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RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

February 27, 2019 by Veer Leave a Comment

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1 are part of  RBSE Class 10 Hindi Board Model Papers. Here we have given RBSE Class 10 Hindi Sample Paper 1.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 10
Subject Hindi
Paper Set Model Paper 1
Category RBSE Model Papers

RBSE Class 10 Hindi Sample Paper 1

समय : 3¼ घंटे
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  1. परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यत: लिखें।
  2. सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  3. प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
  4. जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

खण्ड -1

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

देशप्रेम क्या है? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलम्बन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन-पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है, जिनके मध्य हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते हैं, जिनका और हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास हो जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देशप्रेम यदि वास्तव में अन्तःकरण का कोई भाव है तो यही हो सकता है।

प्रश्न 1.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। [1]

प्रश्न 2.
देशप्रेम का आलम्बन क्या है? [1]

प्रश्न 3.
लोभ या राग किसके प्रति उत्पन्न हो सकता है? [2]

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर
हे हरि ! डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़े भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना बनमाली
उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ पर जाए वीर अनेक।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। [1]

प्रश्न 5.
रेखांकित शब्द ‘इठलाऊँ’ का अर्थ बताइए। [1]

प्रश्न 6.
उपर्युक्त काव्यांश की मूल संवेदनाएँ लिखिए। [2]

खण्ड -2

प्रश्न 7.
दिए गए बिन्दुओं के आधार पर निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 300 शब्दों में निबन्ध लिखिए: [8]
(क) कन्या भ्रूण हत्या : एक अभिशाप
1. प्रस्तावना
2. कन्या भ्रूण हत्या के कारण
3. कन्या भ्रूण हत्या रोकने के उपाय
4. उपसंहार।
अथवा
(ख) राष्ट्र की समृद्धि में गाय का योगदान
1. प्रस्तावना
2. गो संरक्षण के उपाय
3. कृषि कार्य में गोवंश की उपादेयता
4. उपसंहार।
अथवा
(ग) भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण
1. प्रस्तावना
2. वृक्ष संरक्षण
3. नदी-पर्वत संरक्षण
4. उपसंहार।
अथवा
(घ) यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता !
1. प्रस्तावना
2. सुरक्षा एवं विकास
3. सामाजिक समरसता
4. उपसंहार।

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

प्रश्न 8.
स्वयं को उदयपुर निवासी अर्पिता मानते हुए अपने जिला पुलिस अधीक्षक को सुरक्षा संबंधी पत्र लिखिए जिसमें आपके मोहल्ले में बाहरी लोगों द्वारा की जा रही संदेहास्पद गतिविधियों का उल्लेख हो। [4]
अथवा
स्वयं को भरतपुरका पुस्तक विक्रेता अजय कुमार मानते हुए गीताप्रेस, गोरखपुर को एक पत्र लिखिए, जिसमें धार्मिक पुस्तकें खरीदने की माँग हो।

खण्ड-3

प्रश्न 9.
क्रिया एवं विशेषण को परिभाषित कीजिए। [2]

प्रश्न 10.
“पेड़ पर पक्षी बैठा है।” वाक्य में निहित कारक, काल और वाच्य लिखिए। [3]

प्रश्न 11.
कर्मधारय समास की सोदाहरण परिभाषा दीजिए। [2]

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए [2]
(क) खरगोश को काट कर गाजर खिलाओ।
(ख) यहाँ शुद्ध गाय का दूध मिलता है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखिए [2]
(क) गूलर का फूल होना।
(ख) आँख का तारा होना।

प्रश्न 14.
‘डूबते को तिनके का सहारा’ लोकोक्ति का अर्थ लिखिए। [1]

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

खण्ड -4

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए [6]
प्रसार तेरी दया का कितना,
ये देखना है तो देखे सागर
तेरी प्रशंसा का राग प्यारे,
तरंग मालाएँ गा रही हैं।
तुम्हारा स्मित हो जिसे निखरना,
वो देख सकता है चन्द्रिका को।
तुम्हारे हँसने की धुन में नदियाँ,
निनाद करती ही जा रही हैं।
अथवा
देखें छिति अंबर जलै है चारि ओर छोर,
तिन तरबर सब ही कौं रूप हय है।
महाझर लागै जोति भादव की होति चलै,
जलद पवन तन सेक मानों पर्यो है।
दारून तरनि तरें नदी सुख पावें सब,
सीरी घन छाँह चाहिबौई चित धर्यों है।
देखौ चतुराई सेनापति कविताई की जू,
ग्रीषम विषम बरसा की सम कयौ है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंगव्याख्या कीजिए [6]
मान लीजिए कि पुराने जमाने में भारत की एक भी स्त्री पढ़ी-लिखी न थी। न सही। उस समय स्त्रियों को पढ़ाने की जरूरत न समझी गई होगी। पर अब तो है। अतएव पढ़ाना चाहिए। हमने सैकड़ों पुराने नियमों, आदेशों और प्रणालियों को तोड़ दिया है या नहीं ? तो चलिए, स्त्रियों को अपढ़ रखने की इस पुरानी चाल को भी तोड़ दें। हमारी प्रार्थना तो यह है कि स्त्री शिक्षा के विपक्षियों को क्षणभर के लिए भी इस कल्पना को अपने मन में स्थान न देना चाहिए कि पुराने जमाने में यहाँ की सारी स्त्रियाँ अपढ़ थीं अथवा उन्हें पढ़ने की आज्ञा न थी।
अथवा
जेलर साब ! (थोड़ा दुःखी होकर) मैं एक आँख से इन्हें देखता हूँ, तो दूसरी आँख से इन्हें देश की दु:खी जनता को देखता हूँ। एक कान से इनकी पुकारें सुनता हूँ। जेलर साहब! मातृभूमि, मेरी माँ की माँ है, देश मेरे पिता का पिता है। मेरे देशवासी मेरे परिजनों से बढ़कर हैं। यदि मेरे घरवालों के दुःख और आँसू भारत माता के होठों पर सुख-स्वतंत्रता की मुस्कान रचा सके, तो मैं अपने परिवार की हर कराह, हर आँसू सहने को तैयार हूँ।

प्रश्न 17.
”कन्यादान” कविता के आधार पर कन्यादान की प्राचीन एवं आधुनिक अवधारणा स्पष्ट कीजिए।(शब्द-सीमा : 200 शब्द) [6]
अथवा
“कवि देव ने श्रीकृष्ण की गुण-कथन किया है”, उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।(शब्द-सीमा : 200 शब्द)

प्रश्न 18.
“आह मेरा गौपालक देश”कहकर महादेवी वर्मा क्या संदेश देना चाहती है ? ”गौरा” संस्मरण के आधार पर स्पष्ट कीजिए।(शब्द-सीमा : 200 शब्द) [6]
अथवा
”ईष्र्या तू न गयी मेरे मन से” पाठ के आधार पर ईर्ष्यालु मनुष्य के चरित्र की कमजोरियों का वर्णन कीजिए।(शब्दसीमा : 200 शब्द)

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

प्रश्न 19.
“सूरदास” पाठ के आधार पर राधा-कृष्ण के मध्य हुए वार्तालाप का सारांश लिखिए। [2]

प्रश्न 20.
‘राजिया रा सोरठा” पाठ के आधार पर कवि ने हिम्मत के विषय में क्या विचार व्यक्त किये हैं? [2]

प्रश्न 21.
”अभी न होगा मेरा अंत” कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए। [2]

प्रश्न 22.
“एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न” नामक पाठ का वर्ण्य विषय क्या है? [2]

प्रश्न 23.
‘ईदगाह’ मुंशी प्रेमचन्द की बाल-मनोविज्ञान को चरितार्थ करने वाली एक प्रतिनिधि कहानी है। स्पष्ट कीजिए। [2]

