These comprehensive RBSE Class 10 Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 10 Science Chapter 10 Notes प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन
→ प्रकाश सरल रेखाओं में गमन करता प्रतीत होता है। प्रकाश के इस सरल रेखीय पथ को प्रकाश किरण कहतें हैं।
→ प्रकाश का विवर्तन-यदि प्रकाश के पथ में रखी अपारदर्शी वस्तु अत्यन्त छोटी हो तो प्रकाश सरल रेखा में चलने के बजाय इसके किनारों पर मुड़ने की प्रवृत्ति दर्शाता है-इस प्रभाव को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं।
→ विवर्तन जैसी परिघटनाओं की व्याख्या करने के लिए प्रकाश को तरंग के रूप में माना जाता है तो प्रकाश की द्रव्य के साथ अन्योन्य क्रिया के विवेचन में प्रकाश को कण रूप में माना जाता है।
→ प्रकाश के आधुनिक क्वांटम सिद्धान्त में प्रकाश को न तो ‘तरंग’ माना गया न ही ‘कण’। इस सिद्धान्त ने प्रकाश के कण संबंधी गुणों तथा तरंग प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित किया।
→ दर्पण तथा लेंस वस्तुओं के प्रतिबिंब बनाते हैं। बिंब की स्थिति के अनुसार प्रतिबिंब वास्तविक अथवा आभासी हो सकते हैं ।
→ सभी प्रकार के परावर्ती पृष्ठ परावर्तन के नियमों का पालन करते हैं। अपवर्ती पृष्ठ अपवर्तन के नियमों का पालन करते हैं।
→ प्रकाश का परावर्तन-जब कोई प्रकाश की किरण एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम की सतह से टकराकर वापस उसी माध्यम में लौट आती है तो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।
→ परावर्तन के नियम –
- आपतित किरण, परावर्तित किरण एवं दर्पण के आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं।
- आपतन कोण व परावर्तन कोण बराबर होते हैं। ∠i = ∠r
- परावर्तित किरण की आवृत्ति एवं चाल अपरिवर्तित रहती है।
→ जब किसी काँच की पट्टिका की किसी एक सतह पर परावर्तक पदार्थ की पॉलिश कर दी जाती है तो दर्पण बन जाता है। यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है
(i) समतल दर्पण-समतल दर्पण से प्राप्त प्रतिबिम्ब सदैव आभासी व सीधा होता है और दर्पण से वस्तु जितनी आगे होगी, प्रतिबिम्ब दर्पण से उतनी ही दूरी पर पीछे बनेगा और वस्तु के आकार के बराबर ही होगा।
दर्पण-ऐसे दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ गोलीय है, गोलीय दर्पण कहलाते हैं। गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं
(अ) अवतल दर्पण (ब) उत्तल दर्पण।
अवतल दर्पण-वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर अर्थात् गोले के केन्द्र की ओर वक्रित है, अवतल दर्पण कहलाता है।
उत्तल दर्पण-वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित है, उत्तल दर्पण कहलाता है।
→ दर्पण का ध्रुव-गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केन्द्र को दर्पण का ध्रुव कहते हैं। यह दर्पण के पृष्ठ पर स्थित होता है, इसे प्रायः P अक्षर से निरूपित करते हैं।
→ वक्रता केन्द्र और वक्रता त्रिज्या-गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ एक गोले का भाग है। इस गोले का केन्द्र गोलीय दर्पण का वक्रता केन्द्र कहलाता है। यह अक्षर C से निरूपित किया जाता है। इसकी त्रिज्या दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहलाती है। इसे अक्षर R से निरूपित करते हैं। ध्रुव (P) व वक्रता केन्द्र (C) की दूरी वक्रता त्रिज्या के बराबर होती है।
→ मुख्य अक्ष-गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा वक्रता त्रिज्या से गुजरने वाली एक सीधी काल्पनिक रेखा को दर्पण का मुख्य अक्ष कहते हैं।
→ मुख्य फोकस-मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिन्दु है, जहाँ पर मुख्य अक्ष के समानान्तर चलने वाला किरण पुंज दर्पण से परावर्तन के उपरान्त मिलता है या मिलता हुआ प्रतीत होता है, उसे मुख्य फोकस कहते हैं। इसे F के द्वारा निरूपित किया जाता है।
