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RBSE Class 11 Hindi काव्यांग परिचय छंद

July 11, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi काव्यांग परिचय छंद

छन्द कविता की स्वाभाविक गति के नियम-बद्ध रूप हैं। सामान्य धारणा के अनुसार जातीय संगीत और भाषावृत्ति के आधार पर निर्मित लयादर्श की आवृत्ति को छन्द कहते हैं। छन्द में निश्चित मात्रा या वर्ण की गणना होती है। छन्द के आदि आचार्य पिंगल हैं। इसी से छन्दशास्त्र को ‘पिंगलशास्त्र’ भी कहते हैं।

चरण-प्रत्येक छन्द चरणों में विभाजित होता है। इनको पद या पाद कहते हैं। जिस प्रकार मनुष्य चरणों पर चलता है, उसी प्रकार कविता भी चरणों पर चलती है। एक छन्द में प्रायः चार चरण होते हैं जो सामान्यत: चार पंक्तियों में लिखे जाते हैं। किन्हीं-किन्हीं छन्दों में, जैसे-छप्पय, कुण्डलिया आदि में छह चरण होते हैं। वर्ण और मात्रा-वर्गों की गणना करते समय वर्ण चाहे लघु हो अथवा गुरु, उसे एक ही माना जाता है, यथा-रम, ‘राम’, ‘रामा’, तीनों शब्दों में दो-दो वर्ण हैं। मात्रा से अभिप्राय उच्चारण के समय की मात्रा से है। गुरु में लघु की अपेक्षा दूना समय लगता है इसलिए मात्राओं की जहाँ गणना होती है वहाँ लघु की एक मात्रा होती है और गुरु की दो मात्राएँ होती हैं। लघु का संकेत खड़ी रेखा’।’ और गुरु का संकेत वक्र रेखा ‘5’ होता है। लघु के लिए ‘ल’ और गुरु के लिए ‘ग’ के संकेतों का भी प्रयोग होता है।

गण-तीन वर्षों के लघु गुरु क्रम के अनुसार योग को गण कहते हैं। गणों को समझने के लिए निम्न सूत्र उपयोगी है

♦ यमाताराजभानसलग्’

इस सूत्र से आठों गणों का स्वरूप ज्ञात हो जाता है। यथा –
RBSE Class 11 Hindi काव्यांग परिचय छंद 1

♦ सम, अर्द्धसम और विषम।

जिन छन्दों के चारों चरणों की मात्राएँ या वर्ण एक से हों वे ‘सम’ कहलाते हैं; जैसे चौपाई, इन्द्रवज्रा आदि। जिनमें पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राओं या वर्गों में समता हो वे ‘अर्द्धसम’ कहलाते हैं; जैसे-दोहा, सोरठा आदि। जिन छन्दों में चार से अधिक छः चरण हों और वे एक से न हों, वे विषम कहलाते हैं, जैसे-छप्पय और कुण्डलिया।

गति-पढ़ते समय कविता के स्पष्ट सुखद प्रवाह को गति कहते हैं।
यति-छन्दों में विरामं या रुकने के स्थलों को यति कहते हैं।

छन्द के प्रकार
मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं-मात्रिक और वर्णवृत्त। मात्रिक छन्द-मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है, वर्गों के लघु और गुरु के क्रम का विशेष ध्यान नहीं रखा। जाता है। इन छन्दों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या नियत रहती है। मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं-सम, अर्द्धसम और विषम।

वर्णवृत्त छन्द-जिन छन्दों की रचना वर्गों की गणना के आधार पर की जाती है, उन्हें वर्णवृत्त या वर्णिक छन्द कहते हैं। वर्णवृत्तों के तीन मुख्य भेद हैं-सम, अर्द्धसम, विषम।

कतिपय छंदों के उदाहरण:।
(1) दोहा (मात्रिक अर्द्धसम छंद)

लक्षण:

  1. विषम (पहले व तीसरे) चरणों में 13-13 मात्राएँ।
  2. सम (दूसरे व चौथे) चरणों में 11-11 मात्राएँ।
  3. विषम चरणों के अंत में गुरु-लघु (।ऽ) न हों।

उदाहरण:
ऽ ।। ।।। ।ऽ। ।। ।। ।। ।।। ।ऽ।
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि
।।।। ।।।। । । । ।। ।। ऽ ऽ।। ।। ऽ।
वरनउँ रघुवर विमल यशु, जो दायक फल चारि।।

