरह दुःख झेलना पड़ रहा है।
प्रश्न 8.
केशवदास अथवा जयशंकर प्रसाद में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय लिखिए। (2)
उत्तर :
मॉडल 1 का प्रश्न 8 का उत्तर देखें।
प्रश्न 9.
‘बालक बच गया’ कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ? (2)
उजर :
‘बालक बच गया’ कहानी के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता है कि छोटी उम्र के बालकों पर हमें जबरदस्ती किताबों का बोझ नहीं लादना चाहिए। शिक्षा की सही उम्र आने पर ही बालक को विद्यालय भेजना चाहिए। ‘रटने की प्रवृत्ति’ शिक्षा का उद्देश्य नहीं है, यह भी लेखक बताना चाहता है। आठ वर्ष के बालक की मूल प्रवृत्ति खेलने-खाने की होती है, विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त करने की नहीं। अभिभावकों एवं अध्यापकों को यह बात समझकर बालक की मूल प्रवृत्तियों का दमन नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 10.
कविता के आधार पर बनारस में वसन्त के आगमन और उसके प्रभाव का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए। (2)
उत्तर :
बनारस में वसन्त का आगमन अचानक होता है। सारा शहर धूल से भर जाता है। लोगों की जीभ पर धूल की किरकिराहट अनुभव होने लगती है। प्रकृति में जब वसन्त ऋतु आती है तो सारी प्रकृति श्रृंगार करती है। वृक्षों पर नये पत्ते आते हैं पर बनारस का वसन्त उससे भिन्न है।
बनारस के वसन्त में चारों तरफ धूल के बवंडर उठते हैं। वसन्त में बनारस के गंगा के घाटों और मन्दिरों में घण्टों की ध्वनि सुनाई देती है। गंगा के घाटों और मन्दिरों में भिखारियों की भीड़ बढ़ जाती है और उनके कटोरे भीख से भर जाते हैं।
प्रश्न 11.
निर्मल वर्मा अथवा पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी’ में से किसी एक साहित्यकार का साहित्यिक परिचय लिखिए। (2)
उत्तर :
मॉडल 8 का प्रश्न 11 का उत्तर देखें।
प्रश्न 12.
सूरदास की झोंपड़ी में लगी आग का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। अधिकांश लोग उस अग्निदाह को अपने किसी मित्र की चिताग्नि की तरह क्यों देख रहे थे ? (2)
उत्तर :
सूरदास की झोंपड़ी से आग की लपटें लपक-लपककर आकाश की ओर दौड़ रही थीं। कभी उनका आकार किसी मंदिर के गुम्बद के ऊपर लगे हुए स्वर्ण-कलश के समान कारण इस तरह काँपने लगती थीं जिस प्रकार पानी में पड़ने वाली चन्द्रमा की परछाई हिलती रहती है। वह आग अधिकांश लोगों को किसी मित्र की चिता के समान लग रही थी, क्योंकि सूरदास के सरल स्वभाव के कारण लोग उसको अपना मित्र समझते थे।
प्रश्न 13.
हिमांग पर रहते हुए भूप दादा अपने को अकेला क्यों नहीं मानते ? (2)
उत्तर :
यद्यपि भूप दादा हिमांग पहाड़ पर अकेलेपन का कष्टदायक जीवन जी रहे थे, परन्तु वह अपने को अकेला नहीं मानते थे। रूपसिंह को उन्होंने बताया था कि वे अकेले नहीं थे। वहाँ उनके साथ बाबा थे, माँ थी, शैला थी, सभी सोये पड़े थे। वहाँ महीप था, बैल थे, उनकी घरवाली थी, मौत के मुंह से निकले खेत थे, पेड़ थे, झरना था। उन पहाड़ों पर उनके प्यारे पुरखों की आत्मा भटकती रहती थी। वह उनसे बातें करते थे। फिर वह अकेले कैसे थे?
प्रश्न 14.