प्रश्न 24.
दादू के निन्दा स्तुति के विषय में क्या विचार थे? [2]

प्रश्न 25.
शिव के धनुष भंग होने पर कौन कुपित हुआ? [1]

प्रश्न 26.
“झहरि झहीर झीनी बूंद” पंक्ति में कौनसा अलंकार है? [1]

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

प्रश्न 27.
“आखिरी चट्टान” निबन्धका लेखक एक टीले से दूसरे टीले पर क्यों पहुँचना चाहता था? [1]

प्रश्न 28.
सच्चे गुरु की संगति का क्या प्रभाव पड़ता है? ‘लोकसंत पीपा”पाठ के आधार पर समझाइए। [1]

प्रश्न 29.
निम्न रचनाकारों का परिचय दीजिए [4]
1. मुंशी प्रेमचन्द
2. गोस्वामी तुलसीदास।

प्रश्न 30.
सड़क पर वाहन चलाते समय क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए? यदि सड़क पर वाहन चलाते समय कोई सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति मिले तो आप क्या करेंगे? [4]

उत्तर

 

उत्तर 1:
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है देशप्रेम या राष्ट्रप्रेम।

उत्तर 2:
देशप्रेम का आलंबन है, सारा देश अर्थात् मनुष्य, पक्षी, पशु, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि।

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

उत्तर 3:
जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास हो जाता है, उनके प्रति लोभ या राग उत्पन्न हो सकता है।

उत्तर 4:
उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक है ”पुष्प की अभिलाषा” या ‘फूल की चाहत।”

उत्तर 5:
रेखांकित शब्द ‘इठलाऊँ” का अर्थ है-इतरना।

उत्तर 6:
इस काव्यांश में पुष्प की अभिलाषा को बतलाते हुए कहा है। कि न तो वह सौन्दर्य सामग्री के रूप में काम आना चाहता है, न वह सम्राटों के शव पर चढ़ना चाहता है, न ही देवों के मस्तक पर चढ़ने की इच्छा है। अपितु वह तो देश के प्रति प्राण न्यौछावर करने वाले वीरों के पथ पर बिछना चाहता है।

उत्तर 7:
(क) कन्या भ्रूण हत्या : एक अभिशाप
1. प्रस्तावना-
परमात्मा की सृष्टि में मानव का विशेष महत्त्व है, उसमें नर के समान नारी का समानुपात नितान्त वांछित है। नर और नारी दोनों के संसर्ग से भावी संतान का जन्म होता है तथा सृष्टि प्रक्रिया आगे बढ़ती है। परन्तु वर्तमान काल में अनेक कारणों से नर-नारी के मध्य लिंग-भेद का वीभत्स रूप सामने आ रहा है, जो कि पुरुषसत्तात्मक समाज में कन्या भ्रूण हत्या का पर्याय बनकर असमानता बढ़ा रहा है। हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या आज अमानवीय कृत्य बन गया है जो कि चिन्तनीय विषय है।

2. कन्या भ्रूण हत्या के कारण- भारतीय मध्यमवर्गीय समाज में कन्या जन्म को अमंगलकारी माना जाता है, क्योंकि कन्या को पाल| पोषकर, शिक्षित-सुयोग्य बनाकर उसका विवाह करना पड़ता है। इस निमित्त काफी धन व्यय हो जाता है। विशेषकर विवाह में दहेज आदि के कारण मुसीबतें आ जाती हैं। कन्या को पराया धन मानते हैं, जबकि पुत्र को ही कुल परम्परा को बढ़ाने वाला तथा वृद्धावस्था का सहारा मानकर कुछ लोग कन्या जन्म नहीं चाहते हैं। इन सब कारणों से पहले कुछ क्षेत्रों अथवा जातियों में कन्या जन्म के समय ही उसे मार दिया जाता था। आज के यांत्रिक युग में अब भ्रूण हत्या के द्वारा कन्या जन्म को पहले ही रोक दिया जाता है।

वर्तमान में अल्ट्रासाउण्ड मशीन वस्तुत: कन्या संहार का हथियार बन गया है। लोग इस मशीन की सहायता से लिंग-भेद ज्ञात कर लेते हैं और यदि गर्भ में कन्या हो तो कन्या भ्रूण को नष्ट कर देते हैं। कन्या भ्रूण हत्या के कारण लिंगानुपात का संतुलन बिगड़ गया है। कई राज्यों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या बीस से पच्चीस प्रतिशत कम हो गयी है। इस कारण सुयोग्य युवकों की शादियाँ नहीं हो पा रही हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में प्रतिदिन लगभग ढाई हजार कन्या भ्रूणों की हत्या की जाती है। कन्या भ्रूण हत्या का अशिक्षा तथा गरीबी से उतना सम्बन्ध नहीं है, जितना कि शहरी स्वार्थी मध्यमवर्गीय समाज की दकियानूसी सोच से है। लगता है कि ऐसे लोगों में लिंग चयन का मनोरोग निरंतर विकृत होकर उभर रहा है।

3. कन्या भ्रूण हत्या रोकने के उपाय-भारत सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए अल्ट्रासाउण्ड मशीनों से लिंग ज्ञान पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इसके लिए प्रसवपूर्व निदान तकनीकी अधिनियम (पी.एन.डी.टी.), 1994′ के रूप में कठोर दण्ड विधान किया गया है। साथ ही नारी सशक्तिकरण, बालिका निःशुल्क शिक्षा, पैतृक उत्तराधिकार, समानता का अधिकार आदि अनेक उपाय अपनाये गये हैं। यदि भारतीय समाज में पुत्र एवं पुत्री में अन्तर नहीं माना जावे, कन्या जन्म को परिवार में मंगलकारी समझा जावे, कन्या को घर की लक्ष्मी एवं सरस्वती मानकर उसका लालन-पालन किया जावे, तो कन्या भ्रू.णहत्या पर प्रतिबंध स्वत: ही लग जायेगा।

4. उपसंहार-वर्तमान में लिंग चयन एवं लिंगानुपात विषय पर काफी चिंतन किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ में कन्या संरक्षण के लिए घोषणा की गई है। भारत सरकार ने भी लिंगानुपात को ध्यान में रखकर कन्या भ्रूण हत्या पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया है। वस्तुतः कन्या भ्रूण हत्या का यह नृशंस कृत्य पूरी तरह समाप्त होना चाहिए।

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

अथवा

(ख) राष्ट्र की समृद्धि में गाय का योगदान

1.प्रस्तावना-भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था में गोवंश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतीय संस्कृति के उन्नयन और समृद्धि में गाय का स्थान सर्वोपरि है। हमारे प्राचीन शास्त्रों में गाय को ‘कामधेनू’ कहा गया है। यह सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली है। अत: सम्पूर्ण विश्व में गाय माता के समान पूजनीय है। कहा भी है-*गावोः विश्वस्य मातरः।” इस प्रकार गाय का उल्लेख हमारे धार्मिक उपाख्यानों में मिलता है। गाय में तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास है। हमारे भगवान् श्रीकृष्ण का दूसरा नाम गाय चराने के कारण ‘गोपाल’ भी है। जैन संस्कृति में भी गाय को पूजनीय माना गया है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का प्रतीक एक बैल है। अतः हमारे देश में गाय धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से समृद्ध और विकास की परिचायक है। गोपालन हमारी अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ है।

2. गो संरक्षण के उपाय-हमारे देश में आज गाय की दुर्दशा हो रही है। हमने उसे उपेक्षित कर दिया है। हमारे देश में प्रतिदिन गायें काटी जा रही हैं। उनको नृशंस तरीके से मारा जा रहा है। उनका माँस विदेशों में भेजा जा रहा है जिसे पाश्चात्य लोग ‘बीफ’ कहते हैं। गाय की उपेक्षा के कारण हमारी कृषि व्यवस्था, अर्थव्यवस्था पंगु होती जा रही है। प्रतिदिन अखबारों में गौशालाओं की भयावह तस्वीर और उनकी दर्दनाक मौतों के मंजर पर सरकारें उदासीनता के साथ प्रतिक्रिया देती हैं। हमारे गणमान्य गौ-संरक्षण के नाम पर बड़ा भाषण और उपदेश देते हैं। लेकिन गायों के संरक्षण की आज महती आवश्यकता है। गाय के संरक्षण और संवर्धन से ही प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं।

