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RBSE 12th Political Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

April 4, 2022 by Prasanna Leave a Comment

Students must start practicing the questions from RBSE 12th Political Science Model Papers Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi Medium provided here.

RBSE Class 12 Political Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

समय : 2:45 घण्टे
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  • परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  • सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर:पुस्तिका में ही लिखें।
  • जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

खण्ड – (अ)

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों में उत्तर का सही विकल्प चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें

(i) उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना की गई?[1]
(अ) 1962
(ब) 1967
(स) 1949
(द) 1953
उत्तर:
(स) 1949

(ii) ‘शॉक थैरेपी’ किस वर्ष अपनायी गई थी? [1]
(अ) 1980
(ब) 1990
(स) 1985
(द) 1995
उत्तर:
(ब) 1990

(iii) साफ्टा सम्बन्धित है [1]
(अ) आसियान
(ब) सार्क
(स) यूनेस्को
(द) ओपेक
उत्तर:
(ब) सार्क

(iv) भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया [1]
(अ) 1974
(ब) 1975
(स) 1978
(द) 1980
उत्तर:
(अ) 1974

(v) ‘वैश्विक सम्पदा’ या ‘मानवता की साझी विरासत’ में क्या सम्मिलित नहीं है? [1]
(अ) वायुमण्डल
(ब) सड़क मार्ग
(स) समुद्री सतह
(द) बाहरी अन्तरिक्ष
उत्तर:
(ब) सड़क मार्ग

(vi) स्वतंत्र भारत में प्रथम आम चुनाव कब हुआ था? [1]
(अ) 1952
(ब) 1962
(स) 1960
(द) 1972
उत्तर:
(अ) 1952

RBSE Class 12 Political Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

(vii) नीति आयोग की स्थापना कब हुयी थी? [1]
(अ) 2010
(ब) 2012
(स) 2015
(द) 2017
उत्तर:
(स) 2015

(viii) चिपको आंदोलन की शुरुआत किस राज्य से हुई? [1]
(अ) झारखण्ड
(ब) उत्तराखण्ड
(स) उत्तरांचल
(द) मणिपुर
उत्तर:
(ब) उत्तराखण्ड

(ix) निम्न राजनीतिक दलों में से नया राजनीतिक दल कौन-सा है? [1]
(अ) इण्डियन नेशनल कांग्रेस
(ब) भारतीय जनता पार्टी.
(स) बहुजन समाजवादी पार्टी
(द) आम आदमी पार्टी
उत्तर:
(द) आम आदमी पार्टी

(x) संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रथम महासचिव कौन थे? [1]
(अ) ट्राइग्व ली
(ब) डैग हैमरशोल्ड
(स) यू थांट
(द) बान-की-मून
उत्तर:
(अ) ट्राइग्व ली

(xi) 2 जून, 2014 को निम्न में से कौन-सा नया राज्य बना है? [1]
(अ) छत्तीसगढ़
(ब) उत्तराखंड
(स) झारखण्ड
(द) तेलंगाना
उत्तर:
(द) तेलंगाना

(xii) स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री थे [1]
(अ) जवाहरलाल नेहरू
(ब) सरदार वल्लभ भाई पटेल
(स) मौलाना अब्दुल कलाम आजाद
(द) भीमराव अम्बेडकर
उत्तर:
(स) मौलाना अब्दुल कलाम आजाद

प्रश्न 2.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए:

(i) संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में …………… स्थायी और …………… अस्थायी सदस्य संख्या है।[1]
उत्तर:
5, 10,

(ii) भारत में संसदीय शासन पर आधारित ……………….. लोकतंत्र को अपनाया है। [1]
उत्तर:
प्रतिनिधित्वमूलक

(iii) प्रथम विश्वयुद्ध सन् ……………….. से ……………….. तक चला था। [1]
उत्तर:
1914, 1918,

(iv) रूस की 1971 की समाजवादी क्रांति के बाद ………………… अस्तित्व में आया। [1]
उत्तर:
समाजवादी सोवियत गणराज्य

(v) नामदेव ढसाल …………… भाषा के प्रसिद्ध कवि थे।
उत्तर:
मराठी

(vi) मण्डल आयोग को उनके अध्यक्ष ………………. के नाम पर मंडल कमीशन कहा जाता है। [1]
उत्तर: बी. पी. मंडल।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर एक शब्द अथवा एक पंक्ति में दीजिए

(i) गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता कौन थे? [1]
उत्तर:
जोसेफ ब्राँज टीटो।

(ii) सोवियत संघ का विघटन कब हुआ? [1]
उत्तर:
1919 में। ..

