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RBSE Class 12 Physics Model Paper Set 4 with Answers in Hindi
पूर्णांक : 56
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों के आंतरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पीय प्रश्न-निम्न प्रश्नों के उत्तर का सही विकल्प चयन कर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए-
(i) दो आवेशों के मध्य बल F है। यदि उनके मध्य की दूरी तीन गुना कर दी जाये तब इन आवेशों के मध्य बल होगा- [1]
(अ) F
(ब) F/3
(स) F/9
(द) F/27
उत्तर:
(स) F/9
(ii) किसी गोलीय चालक की धारिता का मान समानुपाती होता है- [1]
(अ) C ∝ R
(ब) C ∝ R2
(स) C ∝ R-2
(द) C ∝ R-1
उत्तर:
(अ) C ∝ R
(iii) किसी चालक की प्रतिरोधकता एवं चालकता का गुणनफल निर्भर करता है- [1]
(अ) काट क्षेत्रफल पर
(ब) ताप पर
(स) लम्बाई पर
(द) किसी पर नहीं
उत्तर:
(द) किसी पर नहीं
(iv) एक टोरॉइड के अन्दर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का मान B है। यदि टोरॉइड की एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या n है एवं इसमें प्रवाहित विद्युत धारा I हो तो इसके बाहर चुम्बकीय क्षेत्र का मान होगा- [1]
(अ) B
(ब) B/2
(स) शून्य
(द) 2B
उत्तर:
(स) शून्य
(v) समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करती हुई किसी कुण्डली में प्रेरित वि. वा. बल तथा सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के मध्य कलान्तर होगा- [1]
(अ) \(\frac{\pi}{4}\)
(ब) \(\frac{\pi}{2}\)
(स) \(\frac{\pi}{3}\)
(द) π
उत्तर:
(ब) \(\frac{\pi}{2}\)
(vi) अनिश्चितता सिद्धांत के अनुसार यदि किसी कण की स्थिति का शत प्रतिशत शुद्धता से मापन कर लिया जाये तो उसके संवेग में अनिश्चितता होगी- [1]
(अ) शून्य
(ब) ∞
(स) ~h
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) ∞
(vii) यदि किसी समय किसी रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श में 1.024 × 1024 सक्रिय परमाणु हैं तो आठ अर्द्ध-आयुकाल
के बाद शेष सक्रिय परमाणुओं की संख्या है
(अ) 1.024 × 1020
(ब) 4.0 × 1021
(स) 6.4 × 1018
(द) 1.25 × 1019
उत्तर:
(ब) 4.0 × 1021
(viii) एक NPN ट्रांजिस्टर को प्रवर्धन की तरह उपयोग में लाया जा रहा है तो-
(अ) इलेक्ट्रॉन आधार से संग्राहक की ओर चलते हैं
(ब) होल उत्सर्जक से आधार की ओर चलते हैं
(स) होल आधार से उत्सर्जक की ओर चलते हैं
(द) इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक से आधार की ओर चलते हैं
उत्तर:
(ब) होल उत्सर्जक से आधार की ओर चलते हैं
(ix) p-n संधि की अग्र-अभिनत दशा में-
(अ) कोई धारा प्रवाहित नहीं होती
(ब) केवल P क्षेत्र से होल n क्षेत्र में प्रवेश करते हैं।
(स) केवल n क्षेत्र से इलेक्ट्रॉन p-क्षेत्र में प्रवेश करते हैं
(द) प्रत्येक क्षेत्र में बहुसंख्यक वाहक दूसरे क्षेत्र में प्रवेश करते हैं
उत्तर:
(ब) केवल P क्षेत्र से होल n क्षेत्र में प्रवेश करते हैं ।
