These comprehensive RBSE Class 10 Science Notes Chapter 12 विद्युत will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 10 Science Chapter 12 Notes विद्युत
→ विद्युत धारा-किसी परिपथ में विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। यदि किसी परिपथ में t समय में Q आवेश प्रवाहित हो, तो परिपथ में विद्युत धारा
I = \(\frac{\mathrm{Q}}{t}\)
विद्युत आवेश का SI मात्रक कूलॉम होता है, जिसका मान लगभग 6 × 1018 इलेक्ट्रॉनों में समाए आवेश के बराबर होता है।
विद्युत धारा का मात्रक ऐम्पियर (A) होता है।
यदि किसी परिपथ में 1 कूलॉम आवेश प्रति सेकण्ड प्रवाहित हो रहा है तो प्रवाहित धारा का मान 1 ऐम्पियर होगा। किसी चालक में गतिशील इलेक्ट्रॉनों की धारा विद्युत धारा की रचना करती है। परिपाटी के अनुसार किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों जो ऋणावेश हैं, के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।
→ विद्युत परिपथ-विद्युत परिपथ एक बन्द संवहन पथ (Conducting Path) है जिसमें एक विभवान्तर स्रोत अथवा विद्युत ऊर्जा (अर्थात् सेल अथवा बैट्री) तथा एक विद्युत ऊर्जा को व्यय करने वाला उपकरण होता है।
→ विद्युत परिपथ में उपयोगी उपकरण (i) सेल (ii) धारा नियंत्रक (iii) कुंजी-स्विच (iv) ऐमीटर (v) वोल्ट मीटर।
→ परिपथों की विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग करते हैं उसे ऐमीटर कहते हैं।
→ किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों को गति प्रदान करने के लिए किसी सेल अथवा बैटरी का उपयोग करते हैं।
→ विद्युत विभव-एकांक धन आवेश को अनन्त से विद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में किये गये कार्य को उस बिन्दु पर विद्युत विभव कहते हैं।
→ विभवान्तर-विद्युत क्षेत्र में किसी एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक एकांक धन आवेश को बिना त्वरित किये ले जाने में जितना कार्य करना पड़ता है, वह उन दो बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर है।
विद्युत विभवान्तर का SI मात्रक वोल्ट (V) है।
→ वोल्टमीटर-विभवान्तर की माप एक यंत्र द्वारा की जाती है, जिसे वोल्टमीटर कहते हैं। वोल्टमीटर को सदैव उन बिन्दुओं से पार्श्व क्रम में संयोजित करते हैं, जिनके बीच विभवान्तर मापना होता है।
→ प्रतिरोध एक ऐसा गुणधर्म है जो किसी चालक में इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह का विरोध करता है। यह विद्युत धारा के परिणाम को नियंत्रित करता है। प्रतिरोध का SI मात्रक ओम (Ω) है।
→ ओम का नियम-किसी चालक की भौतिक अवस्थाएँ स्थिर रहें तो चालक के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर उसमें प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है। V = IR, जहाँ R स्थिरांक है, जिसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं| R = V/I
यदि किसी चालक में 1 ऐम्पियर धारा प्रवाहित करने पर उसके सिरों के मध्य विभवान्तर 1 वोल्ट हो जाये तो उस चालक का प्रतिरोध 1 ओम होता है। अर्थात् 1 ओम = 1 वोल्ट/1 ऐम्पियर।
वोल्ट-यदि 1 ओम प्रतिरोध वाले चालक तार में 1 ऐम्पियर धारा प्रवाहित की जाये तो उसके सिरों पर विभवान्तर 1 वोल्ट होगा।
→ स्रोत की वोल्टता में बिना कोई परिवर्तन किए परिपथ की विद्युत धारा को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अवयव को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं।
→ किसी विद्युत परिपथ में परिपथ के प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए जिस युक्ति का उपयोग करते हैं उसे धारा नियंत्रक कहते हैं।
