Students must start practicing the questions from RBSE 12th Political Science Model Papers Set 3 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Political Science Model Paper Set 3 with Answers in Hindi
समय : 2:45 घण्टे
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर:पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
वस्तुनिष्ठ प्रश्नप्रश्न
प्रश्न1.
निम्नलिखित प्रश्नों में उत्तर: का सही विकल्प चयन कर उत्तर: पुस्तिका में लिखें
(i) बेलग्रेड गुट निरपेक्ष सम्मेलन कब आयोजित हुआ था? [1]
(अ) 1956 में
(ब) 1960 में
(स) 1961 में
(द) 2006 में
उत्तर:
(स) 1961 में
(ii) यह किसने कहा है, कि लेनिनवाद साम्राज्यवाद के युग का और श्रमजीवी क्रान्ति का मार्क्सवाद है? [1]
(अ) मार्क्स
(ब) लेनिन
(स) स्टालिन
(द) माओ
उत्तर:
(स) स्टालिन
(iii) किस वर्ष दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते (SAFTA) पर हस्ताक्षर हुए थे? [1]
(अ) 1947
(ब) 1994
(स) 2002
(द) 2006
उत्तर:
(स) 2002
(iv) भारत-श्रीलंका समझौते का मुख्य प्रयोजन था? [1]
(अ) तमिलों के विरुद्ध भारत का युद्ध
(ब) श्रीलंका का विभाजन करने का भारत का इरादा
(स) सिंहली व तमिलों के बीच सजातीय विषयक संघर्ष समाप्त करना
(द) तमिल मिलिटेन्ट ग्रुपों का वैधीकरण करना।
उत्तर:
(स) सिंहली व तमिलों के बीच सजातीय विषयक संघर्ष समाप्त करना
(v) रियो-डी-जेनेरियो किस देश में है? [1]
(अ) ब्राजील
(ब) स्पेन
(स) जापान
(द) फ्रांस
उत्तर:
(अ) ब्राजील
(vi) दिसम्बर 1952 में भाषाई आधार पर गठित होने वाला प्रथम राज्य था? [1]
(अ) आन्ध्रप्रदेश
(ब) केरल
(स) तमिलनाडु
(द) हिमाचल प्रदेश
उत्तर:
(अ) आन्ध्रप्रदेश
(vii) द्वितीय पंचवर्षीय योजना में सर्वाधिक बल किस पर दिया गया? [1]
(अ) कृषि
(ब) उद्योग
(स) पर्यटन
(द) यातायात व संचार
उत्तर:
(ब) उद्योग
(viii) दलित पैंथर्स आंदोलन कहाँ प्रारम्भ हुआ था? [1]
(अ) पश्चिम बंगाल
(ब) बिहार
(स) उड़ीसा
(द) महाराष्ट्र
उत्तर:
(ब) बिहार
(ix) स्वतंत्र भारत की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री कौन थे/थी? [1]
(अ) नरेन्द्र देव
(ब) भीमराव अम्बेडकर
(स) राजकुमारी अमृत कौर
(द) मौलाना अब्दुल कलाम
उत्तर:
(स) राजकुमारी अमृत कौर
(x) संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय का प्रधान कहलाता है? [1]
(अ) सचिव
(ब) महासचिव
(स) अध्यक्ष
(द) मंत्री
उत्तर:
(ब) महासचिव
(xi) वर्ष 2000 में किस राज्य का निर्माण हुआ था? [1]
(अ) तेलंगाना
(ब) लद्दाख
(स) आन्ध्रप्रदेश
(द) झारखण्ड
उत्तर:
(द) झारखण्ड
(xii) रजाकार क्या था? [1]
(अ) देश
(ब) राज्य
(स) अर्द्ध सैनिक बल
(द) राजनीतिक पार्टी
उत्तर:
(स) अर्द्ध सैनिक बल
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे महत्वपूर्ण अंग ……………….. परिषद है। [1]
उत्तर:
सुरक्षा
(ii) उत्तर:ी देशों की मुख्य चिंता ………………. परत में छेद और ……………… ताप वृद्धि को लेकर थी। [1]
उत्तर:
ओजोन, वैश्विक
(iii) 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहरों ……………… और ……………. पर परमाणु बम गिराये। [1]
उत्तर:
हिरोशिमा, नागासाकी
(iv) सन् 1999 में वास्तविक …. ……………… 1989 की तुलना में कहीं नीचे था। [1]
उत्तर:
सकल घरेलू
उत्पाद,
(v) 1980 के दशक के उत्तर:ार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था के …….. के प्रयास हुए। [1]
उत्तर:
उदारीकरण,
(vi) मई ….. …………… में राजीव गाँधी की हत्या कर दी गयी। [1]
उत्तर:
1991
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर: एक शब्द अथवा एक पंक्ति में दीजिए
(i) वारसा सन्धि की स्थापना का मुख्य कारण क्या था? [1]
उत्तर:
