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RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

April 1, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 12th History Model Papers Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi Medium provided here.

RBSE Class 12 History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:-

  1. परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  2. सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  3. प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर पुस्तिका में ही लिखें।
  4. जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

खण्ड – अ

प्रश्न 1.
बहुविकल्पीय प्रश्न-निम्न प्रश्नों के उत्तर का सही विकल्प चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
(i) सिन्धु सभ्यता का स्थल धौलावीरा, निम्न में से किस राज्य में स्थित है? [1]
(अ) राजस्थान
(ब) गुजरात
(स) महाराष्ट्र
(द) उत्तर प्रदेश
उत्तर:
(ब) गुजरात

(ii) भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल कौन थे? [1]
(अ) आर. ई. एम. व्हीलर
(ब) एस.आर.राव
(स) कनिंघम
(द) बी. बी. लाल
उत्तर:
(स) कनिंघम

(iii) हरिषेण निम्न में से किसके राजकवि थे? [1]
(अ) चन्द्रगुप्त प्रथम
(ब) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(स) समुद्र गुप्त
(द) चन्द्रगुप्त मौर्य
उत्तर:
(स) समुद्र गुप्त

(iv) ‘हर्ष चरित’ के लेखक हैं- [1]
(अ) हर्षवर्धन
(ब) बाणभट्ट
(स) कौटिल्य
(द) मयूर
उत्तर:
(ब) बाणभट्ट

(v) सुदर्शन सरोवर का जीर्णोद्वार निम्न में से किसने करवाया? [1]
(अ) श्रीगुप्त
(ब) समुद्र गुप्त
(स) रूद्रदामन
(द) बिन्दुसार
उत्तर:
(द) बिन्दुसार

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

(vi) प्रसिद्ध यात्री ज्यौं-बैप्टिस्ट तैवर्नियर कहाँ का निवासी था? [1]
(अ) इटली
(ब) फ्राँस
(स) मोरक्को
(द) इंग्लैण्ड
उत्तर:
(ब) फ्राँस

(vii) शेख फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर की दरगाह निम्न में से कहाँ स्थित है? [1]
(अ) अजमेर
(ब) दिल्ली
(स) फतेहपुर सीकरी
(द) अजोधन
उत्तर:
(द) अजोधन

(viii) विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किस वर्ष की गई? [1]
(अ) 1236
(ब) 1336
(स) 1256
(द) 1356
उत्तर:
(ब) 1336

(ix) अंग्रेजों के विवरणों में ‘रैयत’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया था? [1]
(अ) श्रमिक
(ब) मकान मालिक
(स) किसान
(द) सरकारी कर्मचारी
उत्तर:
(स) किसान

(x) सहायक सन्धि व्यवस्था किसने आरम्भ की थी? [1]
(अ) लार्ड वेलेजली
(ब) लार्ड डलहौजी
(स) लार्ड कैनिंग
(द) लार्ड क्लाइव
उत्तर:
(अ) लार्ड वेलेजली

(xi) 1853 का वर्ष मुख्य रूप से किसके लिए जाना जाता है? [1]
(अ) सती प्रथा पर रोक
(ब) रेलवे की शुरूआत
(स) राजधानी परिवर्तन
(द) गेटवे ऑफ इण्डिया का निर्माण
उत्तर:
(ब) रेलवे की शुरूआत

(xii) महात्मा गाँधी को किसने एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा करने की सलाह दी- [1]
(अ) फिरोजशाह मेहता
(ब) बाल गंगाधर तिलक
(स) देशबन्धु चितरंजन दास
(द) गोपाल कृष्ण गोखले
उत्तर:
(द) गोपाल कृष्ण गोखले

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न 2.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-
(i) बाबा गुरूनानक का जन्म स्थल ननकाना गाँव था जो …………………… नदी के पास था। [1]
(ii) ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1793 में …………………. बंदोबस्त लागू किया। [1]
(iii) 10 मई 1857 की दोपहर बाद ……………….. छावनी में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। [1]
(iv) नव गॉथिक शैली का सबसे बेहतरीन उदाहरण ………………… टर्मिनस है जो ग्रेट इंडियन पेनिन्स्यूलर रेलवे कम्पनी का स्टेशन हुआ करता था। [1]
(v) 1929 में दिसम्बर के अंत में कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन ……………… शहर में किया। [1]
(vi) शुरूआत में बम्बई …………………… टापुओं का इलाका था। जैसे-जैसे आबादी बढ़ी इन टापुओं को एक-दूसरे से जोड़ दिया। [1]
उत्तर:
(i) रावी,
(ii) इस्तमरारी,
(iii) मेरठ,
(iv) विक्टोरिया,
(v) लाहौर,
(vi) सात।

प्रश्न 3.
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न- निम्न प्रश्नों के उत्तर एक शब्द अथवा एक पंक्ति में दीजिए।
(i) अष्टाध्यायी ग्रन्थ किसने लिखा? [1]
उत्तर:
पाणिनी ने।

(ii) गौतमी पुत्र सातकनि किस वंश से सम्बन्धित थे? [1]
उत्तर:
सातवाहन वंश से।

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

(iii) इब्न बतूता को किस सुल्तान ने दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया? [1]
उत्तर:
मुहम्मद बिन तुगलक ने।

(iv) किस यात्री ने मुगलकालीन नगरों को शिविर नगर’ कहाँ है? [1]
उत्तर:
बर्नियर ने।

(v) किस ग्रन्थ को तमिल वेद के रूप में भी जाना जाता है? [1]
उत्तर:
नलयिरादिव्यप्रबंधम को।

(vi) ‘जोतदार’ किन्हें कहा जाता था? [1]
उत्तर:
उत्तरी बंगाल के प्रभावशाली किसान तथा मुखिया जोतदार कहलाते थे। [1]