(iii) सार्क (SAARC) का पूरा म लिखिए। [1]
उत्तर:
सार्क (SAARC – South Asian Association for Regional Cooperation) दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन।

(iv) द्विराष्ट्र सिद्धान्त किस राजनीतिक दल द्वारा दिया गया था? [1]
उत्तर:
मुस्लिम लीग के द्वारा।

(v) प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल बताइए? [1]
उत्तर:
1951 से 1956 तक

(vi) ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ कौन-सा विरोधी आंदोलन किया था? [1]
उत्तर:
ताड़ी-विरोधी आंदोलन।

(vii) राजीव गाँधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी ने किन्हें अपना प्रधानमंत्री चुना? [1]
उत्तर:
नरसिम्हा राव को।

(vii) 2019 का 18वाँ गुटनिरपेक्ष सम्मेलन किस देश में हुआ था? [1]
उत्तर:
अजरबेजान देश के बाकू शहर में।

(ix) ब्लादिमीर लेनिन किस पार्टी के संस्थापक थे? [1]
उत्तर:
बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के।

(x) कवि द्वारा सूरजमुखी आशीषों वाला फकीर शब्द किनके लिए प्रयुक्त किया गया है? [1]
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के लिए।

(xi) बामसेफ (BAMCEF) का पूरा नाम लिखिए। [1]
उत्तर:
बामसेफ (Backward and minority communities employees federation) पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ।

(xii) ‘मिल्क मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से कौन मशहूर है? [1]
उत्तर: बर्गीज कुरीयन।

खण्ड – (ब)

लघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 50 शब्द)

प्रश्न  4.
महाशक्तियों के छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन के दो कारण लिखिए। [2]
उत्तर:
महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ निम्न कारणों से सैन्य गठबन्धन रखती थीं
(i) महत्त्वपूर्ण संसाधन हासिल करना-महाशक्तियों को छोटे देशों से तेल तथा खनिज पदार्थ इत्यादि प्राप्त होता था।
(ii) भू-क्षेत्र-महाशक्तियाँ इन छोटे देशों के यहाँ अपने हथियारों की बिक्री करती थीं और इनके यहाँ अपने सैन्य अड्डे स्थापित करके सेना का संचालन करती थीं।

प्रश्न  5.
सोवियत संघ के विघटन के दो कारण बताइए। [2]
उत्तर:
(i) तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा चलाये गये राजनीतिक व आर्थिक सुधार कार्यक्रम।
(ii) सोवियत संघ के गणराज्यों में लोकतांत्रिक एवं उदारवादी भावनाओं का उत्पन्न होना।

RBSE Class 12 Political Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न  6.
दक्षेस संगठन के प्राथमिक सात सदस्य देशों के नाम लिखिए। [2]
उत्तर:
दक्षेस संगठन के प्राथमिक सात सदस्यों में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल भूटान, मालदीव, श्रीलंका आदि शामिल हैं।

प्रश्न  7.
रियो सम्मेलन के कोई दो परिणाम लिखिए। [2]
उत्तर:
रियो सम्मेलन (पृथ्वी सम्मेलन) के दो परिणाम निम्नलिखित हैं
(i) इस सम्मेलन के परिणामस्वरूप विश्व राजनीति के दायरे में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों को एक ठोस रूप मिला।
(ii) रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता और वानिकी के सम्बन्ध में कुछ नियमाचार निर्धारित किए गए।

प्रश्न  8.
समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच दो अंतर बताइए। [2]
उत्तर:
(i) समाजवादी दल लोकतांत्रिक विचारधारा में विश्वास करते हैं जबकि कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद में विश्वास करती है।
(ii) समाजवादी दल अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये राज्य रूपी संस्था को रखना चाहते हैं जबकि कम्युनिस्ट पार्टी राज्य को समाप्त करने का पक्ष लेते हैं।

प्रश्न  9.
‘हरित क्रांति’ के दो सकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें। [2]
उत्तर:
(i) भारत में हरित क्रांति से गेहूँ व चावल की पैदावार में अत्यधिक वृद्धि हुयी।
(ii) हरित क्रांति के परिणामस्वरूप भारत खाद्यान्न के दृष्टिकोण से आत्मनिर्भर देश बन गया।

प्रश्न  10.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्यों के नाम लिखिए। [2]
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में जोसेफ ब्राँज टीटो (युगोस्लाविया) जवाहरलाल नेहरू (भारत) गमाल अब्दुल नासिर (मिस्र) सुकर्णों (इंडोनेशिया) तथा वामे एनक्र्मा (घाना) शामिल थे।

प्रश्न  11.
सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं दो विशेषताओं का जिक्र करें। [2]
उत्तर:
सोवियत अर्थव्यवस्था को पूँजीवादी देश; जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली दो विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं
(i) सोवियत अर्थव्यवस्था पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था से भिन्न है, क्योंकि इसमें उद्योगों को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया, जबकि पूँजीवादी देशों में विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका में उद्योग-धन्धों को विशेष महत्त्व दिया गया।
(ii) सोवियत अर्थव्यवस्था में उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर राज्य या सरकार का नियन्त्रण था, जबकि पूँजीवादी देशों में निजीकरण को अपनाया गया।

प्रश्न  12.
ऐसे दो मसलों का नाम बताएँ जिन पर भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग है? [2]
उत्तर:
भारत और बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग के निम्न दो मसले हैं
(i) विगत दस वर्षों के दौरान दोनों के बीच आर्थिक सम्बन्ध ज्यादा बेहतर हुए हैं। बांग्लादेश भारत की ‘पूरब चलो’ की नीति का हिस्सा है। इस नीति के अन्तर्गत म्यांमार के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया से सम्पर्क साधने की बात है।
(ii) आपदा-प्रबन्धन और पर्यावरण के मसले पर दोनों देशों में सहयोग है।