नाटों में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना।
(ii) मार्क्सवाद के असाधारण सिद्धान्तकार कौन थे? [1]
उत्तर:
ब्लादिमीर लेनिन।
(iii) सुरक्षा की …………… धारणा के …………… पक्ष हैं। [1]
उत्तर:
अपारम्परिक, दो।
(iv) राज्य पुनर्गठन के आधार पर भारत में कितने राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश बनाये गये? [1]
उत्तर:
14 राज्य व 6 केन्द्र शासित प्रदेश।
(v) बजट का क्या अर्थ है? [1]
उत्तर:
सरकारी आय-व्यय का वार्षिक विवरण बजट कहलाता है।
(vi) नर्मदा बचाओ आंदोलन कहाँ चला था? [1]
उत्तर:
गुजरात में।
(vii) मूल वासियों का सवाल ……….., संसाधन और ………. को एक साथ जोड़ देता है। [1]
उत्तर:
पर्यावरण, राजनीति।
(viii) शीतयुद्ध काल की अवधि कौनसी रही है? [1]
उत्तर:
सन् 1945 से सन् 1990 तक का काल।
(ix) मिसाइल गोर्बाचेव ने आर्थिक व राजनैतिक सुधार के लिए किन-किन नीतियों को अपनाया? [1]
उत्तर:
पुनर्रचना(पेरेस्त्रोइका) व खुलेपन (ग्लास्नोस्त) की नीति को।
(x) आर्थिक उदारीकरण की नीति का भारत में सूत्रपात कब हुआ? [1]
उत्तर:
1980 के दशक में।
(xi) प्रान्तीय दल किसे कहते हैं? [1]
उत्तर:
वे दल जिनका संगठन एवं प्रभाव क्षेत्र प्रायः केवल एक राज्य या प्रदेश तक सीमित होता है।
(xii) दक्षिणपंथी विचारधारा क्या थी? [1]
उत्तर:
दक्षिणपंथी विचारधारा खुली प्रतिस्पर्धा एवं बाजार उन्मुख अर्थव्यवस्था को प्रेरित करने वाली विचारधारा थी।
खण्ड – (ब)
लघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर: शब्द सीमा लगभग 50 शब्द)
प्रश्न 4.
“गुटनिरपेक्ष आन्दोलन अब अप्रासंगिक हो गया है।” आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं? अपने उत्तर: के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिए। [2]
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता की नीति शीतयुद्ध के सन्दर्भ में विकसित हुई थी। शीतयुद्ध के अन्त और सोवियत संघ के विघटन से एक अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन और भारत की विदेश नीति की मूल भावना के रूप में गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता तथा प्रभावकारिता में थोड़ी कमी आयी है, लेकिन अभी भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है।
प्रश्न 5.
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् भारत को रूस के साथ मित्रता बनाए रखने के कौन-कौन से दो लाभ (फायदे) मिले ? [2]
उत्तर:
भारत को रूस से मैत्री के निम्न दो लाभ मिले(1)शीतयुद्ध का अन्त होकर विश्व सिकुड़ कर एक ध्रुवीय हो गया जिसके फलस्वरूप भारत शीतयुद्ध की आशका से,दो महाशक्तियों की चक्की के मध्य पिसने के खतरे से बच गया। (2) विघटित हुए समस्त गणतन्त्र राज्यों के साथ भारत अपने नवीन व्यापारिक सम्बन्ध कायम रख पाया।
प्रश्न 6.
दक्षेस की प्रमुख सीमाओं को स्पष्ट कीजिए। [2]
उत्तर:
दक्षेस की कुछ सीमाएँ भी हैं, जिन्हें निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
(i) दक्षिण एशिया के देशों के बीच आपसी विवाद तथा समस्याओं ने विशेष स्थान लिया हुआ है। कुछ देशों का मानना है कि ‘साफ्टा’ का सहारा लेकर भारत उनके बाजार में सेंध मारना चाहता है और उनके समाज और राजनीति को प्रभावित करना चाहता है।
(ii) दक्षेस में शामिल देशों की समस्याओं के कारण चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका दक्षिण एशिया की राजनीति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सन् 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा की नयी सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया। इन सिफारिशों के अन्तर्गत प्रावधान किया ।
प्रश्न 7.