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) किसी चालक पर उपस्थित आवेश …………………………… के अनुक्रमानुपाती होता है। [1]
(ii) सेल के अन्दर धारा के मार्ग में आने वाली रुकावट को सेल का ……………………. कहते हैं। [1]
(iii) वेबर ……………………… का मात्रक है। [1]
(iv) जेनर डायोड को सदैव …………………….. अभिनति में प्रयोग में लाया जाता है। [1]
उत्तर:
(i) विभव
(ii) आंतरिक प्रतिरोध
(iii) चुम्बकीय फ्लक्स
(iv) उत्क्रम
प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) व्हीटस्टोन सेतु का सन्तुलन की अवस्था को में धारा प्रवाह चित्र द्वारा दर्शाइए। [1]
उत्तर:
(ii) ऐम्पियर की अन्तर्राष्ट्रीय परिभाषा दीजिए। [1]
उत्तर:
ऐम्पियर की परिभाषानुसार, यदि 1 मीटर दूरी पर रखे दो समान्तर तारों में समान धारा प्रवाहित होने पर उनके मध्य 2 × 10-7 न्यूटन/मी का बल कार्य करे तो तारों में बहने वाली समान धारा एक ऐम्पियर होगी।
(iii) स्वप्रेरण को विद्युत का जड़त्व क्यों कहते हैं? [1]
उत्तर:
स्वप्रेरण को विद्युत का जड़त्व कहते हैं क्योंकि .यह विद्युत परिपथ में धारा की वृद्धि या कमी का विरोध करता है और परिपथ को मूल
स्थिति में लाने का प्रयास करता है।
(iv) इलेक्ट्रॉन पुंज से विवर्तन की तथा प्रकाश पुंज से प्रकाश विद्युत उत्सर्जन की घटना देखी जाती है। इनमें से कौन-सी घटना यह बताती है कि तरंगों में कणों के समान गुण होते हैं तथा कौन-सी यह बताती है कि कणों में तरंग समान गुण होते हैं? [1]
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन पुंज से विवर्तन की घटना यह बताती है कि कणों में तरंग समान गुण होते हैं। प्रकाश विद्युत उत्सर्जन की घटना यह बताती है कि तरंगों में कणों के समान गुण होते हैं।
(v) लाल तथा नीले प्रकाश के फोटॉनों में से किसका संवेग अधिक होगा? [1]
उत्तर:
नीले प्रकाश का, क्योंकि संवेग P = \(\frac{\mathrm{h}}{\lambda}\) तथा
λB < λ R
(vi) नाभिकीय β क्षय में न्यूट्रिनों का प्रायोगिक संसूचन कठिन क्यों है? [1]
उत्तर:
न्यूट्रिनों का संसूचन करना कठिन है क्योंकि ये द्रव्यमान एवं आवेश रहित होते हैं और न्यूक्लिऑन के साथ अन्योन्य क्रिया नहीं करते हैं।
(vii) नाभिकीय बल के दो अभिलाक्षणिक गुण लिखिए। [1]
उत्तर:
(i) अल्प परास का बल है।
(ii) प्रकृति में सबसे मजबूत आकर्षण बल है।
(viii) आरेख में दर्शाए गए गेटों के संयोजन के परिपथ के तुल्य गेट को पहचानिए। [1]
उत्तर:
OR गेट
खण्ड – (ब)
प्रश्न 4.
a त्रिज्या के किसी गोलीय कोश को Q आवेश दिया जाता है और इसकी त्रिज्या b तक बढा दी जाती है। इस प्रक्रिया में कृत कार्य का मान ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
C = 4πε0 R और U = \(\frac{1}{2} \frac{\mathrm{Q}^{2}}{\mathrm{C}}\)
∴ कोश की त्रिज्या बढाने में कृत कार्य
W = U1 – U2
= \(\frac{\mathrm{Q}^{2}}{4 \pi \varepsilon_{0} a}-\frac{1}{2} \frac{\mathrm{Q}^{2}}{4 \pi \varepsilon_{0} b}\)
W = \(\frac{\mathrm{Q}^{2}}{8 \pi \varepsilon_{0}}\left[\frac{1}{a}-\frac{1}{b}\right]\)
प्रश्न 5.