(vii) पाँचवी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में किस वर्ष पेश की गई? [1]
उत्तर:
1813 ई. में।

(viii) इतिहासकार महाभारत ग्रन्थ की विषय वस्तु को किन दो शीर्षकों के अंतर्गत रखते हैं? [1]
उत्तर:
(अ) आख्यान
(ब) उपदेशात्मक।

(ix) अल-बिरूनी ने अपने लेखन में किस भाषा का प्रयोग किया? [1]
उत्तर:
अरबी भाषा का।

(x) फ्रांसिस बुकानन किस गवर्नर जनरल का शल्य चिकित्सक भी रहा था? [1]
उत्तर:
लार्ड वेलेजली।

(xi) अखिल भारतीय जनगणना का प्रथम प्रयास किस वर्ष किया गया? [1]
उत्तर:
सन् 1872 में।

(xii) सेनेटोरियम से आप क्या समझते हैं? [1]
उत्तर:
लम्बी बीमारी से पीड़ित रोगियों के उपचार और स्वास्थ्य लाभ के लिए अस्पताल जैसा स्थान।

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

खण्ड – ब

लघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 50 शब्द)

प्रश्न 4.
सिन्धु सभ्यता में विलासिता की कौन-कौन सी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं? [2]
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता में विलासिता की कई वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। पुरातत्वविदों ने उन वस्तुओं को विलासिता की वस्तुएँ माना है जो दुर्लभ और महँगी, स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों से बनी हों। इस प्रकार सिन्धु सभ्यता से प्राप्त फ़यॉन्स (घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया पदार्थ) से बने छोटे पात्र, तकलियाँ, स्वर्णभूषण आदि विलासिता की वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं।

प्रश्न 5.
देवानंपिय व पियदस्सी का अर्थ बताइये। [2]
उत्तर:
देवानंपिय व पियदस्सी नामक यह उपाधियाँ मौर्य शासक अशोक ने धारण की थीं।
इन उपाधियों का अर्थ निम्न प्रकार से है-
देवानंपिय का अर्थ है- देवताओं का प्रिय
पियदस्सी का अर्थ है- देखने में सुंदर/सुंदर मुखाकृति वाला राजा।
सम्राट अशोक ने धम्म के माध्यम से समाज की भलाई के फलस्वरूप उसे उनकी प्रजा द्वारा देवानंपिय व पियदस्सी . के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न 6.
मातृवंशिकता से आप क्या समझते हैं? [2]
उत्तर:
मातृवंशिकता से अभिप्राय ऐसी वंश परम्परा से है जो माँ से जुड़ी हुई होती है। इस व्यवस्था में स्त्रियों मुख्यतः माताओं की केन्द्रीय भूमिका होती है। आमतौर से इस व्यवस्था में कुल पुत्रियों के द्वारा चलता है और परिवार का नेतृत्व उस परिवार में पैदा हुई सबसे अधिक उम्र की महिला करती है मातृवंशिकता में सम्पत्ति और उपाधियाँ भी बेटियों को ही मिला करती हैं।

प्रश्न 7.
इन बतूता ने नारियल का वर्णन किस प्रकार किया? [2]
उत्तर:
अरबी यात्री इब्न बतूता ने नारियल के वृक्ष को प्रकृति का एक अनोखा और विस्मयकारी वृक्ष माना। उन्होंने अपने वर्णन में लिखा कि नारियल का पेड़ तो खजूर के जैसा ही होता है परन्तु इसमें जो फल लगते हैं, उनकी आकृति मानव के सिर के समान होती है। नारियल के रेशों से रस्सी निर्मित की जाती है जिसके विविध प्रयोग होते हैं। नारियल गिरी का प्रयोग खाने में होता है।

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प्रश्न 8.
किन्हीं दो सूफी सिलसिलों के नाम लिखिए। [2]
उत्तर:
12वीं शताब्दी के लगभग इस्लामी जगत में सूफी सिलसिलों का गठन होने लगा। सिलसिले का शाब्दिक अर्थ है- जंजीर जो शेख और मुरीद के बीच एक निरन्तर रिश्ते की प्रतीक है।
दो प्रमुख सूफी सिलसिले हैं-

  • चिश्ती
  • कादरी।

प्रश्न 9.
अमर नायक के कोई दो अधिकार बताइये। [2]
उत्तर:
अमर नायक विजयनगर साम्राज्य से सम्बन्धित थे। इनके दो प्रमुख अधिकार निम्न थे-

  • अपने-अपने क्षेत्रों में किसानों, शिल्पकारों, व्यापारियों से राजस्व संग्रह कर राजकोष में जमा करना।
  • राज्य की सैनिक सहायता करना।

प्रश्न 10.
स्थापत्य के सन्दर्भ में गोपुरम से आप क्या समझते हैं? [2]
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य में गोपुरम एक प्रकार से राजकीय प्रवेश द्वार थे जो दूर से ही मंदिर होने का संकेत देते थे। गोपुरम के अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मंडप और लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे देवस्थलों को चारों ओर से घेरे हुए होते थे। गोपुरम की मीनारों की विशालता देखते ही बनती है।

प्रश्न 11.
‘ताल्लुकदार’ का शब्दिक अर्थ क्या है? [2]
उत्तर:
ताल्लुकदार का शब्दिक अर्थ है-वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक अर्थात सम्बन्ध हो। आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया।

