Students must start practicing the questions from RBSE 12th Political Science Model Papers Set 1 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Political Science Model Paper Set 1 with Answers in Hindi
समय : 2:45 घण्टे
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर:पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों में उत्तर: का सही विकल्प चयन कर उत्तर: पुस्तिका में लिखें [1]
(i) वारसा संधि का स्थापना वर्ष है
(अ) 1955
(ब) 1956
(स) 1975
(द) 1999
उत्तर:
(अ) 1955
(ii) रूसी क्रान्ति किस वर्ष हुई थी? [1]
(अ) 1905
(ब) 1911
(स) 1917
(द) 1929
उत्तर:
(स) 1917
(iii) दक्षेस का प्रथम सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ था? [1]
(अ) भारत
(ब) नेपाल
(स) पाकिस्तान
(द) बांग्लादेश
(द) बांग्लादेश
(iv) ताशकन्द समझौते का सम्बन्ध है? [1]
(अ) भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1965
(ब) भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1971
(स) भारत-चीन युद्ध, 1962
(द) भारत-बांग्लादेश समझौता .
उत्तर:
(अ) भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1965
(v) मांट्रियल प्रोटोकॉल समझौता कब हुआ था? [1]
(अ) 1987 में
(ब) 1991 में
(स) 1992 में
(द) 1959 में
उत्तर:
(अ) 1987 में
(vi) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे? [1]
(अ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ब) पं. जवाहरलाल नेहरू
(स) लाल बहादुर शास्त्री
(द) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन्
उत्तर:
(ब) पं. जवाहरलाल नेहरू
(vii) भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें जो शामिल नहीं था, वह है [1]
(अ) नियोजन
(ब) उदारीकरण
(स) सहकारी खेती
(द) आत्मनिर्भरता
उत्तर:
(ब) उदारीकरण
(viii) गोलपीठ की मराठी कविता के लेखक कौन हैं? [1]
(अ) मैथिलीशरण गुप्त
(ब) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(स) नामदेव ढसाल
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) नामदेव ढसाल
(ix) भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे [1]
(अ) चौधरी चरण सिंह
(ब) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(स) अटल बिहारी वाजपेयी
(द) मोरारजी देसाई
उत्तर:
(ब) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(x) संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई- [1]
(अ) अगस्त 1947 में
(ब) अक्टूबर 1945 में
(स) नवम्बर 1946 में
(द) दिसम्बर 1950 में
उत्तर:
(ब) अक्टूबर 1945 में
(xi) देशी राज्यों में से कौन-सा यथावत समझौते का पक्षधर था? [1]
(अ) हैदराबाद
(ब) जम्मू-कश्मीर
(स) जूनागढ़
(द) मैसूर
उत्तर:
(अ) हैदराबाद
(xii) निम्न में से कौन-सा दल राष्ट्रीय राजनीतिक दल नहीं है? [1]
(अ) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ब) भारतीय जनता पार्टी
(स) तेलगुदेशम पार्टी
(द) इण्डियन नेशनल कांग्रेस
उत्तर:
(स) तेलगुदेशम पार्टी
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय ………… [1]
उत्तर:
न्यूयार्क
(ii) …….. के दशक में पर्यावरण के मसले ने जोर पकड़ा। [1]
उत्तर:
1960
(iii) पहले गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में ……… सदस्य देश शामिल हुए। [1]
उत्तर:
25
(iv) दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ………………………… महाशक्ति के रूप में उभरा। [1]
उत्तर:
सोवियत संघ
(v) बीकेयु …………………. और ……….. के किसानों का एक संगठन था। [1]
उत्तर:
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा,
(vi) 1989 के चुनावों में ……….. पार्टी की हार हुई थी। [1]
