Students must start practicing the questions from RBSE 12th Physics Model Papers Set 8 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Physics Model Paper Set 8 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 56
सामान्य निर्देश :
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों के आंतरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड-(अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पीय प्रश्न-निम्न प्रश्नों के उत्तर का सही विकल्प चयन कर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए –
(i) दो समान गोले जिन पर विपरीत तथा असमान आवेश हैं परस्पर 90 cm दूरी पर रखे हुए हैं। इनको परस्पर स्पर्श कराकर पुनः जब उतनी ही दूरी पर रख दिया जाता है तो वे परस्पर 0.025N बल से प्रतिकर्षित करने लगते हैं। दोनों का अन्तिम आवेश होगा – [1]
(अ) 1.5μC
(ब) 1.5C
(स) 3C
(द) 3μc
उत्तर:
(अ) 1.5μC,
(ii) एक आवेशित संधारित्र की दोनों प्लेटों को एक तार से जोड़ दिया जाये तब- [1]
(अ) विभव अनन्त हो जायेगा
(ब) आवेश अनन्त हो जायेगा
(स) आवेश पूर्व मान का दोगुना हो जायेगा
(द) संधारित्र निरावेशित हो जायेगा
उत्तर:
(द) संधारित्र निरावेशित हो जायेगा,
(iii) विभवमापी विभवान्तर मापने का ऐसा उपकरण है जिसका प्रभावी प्रतिरोध –
(अ) शून्य होता है
(ब) अनन्त होता है
(स) अनिश्चित होता है
(द) बाह्य प्रतिरोध पर निर्भर करता है
उत्तर:
(ब) अनन्त होता है ,
(iv) हेल्महोल्ट्ज कुण्डलियों का उपयोग किया जाता है – [1]
(अ) एक समान चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने में
(ब) विद्युत धारा मापन में
(स) चुम्बकीय क्षेत्र मापन में
(द) विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने में
उत्तर:
(अ) एक समान चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने में,
(v) एक ताँबे के तार की कुण्डली को एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र के समान्तर गतिशील होने पर प्रेरित विद्युत धारा का मान होगा – [1]
(अ) अनन्त
(ब) शून्य
(स) चुम्बकीय क्षेत्र के बराबर
(द) कुण्डली अनुप्रस्थ काट के क्षेत्र के बराबर
उत्तर:
(ब) शून्य,
(vi) देहली आवृत्ति से अधिक आवृत्ति के प्रकाश के लिए प्रकाश विद्युत प्रभाव के प्रयोग में उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की संख्या समानुपाती है – [1]
(अ) इनकी गतिज ऊर्जा के
(ब) इनकी स्थितिज ऊर्जा के
(स) आपतित प्रकाश की आवृत्ति के
(द) धातु पर आपतित फोटॉनों की संख्या के
उत्तर:
(द) धातु पर आपतित फोटॉनों की संख्या के,
(vii) यदि 37Li समस्थानिक का द्रव्यमान 7.016005 u तथा H परमाणु व न्यूट्रॉन के द्रव्यमान क्रमशः 1.007825 u व 1.008665u है।
Li नाभिक की बंधन ऊर्जा है। [1]
(अ) 5.6 MeV
(ब) 8.8 Mev
(स) 0.42 MeV
(द) 39.2 Mev
उत्तर:
(द) 39.2 Mev,
(viii) p – n संधि में अवक्षय क्षेत्र की चौड़ाई में वृद्धि का कारण – [1]
(अ) अग्र एवं उत्क्रम बायस दोनों
(ब) अग्र धारा में वृद्धि
(स) केवल अग्र बायस में
(द) केवल उत्क्रम बायस में
उत्तर:
(द) केवल उत्क्रम बायस में,
(ix) P- प्रकार के अर्द्धचालक में आवेश वाहक होते हैं – [1]
(अ) इलेक्ट्रॉन
(ब) होल
(स). प्रोटॉन
(द) न्यूट्रॉन
उत्तर:
(ब) होल
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) वायु की परावैद्युत सामर्थ्य ……………………. होती है। [1]
उत्तर:
3 x 106 Vm-1
(ii) आवेश के प्रवाह की दर को ………………. कहते हैं। [1]
उत्तर:
विद्युत धारा
(iii) यदि कुण्डली के अन्दर निकिल की छड़ रखा दी जाए तो स्वप्रेरण गुणांक L का मान …………. जाता हैं। [1]
उत्तर:
बढ़
(iv) ………….. विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में रूपान्तरित करता है। [1]
उत्तर:
प्रकाश उत्सर्जक डायोड