प्रश्न 12.
“ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा” उपरोक्त कथन किसने व किस रियासत के बारे में कहा? [2]
उत्तर:
1851 ई. में गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने अवध रियासत के बारे में कहा था कि “ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” 1856 ई. में इस रियासत को औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न 13.
आपके अनुसार चरखे के साथ महात्मा गाँधी किस प्रकार राष्ट्रवाद की स्थाई पहचान बन गए। [2]
उत्तर:
महात्मा गाँधी मानवता व मानवीय श्रम के प्रबल समर्थक थे। इसके विपरीत उनके समय में मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रमिकों के हाथ से रोजगार छीन लिया था। गाँधीजी ने चरखे को मानव समाज और राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में देखा जिसमें मशीनों और प्रोद्योगिकी को अधिक महिमामण्डित नहीं किया गया। अधिक चरखा कातना निर्धनों को पूरक आय भी प्रदान करता था जिससे उन्हें स्वावलम्बी बनने में सहायता प्राप्त होती। गाँधीजी मानते थे कि मशीनों से श्रम बचाकर व्यक्तियों को मौत के मुँह में धकेलना और उन्हें बेरोजगार बनाकर सड़क पर फैंकने के समान है। इन सब विचारों के कारण चरखे के साथ महात्मा गाँधी राष्ट्रवाद की स्थाई पहचान बन गए।

प्रश्न 14.
1857 के विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने क्या कदम उठाए? [2]
उत्तर:
1857 के विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने कई कानून पारित किए। उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया जिसके तहत सेना के अधिकारियों के अतिरिक्त आम जनता को भी विद्रोहियों पर मुकदमे चलाने व सजा देने का अधिकार दे दिया गया। कानून और मुकदमों की सामान्य प्रक्रिया बंद कर दी गयी तथा विद्रोह की एक ही सजा ‘सजा-ए-मौत’ निर्धारित की गयी।

प्रश्न 15.
किताब-उल-हिन्द की विशेषताएँ बताइये। [2]
उत्तर:
अलबिरूनी द्वारा लिखित किताब-उल-हिंद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह पुस्तक अरबी भाषा में ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में लिखी गयी।
  • इस पुस्तक में अल बिरूनी ने भारत के धर्म, दर्शन, विभिन्न त्यौहार, खगोल विज्ञान, विभिन्न रीतिरिवाज एवं प्रथाएँ, भारतीयों का सामाजिक जीवन, भार-तोल और मापन की विधियों का वर्णन किया गया है।
  • यह पुस्तक 80 अध्यायों में विभाजित है।
  • इस ग्रन्थ में विशिष्ट रचना कौशल देखने को मिलता है।

प्रश्न 16.
लॉटरी कमेटी पर टिप्पणी लिखिए। [2]
उत्तर:
कलकत्ता में लॉटरी कमेटी लॉटरी बेचकर नगर नियोजन के लिए धन इकट्ठा करती थी। इस कमेटी ने कलकत्ता शहर के नियोजन के लिए शहर का एक मानचित्र बनाया ताकि कलकत्ता शहर की पूरी तस्वीर सामने आ सके। इस कमेटी ने सड़कें बनवायीं और नदी के किनारे से अवैध कब्जे हटवाये तथा शहर को साफ सुथरा करने के लिए गरीबों की झोपड़ियों को शहर से हटाकर कलकत्ता के बाहरी किनारों पर बसा दिया।

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

खण्ड – स

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 100 शब्द)

प्रश्न 17.
सिन्धु सभ्यता के नगर नियोजन की उन विशेषताओं का वर्णन कीजिए जो आज भी प्रांसगिक हैं। [3]
उत्तर:
सिंधु सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं-
(1) व्यवस्थित सड़कें तथा गलियाँ-सिन्धु सभ्यता के नगरों की सड़कें, सम्पर्क मार्ग एवं गलियाँ एक सुनिश्चित योजना के अनुसार निर्मित थीं। सड़कें व गलियाँ ग्रिड-पद्धति में निर्मित थीं एवं सड़कें सीधी और चौड़ी थीं। सभी सड़कें पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण की ओर आपस में जुड़ी हुई थीं।

(2) सड़कों के मोड़ पर दीवारों में गोलाई-बैलगाड़ियों, पशुओं तथा अन्य वाहनों के आवागमन को ध्यान में रखते हुए सड़कों के मोड़ पर मकानों की दीवारों में गोलाई रखी जाती थी जिससे सड़क के मोड़ पर दृश्यता स्पष्ट रहे और आवागमन में कोई असुविधा न हो। गोलाई के लिए एक विशेष प्रकार की गोल ईंटों का प्रयोग किया जाता था।

(3) नियोजित जल निस्तारण व्यवस्था-सिन्धु सभ्यता में जल निस्तारण की व्यवस्था अति उत्तम थी। यहाँ सड़कें तथा गलियाँ लगभग एक ‘ग्रिड पद्धति’ में बनी थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। प्रत्येक घर में गन्दे पानी के निकास के लिए नालियाँ थीं जो सड़कों की नालियों से मिलती थीं। सड़क की नालियाँ सड़क के दोनों ओर बनाई जाती थीं। नालियाँ मिट्टी के गारे, चूने और जिप्सम से बनाई जाती थीं। नालियों को ईंटों और पत्थरों से ढका जाता था। नालियों का पानी आगे एक बड़ी नाली में गिरता था जो पानी को शहर से बाहर ले जाती थीं।

(4) व्यवस्थित आवासीय भवन-आवास एक निश्चित योजना के अनुसार ही बनाये जाते थे। प्रत्येक मकान में एक स्नानागार, आँगन और आँगन के चारों ओर कमरे हुआ करते थे। शौचालय व रसोईघर में दरवाजों, खिड़कियों आदि की भी समुचित व्यवस्था थी। मकानों का कोई हिस्सा सड़क या गली की ओर निकला हुआ नहीं होता था। मकानों के निर्माण में प्रायः पक्की ईंटों का प्रयोग होता था।

