RBSE Class 10 Social Science Board Paper 2018 are part of RBSE Class 10 Social Science Board Model Papers. Here we have given Rajasthan RBSE Class 10 Social Science Board Paper 2018.
Board | RBSE |
Textbook | SIERT, Rajasthan |
Class | Class 10 |
Subject | Social Science |
Paper Set | Board Paper 2018 |
Category | RBSE Model Papers |
Rajasthan RBSE Class 10 Social Science Board Paper 2018
समय : 3.15 घंटे
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश :
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
- प्रश्न-पत्र के हिन्दी व अंग्रेजी रूपान्तरण में किसी प्रकार की त्रुटि/अन्तरविरोधाभास होने पर हिन्दी भाषा के प्रश्न को सही मानें
- प्रश्न संख्या 30 मानचित्र कार्य से सम्बन्धित है और 05 अंक का है।
- प्रश्न संख्या 24, 27, 28 तथा 29 में आन्तरिक विकल्प हैं।
प्रश्न 1.
अशोक का रूम्मनदेई अभिलेख हमारे लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है? [1]
प्रश्न 2.
जयपुर का जंतर-मंतर क्या है ? [1]
प्रश्न 3.
आधुनिक युग में प्रतिनिधि लोकतंत्र के दो। रूप बताइये। [1]
प्रश्न 4.
इंटरनेट के कोई दो लाभ लिखिए। [1]
प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आय को परिभाषित कीजिए। [1]
प्रश्न 6.
भारत में वित्तीय वर्ष की अवधि बताइये। [1]
प्रश्न 7.
प्राथमिक क्षेत्र में कौनसी गतिविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं ? [1]
प्रश्न 8.
सामान्य कीमत स्तर से क्या तात्पर्य है ? [1]
प्रश्न 9.
बेरोजगारी किसे कहते हैं? [1]
प्रश्न 10.
भारत में गरीबी मापन का प्रथम प्रयास कब किया गया था? [1]
प्रश्न 11.
एक जागरूक नागरिक के रूप में आप उच्च न्यायालय के लिए कौन-कौनसी स्वतंत्रताओं की अपेक्षा करते हैं? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। [2]
प्रश्न 12.
टाँका क्या है? उस योजना का नाम लिखिए जिसके अन्तर्गत टाँकों का निर्माण किया गया। [2]
प्रश्न 13.
व्यावसायिक फसलें क्या हैं ? व्यावसायिक फसलों के कोई चार उदाहरण दें। [2]
प्रश्न 14.
धात्विक खनिज कितने प्रकार के होते हैं ? उदाहरण सहित बताइये। [2]
प्रश्न 15.
भारत में औद्योगिक प्रदूषण से होने वाले कोई दो प्रभाव बताइये। [2]
प्रश्न 16.
जन्मदर व मृत्युदर से आप क्या समझते हैं? [2]
प्रश्न 17.
भारत में पाइप लाइन परिवहन की व्याख्या कीजिए। [2]
प्रश्न 18.
सड़क पर पैदल चलते समय आप किनकिन बातों को ध्यान में रखेंगे ? [2]
प्रश्न 19.
ठोस कचरा प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं? [2]
प्रश्न 20.
अगर हम्मीर देव चौहान के स्थान पर आप होते तो अलाउद्दीन खिलजी के बागियों के प्रति क्या नीति अपनाते और क्यों? [4]
प्रश्न 21.
मौर्यकालीन केन्द्रीय प्रशासन का मूल्यांकन कीजिए। [4]
प्रश्न 22.
इटली के एकीकरण में मैजिनी के योगदान का उल्लेख कीजिए। [4]
प्रश्न 23.
आपके मतानुसार सामाजिक लोकतंत्र के लिए कौनसी दशाएँ आवश्यक हैं ? स्पष्ट कीजिए। [4]
प्रश्न 24.
“भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है।” इस कथन के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए। [4]
अधवा
वैश्वीकरण से होने वाले किन्हीं चार लाभों को समझाइये। [4]
प्रश्न 25.
मुदा किसे कहते हैं ? मुदा के किन्हीं तीन कार्यों को स्पष्ट कीजिए। [4]
प्रश्न 26.
एक जागरूक नागरिक के रूप में, उपभोक्ता शोषण के कोई चार कारण बताइए। [4]
प्रश्न 27.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में श्यामजी कृष्ण वर्मा और विनायक दामोदर सावरकर के योगदान का मूल्यांकन कीजिए। [6]
अथवा
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(i) संथाल विद्रोह
(ii) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड
(ii) साइमन कमीशन।
प्रश्न 28.
संसद के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए। [7]
अथवा
राष्ट्रपति की कार्यपालिका एवं विधायी शक्तियों का वर्णन कीजिए।
प्रश्न 29.
राज्य विधान परिषद् की शक्तियों की विवेचना कीजिए। [6]
अथवा
उच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र एवं शक्तियों की विवेचना कीजिए।
प्रश्न 30.
दिए गये भारत के मानचित्र में निम्नलिखित को अंकित कीजिए। [5]
(अ) खेतड़ी।
(ब) दिल्ली
(स) जमशेदपुर
(द) पारादीप
(य) हीराकुण्ड परियोजना
उत्तर
उत्तर 1.
अशोक के रूम्मनदेई अभिलेख से हमें भूमिकर की जानकारी मिलती है। इसलिए यह अभिलेख हमारे लिए। महत्त्वपूर्ण है।
उत्तर 2.
जयपुर का जंतर-मंतर एक वेधशाला है।
उत्तर 3.
आधुनिक युग में प्रतिनिधि लोकतंत्र के दो रूप निम्नलिखित हैं।
- संसदीय लोकतंत्र
- अध्यक्षात्मक लोकतंत्र।
उत्तर 4.
इंटरनेट के कोई दो लाभ इस प्रकार हैं।
- इंटरनेट के माध्यम से चित्र एवं चलचित्र भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता व शीघ्रता से भेजे व देखे जा सकते हैं।
- विश्व के किसी भी कोने में घटित प्रमुख घटना की । जानकारी एक स्थान से दूसरे स्थान के व्यक्तियों तक शीघ्रता से पहुँच जाती है।
उत्तर 5.
राष्ट्रीय आय – एक देश के सभी साधनों द्वारा एक वर्ष में उत्पादन प्रक्रिया में योगदान के फलस्वरूप अर्जित आय का योग राष्ट्रीय आय कहलाता है।
उत्तर 6.