→ फोकस दूरी-गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच की दूरी फोकस दूरी कहलाती है। इसे अक्षर f द्वारा निरूपित करते हैं। छोटे द्वारक के गोलीय दर्पणों के लिए वक्रता त्रिज्या फोकस दूरी से दोगुनी होती है, अर्थात्। R = 2f
→ द्वारक (aperture)-गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ की वृत्ताकार सीमारेखा का व्यास, दर्पण का द्वारक कहलाता है।
→ अवतल दर्पण में बिम्ब की भिन्न-भिन्न स्थितियों के लिये प्रतिबिम्ब की स्थिति, उसकी प्रकृति तथा आमाप को निम्न सारणी में दिया गया है –
→ अवतल दर्पणों का उपयोग-इनका उपयोग सामान्यतः टॉर्च, सर्च लाइट तथा वाहनों के अग्र दीपों lights) में प्रकाश का शक्तिशाली समान्तर किरण पुंज प्राप्त करने के लिये किया जाता है।
→ उत्तल दर्पण में बने प्रतिबिम्ब की स्थिति
→ उत्तल दर्पणों का उपयोग-उत्तल दर्पणों का उपयोग सामान्यतः वाहनों के पश्च-दृश्य (wing) दर्पणों के रूप में किया जाता है।
→ गोलीय दर्पणों द्वारा परावर्तन के लिये चिन्ह परिपाटी-गोलीय दर्पणों द्वारा प्रकाश के परावर्तन पर विचार करते समय हम एक निश्चित चिन्ह परिपाटी लेते हैं जिसे हम नयी कार्तीय चिन्ह परिपाटी कहते हैं। इस परिपाटी में दर्पण के ध्रुव P को मूलबिन्दु मानते हैं और दर्पण के मुख्य अक्ष को निर्देशांक पद्धति का x-अक्ष (XX’) लिया जाता है।
→ दर्पण सूत्र –
- बिंब दूरी (u) = गोलीय दर्पण में ध्रुव से बिंब की दूरी
- प्रतिबिंब दूरी (ν) = दर्पण के ध्रुव से प्रतिबिंब की दूरी
- फोकस दूरी (f) = ध्रुव से मुख्य फोकस की दूरी
→ आवर्धन-गोलीय दर्पण द्वारा उत्पन्न आवर्धन
आवर्धन के मान में ऋणात्मक चिन्ह से ज्ञात होता है कि प्रतिबिम्ब वास्तविक है और धनात्मक चिन्ह बताता है कि प्रतिबिम्ब आभासी है। आवर्धन का बिंब दूरी (u) तथा प्रतिबिंब दूरी (ν) से सम्बन्ध –
आवर्धन (m) = \(\frac{h^{\prime}}{h}=-\frac{v}{u}\)
→ अपवर्तन-जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो दोनों माध्यमों के सीमा पृष्ठ पर वह अपनी दिशा से विचलित हो जाती है। इस विचलन को अपवर्तन कहते हैं।
→ अपवर्तन के नियम-प्रकाश का अपवर्तन निश्चित नियमों के आधार पर होता है।
(i) आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा दोनों माध्यमों को पृथक करने वाले पृष्ठ के आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब सभी एक ही तल में होते हैं।
(ii) “प्रकाश के किसी निश्चित रंग तथा निश्चित माध्यमों के युग्म के लिए आपतन कोण की ज्या (sine) तथा अपरिवर्तन की ज्या (sine) का अनुपात स्थिर होता है।” इसे स्नेल का अपवर्तन का नियम भी कहते हैं। यदि आपतन कोण i और अपवर्तन कोण r हो तब
\(\frac{\sin i}{\sin r}\) = स्थिरांक
इस स्थिरांक के मान को दूसरे माध्यम का पहले माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक (refractive index) कहते हैं।
→ निरपेक्ष या परम अपवर्तनांक (Absolute Refractive Index)-जब किसी माध्यम का अपवर्तनांक निर्वात. के सापेक्ष ज्ञात किया जाता है तो इसे निरपेक्ष या परम अपवर्तनांक कहते हैं।
→ विरल माध्यम में प्रकाश की चाल सघन माध्यम की अपेक्षा अधिक होती है। अतः विरल माध्यम से सघन माध्यम में गमन करने वाली प्रकाश की किरण धीमी हो जाती है तथा अभिलंब की ओर झुक जाती है। जब ये सघन माध्यम से विरल माध्यम में गमन करती है तो इसकी चाल बढ़ जाती है तथा यह अभिलंब से दूर हट जाती है।
→ माध्यम का अपवर्तनांक (Refractive Index of Medium)-प्रकाश का हवा में वेग तथा प्रकाश के किसी माध्यम में वेग के अनुपात को उस माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं। इसका कोई मात्रक (इकाई) नहीं होता है। यदि प्रकाश का वेग हवा में और पानी में V, हो तो हवा के सापेक्ष पानी का अपवर्तनांक
n21 = \(\frac{v_{1}}{v_{2}}\)
अपवर्तनांक का मान माध्यम की प्रकृति, प्रकाश के रंग तथा माध्यम के घनत्व पर निर्भर करता है। कुछ पदार्थों के अपवर्तनांक-निम्न हैं
- बेंजीन = 1.50
- पानी = 1.33
- तारपीन का तेल = 1.47
- हीरा = 2.42
- कार्बन डाइसल्फाइड = 2.64.
