These comprehensive RBSE Class 10 Science Notes Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 10 Science Chapter 7 Notes नियंत्रण एवं समन्वय
→ हमारे शरीर में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य तंत्रिका तंत्र तथा अन्तःस्रावी तंत्र द्वारा किया जाता है।
→ बहुकोशिकीय जीवों में गति नियन्त्रण एवं समन्वय तंत्रिका तथा पेशी ऊतक द्वारा किया जाता है।
→ तंत्रिका तंत्र हमारी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा सूचना प्राप्त करता है। यह कार्य ज्ञानेन्द्रियों में स्थित तंत्रिका कोशिकाओं के विशिष्टीकृत सिरों या ग्राहियों द्वारा किया जाता है।
→ तंत्रिका ऊतक सूचनाओं को विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक भेजता है।
→ न्यूरोन्स (Neurons) – तंत्रिका तंत्र का निर्माण तंत्रिका कोशिकाओं अथवा न्यूरोन्स द्वारा होता है। यह तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
→ न्यूरोन्स के भाग
- द्रुमिकाएँ (Dendrites) – ये सूचनाएँ उपार्जित करते हैं।
- एक्सॉन (Axon) – जिससे होकर सूचनाएँ विद्युत आवेश की तरह यात्रा करती हैं।
- अंतर्ग्रथन (सिनेप्स) – यहाँ से आवेग का परिवर्तन रासायनिक संकेत में किया जाता है, जिससे यह आगे संचरित हो सके।
→ प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) किसी गर्म वस्तु को छने अथवा सई या कांटा चुभने पर हम तुरन्त अपने हाथ व पैर को हटाते हैं। किसी उद्दीपन के प्रति इस प्रकार की अचानक होने वाली प्रतिक्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं।
→ प्रतिवर्ती क्रिया में भाग लेने वाली आगत तंत्रिका, निर्गत तंत्रिका तथा मेरुरज्जू मिलकर प्रतिवर्ती चाप बनाते हैं।
→ प्रतिवर्ती क्रिया के उदाहरण निम्न हैं
- अचानक तेज आवाज सुनने पर मुँह खुल जाना
- छींकना एवं खाँसना
- ठण्ड से सिकुड़ना
- अच्छे भोजन को देखकर लार का प्रावण
- अचानक तेज रोशनी पर आँखों का सिकुड़ना।
→ मनुष्य में तंत्रिका तंत्र तीन प्रकार का होता है
- केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) – यह तंत्र दो अंगों मस्तिष्क (Brain) व मेरुरज्जु (Spinal Cord) से मिलकर बना होता है। ये शरीर के सभी भागों से सूचनाएँ प्राप्त करते हैं तथा इनका समाकलन करते हैं।
- परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System) – मस्तिष्क से निकलने वाली कपाल तंत्रिकाएँ तथा मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तंत्रिकाएँ (Spinal nerves) मिलकर परिधीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण करती हैं।
- स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomous Nervous System) – शरीर क्रिया अथवा संरचना एवं कार्यिकी की दृष्टि से यह दो भागों में बाँटा गया है- (i) अनुकम्पी तंत्र (Sympathetic Nervous System) (ii) सहानुकम्पी तंत्र (Para sympathetic System)
→ मनुष्य के मस्तिष्क को तीन भागों में विभेदित किया गया है –
- अग्र मस्तिष्क (Fore Brain) – मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग है। इसमें विभिन्न ग्राही से संवेदी आवेग (सूचनाएँ) प्राप्त करने के लिए क्षेत्र होते हैं। अग्रमस्तिष्क के अलग-अलग क्षेत्र सुनने, सूंघने, देखने आदि के लिए विशिष्टीकृत हैं।