भारत में वित्तीय वर्ष की अवधि 1 अप्रैल से 31 मार्च तक है।
उत्तर 7.
प्राथमिक क्षेत्र में कृषि, पशुपालन सम्बद्ध अन्य उत्पादन क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है।
उत्तर 8.
सामान्य कीमत स्तर से तात्पर्य वस्तुओं या एक वस्तु समूह की कीमतों के औसत स्तर से है।
उत्तर 9.
बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें कार्यकारी आयु वर्ग में शामिल कार्य के योग्य एवं इच्छुक व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दरों पर रोजगार प्राप्त करने में असफल हो जाता है।
उत्तर 10.
भारत में गरीबी मापन का प्रथम प्रयास सन् 1868 में किया गया था।
उत्तर 11.
एक जागरूक नागरिक के रूप में हम उच्च न्यायालय के लिए निम्नलिखित स्वतंत्रताओं की अपेक्षा करते हैं
- नियुक्ति के लिए विशेष प्रक्रिया
- निश्चित कार्यकाल
- संसद में न्यायाधीशों के आचरण पर महाभियोग के अतिरिक्त चर्चा नहीं
- उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अवकाश ग्रहण करने के बाद उन न्यायालयों में निजी प्रैक्टिस नहीं करेगा, जहाँ वह स्थायी न्यायाधीश रह चुका है।
- कार्यपालिका से पृथक्करण
उत्तर 12.
टाँका :
पश्चिमी राजस्थान में परम्परागत जल संग्रहण तथा जलसंरक्षण स्रोत जो कि प्रत्येक घर तथा खेत में भूमि में 5 से 6 मीटर गहरा गड्ढा खोदकर बनाया जाता है। इसके ऊपरी भाग को पत्थरों अथवा स्थानीय उपलब्ध संसाधनों से ढक दिया जाता है। इसमें घरों की छत तथा आगोर से आने जाने वषो जल का संग्रहण कर दिया जाता है। इसके आन्तरिक भाग में राख तथा बजरी का लेप कर दिया जाता है जो जल रिसाव व तली के कटाव को रोकता है। राजस्थान में जल स्वावलम्बन योजना तथा अन्य योजनाओं में इन टॉकों का निर्माण किया जा रहा है।
उत्तर 13.
व्यावसायिक फसलें ऐसी फसलें जिनका उपयोग व्यावसायिक कार्यों के लिए या उद्योग में कच्चे माल के रूप में किया जाता है उन्हें व्यावसायिक फसलें कहा जाता है। व्यावसायिक फसलों के चार उदाहरण हैं
- गन्ना
- कपास
- जूट
- तम्बाकू
उत्तर 14.
धात्विक खनिज दो प्रकार के होते हैं जिनके प्रकार निनलिखित हैं
- लौह खनिज –जिन खनिजों में लौह-अयस्क पाया आता है, उन्हें लौह खनिज कहते हैं लौह-अयस्क, मैंगनीज, निकल, कोबाल्ट आदि लौह खनिज के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।
- अलीह खनिज –जिन खनिजों में लौह अयस्क के अतिरिक्त अन्य धातुएँ होती हैं, उन्हें अलौह खनिज कहते हैं। सोना, चाँदी, प्लेटिनम आदि अलौह खनिज के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।
उत्तर 15.
भारत में औद्योगिक प्रदूषण से होने वाले दो प्रभाव निम्नलिखित हैं|
- नदियों में बढ़ता प्रदूषण –देश की विभिन्न नदियाँ भी चमड़ा, कागज, खाद, रसायन, औषधि आदि उद्योगों के कारण प्रदूषित हो रही हैं। इस कारण जलीय जन्तुओं की मृत्यु हो रही हैं तथा मनुष्यों में भी विषैले तत्वों जैसे कार्बन, सीसा, सल्फर आदि के कारण साँस की बीमारियां फैल रही हैं । मनुष्यों में प्रदूषण के कारण कैंसर, रक्त एवं चर्म सम्बन्धी रोगों में वृद्धि होती जा रही है।
- नदियों के जल स्रोतों का सूखना –प्रदूषण से हुई तापमान में वृद्धि से सदावाहिनी नदियों के जलस्रोत सूखने लगे हैं। अत: देश में औद्योगिक प्रदूषण से कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं। अत: हमें संवर्धित तथा सुविकसित औद्योगिक विकास का मार्ग अपनाना चाहिए।
उत्तर 16.
जन्मदर एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों में जितने जीवित बच्चों का जन्म होता है उसे जन्मदर कहते हैं। मृत्युदर एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों में मरने वालों की संख्या को मृत्युदर कहते हैं।
उत्तर 17.
भारत में पाइप लाइन परिवह्न पाइप लाइन का उपयोग शहरों व उद्योगों में पानी पहुँचाने, कच्चा तेल, पेट्रोल उत्पाद तथा तेल से प्राप्त प्राकृतिक गैस शोधनशालाओं, उर्वरक कारखानों व बड़े ताप विद्युत गृहों तक पहुँचाने, ठोस को तरल में परिवर्तित करके पाइप लाइनों द्वारा ले जाया जाता है। प्रारम्भिक लागत अधिक परन्तु चलाने की लागत न्यूनतम है।
उत्तर 18.
सड़क पर पैदल चलते समय हम निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेंगे।
- फुटपाथ का प्रयोग करना : जहाँ सड़क के साथ साथ फुटपाथ बने हैं वहाँ फुटपाथ का प्रयोग करेंगे।
- फुट ओवर ब्रिज का प्रयोग करना : सड़क पार करते समय फुटओवर ब्रिज का प्रयोग करेंगे।
- जेब्रा क्रॉसिंग का उपयोग करना : जहाँ सड़क पार करने के लिए फुटओवर ब्रिज नहीं है वहाँ सएक पार करते समय जेब्रा क्रॉसिंग का उपयोग करेंगे।
- जहाँ फुटपाथ हो उधर सड़क के आई ओर चलना चाहिए। परन्तु जहाँ फुटपाथ नहीं है वहाँ सड़क के दाई ओर चलना चाहिए।
उत्तर 19.