गौशालाओं की हालत में सुधार की आवश्यकता है। सरकारी उदासीनता के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। हम परस्पर जन-सहयोग से गायों के चारे-पानी की व्यवस्था कर सकते हैं। गायों के काटने पर सख्त कानून बना कर हम उसके जीवन की रक्षा कर सकते हैं। गाय को सरकार राष्ट्रीय पशु घोषित कर इसकी अवैध खरीद-फरोख्त को रोका जा सकता है। हमारे पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। इस प्रकार हम सभी छोटे-छोटे प्रयास कर गौ-संरक्षण और संवर्द्धन में जनसहभागिता को अपनाकर गाय माता की सेवा-सुश्रूषा कर सकते हैं।

3. कृषि कार्य में गोवंश की उपादेयता-भारत के प्रत्येक क्षेत्र में कृषि के काम आज भी गौवंश की उपादेयता हैं। चाहे हमने कितने भी आधुनिक कृषि उपकरणों या रासायनिक खादों का उपयोग किया हो लेकिन कृषि में गौवंश का योगदान आज भी है। गाय के गोबर, मूत्र, घी, दूध, दही आदि का उपयोग आज भी हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं। गाय के गोबर की खाद से भूमि का उपजाऊपन बढ़ता है। गाय के द्वारा अनेक उत्पादों में किसान लाभप्रद और खुशहाल है। राष्ट्र के आर्थिक विकास में गौवंश की उपादेयता हमेशा बहुपयोगी सिद्ध होगी।

4. उपसंहार-इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गाय हमारी समृद्धि का आधार है। राष्ट्र की समृद्धि में गाय का योगदान प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान युग में भी है। अतः हमें पुनः हमारी गाय माता का आदर कर उसे पूजनीय बनाकर हम फिर अपनी खोई हुई उन्नति को पा सकते हैं। हमें आवश्यकता है तो हमारी गाय की सुरक्षा और संरक्षा की। तभी हम “गावो: विश्वस्य मातरम्’ वाक्य को सार्थक कर सकेंगे।

अथवा

(ग) भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण

  1. पर्यावरण : जीवन का मूल आधार
  2. पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व
  3. पर्यावरण प्रदूषण के दुष्परिणाम
  4. जन चेतना : हमारा दायित्व
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मानव को प्रकृति ने वायु, भूमि, जल, नि:शुल्क प्रदान किये हैं। इन सभी को मिलाकर ही पर्यावरण कहते हैं। इसका अर्थ है : परि + आवरण, अर्थात् हमारे चारों ओर विद्यमान है वही पर्यावरण है। लेकिन आज का मानव इन सबको दूषित करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है। प्रकृति के ये सभी घटक एक निश्चित मात्रा व अनुपात में होते हैं। इनमें से यदि किसी घटक की कमी या अधिकता हो जाती है तो यह मानव मात्र के साथ ही प्रत्येक जीवधारी के लिए भी नुकसानदायक होती है, यही प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण जल, वायु व स्थल की रासायनिक, जैविक व भौतिक विशेषताओं का वह अवांछनीय परिवर्तन है जो मनुष्य के लिए लाभदायक नहीं है।

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

2. प्रदूषण का विकराल स्वरूप–पिछली कई शताब्दियों से मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का निरन्तर दोहन किया है। विडम्बना यह है कि समाज के जागरूक होने के उपरान्त भी यह प्रक्रिया आज भी जारी है। दुष्परिणामों की भयावहता देखकर अब हमारी चेतना जागृत हुई है कि इन सीमित साधनों का दोहन किफायत से किया जाना चाहिए। पर्यावरण असन्तुलन और विकृति की समस्याएँ पिछले कुछ वर्षों से दानवी रूप धारण कर चुकी हैं और उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। आज हवा, पानी व मिट्टी तो दूषित हो रही है, साथ ही रेगिस्तान व दलदल का बढ़ना भी लगातार जारी है। नदियाँ उथली हो गयी हैं, इसलिए बरसात में पानी उफन कर बाहर बहता है और गर्मी में सूख जाती हैं। जंगलों के कटने से पेयजल के संकट के साथ शुद्ध हवा भी नहीं मिल पा रही है। उद्योगों के अपशिष्ट और गन्दे पानी के निकास की समस्या भी इसी में सम्मिलित है। पर्यावरण आम चर्चा का विषय बन जाने के कारण लोगों में जागरूकता आयी है, इसे अब पाठ्यक्रम में भी स्थान दिया जाने लगा है।

3. प्रदूषण के कारण पर्यावरण- प्रदूषण के अनेक कारण हैं। उनमें से प्रमुख का वर्णन इस प्रकार से है

  • शहरीकरण–पर्यावरण असन्तुलन में शहरीकरण एक प्रमुख कारण है। गाँव वाले रोजगार व जीवनयापन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। शहरों में जनसंख्या का घनत्व बढ़ रहा है। उचित आवास न होने से वे कच्ची बस्तियों व झुग्गी-झोंपड़ियों में रहते हैं।
  • बढ़ती जनसंख्या बढ़ती हुई जनसंख्या भी भयंकर रूप में हमारे सामने आती है। यह प्रति मिनट 150 की दर से बढ़ रही है। यह आबादी 21वीं सदी में पहुँचते-पहुँचते छह अरब हो जायेगी और अगली सदी में दस अरब। पृथ्वी पर इससे अधिक आदमियों के रहने की गुंजाइश नहीं है। इससे महँगाई में वृद्धि, रहन-सहन में गिरावट आदि आती है।
  • वनों का दोहन ईंधन और इमारती लकड़ी के लिए वनों का लगातार दोहन हो रहा है। खनिज कोयला अगले कुछ वर्षों बाद मिलना बन्द हो जायेगा। खनिज तेल भी 40-50 वर्षों तक ही मिलेगा। वनों के न होने से अनावृष्टि व अतिवृष्टि की समस्याएँ होती हैं।
  • औद्योगिक अपशिष्ट औद्योगिक इकाइयों से जहरीली गैसें कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि निकलती हैं। कार्बन डाइऑक्साइड के आधिक्य के कारण तापमान में दो सेन्टीग्रेड की वृद्धि होगी, जो कृषि भूमि को अनुपयोगी बना देगी। जलवायु अधिक उष्ण, नमीदार और मेघाच्छादित हो जायेगी। इससे ध्रुर्व प्रदेशों की बर्फ पिघलकर बाढ़ ला सकती है।

4. प्रदूषण के प्रकार- प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं। प्रमुख प्रदूषणों का वर्णन इस प्रकार है