प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए –
(i) विभवमापी के मानकीकरण से क्या अभिप्राय है? समझाइए। [1]
उत्तर:
द्वितीयक परिपथ में मानक सेल का प्रयोग कर विभव प्रवणता का मानक प्राप्त करना विभवमापी का मानकीकरण कहलाता है।
(ii) परिनालिका के अन्दर उत्पन्न चुम्बकीय बल रेखाएँ कैसी होती हैं?[1]
उत्तर:
परिनालिका के अन्दर चुम्बकीय बल रेखाएँ समान्तर एवं लम्बाई के अनुदिश होती हैं।
(iii) चित्र में वर्णित स्थिति के लिए संधारित्र की ध्रुवता की प्रागुक्ति कीजिए। [1]
उत्तर:
संधारित्र की प्लेट. ‘A’ की ध्रुवता प्लेट ‘B’ के सापेक्ष धनात्मक होगी।
(iv) निरोधी विभव का मान किस पर निर्भर करता है? [1]
उत्तर:
आपतित प्रकाश की आवृत्ति पर।
(v) प्रकाश तरंगों एवं द्रव्य तरंगों में क्या अन्तर है? [1]
उत्तर:
प्रकाश तरंगें विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं जबकि द्रव्य तरंगें विद्युत चुम्बकीय तरंगें नहीं हैं। द्रव्य तरंगें गतिशील कण के साथ सम्बद्ध तरंगें हैं।
(vi) एकसमान दर से चलने वाली श्रृंखला अभिक्रिया के लिए न्यूट्रॉन गुणांक का मान कितना होगा? [1]
उत्तर:
न्यूटॉन गुणांक (k) का मान 1 होता है।
(vi) नाभिकीय भट्टी में प्रयुक्त शीतलक का कार्य लिखिए। [1]
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन में उत्पन्न ऊष्मा से विस्फोट की आशंका से बचाना है।
(viii) पूर्ण तरंग दिष्टकारी में यदि निवेशी आवृत्ति 50 Hz हो, तो निर्गत आवृत्ति कितनी होगी? [1]
उत्तर:
पूर्ण तरंग दिष्टकारी में निवेशी के एक चक्र में दो बार निर्गत वोल्टता मिलती है अतः निर्गत आवृत्ति 100 Hz, होगी।
खण्ड-(ब)
प्रश्न 4.
V वोल्ट की किसी बैटरी से किसी समान्तर पट्टिका संधारित्र को आवेशित किया गया है। इस बैटरी को हटाकर पट्टिकाओं के बीच पृथकन को आधा कर दिया जाता है। इस संधारित्र के सिरों पर नया विभवान्तर क्या होगा? [1½]
उत्तर:
पृथकन आधा होने पर संधारित्र की धारिता
C’ = \(\frac{\varepsilon_{0} \mathrm{~A}}{d / 2}=\frac{2 \varepsilon_{0} \mathrm{~A}}{d}\)
C’ = 2C
जबकि Q = CV नियत है तब
Q =C’V
V’ = \( \frac{Q}{C^{\prime}}=\frac{C V}{2 C}=\frac{V}{2}\)
प्रश्न 5.
रैखिक आवेश घनत्व λ वाला एक लम्बा आवेशित बेलन एक खोखले समाक्षीय चालक बेलन द्वारा घिरा है। दोनों बेलनों के बीच के स्थान में विद्युत् क्षेत्र का व्यंजक ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
दोनों बेलनों के मध्य अन्दर वाले बेलन से r दूरी पर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करने के लिए r त्रिज्या एवं l लम्बाई के बेलनाकार गॉसीय पृष्ठ की कल्पना करते हैं।
यदि आवेश का रेखीय घनत्व λ है तो गॉसीय पृष्ठ द्वारा परिबद्ध आवेश
Σq = λ.l ……………………….. (i)
∴ गाउस की प्रमेय से पृष्ठ से निर्गत वैद्युत फ्लक्स
Φ = \(\frac{\Sigma q}{\varepsilon_{0}}=\frac{\lambda . l}{\varepsilon_{0}}\)
⇒ Φ = \(\frac{\lambda l}{\varepsilon_{0}}\) ……………………….. (ii)
परन्तु फ्लक्स की परिभाषा से,
Φ = \(\oint_{s} \overrightarrow{\mathrm{E}} \cdot d \overrightarrow{\mathrm{S}}\)
= \(\oint_{S}\) E.ds. cos θ
= \(\oint_{S_{1}}\) E.ds.cos 900 + \(\oint_{s_{2}}\) E.ds.cos 900+\(\oint_{s_{3}}\) E.ds.cos 0
= 0+0+E\(\oint_{s_{3}}\).ds
= E .\(\oint_{s_{3}}\).ds = E.2πrl (∵\(\oint_{s_{3}}\) ds = 2πrl)
समी. (ii) व (iii) की तुलना करने पर,
E.2Trl = \(\frac{\lambda l}{\varepsilon_{0}}\)
∴ E = \(\frac{\lambda l}{2 \pi \varepsilon_{0} r l}=\frac{\lambda}{2 \pi \varepsilon_{0} r}\)
⇒ E = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{2 \lambda}{r}\)
यह दोनों बेलनों के मध्य अक्ष से r दूरी पर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र है। यही अभीष्ट व्यंजक है।
प्रश्न 6.
