Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय अलंकार विवेचन
अलंकार शब्द का अर्थ है आभूषण। आभूषण धारण करने से नारियों का सौन्दर्य द्विगुणित हो जाता है। अतः अलंकार का कार्य सौन्दर्य वृद्धि करना है। इसी प्रकार अलंकार वर्णों और अर्थ में स्थित होकर काव्य के सौन्दर्य को बढ़ाते हैं। अलंकारों के प्रयोग के कारण काव्य की सम्प्रेषणीयता में वृद्धि होती है, वर्णन रसात्मक हो जाता है तथा पाठक और श्रोता उसमें भावमग्न हो जाते हैं।
भारतीय काव्यशास्त्र में अलंकार को काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए आवश्यक माना गया है। संस्कृत के अनेक काव्य-मर्मज्ञों ने अलंकारों के बारे में अपना मत व्यक्त किया है तथा उनकी परिभाषायें दी हैं। कुछ काव्याचार्यों द्वारा अलंकार की परिभाषा निम्नवत् दी गई हैं –
- दण्डी -“काव्य शोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते।” (काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म अलंकार कहलाते हैं।)
- भामह -“न कान्तम् अपि निर्भूषं विभाति वनितामुखम्”। (आभूषणों के बिना जिस प्रकार नारी की शोभा नहीं होती उसी प्रकार बिना अलंकार के काव्य सुशोभित नहीं होता।)
- मम्मट -“तद दोषौ शब्दार्थों सगुणावलंकृती पुन: क्वापि।
(दोषों से रहित, गुणयुक्त तथा रसाभिव्यंजक शब्दार्थ काव्य है चाहे अलंकृत हों या न भी हों।) आचार्य मम्मट के पश्चात् हेमचन्द्र, विश्वनाथ तथा पण्डित जगन्नाथ ने अलंकार-शास्त्र पर विचार किया है। आचार्य हेमचन्द्र दोष रहित गुण सहित और अलंकार युक्त शब्दार्थ को काव्य मानते हैं। आचार्य विश्वनाथ का मानना है कि अलंकार अस्थिर धर्म है। पण्डितराज जगन्नाथ ने अपने ‘रस गंगाधर’ नामक ग्रन्थ में अलंकार शास्त्र का गहन विवेचन किया है।
हिन्दी के काव्य मर्मज्ञ आचार्यों ने भी अलंकार शास्त्र पर विचार किया है। उनके मतानुसार अलंकार काव्य के चमत्कारपूर्ण अर्थ का बोध कराते हैं। हिन्दी साहित्यिक रीतिकाल में लक्षण ग्रन्थों की रचना की परम्परा-सी रही है। चिन्तामणि ने काव्य के लिए अलंकारों का महत्व यह कहकर स्वीकार किया है –
सगुण अलंकार न सहित, दोष-रहित जो होई।
शब्द अर्थ बारौ कवित, बिवुध कहत सब कोई॥
आचार्य केशवदास तो अलंकार विहीन कविता के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करते –
जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबस, सरस सुवृत्त ।
भूषनु बिनुन बिराजई, कविता, वनिता मित्त ॥
जिस प्रकार उच्च जाति की सुन्दर लक्षणों से युक्त, सुन्दरवर्ण वाली स्त्री आभूषणों के बिना सुशोभित नहीं होती उस प्रकार काव्य की शैली और भाव उच्चकोटि के होने पर भी अलंकारों के अभाव में काव्य प्रभावशाली नहीं होता। प्रसिद्ध समालोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा है-“भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं के रूप-गुण क्रिया का अधिक तीव्रता के साथ अनुभव कराने में सहायक उक्ति को अलंकार कहते हैं। प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पंत काव्य के लिए अलंकारों की महत्ता इन शब्दों में स्वीकार करते हैं-“अलंकार केवल वाणी की सजावट के लिए नहीं हैं, वे भाव की अभिव्यक्ति के विशेष द्वार हैं, भाषा की पुष्टि के लिए, राग की परिपूर्णता के लिए आवश्यक उपादान हैं तथा काव्य के शरीर को सजाने के लिए अपेक्षित हैं।”
अलंकारों का महत्व-अलंकार काव्य के लिए आवश्यक हैं। अलंकारों के प्रयोग से काव्य सुरुचिपूर्ण तथा आकर्षक हो जाता है। उसको पढ़कर पाठक का मन रस से भरकर आनन्दित हो उठता है। अलंकार भाषा की गुणवत्ता तथा प्रभाव को बढ़ाते हैं। अलंकारों के कारण भावों की संप्रेषणीयता में वृद्धि होती है। आचार्यों ने अलंकारों को केवल काव्य की शोभा बढ़ाने वाला धर्म ही नहीं माना है। अपितु उसके गुण में वृद्धि करने वाला भी माना है। आचार्य मम्मट “अलंकृती पुनः क्वापि” कहकर यह बताना चाहते हैं कि अलंकार काव्य के लिए अनिवार्य नहीं है। बिना अलंकारों के भी सरस, सगुण, निर्दोष शब्दार्थ काव्य कहलाते हैं। सुन्दर काव्य की रचना बिना अलंकारों के हो सकती है। इसके विपरीत रसविहीन अलंकारों से लदी कविता को काव्य नहीं माना जा सकता। सूरदास कहते हैं कि बन्दर को आभूषण पहनाने से क्या लाभ (मर्कटभूषन अंग) उसी प्रकार रसविहीन चमत्कारपूर्ण पंक्ति में काव्यात्मकता नहीं हो सकती।