ठोस कचरा प्रबन्धन :
जनता द्वारा निर्वाचित शहरी निकायों के जन-प्रतिनिधियों और अधिकारियों ने ठोस कचरा प्रबन्धन का कार्य निकायों में नियुक्त मुख्य सफाई निरीक्षकों को सौंपा है। नियमित एवं ठेका पद्धति पर नियुक्त सफाई कर्मचारी कूड़े को घरों, अस्पतालों तथा अन्य प्रतिष्ठानों से लाकर कूड़ा संग्रहण केन्द्र पर एकत्रित करते हैं । कूड़ा संग्रहण केन्द्रों से परिवहन के विभिन्न साधनों जैसे बन्द ट्रकों, खुले ट्रकों, ट्रैक्टर ट्रालियाँ तथा घोड़ा गाड़ियों द्वारा ठोस कचरा निस्तारण केन्द्रों पर ले जाया जाता है। कचरा निस्तारण केन्द्र पर, कचरा उत्पादन स्थलों के अनुसार अलगअलग श्रेणियों में विभाजित कर रखा जाता है।
जैसे घरेलू कचरा, अस्पतालों का कचरा, औद्योगिक कचरा, विनिर्माण सामग्री का कचरा तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों का कचरा आदि । इस कचरे में उपस्थित अवयवों के आधार पर इसे अलग-अलग किया जाता है। जैसे जैविक कचरा पदार्थ, अजैविक कचरा पदार्थ, प्लास्टिक शीशी, धातुएँ, कागज, बैटरी, खतरा संभाव्य पदार्थ-विषैले पदार्थ, ज्वलनशील पदार्थ, विस्फोटक पदार्थ, रेडियो धर्मिता वाले पदार्थ, संक्रमण रोग फैलाने वाले पदार्थ आदि।
उत्तर 20.
हम्मीर देव चौहान ने अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही मंगोल नेता मुहम्मद शाह तथा केहबू को अपने राज्य में शरण दे दी। अलाउद्दीन द्वारा आग्रह करने पर भी हम्मीर देव चौहान ने अपनी शरण में आए हुए व्यक्तियों को लौटाने से इन्कार कर दिया। शरणागत की रक्षा करना भारतीय संस्कृति की परम्परा रही है। हम सब कुछ वहीं करते जो हम्मीर देव चौहान ने किया था।
उत्तर 21.
1. मौर्यकालीन प्रशासन :
मौर्य काल में भारत में पहली बार केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था की स्थापना हुई। सत्ता का केन्द्रीकरण राजा में होते हुए भी वह निरंकुश नहीं था। कौटिन्य ने राज्य के सात अंग निर्दिष्ट किए हैं—राजा, अमात्य, जनपद्, दुर्ग, कोष, सेना और मित्र। राजा द्वारा मुख्यमंत्री व पुरोहित की नियुक्ति उनके चरित्र की भली-भाँति जाँच के बाद ही की जाती थी। इस क्रिया को उपधा परीक्षा कहा जाता था। ये लोग मंत्रिमण्डल के अंतरंग सदस्य होते थे। इस मंत्रिमण्डल के अतिरिक्त परिशा मैत्रिण: भी होता था, जो एक तरह से मंत्रिपरिषद् था।
2. केन्द्रीय प्रशासन :
अर्थशास्त्र में 15 विभागों का उल्लेख मिला है, उन्हें ‘तीर्थ’ कहा गया है। तीर्थ के अध्यक्ष को महामात्र कहा गया है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तीर्थ थे-मंत्री, पुरोहित, सेनापति और युवराज।
3. समाहर्ता :
इसका कार्य राजस्व एकत्र करना, आय-व्यय का ब्यौरा रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करना होता है।
4. सन्निधाता ( कोषाध्यक्ष ) :
साम्राज्य के विभिन्न भागों में कोषगृह और अन्नागार बनवाना। अर्थशास्त्र में 26 विभागाध्यक्षों का उल्लेख है, जैसे – कोषाध्यक्ष, सीताध्यक्ष (कृषि), पण्याध्यक्ष (व्यापार), सूत्राध्यक्ष (कताई, बुनाई), लूनाध्यक्ष (बूचड़खाना), विवीताध्यक्ष (चरागाह), लक्षणाध्यक्ष (मुद्रा जारी करना), मुद्गाध्यक्ष, पतवाध्यक्ष, बंधनागाराध्यक्ष, आटविक (वन विभाग का प्रमुख) आदि। ‘युक्त’ व ‘उपयुक्त’ महामात्य तथा अध्यक्षों के नियंत्रण में निम्न स्तर के कर्मचारी होते थे।
उत्तर 22.
इटली के एकीकरण में मैजिनी का योगदान :
मैजिनी इटली के राष्ट्रीय आन्दोलन का मसीहा था। 1831 ई. में मैजिनी ने ‘युवा इटली’ नामक एक संस्था की स्थापना की। मैजिनी ने कहा था कि “यदि समाज में क्रान्ति लानी हैं, तो नेतृत्से युवकों को सौंप दें। इस संस्था के तीन नारे थे-
- परमात्मा पर विश्वास
- सब भाइयों को एक साथ मिलाओं
- इटली को मुक्त कराओ।” इस संस्था ने इटलीवासियों में देशभक्ति, संघर्ष, त्याग, बलिदान, स्वतंत्रता की भावना पैदा की। उसने दृढतापूर्वक कहा कि ”इटनी एक राष्ट्र है और राष्ट्र बनकर रहेगा।” इस प्रकार मैजिनी ने इटली के एकीकरण की आधारशिला रखी थी।
उत्तर 23.
सामाजिक लोकतंत्र :
सामाजिक लोकतन्त्र का एक प्रमुख लक्ष्य हैं – सामाजिक समता की भावना । संक्षेप में, सामाजिक लोकतन्त्र का अर्थ है कि समाज में नस्रन, रंग (वर्ण), जाति, धर्म, भाषा, लिंग, धन, जन्म आदि के आधार पर व्यक्तियों के बीच अन्तर नहीं किया जाना चाहिए और सभी व्यक्तियों को, व्यक्ति के रूप में, समान समझा जाना चाहिए। हर्नशा के अनुसार, ‘लोकतान्त्रिक समाज वह है, जिसमें समानता के विचार की प्रबलता हो तथा जिसमें समानता का सिद्धान्त प्रचलित हो।’
सामाजिक लोकतन्त्र की अवधारणा मुख्यत: सामाजिक समानता के अधिकार पर बल देती हैं। इसका सामान्य अर्थ यही है कि सभी व्यक्तियों को समाज में समान महत्त्व प्राप्त होना चाहिए और किसी भी व्यक्ति को अन्य किसी भी व्यक्ति के सुख का साधन मात्र नहीं समझा जाना चाहिए। व्यवहार में सामाजिक लोकतन्त्र की स्थापना के लिए दो बातें जरूरी हैं
- धर्म, जाति, नस्ल, भाषा, लिंग, धन आदि के आधार पर समाज में मौजूद विशेषाधिकारों की व्यवस्था का अन्त किया जाये।
- सभी व्यक्तियों को सामाजिक प्रगति के समान अवसर प्रदान किये जायें।
उत्तर 24.