विभवमापी का कार्यकारी सिद्धांत की उपयुक्त विवेचना कीजिए। [1½]
उत्तर:
विभवमापी का सिद्धान्त-
माना L लम्बाई का कोई AB प्रतिरोध तार है जिसके सिरों पर E विद्युत् वाहक बल एवं नगण्य आन्तरिक प्रतिरोध वाला सेल जोड़ा जाता है, अतः तार AB के सिरों पर E विभवान्तर उत्पन्न हो जायेगा क्योंकि आन्तरिक प्रतिरोध नगण्य है।
तार की प्रति इकाई लम्बाई में विभव पतन को विभव प्रवणता कहते हैं। अतः तार में उत्पन्न विभव प्रवणता
k = \(\frac{E}{L}\) ………………………. (1)
अब यदि तार AB पर कोई बिन्दु C ले तो A व C के मध्य विभवान्तर VAC, दूरी AC अर्थात् l पर निर्भर करेगा। बिन्दु C को बिन्दु B की ओर खिसकाने पर VAC का मान बढ़ेगा और A की ओर खिसकाने पर घटेगा। यदि A से C की दूरी l है तो विभवान्तर
VAC =k.l ……………………………….. (2)
अब यदि A व C के मध्य एक अज्ञात विद्युत् वाहक बल E’ का एक सेल एक धारामापी द्वारा जोड़ दें तो धारामापी में उत्पन्न विक्षेप इस बात पर निर्भर करेगा कि VAC व E’ में कौन बड़ा है।
चित्र के अनुसार दिखा सकते हैं। चित्र में VAC मान बिन्दु C की स्थिति पर निर्भर करता है। चित्र के अनुसार E’ व VAC इस प्रकार जुड़े हैं कि वे एक-दूसरे का प्रतिरोध करते हैं। इस परिपथ का परिणामी विद्युत् वाहक बल (E’ ~ VAc) होगा, अतः स्पष्ट है कि जब VAC = E’ होगा तो परिणामी विद्युत् वाहक बल शून्य होगा और परिपथ में कोई धारा नहीं बहेगी, फलस्वरूप धारामापी में अविक्षेप की स्थिति होगी।
उक्त विवेचना से स्पष्ट है कि यदि किसी अज्ञात विद्युत् वाहक बल E’ को धारामापी द्वारा जोड़कर C की स्थिति तार AB पर इस प्रकार ज्ञात कर लें कि धारामापी शून्य विक्षेप की स्थिति प्रदर्शित करे तो अज्ञात विद्युत् वाहक बल E’ का मान VAC के बराबर होगा, अतः
E = VAC = kl ……………………… (3)
इस प्रकार सूत्र (3) की सहायता से । का मान – ज्ञात करके अज्ञात विद्युत् वाहक बल E’ की माप की जा सकती है। यही विभवमापी का सिद्धान्त है|
प्रश्न 7.
चित्र में किसी 1.5V के सेल का आन्तरिक प्रतिरोध मापने के लिए एक 2.0V का विभवमापी दर्शाया गया है। खुले परिपथ में सेल का सन्तुलन बिन्दु 76.3 सेमी पर मिलता है। सेल के बाह्य परिपथ में 9.5Ω प्रतिरोध का एक प्रतिरोधक संयोजित करने पर सन्तुलन बिन्दु विभवमापी के तार की 64.8 सेमी लम्बाई पर पहुँच जाता है। सेल के आन्तरिक प्रतिरोध का मान ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
सेल का आन्तरिक प्रतिरोध
r = \(\left(\frac{\mathrm{E}-\mathrm{V}}{\mathrm{V}}\right)\) R = \(\left(\frac{l_{1}-l_{2}}{l_{2}}\right)\) R
यहाँ l1 = 76.3 सेमी; l2 = 64.8 सेमी, R= 9:5Ω
∴ r = \(\left(\frac{76.3-64.8}{64.8}\right) \times 9.5\)
= \(\frac{11.5 \times 9.5}{64.8}\) = 1.7 Ω.
प्रश्न 8.