अथवा

सिन्धु सभ्यता के गृह स्थापत्य की उन विशेषताओं का वर्णन कीजिए जो आज भी प्रासंगिक हैं। [3]
उत्तर:
सिंधु सभ्यता के गृह स्थापत्य की प्रमुख विशेषताएँ-सिंधु सभ्यता के गृह स्थापत्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं-

  • आवासीय भवन मुख्य रूप से एक आँगन पर केन्द्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
  • आँगन सम्भवतः खाना पकाने और कताई करने (विशेषकर गर्म व शुष्क मौसम में।) जैसी गतिविधियों का केन्द्र था।
  • आवास के मुख्य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आँगन सीधे तौर पर दिखाई नहीं देता था।
  • प्रत्येक घर में ईंटों के फर्श से बना एक स्नानागार होता था जिसकी नालियाँ दीवार के जरिए सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थीं।

प्रश्न 18.
मगध के सबसे शक्तिशाली महाजनपद होने के कारण बताइये। [3]
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पू. तक उत्तर और मध्य भारतीय क्षेत्र में 16 महाजनपदों का उद्भव हो चुका था जिनमें मगध सबसे अधिक शक्तिशाली था। मगध के सबसे शक्तिशाली महाजनपद होने के निम्नलिखित कारण थे-

  • मगध तीनों ओर से सुरक्षित पहाड़ियों से घिरा हुआ था।
  • मगध के मध्य में जीवनदायिनी गंगा तथा सोन नदी बहती थी।
  • मगध की सीमाओं में प्रचुर मात्रा में खनिज सम्पदा उपलब्ध थी विशेष रूप से लोहे की खानें थीं।
  • मगध महाजनपद को शक्तिशाली तथा महत्वाकांक्षी राजाओं की प्राप्ति हुई।
  • मगध शासकों ने अपनी कूटनीति तथा वैवाहिक सम्बन्धों से मगध को शक्तिशाली बनाया।

इस प्रकार मगध महाजनपद को एक नहीं अपितु अनेक लाभदायक स्थितियाँ प्राप्त थीं जिनके कारण मगध महाजनपद ही शक्तिशाली महाजनपद बना।

अथवा

अभिलेखों से कौन-कौन से ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त होते हैं? [3]
उत्तर:
अभिलेखों से इतिहास के अध्ययन में बहुत सहायता प्राप्त होती हैं। अभिलेखों से हमें तत्कालीन शासक की महानता तथा व्यक्तित्व का बहुआयामी विवरण प्राप्त होता है। एक अभिलेख जो सम्राट अशोक के बारे में है, उसमें सम्राट की दो उपाधियों का उल्लेख मिलता है। जैसे देवानांप्रिय (देवताओं का प्रिय) और पियदस्सी (प्रियदर्शी) देखने में सुंदर, मनोहर (मुखाकृति वाला), अभिलेखों द्वारा हम किसी सम्राट के शासनकाल की घटनाओं का उचित कालक्रम निर्धारित कर सकते हैं। एक अभिलेख कलिंग विजय के पश्चात् सम्राट अशोक की वेदना और पश्चाताप को मार्मिक ढंग से दर्शाता है। इसके पश्चात् सम्राट अशोक ने साम्राज्यवादी नीति का परित्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया तथा बौद्ध धर्म के धम्म पद के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार हेतु बहुत से अभिलेख खुदवाए। प्रयाग प्रशस्ति स्तम्भ शिलालेख से समुद्र गुप्त के काल की घटनाओं का ज्ञान होता है। वहीं जूनागढ़ शिलालेख से राजा रूद्रदामन द्वारा सुदर्शन झील के निर्माण की जानकारी प्राप्त होती है। इस तरह अभिलेखों से अनेक ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न 19.
महानवमी डिब्बा की विशेषताएँ बताइये। [3]
उत्तर:
महानवमी डिब्बा की विशेषताएँ-विजयनगर साम्राज्य में महानवमी डिब्बा शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशाल मंच था जिसका आकार लगभग 11000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट थी। हमें ऐसे साक्ष्य मिले. हैं, जिससे पता चलता है कि इस पर एक लकड़ी की संरचना बनी हुई थी। कारीगरों ने इसके आधार पर सुन्दर नक्काशी भी की है। सम्भवतः इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान महानवमी से जुड़े थे, जिसका सम्बन्ध उत्तरी भारत के दशहरे, बंगाल की प्रसिद्ध दुर्गा पूजा तथा प्रायद्वीपीय भारत के नवरात्री तथा महानवमी के त्योहारों से है। विजयनगर के शासक इस अवसर पर अपनी प्रतिष्ठा तथा शक्ति का प्रदर्शन करते थे। इस अवसर पर अनेक अनुष्ठान होते थे। राजा के अश्व की पूजा, मूर्ति की पूजा तथा जानवरों की बलि इस अवसर के मुख्य आकर्षण थे। इसके अतिरिक्त नृत्य, कुश्ती, घोड़ों, हाथियों, रथों और सैनिकों की शोभायात्रा भी इस अवसर के अन्य आकर्षण थे। इस अवसर पर नायक एवं अधीनस्थ राजा विजयनगर के शासक को भेंट भी देते थे। इन उत्सवों तथा कार्यक्रमों के गहन सांकेतिक अर्थ थे। राजा अथवा शासक त्योहारों के अन्तिम दिन अपनी तथा अपने नागरिकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित एक भव्य समारोह में निरीक्षण करते थे। इस अवसर पर नायक राजा के लिए बड़ी मात्रा में उपहार तथा निश्चित कर लाते थे।