उत्तर:
काँग्रेस।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर एक शब्द अथवा एक पंक्ति में दीजिए
(i) शीतयुद्ध का चरम बिन्दु क्या था? [1]
उत्तर:
क्यूबा मिसाइल संकट।
(ii) 1917 की रूसी क्रान्ति के नायक कौन थे? [1]
उत्तर:
ब्लादिमीर लेनिन।
(iii) उपनिवेशों ने किस दशक के उत्तर:ार्द्ध से आजाद होना शुरू किया? [1]
उत्तर:
1940 के दशक से।
(iv) ब्रिटिश इंडिया को कितने भागों में बाँटा गया था? [1]
उत्तर:
दो भागों में
(1) भारत
(2) पाकिस्तान।
(v) स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष विकास के कौन-कौन से मॉडल थे? [1]
उत्तर:
(1) पूँजीवादी मॉडल
(2) समाजवादी मॉडल
(vi) दलित पैंथर्स का मुख्य लक्ष्य क्या था? [1]
उत्तर:
दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाना व जाति आधारित असमानता व अन्याय का विरोध करना।
(vii) 2005 के जून में किस समूह के देशों की बैठक हुई? [1]
उत्तर:
ग्रुप-81
(viii) 18वें गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में कितने सदस्य देश व पर्यवेक्षक देश शामिल हुए? [1]
उत्तर:
120 सदस्य देश व 17 पर्यवेक्षक देश।
(ix) अमेरिकी खेमे के देशों के नाम लिखिए। [1]
उत्तर:
ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी। [
(x) सरदार सरोवर परियोजना कब व कहाँ प्रारम्भ की गई? [1]
उत्तर:
1980 की दशाब्दी के प्रारम्भ में नर्मदा घाटी में प्रारम्भ किया गया।
(xi) मंडल आयोग की क्या सिफारिश थी? [1]
उत्तर:
अन्य पिछड़ी जातियों के लिए केन्द्रीय सरकार एवं इसके अधीनस्थ समस्त उपक्रमों के रिक्त होने वाले पदों के आरक्षण की सिफारिश की।
(xii) योजना आयोग क्या है?
उत्तर:
योजना आयोग 1950 में भारत सरकार के द्वारा एक प्रस्ताव के माध्यम से गठित सलाहकार संस्था है। [1]
खण्ड – (ब)
लघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर: शब्द सीमा लगभग 50 शब्द)
प्रश्न 4.
शीतयुद्ध शुरू होने का मूल कारण क्या था? [2]
उत्तर:
परस्पर विरोधी खेमों की समझ में यह बात थी कि प्रत्यक्ष युद्ध खतरों से परिपूर्ण है, क्योंकि दोनों पक्षों को भारी नुकसान की प्रबल सम्भावनाएँ थीं। इसमें वास्तविक विजेता का निर्धारण सरल कार्य न था। यदि एक गुट अपने शत्रु पर हमला करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने का प्रयास करता है, तब भी दूसरे गुट के पास उसे बर्बाद करने लायक अस्त्र बच जायेंगे। यही कारण था कि तीसरा विश्वयुद्ध न होकर शीतयुद्ध के रूप में युद्ध की स्थिति बनी रही।
प्रश्न 5.
मध्य एशियाई गणराज्यों में संघर्ष एवं तनाव के कोई दो कारण बताइए। [2]
उत्तर:
(i) मध्य एशियाई गणराज्यों में संघर्ष व तनाव का एक प्रमुख कारण यह था कि इन देशों में हाइड्रोकार्बनिक (पेट्रोलियम) संसाधनों का विशाल भण्डार होने के बावजूद इन देशों को इसका लाभ प्राप्त नहीं हुआ।
(ii) इस क्षेत्र में धीरे-धीरे संयुक्त राज्य अमेरिका का हस्तक्षेप बढ़ गया। जिसने अपनी प्रभुत्वकारी प्रवृत्ति को बढ़ाने का प्रयास करने के लिए देशों के मध्य तनाव हेतु आधार प्रदान
करने का कार्य किया है।
प्रश्न 6.
मानवाधिकारों को कितनी कोटियों में रखा गया है ? संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए। [2]
उत्तर:
मानवाधिकार को तीन कोटियों में रखा गया है, जो निम्नलिखित हैं
(i) प्रथम कोटि राजनीतिक अधिकारों की है, जैसे-अभिव्यक्ति एवं सभा करने की स्वतन्त्रता।
(ii) द्वितीय कोटि आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की है।
(iii) तृतीय कोटि में सीनिवेशीकृत जनता अथवा जातीय और मूलवासी अल्पसंख्यकों के अधिकार सम्मिलित हैं।
प्रश्न 7.