किसी समतल वृत्ताकार कुण्डली के लिए स्वप्रेरण गुणांक का व्यंजक प्राप्त कीजिए। [1½]
उत्तर:
समतल वृत्ताकार कुण्डली का स्वप्रेरक गुणांक-माना N फेरों वाली एक समतल कुण्डली की त्रिज्या r है और इसमें i ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। इस कुण्डली के केन्द्र पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
B = \(\frac{\mu_{0}}{2} \frac{N i}{r}\)
यदि इस क्षेत्र को कुण्डली के सम्पूर्ण तल में एक समान मानें, तो कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स
NΦB = N(BA)= N.B.πr² = N \(\frac{\mu_{0} \mathrm{~N} i}{2 r}\) πr²
⇒ NΦB = \(\frac{\mu_{0} \pi \mathrm{N}^{2} i}{2} r\) …………………………………. (1)
यदि कुण्डली का स्वप्रेरकत्व (inductance) L हो, तो
L = \(\frac{\mathrm{N} \phi_{\mathrm{B}}}{i}\) ……………………….. (2)
समी. (2) में Npg का मान समी. (1) से रखने पर.
L = \(\frac{\mu_{0} \pi N^{2}}{2} r\) हेनरी ………………………….. (3)
यही अभीष्ट व्यंजक है।
प्रश्न 9.
0.5 युग्मन गुणांक वाली दो कुण्डलियों के स्वप्रेरण गुणांकों का अनुपात 1:4 है तथा उनका अन्योन्य प्रेरण गुणांक 5 हेनरी है। उनके स्वप्रेरण गुणांकों के मान ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
दिया है ε = 0.5, L1: L2 = 1 : 4
M= 5 हेनरी L1 = ? L2 = ?
∵ \(\frac{\mathrm{L}_{1}}{\mathrm{~L}_{2}}=\frac{1}{4}\)
⇒ L2 = 4 L1 …………………….. (1)
∴ सूत्र ε = M \(\sqrt{\mathrm{L}_{1} \times \mathrm{L}_{2}}\) से
ε= M \(\sqrt{L_{1} \times 4 L_{1}} \)
⇒ L1= \(\frac{\varepsilon}{2 \mathrm{M}}\) (सरल करने पर) =
⇒ L1 = \(\frac{\varepsilon}{2 \mathrm{M}}=\frac{0.5}{2 \times 5}=\frac{0.5}{10}\) = 0.5
L1 = 0.05 हेनरी
तथा L2 =4 x L1
L2 =4 x 0.05 = 0.2 हेनरी
प्रश्न 10.
जरा दृष्टि दोष क्या है? इस दृष्टि दोष का कारण एवं निवारण लिखिए। [1½]
उत्तर:
जरा दृष्टि दोष-इस दोष के उत्पन्न होने पर न तो बहुत दूर की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी देती हैं और न ही बहुत पास की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी देती हैं अर्थात् दूर बिन्दु अनन्त से हटकर नेत्र के पास आ जाता है और निकट बिन्दु नेत्र से दूर हट जाता है।
दोष के कारण-दोष का मुख्य कारण वृद्धावस्था में माँसपेशियों का शिथिल हो जाना है। दोष का निवारण-जरा दृष्टि दोष में निकट दृष्टि एवं दूर दृष्टि दोनों प्रकार के दोष शामिल हैं, अतः इस दोष को दूर करने के लिए दो चश्मे प्रयोग किये जाते हैं जिनमें से एक में उत्तल लेन्स और दूसरे में अवतल लेन्स का प्रयोग किया जाता है। यदि एक ही चश्मा पहनना है तो द्विफोकसीलेन्स का प्रयोग करना पड़ता है।
प्रश्न 11.
द्रव में छड़ के मुड़ी हुई दिखाई देने का कारण किरण आरेख द्वारा स्पष्ट कीजिए। 3/4+3/4=1½
उत्तर
द्रव में आंशिक रूप से डूबी हुई छड़ मुड़ी हुई दिखायी देती है-हम जानते हैं कि जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो अभिलम्ब से दूर हट जाती है। छड़ ABO का BO भाग एक द्रव (जैसे-जल) में डूबा है।
छड़ के निचले सिरे O से चलने वाली किरणें जब द्रव के पृष्ठ पर अपवर्तित होती हैं तो अपसरित (diverge) हो जाती हैं जिन्हें पीछे बढ़ाने पर वे I पर मिलती हैं, अतः O का प्रतिबिम्ब I पर बनता है। इस प्रकार छड़ ABO हमें मुड़ी हुई ABI के रूप में दृष्टिगोचर (visible) होती है।
प्रश्न 12.