प्रश्न  13.
आतंकवाद सुरक्षा के लिए परम्परागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरम्परागत । उल्लेख करें? [2]
उत्तर:
आतंकवाद 21वीं शताब्दी में विश्व स्तर पर सुरक्षा की नई चुनौती है। यह अपरम्परागत सुरक्षा के खतरों की श्रेणी में आता है। वैसे तो आतंकवाद का अस्तित्व काफी पुराना है, लेकिन विश्व के राष्ट्रों व जनता की सुरक्षा की चुनौती के रूप में इसने सबका ध्यान तब आकर्षित किया. जब 11 सितम्बर, 2001 को संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर आतंकवादियों ने हमला किया। आतंकवादी घटनाएँ तब से विभिन्न देशों में घटित होती रही हैं, आतंकवाद का उद्देश्य जनमानस को आतंकित करना अथवा उसमें भय व्याप्त करना है।

प्रश्न  14.
क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ है? [2]
उत्तर:
यह सत्य है कि एकल पार्टी प्रभुत्व प्रणाली का राजनीतिक लोकतांत्रिक प्रवृत्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा प्रभूत्व प्राप्त दल विपक्षी पार्टियों की आलोचना की परवाह न करके मनमाने ढंग से शासन चलाने लगता है व लोकतंत्र को तानाशाही शासन में बदलने की संभावना विकसित होती है, परन्तु हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ। पहले तीन आम चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व का भारतीय राजनीति पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा। इसने भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

प्रश्न  15.
बाम्बे प्लान से आप क्या समझते हैं? [2]
उत्तर:.
भारत में सन् 1944 में उद्योगपतियों का एक वर्ग एकजुट हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ कहा जाता है। ‘बॉम्बे प्लान’ का मत था कि सरकार नियोजित अर्थव्यवस्था की राह पर चलना चाहते थे।

प्रश्न  16.
1970 के दशक में इंदिरा गाँधी सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी? कोई दो करण लिखिए। [2]
उत्तर:
(i) सन् 1970 के दशक में कांग्रेस को इंदिरा गाँधी के रूप में एक करिश्माई नेता मिल गया। वह प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पुत्री थी तथा उन्होंने स्वयं को गांधी परिवार का वास्तविक राजनीतिक उत्तराधिकारी बताने के साथ-साथ अधिक प्रगतिशील कार्यक्रम यथा बीस सूत्री कार्यक्रमों, गरीबी हटानेके लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण के वादे तथा कल्याणकारी सामाजिक, आर्थिक कार्यक्रम की घोषणा की। वह देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुईं।

(ii) इंदिरा गांधी द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स को समाप्त करना।

खण्ड – (स)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 100 शब्द)

प्रश्न  17.
श्रीलंका के जातीय संघर्ष में किनकी भूमिका प्रमुख है? [3]
उत्तर:
श्रीलंका के जातीय संघर्ष में सिंहलियों के बहुसंख्यकवाद एवं तमिलों के आतंकवाद दोनों की ही मुख्य भूमिका रही है। श्रीलंका में मुख्य रूप से सिंहली समुदाय की अधिकता है जो भारत छोड़कर श्रीलंका आ बसे तमिलों के खिलाफ हैं। सिंहली राष्ट्रवादियों का मानना है कि श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए क्योंकि श्रीलंका केवल सिंहली समुदाय का है। तमिलों के प्रति उपेक्षा भरे बर्ताव से एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज़ बुलन्द हुई। सन् 1983 के पश्चात् से उग्र तमिल संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) श्रीलंका की सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष प्रारंभ किया।

इसने ‘तमिल ईलम’ अर्थात् श्रीलंका के तमिलों के लिए एक अलग राष्ट्र की माँग रखी। धीरे-धीरे श्रीलंका में जातीय संघर्ष तेज होने लगा। विस्फोट एवं हत्याएँ होने लगीं। सन् 1987 में भारत ने श्रीलंका में शान्ति सेना भेजी; जिसे श्रीलंका की जनता ने पसन्द नहीं किया। फलस्वरूप सन् 1989 में भारत ने अपनी शान्ति सेना बिना लक्ष्य प्राप्त किये वापस बुला ली। भारत व श्रीलंका ने इस जातीय संघर्ष की समाप्ति के लिए भरपूर प्रयास किये, लेकिन सफलता नहीं मिली। सन् 2009 में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन के सैनिक कार्यवाही में मारे जाने के पश्चात् लिट्टे के खात्मे के साथ ही सशस्त्र संघर्ष समाप्त हो गया।