भारत में बहुदलीय प्रणाली के संदर्भ में तर्क दीजिए। [2]
उत्तर:
दलीय प्रणाली-सफल लोकतंत्र हेतु दलीय प्रणाली आवश्यक है। इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं
(i) द्वि-दलीय व्यवस्था से साधारण बहुमत के दोष समाप्त हो जाते हैं एवं जिस भी प्रत्याशी की जीत होती है उसे आधे से अधिक अर्थात् 50% से अधिक मत प्राप्त होते हैं।
(ii) सरकार अधिक स्थायी रहती है और वह गठबंधन की सरकारों की तरह दूसरी पार्टियों की वैसाखियों पर नहीं टिकी होती। वह उनके निर्देशों को सरकार गिराने के भय से मानने हेतु बाध्य नहीं होती।
(iii) देश में सभी को यह ज्ञात होता है कि यदि सत्ता एक दल से दूसरे दल के हाथों में चली जाएगी तो कौन-कौन प्रमुख पदोंप्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री, गृहमंत्री, वित्तमंत्री एवं विदेश मंत्री आदि पर आएँगे। आजादी के बाद 20 वर्षों तक भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्त्व के दो निम्नलिखित कारण रहे हैं
प्रश्न 8.
भारत में पहले तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के दो कारण बताइए । [2]
उत्तर:
(i) स्वतंत्रता संग्राम में काँग्रेसी नेताओं का जनता में अधिक लोकप्रिय होना। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में काँग्रेस के अधिकांश नेताओं ने भाग लिया था जिसके कारण वे लोगों के मध्य लोकप्रिय थे।
(ii) काँग्रेस ही एकमात्र ऐसा दल था जिसके पास ग्रामीण स्तर तक फैला हुआ संगठन था।
प्रश्न 9.
योजना आयोग के प्रस्ताव में किन नीतियों को व्यवहार में लाने की बात कही गयी? [2]
उत्तर:
योजना आयोग के प्रस्ताव में निम्नलिखित नीतियों को व्यवहार में लाने की बात कही गयी
(i) स्त्री और पुरुष सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधनों का समान अधिकार हो।
(ii) समुदाय के भौतिक संसाधनों और उनके नियंत्रण को इस तरह बाँटा जाएगा कि उससे जनसाधारण की भलाई हो।
(iii) अर्थव्यवस्था का संचालन इस तरह नहीं किया जाएगा कि धन अथवा उत्पादन के साधन एक-दो स्थानों पर ही केन्द्रित हो जाएँ तथा जनसामान्य की भलाई बाधित हो।
प्रश्न 10.
शीतयुद्ध की किन्हीं दो प्रमुख सैन्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2]
उत्तर:
शीतयुद्ध की दो सैन्य विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं
(1) नाटो, सिएटो, सेंटो तथा वारसा पैक्ट इत्यादि सैन्य गठबन्धनों का निर्माण करना तथा इनमें अधिकाधिक देशों को सम्मिलित करना।
(2) शस्त्रीकरण करना तथा अत्याधुनिक परमाणु मिसाइलें निर्मित करके उन्हें युद्ध के महत्त्व के बिन्दुओं पर स्थापित करना।
प्रश्न 11.
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में गतिरोध क्यों आया ? कोई दो कारण दीजिए। [2]
उत्तर:
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में निम्न कारणों से गतिरोध आया
(i) सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का अधिकांश भाग परमाणु हथियारों के विकास एवं सैनिक साजो-सामान पर खर्च किया; जिससे सोवियत संघ में आर्थिक संसाधनों की कमी हो गयी।
(ii) सोवियत संघ को पूर्वी यूरोप के अपने पिछलग्गू देशों के विकास पर अपने संसाधन खर्च करने पड़े; जिससे वह धीरे-धीरे आर्थिक तौर पर कमजोर होता चला गया।
प्रश्न 12.
जातीय संघर्ष होने के बावजूद श्रीलंका ने कौन-कौन सी सफलताएँ प्राप्त की हैं ? [2]
उत्तर:
जातीय संघर्ष होने के बावजूद श्रीलंका ने निम्नलिखित सफलताएँ प्राप्त की हैं
(i) अच्छी आर्थिक वृद्धि एवं विकास के उच्च स्तर को हासिल किया है।
(ii) जनसंख्या की वृद्धि दर पर सफलतापूर्वक नियन्त्रण स्थापित किया है।
(iii) दक्षिण एशियाई देशों में सबसे पहले श्रीलंका ने ही आर्थिक उदारीकरण किया है।
(iv) अन्दरूनी संघर्षों के बावजूद श्रीलंका में लोकतान्त्रिक राज व्यवस्था कायम रही है।
प्रश्न 13.