मंडल मुद्दा क्या था? स्पष्ट कीजिए। [2]
उत्तर:
गया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग’ को आरक्षण प्रदान किया जाएगा। सरकार के इस फैसले से देश के विभिन्न भागों में मंडल-विरोधी हिंसक प्रदर्शन हुए। अन्य पिछड़ा वर्ग को प्राप्त आरक्षण के समर्थक तथा विरोधियों के बीच चले विवाद को ‘मंडल मुद्दा’ कहा जाता है।
प्रश्न 8.
एक दलीय प्रभुत्व प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर प्रतिकूल प्रभाव कैसे पड़ा [2]
उत्तर:
एक दलीय प्रभुत्व प्रणाली के कारण कोई अन्य विचारधारात्मक गठबंधन या पार्टी उभरकर सामने नहीं आ पायी जो मजबूत व संगठित विपक्ष की भूमिका निभा सके। इस कारण मतदाताओं के पास भी कांग्रेस को समर्थन देने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं था। इसके अतिरिक्त एक दलीय प्रभुत्व के कारण प्रशासन की कार्यकुशलता कम हो गयी एवं भ्रष्टाचार में भी वृद्धि हो गयी।
प्रश्न 9.
खाद्य संकट के क्या परिणाम हुए? [2]
उत्तर:
सन् 1960 के दशक में कृषि की दशा अत्यन्त खराब हो गयी थी। खाद्यान्न के अभाव में कुपोषण बड़े पैमाने पर फैला तथा इसने गम्भीर रूप धारण किया। सन् 1965 से 1967 के बीच देश के अनेक भागों में सूखा पड़ा। इन वर्षों के दौरान बिहार में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में खाद्यान्न कीमतें भी काफी बढ़ी। खाद्य संकट के कई परिणाम हुए। सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा और विदेशी सहायता भी स्वीकार करनी पड़ी।
प्रश्न 10.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म किन परिस्थितियों में हुआ? [2]
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ में चल रहे शीतयुद्ध के दौरान हुआ। गुटनिरपेक्षता का मुख्य उद्देश्य भी स्वयं को शीतयुद्ध से अलग रखना था। भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का एक संस्थापक देश है। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर एवं युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेफ ब्रॉज टीटो गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक थे।
प्रश्न 11.
गोर्बाचेव द्वारा सोवियत संघ में सुधार के कारण बतलाइए। [2]
उत्तर:
गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए
(i) सोवियत संघ में धीरे-धीरे नौकरशाही का प्रभाव बढ़ता चला गया तथा सम्पूर्ण व्यवस्था नौकरशाही के शिकंजे में फंसती चली गयी।
(ii) सोवियत प्रणाली के सत्तावादी हो जाने के कारण लोगों का जीवन कठिन होता चला गया।
(iii) सोवियत संघ में लोकतन्त्र एवं विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नहीं पायी जाती थी। जिसमें सुधार की अति आवश्यकता थी।
(iv) सोवियत संघ की अधिकांश संस्थाओं में सुधार की आवश्यकता थी।
प्रश्न 12.
आप्रवासी तथा शरणार्थी में अन्त बताइए। [2]
उत्तर:
आप्रवासी-जो व्यक्ति अपनी मर्जी या इच्छा से स्वदेश छोड़ते हैं, उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार आप्रवासी कहा जाता है। ऐसे लोग आकर्षक सुविधाओं के कारण अपना स्थान छोड़ते हैं। शरणार्थी-वे व्यक्ति जो युद्ध, प्राकृतिक आपदा या राजनीतिक उत्पीड़न अथवा किसी अन्य संघर्ष के कारण स्वदेश या अपना निवास क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं उन्हें शरणार्थी कहा जाता है। ऐसे लोग पड़ोसी देश/राज्य में जाकर शरण लेते हैं।
प्रश्न 13.
बुनियादी रूप से किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में सुरक्षा के कितने विकल्प होते हैं ? संक्षेप में बताइए। [2]
उत्तर:
बुनियादी रूप से किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में सुरक्षा के तीन विकल्प होते
(i) आत्म-समर्पण करना एवं दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना।
(ii) युद्ध से होने वाले विनाश को इस हद तक बढ़ाने का संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला करने से रुक जाए।
(iii) यदि युद्ध हो भी जाए तो अपनी रक्षा करना या हमलावर को पराजित कर देना।
प्रश्न 14.