अथवा

दक्षिणी एशिया में द्विपक्षीय सम्बन्धों को बाहरी शक्तियाँ कैसे प्रभावित करती हैं? [3]
उत्तर:
कोई भी क्षेत्र अपने को गैर-इलाकाई ताकतों से अलग रखने की कितनी भी कोशिश क्यों न करे उस पर बाहरी ताकतों और घटनाओं का असर पड़ता ही है। चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका दक्षिण एशिया की राजनीति में अहम् भूमिका निभाते हैं। भारत और चीन के सम्बन्धों में पहले से निकटता आई है। परन्तु चीन के सम्बन्ध पाकिस्तान से भी हैं, इस कारण भारत-चीन सम्बन्धों में इतनी निकटता नहीं आ पायी है। यह एक बड़ी कठिनाई के रूप में है। शीतयुद्ध के बाद दक्षिण एशिया में अमेरिकी प्रभाव तेजी से बढ़ा है। अमेरिका ने शीतयुद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों से अपने सम्बन्ध बेहतर किये हैं। दोनों में आर्थिक सुधार हुए हैं और उदार नीतियाँ अपनायी गयी हैं। इससे दक्षिण एशिया में अमेरिकी भागीदारी ज्यादा गहरी हुई है। अमेरिका में दक्षिण एशियाई मूल के लोगों की संख्या अच्छी-खासी है। फिर इस क्षेत्र की सुरक्षा और शान्ति के भविष्य से अमेरिका के हित भी बँधे हुए हैं। बाहरी शक्तियाँ अपने लाभों या हितों को ध्यान में रखकर दक्षिण एशियाई देशों से सम्बन्ध रखती हैं ताकि वे अपने हितों को पूरा कर सकें।

RBSE Class 12 Political Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न  18.
साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियों से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं? [3]
उत्तर:
विश्व पर्यावरण की रक्षा के सम्बन्ध में ‘साझी लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ विचार के प्रतिपादन का तात्पर्य है कि विश्व पर्यावरण की रक्षा में विकसित देशों की जिम्मेदारी अधिक है। यह जिम्मेदारी विकसित व विकासशील देशों के लिए बराबर नहीं हो सकती। इसके अलावा अभी गरीब देश विकास के पथ पर गुजर रहे हैं, अतः उनके ऊपर पर्यावरण रक्षा की जिम्मेदारी विकसित देशों के बराबर नहीं हो सकती। इस प्रकार सन् 1992 में हुए रियो सम्मेलन (पृथ्वी सम्मेलन) में माना गया कि अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण, प्रयोग और व्याख्या में विकासशील देशों की विशिष्ट जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए।

साझी जिम्मेदारी तथा अलग-अलग भूमिका के सिद्धान्त को लागू करने हेतु यह आवश्यक है कि विभिन्न देशों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण के लिए उत्तरदायी गैसों के उत्सर्जन व तत्वों के प्रयोग का आकलन किया जाए तथा प्रदूषण रोकने के प्रयासों में उसी अनुपात में उस देश की जिम्मेदारी तय की जाए। चूँकि पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा एक साझा वैश्विक मुद्दा है; अतः विकसित देशों को आधुनिक प्रौद्योगिकी का विकास कर गरीब देशों को उपलब्ध कराना आवश्यक है। जो देश अभी तक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं कर पाए हैं तथा अभी विकास की प्रक्रिया में पीछे हैं, उन्हें आधुनिक प्रौद्योगिकी व तकनीक प्रदान कर पर्यावरण रक्षा हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

अथवा

वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं? [3]
उत्तर:
वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक में निम्न कारणों से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार बन गए हैं
(1) खाद्यान्न उत्पादन में कमी आना-दुनिया में जहाँ जनसंख्या बढ़ रही है, वहीं कृषि योग्य भूमि में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। जलाशयों की जलराशि में कमी तथा उनका प्रदूषण, चरागाहों की समाप्ति तथा भूमि के अधिक सघन उपयोग में उसकी उर्वरता कम हो रही है तथा खाद्यान्न उत्पादन जनसंख्या के अनुपात में कम हो रहा है।

(2) स्वच्छ जल की उपलब्धता में कमी आना-संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विकास रिपोर्ट, सन् 2016 के अनुसार जलस्रोतों के प्रदूषण के कारण दुनिया की 66.3 करोड़ जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होता। 30 लाख से अधिक बच्चे स्वच्छ जल तथा स्वच्छता की कमी के कारण मौत के शिकार हो जाते हैं।

(3) जैव विविधता का क्षरण होना-वनों के कटाव से जैव विविधता का क्षरण तथा जलवायु परिवर्तन का खतरा उत्पन्न हो गया है।
(4) ओजोन परत का क्षय होना-क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसों के उत्सर्जन से जहाँ वायुमण्डल की ओजोन परत का क्षय हो रहा है, वहीं ग्रीन हाउस गैसों के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खड़ी हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग से कई देशों के जलमग्न होने का खतरा बढ़ गया है।

(5) समुद्रतटीय क्षेत्रों में प्रदूषण का बढ़ना-समुद्रतटीय क्षेत्रों के प्रदूषण के कारण समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। चूँकि विश्व समुदाय को यह आभास हो गया है कि उक्त समस्याएँ वैश्विक हैं तथा इनका समाधान बिना वैश्विक सहयोग के सम्भव नहीं है, अत: पर्यावरण का मुद्दा विश्व राजनीति का भी अंग बन गया है।

प्रश्न  19.
दलित पैंथर्स ने कौन-कौनसे मुद्दे उठाए? [3]
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के प्रारम्भिक वर्षों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। इनमें अधिकतर शहर की झुग्गी-बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित हितों की दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में दलित युवाओं का एक संगठन ‘दलित पँथर्स’ सन् 1972 ई. में गठित हुआ। मुद्दे-दलित पैंथर्स के द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दे निम्नांकित थे