(2) सोरठा (मात्रिक अर्द्धसम छंद) लक्षण:

  1. विषम (पहले व तीसरे) चरणों में 11-11 मात्राएँ।
  2. सम (दूसरे व चौथे) चरणों में 13-13 मात्राएँ।
  3. तुक विषम चरणों में मिलती है।
  4. यह छंद दोहा का उलटा होता है।

उदाहरण:
। । । ऽ ।। ऽ। ।। ।ऽ। ऽ।। ।।।
अस विचार मति धीर, तजि कुतर्क संसय सकल।
।।। ऽ। ।।ऽ। ।।ऽ।। ऽ।। ।।।
भजहु राम रघुवीर, करुनाकर सुन्दर सुखद।

(3) चौपाई (मात्रिक सम छंद)
लक्षण:

  1. इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ।
  2. चरण के अंत में गुरु-लघु (51) न हों।
  3. चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु हों।

उदाहरण:
ऽ।। ।।। ।ऽ।। ऽऽ
मंगल भवन अमंगल हारी,
।।। । ।।।। ।।। ।ऽऽ
द्रवहु सुदेशरथ अजिर बिहारी।

(4) रोला (मात्रिक सम छंद) लक्षणं:

  1. इसके प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ।
  2. चरण में 11 व 13 मात्राओं के क्रम से यति।

उदाहरण:
ऽ ।। ।। ऽ ।ऽ ।ऽ ।।।ऽ ।ऽ ऽ
नन्दन वन था जहाँ, वहाँ मरुभूमि बनी है।
।ऽ ।।। ऽऽ। ।ऽ ऽऽ। । ऽ ऽ
जहाँ सघन थे वृक्ष, वहाँ दावाग्नि घनी है। जहाँ मधुर मालती, सुरभि रहती थी फैली। फूट रही है आज, वहाँ पर फूट विषैली।

(5) मन्दाक्रान्ता। (मन्दाक्रान्ता श्रुति रस ऋषि मा-भ-ना-ता-ते-गा-गा) लक्षण:

  1. इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण।
  2. प्रत्येक चरण में क्रमश: मगण, भगण, नगण, दो तगण और अंत में दो गुरु वर्ण।
  3. यति 4, 6, 7 वर्गों पर होती है।

उदाहरण:
ऽऽ ऽऽ ।। ।। ।ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽऽ
तारे डूबे, तम टल गयो, छा गयी व्योम लाली।
पक्षी बोले, तमचुर जगे, ज्योति फैली दिशा में।
शाखा डोली, तरुनिचय की, कंज फूले सरों में।
धीरे-धीरे, दिनकर कढ़े तामसी रात बीती।

(6) शिखरिणी (रस रुद्रों से छिन्न शिखरिणी य-म-न-स-भ-ल-गा)

लक्षण:

  1. इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण।
  2. प्रत्येक चरण में क्रमश: यगण, मगण, नगण, संगण, भगण और अंत में लघु-गुरु वर्ण।
  3. यति 6, 11 वर्षों पर होती है।
    । ऽ ऽ ऽऽ ऽ ।।। ।।ऽ ऽ ।।। ऽ

अनूठी आभा से, सरस-सुषमा से सुरस से।,
बना देती थी बहु गुणमयी भू विपिन को।
निराले फूलों की विविध दलवाली अनुपमा।
जड़ी बूटी हो हो बहु फलवती थी बिलसती।

(7) वसन्ततिलका (वसन्ततिलका त-भ-ज-ज-गा-गा) लक्षण:

  1. इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण।
  2. प्रत्येक चरण में क्रमशः तगण, भगण, जगण, जगण और अंत में दो गुरु वर्ण।। उदाहरण:

RBSE Class 11 Hindi काव्यांग परिचय छंद 5
या थी नवागत वधू गृह में दिखती।
कोई न और इनको तज के कहीं था।
सूने सभी सदन गोकुल के हुए थे।

(8) मालिनी (न-न-म-य-य युता सा मालिनी सुप्रसिद्धा) लक्षण:

  1. प्रत्येक चरण में 15 वर्ण।
  2. 8 और 7 वर्गों पर यति।
  3. प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण, नगण, मगण, यगण, यगण।।