किसी समान्तर पट्टिका संधारित्र जिसकी धारिता C और जिसे वोल्टता V तक आवेशित किया जाता है, में संचित ऊर्जा के लिए व्यंजक व्युत्पन्न कीजिए। [1½]
उत्तर:
माना कि संधारित्र का प्रारम्भिक विभवान्तर v है और अनाविष्ट होने पर इसका अन्तिम विभवान्तर शून्य होगा। उक्त क्रिया में संधारित्र का औसत विभवान्तर
= \(\frac{0+\mathrm{V}}{2}=\frac{\mathrm{V}}{2}\)
यदि संधारित्र पर आवेश q हो तो इस आवेश को एक प्लेट से दूसरी प्लेट तक ले जाने में किया गया कार्य अर्थात् संधारित्र की ऊर्जा
U = W = आवेश × औसत विभवान्तर
= q × \(\frac{\mathrm{V}}{2}\) = U
⇒ \(\frac{1}{2}\)qV
∵ q = CV
∴ U = \(\frac{1}{2}\)CV.V = \(\frac{1}{2}\)CV2
यही अभीष्ट व्यंजक है।
प्रश्न 6.
विभवमापी एवं वोल्टमीटर में कोई दो अन्तर स्पष्ट कीजिए। [1½]
उत्तर:
विभवमापी व वोल्टमीटर में अन्तर-(1)
वोल्टमीटर द्वारा विद्युत् वाहक बल नापने के लिए वोल्टमीटर में विक्षेप पढ़ना पड़ता है। विक्षेप के पढ़ने में त्रुटि रह जाती है, जबकि विभवमापी द्वारा विद्युत् वाहक बल अविक्षेप विधि से नापा जाता है, इसे तार पर शून्य विक्षेप स्थिति पढ़ना कहते हैं। अतः विभवमापी को आदर्श वोल्टमीटर भी कहते है।
(2) विभवमापी द्वारा सेल का विद्युत् वाहक बल नापते समय शून्य विक्षेप स्थिति में सेल के परिपथ में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है अर्थात् सेल खुले परिपथ पर होता है। अतः सेल के विद्युत् वाहक बल का वास्तविक मान प्राप्त होता है। इस प्रकार विभवमापी अनन्त प्रतिरोध के आदर्श वोल्टमीटर के समान कार्य करता है।
प्रश्न 7.
एक मीटर सेतु में A से सन्तुलन बिन्दु 39.5 सेमी पर मिलता है जब प्रतिरोधक Y का मान 12.5Ω है। X का मान ज्ञात कीजिए। यदि सेतु के सन्तुलन की स्थिति में धारामापी एवं सेल को आपस में बदल दिया जाये तो क्या होगा? [1½]
उत्तर:
सन्तुलित मीटर सेतु के लिए,
\(\frac{\mathrm{X}}{\mathrm{Y}}=\frac{l}{(100-l)}\) जहाँ l = AD
∴ X = \(\frac{l}{(100-l)}\) × Y
दिया है : Y = 12.5Ω, l = 39.5 सेमी
∴ X = \(\frac{39 \cdot 5}{(100-39 \cdot 5)}\) × 12.5
∴ X = \(\frac{39.5 \times 12.5}{60.5}\) = 8.162
प्रश्न 8.
प्रति एकांक आयतन में संग्रहीत चुम्बकीय ऊर्जा समान्तर पट्टिका संधारित्र में प्रति एकांक आयतन स्थिर वैद्युत ऊर्जा के किस प्रकार अनुरूपी है? [1½]
उत्तर:
समान्तर पट्टिका संधारित्र में संग्रहित ऊर्जा
U = \(\frac{1}{2}\)CV2
V संधारित्र की प्लेटों के मध्य विभवान्तर है।
U = \(\frac{1}{2} \frac{\varepsilon_{0} \mathrm{~A}}{d}\)V2
U = \(\frac{1}{2}\)ε0(Ad) (\(\frac{\mathrm{V}^{2}}{d^{2}}\))
परन्तु E = \(\frac{\mathrm{V}^{2}}{d^{2}}\) प्लेटों के मध्य विद्युत क्षेत्र तथा V = Ad संधारित्र की प्लेटों के मध्य आयतन है।
U = \(\frac{1}{2}\)ε0VE2
अतः एकांक आयतन में संग्रहीत विद्युत ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{U}}=\frac{1}{2}\)ε0E2
जबकि एकांक आयतन में संग्रहीत चुम्बकीय
\(\overline{\mathrm{U}}_{m}=\frac{B_{0}^{2}}{2 \mu_{0}}\)
इस प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र ऊर्जा घनत्व तथा विद्युत क्षेत्र के ऊर्जा घनत्व के सूत्र समरूपी हैं।
प्रश्न 9.