परिभाषा – ‘अलंकरोति इति अलंकारः’ अर्थात् जो अलंकृत करता है, उसको अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार कोई सुन्दरी नारी आभूषण धारण कर और अधिक सुन्दर लगती है, उसी प्रकार कविता अलंकार के प्रयोग के कारण अधिक प्रभावशाली तथा सरस बन जाती है। काव्य को सुसज्जित करने तथा उसके प्रभाव में वृद्धि करने वाले कारक अलंकार कहलाते हैं।
अलंकारों के प्रकार
अलंकार के मर्मज्ञ विद्वानों ने दो मुख्य भेद माने हैं – 1. शब्दालंकार। 2. अर्थालंकार।
शब्दालंकार काव्य में जहाँ चमत्कार शब्द में स्थित होता है, वहाँ शब्दालंकार होता है। जब कविता में प्रयुक्त किसी शब्द को हटाकर उसके स्थान पर उसका समानार्थी अथवा पर्यायवाची शब्द रख दिया जाय तो अर्थ में अन्तर न होने पर भी उसका आलंकारिक सौन्दर्य नष्ट हो जाता है। जैसे-‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’। इस पंक्ति को ‘यमुना पर तमाल वृक्ष छाये’ इस प्रकार परिवर्तित करने पर अनुप्रास का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
अर्थालंकार
जहाँ काव्यगत चमत्कार शब्द पर नहीं अर्थ पर निर्भर होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। वहाँ कवितायें, प्रयुक्त शब्द को हटाने तथा उसके स्थान पर उसका पर्यायवाची शब्द रखने पर भी अलंकार बना रहता है। जैसे-“नीले फूले कमलदल सी गात की श्यामता है।” इस पंक्ति में पर्यायवाची शब्द रखे जाने पर भी सौन्दर्य बना रहेगा।
उभयालंकार
जहाँ चमत्कार शब्द तथा अर्थ दोनों में स्थित रहता है वहाँ उभयालंकार माना जाता है।
शब्दालंकार तथा अर्थालंकार में अन्तर
जहाँ काव्य का सौन्दर्य अथवा चमत्कार शब्दों की विशेष योजना पर आधारित होता है, वहाँ शब्दालंकार होता है। इसके विपरीत जहाँ चमत्कार अर्थ पर आश्रित होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। ‘कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय’ में कनक शब्द दो बार प्रयुक्त होता है। इसी प्रयोग के कारण काव्य में चमत्कार की सृष्टि हो रही है। यदि ‘कनक’ शब्द के स्थान पर इसी का पर्यायवाची शब्द रखा जाये तो अर्थ में परिवर्तन होने पर भी काव्यगत आलंकारिक सौन्दर्य नष्ट हो जायेगा। जैसे –
कनक स्वर्ण ते सौ गुनी मादकता अधिकाय । में काव्य-चमत्कार नहीं है।
अर्थ के प्रधान होने अर्थात् अलंकार या चमत्कार के अर्थ में रहने पर अर्थालंकार होता है। यहाँ प्रयुक्त शब्द के स्थान पर उसका समानार्थी शब्द रखने पर भी अलंकार का सौन्दर्य बना रहता है। जैसै-“नीले फूले जलज दलसी गात की श्यामता है।” में ‘जलज’ के स्थान पर ‘कमल’ शब्द रख देने से अलंकार अप्रभावित रहता है।
अर्थालंकार पाँच प्रकार के होते हैं –
- सादृश्यमूलक अर्थालंकार
- विरोधमूलक अर्थालंकार
- शृंखलामूलक अर्थालंकार
- न्यायमूलक अर्थालंकार
- गूढार्थमूलक अर्थालंकार
पाठ्यक्रम में निर्धारित अलंकार
1. अन्योक्ति – जहाँ अप्रस्तुत (उपमान) के वर्णन के माध्यम से प्रस्तुत (उपमेय) का ज्ञान होता है वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। यह अर्थालंकार है। इसको अन्योक्ति इसलिए कहा जाता है कि जिससे कुछ कहना होता है उससे न कहकर अन्य से कहा जाता है तथा इस प्रकार उसको सूचित किया जाता है। इसमें किसी वस्तु का सीधा वर्णन न करके उसी के समान किसी वस्तु का वर्णन करके उस वस्तु का ज्ञान कराया जाता है।
उदाहरण –
(क) नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सों बंध्यौ, आगे कौन हवाल॥
यहाँ अलि को कली पर मंडराने से मना किया गया है क्योंकि अभी वह अविकसित है, फूल नहीं बनी। अलि के माध्यम से राजा जयसिंह को अपनी नवोढ़ा रानी के प्रेम-बन्धन में बँधकर राज्यषालन के कर्तव्य से विमुख होने के प्रति सतर्क किया गया है।