मानवता, शान्ति एवं अहिंसा के मित्र क्या दो माँग कर रहे हैं ? [2]
उत्तर:
मानवता, शान्ति एवं अहिंसा के मित्र निम्न दो माँगें कर रहे हैं
(1) वह धन की माँग करते हैं जिससे शान्ति, मानव कल्याण तथा मानवाधिकारों की समर्थक संस्थाओं का सहयोग किया जा सके।
(2) वे लोग शान्ति तथा अहिंसा के पक्ष में कानून पारित किये जाने की माँग करते हैं, जिससे देश में आन्तरिक रूप से खतरा पैदा करने वाली अथवा बाहरी खतरनाक शक्तियों से मुकाबला किया जा सके।
प्रश्न 14.
आलोचक ऐसा क्यों सोचते थे कि भारत में चुनाव सफलतापूर्वक नहीं कराए जा सकेंगे ? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए। [2]
उत्तर:
भारत में चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कराए जा सकने सम्बन्धी दो कारण निम्नलिखित हैं
(i) भारत क्षेत्रफल तथा जनसंख्या की दृष्टि से बहुत बड़ा देश है व शुरू से ही सभी 21 वर्ष के वयस्कों (जिनमें स्त्री-पुरुष सम्मिलित थे) को सार्वभौम वयस्क मताधिकार दे दिया गया। इतने बड़े निर्वाचक मंडलों के लिए व्यवस्था करना बहुत कठिन था।
(ii) भारत के अधिकांश मतदाता अशिक्षित थे जिनसे स्वतंत्र व समझदारी से मताधिकार का प्रयोग किस प्रकार हो सकेगा इस पर लोगों को विश्वास नहीं था, परन्तु यह मात्र
एक भ्रम सिद्ध हुआ।
प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति के दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख कीजिए। [2]
उत्तर:
(i) हरित क्रान्ति के कारण गरीब किसानों व भू-स्वामियों के बीच का अन्तर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न भागों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब कृषकों को लामबंद करने की दृष्टि से अनुकूल स्थिति उत्पन्न हुई।
(ii) हरित क्रान्ति से समाज के विभिन्न वर्गों तथा देश के अलग-अलग क्षेत्रों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र कृषि की दृष्टि से काफी समृद्ध हो गये जबकि देश के अन्य क्षेत्र कृषि सम्बन्धी मामलों में पिछड़े रहे।
प्रश्न 16.
भारतीय राजनीति के संदर्भ में खतरनाक दशक का क्या अर्थ है [2]
उत्तर:
सन् 1960 के दशक को खतरनाक दशक कहा जाता है क्योंकि निर्धनता, असमानता, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता एवं क्षेत्रीय विभाजन जैसे मुद्दों का उस समय तक कोई भी समाधान नहीं हो पाया था। इन कठिन पलों के कारण लोगों को देश में लोकतंत्र के असफल होने का भय उत्पन्न हो गया था अथवा देश के बिखरने की संभावना भी व्यक्त की जा रही थी। इस समय परिस्थितियों के अत्यधिक विकराल हो जाने के कारण इसे खतरनाक दशक की संज्ञा दी जाती है।
खण्ड – (स)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 100 शब्द)
प्रश्न 17.
दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताओं का विवरण दीजिए। [3]
अथवा
श्रीलंका के जातीय संघर्ष के मुख्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रीलंका में जातीय संघर्ष:
श्रीलंका के जातीय संघर्ष में भारतीय मूल के तमिल प्रमुख भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। उनके संगठन लिट्टे की हिंसात्मक कार्यवाहियों तथा आन्दोलन की वजह से श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ा। लिट्टे की प्रमुख माँग है कि श्रीलंका के एक क्षेत्र को अलग राष्ट्र को अलग राष्ट्र बनाया जाए। श्रीलंकाई राजनीति पर बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का वर्चस्व रहा है और तमिल सरकार एवं राजनेताओं पर उनके हितों को अनदेखी किया जाने का दोषारोपण किया गया। सिंहली राष्ट्रवादियों की मान्यता है कि श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई रियासत नहीं की जानी चाहिए क्योंकि श्रीलंका केवल सिंहली लोगों का है। तमिलों के प्रति उपेक्षित व्यवहार से एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलन्द हुई। सन् 1983 के पश्चात् उग्र समिल संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (लिट्टे) देश की सेना के साथ सशस्त्र संघर्षरत है। इसने तमिल ईलम अर्थात् श्रीलंकाई तमिलों हेतु एक पृथक् देश की माँग कर डाली। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सन् 2009 में श्रीलंकाई सरकार द्वारा लिट्टे का सफाया कर दिया गया इसके बाद उक्त स्थिति में बदलाव आया है।
प्रश्न 18.