‘डग डग रोटी, पग-पग नीर’ यह उक्ति किसके बारे में कही गई है व क्यों? (2)
उत्तर :
“डग डग रोटी, पग पग नीर” यह युक्ति मालवा की धरती के लिए कही गई है। लेकिन आज की पश्चिमी सभ्यता हमें प्रकृति से दूर ले जा रही है। जिससे धरती पर तापमान बढ़ने से ऋतु चक्र प्रभावित हो रहा है। वर्षा की कमी होने से पानी के अभाव का संकट पैदा हो रहा है। इससे खेतों में अन्नोत्पादन प्रभावित हो रहा है। बड़े उद्योग लगाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा है। नदियों में स्वच्छ जल नहीं उद्योगों का अपशिष्ट कचरा बह रहा है। इससे मालवा की धरती के उजड़ने का संकट पैदा हो गया है।
प्रश्न 15.
‘आरोहण’ कहानी में कहानीकार ने क्या संदेश दिया है? (2)
उत्तर :
भूप सिंह का साथ सब छोड़ चुके हैं। रूप सिंह का पहाड़ छोड़ने का प्रस्ताव भूप को स्वीकार नहीं। यह प्रस्ताव उसके आत्म-सम्मान पर चोट करने वाला है। वह कठिनाई सह सकता है किन्तु अपना आत्म-सम्मान नहीं छोड़ सकता। ‘आरोहण’ कहानी में लेखक ने संदेश दिया है कि मनुष्य को अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। सब कुछ चला जाये किन्तु आत्म-सम्मान बना रहना चाहिए। खुद्दारी आदमी का सर्वोत्तम धन है। इसकी रक्षा करना उसका परम कर्तव्य है।
खण्ड – (स)
प्रश्न 16.
‘शेर’ लघुकथा के व्यंग्य को आज के सामाजिक राजनीतिक संदर्भो में स्पष्ट कीजिए। (उत्तर-सीमा 60 शब्द) (3)
अथवा
हरगोबिन ने गाँव की प्रतिष्ठा को धूमिल होने से कैसे बचाया? ‘संवदिया’ पाठ के आधार पर लिखिए। (3)
उत्तर :
शेर इस लघुकथा में व्यवस्था का प्रतीक है। लेखक ने इसके माध्यम से हमारी व्यवस्था (शासनतंत्र) पर व्यंग्य किया है। झूठे प्रचार के माध्यम से शासन जनता को खुशहाली का झाँसा देता है पर जनता का कुछ भी भला नहीं होता। सब कुछ शासकों की जेब में समा जाते हैं कि तुम्हें अच्छा भोजन मिलेगा, जीवन खुशहाल होगा और सबको रोजगार मिलेगा। लोग इन प्रलोभनों में फंसकर शासन की बात मानकर उसका सहयोग करते हैं।
जब तक जनता सत्ता की आज्ञा का पालन करती है तब तक वह खामोश रहती है किन्तु जब कोई व्यवस्था पर उँगली उठाता है तब विरोध में उठे स्वर को वह कुचलने का प्रयास करती है। इस लघुकथा के माध्यम से लेखक ने सुविधाभोगियों, छद्म क्रांतिकारियों, अहिंसावादियों और सहअस्तित्ववादियों के ढोंग पर प्रहार किया है।
प्रश्न 17.
‘कार्नेलिया का गीत’ में भारत की किन विशेषताओं का उल्लेख लिया गया है उनका वर्णन अपने ब्दों में कीजिए। (उत्तर-सीमा 60: द) (3)
अथवा
‘सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘सरोज स्मृति’ की मूल संवेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत गीत में प्रसाद जी ने भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं सांस्कृतिक महत्त्व का वर्णन किया है। प्रातः काल सूर्य की प्रथम किरणें जब भारत की भूमि पर पड़ती हैं तब प्रकृति की शोभा देखते ही बनती है। उस समय प्रकृति। मधुमय दिखाई देती है। यहाँ दूर देशों से आने वाले व्यक्तियों को आश्रय मिलता है।
यह देश सभी की शरणस्थली है। यहाँ के मनुष्य दयावान और करुणावान हैं तथा सभी के प्रति सहानुभूति रखते हैं। यहाँ के लोग सभी को सुख पहुँचाने वाले हैं। भारत में विविध सभ्यता-संस्कृति, रंग-रूप, आचार-विचार एवं धर्म वाले प्राणियों के साथ समानता का व्यवहार किया जाता है। इस प्रकार कवि ने इस कविता में भारत की अनेक विशेषताओं की ओर संकेत किया है।
प्रश्न 18.