(ख) दस दिन आदर पाइकै, करिले आपु बखान।
जौ लगि काग सराध पखु, तौ लगि तव सनमान ।
यहाँ थोड़े समय के लिए महत्व या सम्मान पाने वाला मनुष्य प्रस्तुत है तथा कौआ अप्रस्तुत है। कौए के माध्यम से आत्मप्रशंसा करने वाले व्यक्ति को घमण्ड से बचने तथा लोगों के साथ असम्मानजनक व्यवहार करने से रोका गया है।
2. समासोक्ति – “परोक्ति भैदके शिलष्टः समासोक्तिः”-अर्थात् समासोक्ति अलंकार उसे कहते हैं जिसे श्लिष्ट प्रकृत और अप्रकृत दोनों अर्थों में असंगत विशेषणों की परोक्ति अर्थात् बोधकता कहा जाता है। उदाहरण
बाहु तुम्हारी छूकर भर उठती थी जो उल्लास से।
दुर्बल, हत-सौन्दर्य जय श्री है तव चिर वियोग के त्रास से॥
3. विभावना – विभावना अलंकार वहाँ होता है, जहाँ कारण का अभाव होने पर भी कार्य सम्पन्न होना प्रदर्शित होता है। कहीं-कहीं कल्पित कारण तथा अपर्याप्त कारण होने पर भी कार्य होता वर्णित किया जाता है। यह विशेषोक्ति अलंकार के विपरीत है। विशेषोक्ति में कारण होने पर भी कार्य नहीं होता किन्तु विभावना में कारण नहीं होती और तब भी कार्य हो जाता है।
उदाहरण
(1) पद बिनु चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना ।।
यहाँ निराकार ईश्वर का वर्णन है। उसके बिना पैरों के चलने, बिना कानों के सुनने तथा बिना हाथों के काम करने का वर्णन है। अत: विभावना अलंकार है।
(2) क्यों न उत्पात होहिं बैरिन के झुंड में।
कारे घन उमड़ि अंगारे बरसत हैं।
यहाँ युद्ध क्षेत्र में शत्रु सेना में उत्पात होने का कारण काले बादलों द्वारा अंगारों की वर्षा होना बताया गया है। यहाँ कारण (बादलों द्वारा अंगारे बरसाना) वास्तविक कारण नहीं है। वास्तविक कारण न होने पर भी किसी अन्य कल्पित कारण द्वारा कार्य होने का वर्णन होने से विभावना अलंकार है।
(3) तो सों को जेहि दो सौ आदमी सों जीत्यौ
जंग सरदार सौ हज़ार असवार को॥
यहाँ शिवाजी के पराक्रम का वर्णन है। उन्होंने दो सौ सैनिकों को साथ लेकर एक लाख घुड़सवार योद्धाओं वाली सेना को जीत … लिया है। युद्ध जीतने का कारण दो सौ सैनिकों का होना अपर्याप्त कारण है।
4. विशेषोक्ति – जहाँ कारण होने पर भी कार्य का न होना प्रदर्शित किया जाता है, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।
कार्य – कारण का विश्वव्यापी प्रसिद्ध नियम है। बिना कारण के कार्य नहीं होता किन्तु विशेषोक्ति अलंकार में प्रसिद्ध कारण होने पर भी कार्य सम्पन्न नहीं होता।
उदाहरण
(1) नेह न नैननि को कछू उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाय॥
नित्यप्रति जल पूर्ण रहने पर भी प्यास न बुझने में विशेषोक्ति अलंकार है। जल का अभाव नहीं है किन्तु प्यास नहीं बुझ रही।
(2) सुनत जुगल कर माल उठाई।
प्रेम विवस पहिराइ न जाई॥
यहाँ कारण ‘जुगल कर’ होने पर भी माला पहनाने का कार्य नहीं हो रहा है, अत: विशेषोक्ति अलंकार है।
5. दृष्टान्त – दृष्टान्त उस अलंकार को कहते हैं जिसमें उपमेय और उपमान वाक्य दोनों में, उपमान, उपमेय और साधारण धर्म का बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दिखाई देता है।
पहले एक बात कही जाती है, फिर उससे मिलती-जुलती दूसरी बात कही जाती है। इस प्रकार उपमेय वाक्य की उपमान वाक्य से बिम्बात्मक समानता प्रकट की जाती है।
उदाहरण –
(1) फूलहिं फरहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद।
मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं विरंचि सम॥
इस सोरठा के पूर्वाह्न में कहा गया है कि बेंत अमृत की वर्षा होने पर भी फूलते-फलते नहीं हैं। इसकी पुष्टि उत्तरार्ध में यह कहकर की गई है कि मूर्ख के हृदय में ब्रह्मा जी जैसा गुरु मिलने पर भी चेतना नहीं आती। यह बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है।
(2) पापी मनुज भी आज मुख से राम नाम निकालते।
देखो भयंकर भेड़िये भी, आज आँसू डालते॥
प्रथम पंक्ति में पापीजनों की दुष्टं प्रवृत्ति को भेड़िये के दृष्टान्त द्वारा व्यक्त किया गया है। ..
