These comprehensive RBSE Class 10 Science Notes Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 10 Science Chapter 5 Notes तत्वों का आवर्त वर्गीकरण
→ आवर्त सारणी में तत्वों को उनके गुणों में समानता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
→ डॉबेराइनर का त्रिक-सन् 1817 में जर्मन रसायनज्ञ, वुल्फगांग डॉबेराइनर ने समान गुणधर्मों वाले तत्वों को समूहों में व्यवस्थित करने का प्रयास किया। उन्होंने तीन-तीन तत्व वाले कुछ समूहों को चुना एवं उन समूहों को त्रिक कहा। उन्होंने बताया कि तत्वों को परमाणु द्रव्यमानों के बढ़ते क्रम में रखने पर बीच वाले तत्व का परमाणु द्रव्यमान, अन्य दो तत्वों का लगभग औसत होता है अतः बीच वाले तत्व के गुण भी अन्य दो के लगभग बीच के होते हैं। जैसे-Li, Na तथा KI
→ न्यूलैंड्स का अष्टक नियम-इन्होंने तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया और पाया कि प्रत्येक आठवें तत्व के गण, पहले तत्व के समान होते हैं जैसे संगीत में आठवाँ स्वर पहले स्वर से मिलता है, इसे ही न्यूलैंड्स का अष्टक नियम कहते हैं।
→ नोबल गैसों की खोज के पश्चात् अष्टक का सिद्धान्त अप्रासंगिक हो गया।
→ मैन्डेलीफ द्वारा तत्वों को उनके मूल गुणधर्म, परमाणु द्रव्यमान तथा रासायनिक गुणधर्मों में समानता के आधार पर व्यवस्थित किया गया।
→ मैन्डेलीफ का आवर्त नियम तत्वों के गुणधर्म, उनके परमाणु द्रव्यमान के आवर्त फलन होने हैं।
→ मैन्डेलीफ द्वारा तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में रखने पर, एक ही वर्ग (समूह) के तत्वों में समानता पाई गई।
→ मैन्डेलीफ ने आवर्त सारणी में बचे रिक्त स्थानों के आधार पर नए तत्वों की भविष्यवाणी की।
→ मैन्डेलीफ ने जब अपना कार्य प्रारम्भ किया उस समय केवल 63 तत्व ही ज्ञात थे। उन्होंने तत्वों के परमाणु द्रव्यमान एवं उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्मों के बीच सम्बन्धों का अध्ययन किया।
→ रासायनिक गुणधर्मों के अन्तर्गत मेन्डेलीफ ने तत्वों के ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन के साथ बनने वाले यौगिकों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया।
→ मैन्डेलीफ की आवर्त सारणी में ऊर्ध्व स्तम्भ को समूह (group) या वर्ग कहा गया तथा क्षैतिज पंक्तियों को आवर्त (Period) कहा गया।
→ मैन्डेलीफ की आवर्त सारणी में हाइड्रोजन की स्थिति निश्चित नहीं है तथा समस्थानिकों के लिए कोई स्थान नहीं है।
→ ख्या के आधार पर तत्वों का वर्गीकरण मोज्ले ने किया था।
→ आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों का वर्गीकरण परमाणु क्रमांक के आधार पर किया गया । इससे मैन्डेलीफ की आवर्त सारणी में उपस्थित काफी विसंगितयाँ दूर हो गईं क्योंकि परमाणु क्रमांक के आधार पर तत्वों के गुणों में समानता को आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।
→ आधुनिक आवर्त नियम-तत्वों के गुणधर्म, उनकी परमाणु संख्या का आवर्त फलन होते हैं।
→ आधुनिक आवर्त सारणी में 18 वर्ग (ऊर्ध्व स्तम्भ) तथा 7 आवर्त (क्षैतिज पंक्तियाँ) हैं।
→ प्रत्येक वर्ग के सभी तत्वों के बाहरी कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है। अतः गुणों में भी समानता होती है क्योंकि तत्वों के रासायनिक गुण इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर निर्भर करते हैं।
→ तत्वों के गुणों में वर्ग तथा आवर्त में आवर्तिता पाई जाती है।
→ आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर यदि परमाणु संख्या में इकाई की वृद्धि होती है तो संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या में भी इकाई वृद्धि होती है।
→ किसी कोश (K, L, M…….) में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या – 2n2 होती है, जहाँ n. नाभिक से नियत कोश की संख्या को दर्शाता है।
→ किसी परमाणु के नाभिक से अन्तिम इलेक्ट्रॉन के बीच की दूरी को परमाणु आकार या परमाणु त्रिज्या कहते हैं।
→ आवर्त सारणी में किसी समूह में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु आकार बढ़ता है क्योंकि नीचे जाने पर नया कोश जुड़ जाता है तथा किसी आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर परमाणु त्रिज्या में कमी होती है क्योंकि नाभिक में आवेश (प्रोटोन) बढ़ने के कारण नाभिकीय आकर्षण बल बढ़ता है।
→ आवर्त सारणी में धातुएँ बाईं ओर तथा अधातुएँ दाईं और स्थित हैं।
→ आधुनिक आवर्त सारणी में एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा धातुओं को अधातुओं से अलग करती है। इस रेखा पर आने वाले तत्व अर्द्धधातु या उपधातु कहलाते हैं।
→ आवर्त में तत्वों का धात्विक गुण कम होता है तथा वर्ग में धात्विक गुण बढ़ता है।
→ उपधातुओं (अर्द्ध धातु) में धातु तथा अधातु दोनों के गुण पाए जाते हैं।
→ धातुओं के ऑक्साइड क्षारकीय तथा अधातुओं के ऑक्साइड सामान्यतः अम्लीय होते हैं।
→ धातुएँ विद्युत धनात्मक होती हैं अर्थात् इनमें इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति होती है।
→ आवर्त में संयोजकता कोश के इलेक्ट्रॉनों पर प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है अतः इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति कम होती है।
→ समूह में नीचे की ओर प्रभावी नाभिकीय आवेश कम होता है अतः इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
→ अधातुएँ विद्युत ऋणात्मक होती हैं अर्थात् इनमें इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है।
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