उदाहरण:
RBSE Class 11 Hindi काव्यांग परिचय छंद 4
सकुशल रेह के औ विघ्न-बाधा बचा के।
निज प्रिय सुत दोनों साथ लेके सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे गेह-स्वामी हमारे।

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मात्राओं अथवा वर्गों की संख्या या क्रम पर आधारित पद्य के बंध को कहते हैं
(क) मात्रक।
(ख) माप
(ग) छंद
(घ) बंध।
उत्तर:
(ग) छंद

प्रश्न 2.
‘मात्रिक’ के अतिरिक्त छंद का दूसरा प्रकार है
(क) अमात्रिक
(ख) आक्षर
(ग) वर्णवृत्त
(घ) व्यांजनिक।
उत्तर:
(ख) आक्षर

प्रश्न 3.
प्रत्येक ‘गण’ में वर्गों की संख्या होती है
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

प्रश्न 4.
यगण का सही सूत्र है
(क) ।।ऽ
(ख) ।।।
(ग) ऽऽ।।
(घ) ।ऽऽ।
उत्तर:
(घ) ।ऽऽ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में सममात्रिक छन्द है
(क) सोरठा
(ख) चौपाई
(ग) दोहा
(घ) बरवै।
उत्तर:
(ख) चौपाई

प्रश्न 6.
पुनि पुनि करत प्रनाम उठाए। सिर कर कमल परस बैठाए।
सीय अंसीस दीन्ह मन माँही। मगन सनेह देह सुधि नाँहीं।।
उपर्युक्त पंक्तियों में छंद है-
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) चौपाई
(घ) बरवै।
उत्तर:
(ग) चौपाई

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में वर्णवृत्त (छंद) है”
(क) दोहा
(ख) हरिगीतिका
(ग) इन्द्रवज्रा
(घ) बरवै।
उत्तर:
(ग) इन्द्रवज्रा

प्रश्न 8.
मरते-मरते अरि के दल में वह भीषण मार मचा निकली थी।
झरते-झरते कल कंज कली निज गंध, यहाँ बिखरा मचली थी।
इन पंक्तियों में छन्द है-
(क) सुन्दरी सवैया
(ख) मत्तगयंद
(ग) बसंततिलका
(घ) उपेन्द्रवज्रा।
उत्तर:
(क) सुन्दरी सवैया

प्रश्न 9.
बालकी बिसाल बिकराल ज्वाल-जाल मानो, लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है। कैथों व्योम वीथिका भरे है भूरि, धूमकेतु, वीर रस वीर तरवारि-सी उघारी है। इन पंक्तियों में छन्द है
(क) सुन्दरी सवैया
(ख) मनहर कवित्त
(ग) मत्तगयंद।
(घ) इन्द्रवज्रा।
उत्तर:
(ख) मनहर कवित्त

प्रश्न 10.
अवधि शिला का उर पर था गुरुभार।
तिल तिल काट रही थी दृग जलधार।।
इन पंक्तियों में छन्द है–
(क) कुण्डलिया
(ख) रोला।
(ग) हरिगीतिका
(घ) बरवै।
उत्तर:
(घ) बरवै।

प्रश्न 11.
भू में रमी शरद की कमनीयता थी।
नीला अनन्त नभ निर्मल हो गया था।
थी छा गयी ककुम में असिता सिता भी।
उत्फुल्ल सी प्रकृति थी प्रतिभात होती।।
इन पंक्तियों में छन्द है
(क) मालिनी।
(ग) बसन्ततिलका
(घ) उपेन्द्रवज्रा।
उत्तर:
(ग) बसन्ततिलका

प्रश्न 12.
नव उज्ज्वल जलधार, हार हीरक सी सोहति।।
बिच-बिच छहरति बूंद, मध्य मुक्ता मनि पोहति।।
इस पद्य में छन्द है
(क) रोला
(ख) दोहा
(ग) हरिगीतिका
(घ) बरवै।
उत्तर:
(क) रोला

प्रश्न 13.
लो उदित होता रवि गगन में, अरुण आभा आ रही। अरविन्द पर मकरन्द की अब, नव छटा है छा रही। इस पद्य में छन्द है
(क) सवैया
(ख) रोला
(ग) हरिगीतिका
(घ) उपेन्द्रवज्रा।
उत्तर:
(ग) हरिगीतिका