6. प्रतीप – प्रतीप का अर्थ है- विपरीत अथवा उल्टा। जहाँ प्रसिद्ध उपमान का उपमेय की तुलना में अपकर्ष प्रकट है, वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। प्रती अलंकार के पाँच भेद हैं –
- प्रसिद्ध उपमान को उपमेय की तरह प्रयुक्त किया जाता है, जैसे आकाश में चमकता चन्द्रमा उस सुन्दरी के मुख के समान है।
- उपमेय की किसी विशेषता का खण्डन करके उसकी समता किसी प्रसिद्ध उपमान से की जाती है। जैसे-कमल ही कोमल नहीं है, बालकृष्ण के हाथ भी उसके समान कोमल हैं।
- प्रसिद्ध उपमान का उपमेय के सामने निरादर हो, तो प्रतीप अलंकार होता है। जैसे-वीर शिवा तुम्हारी कीर्ति चाँदनी से भी अधिक चमकीली है।
- पहले उपमेय की उपमान के साथ समानता बताई जाय अथवा समानता की सम्भावना प्रगट की जाय तथा बाद में उसका खण्डन किया जाय तो प्रतीप होता है।
- उपमेय के होने की स्थिति में उपमान को व्यर्थ बताया जाय तो भी प्रतीप अलंकार होता है। जैसे-नायिका के मुख की शोभा के रहते उस गाँव में चन्द्रमा की आवश्यकता नहीं है।
उदाहरण –
(1) बहुरि विचार कीन्ह मन माही।
सीय बदन सम हिमकर नाहीं॥
यहाँ सीता के मुख्य (उपमेय) के सामने हिमकर (उपमान) को हीन दिखाया गया है, अत: प्रतीप अलंकार है।
(2) उतरि नहाए जमुन जल।
जो शरीर सम स्याम॥
यहाँ यमुना नदी के जल (उपमान) को शरीर (उपमेय) के समान बताने के कारण प्रतीप अलंकार है।
7. मानवीकरण – मानवीकरण अलंकार अंग्रेजी साहित्य के (Personification) का हिन्दी में होने वाला प्रयोग है। जब अमूर्त भावों अथवा जड़ वस्तुओं में मानवीय गुणों का आरोपण कर दिया जाता है तो मानवीकरण अलंकार होता है। मानवीकरण में प्रकृति को मानवी रूप दिया जाता है तथा निर्जीव पदार्थों को मनुष्य की तरह काम करते या सुख-दु:ख आदि भावों से पूरित और प्रभावित दिखाया जाता है। ,
उदाहरण –
(1) दिवसावसान का समय,
मेघमय आसमान से उतर रही।
वह संध्या-सुन्दरी परी-सी,
धीरे-धीरे-धीरे।
यहाँ संध्याकाल को एक-एक कदम रखकर आसमान से धरती पर उतरती हुई सुंदरी बताने के कारण मानवीकरण अलंकार है।
(2) सैकत शैया पर दुग्ध धवल,
तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल,
लेटी है श्रान्त क्लान्त निश्चल।
यहाँ कवि ने गंगा को रेत की शैया पर थककर चुपचाप लेटी हुई दुबली नारी के रूप में चित्रित किया है, अतः मानवीकरण अलंकार है।
8. व्यतिरेक – व्यतिरेक अलंकार वह होता है जिसमें उपमान की अपेक्षा उपमेय का उत्कर्ष दिखाया गया हो।
व्यतिरेक में उपमान की तुलना में उपमेय में अधिक गुण बताकर उसकी उपमान से श्रेष्ठता प्रकट की जाती है। उपमेय की उपमान से श्रेष्ठता का आधार उसमें अधिक विशेषताओं का होना होता है। प्रतीप अलंकार में उपमेय की तुलना पर अधिक जोर होता है। जिस .गुण के सम्बन्ध में उपमेय-उपमान में जैसे चन्द्रमा की कान्ति से सीता की मुख कान्ति अधिक मनोहर है। किन्तु व्यतिरेक अलंकार उपमेय में उपमान से गुणों अथवा विशेषताओं को अधिक बताकर उपमेय को श्रेष्ठ सिद्ध किया जाता है। इसमें तुलना का भाव नहीं होता । व्यतिरेक अलंकार इस प्रकार का होता है।
उदाहरण
(1) सन्त हृदय नवनीत समाना।
कहा कविन्ह परि कहै न जाना ॥
निज परताप द्रवै नवनीता॥
पर दुःख द्रवहिं सुसन्त पुनीता ॥
उपर्युक्त उदाहरण में सन्त हृदय (उपमेय) तथा नवनीत (उपमान) है। नवनीत को अपेक्षा सन्त हृदय को गुणों की अधिकता के कारण श्रेष्ठ बताया गया है। नवनीत स्वयं ताप से पिघलता है किन्तु संतों का हृदय दूसरों का दु:ख देखकर द्रवित हो उठता है।
(2) शरद चन्द्र की कोई समता राधा मुख से है न।
दिन मलीनवह घटता बढ़ता, यह विकसित दिन रैन।
शरद का चन्द्रमा (उपमान) प्रकाशमान और सुन्दर होता है। परन्तु उसकी राधा के मुख (उपमेय) से समानता नहीं हो सकती। वह रात में मलिन तथा घटता-बढ़ता है अत: राधा के रात-दिन खिलते मुख से वह हीन है।
RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय अलंकार विवेचन महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय अलंकार विवेचन वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात से, सिल पर परत निसान॥ उपर्युक्त दोहे में अलंकार है –
(क) दृष्टान्त
(ख) विभावना,
(ग) विशेषोक्ति
(घ) अन्योक्ति
उत्तर:
(क) दृष्टान्त
प्रश्न 2.
माली आवत देखकर कलियन करी पुकार।
फूले फूले चुनि लिए, काल्हि हमारी वारि॥
(क) अतिशयोक्ति
(ख) अन्योक्ति
(ग) समासोक्ति
(घ) प्रतीप।
उत्तर:
(ख) अन्योक्ति
प्रश्न 3.
‘सो गया रख तूलिका दीपक चितेरा’-में अलंकार है
(क) विभावना
(ख) दृष्टान्त
(ग) मानवीकरण
(घ) विशेषोक्ति
उत्तर:
(ग) मानवीकरण
प्रश्न 4.
रहिमन अँसुवा नयन ढरि जिय दुःख प्रगट करेइ ।
जाहि निकारो गेह ते कसन भेद कहि देइ॥ – उपर्युक्त दोहे में अलंकार है
(क) विभावना
(ख) विशेषोक्ति
(ग) प्रतीप
(घ) दृष्टान्त।
उत्तर:
(घ) दृष्टान्त।
प्रश्न 5.