एक लम्बी परिनालिका की प्रति सेमी लम्बाई में 15 फेरे हैं। उसके अन्दर 2.0 सेमी का एक छोटा-सा लूप परिनालिका की अक्ष के लम्बवत रखा गया है। यदि परिनालिका में बहने वाली धारा का मान 0.1 सेकण्ड में 2.0A से 4.0A कर दिया जाये तो धारा परिवर्तन के दौरान प्रेरित वि. वा. बल क्या होगा? [1½]
उत्तर:
परिनालिका कुण्डली का अन्योन्य प्रेरकत्व
M = μ0n1N2A2
μ0(\(\frac{\mathrm{N}_{1}}{l}\))N2A2
यहाँ \(\frac{\mathrm{N}_{1}}{l}\) = 15 cm-1 = 15 × 100 m-1 = 1500 m-1; N2 = 1; A2 = 20 cm2 = 2.0 × 10-4 m2;
∴ M = 4π × 10-7 × 1500 × 1 × 2 × 10-4 = 120π × 10-9H
अतः लूप में प्रेरित वि. वा. बल
e = M\(\frac{\Delta \mathrm{I}_{1}}{\Delta t}\), (आंकिक मान)
= 120π × \(\frac{10^{-9} \times(4-2)}{0 \cdot 1}\)
= 120 × 3.14 × 10-8 × 2
= 7.5 × 10-6V = 7.5μv
प्रश्न 10.
सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता से क्या तात्पर्य है? संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता कैसे बढ़ायी जा सकती है? [1½]
उत्तर:
सूक्ष्मदर्शी की नेत्रिका पर अंतिम प्रतिबिम्ब द्वारा बने दर्शन कोण (β) तथा स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर रखे बिम्ब द्वारा नेत्र पर बने दर्शन कोण (α) का अनुपात सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता (M) कहलाती है।
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता बढ़ाने के लिए f0 व fe दोनों के मान कम होने चाहिए। दृश्य क्षेत्र को बढ़ाने के लिए f0 < fe होना चाहिए।
प्रश्न 11.
दर्पण सूत्र का उपयोग यह व्युत्पन्न करने के लिए सिद्ध कीजिए कि किसी अवतल दर्पण के तथा 2 के बीच रखी वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है। [1½]
उत्तर:
दर्पण के सूत्र से,
\(\frac{1}{v}+\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\)
⇒ \(\frac{1}{v}=\frac{1}{f}-\frac{1}{u}=\frac{u-f}{u f}\)
∴ v = \(\frac{u f}{u-f}\)
अवतल दर्पण के लिए u व f दोनों ऋणात्मक होते हैं अतः
v = \(\frac{(-u)(-f)}{(-u)-(-f)}=\frac{u f}{f-u}\)
दिया है : f < u < 2f
∴ (f – u) < 0 या (u – f) > 0
∴ v = \(\frac{u f}{-(u-f)}\)
या v = –\(\frac{u f{\prime}}{(u-f)}\)
स्पष्ट है कि v का मान ऋणात्मक है अतः प्रतिबिम्ब दर्पण के सामने ही बनेगा। फलस्वरूप प्रतिबिम्ब वास्तविक होगा।
प्रश्न 12.