प्रश्न 14.
बड़ा कि छोटी कुछ काम कीजै, परन्तु पूर्वापर सोचे लीजै।
बिना विचारे यदि काम होगा, कभी न अच्छा परिणाम होगा। इसमें छन्द है
(क) इन्द्रवज्रा
(ख) सवैया.
(ग) चौपाई
(घ) उपेन्द्रवज्रा।
उत्तर:
(घ) उपेन्द्रवज्रा।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
छंद की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जिस शब्द योजना में वर्षों या मात्राओं और यति-गति का विशेष नियम हो, उसे छंद कहते हैं।

प्रश्न 2.
मात्रा किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उस समय या काल को मात्रा’ कहा जाता है।

प्रश्न 3.
यति क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छंद के पढ़ते समय नियमानुसार निश्चित स्थान पर कुछ ठहराव को यति कहते हैं।

प्रश्न 4.
गति क्या है?
उत्तर:
प्रत्येक छंद की अपनी लय होती है। उस लय से छंद को पढ़ने में मधुरता आती है। छंद की उस लय को ‘गति’ कहते हैं।

प्रश्न 5.
तुक से आप क्या समझते हो?
उत्तर:
छंद के चरणों की अंतिम ध्वनि की समानता को तुक कहते हैं।

प्रश्न 6.
तुकांत छंद और अतुकांत छंद किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन छंदों के चरणों की अंतिम ध्वनियाँ मिलती हैं, उन्हें तुकांत और जिनकी तुक नहीं मिलती है, उन्हें अतुकांत छंद कहते

प्रश्न 7.
गण क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तीन वर्गों के समूह को गण कहते हैं। गणों की संख्या आठ है।

प्रश्न 8.
छंद के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
छंद दो प्रकार के होते हैं-
(i) वर्णिक छंद
(ii) मात्रिक छंद।

प्रश्न 9.
चौपाई में कितने चरण होते हैं? प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर:
चौपाई में चार चरण होते हैं; प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं।

प्रश्न 10.
दोहा के चरणों में कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर:
दोहा के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

प्रश्न 11.
रोला छंद में कुल कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर:
रोला छंद में कुल 24 मात्राएँ होती हैं।

प्रश्न 12.
उपेन्द्रवज्रा छन्द की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जिस छंद के प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण तथा अंत में दो गुरु के क्रम से 11 वर्ण होते हैं, वहाँ उपेन्द्रवज्रा छन्द होता

प्रश्न 13.
बसन्ततिलका छंद में कुल कितने वर्ण होते हैं?
उत्तर:
बसन्ततिलका छंद के चारों चरणों में तगण, भगण, जगण, जगण तथा दो गुरु के क्रम से 14 वर्ण होते हैं।

प्रश्न 14.
मालिनी छंद में कितने वर्ण होते हैं?
उत्तर:
मालिनी छंद के प्रत्येक चरण में नगण, नगण, भगण, यगण, मगण के क्रम के 15 वर्ण होते हैं।

प्रश्न 15.
मत्तगयंद छंद की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जिस छंद के प्रत्येक चरण में सात भगण तथा दो गुरु के क्रम में 23 वर्ण होते हैं वहाँ मत्तगयंद छंद होता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चौपाई छन्द का लक्षण और उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
चौपाई छन्द में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (।ऽ।) अथवा तगण (ऽऽ।) नहीं आना चाहिए।
उदाहरण:
ऽ।। ।। ऽ।। ।। ऽऽ = 16 मात्राएँ।
गोपद जल बूढ़हिं घट जोनी
।।। ।ऽ ।। ऽ।। ऽऽ = 16 मात्राएँ
सहज छमा बरु छाँड़हिं छोनी।
मसक फैंक मकु मेरु उड़ाई।।
होइ न नृप मदु भरतहिं भाई।
प्रस्तुत उदाहरण: के प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ हैं, अत: यह चौपाई छन्द है।

प्रश्न 2.
दोहा छन्द का लक्षण और उदाहरण: दीजिए।
उत्तर:
दोहा मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रथम तथा तृतीय चरण में 13–13 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। अन्तिम वर्ण लघु होना चाहिए।
उदाहरण:
।।। ऽ।।। ऽ।ऽ ऽ। ऽ। ।ऽ। = 13 + 11 मात्राएँ।