(i) स्वतंत्रता के पश्चात् के वर्षों में दलित समूह मुख्यतया जाति आधारित असमानता तथा भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे। वे इस बात को लेकर जागरूक थे कि संविधान में जाति आधारित किसी भी प्रकार के भेदभाव के विरुद्ध गारंटी दी गयी है।

(ii) भारतीय संविधान में अस्पृश्यता की प्रथा को समाप्त कर दिया गया है। सरकार द्वारा इसके अन्तर्गत साठ व सत्तर के दशक में कानून बनाए गए। इसके बावजूद प्राचीन काल में जिन जातियों को अछूत माना गया था, उनके साथ इस नए दौर में भी सामाजिक भेदभाव व हिंसा का व्यवहार कई रूपों में लगातार जारी रहा।

(iii) दलितों की बस्तियाँ मुख्य गाँव से अब भी दूर होती थीं। दलित महिलाओं के साथ यौन-अत्याचार होते थे। जातिगत प्रतिष्ठा की छोटी-छोटी बातों को लेकर दलितों पर सामूहिक अत्याचार किए जाते थे। दलितों के सामाजिक व आर्थिक उत्पीड़न को रोक पाने में कानून की व्यवस्था अपर्याप्त सिद्ध हो रही थी।

अथवा

क्या आंदोलन और विरोध की कार्यवाहियों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है। अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए। [3]
उत्तर:
जन आन्दोलनों का इतिहास हमें लोकतांत्रिक राजनीति को बेहतर तरीके से समझने में सहायता प्रदान करता है। इन आन्दोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की कमियों को दूर करना था। समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिशा देकर इन आन्दोलनों ने एक प्रकार से लोकतंत्र की रक्षा की है। सक्रिय भागीदारी के नए रूपों के प्रयोग ने भारतीय लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया है। अहिंसक व शान्तिपूर्ण आन्दोलनों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है। अपने उत्तर की पुष्टि में अग्रलिखित उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं

(i) चिपको आन्दोलन अहिंसक, शान्तिपूर्ण ढंग से चलाया गया एक व्यापक जन-आन्दोलन था। इससे वृक्षों की कटाई, वनों का उजड़ना बंद हुआ। पशु-पक्षियों, आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन तथा स्वास्थ्यवर्द्धक पर्यावरण मिला, सरकार लोकतांत्रिक माँगों के सामने झुकी।

(ii) दलित पैंथर्स के नेताओं द्वारा चलाए गए आन्दोलनों, सरकार विरोधी साहित्यकारों की कविताओं व रचनाओं ने, आदिवासी अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़ी जातियों में चेतना जगाई। दलित पैंथर्स जैसे राजनैतिक दल व संगठन बने। जातिगत भेदभाव व अस्पृश्यता को धक्का लगा। समाज में समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय को सुदृढ़ता मिली।
(iii) वामपंथियों द्वारा शान्तिपूर्वक चलाए गए किसान व मजदूर आन्दोलन द्वारा जन-साधारण में जागृति, राष्ट्रीय कार्यों में भागीदारी व सर्वहारा वर्ग की उचित माँगों हेतु सरकार को जगाने में सफलता प्राप्त हुई।

(iv) ताड़ी विरोधी आन्दोलन ने नशाबंदी व मद्य निषेध के मुद्दे पर वातावरण तैयार किया। महिलाओं से सम्बन्धित अनेक समस्याएँ (यौन उत्पीड़न, घरेलू समस्या, दहेज प्रथा तथा महिलाओं को विधायिकाओं में आरक्षण दिया जाना) उठी। संविधान में कुछ संशोधन हुए तथा कानून बनाए गए।

RBSE Class 12 Political Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न  20.
कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए? [3]
उत्तर:
मैं इस कथन से असहमत हूँ कि कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। 1989 की हार के साथ भारत की दलीय व्यवस्था में उसका दबदबा समाप्त हो गया। 1991 के पश्चात इस पार्टी की सीटों की संख्या एक बार फिर बढ़ी। 2004 व 2009 के चुनावों में कांग्रेस ने पुनः अपना रंग दिखाया और पहले से काफी अधिक सीटों पर जीत प्राप्त की लेकिन 2014 के चुनाव में यह पार्टी मात्र 44 सीटों पर सिमटकर सत्ता से बाहर हो गयी। 2019 के चुनावों में जहाँ भाजपा को 303 सीटें मिली वहीं कांग्रेस 52 सीटों पर सिमटकर रह गयी। राज्यों में इसका प्रभाव कम हो रहा है।

किन्तु राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में कांग्रेस द्वारा अपनी सरकार बनाना इसके भारतीय राजनीति में असर को प्रदर्शित करता है। इतना लम्बा समय व्यतीत हो जाने के पश्चात भी आज भारतीय लोगों के दिमाग पर कांग्रेस की छाप देखने को मिलती है। आज भी बहुत से लोग कांग्रेसवादी परम्पराओं का निर्वहन करते हुए देखने को मिलते हैं। इस तरह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है तथा देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर धीरे-धीरे कम हो रहा है।