दूर दष्टि दोष क्या है? इस दोष का कारण और निवारण दीजिए। [1½]
उत्तर:
दूर दृष्टि दोष-नेत्र में दूर दृष्टि दोष उत्पन्न होने पर दूर की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखायी देती हैं लेकिन पास की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी नहीं
देती हैं।
दोष के कारण-यह दोष तब उत्पन्न होता है जब (i) नेत्र लेन्स तथा रेटिना के बीच की दूरी कम हो जाती है अथवा (ii) नेत्र लेन्स की फोकस दूरी बढ़ जाती है।
दोष का निवारण-उपयुक्त फोकस दूरी वाले उत्तल लेन्स युक्त चश्मे का उपयोग करके।
प्रश्न 13.
एक उत्तल लेन्स की वक्रता त्रिज्याएँ क्रमशः 20 सेमी तथा 30 सेमी हैं। लेन्स के पदार्थ का अपवर्तनांक 1.5 है। यदि लेन्स जल (n = 1.33) में रखा जाये तो इसकी फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
दिया है: R1 = +20 सेमी, R2 = -30 सेमी
ang = 1.5;anw = 1.33
∴ लेन्स निर्माता सूत्र से
प्रश्न 14.
रेडियोएक्टिव तत्व की अर्द्धआयु को परिभाषित कीजिए तथा अर्द्धआयु का रेडियोएक्टिव क्षय स्थिरांक में संबंध प्राप्त कीजिए। [1½]
उत्तर:
“वह समय जिसमें किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के अविघटित नाभिकों की संख्या घटकर आधी रह जाती है, उस तत्व की अर्द्ध-आयु कहलाती है।”
अर्द्ध-आयु तथा क्षय नियतांक में सम्बन्ध- यदि प्रारम्भ में (अर्थात् t = 0) नाभिकों की संख्या N0 हो तो t समय के बाद शेष नाभिकों की संख्या
N = N0 e-λt
जब t = T तो N = \(\frac{\mathrm{N}_{0}}{2}\)
∴ \(\frac{\mathrm{N}_{0}}{2}\) = N0 e-λT
⇒ \(\frac{1}{2}\) = e-λT = \(\frac{1}{e^{\lambda T}}\)
⇒ 2 = eλT
दोनों ओर का लघुगणक लेने पर
loge2 = logeeλT = λT logee = λT
⇒ λT = loge2
⇒ T = \(\frac{\log _{e} 2}{\lambda}\)
⇒ T × λ = loge2
⇒ T × λ = 0.6931
अतः यही अभीष्ट सम्बन्ध है।
प्रश्न 15.
नाभिक X176 β क्षय कर नाभिक Y176 में क्षयित है यदि X तथा Y के परमाण्वीय द्रव्यमान क्रमश 175.942694 u तथा 175.941426 u है तो उत्सर्जित β कण की अधिकतम ऊर्जा ज्ञात करो। [1½]
उत्तर:
X176 → Y179 + –β0
द्रव्यमान क्षति
Δm= [175.94294 – 175.941426]u
Δm=0.0012684
β कण की अधिकतम गतिज ऊर्जा
EK = Δmc2
(∵ 1u = 931 \(\frac{\mathrm{MeV}}{\mathrm{C}^{2}}\))
EK =0.001268 x 931 \(\frac{\mathrm{MeV}}{\mathrm{C}^{2}}\)C2
EK = 1.18 Mev
खण्ड – (स)
प्रश्न 16.