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु भारत द्वारा किये गये प्रयासों का उल्लेख कीजिए। [3]
अथवा
पर्यावरण सम्बन्धी मसलों पर भारत के पक्ष की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियन्त्रित करने हेतु भारत द्वारा किए गए निम्न प्रयास विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं
(1) हमारे देश भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल को सन् 2002 में हस्ताक्षरित करके उसका अनुमोदन किया है।
(2) भारत ने अपनी राष्ट्रीय मोटर-कार ईंधन नीति के अन्तर्गत वाहनों के लिए स्वच्छतर ईंधन अनिवार्य कर दिया है।
(3) सन् 2001 में पारित ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ऊर्जा के अधिक कारगर उपयोग पर विशेष जोर दिया गया है।
(4) विद्युत अधिनियम, 2003 के अन्तर्गत प्राकृतिक गैस के आयात, अपूरणीय ऊर्जा के उपयोग हमण स्वच्छ कोयले के उपयोग पर आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाने की दिशा में कार्य करना प्रारम्भ किया है।
(5) भारत बायोडीजल से सम्बन्धित एक राष्ट्रीय मिशन चलाया जा रहा है। जिसमें जैविक उत्पादों का प्रयोग कर डीजल प्राप्त किया जा रहा ताकि परम्परागत ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण हो तथा ग्रीन हाऊस गेसों का उत्सर्जन भी न हो। उक्त उदाहरणों से भारत सरकार के पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से वैश्विक प्रयासों में भाग लेते रहने का भी पता चलता है।
प्रश्न 19.
क्या आंदोलनों को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जा सकता है? आन्दोलनों के दौरान नए प्रयोग किये जाते हैं और सफल प्रयोगों को राजनीतिक दल क्यों अपना लेते हैं? [3]
अथवा
चिपको आंदोलन के प्रमुख कारणों को स्पष्ट कीजिए। [3]
उत्तर:
चिपको आन्दोलन के कारण: चिपको आन्दोलन के कारण निम्नांकित थे
(i) इस आन्दोलन का प्रारम्भ उत्तराखण्ड के दो-तीन गाँवों से हुआ था। इन गाँवों के निवासियों ने वन विभाग से अपील की कि खेती-बाड़ी से संबंधित औजारों के निर्माण हेतु अंगू के पेड़ काटने की अनुमति प्रदान की जाये। वन विभाग ने अनुमति देने से मना कर दिया। परंतु वन विभाग ने खेल सामग्री निर्माता एक कंपनी को जमीन का यही भाग व्यावसायिक उपयोग हेतु दे दिया। इससे गाँव वालों में विरोध उत्पन्न हुआ
(ii) इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी तथा आर्थिक शोषण के कहीं बड़े सवाल उठने लगे। गाँव वालों ने माँग रखी कि वन की कटाई का ठेका किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए तथा स्थानीय लोगों का जल, जंगल-जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर उपयुक्त नियंत्रण होना चाहिए।
(iii) गाँववासी चाहते थे कि सरकार लघुउद्योगों के लिए कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए व इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को हानि पहुँचाए बिना यहाँ का विकास निश्चित करे। आन्दोलन ने भूमिहीन वन कर्मचारियों का आर्थिक मुद्दा भी उठाया।
(iv) इस क्षेत्र में वनों की कटाई के दौरान ठेकेदार यहाँ के पुरुषों को शराब आपूर्ति का भी व्यवसाय करते थे। अतः स्त्रियों ने शराबखोरी की लत के विरोध में भी आवाज बुलंद की। धीरे-धीरे इसमें कुछ और सामाजिक मुद्दे आकर जुड़ गए।
प्रश्न 20.