“सीय बदन सम हिमकर नाहीं’ – में कौन-सा अलंकार है –
(क) विरोधाभास
(ख) विभावना
(ग) प्रतीप
(घ) अन्योक्ति
उत्तर:
(ग) प्रतीप
प्रश्न 6.
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली केली ही सों बिंध्यौ, आगे कौन हवाल॥
उपर्युक्त दोहे में अलंकार है –
(क) समासोक्ति
(ख) अन्योक्ति
(ग) विशेषोक्ति
(घ) विभावना।
उत्तर:
(ख) अन्योक्ति
प्रश्न 7.
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग॥
उपर्युक्त दोहे में अलंकार है
(क) प्रतीप
(ख) दृष्टान्त
(ग) समासोक्ति
(घ) अन्योक्ति।
उत्तर:
(ख) दृष्टान्त
प्रश्न 8.
शान्ति खोलकर खड्ग क्रान्ति का
जब वर्जन करती है। तभी जान लो किसी समर का, वह सर्जन करती है।
उपर्युक्त में अलंकार है
(क) प्रतीप
(ख) विशेषोक्ति
(ग) मानवीकरण
(घ) दृष्टान्त।
उत्तर:
(ग) मानवीकरण
प्रश्न 9.
“नभ की आभ्र छाँह में बैठा
बजा रहा वंशी रखवाला”
में कौन-सा अलंकार है
(क) अनुप्रास
(ख) मानवीकरण
(ग) उपमा
(घ) अपन्हुति
उत्तर:
(ख) मानवीकरण
प्रश्न 10.
काहे री नलिनी तू कुम्हिलानी
तेरे ही नालि सरोवर पानी।
उपर्युक्त पद्य में अलंकार है –
(क) दृष्टान्त
(ख) उदाहरण
(ग) अन्योक्ति
(घ) समासोक्ति
उत्तर:
(ग) अन्योक्ति
प्रश्न 11.
शब्दालंकार में महत्व होता है –
(क) वर्ण तथा शब्द के चमत्कार का
(ख) अर्थ के चमत्कार का
(ग) वाक्य रचना का
(घ) शुद्ध शब्दों को।
उत्तर:
(क) वर्ण तथा शब्द के चमत्कार का
प्रश्न 12.
अर्थालंकार में चमत्कार निर्भर करता है –
(क) वर्षों के क्रम पर
(ख) शब्दों पर
(ग) शब्दों के अर्थ पर
(घ) छन्द विधान पर।
उत्तर:
(ग) शब्दों के अर्थ पर
प्रश्न 13.
विशेषोक्ति अलंकार के लक्षण हैं –
(क) अमूर्त भावों में मानवीय गुण होना
(ख) कारण होने पर भी कार्य नहीं होना
(ग) कारण के अभाव में भी कार्य होना
(घ) अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत का बोध होना।
उत्तर:
(ग) कारण के अभाव में भी कार्य होना
प्रश्न 14.
निम्नलिखित में मानवीकरण अलंकार है –
(क) पग बिनु चलै सुनै बिनु काना।
(ख) सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी है।
(ग) देखो दो दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी
(घ) देखा आँगन के कोने में कई नवागत/छोटा-छोटा छाता ताने खड़े हुए हैं।
उत्तर:
(घ) देखा आँगन के कोने में कई नवागत/छोटा-छोटा छाता ताने खड़े हुए हैं।
प्रश्न 15.
‘ग्वालिन-सी ले दूब मधुर/वसुधा हँस-हँसकर गले मिली’ में अलंकार है
(क) मानवीकरण ।
(ख) विभावना ,
(ग) अन्योक्ति।
(घ) विशेषोक्ति।
उत्तर:
(क) मानवीकरण
RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय अलंकार विवेचन अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विशेषोक्ति अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
विशेषोक्ति का उदाहरण –
नेताजी की सम्पत्ति कुबेर के समान बढ़ी।
किन्तु वह चुनाव में विनम्र ही बने रहे।
प्रश्न 2.
अन्योक्ति अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
अन्योक्ति अलंकार का उदाहरण –
स्वारथ सुकृत न श्रम वृथा देखि विहंग विचारि।
बाज पराए पानि पै तू पक्षीनु न मारि ।
प्रश्न 3.
दृष्टान्त अलंकार के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
दृष्टान्त अलंकार वहाँ होता है जहाँ दो कथनों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है। पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती-जुलती बात कही जाती है।
प्रश्न 4.
विभावना अलंकार किसको कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जहाँ कारण के अभाव में कार्य होने का वर्णन किया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है। विभावना में बिना कारण के कार्य सम्पन्न होता है।
प्रश्न 5.
प्रतीप अलंकार के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
प्रतीप अलंकार वहाँ होता है जहाँ किसी प्रसिद्ध उपमान को उपमेय अथवा उपमेय को उपमान सिद्ध करके चमत्कारपूर्वक उपमेय या उपमान की श्रेष्ठता दिखाई जाती है।
प्रश्न 6.
विभावना अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
विभावना अलंकार का उदाहरण –
नाचि अचानक ही उठे बिनु पावस बन मोर।।
जानति हों नन्दित करी यह दिशि नंदकिशोर ॥
प्रश्न 7.
मानवीकरण अलंकार किसको कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ अमूर्त भावों को मानव रूप में चित्रित किया जाता है अथवा जड़ प्रकृति को सजीव मनुष्य की तरह व्यवहार करते हुए चित्रित किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
प्रश्न 8.