चल कुण्डली धारामापी का नामांकित चित्र बनाओ। इसके सिद्धान्त का वर्णन कीजिए। धारामापी की धारा सुग्राहिता किस प्रकार बढ़ाई जा सकती है? [1 + 2 + 1 = 4]
अथवा
चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाले चुम्बकीय बल के व्यंजक का निगमन कीजिए। आवश्यक चित्र भी दीजिए। [3 + 1 = 4]
उत्तर:
सिद्धान्त- यदि धारावाही कुण्डली को समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाये तो उस पर लगने वाले बलयुग्म का आघूर्ण,
τ = nIAB sin θ
जहाँ n = कुण्डली में फेरों की संख्या; I = कुण्डली में प्रवाहित धारा; A = कुण्डली के तल का क्षेत्रफल; B = चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता; θ = कुण्डली के तल पर खींचे गये अभिलम्ब एवं क्षेत्र रेखा के मध्य कोण
यदि चुम्बकीय क्षेत्र त्रिज्य है तो
θ = 90°; ∴ sin θ = 1
अतः τ = nIAB
इस बलयुग्म के प्रभाव में कुण्डली घूमने लगेगी, फलस्वरूप फॉस्फर ब्रांज के तार में ऐंठन (twist) लगने लगेगी। यदि यह ऐंठन Φ हो तो ऐंठन बलयुग्म का आघूर्ण
τ’ = CΦ
जहाँ, C = एकांक ऐंठन के लिए बलयुग्म का आघूर्ण
∵ सन्तुलन में τ = τ’
∴ nIAB = CΦ
या I = (\(\frac{\mathrm{C}}{n \mathrm{AB}}\))Φ ………….. (1)
या I = kΦ, जहाँ k = \(\frac{\mathrm{C}}{n \mathrm{AB}}\)
k को धारामापी का परिवर्तन गुणांक कहते है।
∴ I ∝ Φ या Φ ∝ I
तार में उत्पन्न ऐंठन (अर्थात् धारामापी कुण्डली में उत्पन्न विक्षेप) प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होती है। यही धारामापी का सिद्धान्त है।
धारामापी की धारा सुग्राहिता को निम्न प्रकार से बढ़ाया जा सकता है-
- फेरों की संख्या (n) बढ़ाकर,
- कुण्डली का क्षेत्रफल (A) बढ़ाकर,
- चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता (B) बढ़ाकर,
- मरोड़ी दृढ़ता (C) घटाकर।
प्रश्न 17.
(i) सम्पर्क में रखे दो पतले लैंसों के संयोजन की फोकस दूरी के लिए सूत्र का निगमन कीजिए।
(ii) + 5D तथा –7D क्षमता के दो लैंसों को परस्पर सम्पर्क में रखकर बनाये गये संयुक्त लैंस की क्षमता ज्ञात कीजिए। संयुक्त लैंस अभिसारी होगा या अपसारी? [2 + 1 = 3]
अथवा
(i) प्रकाश के प्रकीर्णन से सम्बन्धित किन्हीं दो घटनाओं पर टिप्पणी लिखिए।
(ii) श्वेत प्रकाश के प्रिज्म पर आपतित होने से प्राप्त स्पेक्ट्रम का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए। [1 + 2 = 3]
उत्तर:
(i) संपर्क में रखे पतले लेंसों का संयोजन-माना f1 व f2 फोकस दूरियों के दो लेन्स L1 व L2 परस्पर सम्पर्क में रखे हैं। इस संयोजन के सम्मुख ॥ दूरी पर एक बिन्दु वस्तु 0 रखी है जिसका लेन्स संयोजन द्वारा प्रतिबिम्ब I बनता है। पहले लेन्स द्वारा बना प्रतिबिम्ब I’ दूसरे लेन्स के लिए आभासी वस्तु का कार्य करता है। प्रथम लेन्स के लिए, लेन्स-सूत्र से,
\(\frac{1}{v^{\prime}}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f_{1}}\) …………… (1)
दूसरे लेन्स के लिए,
\(\frac{1}{v}-\frac{1}{v^{\prime}}=\frac{1}{f_{2}}\) ……………. (2)
समी. (1) व (2) को जोड़ने पर, .
\(\frac{1}{v^{\prime}}-\frac{1}{u}+\frac{1}{v}-\frac{1}{v^{\prime}}=\frac{1}{f_{1}}+\frac{1}{f_{2}}\)
⇒ \(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f_{1}}+\frac{1}{f_{2}}\) …………….. (3)
यदि लेन्स संयोजन की फोकस दूरी F हो तो
\(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{\mathrm{~F}}\) …………….. (4)
(4) समी. (3) व (4) की तुलना करने पर,
\(\frac{1}{\mathrm{~F}}=\frac{1}{f_{1}}+\frac{1}{f_{2}}\) ………….. (5)
⇒ \(\frac{1}{\mathrm{~F}}=\frac{f_{2}+f_{1}}{f_{1} f_{2}}\)
⇒ F = \(\frac{f_{2} f_{1}}{f_{2}+f_{1}}\)
यही अभीष्ट सूत्र है।
(ii) दिया है-
P1 = + 5D तथा P2 = – 7D
P = P1 + P2
⇒ P = (+ 5D) + (-7D)
⇒ P = -2D (ऋणात्मक)
अतः संयोजन अपसारी होगा।
प्रश्न 18.