अथवा

विजयनगर साम्राज्य के मन्दिरों की विशेषताएँ बताइये। [3]
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य के मंदिरों की विशेषताएँ-विजयनगर साम्राज्य के मंदिरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थी-

  • विजयनगर के मंदिर स्थापत्य में कई नए तत्वों का समावेश हुआ जिसमें विशाल स्तर पर बनायी गयी संरचनाएँ शामिल हैं। ये संरचनाएँ राजकीय सत्ता का प्रतीक थीं जिनका सबसे अच्छा उदाहरण राय गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेश द्वार थे।
  • राय गोपुरम लम्बी दूरी से ही मंदिर के होने का संकेत देते थे।
  • मंदिरों में मण्डप व लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे होने थे जो प्रायः मंदिर परिसर में स्थित देवालयों के चारों ओर बने थे।
  • मंदिरों में सभागारों का निर्माण कराया जाता था जिनका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों के कार्यों में किया जाता था। देवी देवताओं को झूला झुलाने एवं उनके वैवाहिक उत्सवों का आनंद मनाने हेतु अन्य सभागारों का प्रयोग किया जाता था।
  • कई मंदिर रथ के आकार के थे जिनमें विठ्ठल मंदिर प्रमुख था। इस मंदिर के परिसर में पत्थर के टुकड़ों के फर्श से निर्मित गलियाँ थीं जिनके दोनों ओर बने मंडपों में व्यापारी दुकानें लगाया करते थे। इस मंदिर के पत्थरों पर सुन्दर फूलों, भयानक जानवरों और नृत्य करती हुई सुंदर स्त्रियों का उत्कीर्णन है जिन्हें देखकर दर्शक स्तब्ध रह जाते हैं।

प्रश्न 20.
आपके विचार से हिल स्टेशन औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के लिए किस प्रकार महत्वपूर्ण थे? [3]
उत्तर:
हमारे विचार से हिल स्टेशन औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। छावनियों की तरह पर्वतीय सैरगाह (हिल स्टेशन) भी औपनिवेशिक शहरी विकास का एक विशेष पहलू था। हिल स्टेशनों की स्थापना एवं विकास का सम्बन्ध सर्वप्रथम ब्रिटिश सेना की आवश्यकताओं से था। ये हिल स्टेशन सैनिकों को ठहराने, सीमा की निगरानी रखने एवं शत्रु के विरुद्ध हमला बोलने के लिए महत्वपूर्ण स्थान थे। इनके अतिरिक्त हिल स्टेशनों की जलवायु यूरोप की ठंडी जलवायु से मिलती-जुलती थी इसलिए अंग्रेज शासकों को भी ये क्षेत्र आकर्षित करते थे। इन हिल स्टेशनों को अंग्रेजों ने सेनेटोरियम के रूप में भी विकसित किया जहाँ सिपाहियों को विश्राम करने एवं इलाज कराने के लिए भेजा जाता था। रेलवे के विकास से ये पर्वतीय सैरगाह अनेक प्रकार के लोगों की पहुँच में आ गये। अब भारतीय भी पर्यटन के लिए वहाँ जाने लगे।

अथवा

आपके विचार से औपनिवेशक शहरों के बनने से सामाजिक जीवन में किस प्रकार के बदलाव दिखाई दिए। [3]
उत्तर:
हमारे विचार से औपनिवेशिक शहरों के बनने से सामाजिक जीवन में कई बदलाव आये। नए शहरों में सामाजिक सम्बन्ध काफी हद तक बदल गए जिनका विवरण निम्नलिखित प्रकार से है-

  • सार्वजनिक मेल मिलाप के स्थलों में परिवर्तन हुआ। यद्यपि अब तक पुराने शहरों में लोगों में आपसी मेलजोल भी कम हो चुका था लेकिन फिर भी लोगों का मेल मिलाप सार्वजनिक पार्क, टाउन हॉल, रंगशालाओं एवं सिनेमाघरों के माध्यम से हो जाता था।
  • शहरों में नए सामाजिक समूह बनने लगे और लोगों की पुरानी पहचानें लगभग समाप्त हो गईं।
  • औपनिवेशिक शहरों में महिलाओं के लिए नए अवसर उपलब्ध थे। समाचार पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं और पुस्तकों के माध्यम से मध्यमवर्गीय महिलाएँ स्वयं को अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रही थी। फलस्वरूप परम्परागत पितृसत्तात्मक नियम कानून बदलने लगे जिससे अनेक लोगों में असंतोष व्याप्त हुआ।
  • शहरों में मेहनती गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों से गरीब लोग रोजगार को तलाश में शहर आ रहे थे। कुछ लोगों को शहर नए अवसरों का स्रोत दिखाई देते थे तो कुछ अन्य लोगों को एक भिन्न जीवन शैली का आकर्षण शहरों की ओर खींच रहा था।

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

खण्ड – द

निबन्धात्मक प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 250 शब्द)

प्रश्न 21.
आप कैसे कह सकते हैं कि भारत छोड़ो आन्दोलन सही मायने में एक जन आन्दोलन था। [4]
उत्तर:
क्रिप्स मिशन की विफलता के पश्चात् महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन छेड़ने का फैसला किया। अगस्त, 1942 ई. में शुरू किए गए इस आन्दोलन को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नाम से जाना गया। हम निम्न कारणों के आधार पर कह सकते हैं कि भारत छोड़ो आन्दोलन सही सामने में एक जन आन्दोलन था।

भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने के कारण-(i) अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति-सितम्बर, 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो गया। महात्मा गाँधी व जवाहरलाल नेहरू दोनों ही हिटलर व नाजियों के आलोचक थे। तद्नुरूप उन्होंने फैसला किया कि यदि अंग्रेज युद्ध समाप्त होने के पश्चात् भारत को स्वतंत्रता देने पर सहमत हों तो कांग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में सहायता दे सकती है, परन्तु ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके विरोध में कांग्रेस मंत्रिमण्डल ने अक्टूबर, 1939 में त्यागपत्र दे दिया। इस घटनाक्रम ने अंग्रेजी साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने हेतु प्रोत्साहित किया।

(ii) क्रिप्स मिशन की असफलता-द्वितीय विश्व युद्ध में कांग्रेस व गाँधीजी का समर्थन प्राप्त करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अपने एक मंत्री सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। क्रिप्स के साथ वार्ता में कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया कि यदि धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन कांग्रेस का समर्थन चाहता है तो वायसराय को सबसे पहले अपनी कार्यकारी परिषद् में किसी भारतीय को एक रक्षा सदस्य के रूप में नियुक्त करना चाहिए, परन्तु इसी बात पर वार्ता टूट गयी। क्रिप्स मिशन की विफलता के पश्चात् गाँधीजी ने भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने का फैसला किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारम्भ-9 अगस्त, 1942 ई. को गाँधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया तथा गाँधीजी को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया तथा सभाओं, जुलूसों व समाचार-पत्रों पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए गए। इसके बावजूद देशभर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों एवं तोड़-फोड़ की कार्यवाहियों के माध्यम से आन्दोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत होकर अपनी गतिविधियों को चलाते रहे। पश्चिम में सतारा एवं पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतन्त्र सरकार (प्रति सरकार) की स्थापना कर दी गयी।

आन्दोलन का अन्त-अंग्रेजों ने भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति कठोर रवैया अपनाया फिर भी इस विद्रोह का दमन करने में एक वर्ष से अधिक समय लग गया।

आन्दोलन का महत्व-भारत छोड़ो आन्दोलन में लाखों की संख्या में आम भारतीयों ने भाग लिया तथा हड़तालों एवं तोड़-फोड़ के माध्यम से आन्दोलन को आगे बढ़ाते रहे। इस आन्दोलन के कारण भारत की ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार यह बात अच्छी तरह जान गई कि जनता में व्यापक असन्तोष है इसलिए अब वह भारत में अधिक दिनों तक शासन नहीं कर पायेगी अर्थात् अंग्रेजी राज समाप्ति की ओर है। यद्यपि अंग्रेजी सरकार ने आन्दोलन को कुचल दिया, परन्तु वह भारत की आम जनता की राष्ट्रवादी भावनाओं को न कुचल सकी। इस आन्दोलन का सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि कुछ वर्षों पश्चात् अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पड़ा और भारत को अंग्रेजी दासता से आजादी प्राप्त हुई। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत छोड़ो आन्दोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था।

अथवा

आपके विचार से नमक यात्रा ने किस प्रकार राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नवीन दिशा प्रदान की। [4]
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि नमक यात्रा ने राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नवीन दिशा प्रदान की। अंग्रेजों के नमक कानून के अनुसार नमक के उत्पाद तथा विक्रय पर राज्य का एकाधिकार था। प्रत्येक भारतीय के घर में नमक का प्रयोग होता था किन्तु उन्हें ऊँचे दामों पर नमक को खरीदना पड़ता था। इसके अतिरिक्त भारतीय स्वयं ही अपने घर के लिए नमक नहीं बना सकते थे। अतः इस कानून पर भारतीयों का क्रुद्ध होना स्वाभाविक था। गाँधीजी नमक के इस कानून को सबसे घृणित मानते थे। अतएव उस समय नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्वपूर्ण विषय बन गया।

नमक कानून को तोड़ने का मतलब था देश की जनता को एकजुट कर विदेशी दासता और ब्रिटिश शासन की अवज्ञा करना, उससे प्रेरित होकर छोटे-छोटे अन्य कानूनों को तोड़ना ताकि स्वराज्य एवं पूर्ण स्वतंत्रता स्वतः ही देशवासियों को प्राप्त हो जाए तथा स्वतंत्रता संघर्ष का अन्तिम उद्देश्य पूरा हो सके। अतः नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया।
अतः इन समस्त बातों को दृष्टिगत रखते हुए महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ-सविनय अवज्ञा आन्दोलन गाँधीजी की दाण्डी यात्रा से प्रारम्भ हुआ। गाँधीजी ने घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित कानून को तोड़ने के लिए यात्रा का नेतृत्व करेंगे। नमक पर राज्य का एकाधिकार बहुत अलोकप्रिय था। इसी को निशाना बनाते हुए गाँधीजी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध व्यापक असन्तोष को संघटित करने की सोच रहे थे। अधिकांश भारतीयों को गाँधीजी की इस चुनौती का महत्व समझ में आ गया लेकिन ब्रिटिश शासन को नहीं। यद्यपि गाँधीजी ने अपनी नमक यात्रा की पूर्व सूचना वायसराय लॉर्ड इरविन को दे दी थी लेकिन वे इस यात्रा का महत्व नहीं समझ सके।