→ गोलीय लैंसों द्वारा अपवर्तन
- लैंस-दो पृष्ठों से घिरा हुआ कोई पारदर्शी माध्यम, जिसका एक या दोनों पृष्ठ गोलीय हों, लैंस कहलाता हैं।
- द्विउत्तल लैंस-ऐसा लैंस जिसमें बाहर की ओर उभरे हुये दो गोलीय पृष्ठ हों, ऐसे लैंस को द्विउत्तल लैंस कहते हैं।
- अवतल लैंस ऐसा लैंस जो अंदर की ओर वक्रित दो गोलीय पृष्ठों से घिरा हो, अवतल लैंस कहलाता है।
- उत्तल लैंसों को अभिसारी और अवतल लैंसों को अपसारी लैंस कहते हैं।
→ वक्रता केन्द्र-किसी लैंस में, चाहे वह उत्तल हो अथवा अवतल, दो गोलीय पृष्ठ होते हैं। इनमें से प्रत्येक पृष्ठ एक गोले का भाग होता है। इन गोलों के केन्द्र लैंस के वक्रता केन्द्र कहलाते हैं।
→ मुख्य अक्ष-किसी लैंस के दोनों वक्रता केन्द्रों से गुजरने वाली एक काल्पनिक सीधी रेखा लैंस का मुख्य अक्ष कहलाती है और इसका केन्द्रीय बिन्दु इसका प्रकाशिक केन्द्र कहलाता है।
→ लैंसों द्वारा प्रतिबिम्ब बनना
(i) प्रतिबिम्ब की विभिन्न स्थितियों के लिये उत्तल लैंस द्वारा बनाये गये प्रतिबिम्ब की प्रकृति, स्थिति तथा आपेक्षिक साइज का विवरण नीचे सारणी में दिया गया है –
(ii) प्रतिबिम्ब की विभिन्न स्थितियों के लिये अवतल लैंस द्वारा बने प्रतिबिम्ब की प्रकृति, स्थिति तथा आपेक्षिक साइज को नीचे सारणी में बताया गया है –
→ लैंस सूत्र तथा आवर्धन-यह बिंब की दूरी (u), प्रतिबिम्ब दूरी (ν) तथा फोकस दूरी के बीच संबंध प्रदान करता है। लैंस सूत्र को निम्न से व्यक्त करते हैं
\(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\)→ गोलीय लैंसों के लिए चिन्ह-परिपाटी-इसकी परिपाटी गोलीय दर्पणों जैसी ही होती है। लैंस में सभी माप उनके प्रकाशिक केन्द्र से लिये जाते हैं। परिपाटी के अनुसार उत्तल लैंस की फोकस दूरी धनात्मक होती है जबकि अवतल लैंस की फोकस दूरी ऋणात्मक होती है।
→ आवर्धन-यदि बिंब की ऊँचाई हो तथा लैंस द्वारा बनाये गये प्रतिबिम्ब की ऊँचाई ‘ हो तब लैंस द्वारा उत्पन्न आवर्धन
→ लैंस की क्षमता-किसी लैंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसरण या अपसरण करने की मात्रा को उसकी क्षमता के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसे अक्षर P द्वारा निरूपित करते हैं। किसी । फोकस दरी के लैंस की क्षमता
P = \(\frac{1}{f}\)
लैंस की क्षमता का SI मात्रक डाइऑप्टर है। इसे अक्षर D द्वारा दर्शाया जाता है।
→ परस्पर संपर्क में रखे लैंसों की कुल क्षमता (P) उन लेंसों की पृथक-पृथक क्षमताओं (P1, P2, P3………. आदि) का, बीजगणितीय योग होती है।
P = P1 + P2 + P3 + ……….
→ 1 डाइऑप्टर लैंस की क्षमता – 1 डाइऑप्टर उस लैंस की क्षमता है जिसकी फोकस दूरी 1 मीटर हो, ID = 1 m-1 अर्थात उत्तल लैंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लैंस की क्षमता ऋणात्मक होती है।
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