1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुददे क्या रहे हैं? इन मुददों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं? [3]
अथवा
गठबंधन की राजनीति की विचारधारा किन पहलुओं पर निर्भर करती है? [3]
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति की विचारधारा के प्रमुख पहलू
1. नयी आर्थिक नीति पर सहमति: कई समूह नयी आर्थिक नीति के खिलाफ हैं, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दल इन नीतियों के पक्ष में हैं। अधिकतर दलों का मानना है कि नई आर्थिक नीतियों से देश समृद्ध होगा और भारत, विश्व की एक आर्थिक शक्ति बनेगा।
2. पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति-राजनीतिक दलों ने पहचान लिया है कि पिछड़ी जातियों के सामाजिक और राजनैतिक दावे को स्वीकार करने की जरूरत है। इस कारण आज सभी राजनीतिक दल शिक्षा और रोजगार में पिछड़ी जातियों के लिए सीटों के आरक्षण के पक्ष में हैं। राजनीतिक दल यह भी सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं कि ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को सत्ता में समुचित हिस्सेदारी मिले।
3. देश के शासन में प्रांतीय दलों की भूमिका की स्वीकृति-प्रांतीय दल और राष्ट्रीय दल का भेद अब लगातार कम होता जा रहा है। प्रांतीय दल केन्द्रीय सरकार में साझीदार बन रहे हैं और इन दलों ने पिछले बीस सालों में देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
4. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर और विचारधारागत सहमति के बगैर राजनीतिक गठजोड़-गठबंधन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारागत अंतर की जगह सत्ता में हिस्सेदारी की बातों पर जोर दे रहे हैं, मिसाल के लिए अधिकतर दल भाजपा की ‘हिन्दुत्व’ की विचारधारा से सहमत नहीं हैं, लेकिन ये दल भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल हुए और सरकार बनाई, जो पाँच साल तक चली।
खण्ड – (द)
निबन्धात्मक प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 250 शब्द)
प्रश्न 21.
एकधुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ क्या अमेरिका को अपनी मनमानी करने से रोक सकता है ? यदि नहीं तो क्यों ? एकधुवीय विश्व व्यवस्था में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को बताइए। [4]
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने किस तरह की बुनियादी सुधारों की आवश्यकता है?. साथ ही सुरक्षा परिषद के स्थायी व अस्थायी सदस्यों हेतु मापदण्डों को भी स्पष्ट कीजिए। [4]
उत्तर:
सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् विश्व एकधुवीय हो गया है। इस एकधुवीय विश्व की एकमात्र महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका है। वर्तमान में इसका कोई प्रतिद्वन्द्वी देश नहीं है। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ अमेरिका को अपनी मनमानी करने से नहीं रोक सकता। एकधुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ निम्नलिखित कारणों से संयुक्त राज्य अमेरिका को अपनी मनमानी करने से नहीं रोक सकता
(i) एकमात्र मजबूत सैन्य व आर्थिक शक्ति-सोवियत संघ की अनुपस्थिति में अब संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति है। अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति के बल पर संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ अथवा किसी अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की अनदेखी कर सकता है।
(ii) संयुक्त राष्ट्र संघ पर अमेरिकी प्रभाव की अधिकता-संयुक्त राष्ट्र संघ में संयुक्त राज्य अमेरिका का अत्यधिक प्रभाव है। वह संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में सबसे अधिक योगदान करने वाला देश है। अमेरिका की वित्तीय ताकत बेजोड़ है। संयुक्त राष्ट्र संघ अमेरिकी भू-क्षेत्र में स्थित है और इस कारण भी अमेरिका का प्रभाव इसमें बढ़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के कई नौकरशाह इसके नागरिक हैं।
(iii) संयुक्त राज्य अमेरिका के पास निषेधाधिकार की शक्ति होना-संयुक्त राज्य अमेरिका के पास निषेधाधिकार (वीटो पॉवर) की शक्ति है। यदि अमेरिका को कभी यह लगे कि कोई प्रस्ताव उसके अथवा उसके साथी राष्ट्रों के हितों के अनुकूल नहीं है अथवा अमेरिका को यह प्रस्ताव ठीक न लगे तो अपनी निषेधाधिकार शक्ति से उसे रोक सकता
(iv) संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के चयन में अमेरिकी प्रभाव-संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी ताकत और निषेधाधिकार शक्ति के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के चयन में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसकी बात को महत्व प्रदान किया जाता
(v) विश्व समुदाय में फूट डालने में सक्षम-संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी सैन्य एवं आर्थिक ताकत के बल पर विश्व समुदाय में फूट डाल सकता है और डालता भी है ताकि उसकी नीतियों का विरोध संयुक्त राष्ट्र संघ में कमजोर हो जाए। इससे स्पष्ट होता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ संयुक्त राज्य अमेरिका की मनमानी पर अंकुश लगाने में विशेष सक्षम नहीं है।
एकधुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता:
यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ इस एकध्रुवीय विश्व में अमेरिका को अपनी मनमानी करने से नहीं रोक सकता, लेकिन इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता। इस एकध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है
(i) वार्तालाप के मंच के रूप में उपयोगिता: संयुक्त राष्ट्र संघ संयुक्त राज्य अमेरिका एवं शेष विश्व के मध्य विभिन्न मुद्दों पर बातचीत स्थापित कर सकता है। आवश्यकता पड़ने पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने ऐसा कई बार किया भी है।
(ii) अमेरिकी दृष्टि से उपयोगिता: अमेरिकी नेता संयुक्त राष्ट्र संघ की आलोचना करते दिखाई देते हैं, लेकिन वे इस बात को भी समझते हैं कि झगड़ों एवं सामाजिकआर्थिक विकास के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से 193 देशों को एक साथ किया जा सकता है।
(iii) शेष विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता:
शेष विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसा मंच है जहाँ अमेरिकी रवैये एवं नीतियों पर कुछ अंकुश लगाया जा सकता है। यह बात ठीक है कि अमेरिका के विरुद्ध शेष विश्व शायद ही कभी एकजुट हो पाता है और अमेरिका की ताकत पर अंकुश लगाना एक सीमा तक असम्भव है, लेकिन इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ ही वह स्थान है जहाँ अमेरिका के किसी विशेष रवैये एवं नीति की आलोचना की सुनवाई हो सकती है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था होने के बावजूद वर्तमान विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता बनी हुई है।
प्रश्न 22.
भारत-पाकिस्तान के विभाजन के लिए उत्तरदायी कारणों व परिणामों का वर्णन कीजिए। [4]
अथवा
भारत में राज्यों के पुनर्गठन पर एक निबन्ध लिखिए। [4]
उत्तर:
क्या भारत विभाजन अनिवार्य था-भारत के विभाजन के सम्बन्ध में प्रश्न यह है कि क्या भारत का विभाजन अनिवार्य था और उसे टाला नहीं जा सकता था, इसके उत्तर में दो पक्ष हैं। सौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी पुस्तक ‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’ में यह विचार रखा कि भारत-विभाजन अनिवार्य नहीं था तथा नेहरू व पटेल ने उसे अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के आधार पर ही स्वीकार किया था। दूसरे पक्ष का विचार यह है कि विभाजन को टाला नहीं जा सकता था तथा उन परिस्थितियों में विभाजन अनिवार्य ही था। यह विचार सत्य के अधिक समीप दिखाई पड़ता है क्योंकि उन परिस्थितियों में भारतविभाजन अपरिहार्य ही हो गया था जैसा कि साम्प्रदायिक दंगों ने कांग्रेस के नेताओं को यह विश्वास दिला दिया था कि अविभाजित भारत की कल्पना अव्यावहारिक है व केवल कोरा स्वप्न है। पर्सिवल स्पीयर के शब्दों में, “सिद्धान्त रूप में विभाजन पर कितना भी अफसोस किया जाए, परन्तु संभवतः देश के व्यापक हितों में यह आवश्यक था।” भारत का विभाजन-14-15 अगस्त, 1947 को एक नहीं बल्कि दो राष्ट्र भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आये। भारत और पाकिस्तान का विभाजन दर्दनाक था तथा इस पर फैसला करना और अमल में लाना और भी कठिन था।’
विभाजन के कारण:
(i) मुस्लिम लीग ने ‘द्वि: राष्ट्र सिद्धान्त’ की बात की थी। इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश अर्थात् पाकिस्तान की माँग की।
(ii) भारत के विभाजन के पूर्व ही देश में दंगे फैल गए ऐसी स्थिति में कांग्रेस के नेताओं ने भारत-विभाजन की बात स्वीकार कर ली।
भारत-विभाजन के परिणाम: भारत और पाकिस्तान विभाजन के निम्नलिखित परिणाम सामने आए
(i) आबादी का स्थानान्तरण : भारतपाकिस्तान विभाजन के बाद आबादी का स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदीपूर्ण था। मानव-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानान्तरणों में से यह एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त बेरहमी से मारा।
(ii) घर-परिवार छोड़ने के लिए विवश होना : विभाजन के फलस्वरूप लोग अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए तथा अक्सर अस्थाई तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा। वहाँ की स्थानीय सरकार व पुलिस इन लोगों से बेरुखी का बर्ताव कर रही थी।
(iii) महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार : विभाजन के फलस्वरूप सीमा के दोनों ओर हजारों की संख्या में औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबर्दस्ती शादी करनी पड़ी तथा अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई परिवारों में तो खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला।
(iv) हिंसक अलगाववाद : विभाजन में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ बल्कि इस विभाजन में दो समुदाय जो अब तक पड़ोसियों की तरह रहते थे, उनमें हिंसक अलगाववाद व्याप्त हो गया।
(v) भौतिक सम्पत्ति का बँटवारा : विभाजन के कारण 80 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा तथा वित्तीय सम्पदा के साथ-साथ टेबिल, कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्ययंत्रों तक का बँटवारा हुआ।
(vi) अल्पसंख्यकों की समस्या : विभाजन के समय सीमा के दोनों तरफ ‘अल्पसंख्यक’ थे। जिस जमीन पर वे और उनके पूर्वज सदियों तक रहते आए थे। उसी जमीन पर वे ‘विदेशी’ बन गए थे। जैसे ही देश का बँटवारा होने वाला था वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे।
प्रश्न 23.