स्वतंत्र पार्टी की आर्थिक नीतियों को स्पष्ट कीजिए। [2]
उत्तर:
स्वतंत्र पार्टी की आर्थिक नीतियाँ
(i) स्वतंत्र पार्टी अगस्त 1959 में अस्तित्व में आयी थी। यह पार्टी अर्थव्यवस्था में सरकार के हस्तक्षेप को बहुत सीमित रखना चाहती थी। स्वतंत्र पार्टी अर्थव्यवस्था के अन्दर सार्वजनिक क्षेत्र की उपस्थिति की विरोधी थी।
(ii) स्वतंत्र पार्टी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हित को ध्यान में रखकर किए जाने वाले कराधान के विरुद्ध थी। इस पार्टी निजी क्षेत्र को खुली छूट देने का समर्थन किया। यह पार्टी कृषि में जमीन की हदबंदी, सहकारी खेती तथा खाद्यान्न के व्यापार पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ थी।
प्रश्न 15.
‘हरित क्रांति’ के किन्हीं चार लाभों का मूल्यांकन कीजिए। [2]
उत्तर:
(i) हरित क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म की वृद्धि हुई।
(ii) देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी हुई।
(iii) हरित क्रांति के कारण कृषि में मझोले दर्जे के किसानों यानि मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ।
(iv) कहीं भी किसी भी फसल को विकसित करने में सक्षम होने की क्षमता पैदा हुई।
प्रश्न 16.
दल-बदल की नीति का भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर क्या पड़ा है? [2]
उत्तर:
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर इसके प्रभाव
(i) कांग्रेस को इससे बड़ा नुकसान हो गया था क्योंकि हरियाणा, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में गैर-कांग्रेसी सरकारें अस्तित्व में आई।
(ii) सन् 1967 के चुनावों में “आया राम-गया राम” की दलगत मनोवृत्ति के कारण कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई परन्तु बहुमत से नहीं। कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं।
(iii) दल के प्रति निष्ठा की कमी इंदिरा की चेष्टाओं में भी देखी गयी। उन्होंने व्हिप का उल्लंघन करके एवं दल के साथ विश्वासघात करके नीलम संजीव रेड्डी के स्थान पर वी. वी. गिरि को राष्ट्रपति पद दिलवा दिया। (iv) दल के प्रति विश्वासघात ने सन् 1975 का आपातकाल लाने तक अमर्यादित उछाल लिया।
खण्ड – (स)
दीर्घ उत्तरदीय प्रश्न (उत्तर: शब्द सीमा लगभग 100 शब्द)
प्रश्न 17.
भारत के नेपाल व श्रीलंका के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। [3]
अथवा
दक्षेस क्या है? दक्षिण एशिया की शांति व सहयोग में इसका क्या योगदान है? [3]
उत्तर:
दक्षेस (साक) दक्षेस से आशय है-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (साउथ एशियन एसोशियन फॉर रिजनल कोऑपरेशन)। यह दक्षिण एशिया के आठ देशों (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका एवं अफगानिस्तान) का एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना इन देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से की है। इसका मुख्यालय काठमांडू (नेपाल) में है।
प्रश्न 18.