भारतीय अर्थव्यवस्था की विकासशीलता को दर्शाने वाली विशेषताएँ
भारतीय अर्थव्यवस्था तेज गति से विकास के मार्ग पर आगे बढ़ रही हैं। यहाँ गत वर्षों के दौरान प्रभावी आर्थिक एवं सामाजिक सुधार के साथ अनेक ऐसे अनुकूल परिवर्तन हुए हैं, जिनके फलस्वरुप इसे विकासशील अर्थव्यवस्था कहा जाना अधिक उपयुका होगा। भारत की राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय लगातार तेजी से बढ़ रही है तथा संरचनात्मक परिवर्तन अनुकूल दिशा में हो रहे हैं।
(1) राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में सतत् एवं तीव्र वृद्धि :
भारत की राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में होने वाली सतत् एवं तीव्र वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकासशील स्वरूप का सर्वाधिक प्रभावशाली नक्षण है।150 से 1980 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर केवल 3.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही। डॉ. राजकृष्णा ने इसे हिन्दू विकास दर कहा। 1980 के दशक में विकास दर 5 प्रतिशत से अधिक है। गयी और 1991 2011 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था 6.प्रतिशत प्रतिवर्ष की औसत दर से बढ़ती गई । ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) के दौरान भारत की विकास दर 8 प्रतिशत रहीं। वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं।
भारत की आर्थिक विकास की दर में सुधार 1980 के दशक से ही शुरू हो गया था, लेकिन उल्लेखनीय प्रगति 1990 के दशक के आर्थिक सुधारों के बाद हुई है। वर्तमान सरकार द्वारा किये गये सुधारों एवं प्रयासों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था तीव्रता के साथ आगे बढ़ रही हैं। 1950-51 से 1990-91 की अवधि के दौरान भारत को प्रति व्यक्ति आय लगभग 1.6 प्रतिशत वार्षिक की औसत दर से बढ़ी है। 190-91 के बाद अधिकांश वर्षों में प्रति व्यक्ति आय की वार्षिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत से अधिक बनी हुई हैं। वर्ष 2015-16 में प्रति व्यक्ति आय में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि रिकॉर्ड की गयी है। राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय की यह सतत् तथा तीव्र वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था की एक अच्छी उपलब्धि कही जा सकती है।
(2) अर्थव्यवस्था की संरचना, में परिवर्तन :
विकास के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की संरच। (अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों की स्थिति) में भी परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था विकसित होती जाती हैं राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र (कृषि) के अंश घटता जाता है तथा द्वितीयक (उद्योग) एवं तृतीयक (सेवा) क्षेत्र का अंश बढ़ता जाता है। भारत में 1950-51 में राष्ट्रीय आय में कृषि का अंश 50 प्रतिशत से अधिक था जो 2015-16 में कम होकर 15 प्रतिशत के लगभग रह गया। राष्ट्रीय आय में उद्योग तथा सेवा क्षेत्र के योगदान में अत्यधिक वृद्धि हुई । द्वितीयक (उद्योग) क्षेत्र का राष्ट्रीय आय में अंश बढ़कर एक| चौथाई से अधिक हो गया है। राष्ट्रीय आय में सेवा क्षेत्र का अंश सर्वाधिक तेजी से बढ़ा है। द्वितीयक क्षेत्र की तुलना में तृतीयक क्षेत्र अधिक तेजी से बढ़ा है। अर्थव्यवस्था की संरचना का यह परिवर्तन इसके विकासशील स्वरूप को व्यक्त करता है।
(i) विशाल तथा तेजी से बढ़ता सेवा क्षेत्र :
सभी विकसित राष्ट्रों में विशाल सेवा क्षेत्र पाया जाता है। निरन्तर तेज वृद्धि दर के कारण भारत में भी सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा क्षेत्र बन गया है। वर्तमान में केवल सेवा-क्षेत्र राष्ट्रीय आय का लगभग 60 प्रतिशत भाग उत्पादित कर रहा है। इसके साथ ही सेवा-क्षेत्र की वृद्धि भी कृषि एवं उद्योगों की वृद्धि दर से पर्याप्त ऊँची बनी हुई है। विश्व सेवा व्यापार के मामले में भी भारत विश्व के शीर्ष दस राष्ट्रों में सम्मिलित है तथा इसके सेवा क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभरने की प्रबल संभावना है। व्यापक तथा निरन्तर बढ़ता हुआ सेवा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था को विकासशीलता का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
(ii) व्यावसायिक संरचना में परिवर्तन :
भारत में व्यावसायिक संरचना में होने वाले परिवर्तन भी बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है। 1951 में कार्य शक्ति का लगभग 72 प्रतिशत कृषि तथा सहायक क्षेत्रों |में कार्यरत था। कृषि पर निर्भरता में निरन्तर कमी आयी है। वर्तमान कार्यकारी जनसंख्या का 50 प्रतिशत से भी कम भाग कृषि तथा सहायक क्षेत्रों में रोजगाररत है। वर्तमान में भारत की आधे से अधिक कार्यशक्ति उद्योग तथा सेवा क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रही है।
(3) आर्थिक एवं सामाजिक आधार-संरचना में सुधार :
भारत में आर्थिक एवं सामाजिक आधार-संरचना में तेजी से सुधार हो रहा है। विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में भारत में कुल उत्पादित क्षमता में पिहले 65 वर्षों में लगभग 100 गुना वृद्धि रिकॉर्ड की गई है। स्वतंत्रता के समय भारत में सड़कों की कुल लम्बाई लगभग 4 लाख किलोमीटर थी, जो वर्तमान में लगभग लाख किलोमीटर हो गयी हैं। इसी प्रकार बैंकिंग तथा बीमा सेवाओं का भी व्यापक विस्तार हुआ है। साक्षरता दर 1951 में 18.3 प्रतिशत थी जो 2011 में बढ़कर 74.04 प्रतिशत हो गयी। इसी प्रकार जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 1951 में 32.1 वर्ष थी, जो 2014 में 68 वर्ष हो गयी। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकास कर रही है।
(4) अन्य कारक :
यहाँ विदेशी व्यापार की संरचना में सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं। भारत की जनसंख्या वृद्धि की दर में भी पर्याप्त कमी हुई है। 1961 से 1971 के दशक में भारत – जनसंख्या वृद्धि की दर 24,80 प्रतिशत थी। यह दर 2001 से 2011 के दशक में कम होकर 17.64 प्रतिशत रह गयी। ये सभी कारक भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के सूचक हैं।
निष्कर्ष :
उपर्युक्त अध्ययन के आधार पर हम कह सकते हैं कि यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था में अविकसित अर्थव्यवस्था के अनेक लक्षण पाये जाते हैं, फिर भी यह विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर हो रही है। विकास की इस तीव्र गति के फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था निश्चित ही एक दिन विकसित अर्थव्यवस्था बन जायेगी।
अधवा
वैश्वीकरण के लाभ वैश्वीकरण से होने वाले चार लाभ निम्नलिखित हैं
- वैश्वीकरण से प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग बढेगा जिसके परिणामस्वरूप विकासशील देशों को बिना ऋणग्रस्त हुए विकास के लिए पूँजी प्राप्त होगी।
- विकासशील देश, विकसित देशों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी के प्रयोग से लाभान्वित होंगे।
- इससे विकासशील देश अपनी उपज का विकसित देशों में निर्यात करने में सफल होंगे। इसके साथसाथ विकासशील देश तुलनात्मक रूप में कम कीमत पर अच्छी किस्म की उपयोगी वस्तुओं का आयात कर सकेंगे।
- विकासशील देश ज्ञान के प्रसार से अपने उत्पादन और उत्पादकता के स्तर को बढ़ा सकते हैं।
- वैश्वीकरण से परिवहन व संचार की कम लागत के कारण विदेशी व्यापार का हिस्सा बढ़ जाता है।
उत्तर 25.