दृष्टान्त अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
दृष्टान्त अलंकार का उदाहरण
काज परे कुछ और है काज सरे कछु और।
‘हिमन भंवरी के परे, नदी सिरावत मौर।।
प्रश्न 9.
व्यतिरेक अलंकार के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
जहाँ उपमान की तुलना में उपमेय में गुणों की अधिकता होने के कारण उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाय, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
प्रश्न 10.
अर्थालंकार की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:
जहाँ काव्य चमत्कार प्रयुक्त शब्द में न होकर उसके अर्थ में होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। प्रयुक्त शब्द को हटाकर इसका पर्यायवाची शब्द रखने पर भी चमत्कार बना रहता है।
प्रश्न 11.
प्रतीप अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
प्रतीप अलंकार का उदाहरण -.
उसी तपस्वी से लम्बे ये देवदारु दो चार खड़े।
प्रश्न 12.
लिखन बैठि जाकी सबिहिं गहि-गहि गरब गरूर।
भये ने केते जगत के चतुर चितेरे कूर॥
उपर्युक्त दोहे में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
उपर्युक्त दोहे में विशेषोक्ति अलंकार है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित दोहे में कौन-सा अलंकार है? उसका नाम लिखिए।
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग।
उत्तर:
उपर्युक्त दोहे में दृष्टान्त अलंकार है।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित में जो अलंकार है, उसका नाम लिखिए
‘रावण अधर्मरत भी अपना’।
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति में विभावना अलंकार है।
प्रश्न 15.
‘दुन्दुभि-मृदंग-तूर्य शान्त-सब मौन हैं-में कौन-सा अलंकार है? नाम लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त काव्य-पंक्ति में मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्न 16.
समासोक्ति अलंकार के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
समासोक्ति अलंकार में प्रस्तुत वृत्तान्त के वर्णन किये जाने पर विशेषण के साम्य से अप्रस्तुत वृत्तान्त का भी वर्णन किया जाता है।
RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय अलंकार विवेचन लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दृष्टान्त अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
कवि पहले एक कथन कहता है तथा उसकी पुष्टि दूसरे कथन में दृष्टान्त देकर करता है। ऐसे काव्य में दृष्टान्त अलंकार होता है। दृष्टान्त का प्रथम वाक्य उपमेय तथा दूसरा उपमान होता है। दोनों के धर्म प्रथक होने पर भी उसमें बिम्ब भाव रहता है।
उदाहरण –
बिगरी बात बने नहीं लाख करो किन कोय।।
रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय ॥
प्रश्न 2.
प्रतीप अलंकार के लक्षण लिखकर एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जब कविता में उपमेय का उपमान से उत्कर्ष दिखाया जाता है तो वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। प्रतीप का अर्थ है- उल्टा। इसमें प्रसिद्ध उपमान की तुलना में उपमेय की श्रेष्ठतां प्रदर्शित की जाती है।
उदाहरण –
उसी तपस्वी से लम्बे थे देवदारु दो-चार खड़े।
(इस पंक्ति में देवदारु उपमान को तपस्वी मनु उपमेय के समान लम्बा बताया गया है। इस तरह उपमेय की उपमान से श्रेष्ठता प्रदर्शित की गई है।)
प्रश्न 3.
विभावना अलंकार की परिभाषा लिखिए तथा एक उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जब कारण के अभाव में भी कार्य का होना प्रकट किया.जाता है तो वहाँ विभावना अलंकार होता है। संसार का नियम है कि प्रत्येक कार्य के पीछे कोई कारण अवश्य होता है किन्तु विभावना में उसके विपरीत कारण के बिना काम होना दिखाया जाता है।
उदाहरण –
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनं करम करे विधि नानी ॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बक्ता बड़ जोगी।
प्रश्न 4.
विशेषोक्ति अलंकार के लक्षण उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
जहाँ कारण उपस्थित होने पर भी कार्य नहीं होता, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण –
(1) बरसत रहत अछोह वै, नैन वारि की धार।।
नेकहु मिटति न है तऊ, तव वियोग की झार ॥
देखो दो-दो मेघ बरसते।
मैं प्यासी की प्यासी ॥
प्रश्न 5.
अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा लिखकर उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जब कवि अप्रस्तुत का वर्णन करके प्रस्तुत का बोध करता है तो वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। अन्योक्ति में बात किसी पर प्रस्तुत पर रखकर कही जाती है लेकिन कथन का लक्ष्य कोई दूसरा (प्रस्तुत) होता है।
उदाहरण –
कर लै सँघि सराहि कै सबैं रहे गहि मौन।।
रे गंधी मति मंद तू गंवई गाहक कौन ॥
प्रश्न 6.
मानवीकरण अलंकार के लक्षण लिखिए तथा एक परिभाषा भी लिखिए।
उत्तर:
जहाँ किसी अमूर्त भाव को मूर्त अथवा किसी जड़ पदार्थ को मानव के समान चेतन और चलते-फिरते, बोलते-चालते दिखाया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। मानवीकरण का अर्थ है- मनुष्य बनाना। इसमें जड़ पदार्थों को मनुष्य की तरह दिखाया जाता है। यह अँग्रेजी भाषा के ‘परसोनिफिकेशन’ का हिन्दी प्रयोग है।
उदाहरण –
विस्फारित नयनों से निश्चल, कुछ खोज रहे चल तारक दल ज्योतित कर नभ की अंतस्तल।
जिनके लघु दीपों को चंचल अंचल की ओट किए अविरल फिरतीं लहरें लुक छिप पल-पल ॥
प्रश्न 7.