सूरदास की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए और आपको इस पात्र से क्या प्रेरणा मिलती है? (उत्तर-सीमा 80 शब्द) (4)
अथवा
यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं, किन्तु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों घेरने लगी? (उत्तर-सीमा 80 शब्द) 4
उत्तर :
सूरदास के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- दयालु और सहानुभूतिपूर्ण-सूरदास दयालु और सीधा-सच्चा मनुष्य है। सुभागी को पिटता देख वह उससे सहानुभूति रखता है और उसे भैरों की पिटाई से बचाता है। वह गाँव के अन्य जनों की सहायता के लिए भी तत्पर रहता है।
- सहनशील-सूरदास अत्यन्त सहनशील है। यह जानकर भी कि भैरों ने उसकी झोंपड़ी जलाई है तथा रुपये चुराये हैं, वह कुछ नहीं कहता। अपने ऊपर लगाए गए लांछन को भी वह शांत मन से सहन करता है।
- भाग्यवादी-सूरदास भाग्य पर विश्वास करता है। वह मानता है कि मनुष्य को पूर्व जन्म के कर्मों का परिणाम भोगना पड़ता है।
- आत्म-विश्वास-सूरदास आत्मविश्वास की भावना से भरा हुआ है। रुपये चोरी हो जाने पर वह अपनी योजनाओं के अपूर्ण रह जाने से चिन्तित तो है, परन्तु फिर से रुपया कमाकर उन्हें पूरा करने का विश्वास भी उसको है।
- विजय-गर्व से भरपूर-झोंपड़ी जलने और चोरी हो जाने से उत्पन्न निराशा के भाव सूरदास के मन में स्थायी नहीं हैं।
- बच्चों के मुख से सुनकर कि खेल में रोना अच्छी बात नहीं होती, वह तत्काल इस मनोदशा से स्वयं को मुक्त कर लेता है और उसका मन इस आशा से भर उठता है कि यदि कोई उसकी झोंपड़ी में सौ लाख बार भी आग लगाएगा तो वह उसे बार-बार बनाएगा।
खण्ड – (द)
प्रश्न 19.
निम्नलिखित पठित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए- (1 + 4 = 5)
सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहै जहँ एक घटी। निघटी रुचि मीचु घटी हूँ घटी जगजीव जतीन की छूटी तटी। अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान-गटी। चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचबटी।।
अथवा
पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े। नीरज नयन नेह जल बाढ़े।। कहब मोर मुनिनाथ निबाहा। एहि तें अधिक कहीं मैं काहा।। मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ। अपराधिहु पर कोह न काऊ।। मो पर कृपा सनेहु बिसेखी। खेलत खुनिस न कबहूँ देखी।। सिसुपन तें परिहरेउँ न संगू। कबहुँ न कीन्ह मोर मन भंगू।। मैं प्रभु कृपा रीति जियँ जोही। हारेहु खेल जितांवहिं मोही।। महूँ सनेह सकोच बस सनमुख कही न बैन। दरसन तृपित न आजु लगि पेम पिआसे नैन।।
उत्तर :
सन्दर्भ प्रस्तुत छन्द केशवदास द्वारा रचित ‘रामचन्द्र चन्द्रिका’ से लिया गया है जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित किया गया है।
प्रसंग-इस छन्द में कवि ने पंचवटी की महिमा का वर्णन चमत्कारपूर्ण ढंग से किया धन है। इसकी रक्षा करना उसका परम कर्तव्य है। लक्ष्मण जी पंचवटी की शोभा का वर्णन करते हुए उसे गुणों में भगवान शंकर ने समान मुक्तिदायिनी बता रहे हैं। यहाँ मुक्तिरूपी नर्तकी सर्वत्र नृत्य करती दिखाई देती है।
व्याख्या-लक्ष्मण जी कहने लगे कि यह पंचवटी नाम का वन शिवजी के समान गुणों वाला है। जिस प्रकार शिवजी के दर्शनों से दुःख समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार इस पंचवटी वन में आकर दुःखरूपी चादर पूर्णरूप से फटी जा रही है। तात्पर्य यह है कि सभी दुःख नष्ट हुए जा रहे हैं। कपटी लोग यहाँ एक घड़ी भी नहीं रह सकते। यहाँ आकर लोगों की इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं तथा मृत्यु की घड़ी समाप्त हो जाती है अर्थात् मुक्ति मिल जाती है।
यहाँ आकर संसार के जीवों और योगियों की समाधि छूट जाती है। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य इतना मनमोहक है कि सभी लोग यहाँ आकर पंचवटी की शोभा देखने लगते हैं। यहाँ आकर पापों के समूह की विकट बेड़ी कट जाती है तथा श्रेष्ठ ज्ञानरूपी गठरी समीप ही प्रकट हो जाती है।
भाव यह है, कि पंचवटी में रहने वाले ऋषि-मुनियों की संगति से, उनके प्रवचनों को सुनकर पाप समूह नष्ट हो जाता है और व्यक्ति को सहज में ही ज्ञान उपलब्ध हो जाता है। इसके चारों ओर मुक्तिरूपी नर्तकी नाचती है। शिवजी के चारों ओर भी मुक्ति नाचती रहती है।
प्रश्न 20.
निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (1 + 4 = 5)
मैं तो केवल निमित्तमात्र था। अरुण के पीछे सूर्य था। मैंने पुत्र को जन्म दिया, उसका लालन-पालन किया, बड़ा हो जाने पर उसके रहने के लिए विशाल भवन बनवा दिया, उसमें उसका गृह-प्रवेश करा दिया, उसके संरक्षण एवं परिवर्धन के लिए एक सुयोग्य अभिभावक डॉ सतीश चंद्र काला को नियुक्त कर दिया और फिर मैंने संन्यास ले लिया।
अथवा
किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुजारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के बेटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी। किसान किसी न किसी तरह तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर गन्ना
बोया।
उत्तर :
संदर्भ प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘कच्चा चिट्ठा’ नामक पाठ से ली गई हैं जो ब्रजमोहन व्यास की आत्मकथा का एक अंश है। यह पाठ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित है।
प्रसंग-व्यास जी प्रयाग संग्रहालय के संस्थापक थे। उसके संरक्षण एवं परिवर्द्धन का उत्तरदायित्व एक सुयोग्य व्यक्ति को सौंपकर संन्यास ले लिया। अवतरण के इस भाग में इसी वृत्तांत का उल्लेख है।
व्याख्या-व्यास जी प्रयाग संग्रहालय के संस्थापक थे पर उन्होंने अत्यंत विनम्रतापूर्वक स्वयं को इसका श्रेय न देते हुए निमित्तमात्र घोषित किया है। स्वयं को कर्त्ता न मानकर केवल ‘कारण’ (साधन) मात्र बताना उनकी विनम्रता ही है अन्यथा ‘प्रयाग संग्रहालय’ की कल्पना भी उनके बिना नहीं की जा सकती थी।
आकाश में अरुणोदय होते ही अंधकार छैट जाता है पर वास्तविकता यह है कि अरुण (सारथी) को अपने पीछे ‘सूर्य’ का बल प्राप्त है। व्यास जी यह कहना चाहते हैं कि उन्होंने जो कुछ किया उसके पीछे परमात्मा की इच्छा थी अर्थात् परमात्मा की कृपा से इतना बड़ा काम सफल हो सका।
जैसे हम बच्चे को जन्म देकर उसका लालन-पालन करते हैं, जब वह बड़ा हो जाता है, तब उसके लिए भवन बनवाकर गृह प्रवेश करा देते हैं, ठीक इसी प्रकार व्यास जी ने प्रयाग संग्रहालय को जन्म दिया, उसका संरक्षण-परिवर्द्धन किया और उसके लिए एक विशाल भवन बनवा दिया।
यही नहीं अपितु उस भवन में उसका प्रवेश भी करा दिया अर्थात् संग्रहालय की समस्त सामग्री नवीन भवन में प्रदर्शित-संरक्षित कर दी और डॉ सतीश चंद्र काला को उसका संरक्षक नियुक्त कर दिया। इस संग्रहालय के संरक्षण-परिवर्द्धन की जिम्मेदारी सुयोग्य हाथों में सौंपकर उन्होंने संन्यास ले लिया अर्थात् वे अपने कार्य से विरत हो गए।
प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 400 शब्दों में सारगर्भित निबंध लिखिए। (6)
(अ) परहित सरिस धर्म नहिं भाई
(ब) डिजिटल इंडिया
(स) जनसंख्या वृद्धि की समस्या
(द) आतंकवाद : एक विश्वव्यापी समस्या
(य) राजस्थान के लोकगीत :
उत्तर :