किसी संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक तथा नेत्रिका लेन्स की फोकस दूरी कम क्यों होनी चाहिए? [1½]
उत्तर:
अभिदृश्यक की आवर्धन क्षमता का परिणाम
mo = \(\frac{v_{0}}{u_{0}}\)
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में वस्तु अभिदृश्यक लेन्स के प्रथम फोकस तल के बराबर उसके निकट रखी जाती है अतः
u0 ≈ f0
∴ mo = \(\frac{v_{0}}{f_{0}}\)
स्पष्ट है कि अभिदृश्यक का mo उतना ही अधिक होगा जितना f0 का मान कम होगा। अभिनेत्र लेन्स की आवर्धन क्षमता
me = \(\left(1+\frac{D}{f_{e .}}\right)\)
इसमें भी fe का मान जितना कम होगा, me का मान उतना ही अधिक होगा।
स्पष्ट है कि संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता बढ़ाने के लिए अभिदृश्यक एवं नेत्रिका लेन्स दोनों की फोकस दूरियाँ कम ली जाती हैं।
प्रश्न 13.
किसी बिम्ब को 15 सेमी फोकस दूरी के अवतल दर्पण के सामने रखा गया है। इस दर्पण द्वारा इस बिम्ब का तीन गुना वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है। दर्पण से बिम्ब की दूरी परिकलित कीजिए। [1½]
उत्तर:
दिया है: दर्पण की फोकस दूरी f= – 15 सेमी
तथा m = -3 तब सुत्र m = –\(\frac{v}{u}\) से
-3 = – \(\frac{v}{u}\) या v= 3u
दर्पण सूत्र से \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}+\frac{1}{u}\)
\(\frac{1}{-15}=\frac{1}{3 u}+\frac{1}{u}\)
\(\frac{1}{-15}=\frac{4}{3 u}\)
अतः u = – 20 सेमी
प्रश्न 14.
नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रिया में क्रांतिक द्रव्यमान से क्या आशय है? समझाओ। [1½]
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन में उत्पन्न सभी न्यूट्रॉन विखण्डन में भाग नहीं लेते हैं। यहाँ न्यूट्रॉन की उत्पत्ति की दर पिण्ड के आयतन पर निर्भर होती है; जबकि पृष्ठ से क्षरण की दर पृष्ठीय क्षेत्रफल (4πr²) पर निर्भर करती है।
इस प्रकार
स्पष्ट है पिण्ड का आकार छोटा होने पर क्षरण पर उत्पत्ति दर के सापेक्ष अधिक होगी, जबकि पिण्ड का आकार अधिक होगा तो क्षरण दर की अपेक्षा उत्पत्ति दर अधिक होगी व श्रृंखला अभिक्रिया की सम्भावना अधिक होगी। उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट है भारी नाभिक (यूरेनियम) का वह न्यूनतम द्रव्यमान (आकार) जिसमें नाभिकीय विखण्डन शृंखला अभिक्रिया सम्भव होती है उसे क्रांतिक द्रव्यमान कहते हैं।
प्रश्न 15.
किसी रेडियोएक्टिव तत्व की सक्रियता 10-3 विघटन/वर्ष है। इसकी अर्द्ध-आयु व औसत-आयु का अनुपात ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
सक्रियता A = λN
A = \(\frac{0.693}{T_{1 / 2}}\) N ……………………………. (1)
A = \(\frac{1}{\tau}\) N …………………………………… (2)
समी. (1) में समी. (2) का भाग देने पर
\(\frac{0.693}{1} \times \frac{\tau}{T_{1 / 2}}\) = 1
⇒ \(\frac{\tau}{T_{1 / 2}}=\frac{1}{0.693}\) = 1.44
खण्ड-(स)
प्रश्न 16.
बायो-सेवर्ट के नियम का उपयोग करते हुए अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही चालक तार के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक स्थापित कीजिए। [3]
अथवा
कोलकित चल कुण्डली धारामापी की बनावट एवं कार्यविधि का वर्णन करो। आवश्यक चित्र दीजिए। [1+2=3]
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता के लिए व्यंजक-माना XY एक सीधा पतला धारावाही चालक तार है। तार में स्थायी धारा I तार के x सिरे से Y सिरे की ओर प्रवाहित हो रही है। इस धारावाही चालक तार के कारण, कागज के तल में तार से लम्बवत् दूरी d पर स्थित बिन्दु P पर चुम्बकीय क्षेत्र ज्ञात करना है।
चुम्बकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए एक अल्पांश ab की कल्पना करते हैं, जिसकी लम्बाई al है। इस अल्पांश का मध्य बिन्दु O है।
अल्पांश से बिन्दु P के लम्बवत् तार के बिन्दु O’ से दूरी OO = l है। बायो सावर्ट के नियम से इस अल्पांश के कारण बिन्दु P पर चुम्बकीय क्षेत्र
\(\overrightarrow{d \mathrm{~B}}=\frac{\mu_{0}}{4 \pi} \frac{\overrightarrow{d l} \sin \theta}{r^{2}}\) ………………. (1)
दाएँ हाथ के नियम के अनुसार, P पर अल्पांश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा कागज के तल . के लम्बवत् नीचे की ओर होगी।
समी. (1) में \(\vec{r}\) =OP तथा ∠YOP= θ
चित्र से, ΔOO’P में
cot ∠POO’= cot (180° – θ ) =-cotθ