व्यतिरेक अलंकार के लक्षण उदाहरण देकर लिखिए।
उत्तर:
जहाँ कवि उपमान की अपेक्षा उपमेय में अधिक विशेषताएँ देखकर उसको उपमान से श्रेष्ठ सिद्ध करता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
उदाहरण –
सियमुख की समता भला क्या खा करे मयंक।
विष है उसके अंक में और बदन सकलंक।
(यहाँ सिय मुख (उपमेय) को मयंक (उपमान) से श्रेष्ठ बताया गया है।)
प्रश्न 8.
विभावना अलंकार तथा विशेषोक्ति अलंकार का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विभावना अलंकार में कारण के अभाव में भी कार्य सम्पन्न होने का वर्णन होता है किन्तु विशेषोक्ति अलंकार में कारण होने पर भी कार्य सम्पन्न होता नहीं दिखाया जाता है। जैसे –
विभावना – निन्दक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय ।।
विशेषोक्ति – लिखने बैठि जाकी सबिहिं गहि गहि गरबे गरूर।
भये न केते जगत में चतुर चितेरे कूर ॥
प्रश्न 9.
व्यतिरेक तथा प्रतीप अलंकारों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यतिरेक अलंकार में गुणों की अधिकता देखकर उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाता है। इसमें उपमेय उपमान में किसी गुण के बारे में तुलना का भाव नहीं रहता। इसके विपरीत प्रतीप अलंकार में दोनों में किसी एक गुण के बारे में तुलना होती है तथा उपमेय को उपमान की तुलना में श्रेष्ठ बताया जाता है।
उदाहरण –
व्यतिरेक – संत हृदय नवनीत समाना।।
कहा कविन्ह परि कहि नहि जाना ॥
निज परताप द्रवै नवनीता।
पर दु:ख द्रवहिं सुसन्त पुनीता ॥
प्रतीप – राधे तेरो बदन विराजत नीको।।
जब तू इत उत विलोकति निसि निसिपति लागत फीको ।।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पद्य में अलंकार निर्देश कीजिए
काहे री-नलिनी तू कुम्हिलानी, तेरे ही नालि सरोवर पानी।
जल में उत्पति जल में वास जल में नलिनी तोर निवास॥
उत्तर:
‘काहे को नलिनी……………तोर निवास’ – में अन्योक्ति अलंकार है।
जब कवि अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत का बोध कराता है तो वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। इस पद में कबीर ने कमलिनी तथा उसके आसपास सरोवर के जल के वर्णन के द्वारा आत्मा तथा परमात्मा की एकता का बोध कराया है। कमलिनी की नाल सरोवर के जल में डूबी है अत: उसके मुरझाने का कोई कारण नहीं है। आत्मा परमात्मा का ही अंश है, यह जल और कमलिनी के सम्बन्ध द्वारा बताया गया है।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित दोहे में अलंकार बताइए तथा उसके लक्षण भी लिखिए।
रहिमन ओछे नर न सों बैर भलौ ना प्रीलि।
काटे चाटे स्वान के, दोऊ भाँति विपरीत ॥
उत्तर:
उपर्युक्त दोहे में दृष्टान्त अलंकार है। इसकी प्रथम पंक्ति में कवि ने एक सामान्य सिद्धान्त का कथन किया है तथा उसकी पुष्टि द्वितीय पंक्ति में कुत्ते के दृष्टान्त से की है। दोनों कथनों में साधारण धर्म में भिन्नता होते हुए बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है।
प्रश्न 12.
एक विसास की टेक गहें लगि, आस रहे बसि प्रान-बटोही।
हौं घन आनन्द जीवन मूल दई कित प्यासनि मारत मोही॥
उपर्युक्त पंक्तियों से कौन-सा अलंकार है? नाम लिखकर उसके लक्षण भी लिखिए।
उत्तर:
एक विसास की………….प्यासनि मारत मोहीं’ – पंक्ति में जीवनदायक बादलों के जल के रहते हुए भी प्यासी मरने को वर्णन है। इस प्रकार प्यास बुझाने के साधन जरूर होने पर भी प्यास न बुझना कारण होने पर भी कार्य न हेना है। कारण की उपस्थिति में भी जब काम नहीं होता तो वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है। उपर्युक्त काव्य-पंक्ति में विशेषोक्ति अलंकार है।
प्रश्न 13.
“मानवता के जीवन श्रम से हँसे दिशाएँ।” उपर्युक्त काव्य-पंक्ति में अलंकार का नाम लिखकर उसके लक्षण भी लिखिए।
उत्तर:
“मानवता के जीवन श्रम से हँसे दिशाएँ” में मानवीकरण अलंकार है। इसमें दिशाओं को मानवीकरण किया गया है। उसको किसी मनुष्य की तरह हँसता हुआ चित्रित किया गया है। मानवीकरण अलंकार में प्रकृति के जड़ तत्वों का मानव के समान चेतनाशील तथा काम करते हुए चित्रित किया जाता है।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित पद्यांश में जो अलंकार है, उसका नाम लक्षणों सहित लिखिए।
कहा बड़ाई जलधि मिलि,
गंग नाम भौ धीम।
किहि की प्रभुता नहिं घटी,
पर घर गए रहीम।
उत्तर:
उपर्युक्त पद्यांश की प्रथम पंक्ति के कथन की पुष्टि दूसरी पंक्ति के कथन द्वारा की गई है। इनमें बिम्ब-प्रतिबिम्बे भाव है। प्रथम दो पंक्ति उपमेय तथा अन्तिम दो पंक्तियाँ उपमान हैं। इस पद्यांश में दृष्टान्त नाम का अलंकार है। जब किसी कथन की पुष्टि कोई दृष्टान्त देकर की जाय तो वहाँ दृष्टान्त अलंकार । होता है। प्रथम (उपमेय) तथा द्वितीय (उपमान) कथनों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव रहता है।
प्रश्न 15.