- मध्य मस्तिष्क (Mid Brain) – अनेक अनैच्छिक क्रियाएँ नियंत्रित करता है।
- पश्च मस्तिष्क (Hind Brain) – यह ऐच्छिक क्रियाओं की परिशुद्धि तथा शरीर की संस्थिति तथा संतुलन के लिए उत्तरदायी है।
→ तंत्रिकाएँ (Nerves) – कार्य के आधार पर तीन प्रकार की होती हैं
- संवेदी तंत्रिकाएँ (Sensory Nerves) – ऐसी तंत्रिकाएँ जो तंत्रिकीय आवेग को संवेदी अंगों से मस्तिष्क की ओर ले जाती हैं, संवेदी तंत्रिकाएँ कहलाती हैं।
- प्रेरक तंत्रिकाएँ (Motor Nerves) – ऐसी तंत्रिकाएँ जो तंत्रिकीय आवेग को मस्तिष्क से अथवा मेरुरज्जु से अपवाहक अंगों (Effector organs) तक ले जाती हैं, उन्हें चालक या प्रेरक तंत्रिकाएँ कहते हैं।
- मिश्रित तंत्रिकाएँ (Mixed Nerves) – ऐसी तंत्रिकाएँ जो संवेदी व प्रेरक दोनों के समान कार्य करती हैं, मिश्रित तंत्रिकाएँ कहलाती हैं।
→ तंत्रिका आवेग (Nerve Impulse) – उददीपन के कारण तंत्रिका कोशिकाओं का उत्तेजित होना तंत्रिका आवेग कहलाता है।
→ मस्तिष्क हड्डियों के एक बॉक्स में अवस्थित होता है। बॉक्स के अन्दर रित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक उपलब्ध कराता है। इसी प्रकार मेरुदण्ड मेरुरज्जु की सुरक्षा करता है।
→ पादप दो भिन्न प्रकार की गतियाँ दर्शाते हैं (i) वृद्धि पर आश्रित गति (ii) वृद्धि से मुक्त गति।
→ पादप कोशिकाएँ जल की मात्रा में परिवर्तन करके अपनी आकृति बदल लेती हैं, परिणामस्वरूप फूलने या सिकुड़ने में उनका आकार बदल जाता है।
→ कंपानुकुंचनी गति-बलकृत उत्तेजना से यह गति होती है। माइमोसा प्यूडिका (छुई-मुई) के पर्ण वृन्त फूले हुए होते हैं, जिसे पर्णवृन्त तल्प कहते हैं। इनमें प्रेरक कोशिकाओं पर दाब पड़ते ही जल निकल जाने से, कोशिकाओं की स्फीत अवस्था समाप्त हो जाने से, श्लथ हो जाने से पत्तियाँ झुक जाती हैं। दाब हटने पर कुछ समय बाद यह वापस मूल अवस्था में आ जाती हैं।
→ प्रकाश अनुवर्तन गति (Phototropism) – प्रकाश के प्रभाव से पादप अंग गति करते हैं। तना प्रकाश की ओर गति करता है अतः धनात्मक प्रकाश अनुवर्तक होता है। जड़ें प्रकाश से दूर की ओर गति करती हैं। अतः ऋणात्मक प्रकाश अनुवर्तक होती हैं।
→ गुरुत्वानुवर्तन गति (Geotropism) – तना सदैव गुरुत्वाकर्षण से दूर अर्थात् ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्ती होता है जबकि जड़ें सदैव गुरुत्वाकर्षण बल की ओर वृद्धि करती हैं अतः धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती होती हैं।
→ जलानुवर्तन गति (Hydrotropism) – जड़ें सदैव जल की ओर अर्थात् धनात्मक जलानुवर्ती होती हैं परन्तु तना जल से दूर अर्थात् ऋणात्मक जलानुवर्ती होता है।
→ स्पर्शानुवर्तन (Thigmotropism) – यह गति स्पर्श या सम्पर्क के कारण प्रेरित होती है। इससे पौधे का वह भाग जो स्पर्श में नहीं रहता, अधिक वृद्धि करता है, जैसे-मटर का प्रतान । प्रतान में वृद्धि के कारण कुंडली बन जाती है।
→ रसायन अनुवर्ती गति (Chemotropism) – यदि गति रसायन उद्दीपन के कारण होती है, तो उसे रसायन अनुवर्ती गति कहते हैं। जैसे-पराग नली का बीजाण्ड की ओर वृद्धि करना।
→ रासायनिक समन्वय पादप और जंतु दोनों में देखा जाता है।