मुद्रा-वस्तुओं और सेवाओं के लिए हम जो कुछ भी भुगतान करते हैं, उसे मुद्रा कहते हैं। भारत की मुदा ‘रुपया’। मुदा के कार्य मुद्रा के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं।
(1) विनिमय का माध्यम :
एक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आधारभूत भूमिका विनिमय के एक माध्यम या भुगतान के एक साधन के रूप में काम करने की होती है। मुद्रा का यह कार्य वस्तु विनिमय प्रणाली की आवश्यकताओं के दोहरे संयोगों की समस्या को समाप्त कर देता है। यह मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है। यही वह विशिष्ट गुण है जो मुद्रा को अन्य संपदाओं से अलग करता है। मुद्रा का माध्यम के रूप में उपयोग विनिमय क्रिया को सुविधाजनक बना देता है।
(2) विलम्बित भुगतानों की मानक :
मुद्रा यह इकाई है, जिसके द्वारा स्थगित या भावी भुगतान सरलता से निपटाये जा सकते हैं। जो भुगतान तत्काल न करके भविष्य के लिये टाल दिए जाते हैं, वे स्थगित भुगतान कहलाते हैं। चूंकि अण भी एक प्रकार का स्थगित भुगतान है। अतः ऋणों को भी मुद्रा के रूप में चुकाया जाना सर्वाधिक सरल है। मुद्रा का मूल्य अन्य सम्पदाओं की तुलना में अधिक स्थिर रहता है तथा इसमें सामान्य स्वीकृति का गुण पाया जाता है अत: मुद्रा को स्थगित भुगतानों का श्रेष्ठ मानक माना जाता है।
(3) मूल्य की इकाई या मूल्य का मापक :
मुद्रा मूल्य के सामान्य मापक का कार्य करती है। इसकी सहायता से सभी वस्तुओं और सेवाओं के विनिमये मूल्य को मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। विभिन्न पैमानों पर अनेक वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय मूल्य को एक समान इकाई मुद्रा में व्यक्त करके एक उचित लेखा तंत्र बनाया जा सकता है यद्यपि मूल्य के एक मापक के रूप में मुद्रा की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका स्वयं का मूल्य परिवर्तित होता रहता हैं।
(4) मूल्य का भंडार :
मुद्रा मूल्य के संचय के रूप में भी कार्य करती है। मुदा के मूल्य का तात्पर्य मुद्रा की क्रय शक्ति से है। मुद्रा मूल्य का एक मात्र भण्डार नहीं है। अन्य वस्तुएँ तथा सम्पदायें भी मूल्य के भण्डार का कार्य करती हैं तथा इस संदर्भ में मुद्रा से प्रतियोगिता करती हैं। मूल्य के भण्डार के रूप में मुद्रा विशिष्ट हैं क्योंकि यह सर्वाधिक तरल परिसम्पत्ति है।
(5) मुदा के अन्य कार्य तथा अर्थव्यवस्था में भूमिका :
मुद्रा की सहायता से मूल्य का हस्तान्तरण सुविधाजनक हो जाता है। मुद्रा अर्थव्यवस्था में साख का आधार प्रदान करती है। लोग अपनी आय का एक हिस्सा बैंकों में मुद्रा के रूप में जमा करवाते हैं । इस जमा धन से ही बैंक साख का सृजन करते हैं। मुद्रा पूँजी को गतिशीलता प्रदान करके भी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है।
उत्तर 26.