∴ cot θ = – \(\frac{l}{d}\)
अतः l =-d cot θ ………………………………… (2)
θ के सापेक्ष अवकलन करने पर
\(\frac{d l}{d \theta}\) = – d(-coses2θ)
अतः dl=d cosec2 dθ ……………………………….. (3)
पुनः ΔOO’P से
coses(1800 – θ) = \(\frac{\mathrm{OP}}{\mathrm{OO}^{\prime}}=\frac{r}{d}\)
⇒ cosesθ = \(\frac{r}{d}\)
r = dcosec θ ……………………….. (4)
समी. (3) से dl का मान तथा समी. (4) से r का मान समी. (1) में प्रतिस्थापित करने पर
समी (5) में θ का मान तार के सिरों x तथा Y के लिए क्रमशः θ1 तथा θ2 हैं।
अतः सम्पूर्ण धारावाही तार XY के कारण बिन्दु P पर चुम्बकीय क्षेत्र समीकरण (5) का सीमाओं θ1 से θ2 के अन्तर्गत समाकलन पर
पुनः चित्र की ज्यामिति से
θ1=90° – Φ1 (∵ θ+ +Φ1= 90°)
तथा θ2 =Φ1+90°
(∴Δ𝜏 YOP का बहिष्कोण θ2 है)
अतः समी. (6) में θ1 व θ2 के मान रखने पर
B = \(\frac{\mu_{0} \mathrm{I}}{4 \pi d}\left[\cos \left(90^{\circ}-\phi_{1}\right)-\cos \left(90^{\circ}+\phi_{2}\right)\right]\)
B= \(\frac{\mu_{0} I}{4 \pi d}\left[\sin \phi_{1}+\sin \phi_{2}\right]\) ……………………………………. (7)
यहाँ Φ1 तथा Φ2 अभीष्ट बिन्दु P पर तार के सिरों X तथा Y द्वारा अंतरित कोण है। धारावाही चालक तार की लम्बाई अनन्त होने पर तार के सिरे X तथा Y असीमित दूरी पर होंगे, अतः इनके द्वारा बिन्दु P पर अंतरित कोण
Φ1= Φ2 = \(\frac{\pi}{2}\)
समी. (7) से अनन्त लम्बाई के धारावाही चालक तार के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
B = \(\frac{\mu_{0} I}{4 \pi d}\left(\sin \frac{\pi}{2}+\sin \frac{\pi}{2}\right)\)
B= \(\frac{\mu_{0} \mathrm{I}}{4 \pi d}(1+1)\) ⇒ B = \(\frac{\mu_{0} I}{2 \pi d}\)
यही अभीष्ट व्यंजक है।
प्रश्न 17.
उत्तल दर्पण का उपयोग करते हुए दर्पण सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}+\frac{1}{u}\) , प्राप्त कीजिए। आवश्यक किरण आरेख बनाइए। [2+1=3]
अथवा
(i) दर्शाइए दर्पण की फोकस दूरी, वक्रता त्रिज्या की आधी होती है।
(ii) दर्पण की आवर्धन क्षमता से क्या अभिप्राय है? [2+1=3]
उत्तर:
उत्तल दर्पण के लिए दर्पण-सूत्र M1M2, उत्तल दर्पण है। इसके सामने रखी वस्तु AB का प्रतिबिम्ब A’B’ बनता है। मुख्य अक्ष के समान्तर किरण के आपतन बिन्दु E से मुख्य अक्ष पर डाला गया अभिलम्ब EN है।
अब ΔABC व ΔA’B’C में,
∠BAC = ∠ B’A’C = 90°
∠C दोनों में उभयनिष्ठ है।
अतः त्रिभुजों के तीसरे कोण ∠ ABC व ∠A’B’C स्वतः बराबर हो जायेंगे। इस प्रकार ΔABC व ΔA’B’C समरूप त्रिभुज होंगे। इन समरूप त्रिभुजों में,
\(\frac{\mathrm{AB}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{B}^{\prime}}=\frac{\mathrm{AC}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{C}}\) …………..(1)
अब ΔENF व ΔA’B’F में,
∠ENF = ∠BAF = 90°
∠F दोनों में उभयनिष्ठ है।
अतः ΔENF व ΔA’B’F भी समरूप त्रिभुज होंगे। इन समरूप त्रिभुजों से,
\(\frac{\mathrm{EN}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{B}^{\prime}}=\frac{\mathrm{NF}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{F}}\)
………………………….. (2)
∵ EN = AB
∴ \(\frac{\mathrm{AB}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{B}^{\prime}}=\frac{\mathrm{NF}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{F}}\) …………………………. (3)
ध्रुव P के काफी निकट होगा, अतः NF = PF ले सकते हैं, अतः
\(\frac{\mathrm{AB}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{B}^{\prime}}=\frac{\mathrm{PF}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{F}}\) ………………………………. (4)
अब समी. (1) व (4) की तुलना करने पर,
\(\frac{\mathrm{AC}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{C}}=\frac{\mathrm{PF}}{\mathrm{A}^{\prime} \mathrm{F}}\) ………………………………. (5)
⇒ \(\frac{\mathrm{AP}+\mathrm{PC}}{\mathrm{PC}-\mathrm{PA}^{\prime}}=\frac{\mathrm{PF}}{\mathrm{PF}-\mathrm{PA}^{\prime}}\) ……………………….. (6)
चिहन परिपाटी के अनुसार,
AP = – u, PA’ = + v, PF = +f,
PC =+ R=2f
समी. (6) में मान रखने पर,
समीकरण (7) में uvf का भाग देने पर,
\(\frac{u v}{u v f}=\frac{u f}{u v f}+\frac{v f}{u v f}\)
⇒ \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}+\frac{1}{u}\) …(8).