लसत मंजुमुनि मण्डली, मध्य सीय-रघुचंदु।
ज्ञान सभा जनु तनु धरें, भगति सच्चिदानंदु।

प्रस्तुत छंद के प्रथम तथा तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ हैं। अत: दोहा छन्द है।

प्रश्न 3.
सोरठा छन्द का लक्षण और उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
सोरठा मात्रिक छन्द है। इसके चार चरण होते हैं। इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण। में 13-13 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण:
ऽ।। ।। ।। ऽ। ।ऽऽ। ।। ऽ। ।। = ११ + १३ मात्राएँ
बंदहु गुरु पद कंज, कृपासिन्धु नर रूप हरि।
महामोह तम पुंज, जासु वचन रविकर निकर।।

अथवा
जे सुमिरत सिधि होय, गन नायक करिवर वर्दन।
करहुँ अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभगुन सदन।

इस छन्द के प्रथम तथा तृतीय चरणों में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 11-11 मात्राएँ हैं, अत: यह सोरठा छन्द हैं।

प्रश्न 4.
रोला छन्द की परिभाषा और उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
रोला सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11वीं और 13वीं मात्राओं पर यति (अल्प विराम) होती हैं।
उदाहरण:
।।। ।ऽऽ ।। ।ऽ। ।। ।। ऽऽ = 24 मात्राएँ।
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।।
झुके कूल सों जल परसन जित मनहुँ सुहाये।।
किधों मुकुर में लखत उझकि सब निज-निज सोभा।
कै प्रनवत जिय जानि परम पावन फल लोभा।।

प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होने से यह रोला छन्द है।

प्रश्न 5.
कुण्डलिया छन्द की परिभाषा तथा उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
कुण्डलिया छन्द दो छन्दों के मेल से बना है। इसमें पहली दो पंक्तियाँ दोहा छन्द की और शेष चार चरण रोला छन्द के होते हैं। दोहा के अन्तिम चरण की रोला के प्रथम चरण में आवृत्ति होती है। दोहा के प्रथम चरण का प्रथम शब्द रोला का अन्तिम शब्द होता है।

उदाहरण:
ऽऽ ऽ।। ।ऽ। ऽ ।ऽ ऽ।। ऽ। =24 मात्राएँ।
लाठी में गुना बहुत हैं, सदा राखिए संग।
गहर नदी नाला जहाँ तहाँ बचावै अंग।
।ऽ ।ऽऽ ऽ। ।।। ऽऽ ऽ ऽऽ = 24 मात्राएँ
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कें मारे।
दुसमन दावागीर होइ तिनहूँ को झारै।
कहि गिरिधर कविराय सुनहु हो मेरे पाठी।

सब हथयारन छाँड़ि, हाथ में लीजै लाठी। इस छन्द में प्रथम छन्द दोहा है तथा द्वितीय छन्द रोला है। अत: यह कुण्डलिया छन्द है।

प्रश्न 6.
हरिगीतिका छन्द का लक्षण और उदाहरण: दीजिए।
उत्तर:
यह चार चरणों का सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। 16 तथा 12 पर यति होती है। इस छन्द के प्रत्येक चैरण के अन्त में ‘रगण’ का प्रयोग होता है। चरण के अन्त में एक लघु तथा एक गुरु वर्ण होता है।

उदाहरण:
।। ऽ। ऽऽऽ ।ऽ ।। ।। ।ऽ ऽऽ ।ऽ = 28 मात्राएँ।

खग वृन्द सोता है अत: कल, कल नहीं होता यहाँ। बस मंद मारुत का गमन ही, मौन खोता है यहाँ। इस भाँति धीरे से परस्पर, कह सजगता की कथा।
यों दीखते हैं, वृक्ष से ही, विश्व के प्रहरी यथा।। यहाँ प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होने से हरिगीतिका छन्द है।

प्रश्न 7.
बरबै छन्द की परिभाषा और उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
यह चार चरण वाला अर्द्ध सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में 12 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 7 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (।ऽ।) का प्रयोग होता है। उदाहरण:
।। ।। ऽऽ ।। ऽ ।। ।।ऽ। 12 + 7 = 15
पुनि पुनि बंदौ गुरु के पद जलजात।
जिन प्रताप ते मन के, तिमिर विलात।

इस छन्द के प्रथम तथा तृतीय चरण में 12 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 7 मात्राएँ होने से बरवै छन्द है।