उपभोक्ता शोषण के कारण :
भारत में उपभोक्ता शोषण के मूल में निम्न कारण दृष्टिगोचर होते हैं।
(1) माँग एवं पूर्ति में असंतुलन :
जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि के कारण वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग में भी वृद्धि हो रही है। माँग की तुलना में वस्तुओं एवं सेवाओं की उपलब्धि कम होने के कारण माँग व पूर्ति में असंतुलन हो जाता है। ऐसी स्थिति में व्यवसायी घटिया वस्तुओं का उत्पादन कर उपभोक्ता से ऊँचा मूल्य वसूल करते हैं।
(2) एकाधिकार :
कुछ वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण पर एक व्यावसायिक समूह या किसी सार्वजनिक उपक्रम का एकाधिकार होता है। प्रतिस्पर्धा के अभाव में इन संस्थाओं द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं के ऊँचे मूल्य रखे जाते हैं। तथा उनमें निरंतर वृद्धि की जाती है। ऐसी स्थिति में अधिक मूल्य देने के अतिरिक्त उपभोक्ता के पास अन्य कोई विकल्प नहीं होता है।
(3) अशिक्षितता :
भारत में अशिक्षा उपभोक्ता शोषण का मूल कारण है। शिक्षा की कमी से उपभोक्ता को बाजार में उपलब्ध होने वाले उत्पादों के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं होती है और न ही उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो पाता
(4) उपभोक्ता की उदासीनता :
उपभोक्ता के संगठित होने तथा अपने अधिकारों की जानकारी न होने के कारण वह अपने अधिकारों के प्रति उदासीन रहता है। जिन उपभोक्ताओं को कुछ जानकारी होती भी है, तो संगठन के अभाव में उसकी प्रवृत्ति समझौतावादी हो जाती हैं।
उत्तर 27.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में श्यामजी कृष्ण वर्मा और विनायक दामोदर सावरकर का योगदान
श्यामजी कृष्ण वर्मा :
श्यामजी कृष्ण वर्मा पश्चिमी भारत के काठियावाड़ प्रदेश के रहने वाले थे। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और वकील अन गये। भारत लौटने पर अंग्रेज़ पॉलिटिकल रेजिडेंट के आचरण से दु:खी होकर उन्होंने भारत को स्वतन्त्र कराने का दृढ़ निश्चय किया और अपना कार्य क्षेत्र लन्दन नगर को बनाया। देश से बाहर स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये क्रान्तिकारी संगठन स्थापित करने की पहल श्यामणी कृष्ण वर्मा ने ही की। 1905 ई. में भारत स्वशासन समिति का गठन किया जिसे इण्डिया हाउस की संज्ञा दी गई। इन्होंने एक मासिक पत्रिका “इण्डिया सोशलिज्म” भी प्रारम्भ की। इन्होंने विदेश आने वाले भारतीयों के लिए एक-एक हजार की 6 फैलोशिप भी शुरू की। शीघ्र ही “इण्डिया हाउस” लन्दन में रहने वाले भारतीयों के लिए आन्दोलन करने का एक केन्द्र बन गया। वी. डी. सावरकर, लाला हरदयाल और मदन लाल धींगरा जैसे क्रान्तिकारी इसके सदस्य बन गये।
विनायक दामोदर सावरकर :
वीर सावरकर महान् क्रान्तिकारी, महान देशभक्त और महान संगठनवादी थे। उन्होंने आजीवन देश की स्वतन्त्रता के लिए जो तप और त्याग किया उसकी प्रशंसा शब्दों में नहीं की जा सकती है। सावरकर को जनता ने वीर की उपाधि से विभूषित किया अथात् वे वीर सावरकर कहलाने लगे। बंगाल विभाजन के समय उन्होंने अपने साथियों के साथ मित्र मेला’ नामक संगठन बनाकर विदेशी कपड़ों की होली जलाई। सावरकर एक मात्र ऐसे भारतीय क्रान्तिकारी थे जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने एक जन्म की नहीं दो जन्मों की आजीवन कारावास की सजा दी थी। उन्होंने 1906 ई. में ‘अभिनव भारत’ की स्थापना की। सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 के संघर्ष को गदर न कहकर भारत का प्रथम स्वतन्त्रता या सताया। उनका लम्बा समय अण्डमान की सेलूलर जेल में बीता। 1924 ई. में स्वास्थ्य खराब होने के बाद उन्हें रत्नागिरि में नजरबन्द रखा गया।
अथवा
(i) संथाल विदोह :
1855-56 ई. के बीच शुरू होने वाला संथाल विद्रोह अंग्रेजी शासन के खिलाफ महत्त्वपूर्ण जनविद्रोह था। इसमें नेतृत्व और संगठन को एक सुव्यवस्थित स्तर पर देखा जा सकता है। यह विद्रोह वीरभूमि, वाकुरा, सिंहभूमि, हजारी बाग, भागलपुर और मुंगेर के इलाकों में फैला हुआ था। इस विद्रोह का कारण संथाल लोगों पर भूमिकर अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार किया जाना, पुलिस का दमन तथा जमींदारों तथा साहूकारों द्वारा जबरदस्ती वसूली किया जाना था। इस विद्रोह का नेतृत्व दो भाई सिंधु और कान्हू द्वारा किया गया और इन्होंने कम्पनी के शासन का अन्त करने की घोषणा कर अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया। विस्तृत सैन्य कार्यवाही के पश्चात् ही 1856 ई. में स्थिति नियंत्रण में आई तथा सरकार को स्वतंत्र पृथक् संथाल परगना बनाना पड़ा।
(ii) जलियाँवाला बाग हत्याकांड :
13 अप्रैल, 1919 को जलियाँवाला बाग में गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए ग्रामीणों की एक सभा हो रही थी। जनरल डायर और उसकी फौजी टुकड़ी ने नि:शस्त्र ग्रामीणों पर आक्रमण कर दिया। उसने उनके भागने के रास्ते बन्द कर दिए और गोली चलाने के आदेश दे दिए। इस अन्यायपूर्ण हमले के कारण लगभग 372 भारतीयों की मृत्यु हो गई और 1200 निहत्थे गम्भीर रूप से घायल हो गये। कई लोगों ने कुएं में कूद कर जान दे दी।
(iii) साइमन कमीशन :
1919 के भारत सरकार अधिनियम के कार्यों की समीक्षा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1927 ई. में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन बनाया गया। इसमें सात सदस्य थे लेकिन इसमें कोई भी भारतीय नहीं था। इस कारण ३ फरवरी, 1928 ई. को जब यह कमीशन बम्बई पहुँचा, तो इसका जबरदस्त विरोध किया गया। लाहौर में इसका विरोध लाला लाजपतराय के नेतृत्व में किया गया। विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस ने अन्धाधुन्ध लाठियों की वर्षा की जिसमें लाला लाजपतराय के सीने में चोटें आई और एक महीने बाद उनका देहान्त हो गया। 1930 को इस कमीशन की रिपोर्ट आई जिसमें कहीं भी औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना की बात नहीं कही गई।
उत्तर 28.
