These comprehensive RBSE Class 10 Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 10 Science Chapter 3 Notes धातु एवं अधातु
→ तत्वों को उनके गुणधर्मों के आधार पर धातु एवं अधातु में वगीकृत किया जाता है।
→ धातुएँ तन्य, आघातवर्धनीय, चमकीली एवं ऊष्मा तथा विद्युत की सुचालक होती हैं तथा धातुएँ ध्वानिक (सोनोरस) होती हैं।
→ पारद (मर्करी) के अलावा सभी धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में होती हैं लेकिन पारद कमरे के ताप पर द्रव होता है।
→ धातुएँ सामान्यतः कठोर होती हैं लेकिन सोडियम, पोटेशियम आदि धातुएँ मुलायम होती हैं।
→ धात्विक चमक-धातु की सतह अपने शुद्ध रूप में चमकदार होती है। धातु के इस गुणधर्म को धात्विक चमक कहते हैं।
→ आघातवर्धनीयता धातुओं को पीटकर पतली चादर के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इस गुणधर्म को आघातवर्धनीयता कहते हैं।
→ तन्यता-धातुओं को पतले तार के रूप में खींचने की क्षमता को तन्यता कहते हैं।
→ सोना तथा चाँदी की आघातवर्धनीयता सबसे अधिक होती है तथा सोना सबसे अधिक तन्य धातु है।
→ सिल्वर तथा कॉपर ऊष्मा के सबसे अच्छे चालक हैं जबकि लेड तथा मर्करी ऊष्मा के कुचालक हैं।
→ धातुएँ विद्युत धनात्मक तत्व होते हैं क्योंकि यह अधातुओं को इलेक्ट्रॉन देकर स्वयं धनायन बनाती हैं।
→ क्षारीय धातुएँ जैसे-पोटैशियम, सोडियम, लीथियम इतनी मुलायम होती हैं कि इनको चाकू से भी काटा जा सकता है।
→ अधातुओं के गुण धातुओं के विपरीत होते हैं। ये न तो आघातवर्धनीय होती हैं, और न ही तन्य।
→ ग्रेफाइट के अलावा सभी अधातुएँ ऊष्मा एवं विद्युत की कुचालक होती हैं। ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक होता है।
→ अधातुएँ विद्युत ऋणात्मक तत्व होती हैं क्योंकि ये धातुओं के साथ अभिक्रिया में इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके ऋणायन बनाती हैं।
→ धातुओं की तुलना में अधातुओं की संख्या कम होती है।
→ अधातुएँ सामान्यतः ठोस या गैस होती हैं जबकि ब्रोमीन ऐसी अधातु है जो द्रव है।
→ धातुओं के गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं लेकिन गैलियम तथा सीजियम के गलनांक बहुत कम होते हैं।
→ आयोडीन अधातु होते हुए भी चमकीला होता है।
→ अपररूप-एक ही तत्व के भिन्न-भिन्न रूप, जिनके गुणों में भिन्नता होती है, उन्हें अपररूप कहते हैं। जैसे-ग्रेफाइट तथा हीरा कार्बन के अपररूप हैं।
→ धातुएँ, ऑक्सीजन से क्रिया करके ऑक्साइड बनाती हैं जो कि क्षारकीय होती हैं परन्तु ऐलुमिनियम ऑक्साइड (Al2O3), जिंक ऑक्साइड (ZnO) जैसे कुछ धातु ऑक्साइड उभयधर्मी होते हैं अर्थात् इनमें अम्लीय तथा क्षारकीय दोनों गुणधर्म होते हैं।
→ अधिकांश धातुएँ ऑक्साइड जल में अघुलनशील हैं लेकिन इनमें से कुछ जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं जैसे-सोडियम ऑक्साइड।
→ अधातुओं के ऑक्साइड अम्लीय या उदासीन होते हैं।
→ सामान्य ताप पर Mg, Al, Zn तथा Pb आदि जैसी धातुओं की सतह पर ऑक्साइड की पतली परत चढ़ जाती है। ऑक्साइड की यह परत धातुओं को पुनः ऑक्सीकरण र सुरक्षित रखती है।
→ ऐलुमिनियम पर मोटी ऑक्साइड की परत बनाने की प्रक्रिया ऐनोडीकरण (Anodizing) कहलाती है।