  • जल प्रदूषण–स्वच्छ जल को हम पीने के काम में लेते हैं। लेकिन जब इसी जल में औद्योगिक नगरों के द्वारा बहाये गये खतरनाक अपशिष्ट मिल जाते हैं तो यह जल पीने के लायक नहीं रहता है। यह पानी जलीय जीव-जन्तुओं के लिए भी खतरनाक सिद्ध होता है। कीटनाशी रसायन डी.डी.टी. के छिड़काव से भी जल प्रदूषण होता है। खतरनाक रसायन के लिए बहती नदियों से सिंचाई करने से प्रतिवर्ष लाखों एकड़ भूमि बंजर होती जा रही है।
  • वायु प्रदूषण–वायु प्रदूषण का खतरा सबसे अधिक मात्रा में है, क्योंकि मानव मात्र को जिन्दा रहने के लिए ऑक्सीजन पर निर्भर रहना पड़ता है और इसे स्वचालित वाहनों से निकलने वाला धुआँ दूषित कर देता है। इनके उपभोग में आने वाले पेट्रोल में सीसा मिलाया जाता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। खनिज कोयले के जलने से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड गैस हवा में नमी के साथ मिलकर गंधक का अम्ल बनाती है, जिससे तेजाबी वर्षा की समस्या उत्पन्न हो गई है। इसके प्रभाव से स्मारकों, भवनों और धातु के निर्माण में भी हानि होती है। पृथ्वी के वायुमण्डल के तापक्रम में यदि दो डिग्री सेन्टीग्रेड वृद्धि हो गयी तो ध्रुवों की बर्फ पिघलकर जल-प्रलय का दृश्य उपस्थित कर देगी। ओजोन परत में छेद के फलस्वरूप त्वचा कैंसर व महामारियाँ अधिक होंगी। फसल उत्पादन कम होगा तथा नवजात बच्चे विकलांग उत्पन्न होंगे।
  • ध्वनि प्रदूषण–ध्वनि से भी प्रदूषण होता है। वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि यदि मानव की ध्वनि की मात्रा निर्धारित डेसीबल से अधिक हो गयी तो मानव बहरा हो जायेगा, साथ ही ध्वनि की तरंगें जीवधारियों की पाचन शक्ति पर भी असर डालती हैं। अधिक तेज ध्वनि से रात को नींद नहीं आती और पागलपन के दौरे भी पड़ने लगते हैं। यह ध्वनि उत्पन्न होती है-सड़क पर चलने वाले वाहनों से, उनके हॉर्न से व कारखानों के सायरन से, रेडियो, बाजे, वायुयान मशीनों के चलने से।
  • भूमि प्रदूषण-जनसंख्या तेजी से बढ़ने के साथ ही खाद्य सामग्री की माँग भी तेजी से बढ़ी है। इसलिए फसल को जीव-जन्तुओं से बचाने के लिए व उत्पादन बढ़ाने के लिए उन पर रासायनिक पदार्थों का छिड़काव किया जाता है। इनमें डी.डी.टी. प्रमुखता से काम में लाया जाता है। यह मिट्टी में मिलकर उसे दूषित कर देता है और वृक्षों को नुकसान पहुंचाता है। इससे उपजाऊ भूमि का कटाव होना प्रारम्भ हो जाता है।
  • रेडियोधर्मी प्रदूषण–आज संसार बम के विस्फोट से उत्पन्न होने वाले धुएँ व उसके रेडियोधर्मी विकिरणों के साथ ही शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए काम में लाये गये परमाणु तत्त्वों के अपशिष्ट को ठिकाने लगाने पर भी उनसे होने वाले विकिरणों से ग्रस्त है। इनसे निकलने वाली पराबैंगनी किरणें मानव शरीर को नुकसान पहुँचाती हैं और उनमें त्वचा रोग व त्वचा कैंसर उत्पन्न करती हैं। साथ ही सम्पूर्ण वातावरण को प्रदूषित कर देती हैं। इनके प्रभाव से आनुवंशिक रोग भी हो जाते हैं। तथा व्यक्ति विकलांग व नवजात शिशु रोगग्रस्त हो जाते हैं।

5. प्रदूषण निवारण- के उपाय–पर्यावरण संरक्षण तभी संभव है। जब पर्यावरण और विकास दोनों में उचित सामंजस्य हो। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम विज्ञान और तकनीकी का विनाश रहित विकास करने का प्रयत्न करें, जिससे पर्यावरण का सन्तुलन बना रहे और जीव-जन्तुओं तथा मानव के अस्तित्व को भी खतरा उत्पन्न नहो।

भारतीय संसद ने भी पर्यावरण की सुरक्षा के महत्त्व को जानकर पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम को लागू कर दिया है जिसके अनुसार, हवा, पानी, जमीन और जंगलों के लिए आधुनिक उद्योगों, शहरों के मेल, कचरे तथा अनियमित कटाव से पैदा होने वाले सभी खतरों पर पाबंदी लगा दी गई है।

हमें उन पेड़-पौधों व झाड़ियों का रोपण करना चाहिए, जो वातावरण को शुद्ध और निर्मल बनाये रखने में मददगार होती हैं। इनमें प्रमुख हैं—जामुन, आम, चीड़, बेल, नीम, यूकेलिप्ट्स, कनेर आदि। पेड़पौधे हानिकारक गैसों से ही हमें छुटकारा नहीं दिलाते हैं वरन् अवांछित शोर की गति को भी कम करते हैं। मानव की प्राणवायु अर्थात् ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।

आज कारखानों से निकलने वाले धुएँ को रोकने के लिए चिमनियों में ऐसे यंत्र लगाये जाते हैं जो घातक गैसों और धुएँ व कार्बन के रूप में वहीं पर रोक लेते हैं। उससे निकलने वाली राख को ईंट व सीमेण्ट बनाकर उपयोग में लाया जाता है। ध्वनि रहित मशीनों के आविष्कार से ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

परिवार नियोजन की शिक्षा का अधिकाधिक प्रचार व प्रसार किया जाए ताकि जनसंख्या की बढ़ती गति पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके। प्रौढ़ शिक्षा व साक्षरता के केन्द्रों में अधिक व्यावहारिकता लाई जाए। हर्ष का विषय है कि संसार में आण्विक विस्फोट पर भी नियंत्रण स्थापित करने की दिशा में कारगर कदम उठाया है और अब शांतिपूर्ण कार्यों के लिए ही परमाणु का प्रयोग किया जा सकेगा, लेकिन इसके अपशिष्ट को नष्ट करने के लिए अभी और सोचने व करने की आवश्यकता है।

6. उपसंहार-आज मानव अस्तित्व के लिए पर्यावरण एक गंभीर चुनौती है। यदि समय रहते हमने इसके लिए यथेष्ट कार्यवाही और पर्याप्त व्यवस्था सुचारु ढंग से नहीं की तो वह दिन दूर नहीं जब हमें भोजन, जल व ऑक्सीजन के अकाल का सामना करना पड़ेगा। सभी इस विषय की समस्या का हल खोजने में विफल हैं। आशा है कि भविष्य में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण इस पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकेगा। हमें सदैव यह याद रखना चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण से ही हमारा अपना और सभी जीवधारियों का जीवन सुरक्षित है।

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अथवा

(घ) यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता

  1. प्रस्तावना
  2. राष्ट्र के प्रति कर्तव्य
  3. युवा पीढ़ी के प्रति कर्तव्य
  4. बुजुर्गों के प्रति कर्त्तव्य
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना–प्रत्येक व्यक्ति मन में अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना करता है। वर्तमान में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में लोकसभा के चुनावों में सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष के नेताओं में प्रधानमंत्री बनने की स्पर्धा दिखाई देती है। यदि मैं भी चुनाव में जीत करे लोकसभा का सदस्य बन जाता और सभी प्रतिनिधि मुझे देश का प्रधानमंत्री चुन लेते तो कितना अच्छा होता! मैं प्रायः इसी प्रकार की कल्पनाएँ करता रहता हूँ।

2. राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य-यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो निम्न कर्तव्यों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने की चेष्टा करता|