अथवा

मण्डल आयोग का सविस्तार वर्णन करो। [3]
उत्तर:
मंडल आयोग की नियुक्ति-केन्द्र सरकार ने सन् 1978 में एक आयोग का गठन किया और इसको पिछड़ा वर्ग की स्थिति को सुधारने के उपाय बताने का काम सौंपा गया। आमतौर पर इस आयोग को इसके अध्यक्ष बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल के नाम पर ‘मंडल कमीशन’ कहा जाता है। मंडल आयोग का गठन भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के बीच शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की व्यापकता का पता लगाने और इन पिछड़े वर्गों की पहचान के तरीके बताने के लिए किया गया था। आयोग से यह भी अपेक्षा की गयी थी कि वह इन वर्गों के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सुझाएगा।

मंडल आयोग की सिफारिशें: आयोग ने सन् 1980 में अपनी सिफारिशें पेश की। इस समय तक जनता पार्टी की सरकार गिर चुकी थी। आयोग का सुझाव था कि पिछड़ा वर्ग को पिछड़ी जाति के अर्थ में स्वीकार किया जाए। आयोग ने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि इन पिछड़ी जातियों की शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में बड़ी कम मौजूदगी है। इस वजह से आयोग ने इन समूहों के लिए शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की सिफारिश की। मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति सुधारने के लिए कई और सुझाव दिए जिनमें भूमि-सुधार भी एक था।

खण्ड – (द)

निबन्धात्मक प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 250 शब्द)

प्रश्न  21.
संयुक्त राष्ट्र संघ की मुख्य शाखाओं और एजेंसियों का सुमेल उनके काम से करें। [4]

(i) आर्थिक और सामाजिक परिषद (क) सदस्य देशों के बीच मौजूद विवादों का निपटारा
(ii) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (ख) सदस्य देशों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की चिंता
(iii) अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी (ग) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का संरक्षण
(iv) सुरक्षा परिषद (घ) परमाणु प्रौद्योगिकी का शांतिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा
(ङ) वैश्विक मामलों पर बहस मुबाहिसा

उत्तर.

(i) आर्थिक और सामाजिक परिषद (ख) सदस्य देशों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की चिंता
(ii) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (क) सदस्य देशों के बीच मौजूद विवादों का निपटारा
(iii) अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी (घ) परमाणु प्रौद्योगिकी का शांतिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा
(iv) सुरक्षा परिषद (ग) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का संरक्षण
(ङ) वैश्विक मामलों पर बहस मुबाहिसा

अथवा

(क) वैश्विक वित्त की देखरेख (i) विश्व व्यापार संगठन
(ख) सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार की राह आसान बनाना (ii) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष गठन जनता के दबाव में सरकार ने अंततः
(ग) संयुक्त राष्ट्रसंघ के मामलों का समायोजन एवं प्रशासन (iii) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(घ) सबके लिए स्वास्थ्य (iv) सचिवालय
(ङ) आपातकाल में आश्रय तथा चिकित्सीय सहायता मुहैया कराना उत्तर(क) वैश्विक वित्त की देखरेख

 

(क) वैश्विक वित्त की देखरेख (iv) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(ख) सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार की राह आसान बनाना (i) विश्व व्यापार संगठन
(ग) संयुक्त राष्ट्रसंघ के मामलों का समायोजन एवं प्रशासन (iv) सचिवालय
(घ) सबके लिए स्वास्थ्य (iii) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(ङ) आपातकाल में आश्रय तथा चिकित्सीय सहायता मुहैया कराना उत्तर(क) वैश्विक वित्त की देखरेख

RBSE Class 12 Political Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi
प्रश्न  22.
राज्य पुनर्गठन आयोग कब बना था? इसके प्रमुख कार्यों एवं सिफारिशों का उल्लेख कीजिए। [4]

उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन व कार्य-सन् 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने दिसम्बर 1952 में आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की। आन्ध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में भी भाषाई आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष प्रारम्भ हो गया। इन संघर्षों के कारण तत्कालीन केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया।

राज्य पुनर्गठन आयोग का प्रमुख कार्य राज्यों के सीमांकन के सम्बन्ध में गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए।

राज्य पुनर्गठन आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं:
(i) भारत की एकत्ता व सुरक्षा की व्यवस्था बनी रहनी चाहिए।
(ii) राज्यों का गठन भाषाई आधार पर किया जाए।
(iii) भाषाई और सांस्कृतिक सजातीयता का ध्यान रखा जाए।
(iv) वित्तीय तथा प्रशासनिक विषयों की ओर उचित ध्यान दिया जाए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र-शासित प्रदेश बनाए गए। स्वतंत्रता के बाद के प्रारम्भिक वर्षों में एक बड़ी चिन्ता यह थी कि अलग राज्य बनाने की माँग से देश की एकता व अखण्डता खतरे में पड़ जाएगी। आशंका यह भी थी कि नए भाषाई राज्यों में अलगाववाद की भावना पनपेगी व नव-निर्मित भारतीय राष्ट्र पर दबाव बढ़ेगा। परन्तु जनता के दबाव में सरकार ने अंततः भाषा के आधार पर पुनर्गठन का मन बनाया। इसके अलावा क्षेत्रीय मांगों को मानना तथा भाषा के आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में देखा गया। भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आन्दोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूप से बदला है। भाषाई पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला। इससे देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई। भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली। लोकतंत्र को चुनने का अर्थ था-विभिन्नताओं को पहचानना तथा उन्हें स्वीकार करना। अतः भाषाई आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम साबित हुआ।
अथवा
राष्ट्र निर्माण की प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख कीजिए? आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से मुख्य अन्तर क्या थे? [4]
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई और एक नए राष्ट्र के रूप में भारत विश्व पटल पर उदित हुआ। स्वाधीन भारत का जन्म अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में हुआ। भारत के सामने विभिन्न चुनौतियाँ थीं, इनमें से तीन प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं
(i) देश की क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखने की चुनौती : स्वतंत्र भारत के सामने सर्वप्रथम व तात्कालिक चुनौती विविधता में एकता लाने के लिए भारत को गढ़ने की थी क्योंकि स्वतंत्रता, भारत विभाजन की शर्त पर प्राप्त हुई थी। तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार यही माना जा रहा था कि इतनी अधिक विविधताओं से भरा कोई देश अधिक दिनों तक एकता के सूत्र में बँधा नहीं रह सकता। इस प्रकार सर्वाधिक बड़ी चुनौती भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखना था।