→ जल एवं तनु अम्लों के साथ विभिन्न धातुओं की क्रियाशीलता भिन्न-भिन्न होती है।
→ सक्रियता श्रेणी-जब धातुओं को क्रियाशीलता के अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तो प्राप्त सूची को सक्रियता श्रेणी कहते हैं।
→ सक्रियता श्रेणी में हाइड्रोजन के ऊपर स्थित धातुएँ तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर सकती हैं।
→ अधातुएँ तनु अम्लों में से हाइड्रोजन का विस्थापन नहीं करती हैं। ये हाइड्रोजन के साथ अभिक्रिया कर हाइड्राइड बनाती हैं।
→ अधिक क्रियाशील धातुएँ अपने से कम क्रियाशील धातुओं को उसके लवण के विलयन से विस्थापित कर सकती हैं।
→ जब धातुएँ नाइट्रिक अम्ल (HNO3) के साथ अभिक्रिया करती हैं तब H2 गैस उत्सर्जित नहीं होती क्योंकि HNO3 एक प्रबल ऑक्सीकारक होता है, जो उत्पन्न H2 को ऑक्सीकृत करके जल बना देता है तथा स्वयं नाइट्रोजन के किसी ऑक्साइड में अपचयित हो जाता है।
→ धातु से अधातु में इलेक्ट्रॉन के स्थानान्तरण से बने यौगिकों को आयनिक यौगिक या वैद्युत संयोजक यौगिक कहते हैं। जैसे – NaCl
→ आयनिक यौगिक ठोस, कठोर तथा भंगुर होते हैं। इनका गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होता है।
→ आयनिक यौगिक जल में घुलनशील लेकिन किरोसिन, पेट्रोल आदि विलायकों में अविलेय होते हैं।
→ आयनिक यौगिक गलित अवस्था तथा विलयन की अवस्था में विद्युत का चालन करते हैं।
→ प्रकृति में धातुएँ स्वतंत्र अवस्था में या अपने यौगिकों के रूप में पाई जाती हैं।
→ खनिज (Mineral) – पृथ्वी की भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं।
→ अयस्क (Ore) – वे खनिज जिनमें कोई विशेष धातु काफी मात्रा में होती है तथा जिनसे धातु का निकालना आसान तथा आर्थिक रूप से लाभकारी होता है, उन्हें अयस्क (ore) कहते हैं।
→ धातुकर्म (Metallurgy) – अयस्क से धातु का निष्कर्षण तथा उसका परिष्करण कर उपयोगी बनाने के प्रक्रम को धातुकर्म कहते हैं।
→ गोल्ड (सोना), सिल्वर (चाँदी), प्लैटिनम तथा कॉपर (ताँबा) स्वतंत्र अवस्था में पाए जाते हैं।
→ पृथ्वी से खनित अयस्कों में मिट्टी, रेत आदि जैसी कई अशुद्धियाँ होती हैं जिन्हें गैंग (gangue) कहते हैं।
→ अयस्क का सान्द्रण – अयस्क से मिट्टी, रेत आदि (गैंग) को हटाना, अयस्क का सान्द्रण कहलाता है।
→ निस्तापन (Calcination) – कार्बोनेट, जलयोजित ऑक्साइड अयस्कों को सीमित वायु में गर्म करने पर ये ऑक्साइडों में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को निस्तापन कहते हैं।
→ भर्जन (Roasting) – सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में बदल जाता है। इस प्रक्रिया को भर्जन कहते हैं।
→ धातुओं के परिष्करण की सबसे अधिक प्रचलित विधि विद्युत अपघटनी परिष्करण विधि है।
→ मिश्र धातु-दो या दो से अधिक धातुओं अथवा एक धातु या एक अधातु के समांगी मिश्रण को मिश्र धातु कहते हैं।
→ संक्षारण (Corrosion) – लम्बे समय तक आर्द्र वायु के सम्पर्क में रखने से लोहा जैसे कुछ धातुओं की सतह संक्षारित हो जाती है। इस प्रक्रिया को संक्षारण कहते हैं।
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