(i) फोटॉन के विराम द्रव्यमान तथा गतिक द्रव्यमान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(ii) ब्रॉग्ली परिकल्पना के आधार पर बोर का क्वाण्टम प्रतिबंध कैसे सत्यापित किया गया? स्पष्ट कीजिए। [1 + 2 = 3]
अथवा
(i) प्रकाश की द्वैत प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(ii) प्रकाश विद्युत प्रभाव की घटना की व्याख्या आइंसटीन के प्रकाश विद्युत समीकरण के आधार कैसे संभव हो सकी? [1 + 2 = 3]
उत्तर:
(i) विराम द्रव्यमान-फोटॉन का विराम द्रव्यमान शून्य होता है, क्योंकि रुक जाने पर फोटॉन का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
गतिक द्रव्यमान-यदि फोटॉन का गतिक द्रव्यमान m मान लें. तो आइन्स्टीन के द्रव्यमानऊर्जा सम्बन्ध से फोटॉन की ऊर्जा E = MC2 होगी।
(ii) कक्षों का क्वाण्टीकरण-कक्षा के क्वाण्टीकरण के लिए बोहर के विचार को निम्न .. परिकल्पना के आधार पर स्थापित किया जा
सकता है
माना नाभिक के चारों ओर (r) त्रिज्या की कक्षा में चक्कर लगाते हुए एक इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध (associated) तरंग की तरंगदैर्ध्य (2) है। इलेक्ट्रॉन की कक्षा अपने अन्दर तरंगदैर्यों के (λ) पूर्ण गुणज की समावेश गति है।
अतः कक्षा की परिधि = n. तरंगदैर्ध्य
∴ 2πr = n.λ
λ का मान रखने पर,
2πr = n\(\frac{h}{p}\) [∵ p = mv]
∴ 2πr = \(\frac{n \cdot h}{m v}\) ⇒ mvr = \(\frac{n \cdot h}{2 \pi}\)
अर्थात् इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग, \(\frac{h}{2 \pi}\) का पूर्ण गुणज होता है। यह बोहर की परमाणु संरचना की परिकल्पना के अनुसार है।
खण्ड – (द)
प्रश्न 19.
(i) विद्युत क्षेत्र रेखाओं के चार गुणधर्म लिखिए।
(ii) वैद्युत द्विध्रुव के कारण अक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक प्राप्त कीजिए। [2 + 2 = 4]
अथवा
(i) कूलॉम के नियम का क्या महत्व है?
(ii) वैद्युत आवेश के संरक्षण को एक उदाहरण देते हुए समझाओ।
(iii) 2 मोल उदासीन नाइट्रोजन में उपस्थित धनात्मक तथा ऋणात्मक आवेश ज्ञात कीजिए। [1 + 1 + 2 = 4]
उत्तर:
(i)
(a) वैद्युत क्षेत्र रेखा के किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर परिणामी विद्युत् क्षेत्र की दिशा व्यक्त करती है।
(b) वैद्युत क्षेत्र रेखाएँ धन आवेश से ऋण
आवेश की ओर चलती हैं।
(c) दो क्षेत्र रेखाएँ कभी एक-दूसरे को नहीं काटती हैं।
(d) वैद्युत क्षेत्र रेखाएँ खुले वक्र के रूप में होती हैं क्योंकि ये धनावेश से चलकर ऋणावेश पर समाप्त हो जाती हैं।
(ii) वैद्युत द्विध्रुव के कारण अक्षीय स्थिति पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता-एक वैद्युत द्विध्रुव को इस प्रकार रखा गया है-
तब +q आवेश के कारण P पर उत्पन्न विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता का परिमाण
E1 = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q}{(r-l)^{2}}\) (BP दिशा में) ……………. (1)
– q आवेश के कारण P पर उत्पन्न विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता का परिमाण
E2 = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q}{(r+l)^{2}}\) (PA दिशा में) ……………….. (2)
∴ P पर परिणामी विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता का परिमाण
E = E1 ~ E2 = E1 – E2
\(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{q}{(r-l)^{2}}\) – \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q}{(r+l)^{2}}\)
∵ \(\vec{p}\) की दिशा ऋण आवेश से धन आवेश की ओर होती है अतः \(\vec{E}\) व \(\vec{p}\) एक ही दिशा में होंगे। इस प्रकार सदिश रूप में समी. (3) को निम्न प्रकार व्यक्त करेंगे-
\(\vec{E}=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{2 r^{*} p}{\left(r^{2}-l^{2}\right)^{2}}\)
यही अभीष्ट व्यंजक है।
प्रश्न 20.