प्रश्न 8.
इन्द्रवज्रा छन्द की परिभाषा तथा उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
इन्द्रवज्रा समवर्ण छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में तगण, तगण, जगण तथा गुरु, गुरु इस प्रकार 11 वर्ण होते हैं। उदाहरण: तगण तगण जगण गुरु गुरु (त त ज गा गा इन्द्रवज्रा-स्मरण सूत्र)
ऽऽ ।ऽ ऽ। ।ऽ। ऽ ऽ
आया नहीं काम स्वदेश के जो।।
गाया नहीं गान स्वतन्त्रता का।। = 11 वर्ण
जीता नहीं है यह सत्य मानो।

प्रश्न 9.
उपेन्द्रवज्रा छन्द का लक्षण और उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
उपेन्द्रवज्रा समवर्ण छन्द है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण तथा दो गुरु वर्गों के क्रम से 11 वर्ण होते हैं।
उदाहरण:
जगण तगण जगण गुरु गुरु (ज त ज गा गा उपेन्द्रवज्रा-स्मरण सूत्र)
।ऽ ।ऽऽ ।। ऽ। ऽऽ = 11 वर्ण
गया उजाला अब शाम आई।
दिशा दिशा में छवि श्याम छाई।
हुए सभी मौन विहंग देखो।
उगे शनैः तारक वृंद देखो।

प्रश्न 10.
बसंततिलका छन्द का लक्षण और उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
बसंततिलका छन्द समवर्ण वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में तगण, भगण, जगण, जगण और दो गुरु वर्गों के क्रम से 14 वर्ण होते हैं।
उदाहरण:
तगण भगण जगण जंगण गुरु-गुरु (त भ ज ज गा गा बसंततिलका-स्मरण सूत्र)
ऽऽ ।ऽ ।।। ऽ।। ऽ। ऽऽ
आओ यहाँ मधुर-सी कुछ बात छेड़ो।
भूलो सभी विगत की कटु भावनाएँ।
आए नई मधुमई ऋतु वाटिका में।
कूकें वही पिक भर्ती रस से यहाँ रे।

प्रश्न 11.
मत्तगयंद (सवैया) छन्द की परिभाषा और उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
मत्तगयंद छन्द समवर्ण वृत्त है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु वर्षों के क्रम से 23 वर्ण। होते हैं।
उदाहरण:
भगण भगण भगण भगण भगण भगण भगण गुरु गुरु
ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽऽ
या लेकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर कौ तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नव निधि को सुख नंद की धेनु चराइ बिसारीं।
आँखिनु ते रसखान कबों व्रज के वन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हूँ कलधौत के धाम करील की कुंजने ऊपर बारौं।

प्रश्न 12.
सुन्दरी सवैया की परिभाषा उदाहरण:सहित दीजिए।
उत्तर:
सुन्दरी सवैया में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में आठ सगण तथा एक गुरु के क्रमानुसार 24 वर्ण होते हैं।
उदाहरण:
संगण सगण सगण संगण संगण सगण संगण सगण गुरु = 8 सगण +1 गुरु
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ऽ
मरते मरते अरि के दल में वह भीषण मार मचा निकली थी।
झरते झरते कल कंज कली निज गंध यहाँ बिखरा मचली थी।
भरते भरते यश जीवन में शुभ दीपक-सी कुछ रात जली थी।
गिरते-गिरते रण में अरि को चकचौंध गई बन के बिजली थी।

प्रश्न 13.
मनहर कवित्त की परिभाषा तथा उदाहरण: लिखिए।
उत्तर:
मनहर वर्णिक मुक्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं। 16 तथा 15 वर्ण पर यति होती है तथा अन्तिम वर्ण गुरु होता है।
उदाहरण:
हाट, बाट, कोट, ओट, अटनि, अगार, पौरि = 16 वर्ण
खोरि खोरि दौरि दौरि दीन्ही अति अगि है। = 15 वर्ण
आरत पुकारत सँभारत न कोऊ काहू,।
ब्याकुल जहाँ सो तहाँ लोग चले भागि है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
छन्द किसे कहते हैं? छन्द के अंगों का परिचय दीजिए।
उत्तर:
वर्ण अथवा मात्राओं की निश्चित संख्या एवं क्रम के आधार पर प्रस्तुत किए गए काव्य-रचना के बाह्य स्वरूप को छन्द कहते हैं। प्रत्येक छन्द में चार चरण होते हैं। एक से अधिक छन्दों को मिलाकर बने छन्दों में छह चरण भी होते हैं।