  • मैं देश की विदेश नीति को प्रभावशाली बनाता तथा रक्षासेनाओं पर अधिक धन व्यय करता।
  • मैं देश की आर्थिक उन्नति के लिए अनेक प्रयास करता। इसके लिए विदेशों से ऋण लेने की अपेक्षा स्वावलम्बी भारत का निर्माण करता।।
  • मैं लघु उद्योगों तथा ग्रामीण उद्योग-धन्धों को बढ़ावा देने की नीति बनवाता तथा इस निमित्त एक ऐसा कोष स्थापित करता, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में स्वरोजगार के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध हो सके।
  • मैं देश में शिक्षा के स्तर में सुधार करता, रोजगारपरक तथा तकनीकी शिक्षा पर अधिक जोर देता, ताकि नवयुवक पढ़-लिखकर स्वरोजगार चला सकें।
  • मैं आवागमन के साधनों का विकास करता, कृषि-उत्पादन पर अधिक बल देता और सिंचाई साधनों को सुव्यवस्थित बनाये रखने का प्रयास करता।
  • देश में साम्प्रदायिकता और जातिवाद की जो समस्या विद्यमान है, मैं उसे समाप्त करने की चेष्टा करता। इस प्रकार मैं धर्मनिरपेक्ष संविधान का पालन करता।
  • इसी प्रकार देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुशासन, गरीबी, आर्थिक पिछड़ापन, शोषण आदि सभी बुराइयों को जड़ से समाप्त करने की चेष्टा करता।

3. युवा पीढ़ी के प्रति कर्त्तव्य-प्रधानमंत्री बनने पर मैं बेरोजगारी के विरुद्ध अभियान छेड़ देता । युवाओं के लिए तकनीक और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में क्रान्ति ला देता। शिक्षा को रोजगार से जोड़ता। ऐसी व्यवस्था करता जिससे प्रत्येक स्नातक को व्यावसायिक प्रशिक्षण मिलता और हर प्रशिक्षु को रोजगार मिलता। मैं देश के प्रतिभाशाली कलाकारों, वैज्ञानिकों, खिलाड़ियों और व्यवसायियों को पुरस्कारों से सम्मानित करता।

4. बुजुर्गों के प्रति कर्त्तव्य-यदि मैं प्रधानमंत्री बनता तो मैं बुजुर्गों के स्वास्थ्य का ध्यान रखता। मैं उनके रहन-सहन, खान-पान के साथ उनके सम्मान तथा स्वाभिमान को बनाये रखता।

5. उपसंहार-इस प्रकार यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो स्वतंत्र भारत के अभ्युदय में अपना तन, मन और जीवन समर्पित करता। परन्तु मेरे सपने और प्रधामंत्री बनने की कल्पनाएँ कब पूरी होंगी, यह कहा नहीं जा सकता। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह मेरी कल्पना को भविष्य में अवश्य ही साकार करे।

उत्तर 8:

सेवा में,
श्रीमान् पुलिस अधीक्षक महोदय,
उदयपुर (राज.)
दिनांक : 10 सितम्बर,_______

विषय : मोहल्ले में बाहरी लोगों द्वारा की जा रही संदेहास्पद गतिविधियों के सम्बन्ध में।
महोदय,

मैं इस पत्र के द्वारा आपको सूचित करना चाहती हूं कि हमारे मोहल्ले में कुछ दिनों से बाहरी लोगों द्वारा कुछ संदेहास्पद गतिविधियाँ की जा रही हैं जिससे हमें हमारी सुरक्षा में खतरा महसूस हो रहा है। ये बाहरी लोग अलग तरह की भाषा और इशारों से एक-दूसरे को बुलाते हैं तथा वे आपस में कुछ संदिग्ध वस्तुओं को एक-दूसरे को देकर चले जाते हैं। इन लोगों के कारण मोहल्ले वालों में भय व्याप्त हो गया है कि ये अवैध बांग्लादेशी हैं, जो हथियारों, मादक पदार्थों की तस्करी में संलिप्त हैं। हमारे मोहल्ले में रात के समय पुलिस की या गार्ड की कोई व्यवस्था नहीं है। अत: हम सब लोग अपनी सुरक्षा को लेकर चिन्तित रहते हैं कि कहीं कोई खतरनाक वारदात न हो जाये।

अत: इन बाहरी लोगों से दिन-प्रतिदिन मोहल्ले वालों में डर और खौफ बढ़ता जा रहा है। हम सभी नागरिक चाहते हैं कि इस मोहल्ले में पुलिस गश्त बढ़ा दी जाए। दिन में भी एक-दो पुलिस वाले गश्त पर रहें, तो इन बाहरी लोगों की संदेहास्पद गतिविधियों पर नजर रखकर इनमें डर पैदा होगा और उनकी इन गतिविधियों पर रोक लग सकेगी।

आशा है आप इस सम्बन्ध में उचित कार्यवाही करेंगे।

सधन्यवाद।
भवदीया
अर्पिता उदयपुर (राजस्थान)

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अथवा
सेवामें,
श्रीमान् व्यवस्थापक महोदय,
गीताप्रेस, गोरखपुर।
दिनांक : 10 सितम्बर,_______

विषय : धार्मिक पुस्तकें खरीदने हेतु पत्र।
मान्यवर,

उपर्युक्त विषय में लेख है कि आप मुझे अधोलिखित धार्मिक पुस्तकें वी.पी.पी. द्वारा भेजने का कष्ट करें।

क्र.सं. पुस्तक का नाम संख्या
1 रामचरित मानस सजिल्द 40
2 श्रीमद्भगवद्गीता 40
3 नैतिक कहानियाँ 40
4 धार्मिक महापुरुषों का परिचय 50
5 हनुमान चालीसा 50

इन पुस्तकों के साथ बिल संलग्न कर भेजें। आपका अकाउन्ट नम्बर, मोबाइल नं. वे सम्बन्धित बैंक का उल्लेख करें जिससे बिल का भुगतान चैक या डिजिटल माध्यम से किया जायेगा।

भवदीय
अजय कुमार
पुस्तक विक्रेता
भरतपुर (राज.)

उत्तर 9:
क्रिया-जिस शब्द से किसी कार्य के करने या होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते हैं।
विशेषण-जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं।

उत्तर 10:
इस वाक्य में अधिकरण कारक, वर्तमान काल और कर्तृवाच्य है।

उत्तर 11:
जिस समास में पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। जैसे-कृष्णसर्प, नीलकमल, सफेद घोड़ा, महापुरुष आदि।

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उत्तर 12:
(क) खरगोश को गाजर काटकर खिलाओ।
(ख) यहाँ गाय का शुद्ध दूध मिलता है।

उत्तर 13:
(क) दुर्लभ होना।
(ख) अत्यधिक प्रिय।

उत्तर 14:
मुसीबत के समय थोड़ी-सी सहायता का भी बहुत महत्त्व

उत्तर 15:
प्रसंग-
प्रस्तुत अवतरण जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘प्रभो’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसमें कवि ने ईश्वर या परमात्मा की स्तुति
करते हुए उसकी व्यापकता, सौन्दर्य, दया आदि गुणों का उल्लेख किया है।
व्याख्या-
कवि कहता है कि ईश्वर की दया का प्रसार कितना विस्तृत है, ऐसा यदि देखना है तो समुद्र का विस्तार देखना चाहिए अर्थात् समुद्र के व्यापक विस्तार के समान ईश्वर की दया का प्रसार है। तथा समुद्र की लहरों की असंख्य कतारें ईश्वर की प्रशंसा का राग गा रही हैं, ईश्वर की सर्वश्रेष्ठता के गीत गा रही हैं।

हे प्रभो ! जिसे तुम्हारी मधुर मुस्कान देखनी हो, वह चाँदनी को देख सकता है और जिसे तुम्हारे हँसने का शब्द या ध्वनि सुननी है, वह नदियों की कलकल ध्वनि को सुने अर्थात् चाँदनी परमेश्वर की मुस्कान जैसी है तो नदियों की कलकल ध्वनि उसकी हँसने की ध्वनि है।

कवि कहता है कि रात्रि में जिसे इस संसार रूपी विशाल मन्दिर में दीपकों की कतार देखनी हो, वह रात में चमकते हुए तारों को देखे, क्योंकि तारों की ज्योति में उसे ईश्वर की सत्ता का पता मिल जाता है, उसकी अनुपम छवि का बोध हो जाता है।
विशेष-