गाँधीजी ने 12 मार्च, 1930 ई. को अपने साथियों के साथ साबरमती आश्रम से पैदल यात्रा प्रारम्भ की तथा 6 अप्रैल, 1930 को दाण्डी के निकट समुद्र तट पर पहुंचे। वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून को तोड़ा। वहीं से सविनय अवज्ञा आन्दोलन देशभर में फैल गया तथा अनेक स्थानों पर लोगों ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए दमन चक्र प्रारम्भ कर दिया। गाँधीजी सहित अनेक लोगों को गिरफ्तार कर जेलों में बन्द कर दिया, परन्तु आन्दोलन की गति पर कोई अन्तर नहीं पड़ा। इसी बीच गाँधीजी तथा तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के मध्य एक समझौता हुआ। गाँधी-इरविन समझौते के तहत गाँधीजी ने दूसरे गोलमज सम्मेलन में भाग लेना एवं आन्दोलन बन्द करना स्वीकार कर लिया। इस तरह 1931 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन कुछ समय के लिए रुक गया।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन का पुनः प्रारम्भ-1931 ई. में लन्दन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में गाँधीजी ने भाग लिया, परन्तु इस सम्मेलन में भारतीय प्रशासन के बारे में कोई उचित हल न निकल पाने के कारण गाँधीजी निराश होकर भारत लौट आये। भारत लौटने पर उन्होंने अपना सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः प्रारम्भ कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन का दमन करने के लिए आन्दोलनकारियों पर फिर से अत्याचार करने प्रारम्भ कर दिए। कांग्रेस के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का अंत-ब्रिटिश सरकार के दमनकारी चक्र के समक्ष सविनय अवज्ञा आन्दोलन की गति धीमी पड़ गयी। अंत में मई 1939 ई. में गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस ले लिया।
गाँधीजी की नमक यात्रा निम्नलिखित तीर कारणों से उल्लेखनीय थी-

  • नमक यात्रा की घटना से गाँधीज़ी समस्त विश्व की नजर में आ गये। इस यात्रा को यूरोप व अमरीकी प्रेस ने अपने समाचारपत्रों में व्यापक रूप से स्थान दिया।
  • यह प्रथम राष्ट्रवादी घटना थी जिसमें महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। समाजवादी कार्यकर्ता कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गाँधीजी को समझाया था कि वे अपने आन्दोलनों को पुरुषों तक सीमित न रखें। कमलादेवी स्वयं उन असंख्य महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने नमक व शराब कानूनों का उल्लंघन करते हुए अपनी सामूहिक गिरफ्तारियाँ दी थीं।
  • गाँधीजी एवं उनके सहयोगियों की नमक यात्रा के कारण अंग्रेजों को यह आभास हो गया था कि अब उनका शासन बहुत दिनों तक नहीं चल पाएगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में भागीदार बनाना पड़ेगा।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि नमक यात्रा ने राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नवीन दिशा प्रदान की।

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न 22.
सूफी संतो ने किस प्रकार अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं को प्रयोग किया? [4]
उत्तर:
इस्लाम की आरम्भिक शताब्दियों में धार्मिक एवं राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत की बढ़ती विषयासक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद एवं वैराग्य की ओर झुकाव बढ़ा, इन्हें सूफी कहा गया। ये संत जनता में बहुत लोकप्रिय थे। सूफी संतों की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए शासक न केवल सूफी संतों से सम्पर्क रखना चाहते थे बल्कि उनके समर्थन के भी इच्छुक थे। जब तुर्कों ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की तो उलेमाओं द्वारा शरिया लागू किए जाने की माँग को सुल्तान ने अस्वीकार कर दिया। सुल्तान जानते थे कि उनकी अधिकांश प्रजा इस्लाम धर्म मानने वाली नहीं है। इस स्थिति में सुल्तान ने सूफी संतों का सहारा लिया जो अपनी आध्यात्मिक सत्ता को अल्लाह से उद्भूत मानते थे तथा उलेमा द्वारा शरिया की व्याख्या पर निर्भर नहीं थे।

भारत में सूफी मत का अभ्युदय एवं विकास-सूफ़ियों ने इस्लाम की पुरातन रूढ़ परम्पराओं तथा कुरान और ‘सुन्ना’ (पैगम्बर के व्यवहार) की धर्माचार्यों द्वारा की गयी बौद्धिक व्याख्याओं की आलोचना की। सूफ़ियों ने साधना में लीन होकर अनुभवों के आधार पर कुरान की अपने अनुसार व्याख्या की। उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद साहब को ‘इंसान ए कामिल’ बताते हुये ईश्वर भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया।

खानकाह-सूफीवाद ने शनैः-शनैः एक पूर्ण विकसित आन्दोलन का रूप ले लिया। सूफीवाद की कुरान से जुड़ी अपनी एक समृद्ध साहित्यिक परम्परा थी। समाज को नयी दृष्टि तथा समाज की अव्यवस्था तथा अनैतिकता को रोकने हेतु सूफियों ने ‘ख़ानकाह’ (फ़ारसी) के नाम से अपने संगठित समुदाय का गठन किया। इस समुदाय का नियन्त्रण पीर ‘शेख अथवा मुर्शिद द्वारा किया जाता था। ये लोग गुरु के रूप में जाने जाते थे। शिष्यों (अनुयायियों) की भर्ती और नियन्त्रण का कार्य इन्हीं लोगों के द्वारा संचालित किया जाता था। अपने वारिस (खलीफा) का चुनाव भी स्वयं करते थे। ये लोग आध्यात्मिक नियमों के नीति निर्धारण के साथ-साथ खानकाह के निवासियों के बीच एवं शेख तथा जनसाधारण के बीच सम्बन्धों की सीमा भी तय करते थे।

सिलसिलों का गठन-सिलसिले शब्द का अर्थ है; कड़ी या जंजीर अथवा जंजीर की भाँति एक-दूसरे से जुड़ा हुआ। सूफी सिलसिलों का गठन लगभग 12वीं शताब्दी में प्रारम्भ हो चुका था। इस सूफी सिलसिले की पहली अटूट कड़ी अल्लाह और पैगम्बर मोहम्मद साहब के बीच मानी जाती है। इसके पश्चात् शेख और मुरीद आदि आते थे। इस सिलसिले या कड़ी के द्वारा पैगम्बर मोहम्मद साहब की आध्यात्मिक शक्ति शेख के माध्यम से मुरीदों तक पहुँचती थी।