मूलवासियों द्वारा किये गये संघर्ष का विस्तार से वर्णन कीजिए। [3]
अथवा
प्राकृतिक संसाधनों की वैश्विक भू-राजनीति की विवेचना कीजिए। [3]
उत्तर:
दक्षिण एशिया की शान्ति व सहयोग में सार्क का योगदान:
(i) सार्क ने अपने आठों सदस्य देशों को एक-दूसरे के नजदीक लाने का कार्य किया है, जिससे उनमें दिखाई देने वाला तनाव कम हुआ है। दक्षेस के सहयोग से भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव में कमी आयी है और दोनों देश युद्ध के जोखिम कम करने के लिए विश्वास बहाली के उपाय करने पर सहमत हो गये हैं।
(ii) दक्षेस के कारण इस क्षेत्र के देशों की थोड़े-थोड़े अन्तराल पर आपसी बैठकें होती रहती हैं, जिससे उनके छोटे-मोटे मतभेद अपने आप आसानी से सुलझ रहे हैं एवं इन देशों में अपनापन विकसित हुआ है।
(iii) दक्षेस के माध्यम से इस क्षेत्र के देशों ने अपने आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए सामूहिक आत्मनिर्भरता पर बल दिया है; जिससे विदेशी शक्तियों का इस क्षेत्र में प्रभाव कम हुआ है। ये देश अब अपने को अधिक स्वतन्त्र महसूस करने लगे हैं।
(iv) दक्षेस ने एक संरक्षित अन्न भण्डार की स्थापना की है जो इस क्षेत्र के देशों की आत्मनिर्भरता की भावना के प्रबल होने का सूचक है।
(iii) मूलवास स्थान पर अपने अधिकार की मांग-मूलवासी अपने मूलवास स्थान पर अपना अधिकार चाहते हैं। अपने मूलवास स्थान पर अपने अधिकार की माँग हेतु सम्पूर्ण विश्व के मूलवासी यह कहते हैं कि हम यहाँ अनन्त काल से निवास करते चले आ रहे हैं।
(iv) राजनीतिक स्वतन्त्रता की माँगभौगोलिक रूप से चाहे मूलवासी अलग-अलग स्थानों पर निवास कर रहे हैं, लेकिन भूमि और उस पर आधारित जीवन प्रणालियों के बारे में इनकी विश्व दृष्टि एकसमान है। भूमि की हानि का इनके लिए अर्थ है-आर्थिक संसाधनों के एक आधार की हानि एवं यह मूलवासियों के जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
प्रश्न 19.
जन आन्दोलन के मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए। [3]
अथवा
जन आंदोलनों के भारतीय राजनीति पर पड़े प्रभावों का वर्णन कीजिए। [3]
उत्तर:
जन आन्दोलन-प्रजातांत्रिक मर्यादाओं तथा संवैधानिक नियमों के आधार पर सामाजिक शिष्टाचार से सम्बन्धित नियमों के पालन सहित सरकारी नीतियों, कानून व प्रशासन सहित किसी मसले पर व्यक्तियों के समूह अथवा समूहों के द्वारा असहमति प्रकट किया जाना जन-आन्दोलन कहलाता है। इस प्रकार के आन्दोलनों का उद्देश्य सरकार का ध्यान उन मुद्दों की ओर आकर्षित करने का रहता है जिन्हें आन्दोलनकारी समूह अपने व राष्ट्र दोनों के हितों में उचित नहीं समझते हैं। इस प्रकार के जन आन्दोलनों में दल समर्थित (दलीय) और स्वतंत्र (निर्दलीय) आन्दोलन प्रमुख हैं।
जन-आन्दोलन के मुख्य कारण- जनआन्दोलन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं।
- सरकार द्वारा आम जनता के हितों की अनदेखी करना।
- सरकार द्वारा क्षेत्र विशेष के पारिस्थितिकीय विनाश पर ध्यान नहीं दिया जाना।
- सरकार की आर्थिक नीतियों से जनता का मोह भंग होना।
- देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल होना।
- लोकतांत्रिक सरकार की प्रकृति में सुधार लाना।
- सामाजिक भेदभाव एवं हिंसा का वातावरण।
- समाज में कई कारणों से असंतोष उत्पन्न होना।
- सरकार पर अपनी मांगों को मानने के लिए दबाव डालना।
- सामाजिक बुराई को समाप्त करना जैसे दक्षिण भारत में महिलाओं द्वारा शराब माफियाओं व सरकार दोनों के विरुद्ध संचालित ताड़ी-विरोधी आन्दोलन।
- बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजनाओं द्वारा लोगों के जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव।
प्रश्न 20.