  1. कवि ने ईश्वर की मन्द मुस्कान, मधुर हँसी एवं सुसज्जित मन्दिर आदि के लिए सुन्दर उपादान प्रस्तुत किये हैं।
  2. प्राकृतिक उपादानों से ईश्वर की सौन्दर्यमयी सृष्टि एवं भव्य रूप की व्यंजना की गई है।
  3. अनुप्रास, काव्यलिंग, रूपक एवं परिकर अलंकार प्रयुक्त हैं। भाषा तत्सम प्रधान एवं गीतात्मक लय-गति द्रष्टव्य है।

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अथवा
प्रसंग-
प्रस्तुत अवतरण कवि सेनापति द्वारा रचित ‘ऋतु-वर्णन’ से लिया गया है। इसमें श्लेष के द्वारा गर्मी और वर्षा इन दोनों ऋतुओं का वर्णन एक साथ किया गया है। कवि वर्णन करते हुए कहता है कि
व्याख्या-
ग्रीष्म ऋतु के पक्ष में-धरती और आकाश में चारों ओर-छोर अतीव जलन (प्रचण्ड ताप) फैल रहा है। इसकी तीव्र गर्मी ने सभी पेड़-पौधों की हरियाली को सुखाकर हर लिया है। इस ग्रीष्मकाल में सर्वत्र भयानक ताप (लू) फैल रहा है और उसकी लपट दावाग्नि की भाँति अत्यन्त तीव्र बनती जा रही है तथा तेज लू (गर्म हवा) से सभी प्राणियों के शरीर तपाये जा रहे हैं। सूर्य की प्रचण्ड किरणों से बचने के लिए लोग नदी के जल का सेवन करना चाहते हैं तथा पेड़-पौधों की घनी छाया में रहने की मन में अभिलाषा करते हैं। सेनापति कहते हैं कि इस प्रकार मेरी कविता-रचना की यह चतुराई या चमत्कार है कि ग्रीष्म ऋतु भी वर्षा के समान श्लिष्ट पदों से वर्णित की गई है।
वर्षा ऋतु के पक्ष में-
धरती और आकाश में सब ओर जल ही जल है, इस तरह जल प्रलय (बाढ़ आदि) से वर्षा ऋतु ने पेड़-पौधों को उजाड़-उखाड़ दिया है। इस काल में वर्षा की भारी झड़ी सदा ही लगी रहती है और वर्षा का यह क्रम भाद्रपद के महीने तक चलता रहता है। इस काल में बादलों की घटा से चारों ओर जल का सिंचन होती रहता है। भाद्रपद के बाद ही सूर्य के दर्शन होते हैं तथा बरसात में नदी को नाव में सवार होकर पार करना कठिन हो जाता है। इस काल में सब लोग घने बादलों की छाया से घिरे रहते हैं तथा अपने-अपने शरीर को जल-वर्षण से बचाने की अभिलाषा करते हैं। सेनापति कवि कहते हैं। कि यह मेरी कविता-रचना की चतुराई या चमत्कार है कि जो मैंने वर्षा ऋतु का भी ग्रीष्म ऋतु की तरह चमत्कारपूर्ण वर्णन कर दिया है।
विशेष-

  1. ग्रीष्म और वर्षा ऋतु के लिए श्लिष्ट विशेषणों का प्रयोग कर प्राकृतिक शोभा का चमत्कारी वर्णन किया गया है।
  2. श्लेष अलंकार प्रमुख है। साथ ही अनुप्रास, उत्प्रेक्षा एवं काव्यलिंग अलंकार भी हैं। कवित्त छन्द की गति-यति उचित है।

उत्तर 16:
प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। द्विवेदीजी ने स्त्री शिक्षा को समाजोपयोगी तथा देश के लिए हितकारी माना है। उनका कहना है कि पुराने समय में स्त्रियाँ पढ़ी-लिखीं होती थीं अथवा नहीं किन्तु आज स्त्री शिक्षा अत्यन्त आवश्यक हो गई है। स्त्रियों को शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिए।
व्याख्या-
द्विवेदीजी कहते हैं कि स्त्री शिक्षा के विरोधियों का यह कुतर्क कि पुराने समय में स्त्रियाँ पढ़ी-लिखी नहीं होती थीं। थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं। नहीं होती होंगी शिक्षित ! हो सकता है कि उस समय उनको पढ़ाने की आवश्यकता ही नहीं रही होगी। परन्तु आज के समय में स्त्रियों को शिक्षा देना आवश्यक हो गया है। अतः अब उनको अवश्य पढ़ाना चाहिए। भारतीयों ने सैकड़ों पुराने नियमों, नीतियों, आदेशों और प्रथाओं को तोड़ दिया है। अब वे मान्य नहीं रही हैं। तो अब स्त्रियों को अनपढ़ रखने की पुरानी रीति को भी तोड देने में कोई हर्ज नहीं है। लेखक निवेदन करता है कि स्त्री शिक्षा के विरोधी थोड़ी देर के लिए भी इस बात को अपने मन में स्थान न दें कि प्राचीन भारत में स्त्रियाँ अनपढ़ होती थीं अथवा उनको पढ़ने की आज्ञा समाज से प्राप्त नहीं थी। इस बात को भुलाकर अब स्त्रियों को पढ़ने देना चाहिए।
विशेष-

  1. भाषा संस्कृतनिष्ठ, सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
  2. शैली विचारात्मक तथा उपदेशात्मक है।
  3. स्त्री शिक्षा पर बल दिया गया है।
  4. पुरानी बातों को भुलाने का आग्रह भी किया गया है।

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अथवा
प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के अमर शहीद’ एकांकी से उद्धृत है। इसके लेखक लक्ष्मीनारायण रंगा हैं। जेलर सागरमल को स्वतंत्रता के लक्ष्य से हटाने के लिए उसकी भावनाओं को प्रभावित करता है। वह उसको परिवार के प्रति उसके कर्तव्य याद दिलाता है। वह उसके सामने उसके पिता, माता, भाई तथा पत्नी के कष्टों का वर्णन करता है।
व्याख्या-
अपने परिवार के बारे में सुनकर सागरमल को थोड़ा दुःख होता है। वह जेलर से कहता है कि वह अपने परिवार के बारे में भी सोचता है। परिवार वालों के कष्टों के बारे में जानकर वह दुःखी भी होता है। परन्तु वह देश की परतंत्र दुःखी जनता को भी देखता है। वह परिवार वालों की पुकार एक कान से सुनता है तो दूसरे से देश की जनता की पीड़ा भरी पुकार उसे सुनाई देती है। एक आँख से परिवार के कष्ट तो दूसरी से जनता के कष्ट दिखाई देते हैं। मातृभूमि माँ की माँ होने तथा देश पिता का पिता होने के कारण उसके माता-पिता से बड़े हैं। उसके देश के निवासी उसके लिए परिवार के लोगों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह छोटे उद्देश्य को छोड़ सकता है। देश तथा मातृभूमि के लिए वह परिवार की उपेक्षा कर सकता है। भारत माता को स्वतंत्र कराने तथा सुखी बनाने के लिए, उसके मुख पर मुस्कान लाने के लिए वह अपने परिवार वालों के कष्टों की अनदेखी कर सकता है, उनका दु:ख सहन कर सकता है।
विशेष-

  1. सागरमल गोपा देश की स्वतंत्रता को परिवार के सुख की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण मानता है।
  2. वह परिवार के सुख को देश के हित में त्यागने को प्रस्तुत है।
  3. भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
  4. शैली ओजपूर्ण है।