छन्दों के भेद-वर्ण अथवा मात्रा की गणना के आधार पर छन्दों के दो भेद किए गए हैं-

  1. वर्णिक या वर्णवृत्त तथा
  2. मात्रिक।

वर्णिक छन्द-जिन छन्दों में वर्गों की संख्या निश्चित होती है, वे वर्णवृत्त या वर्णिक छन्द कहे जाते हैं। वर्षों की गणना में मात्राओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

मात्रिक छन्द-जिन छन्दों में चरणानुसार मात्राओं की संख्या निर्धारित रहती है, उनको मात्रिक छन्द कहते हैं। इन छन्दों में वर्षों की संख्या पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

मात्रा-वर्ण के उच्चारण में लगने वाला समय मात्रा कहा जाता है। उच्चारण-अवधि के अनुसार मात्राएँ ‘लघु’ और ‘गुरु’ कही जाती हैं। जिन मात्राओं के उच्चारण में कम समय लगता है, वे लघु मात्राएँ कही जाती हैं और जिनमें अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है, वे दीर्घ कही जाती हैं।

मात्राओं के आधार पर ही वर्ण को लघु अथवा गुरु कहा जाता है। गुरु वर्ण की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं और इसका चिह्न’5′ होता है। लघु वर्ण की एक मात्रा गिनी जाती है और इसके लिए’।’ चिह्न का प्रयोग होता है।

गुरु वर्ण-

  1. जिन वर्गों में आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ तथा इन स्वरों की मात्राएँ लगी होती हैं, गुरु वर्ण कहे जाते हैं: यथा-रा, री, रू, रे, रै।
  2. अनुस्वारयुक्त वर्ण भी गुरु वर्ण माने जाते हैं; यथा-कं,चं,तं आदि।
  3. विसर्गयुक्त वर्ण भी गुरु माना जाता है; यथा-दु:ख में ‘दुः’ वर्ण ‘अन्त:करण’ में ‘न्तः’ वर्ण गुरु है।
  4. संयुक्त वर्ण से पहले आने वाला वर्ण गुरु माना जाता है; यथा-‘कश्यप’ में क’ वर्ण गुरु है।।
  5. हलन्त वर्ण से पहला वर्ण गुरु होता है; यथा-‘अद्भुत’ में ‘अ’ गुरु माना जाता है।
  6. कभी-कभी चरण पूर्ति की सुविधा के लिए लघु को गुरु और गुरु को लघु मान लिया जाता है।

वर्ण क्या है-प्रयुक्त अक्षर को वर्ण कहा जाता है। वर्ण की गणना करते समय उसकी मात्रा पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

गण-तीन-तीन वर्षों के समूहों को, जिनमें लघु-गुरु का विशेष क्रम होता है, गण कहा जाता है। गण आठ प्रकार के हैं-यगण, मगण, तगण, रगण, जगणे, भगण, नगण तथा संगण।। गणों के नाम तथा लघु-गुरु-क्रम को सरलता से याद रखने के लिए एक सूत्र बनाया गया है-

य मा ता रा ज भा न स ल गा।

इस सूत्र के ‘य’ से लेकर ‘स’ तक के वर्ण गणों के प्रथम अक्षर को सूचित करते हैं; यथा-‘य’ से यगण, ‘मा’ से मगण, ‘ता’ से तगण आदि।

किसी गण के लघु-गुरु-क्रम को जानने के लिए सूत्र में उस गण का प्रथम अक्षर लीजिए और उसमें आगे के दो वर्ण और जोड़िए; जैसे-‘यगण’ का क्रम जानने के लिए सूत्र में से य तथा मा और ता ये तीन वर्ण लिए जाएँगे। इस प्रकार यमाता’ यगण का लक्षण है। इपमें लघु-गुरु का क्रम हुआ-‘।ऽऽ’।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित छन्दों में से किसी एक छन्द का नाम बताइए और उसका लक्षण लिखिए।
RBSE Class 11 Hindi काव्यांग परिचय छंद 2
उत्तर:
(क) अब जीवन की है कपि, आस न कोय। = 19 मात्राएँ।
कनगुरिया की मुदरी, कंगन होय।।