(स) जनसंख्या वृद्धि की समस्या प्रस्तावना-आज भारत की जनसंख्या एक अरब पच्चीस करोड़ से भी ऊपर जा पहुँची है। महान भारत की इस उपलब्धि पर भी इतराने वाले कुछ विचार विमूढ़ हो सकते हैं। हर बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि जनसंख्या का यह दैत्याकार रथ विकास के सारे कीर्तिमानों को रौंदता हुआ देश के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। बढ़ती जनसंख्या की समस्या–भारत की जनसंख्या में अनियन्त्रित वृद्धि सारी समस्याओं का मूल कारण बनी हुई है। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अपराध-वृद्धि, तनाव, असुरक्षा, सभी जनसंख्या वृद्धि के ही परिणाम हैं।
भारत के विश्व की महाशक्ति बनने के सपने जनसंख्या के प्रहार से ध्वस्त होते दिखाई दे रहे हैं। ‘एक अनार सौ बीमार’ यह कहावत चरितार्थ हो रही है। जनसंख्या-वृद्धि के महा-अश्वमेध का घोड़ा शेयर बाजार के उफान, मुद्राकोष की ठसक, विदेशी निवेश की दमक सबको अँगूठा दिखाता आगे-आगे दौड़ रहा है। जनसंख्या-वृद्धि के दुष्परिणाम-जनसंख्या और उत्पादन दर में चोर-सिपाही का खेल होता रहता है।
जनसंख्या-वृद्धि आगे-आगे दौड़ती है और पीछे-पीछे उत्पादन-वृद्धि। वास्तविकता यह है कि उत्पादन-वृद्धि के सारे लाभ को जनसंख्या की वृद्धि व्यर्थ कर देती है। आज हमारे देश में यही हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि सारी समस्याओं की जननी है। बढ़ती महँगाई, बेरोजगारी, कृषि-भूमि की कमी, उपभोक्ता-वस्तुओं का अभाव, यातायात की कठिनाई सबके मूल में यही बढ़ती जनसंख्या है।
नियंत्रण के उपाय- आज के विश्व में जनसंख्या पर नियंत्रण रखना प्रगति और समृद्धि के लिए अनिवार्यतः आवश्यकता है। भारत जैसे विकासशील देशके लिए जनसंख्यानियन्त्रण परम आवश्यक है। जनसंख्या पर नियन्त्रण के अनेक उपाय हो सकते हैं।
- वैवाहिक आयु-में वृद्धि करना एक सहज उपाय है। बाल विवाहों पर कठोर नियन्त्रण होना चाहिए।
- दूसरा उपाय संतति-निग्रह अर्थात् छोटा परिवार है। परिवार नियोजन के अनेक उपाय आज उपलब्ध हैं।
- तीसरा उपाय राजकीय सुविधाएँ उपलब्ध कराना है। परिवार नियोजन अपनाने वाले व्यक्तियों को वेतन वृद्धि देकर, पुरस्कृत करके तथा नौकरियों में प्राथमिकता देकर भी जनसंख्यानियन्त्रण को प्रभावी बनाया जा सकता है।
- इनके अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार द्वारा तथा धार्मिक और सामाजिक नेताओं का सहयोग भी जनसंख्या-नियन्त्रण में सहायक हो सकता है।
- ये सभी तो प्रोत्साहन और पुरस्कार से सम्बन्धित हैं किन्तु कठोर दण्ड के भय के बिना विशेष सफलता नहीं मिल सकती।
- धर्म-जाति के आधार पर भेदभावपूर्ण व्यवस्था के रहते हुए भी जनसंख्या पर नियन्त्रण असम्भव है।
उपसंहार-आज देश के सामने जितनी समस्याएँ हैं प्रायः सभी के मूल में जनसंख्या वृद्धि ही मूख्य कारण दिखाई देता है। जनता और सरकार दोनों ने ही इस भयावह समस्या से आँखें बंद कर रखी हैं। इस खतरे की घंटी की आवाज को अनसुना किया जा रहा है। कहीं ऐसा न हो कि यह सुप्त ज्वालामुखी एक दिन अपने विकट विस्फोट से राष्ट्र के कुशल-क्षेम को जलाकर राख कर दे।
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