(ii) लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की चुनौती : स्वाधीन भारत के समक्ष दूसरी प्रमुख चुनौती लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की थी। भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व मूलक लोकतंत्र को अपनाया। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की गारण्टी दी गयी है तथा प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है। परन्तु केवल इतने से ही कार्य नहीं चलता, चुनौती यह भी थी कि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार प्रचलन में लाए जाएँ।

(iii) आर्थिक विकास हेतु नीति निर्धारण करना : स्वतंत्र भारत के सामने तीसरी बड़ी चुनौती थी कि आर्थिक विकास हेतु नीति निर्धारित करना। इन नीतियों के आधार पर सम्पूर्ण समाज का विकास होना था, किन्हीं विशेष वर्गों का नहीं। संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि समाज में सभी वर्गों के साथ समानता का व्यवहार किया जाए। संविधान में ‘नीति-निर्देशक सिद्धान्तों’ का प्रावधान किया गया जिनका मुख्य उद्देश्य लोककल्याण व सामाजिक विकास था। अतः देश के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक विकास तथा गरीबी खत्म करने हेतु कारगर नीतियों के निर्धारण की थी। इसी व्यवस्था के अन्तर्गत भारतीयों को अवसर की समानता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गयी। सरकार से यह अपेक्षा की गयी कि वह अपंगों, वृद्धों व बीमार व्यक्तियों की उचित सहायता करें। आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज़ से निम्नांकित दो मुख्य अंतर थे

1. आजादी के साथ देश के पूर्वी क्षेत्रों में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी चुनौती थी।

2. देश के पूर्वी क्षेत्रों में भाषायी समस्या अधिक थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में धार्मिक व जातिवाद की समस्या अधिक थी।

3. आजादी के समय देश के पूर्वी पश्चिमी भाग में धार्मिक संरचना सम्बन्धी भिन्नता भी थी!.

RBSE Class 12 Political Science Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi

प्रश्न  23.
1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में सिंडिकेट का क्या अर्थ है? कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई? [4]
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में ‘सिंडिकेट’ का अर्थ:
कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर ‘सिंडिकेट’ के नाम से पुकारा जाता था। ‘सिंडिकेट’ कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। ‘सिंडिकेट’ के नेतृत्वकर्ता मद्रास प्रांत के . भूतपूर्व मुख्यमंत्री और फिर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। लाल बहादुर शास्त्री और उसके बाद इंदिरा गांधी दोनों ही सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमंत्री के पद पर आरूढ़ हुए थे। सिंडिकेट ही तत्कालीन समय में काँग्रेस के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के कार्य सम्पन्न करती थी। कांग्रेस पार्टी के सन् 1969 में टूट के कारण-कांग्रेस पार्टी में सन् 1969 में निम्नलिखित मसलों को लेकर टूट हुई।

(i) 1969 में इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया। ऐसे में इंदिरा गांधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी. वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें। यह कांग्रेस पार्टी में फूट का प्रमुख कारण था। इस प्रक्रिया के कारण काँग्रेसियों में अलगाववाद का जन्म हुआ।

(ii) इंदिरा गांधी ने 14 अग्रणी बैंकों का राष्ट्रीयकरण तथा भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी ‘प्रिवीपर्स’ को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा की। उस समय मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री तथा वित्तमंत्री थे। उपर्युक्त दोनों मसलों पर प्रधानमंत्री और उनके बीच गहरे मतभेद उभरे तथा इसके परिणामस्वरूप मोरारजी देसाई ने सरकार से त्यागपत्र दे दिया।

(iii) इंदिरा की सार्वभौमिकतावादी नीति-इंदिरा गाँधी अहम निर्णयों व फैसलों को अपने प्रभावाधीन रखती थी। ___ सिंडिकेट के सदस्यों की भूमिका के धीरे-धीरे गौण होते जाने से भी सदस्यों में आपसी मनमुटाव था जो काँग्रेस की टूट का कारण सिद्ध हुआ।