“सी-सी कर हेमन्त कँपे” उपर्युक्त काव्यांश में अलंकार निर्देश कीजिए।
उत्तर:
“सी-सी कर हेमन्त कँपे”। इस काव्य-पंक्ति में कवि ने बताया है कि हेमन्त ऋतु सर्दी से काँप रही है और उसको मुख से सीसी की आवाज निकल रही है। कवि ने यहाँ हेमन्त ऋतु को सर्दी से काँपते तथा मुँह से सी-सी की आवाज निकलते मनुष्य की तरह चित्रण किया है। इसमें मानवीकरण अलंकार है। मानवीकरण अलंकार किसी अमूर्त भाव अथवा प्रकृति के जड़ अंग को मनुष्य के समान चेतनाशील तथा काम करते हुए दिखाने पर होता है।
प्रश्न 16.
निम्नलिखित पद्यांश में कौन-सा अलंकार है तथा क्यों?
और उन्हीं से बौने पौधों की यह पलटन मेरी आँखों के सम्मुख अब खड़ी गर्व से
नन्हे नाटे पैर पटके, बढ़ती जाती है।
उत्तर:
कवि ने इन पंक्तियों में सेम के छोटे-छोटे नए उगे हुए पौधों का वर्णन किया है। उसने इन पौधों को एक नाटी सेना कहा है जो जमीन पर अपने पैर पटककर आगे बढ़ती जा रही है। उपर्युक्त वर्णन में कवि ने पौधों को एक सजीव मनुष्यों की निरन्तर आगे बढ़ रही सेना कहा है। जड़ पौधों को मनुष्य के समान आगे बढ़ती हुए बताने से यहाँ मानवीकरण अलंकार है। जहाँ किसी अमूर्त भाव अथवा जड़ पदार्थ को मनुष्य के समान चलते-फिरते, काम करते दिखाया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
प्रश्न 17.
अलंकार की परिभाषा लिखिए तथा एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्मों को अलंकार कहते हैं। किसी काव्य के वर्गों, शब्दों तथा अर्थ में जो चमत्कार उत्पन्न किया जाता है, उसको अलंकार कहते हैं। शब्द में निहित चमत्कार को शब्दालंकार तथा अर्थ में निहित चमत्कार को अर्थालंकार कहते हैं। जिस तरह आभूषण स्त्री की शोभा बढ़ाते हैं, उसी तरह अलंकार काव्य की सुन्दरता में वृद्धि करते हैं।
उदाहरण –
नाचि अचानक ही उठे, बिनु पावस वन मोर।
जानति हूँ नन्दित करी यह दिसि नन्द किशोर ॥
प्रश्न 18.
शब्दालंकार किसे कहते हैं? वह अर्थालंकार से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर:
जहाँ काव्यगत सौन्दर्य उसमें प्रयुक्त शब्दों में निहित होता है, वहाँ शब्दालंकार होता है। उस प्रयुक्त शब्द के स्थान पर उसका पर्यायवाची शब्द रखने से चमत्कार नष्ट हो जाता है तथा अलंकार नहीं रहता। अर्थालंकार में चमत्कार अर्थ में निहित होता है तथा शब्दों को बदलने में उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उदाहरण
शब्दालंकार – तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
अर्थालंकार – उसी तपस्वी से लम्बे थे देवदारु दो चार खड़े।
प्रश्न 19.
काव्य में अलंकारों की क्या उपयोगिता है? क्या अलंकारों के बिना काव्य-रचना नहीं हो सकती?
उत्तर:
अलंकारों को काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म कहा गया है। काव्य सौन्दर्य बढ़ाने में अलंकार उपयोगी है। अलंकारों के बिना भी रचना हो सकती है। काव्य का रसपूर्ण होना आवश्यक है। रसानुभूति न कर पाने वाले काव्य को हम अकाव्य कह सकते हैं। किन्तु अलंकारहीन काव्य यदि सरस है तो वह काव्य ही माना जायगा।
प्रश्न 20.
‘जदपि सुजाति सुलच्छिनी सुबरन, सरस सुवृत्त
‘भूषनु बिनु न बिराजहीं, कविता बनिता मित्त।’
उपर्युक्त क कसका है? इससे अपनी सहमति अथवा असहमति कारण सहित प्रकट कीजिए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि आचार्य केशवदास का यह कथन है। इसमें कवि ने अलंकारों को कविता के लिए आवश्यक मामहै। जिस प्रकार श्रेष्ठ जाति तथा सुन्दर लक्षणों वाली नारी भी आभूषणों के बिना शोभित नहीं होती, इसी प्रकार सरस और उत्तम शैली’की’कविता बिना अलंकारों के शोभा नहीं देती। आचार्य मम्मट ने काव्य के लिए अलंकारों को आवश्यक नहीं माना है। उनका मानना है कि दोषरहित तथा गुणों से युक्त सरल काव्य बिना अलंकारों के भी सफल काव्य होता है। मैं आचार्य मम्मट से सहमत हूँ। आचार्य केशव से नहीं।
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