ऊर्जा बैण्ड सिद्धांत के आधार पर चालक, अचालक और अर्द्धचालक को समझाइये। [4]
अथवा
P-n संधि को विस्तार से समझाओ। अवक्षय परत तथा विभव-प्राचीर को परिभाषित कीजिए। [4]
उत्तर:
चालकों, अचालकों एवं अर्द्ध-चालकों में अन्तर ऊर्जा बैण्ड सिद्धान्त के आधार पर निम्न प्रकार समझाया जा सकता है। ___इन तीनों के लिए संयोजकता बैण्ड एवं चालन . बैण्ड की स्थितियाँ निम्न चित्र में प्रदर्शित की गई हैं।
ठोसों के बैण्ड सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक ठोस क्रिस्टल में दो बैण्ड होते हैं-
(i) संयोजकता बैण्ड और
(ii) चालन बैण्ड।
(i) संयोजकता बैण्ड पूर्णतः संयोजक इलेक्ट्रॉनों से भरा होता है और चालन बैण्ड पूर्णतः खाली रहता है। इन दोनों बैण्डों के बीच के क्षेत्र को वर्जित बैण्ड कहते हैं। वर्जित बैण्ड की चौड़ाई उस ऊष्मीय ऊर्जा के बराबर होती है जिसे प्राप्त करके संयोजकता बैण्ड का इलेक्ट्रॉन, संयोजकता बैण्ड से निकलकर चालन बैण्ड में आ जाता है। इस प्रकार वर्जित बैण्ड की चौड़ाई ऊर्जा को व्यक्त करती है।
(ii) चालकों में वर्जित बैण्ड की चौड़ाई लगभग शून्य होती है अर्थात् संयोजकता बैण्ड एवं चालन बैण्ड एक-दूसरे के ऊपर अतिव्यापित होते हैं। अचालकों में वर्जित बैण्ड की चौड़ाई काफी अधिक होती है।
(iii) अर्द्ध-चालकों में इस बैण्ड की चौड़ाई कम होती है। सिलिकॉन में वर्जित बैण्ड की ऊर्जा 1.1 cV तथा जर्मेनियम में 0.72 eV होती है। वैसे
सामान्यतः अर्द्ध-चालकों के वर्जित बैण्ड की ऊर्जा 2eV से कम ही होती है। बाह्य विद्युत् क्षेत्र में इस क्रम की ऊर्जा इलेक्ट्रॉन प्राप्त नहीं कर सकते, अतः इस प्रकार के अर्द्ध-चालक क्रिस्टलों में संयोजी बैण्ड भरा और चालन बैण्ड खाली रहता है। इसीलिए कम ताप पर ये पदार्थ अचालक की ‘भाँति व्यवहार करते हैं।
चालकों में संयोजी बैण्ड एवं चालन बैण्ड अतिव्यापित रहते हैं, अतः इलेक्ट्रॉनों को संयोजकता बैण्ड से चालन बैण्ड में पहुँचाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता नहीं रहती है। इस प्रकार कम विद्युत् क्षेत्र लगाने पर भी चालकों में इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह सुगमता से हो जाता है।
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