भारत में संघीय व्यवस्थापिका को संसद कहा जाता है। इसका निर्माण लोकसभा, राज्यसभा तथा राष्ट्रपति से मिलकर होता है। संविधान में उल्लिखित भारत की संघीय व्यवस्थापिका अर्थात् संसद में कार्य व शक्तियों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है
(1) विधायी कार्य :
भारतीय संसद का प्रमुख कार्य विधि निर्माण करना है। संसद को संघ सूची तथा समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। विशेष रिश्वत एवं आपातकालीन स्थिति में संसद राज्य सूची में उल्लिखित विषयों पर भी कानून बना सकती है। इसके अतिरिक्त संसद प्रचलित कानूनों को संशोधित व समाप्त भी कर सकती है।
(2) कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य :
संसद कार्यपालिका सम्बन्धी भी अनेक कार्य करती हैं। संघीय कार्यपालिका अर्थात् मंत्रिपरिषद् अपने कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी है। संसद के दोनों सदनों में सदस्य प्रश्न, पूरक प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव के माध्यम से मंत्रिमण्डल को नियंत्रित करते हैं। लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पारित कर मंत्रिमण्डल को पदच्युत कर सकती है।
(3) वित्तीय कार्य :
भारत के वित्त पर संसद का नियंत्रण है। संसद की अनुमति से ही कार्यपालिका जनता पर करारोपण, कर राशि का संग्रह एवं व्यय कर सकती है। वित्त विधेयक और बजट सर्वप्रथम लोकसभा में ही पेश होता है । लोकसभा द्वारा पारित कर देने पर उसे राज्य सभा में पेश किया जाता है। राज्यसभा के लिए इस पर विचार हेतु 14 दिन की
समयावधि निश्चित है।
(4) संविधान संशोधन का कार्य :
संसद को संविधान संशोधन की शक्ति प्राप्त है। संविधान संशोधन के सम्बन्ध में संसद के दोनों सदनों को समान शक्ति प्राप्त है क्योंकि
- सविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है।
- संविधान संशोधन विधेयक का संसद के दोनों सदनों से पृथक्-पृथक् पारित होना आवश्यक है।
- संविधान की कुछ धाराओं में संसद साधारण बहुमत से संशोधन कर सकती है।
- संविधान की कुछ धाराओं में संशोधन के लिए उपस्थित व मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों केदो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
- संविधान की कुछ धाराओं में संशोधन के लिए उसे संसद के 2/3 बहुमत से पारित होने के बाद पुष्टिकरण के लिए आधे राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति
आवश्यक है।
(5) चुनाव सम्बन्धी कार्य :
संसद के निर्वाचन सम्बन्धी कार्य निम्न प्रकार हैं
- संसद राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है। संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के साथ मिलकर राष्ट्रपति का निर्वाचन करते हैं और संसद के दोनों सदनों के सदस्य उपराष्ट्रपति को निर्वाचन करते हैं।
- लोकसभा सदस्य अपने अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं।
- राज्यसभा सदस्य अपने उपसभापति का चुनाव करते हैं।
(6) महाभियोग सम्बन्धी कार्य :
संसद के दोनों सदन 2/3 बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश को पद से हटा सकते हैं।
अथवा
राष्ट्रपति की सामान्यकालीन शक्तियाँ तथा अधिकार संविधान के द्वारा सामान्यकाल में राष्ट्रपति को जो शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं उनका अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया हैं।
(1) कार्यपालिका अथवा प्रशासनिक शक्तियाँ :
संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार, “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी तथा वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों द्वारा करेगा। इस प्रकार शासन का समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से होगा और सरकार के समस्त निर्णय उसके ही माने जायेंगे।” जैसे
(i) महत्त्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति व पदच्युति :
राष्ट्रपति भारत संघ के अनेक महत्त्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति करता है जैसे प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्री, राज्यों के राज्यपाल, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, महालेखा परीक्षक, संघीय लोक आयोग के अध्यक्ष और सदस्य तथा विदेशों में राजदूत आदि।
(ii) शासन संचालन संबंधी शक्ति :
राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक, सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्ति तथा नियंत्रक व महालेखा परीक्षक की शक्तियों से सम्बन्धित नियमों का निर्माण करता है। मंत्रिपरिषद् के सदस्यों के बीच विभागों का वितरण भी उसी के द्वारा किया जाता है।
(iii) सैनिक क्षेत्र में शक्ति :
राष्ट्रपति भारत की समस्त सेनाओं का प्रधान सेनापति होता है, किन्तु इस अधिकार का प्रयोग वह कानून के अनुसार ही कर सकता है। प्रतिरक्षा सेवाओं, युद्ध और शान्ति आदि के विषय में कानून बनाने की शक्ति केवल संसद को प्राप्त है। अतः भारतीय राष्ट्रपति संसद की स्वीकृति के बिना न तो युद्ध की घोषणा कर सकता है और न ही सेनाओं का प्रयोग कर सकता हैं।
(iv) वैदेशिक क्षेत्र में शक्ति :
भारतीय संघ का वैधानिक प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति वैदेशिक क्षेत्र में भारत का प्रतिनिधित्व करता है। वह विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों के लिए राजदूतों व कूटनीतिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति करता है और विदेशों के राजदूत व राजनयिक प्रतिनिधियों के प्रमाण-पत्रों को स्वीकार करता है। विदेशों से सन्धियाँ और समझौते भी राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं।
(2) विधायी शक्तियाँ :
भारत का राष्ट्रपति भारतीय संघ की कार्यपालिका का वैधानिक प्रधान तो है ही, उसे भारतीय संसद का भी अभिन्न अंग माना गया है और इस रूप में राष्ट्रपति को विधायी क्षेत्र की निम्न शक्तियाँ प्राप्त हैं।
(i) विधायी क्षेत्र का प्रशासन :
राष्ट्रपति को विधायी क्षेत्र के प्रशासन से सम्बन्धित अनेक शक्तियाँ प्राप्त हैं। वह संसद का अधिवेशन बुलाता है और अधिवेशन समाप्ति की घोषणा करता है। वह प्रधानमंत्री की सिफारिश पर लोकसभा को उसके निश्चित कान से पूर्व भी भंग कर सकता है। संसद के अधिवेशन के प्रारम्भ में राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को सम्बोधित करता है। उसके द्वारा अन्य अवसरों पर भी संसद को संदेश या उनकी बैठकों में भाषण देने का कार्य किया जाता है।
(ii) विधेयक पर निषेधाधिकार का प्रयोग :
संसद द्वारा स्वीकृत प्रत्येक विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही कानून का ९५ प्रण करता है। वह साधारण विधेयक को कुछ सुझाव के साथ संसद को पुनः विचार के लिए वापस लौटा सकता है। लेकिन यदि वह विधेयक संसद द्वारा पुनः संशोधन के साथ या बिना संशोधन के पारित कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति को दूसरी बार उसे स्वीकृत करना पड़ता है।
(iii) सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति :
राष्ट्रपति को राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है। जिनके द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला या अन्य किसी क्षेत्र में विशेष सेवा की गयी हो। वह लोकसभा में 2 आंग्ल-भारतीय सदस्यों को भी मनोनीत कर सकता है।
(iv) अध्यादेश जारी करने की शक्ति :
जिस समय संसद का अधिवेशन न हो रहा तो उस समय राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्राप्त है। ये अध्यादेश संसद का अधिवेशन प्रारम्भ होने के 6 सप्ताह बाद तक लागू रहेंगे, लेकिन संसद चाहे तो उसके द्वारा इस अवधि से पूर्व भी इन अध्यादेशों को समाप्त किया जा सकता है।
(3) वित्तीय शक्तियाँ :
संसद में प्रत्येक वित्त विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही प्रस्तावित होता है। वह बजट को संसद में रखवाता है। भारत को आकस्मिक निधि पर राष्ट्रपति का नियंत्रण होता है। महालेखा परीक्षक का वार्षिक प्रतिवेदन वह संसद में प्रस्तुत कराता है।
(4) न्यायिक शक्तियाँ :
राष्ट्रपति के पास किसी भी अपराधी को क्षमा प्रदान करने, दण्ड को स्थगित या कम करने का अधिकार है। वह किसी मामले पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श माँग सकता है।
उत्तर 29.