प्रश्न 18.
उन तीन कारणों को समझाइए जिनके रहते तरंग सिद्धांत प्रकाश विद्युत प्रभाव की घटना की सफलतापूर्वक व्याख्या न कर सका। [3]
अथवा
लेनार्ड तथा मिलिकन के प्रयोगों के निष्कर्षों का उल्लेख करते हुए प्रकाश विद्युत प्रभाव की घटना के नियम समझाओ। [3]
उत्तर
प्रकाश- वैद्युत् प्रभाव की व्याख्या करने में तरंग सिद्धान्त निम्न कारणों से असफल रहा
(1) तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक आवृत्ति के प्रकाश से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होना चाहिए, क्योंकि आपतित प्रकाश से इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का अवशोषण करता रहे और जब उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा एकत्र हो जाये तो उसका उत्सर्जन हो जाना चाहिए। वास्तविकबा इससे भिन्न है। वास्तव में आपतित प्रकाश की आवृत्ति जब देहली आवृत्ति (vo) से अधिक होती है, तभी इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है।
(2) तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करनी चाहिए। तीव्रता बढ़ाने पर प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा बढ़नी चाहिए, क्योंकि तीव्रता बढ़ाने पर पृष्ठ पर आपतित ऊर्जा बढ़ जाती है अतः इलेक्ट्रॉन अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन करे और उसकी गतिज ऊर्जा बढ़ जानी चाहिए जबकि वास्तविकता यह है कि प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।
(3) तरंग सिद्धान्त के अनुसार पृष्ठ पर प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन के मध्य कुछ-न-कुछ समय अवश्य लगना चाहिए, क्योंकि इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा का अवशोषण करने में कुछ-न- कुछ समय अवश्य लगना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रकाश तरंगों द्वारा संचरित ऊर्जा धातु के किसी एक इलेक्ट्रॉन को न मिलकर, प्रकाशित क्षेत्रफल में उपस्थित सभी इलेक्ट्रॉनों में वितरित होगी।
वास्तविकता इसके भी भिन्न है। वास्तव में प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के मध्य कोई समय-पश्चता नहीं होती है।
खण्ड-(द)
प्रश्न 19.
समरूप विद्युत क्षेत्र में द्विध्रुव पर लगने वाले बल युग्म का आघूर्ण का व्यंजक स्थापित कीजिए। बल युग्म का सदिश रूप दर्शाते हुए स्थायी सन्तुलन अवस्था के लिए प्रतिबंध स्पष्ट कीजिए। [3+1=4]
अथवा
(i) चित्र (अ) में दर्शाए अनुसार किसी समबाहु त्रिभुज के शीर्षों पर स्थित आवेशों q,q तथा -q पर विचार कीजिए। प्रत्येक आवेश पर कितना बल लग रहा है ?