→ किसी धातु के एक समान चालक का प्रतिरोध उसकी लंबाई (1) के अनुक्रमानुपाती तथा उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
जहाँ ρ (रो) एक स्थिरांक है जिसे चालक के पदार्थ की वैद्युत प्रतिरोधकता कहते हैं।
विशिष्ट प्रतिरोध या प्रतिरोधकता-एक मीटर लम्बे और एक वर्ग मीटर अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले चालक तार के प्रतिरोध को उस पदार्थ की प्रतिरोधकता या विशिष्ट प्रतिरोध कहते हैं। इसका मात्रक ओम × मीटर होता है। प्रतिरोधकता केवल पदार्थ की प्रकृति पर ही निर्भर रहती है।
चालक का प्रतिरोध उसके पदार्थ पर निर्भर करता है।
→ किसी पदार्थ का प्रतिरोध तथा प्रतिरोधकता दोनों ही ताप में परिवर्तन के साथ परिवर्तित हो जाते हैं।
→ श्रेणी क्रम में तुल्य प्रतिरोध
श्रेणीक्रम में संयोजित बहुत से प्रतिरोधकों का तुल्य प्रतिरोध उनके व्यष्टिगत प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
Rs = R1 + R2 + R3 यदि प्रतिरोध तार तीन से अधिक हों तो तुल्य प्रतिरोध
Rs = R1 + R2 + R3 + …….. + Rn
→ समान्तर क्रम में तुल्य प्रतिरोध
पार्श्वक्रम (समानान्तर क्रम) से संयोजित प्रतिरोधों के समूह के तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम पृथक प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बरबार होता है।
→ विद्युत धारा का तापीय प्रभाव-जब हम किसी विद्युत पंखे को निरन्तर काफी समय तक चलाते हैं तो वह गर्म हो जाता है। इसके विपरीत यदि विद्युत परिपथ विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक है अर्थात् बैटरी से केवल प्रतिरोधकों का एक समूह ही संयोजित है तो स्रोत की ऊर्जा निरन्तर पूर्ण रूप से ऊष्मा के रूप में क्षयित होती रहती है। इसे विद्युत धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं।
किसी स्थायी विद्युत धारा I द्वारा समय t में उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा
H = VIt
→ जूल का तापन नियम-किसी प्रतिरोधक में उत्पन्न होने वाली ऊष्मा (i) दिये गये प्रतिरोधक में प्रवाहित होने वाली विद्युतधारा के वर्ग के अनुक्रमानुपाती (ii) दी गई विद्युत धारा के लिए प्रतिरोध के अनुक्रमानुपाती तथा (iii) उस समय के अनुक्रमानुपाती होती है जिसके लिए दिए गए प्रतिरोध से विद्युत धारा प्रवाहित होती है। अतः
H = I2Rt जूल
→ विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के व्यावहारिक अनुप्रयोग-विद्युत हीटर, विद्युत प्रेस तथा वाटर हीटर विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित उपकरण हैं।
→ विद्युत ऊर्जा-किसी विद्युत स्रोत के द्वारा किसी विद्युत परिपथ में धारा को बनाये रखने में किया गया कार्य | . विद्युत ऊर्जा कहलाता है।
विद्युत ऊर्जा E = VIt
→ विद्युत शक्ति-प्रति इकाई समय में व्यय की गई विद्युत ऊर्जा की मात्रा को विद्युत शक्ति कहते हैं।
अतः विद्युत शक्ति परिपथ पर आरोपित विभवान्तर तथा परिपथ में से होकर प्रवाहित विद्युत धारा के गुणनफल के बराबर होती है।
→ विद्युत शक्ति के अन्य रूप –
P = VI
P = IR × I = I2R = \(\frac{\mathrm{V}^{2}}{\mathrm{R}}\)
विद्युत शक्ति का SI मात्रक ‘वाट’ (W) है। जब 1A विद्युत धारा 1V विभवांतर पर प्रवाहित होती है तो परिपथ में उपयुक्त शक्ति 1 वाट होती है।
→ विद्युत ऊर्जा का व्यापारिक मात्रक किलोवाट घण्टा (KWh) है।
1KWh = 3,600000 J = 3.6 × 106J
→ 1 किलोवाट-घंटा का अर्थ है 1000 वाट का एक विद्युत उपकरण (जैसे हीटर) जब एक घण्टा तक जले, तब वह एक इकाई (Unit) बिजली व्यय करेगा।
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