पीर की मृत्यु के पश्चात् उसकी दरगाह उसके अनुयायियों के लिए तीर्थस्थल का रूप ले लेती थी।
सामान्यतः सूफ़ी चिन्तकों ने अपने विचारों को सामान्य जनता तक पहुँचाने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया। प्रायः ये भाषाएँ स्थानीय होती थीं, जिन्हें समझना निश्चय ही जनसामान्य के लिए अत्यंत सुगम था। संत कवि यदि कुछ विशिष्ट भाषाओं का ही प्रयोग करते रहते तो उनके विचारों का सामान्य जनता के मध्य सम्प्रेषण सम्भव नहीं हो पाता तथा ये विचार उनके साथ ही विलुप्त हो गए होते। इस प्रकार इन संतों द्वारा स्थानीय भाषाओं का प्रयोग करना लाभकारी सिद्ध हुआ।

सूफी संतों ने भी अपने उपदेशों में स्थानीय भाषा का प्रयोग किया; उदाहरण के लिए, सूफी संत फरीद ने स्थानीय भाषा पंजाबी में काव्य-रचना की। मीरा ने अपने विचार बोलचाल की राजस्थानी भाषा में पदों के रूप में व्यक्त किये, जिनमें ब्रज भाषा, गुजराती और खड़ी बोली की भी झलक मिलती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सूफी संतों ने अपने उपदेश तथा प्रवचन स्थानीय भाषाओं में दिए, जिसके परिणाम अत्यन्त ही लाभकारी हुए।

अथवा

भक्ति आन्दोलन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [4]
उत्तर:
भक्ति आन्दोलन-जब कभी भी हिंदू धर्म में आंतरिक जटिलताएँ बढ़ी तब-तब प्रतिक्रिया स्वरूप धर्म सुधार आंदोलन या धार्मिक क्रांतियाँ हुईं। धर्म और समाज को सुधारने के ये प्रयास प्राचीनकाल में जैन व बौद्ध धर्म के रूप में, मध्यकाल में भक्ति परम्परा के रूप में तथा 19वीं सदी में धार्मिक पुनर्जागरण के रूप में हमारे सामने आये। धार्मिक, सामाजिक प्रतिक्रिया स्वरूप उपजे इन धार्मिक आंदोलनों ने हिन्दू धर्म और समाज में हर बार नई चेतना, नई शक्ति और नवजीवन का संचार करके उसे और अधिक पुष्ट और सहिष्णु बनाने में मदद दी। इस दृष्टि से समय, काल, राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन भारतीय संस्कृति की एक बहुपक्षीय और महान घटना थी।

भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताओं निम्नलिखित हैं-

  • भक्ति आंदोलन के संतों ने मूर्ति पूजा का खण्डन किया।
  • इसके कुछ संतों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।
  • भक्ति आंदोलन के नेता सन्यास मार्ग पर बल नहीं देते थे। उनका कहना था कि यदि मानव का आचार-विचार एवं व्यवहार शुद्ध हो, तो वह गृहस्थ जीवन में रहकर भी भक्ति कर सकता है।
  • भक्ति आंदोलन के संत समस्त मनुष्य मात्र को एक समझते थे। उन्होंने धर्म, लिंग, वर्ण व जाति आदि के भेदभाव का विरोध किया।
  • यह आंदोलन मुख्य रूप से सर्वसाधारण का आंदोलन था। इसके समस्त प्रचारक जनसाधारण वर्ग के ही लोग थे।
  • भक्ति आंदोलन के प्रचारकों ने अपने विचारों का प्रचार जनसाधारण की भाषा तथा प्रचलित साधारण बोली में किया।
  • यद्यपि यह आंदोलन विशेषरूप से धार्मिक आंदोलन था, लेकिन इसके अनेक प्रवर्तकों ने सामाजिक क्षेत्र में विद्यमान कुरीतियों को दूर करने की कोशिश की।
  • भक्ति आंदोलन के समस्त नेता विश्व बंधुत्व की भावना एवं एकेश्वरवाद के समर्थक थे।
  • भक्ति आंदोलन के संतों ने धार्मिक अन्धविश्वासों तथा बाह्य आडम्बरों का विरोध कर हिन्दू धर्म को सरल एवं शुद्ध बनाने का प्रयत्न किया। उन्होंने चरित्र की शुद्धता एवं आचरण की पवित्रता पर बल देकर सच्चे हृदय से भक्ति करना ही मुक्ति का साधन बताया।
  • भक्ति आंदोलन की मूल अवधारणा एक ईश्वर पर आधारित थी। भक्ति आंदोलन के अधिकतर संतों ने ईश्वर एक है, इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया।
  • भक्ति आंदोलन सामाजिक सद्भाव का आंदोलन था, इसमें हिन्दु-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता पर जोर दिया गया था।
  • भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि-संतों में कबीर, नानक, रैदास, मीराबाई, तुलसीदास, सूरदास, संत दादूदयाल आदि के नाम प्रमुख हैं।

RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न 23.
भारत के मानचित्र में निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों को अंकित कीजिए- [4]
(अ) काशी
(ब) राखीगढ़ी
(स) दाण्डी
(द) कलकत्ता
उत्तर:
RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi 1

अथवा

भारत के मानचित्र में निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों को अंकित कीजिए- [4]
(अ) इन्द्रप्रस्थ
(ब) बनावली
(स) साबरमती
(द) बम्बई
उत्तर:
RBSE 12th History Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi 2

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