(ii) चित्र (ब) में किसी एकसमान स्थिर विद्युत् क्षेत्र में तीन आवेशित कणों के पथचिह्न दर्शाए गए हैं। तीनों आवेशों के चिह्न लिखिए। इनमें से किस कण का आवेश-संहति अनुपात \(\left(\frac{q}{m}\right)\) अधिकतम है ? [4]
उत्तर-
समरूप विद्युत् क्षेत्र में द्विध्रुव पर लगने वाले बलयुग्म का आघूर्ण-चित्र (अ) में एक समरूप विद्युत् क्षेत्र में एक वैद्युत द्विध्रुव
θ विक्षेप की स्थिति में दिखाया गया है। द्विध्रुव के आवेशों (+q) व (-q) पर लगने वाले वैद्युत बल (GE) परिमाण में समान एवं दिशा में विपरीत हैं तथा दोनों की क्रिया रेखाएँ भिन्न हैं। अतः ये दोनों बल बलयुग्म बनाते हैं। इस बल युग्म का आघूर्ण
τ = बल x बलों की क्रिया रेखाओं के मध्य दूरी
⇒ τ = qE x BC
चित्र से, \(\frac{\mathrm{BC}}{\mathrm{AB}}\) = sin θ
⇒ BC = AB sin θ
⇒ BC = 2l.sin θ
अत:
τ =qE x 2l sin θ
=q.2l. E sin θ
τ =pE sin θ न्यूटन x मीटर ………………………………………….. (1)
यही अभीष्ट व्यंजक है।
चित्र (ब) की सहायता से सदिश रूप में बलयुग्म के आघूर्ण को निम्न प्रकार लिख सकते है-
\(\vec{\tau}=\vec{p} \times \overrightarrow{\mathbf{E}} \) …………………………(2)
सदिश राशि बल आघूर्ण \(\vec{\tau}\) की दिशा दक्षिणावर्त पेंच के नियमानुसार \(\vec{p}\) व \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) के तल के लम्बवत् होती है।
जब θ = 0 तो sin θ = 0
अतः τ = pE sin θ= 0
या τ = 0
यही स्थायी सन्तुलन (stable equilibrium) की अवस्था है।
यही अभीष्ट प्रतिबन्ध है।
प्रश्न 20.
फोटो डायोड क्या है? इसका सिद्धान्त लिखिए। इसका स्वच्छ नामांकित चित्र देकर कार्यविधि समझाओ। [1+1+1+1= 4]
अथवा
वोल्टेज नियन्त्रक के रूप में जेनर डायोड का उपयोग किस गुण के कारण किया जाता है? एक परिपथ देकर इसकी कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। [1+1+2=4]
उत्तर:
फोटो-डायोड-“फोटो-डायोड एक ऐसी प्रकाश इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जिसमें फोटॉनों द्वारा प्रकाश उत्सर्जन से धारा वाहक उत्पन्न होते हैं अर्थात् प्रकाश द्वारा प्रकाश चालन होता है।” यह एक विशेष प्रकार का प्रकाश संसूचक है। यह विकिरण से प्रदीप्त एक उत्क्रम अभिनत p-n सन्धि है। प्रकाश संवेदी अर्द्धचालकों से मिलकर बना p-n सन्धि डायोड फोटो डायोड कहलाता है।
सिद्धान्त-यदि आपाती प्रकाश के फोटॉनों की ऊर्जा (hv) अर्द्धचालक के वर्जित बैण्ड अन्तराल (Eg) से अधिक है अर्थात् (hv > Eg) तो उत्क्रम अभिनत p-n सन्धि में धारा आपाती प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।
नामांकित चित्र
(a) कार्यविधि (Working)-जब p-n सन्धि को पर्याप्त वोल्टेज से उत्क्रम अभिनत किया जाता है तथा सन्धि पर कोई प्रकाश नहीं डाला जाता है तो सन्धि में एक क्षीण उत्क्रम धारा बहती है। यह धारा ऊष्मीय ऊर्जा द्वारा उत्पन्न इलेक्ट्रॉन-होल युग्मों के कारण बहती है और इसे अदीप्त धारा कहते
अब यदि सन्धि पर प्रकाश डाला जाता है तो अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन-होल युग्म मुक्त होते हैं। ये आवेश वाहक अल्पसंख्यक आवेश वाहक होते हैं। चूँकि बहुसंख्यक आवेश वाहकों का घनत्व काफी अधिक होता है अतः अल्पसंख्यक आवेश वाहकों के कारण (जो बहुत कम होते हैं) उनके घनत्व में परिवर्तन नगण्य मान लिया जाता है। इस प्रकार यह परिकल्पना की जाती है कि आपाती विकिरण केवल अल्पसंख्यक आवेश वाहक ही उत्पन्न करते हैं।
इन्हीं अल्पसंख्यक आवेश वाहकों के कारण उत्क्रम धारा बहती है। वास्तव में डायोड इस प्रकार बनाए जाते हैं कि e-h युग्मों का जनन डायोड के ह्रासी क्षेत्र में या इसके समीप होता है। संधि के विद्युत क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉन तथा होल पुनः संयोजन से पूर्व पृथक हो जाते हैं। विद्युत क्षेत्र की दिशा इस प्रकार होती है कि इलेक्ट्रॉन n-फलक पर तथा होल p-फलक पर पहुँचते हैं, जिसके कारण एक वैद्युत वाहक बल emf उत्पन्न होता है। जब इसके साथ कोई बाह्य लोड संयोजित कर देते हैं तो विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है।
Leave a Reply