उत्तर 17:
‘कन्यादान’ शीर्षक कविता स्त्री की अस्मिता को बतलाती है। इस कविता में स्त्री के परम्परागत आदर्श रूप से हटकर यथार्थ रूप का बोध कराया गया है। स्त्री पर आदर्श की परत चढ़ा दी जाती है। बेटी को अंतिम पूँजी बताया गया है क्योंकि वह माँ के सबसे अधिक निकट होती हैं। कविता में कोरी भावुकता नहीं है, बल्कि इसमें माँ के संचित अनुभवों का सारांश है। कविता स्त्री को उसकी वास्तविकता से अवगत कराती है। स्त्री की कमजोरियों को भी यह कविता व्यक्त करती है। उसे वस्त्र, आभूषण तथा रूप-सौंदर्य के मोह से बचने की चेतावनी देती है। यह कविता स्त्री को अपनी निरीहता को, निर्बलता को उतारे फेंकने की प्रेरणा देती है। लड़की को लड़की जैसी दिखाई न देने का संदेश देती है।

अत: हमारी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना उचित नहीं है। कन्या दाने की वस्तु बिल्कुल भी नहीं है। उसे किसी को दान नहीं दिया जा सकता। कन्या का अपना अलग व्यक्तित्व होता है। यह सोचना कि कन्या एक तुच्छ वस्तु है और त्याज्य है इसलिये उसे दाने करना नैतिक और व्यावहारिक दोनों ही दृष्टियों से अनुचित कहा जा सकता है।

अथवा
कवि देव ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य वर्णन में सामंती वैभव को दिखलाया है। कवि बताता है कि श्रीकृष्ण के पैरों में पायजेब हैं और वे मधुर ध्वनि में बज रही हैं। उनकी कमर में तगड़ी बँधी है। जिसकी धुन भी बड़ी मधुर है। श्रीकृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र शोभायमान हो रहे हैं। उनके गले में बनमाल शोभित हो रही है। श्रीकृष्ण के माथे पर मुकुट है और नेत्र बड़े और चंचल हैं। श्रीकृष्ण के मुख रूपी चंद्र पर मुस्कराहट चाँदनी के समान बिखरी रहती है। इस संसार रूपी मंदिर में वे दीपक के समान सुंदर प्रतीत होते हैं। वे ब्रज के दूल्हे हैं और देव की सहायता करने वाले हैं। इसमें कवि देव ने श्रीकृष्ण के रूपसौंदर्य का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया है।

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उत्तर 18:
‘गौरा’ शीर्षक संस्मरण में महादेवी वर्मा ने अपनी पालतू गाय गौरा का भव्य चित्रांकन किया है। इसमें उसके सुन्दर शरीर के साथ उसके मिलनसार स्वभाव का भी वर्णन है। इसको अन्त में लेखिका ने लिखा है ”यदि दीर्घ नि:श्वास का शब्दों में अनुवाद हो सके, तो उसकी प्रतिध्वनि कहेगी, आह ! मेरा गोपालक देश !”

यहाँ ‘आह ! मेरा गोपालक देश !’ में गौरा की निर्मम तथा करुणाजनक मृत्यु पर महादेवी की गहरी वेदना को शब्द मिले हैं। भारत में गाय की पूजा होती है। उसको गौ माता कहते हैं। उसको एक निर्मम, दुष्ट ग्वाला (गोपालक) स्वार्थ और ईर्ष्यावश सुई खिलाकर मार डालता है। गौरा इस असाध्य रोग की पीड़ा सहकर मरती है। एक प्रियदर्शिनी, पयस्विनी, सुन्दर वत्स की माती, मिलनसार गाय गौरा का करुण अन्त भारतीयों की गोपालन तथा गौसेवा की भावना पर सन्देह पैदा करता है। तुच्छ आर्थिक लाभ के लिए उसकी हत्या समाज में व्याप्त स्वार्थपरता और ईष्र्या को ही सिद्ध करती है। लेखिका की कलम से निकले इन शब्दों में भारतीय समाज के दोगलेपन पर व्यंग्य का प्रबल प्रहार हुआ है।

अथवा
‘ई तू न गयी मेरे मन से’ रामधारी सिंह दिनकर द्वारा मानव मनोविकार के सम्बन्ध में लिखा हुआ निबन्ध है। इस निबन्ध में लेखक ने मनुष्य के मन के ईर्ष्या नामक विकार पर विचार किया है। ईर्ष्या मनुष्य के मन की स्वाभाविक कमजोरी है। ईर्ष्या से जुड़ी हुई कुछ अन्य कमजोरियाँ निन्दा, द्वेष आदि हैं। ईर्ष्यालु मनुष्य अपने पास उपलब्ध संसाधनों से सुख न पाकर दूसरों के संसाधनों को पाने की लालसा में पड़ा रहता है। उनको न पाकर वह दूसरों से जलता है। वह उनसे द्वेष मानती है तथा उनकी निन्दा करता है। ईर्ष्या के कारण ही निन्दा की आदत उत्पन्न होती है।

दिनकर ने मनुष्य के मन की ईष्र्या, द्वेष, निन्दा आदि कमजोरियों को सफल विवेचन इस निबन्ध में किया है। इसका भाव पक्ष अत्यन्त प्रभावशाली तथा सशक्त है। इन मनोविकारों के मानव मन से उत्पन्न होने के कारण, उनके लक्षणों और परिणाम आदि का मनोवैज्ञानिक विवेचन सफलतापूर्वक इस निबंध में हुआ है।

ईर्ष्या के कारण ही निन्दा उत्पन्न होती है। निन्दा को ईर्ष्या की बेटी कहा जाता है। जब मनुष्य के मन में ईर्ष्या का उदय होता है, तो उसके बाद ही निन्दा भी उत्पन्न होती है। ईष्र्यालु मनुष्य निन्दक भी होता है। वह दूसरों को जब साधनसम्पन्न देखता है, तो सोचता है कि यह साधनसम्पन्नता उसके पास क्यों नहीं है ? इस कारण वह उनसे जलता है और उनकी बुराई करता है। बुराई करना ही निन्दा है। इससे स्पष्ट है। कि पहले ईर्ष्या उत्पन्न होती है तथा ईष्र्या से निन्दा की प्रवृत्ति पैदा होती है।

उत्तर 19:
श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि हे गोरी, तुम कौन हो? कहाँ रहती हो और किसकी बेटी हो? तुम्हें कभी ब्रज में नहीं देखा। तब राधा ने कहा कि मैं अपनी देहरी पर खेलती रहती हूँ। यहाँ पर नहीं आती हूँ। सुना है कि यहाँ नन्द का बेटा दही-मक्खन की चोरी करता रहता है। तब कृष्ण ने कहा कि हम तुम्हारा क्या चोर लेंगे? चलो हम साथ-साथ मिलकर खेलें।

उत्तर 20:
कवि ने हिम्मत के विषय में कहा है कि हे राजिया ! हिम्मत रखने से ही कीमत या आदर-सम्मान होता है, बिना हिम्मत के कोई आदर नहीं करता है। जैसे रद्दी कागज का कोई मूल्य नहीं होता है, उसी प्रकार हिम्मत रहित व्यक्ति का कोई आदर नहीं करता है।

उत्तर 21:
कवि निरालाजी की ”अभी न होगा मेरा अंत” कविता का केन्द्रीय भाव प्रखर आशावाद और जिजीविषा का है। कवि का आशय यह है कि युवावस्था जीवन का पहला पड़ाव है। यह हाथ पर हाथ रखकर बैठने के लिए न होकर निष्ठापूर्वक कर्मपथ पर बढ़ते रहने के लिए है। अतः स्वर्णिम भविष्य की आशा लेकर तथा प्रखर जिजीविषा रखकर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

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उत्तर 22:
“एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न” नामक पाठ में लेखक ने अपने समय के समाज की विकृत दशा का वर्णन किया है। समाज में व्याप्त अंधविश्वास, स्वार्थपरता, शिक्षा क्षेत्र की दुर्दशा, अंग्रेजी शासन की अत्याचारपूर्ण नीति, नश्वर संसार में यशस्वी होने की लालसा आदि वर्णन भारतेन्दुजी ने इस पीठ में किया है। अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से भारतीय किस प्रकार अपने धर्म और संस्कृति से विमुख हो रहे थे। निबन्ध में यह भी बताया गया है।