विधानपरिषद् का गठन :
विधानसभा को विधान परिषद् की उत्पत्ति (सृजन) तथा समाप्ति (उन्मूलन) के लिए संसद से सिफारिशें करने का अधिकार है। अनुच्छेद 169 के अनुसार यदि विधानसभा अपनी पूरी सदस्य संख्या के बहुमत से तथा उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या के दोतिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर देती है तो संसद इस राज्य के लिए विधान परिषद् का सृजन अथवा समाप्ति के लिए कानून बनायेगी।
विधानपरिषद् के अधिकार तथा कार्य निम्न प्रकार से हैं।
(1) कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य :
विधानपरिषद् के |सदस्य मंत्रिपरिषद् के सदस्य हो सकते हैं। विधानपरिषद् प्रश्नों, प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मंत्रिपरिषद् को नियंत्रित कर सकती हैं, किन्तु उसे मंत्रिपरिषद् को पदच्युत करने का
अधिकार नहीं है। यह कार्य केवल विधानसभा के ही द्वारा किया जा सकता है।
(2) कानून निर्माण सम्बन्धी कार्य :
धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं तथा ये विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। लेकिन इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 197 में व्यवस्था की गई है कि यदि कोई विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद विधानपरिषद् द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है या परिषद् विधेयक में ऐसे संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार्य नहीं होते या परिषद् के समक्ष विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है, तो विधानसभा इस विधेयक को पुनः स्वीकृत करके विधानपरिषद् को भेज़ सकती है।
यदि परिषद् विधेयक को पुनः अस्वीकृत कर देती है अथवा विधेयक रखे जाने की तिथि से एक माह बाद एक विधेयक पास नहीं करती या परिषद् विधेयक में पुनः ऐसे संशोधन करती हैं जो विधानसभा को स्वीकार नहीं होते तो विधेयक विधानपरिषद् द्वारा पारित किये जाने के बिना ही दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है। इस प्रकार विधानपरिषद् किसी साधारण विधेयक को केवल चार माह तक ही रोक सकती है। विधानपरिषद् किसी विधेयक को समाप्त नहीं कर सकती।
(3) वित्त सम्बन्धी कार्य :
संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि धन विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं, विधानपरिषद् में नहीं। विधानसभा जब किसी धन विधेयक को पारित कर सिफारिशों के लिए विधानपरिषद् के पास भेजती हैं तो विधानपरिषद् 14 दिन तक धन विधेयक को अपने पास रोक सकती है। यदि वह 14 दिन के अन्दर अपनी सिफारिशों सहित विधेयक विधानसभा को नहीं लौटाती है, तो वह विधेयक उस रूप में दोनों सदनों से पारित समझा जाता हैं जिस रूप में उसे विधानसभा ने पारित किया था।
अथवा
उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार-उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार तीन प्रकार के हैं
1. प्रारम्भिक,
2. अपीलीय
3. प्रशासनिक।
1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार :
इसके अन्तर्गत कुछ विशेष प्रकार के मुकदमें आते हैं जो सीधे उच्च न्यायालय में पेश हो सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति, अधिकारी या सरकार द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है तो प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत उच्च न्यायालय इससे सम्बन्धित आदेश, निर्देश या रिट जारी कर सकता है। संसद या विधानसभा या स्थानीय स्वशासन संस्था के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका (रिट) उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जा सकती है।
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार :
उच्च न्यायालय को अपीलीय क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है जिसके अन्तर्गत वह दीवानी और फौजदारी मामलों में अपने अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील सुन सकता है। यदि सत्र न्यायालय फौजदारी मामलों में किसी अपराधी को मृत्युदण्ड देता है, तो उस मृत्युदण्ड की पुष्टि उच्च न्यायालय से आवश्यक हैं। भूराजस्य सम्बन्धी मामलों में राजस्व मण्डल के निर्णयों के विरुद्ध वह याचिका (रिट) सुन सकता है। पेटेन्ट, उत्तराधिकार, दिवालियापन तथा संरक्षणता से जुड़े मामलों में उच्च न्यायालय अपील सुन सकता है।
3. प्रशासनिक क्षेत्राधिकार :
उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यप्रणाली का पर्यवेक्षण करने का अधिकार हैं। अधीनस्थ न्यायालयों के अधिकारियों की नियुक्ति, पदोन्नति, पदावनति के सम्बन्ध में नियम बना सकता है। मुकदमों को विचार हेतु एक से दूसरे न्यायालयों में स्थानान्तरित या अपने पास सुनवाई हेतु मँगवा सकता है। मौलिक अधिकारों व संविधान की रक्षा सम्बन्धी शक्ति प्राप्त हैं। इन्हें हानि पहुँचाने वाले कानूनों को अवैध ठहरा सकता है। उच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय भी है। इसके निर्णय सुरक्षित रखे जाते हैं तथा दूसरे न्यायालयों में बतौर प्रमाण प्रस्तुत किये जा सकते हैं। यह अपने निर्णयों का अनुपालन न करने वाले व्यक्ति को न्यायिक अवमानना के लिए दण्डित कर सकता है।
उत्तर 30.
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