बहुदलीय प्रणाली के लाभों को स्पष्ट कीजिए। [3]
अथवा
यह कहना कहाँ तक उचित है कि भारत में कुछ सहमति बनाने में गठबंधन सरकार ने सहायत की है? [3]
उत्तर:
भारत में बहुदलीय प्रणाली के लाभ-भारत में बहुदलीय प्रणाली के निम्नांकित लाभ हैं
(i) भारत विविधताओं का देश है, ऐसी विविधताओं वाले देश के लिए यह आवश्यक है कि कई राजनीतिक दल हों वैसे भी लोकतंत्र में दलीय प्रथा प्राणतुल्य होती है। राजनीतिक दल जनमत का निर्माण करते हैं. चुनावों में हिस्सा लेते हैं, सरकार बनाते हैं और विपक्ष की भूमिका का निर्वाह करते
(ii) दलीय प्रणाली के कारण सरकार में दृढ़ता आती है क्योंकि दलीय आधार पर सरकार को समर्थन प्राप्त होता रहता है।
(iii) दलीय प्रणाली जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करती है। राजनीतिक दल सभाएँ करते हैं, सम्मेलन करते हैं, अपने दल की नीतियाँ और कार्यक्रम बताकर जनता के सामने प्रचार करते हैं। तत्कालीन सरकार की आलोचना करते हैं। संसद में अपना पक्ष प्रस्तुत करते हैं और इस प्रकार जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती रहती है।
(iv) दलीय प्रणाली में शासन व जनता दोनों में अनुशासन बना रहता है। राष्ट्रीय हितों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
(v) कई राजनीतिक दल राजनीतिक कार्यों के साथ-साथ सामाजिक सुधार के कार्य भी करते हैं।
(vi) विपक्षी दल सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाते हैं तथा सत्तारूढ़ दल को स्वेच्छाचारी बनने से रोकते हैं।
(vii) मतदाता जिस मत का होगा उसी विचारधारा के राजनीतिक दल को मत दे सकता है लेकिन द्वि-दलीय व्यवस्था में केवल दो में से एक दल को मत देना पड़ता
खण्ड – (द)
निबन्धात्मक प्रश्न (उत्तर: शब्द सीमा लगभग 250 शब्द)
प्रश्न 21.
हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ युद्ध और उससे उत्पन्न विपदा को रोकने में नाकामयाब रहा है, लेकिन विभिन्न देश अभी भी इसे बनाए रखना चाहते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ को एक अपरिहार्य संगठन मानने के क्या कारण हैं? [4]
अथवा
भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के ढाँचे में बदलाव के मसले को किन-किन आधारों पर समर्थन किया। विस्तार से वर्णन कीजिए। [4]
उत्तर:
हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ युद्ध और उससे उत्पन्न विपदा को रोकने में नाकामयाब रहा है परन्तु फिर भी हर देश इसे एक महत्त्वपूर्ण एवं अपरिहार्य संगठन मानता है। संयुक्त राष्ट्र संघ अपने पूर्ववर्ती संगठन-राष्ट्र संघ की तरह दूसरे विश्वयुद्ध के बाद असफल नहीं रहा। अतः संयुक्त राष्ट्र संघ को बनाए रखना आवश्यक है। इसके अन्य प्रमुख निम्नलिखित कारण हैं
(1)संयुक्त राष्ट्र संघ संयुक्त राज्य अमेरिका और विश्व के अन्य देशों के बीच विभिन्न मसलों पर बातचीत करवा सकता है। इसी के माध्यम से छोटे एवं निर्बल देश अमेरिका से किसी भी मसले पर बात कर सकते हैं।
(2)सन् 2011 तक संयुक्त राष्ट्र संघ में 193 देश सदस्य बन चुके हैं। यह विश्व का सबसे प्रभावशाली मंच है। यहाँ पर अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति, सुरक्षा तथा सामाजिक, आर्थिक समस्याओं पर खुले मस्तिष्क से वाद-विवाद और विचार-विमर्श होता है।
(3) संयुक्त राष्ट्र संघ के पास ऐसी कोई शक्ति तो नहीं है कि वह किसी देश को बाध्य करे, परन्तु वह ऐसे देशों की शक्तियों पर अंकुश अवश्य लगा सकता है चाहे वह संयुक्त राज्य अमेरिका जैसा देश ही क्यों न हो। संयुक्त राष्ट्र संघ अपने सदस्यों (देशों) के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका तक की नीतियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है।
(4) आज कुछ राष्ट्रों के पास परमाणु बम हैं किन्तु बड़ी शक्तियों के प्रभाव के कारण काफी सीमा तक सर्वाधिक भयंकर हथियारों के निर्माण और रसायन व जैविक हथियारों का प्रयोग और निर्माण को रोकने में संयुक्त राष्ट्र संघ को सफलता मिली है।
(5) संयुक्त राष्ट्र संघ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक से पिछड़े और गरीब राष्ट्रों को ऋण, भुगतान और आपातकाल में अनेक प्रकार की सहायता दिलाने में सक्षम रहा है। इसलिए इसका अस्तित्व में रहना आवश्यक है।
(6) आज प्रत्येक देश पारस्परिक निर्भरता को समझने लगा है और पारस्परिक निर्भरता बढ़ रही है। इसके पीछे भी संयुक्त राष्ट्र संघ है। यह एक ऐसा मंच है जिस पर विश्व के अधिकांश देश उपलब्ध रहते हैं। कोई भी देश पूर्ण नहीं होता उसे सदैव दूसरे देश के सहयोग की आवश्यकता होती है फिर चाहे वह अमेरिका हो या इंग्लैण्ड। उपरोक्त कारणों से स्पष्ट होता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का उपयोग और अधिक मानव मूल्यों, विश्व-बन्धुत्व एवं पारस्परिक सहयोग की भावना से किया जाना चाहिए। इसका अस्तित्व आज अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सहयोग के लिए परम आवश्यक है।
प्रश्न 22.
भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया। क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी है? [4]
अथवा
भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन में आयी कठिनाइयों व उसके भारत के लिए लोकतांत्रिक कदम साबित होने का वर्णन कीजिए। [4]
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् विभिन्न राज्यों के पुनर्गठन की माँग उठने लगी। बँटवारे और देशी रियासतों के विलय के साथ ही राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया का अंत नहीं हुआ। भारतीय प्रान्तों की आंतरिक सीमाओं को तय करने की चुनौती अभी सामने थी। विभिन्न राज्यों से भाषाई भेदभाव की शिकायतें प्राप्त हो रही थीं। इस प्रकार की शिकायतें बम्बई तथा असम में अधिक र्थी। यहाँ के अल्पसंख्यक लोगों को यह भय था कि बहुमत वाले लोग अन्य भाषाओं को विकसित नहीं होने देंगे, इसलिए ये लोग भाषायी आधार पर अलग राज्य की माँग करने लगे। यह केवल एक प्रशासनिक विभाजन का मामला नहीं था।
प्रान्तों की सीमाओं को इस प्रकार तय करने की चुनौती सामने थी कि देश की भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता की झलक मिले, साथ ही राष्ट्रीय एकता भी छिन्न-भिन्न न हो। औपनिवेशिक शासन के समय प्रान्तों की सीमाएँ प्रशासनिक सुविधा के लिहाज से तय की गयी र्थी या ब्रिटिश सरकार ने जितने क्षेत्र को जीत लिया हो उतना क्षेत्र एक अलग प्रान्त मान लिया जाता था। प्रान्तों की सीमा इस बात से भी निश्चित होती थी कि किसी रजवाड़े के अन्तर्गत कितना क्षेत्र सम्मिलित है। साथ ही हमारे नेताओं को यह चिन्ता थी कि यदि भाषा के आधार पर प्रान्त बनाए गए तो इससे अव्यवस्था फैल सकती है और देश के टूटने का खतरा उत्पन्न हो सकता है।राज्यों के गठन का लोकतांत्रिक कदम सिद्ध होना-भारत के लोकतांत्रिक देश होने का अर्थ है-विभिन्नताओं को पहचानना व उन्हें स्वीकार करना।
इसके साथ ही यह मानकर चलना कि विभिन्नताओं में परस्पर विरोध भी हो सकते हैं। अन्य शब्दों में कहें तो, भारत में लोकतंत्र की धारणा विचारों और जीवन पद्धति की बहुलता की धारणा से जुड़ी हुई है। सन् 1952 से लेकर सन् 2014 तक लगातार कई राज्यों के पुनर्गठन हुए हैं और पुनर्गठित राज्यों में पहले की अपेक्षा अधिक आन्तरिक शान्ति का माहौल देखा जा सकता है। पुनर्गठित राज्यों के आर्थिक विकास का संदर्भ भी लिया जा सकता है। इसी प्रकार क्षेत्रीय आकांक्षाओं का सीधा सम्बन्ध क्षेत्र विशेष के लोगों की विचारधारा और जीवन शैली से है।
क्षेत्रीय मांगों को मानना तथा भाषा के आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में देखा गया। भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आन्दोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है। भाषाई पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला। इससे देश की एकता और अधिक मजबूत हुई। भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता में एकता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली। लोकतंत्र को चुनने का अर्थ था विभिन्नताओं को पहचानना तथा उन्हें स्वीकार करना। अतः भाषाई आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम साबित हुआ।
प्रश्न 23.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए [4]
(i) जय जवान जय किसान
(ii) गरीबी हटाओ
(iii) इंदिरा हटाओ।
अथवा
भारत में 1967 के वर्ष को अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ाव क्यों माना जाता है? [4]
उत्तर:
(i) प्रस्तावना-भारत के राजनैतिक तथा
चुनावी इतिहास में सन् 1967 के वर्ष को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। सन् 1952 के प्रथम चुनाव से लेकर सन् 1966 तक कांग्रेस पार्टी का संपूर्ण देश के अधिकांश राज्यों तथा केन्द्र में राजनैतिक वर्चस्व कायम रहा। परन्तु सन् 1967 के आम चुनाव में इस प्रवृत्ति में गहरा परिवर्तन आया।