→ पादप हार्मोन (Phytohormones) – वृद्धि को नियंत्रित व संचालित करने वाले कुछ रासायनिक पदार्थ होते हैं जो पादपों के द्वारा संश्लेषित किए जाते हैं। इन रासायनिक पदार्थों को पादप हार्मोन कहते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं (i) ऑक्सिन (ii) जिब्बेरेलिन (iii) साइटोकाइनिन
(i) ऑक्सिन यह प्ररोह के अग्रभाग में संश्लेषित होता है तथा कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि में सहायक होता है।
(ii) जिब्बेरेलिन-तने की वृद्धि में सहायक होता है।
(iii) साइटोकाइनिन (Cytokinin) यह कोशिका विभाजन. को प्रेरित करता है और इसलिए यह उन क्षेत्रों में जहाँ कोशिका विभाजन तीव्र होता है, विशेष रूप से फलों और बीजों में अधिक सान्द्रता में पाया जाता है।
→ वृद्धि निरोधक पदार्थ (Growth Inhibitor Substance) – पादप वृद्धि हार्मोन पौधों की वृद्धि को प्रेरित करते हैं, परन्तु कुछ ऐसे भी रसायन या पदार्थ हैं जो वृद्धि को संदमित करते हैं। ऐसे पदार्थों को वृद्धि निरोधक पदार्थ कहते हैं। उदाहरण-एब्सिसिक अम्ल
→ अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine glands)-ये ग्रन्थियाँ अपना स्राव सीधे रक्त में छोड़ती हैं क्योंकि इनमें नलिका का अभाव होता है, इसलिए इन्हें नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ भी कहते हैं। इन ग्रन्थियों के स्राव को हार्मोन कहते हैं।
→ हार्मोन (Hormone)-ये अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से स्रावित रासायनिक पदार्थ है जिसे सीधा रक्त में स्रावित किया जाता है। यह शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँचकर कार्यों को प्रभावित करते हैं।
→ हार्मोन की क्रिया को पुनर्भरण क्रियाविधि नियंत्रित करती है।
→ मनुष्य की अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ-
- पीयूष ग्रन्थि
- थाइरॉइड ग्रन्थि
- पैराथाइरॉइड ग्रन्थि
- अधिवृक्क या एड्रीनल ग्रन्थि
- थाइमस ग्रन्थि
- पीनियल बाडी
- लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएँ (अग्न्याशय)
- वृषण एवं अण्डाशय।
→ पीयूष ग्रन्थि से निकलने वाले एक हार्मोन को वृद्धि हार्मोन (Growth Hormone) कहते हैं। यह हार्मोन शरीर की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करता है। यदि बाल्यकाल में इस हार्मोन की कमी हो जाती है तो व्यक्ति बौना रह जाता है।
→ वृषण एवं अण्डाशय (Testis and Ovary) – इनसे स्रावित होने वाले हार्मोन को क्रमशः नर हार्मोन (टेस्टोस्टेरॉन) एवं मादा हार्मोन (एस्ट्रोजन) कहते हैं। टेस्टोस्टेरॉन नर में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास करता है जबकि एस्ट्रोजन मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का नियमन करता है।
→ थायराइड ग्रन्थि (Thyroid gland) – इसके द्वारा स्रावित हार्मोन थॉयरॉक्सिन कहलाता है। थॉयरॉक्सिन हार्मोन के संश्लेषण हेतु थायराइड ग्रन्थि को आयोडीन की आवश्यकता होती है । भोजन में आयोडीन की कमी से गॉयटर नामक रोग हो जाता है।
थॉयरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन तथा वसा के उपापचय पर नियंत्रण रखता है।
→ इंसुलिन हार्मोन-इसका निर्माण लैंगरहेन्स के द्वीप (अग्न्याशय) के द्वारा किया जाता है। इस हार्मोन की कमी से मधुमेह नामक रोग हो जाता है।
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