उत्तर 23:
मुंशी प्रेमचन्द की ‘ईदगाह’ नामक कहानी में हामिद आदि अन्य बालकों को ईद के त्यौहार को लेकर जो प्रसन्नता मिलती है, उसका स्वाभाविक चित्रण किया गया है। मेले में हामिद के साथी बालक अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार खिलौने एवं मिठाइयाँ खरीदते हैं। वे मेले को लेकर, पुलिस, जिन्नात आदि बातों को लेकर खूब चर्चा करते हैं। वे अपने बालपन के कारण जिन्नात पर विश्वास करते हैं और आपस में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ भी रखते हैं, हामिद अपनी दादी की तकलीफ का ध्यान रखकर चिमटा खरीदता है, तो अन्य बालक उसका उपहास उड़ाते हैं और उसे चिढ़ाते हैं। इस तरह पूरी कहानी बच्चों के मनोभावों का सुन्दर चित्रण करती है। इस कहानी में बाल-मनोविज्ञान के आधार पर हामिद नामक बालक को मानवीय संवेदना, विवेकशीलता, दया, सहनशीलता आदि से परिपूर्ण दर्शाते हुए उसके चरित्र को प्रेरणादायी बताया गया है।

उत्तर 24:
दादू ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया कि परनिन्दा न किया करें क्योंकि निन्दा तो वह व्यक्ति करता है, जिसके हृदय में राम
का निवास नहीं है। दादू को बड़ा आश्चर्य होता है कि लोग कैसे निस्संकोच रूप से दूसरे की निन्दा कर देते हैं। दादू इतने शांत स्वभाव के थे कि किसी विवाद में नहीं उलझे। निन्दा-स्तुति को उन्होंने समभाव से ग्रहण किया था।

उत्तर 25:
शिव के धनुष भंग होने पर परशुराम कुपित हुआ।

उत्तर 26:
अनुप्रास अलंकार।

उत्तर 27:
लेखक एक टीले से दूसरे टीले पर इसलिए पहुँचना चाहता था कि सूर्यास्त का दृश्य विस्तार से दिखाई देगा और उस ओर पहुँच कर पश्चिमी क्षितिज का खुला विस्तार अवश्य दिखाई देगा जिसको देखकर हृदय आनन्द से पूरित हो जायेगा।

उत्तर 28:
संत पीपा ने बताया है कि गुरु रामानन्द के शिष्य बनने से पहले वे लोहे के समान थे। स्वामी रामानन्द ने उनको सोने में बदल दिया। उनके पैरों की धूल प्राप्त होते ही पीपा संसार के माया-मोह के फंदे से मुक्त हो गया। पीपा के मन में निर्गुण भक्ति के माध्यम से आत्मज्ञान पैदा करने का श्रेय उनके गुरु रामानन्द को ही है।

RBSE Class 10 Hindi Model Paper 1

उत्तर 29:
1.मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व-हिन्दी जगत में कलम के सिपाही के नाम से मशहूर मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी जिले के
लमही ग्राम में हुआ था। उनका मूल नाम धनपतराय था। सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन लेखन कार्य के प्रति समर्पित कर दिया। प्रेमचंद उर्दू में नवाबराय के नाम से लेखन कार्य करते थे। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट् कहकर सम्बोधित किया था।

प्रेमचंद ने अपने साहित्य में किसानों, दलितों, नारियों की वेदना और वर्ण-व्यवस्था की कुरीतियों का मार्मिक चित्रण किया है। उन्होंने समाज-सुधार और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक उपन्यासों एवं कहानियों की रचना की। कथा-संगठन, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन आदि की दृष्टि से उनकी रचनाएँ बेजोड़ हैं। उनकी भाषा सजीव, मुहावरेदार और बोलचाल के निकट है। हिन्दी भाषा को लोकप्रिय बनाने में उनका विशेष योगदान है।

प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह ‘सोजे-वतन’ नाम से आया जो 1908 में प्रकाशित हुआ।‘सोजे वतन’ यानी देश का दर्द। देशभक्ति से ओत-प्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेजी सरकार ने रोक लगा दी और लेखक को भी भविष्य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर लिखना पड़ा। मरणोपरान्त उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुईं।

कृतित्व
RBSE Class 10 Hindi Board Paper 1 1

2. तुलसीदास का परिचय-तुलसीदास का जन्म उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में संवत् 1589 के लगभग माना जाता है। इनके पिता का नाम आत्माराम था जो एक सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि तुलसीदास अभुक्त मूल नक्षत्र में पैदा हुए थे तथा जन्म लेते ही इनकी अवस्था पाँच वर्ष के बालक के समान थी। मुँह में दाँत भी निकले हुए थे। भय की आशंका के चलते माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया तथा मुनिया नामक दासी को दे दिया, जिसने इनका पालन-पोषण किया। इनको बाल्यकाल कष्टपूर्ण बीता।

इनके गुरु का नाम नरहरिदास बताया जाता है। इनकी पत्नी रत्नावली विदुषी थी किन्तु किसी कारणवश वैवाहिक जीवन अधिक समय तक न चल सका। इन्होंने गृह त्याग कर दिया तथा घूमते-घूमते अयोध्या पहुँच गए। वहीं पर संवत् 1631 में इन्होंने ‘रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। बाद में ये काशी आकर रहने लगे। जीवन के अंतिम दिनों में पीड़ा शांति के लिए इन्होंने हनुमान की स्तुति की जो ‘हनुमान बाहुक’ नाम से प्रसिद्ध है।

तुलसी आदर्शवादी कवि थे। इन्होंने आदर्श चरित्रों का सृजन कर हमें अपने दैनिक जीवन में उनके अनुकरण का संदेश दिया है। ये अवधी और ब्रज भाषा दोनों के पंडित थे। दोनों भाषाओं का शुद्ध और परिमार्जित रूप इन्होंने अपनाया।

इन्होंने राम के अनन्य भक्त के रूप में दास्य भाव अपनाते हुए अनेक काव्यग्रन्थों की रचना की, जिनमें से निम्नलिखित प्राप्त हैंरामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, गीतावली,कवितावली, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण, जानकीमंगल, पार्वतीमंगल, रामलला नहछु, वैराग्य । संदीपनी तथा श्रीकृष्ण गीतावली।

उत्तर 30:
सड़क पर वाहन चलाते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए

  1. वाहन चलाते समय हेलमेट या सीट बेल्ट लगानी चाहिए।
  2. वाहन की गति सीमा 40 से 50 रखनी चाहिए।
  3. वाहन चलाते समय यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए।
  4. वाहन चलाते समय मोबाइल या संगीत के उपकरणों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  5. वाहन चलाते समय शराब, भाँग, अफीम आदि नशीले व मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  6. वाहन चलाते समय पेट्रोल, डीजल, लाइट व टायरों की हवा की अच्छी तरह जाँच कर लेनी चाहिए।
  7. वाहन चलाते समय हमारे पास अपना लाइसेंस एवं गाड़ी के प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण-पत्र, रजिस्ट्रेशन तथा बीमा के कागजात होने चाहिए।

सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को देखकर उसकी सहायता बड़ी तत्परता से करेंगे। हम घायल व्यक्ति को किसी वाहन की सहायता से या एम्बुलेंस की सहायता से अस्पताल पहुँचायेंगे। साथ ही पुलिस को तथा घायल व्यक्ति के परिजनों को सूचित करेंगे। डॉक्टरों से दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति का तुरन्त इलाज कराने का आग्रह करेंगे। हम अपनी ओर से भी प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराने का पूरा प्रयास करेंगे।

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