यह छंद बरवै है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रथम तथा तृतीय चरण 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ होती हैं। द्वितीय तथा चतुर्थ चरण के अंत में जगण (।ऽ।) होता है।
RBSE Class 11 Hindi काव्यांग परिचय छंद 3

(ख) बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै, = 11 वर्ण
परन्तु पूर्वापर सोच लीजै।
बिना विचारे यदि काम होगा,
कभी न अच्छा परिणाम होगा।

यह उपेन्द्रवज्रा छन्द है। यह वर्णवृत्त है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण तथा दो गुरु वर्गों के क्रम से 11 वर्ण होते हैं।
ऽ।। ।।। ऽ। ।। ऽऽ ।।।। ।।। ।ऽ।। ऽऽ

(ग) मंगल सगुन होहिं सब काहू। फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू। = 16 मात्राएँ
भरतहि सहित समाज उछाहू। मिलिहहिं राम मिरहिं दुख दाह।

यह चौपाई छंद है। यह मात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं।

प्रश्न 3.
सोरठा तथा दोहा छन्दों का सोदाहरण अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सोरठा– मात्रिक छन्द है। इसके चार चरण होते हैं। प्रथम तथा तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। प्रथम तथा तृतीय चरण के अन्त में गुरु लघु का प्रयोग होता है और प्रायः तुक भी मिलती है;
यथा-
ऽ।। ऽऽ ऽ। ।। ऽऽ ।।ऽ। ।।
मैं लखि नारी ज्ञानु, करि राखौ निरधार यह। = 11-13 मात्राएँ।
बहई रोग निदानु, वहै वैदु औसधि बाहै।। (बिहारी लाल)

दोहा-मात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते हैं। प्रथम तथा तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में अन्त में गुरु-लघु रहता है; यथा
।।ऽ ऽ।। ऽ ।ऽ ।ऽ ऽ।।। ऽ।
तुलसी पावस के समै, परयौ कोकिलनु मौनु। = 13 +11
मात्राएँ। अब तो दादुर बोलिहैं, हमैं पूछिहै कौनु। (तुलसीदास)

प्रश्न 4.
रोला तथा दोहा छन्दों का उदाहरण: सहित अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रोला-सम मात्रिक छन्द है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11 तथा 13 मात्राओं पर यति होती है; यथा
।।। ।ऽ। ।ऽ। ऽ। ऽऽ ऽ ऽऽ
कबहुँ सुधार अपार, वेग नीचे को धावै। = 11 + 13 = 24
मात्राएँ। हरहराति लहराति, सहस जोजन चलि आवै।।
मनु विधि चतुर किसान, पौन निज मन कौ पावत।।
पुन्य खेत उत्पन्न, हीर की रास उसावत।। (रत्नाकर)

दोहा-अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके दूसरे और चौथे चरण के अन्त में गुरु-लघु वर्ण आते हैं;
यथा-
।।।। ऽ।। ऽ। ऽ ।।ऽ ।ऽ ।ऽ।
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। = 13 +11 मात्राएँ।
सौंह करै, भौंहनु हँसै, दैन कहे नटि जाय।। (बिहारीलाल)

प्रश्न 5.
बरवै तथा सोरठा छन्दों में उदाहरण: सहित अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बरवै मात्रिक छन्द है। इसके चार चरण होते हैं। प्रथम तथा तृतीय चरण में 12-12 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ होती हैं। द्वितीय तथा चतुर्थ चरण के अंत में।ऽ। के क्रम के वर्ण आते हैं;
यथा-
ऽऽ ।। ।। ।। ऽ।। ।।ऽ।
बंदो पुनि पुनि गुरु के, पदे जलजात। = 12 +7 मात्राएँ।
जिने प्रताप तें मन के, तिमिरि बिलात।। (रहीम)।

सोरठा-अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते हैं। इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। पहले और तीसरे चरण के अंत में प्रायः तुक मिलती है; यथा
ऽ॥ ॥ ॥ ऽ। ।ऽ ऽ। ॥ ऽ। ॥
बंदहुँ गुरु पद कंज, कृपा सिन्धु नर रूप हरि।। = 11 +13 मात्राएँ
महामोह तम पुंज, जासु वचन रबिकर निकर।। (तुलसीदास)

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