(ii) सन् 1967 के आम चुनाव तथा देश के समक्ष आर्थिक समस्याएँ और चुनौतियाँचौथे आम चुनावों के आने तक देश में बड़े परिवर्तन हो चुके थे। दो प्रधानमन्त्रियों का जल्दी-जल्दी देहांत हुआ तथा इंदिरा गांधी को नए प्रधानमंत्री का पद संभाले हुए अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था। साथ ही इस प्रधानमंत्री को राजनीति के दृष्टिकोण से कम अनुभवी माना जा रहा था। सन् 1967 के चुनाव से पहले ही कई वर्षों से देश गंभीर आर्थिक संकट में था। मानसून की असफलता, व्यापक सूखा, खेती की पैदावार में गिरावट, व्यापक खाद्य संकट, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, औद्योगिक उत्पादन तथा निर्यात में गिरावट के साथ ही साथ सैन्य खर्चों में भारी बढ़ोत्तरी हुई थी। नियोजन तथा आर्थिक विकास के संसाधनों को सैन्य-मद में लगाना पड़ा। इन सभी बातों से देश की आर्थिक स्थिति जर्जर हो गयी थी। देश में अक्सर ‘बंद’ तथा ‘हड़ताल’ की स्थिति रहने लगी। सरकार ने इसे कानून तथा व्यवस्था की समस्या माना न कि जनता की बदहाली की अभिव्यक्ति। इससे लोगों में नाराजगी बढ़ गई तथा जन विरोध ने ज्यादा उग्र रूप धारण किया।
(iii) वामपंथियों द्वारा व्यापक संघर्ष छेड़ना-साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने व्यापक समानता के लिए संघर्ष छेड़ दिया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से अलग हुए साम्यवादियों के एक समूह ने मार्क्सवादीलेनिनवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बनायी तथा सशक्त कृषक-विद्रोह का नेतृत्व किया। साथ ही, इस पार्टी ने किसानों के बीच विरोध को संगठित किया। इस अवधि में गंभीर किस्म के हिन्दू-मुस्लिम दंगे भी हुए। आजादी के बाद से अब तक इतने गंभीर सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए थे।
(iv) चुनावों का जनादेश-व्यापक जनअसंतोष तथा राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के इसी माहौल में लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के लिए सन् 1967 के फरवरी माह में चौथे आम चुनाव हुए। कांग्रेस पहली बार नेहरू के बिना मतदाताओं का सामना चुनाव के परिणामों से कांग्रेस को राष्ट्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर गहरा धक्का लगा। तत्कालीन अनेक राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने चुनाव परिणामों को ‘राजनीतिक भूकंप’ की संज्ञा दी। कांग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में बहुमत तो मिल गया था, परन्तु उसको प्राप्त मतों के प्रतिशत तथा सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई थी। अब से पहले कांग्रेस को कभी न तो इतने कम वोट मिले थे और न ही इतनी कम सीटें मिली।
राजनीतिक बदलाव की यह नाटकीय स्थिति राज्यों में और भी अधिक स्पष्ट नजर आई। कांग्रेस को सात राज्यों में बहुमत नहीं मिला। दो अन्य राज्यों में दलबदल के कारण यह पार्टी सरकार नहीं बना सकी। जिन 9 राज्यों में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई थी वह देश के किसी एक भाग में कायम राज्य नहीं थे। वह राज्य पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में थे। कांग्रेस पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मद्रास तथा केरल में सरकार नहीं बना सकीला मद्रास प्रांत अब इसे तमिलनाडु कहा जाता है) में एक क्षेत्रीय पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पाने में सफल रही। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) हिंदीविरोधी आंदोलन का नेतृत्व करके सत्ता में आई थी। यहाँ के छात्र हिन्दी को राजभाषा के रूप में केंद्र द्वारा अपने ऊपर थोपने का विरोध कर रहे थे तथा डीएमके ने उनके इस विरोध को नेतृत्व प्रदान किया था।
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