(iv) पूर्व में भी कांग्रेस के भीतर इस तरह के मतभेद उठ चुके थे, परन्तु इस बार मामला कुछ अलग ही था। दोनों गुट चाहते थे कि राष्ट्रपति के चुनाव में शक्ति को आजमा ही लिया जाए। आखिरकार राष्ट्रपति पद के चुनाव में वी. वी.गिरि ही विजयी हुए। कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार से पार्टी का टूटना तय हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया। इस प्रकार कांग्रेस, पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस में विभाजित हो गई। इंदिरा गांधी ने पार्टी की इस टूट को विचारधाराओं की लड़ाई के रूप में पेश किया।

अथवा

1971 का चुनाव और कांग्रेस की पुनर्स्थापना तथा उसके परिणामों पर टिप्पणी लिखिए। [4]
उत्तर:
सन् 1971 के आम चुनाव व देश की राजनीति में कांग्रेस के पुनर्स्थापन से जुड़ी राजनीतिक घटनाओं व परिणामों का विवरण निम्नानुसार है
(i) सन् 1971 का आम चुनाव-इंदिरा गांधी ने दिसंबर 1970 में लोकसभा भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति से की थी। वह अपनी सरकार के लिए जनता का पुनः आदेश प्राप्त करना चाहती थी। फरवरी 1971 में पाँचवीं लोकसभा का आम चुनाव हुआ।

(ii) कांग्रेस तथा ग्रैंड अलायंस में मुकाबला-चुनावी मुकाबला कांग्रेस (आर) के विपरीत जान पड़ रहा था। आखिर नई कांग्रेस एक जर्जर होती हुई पार्टी का एक भाग मात्र थी। सभी को भरोसा था कि कांग्रेस पार्टी की वास्तविक संघटनात्मक शक्ति कांग्रेस (ओ) के नियंत्रण में है। इसके अलावा, सभी बड़ी गैर-साम्यवादी तथा गैर-कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया था। इसे “ग्रैंड अलायंस” कहा गया। इससे इंदिरा गांधी के लिए स्थिति और कठिन हो गयी। एसएसपी, पीएसपी, भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी तथा भारतीय क्रांतिदल, चुनाव में एक छतरी के नीचे आ गए।

(iii) दोनों राजनैतिक खेमों में अंतर-इसके बावजूद नई कांग्रेस के साथ एक ऐसी बात थी, जिसका उनके बड़े विपक्षियों के पास अभाव था। नयी कांग्रेस के पास एक मुद्दा था। एक एजेंडा तथा कार्यक्रम था। “ग्रैंड अलायंस” के पास कोई सुसंगत राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था। इंदिरा गांधी ने देश भर में घूम-घूम कर कहा था कि विपक्षी गठबंधन के पास बस एक ही कार्यक्रम है, ‘इंदिरा हटाओ’।

(iv) चुनाव के परिणाम-सन् 1971 के लोकसभा चुनावों के परिणाम उतने ही नाटकीय थे, जितना इन चुनावों को करवाने का फैसला। कांग्रेस (आर) तथा सीपीआई के गठबंधन को इस बार जितने वोट या सीटें मिली, उतनी कांग्रेस पिछले चार आम चुनावों में कभी हासिल नहीं कर सकी थी। इस गठबंधन को लोकसभा

की 375 सीटें मिली तथा इसने कुल 48.4 प्रतिशत वोट हासिल किए। अकेली इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) ने 352 सीटें तथा 44 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। अब जरा इस तस्वीर की तुलना कांग्रेस (ओ) से करें, इस पार्टी में बड़े-बड़े महारथी थे, परंतु इंदिरा गांधी की पार्टी को जितने वोट मिले थे, उसके एक चौथाई वोट ही इसकी झोली में आए। इस पार्टी को महज 16 सीटें मिलीं। अपनी भारी जीत के साथ इंदिराजी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने अपने दावे को साबित कर दिया कि वही “वास्तविक कांग्रेस” है तथा उसे भारतीय राजनीति में फिर से प्रभुत्व के स्थान पर पुनर्स्थापित किया।

(v) बांग्लादेश का निर्माण तथा भारत-पाक युद्ध-सन् 1971 के लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है।) में एक बड़ा राजनीतिक तथा सैन्य संकट उठ खड़ा हुआ। सन् 1971 के चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान में संकट पैदा हुआ तथा भारत-पाक के मध्य युद्ध छिड़ गया।

(vi) राज्यों में कांग्रेस की पुनर्स्थापना-सन् 1972 के राज्य विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को व्यापक सफलता मिली। उन्हें गरीबों तथा वंचितों के रक्षक और एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा। पार्टी के अंदर अथवा बाहर उसके विरोध की कोई गुंजाइश नहीं बची। कांग्रेस लोकसभा के चुनावों में जीती थी तथा राज्य स्तर के चुनावों में भी। इन दो लगातार जीतों के साथ कांग्रेस का दबदबा एक बार फिर . कायम रहा। कांग्रेस अब लगभग सभी राज्यों में सत्ता में थी। समाज के विभिन्न वर्गों में यह लोकप्रिय भी थी। महज चार साल की अवधि में इंदिरा गांधी ने अपने नेतृत्व तथा कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के सामने खड़ी चुनौतियों को धूल चटा दी थी। जीत के पश्चात् इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापित जरूर किया, परन्तु कांग्रेस प्रणाली की प्रकृति को बदलकर।

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