भारतीय इतिहास में राष्ट्रपति पद के लिए हुए 1969 के चुनाव सम्बन्धी घटनाक्रम व परिणामों को स्पष्ट कीजिए। [4]
अथवा
“1971 में केन्द्र तथा राज्य दोनों स्तरों पर लगातार चुनाव में विजय प्राप्त करने के पश्चात्, कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रभुत्व को पुनः स्थापित कर लिया।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में । किन्हीं तीन तर्कों का उल्लेख कीजिए। [4]
उत्तर:
भारतीय इतिहास में राष्ट्रपति पद के लिए हुए सन् 1969 के चुनाव संबंधी घटनाओं व परिणामों का वर्णन निम्नानुसार है
(i) कांग्रेस के दो गुटों में टकराव: सिंडिकेट व इंदिरा गांधी के बीच की गुटबाजी सन् 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय खुलकर सामने आ गई। इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद उस वर्ष सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में खड़ा करवाने में सफलता प्राप्त की।
(ii) मोरारजी देसाई द्वारा त्यागपत्र: इंदिरा गांधी ने 14 अग्रणी बैंकों के राष्ट्रीयकरण व भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी ‘प्रिवीपर्स’ को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा भी की। उस समय मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री तथा वित्तमंत्री थे। इन दोनों मसलों पर प्रधानमंत्री व उनके बीच गहरे मतभेद उभर कर सामने आए तथा इसके फलस्वरूप मोराराजी देसाई ने सरकार से किनारा कर लिया।
(iii) कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा व्हिप जारी करना: दोनों गुट चाहते थे कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में शक्ति को आजमा ही लिया जाए। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने व्हिप जारी किया कि सभी ‘कांग्रेसी’ सांसद तथा विधायक पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार एन. संजीव रेड्डी को वोट डालें। इंदिरा गांधी के समर्थक गुट ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विशेष बैठक आयोजित करने हेतु याचना की, परन्तु यह चना स्वीकार नहीं की गई। वी. वी. गिरि का गुप्त तौर पर समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुलेआम अंतरात्मा की आवाज . पर वोट डालने को कहा। इसका तात्पर्य यह था कि कांग्रेस के सांसद तथा विधायक अपनी मनमर्जी से किसी भी उम्मीदवार को वोट डाल सकते हैं।
(iv) चुनावों के परिणाम-अंततः राष्ट्रपति पर्दे के चुनाव में वी. वी. गिरि ही विजयी हुए। वे स्वतंत्र उम्मीदवार थे, जबकि एन. संजीव रेड्डी कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार थे। कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार से पार्टी का टूटना तय हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया। पार्टी से निष्कासित प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी ही असली कांग्रेस है। सन् 1969 के नवंबर तक सिंडिकेट की नेतृत्व वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) और इंदिरा गांधी की नेतृत्व वाले कांग्रेसी खो मे को कांग्रेस (रिक्विजिनिस्ट) कहा जाने लगा था। इन दोनों दलों को क्रमशः ‘पुरानी कांग्रेस’ और ‘नई कांग्रेस’ भी कहा जाता था। इंदिरा गांधी ने पार्टी की इस टूट को विचारधाराओं की लड़ाई के रूप में सामने रखा। उन्होंने इसे ‘समाजवादी’ तथा ‘पुरातनपंथी’ व गरीबों के – समर्थक व अमीरों के तरफदार के बीच की लड़ाई करार दिया।
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