Rajasthan Board RBSE Class 12 History Notes Chapter 3 बाह्य आक्रमण एवं आत्मसातीकरण
मौर्योत्तर काल:
- मौर्य साम्राज्य के पतन से लेकर गुप्त साम्राज्य के उद्भव तक का काल मौर्योत्तर काल कहलाता है। |
- इस काल में भारत के मध्य एशिया के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित हुए और विदेशी तत्वों का भारतीय समाज में समावेश हुआ।
- मौर्योत्तर काल में भारत पर शासन करने वाले दो प्रकार के शासक वर्ग थे-विदेशी शासक तथा भारतीय शासक।
- विदेशी शासकों में यूनानी, शक, कुषाण व हूण राजवंश प्रमुख थे।
- भारतीय शासकों में शुंगवंश, कण्ववंश, चेदिवंश और सातवाहन वंश के शासकों को रखा जा सकता है जिन्होंने मौर्योत्तर काल में अपनी सत्ता स्थापित की।
- मौर्योत्तर काल की जानकारी के प्रमुख स्रोत-गार्गी संहिता, महाभाष्य, दिव्यावदान, कालिदास का मालविकाग्निमित्र, बाणभट्ट का हर्षचरित, कल्हण की राजतरंगिणी, अश्वघोष को बुद्धचरित्र, नागार्जुन का शून्यवाद, सापेक्षवाद व माध्यमिक सूत्र, चरक संहिता, चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरण, मिलिन्दपन्ह आदि हैं।
यूनानी आक्रमण:
- 327 ई. पू. में मकदूनिया के शासक सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया।
- राजा पोरस और सिकन्दर के मध्य हुए युद्ध में सिकन्दर विजयी रहीं परन्तु पोरस की निर्भीकता से प्रसन्न होकर सिकन्दर ने उसका राज्ये वापस लौटा दिया।
- सिकन्दर ने भारत के एक बड़े भू-भाग पर आक्रमण कर उसे विजित किया तथा 325 ई. पू. में वह वापस लौट गया।
- ईरान के सूसा नगर में 323 ई. पू. में सिकन्दर की मृत्यु हो गई।
- सिकन्दर के पश्चात् यूनानी शासकों-एण्टयोकस तृतीय, डेमेट्रियस, यूकेटाइड्ज, हेलियोक्लीस व अपोलोजेटम तथा मेनाण्डर थे जिनमें मेनाण्डर सबसे प्रमुख था।
- मेनाण्डर के सम्बन्ध में जानकारी का प्रमुख स्रोत मिलिन्दपन्ह है जिसमें उसके व्यक्तिगत जीवन का विवरण है।
- मेनाण्डर बौद्ध धर्म का अनुयायी था तथा उसने सिकन्दर से भी अधिक राष्ट्रों पर विजय पाई।
- यूनानी आक्रमण का तत्कालीन भारतीय मुद्रा, कला, मूर्तिकला, व्यापार तथा वाणिज्य पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा।
शक:
- शक यूनानियों के बाद भारत में मध्य एशिया से आने वाली दूसरी विदेशी जाति थी।
- शकों की मुख्य दो शाखाएँ थीं-पार्थियन व बैक्ट्रियन।
- इतिहासकारों के मत के अनुसार शक शासकों की पाँच शाखाएँ थी जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नासिक व उज्जैन शाखा थी।
- शकों पर ऐतिहासिक विजय की स्मृति में 57 ई. पू. में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की शुरूआत की।
- शक शासकों में सबसे प्रतापी शासक रुद्रदमन प्रथम था जिसने 150 ईस्वी में अपना प्रसिद्ध जूनागढ़ अभिलेख जारी किया था।
- जूनागढ़ अभिलेख से रुद्रदमन के व्यक्तित्व व उपलब्धियों का विवरण मिलता है।
- जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार रुद्रदमन प्रथम के समय सौराष्ट्र प्रान्त के गवर्नर सु-विशाख द्वारा सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार कराया गया।
- जूनागढ़ अभिलेख से रुद्रदमन प्रथम के प्रशासन के सम्बन्ध में भी पर्याप्त जानकारी मिलती है।
- रुद्रदमन प्रथम ने महाक्षत्रप की उपाधि धारण की थी।
- कुषाण पश्चिमी चीन के कान-सू प्रांत के रहने वाली यूची जाति से सम्बन्धित थे।
- शकों को पराजित कर यूची जाति पाँच शाखाओं में विभक्त हो गई जिनमें कुषाण शाखा सर्वाधिक शक्तिशाली थी।
कुषाण:
- कुषाण वंश का संस्थापक कजुलकेडफिसिज था जिसका राज्य बैक्ट्रिया व गान्धार प्रदेश में था।
- कजुलकेडफिसिज के उत्तराधिकारी विम कडफिस जिसने अपना साम्राज्य भारत में मथुरा तक विस्तृत किया, ने महाराज की उपाधि धारण की।
- कनिष्क कुषाण राजाओं में सबसे महान था। उसने 78 ई. से शक संवत की शुरुआत की।
- कनिष्क का साम्राज्य पश्चिम में आक्सस नदी से पूर्व में गंगा नदी तक, मध्य एशिया में खुरासन से लेकर उत्तर प्रदेश में वाराणसी तक फैला था।
- कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी एवं पोषक था। उसकी मुद्राओं पर बुद्ध के चित्र भी मिलते हैं।
- कनिष्क ने कश्मीर में कनिष्कपुर नगर की स्थापना की तथा अनेक स्तूप और विहार बनवाये।
- कनिष्क ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए बौद्ध भिक्षुओं को मध्य एशिया, चीन, तिब्बत, जापान आदि देशों में भेजा।
- कनिष्क ने कश्मीर के कुण्डलवन नामक विहार में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया।
- इस संगीति का अध्यक्ष वसुमित्र तथा उपाध्यक्ष कनिष्क के दरबारी कवि अश्वघोष थे।
- इस सम्मेलन में सम्पूर्ण बौद्ध साहित्य की सूक्ष्मता से जाँच की गई तथा त्रिपिटकों पर टीका लिखकर उसे सम्पूर्ण रूप से, एक ग्रन्थ में संकलित कर लिया गया जिसका नाम महाविभाष रखा गया। .
- चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म हीनयान एवं महायान दो शाखाओं में विभक्त हो गया।
- कनिष्क ने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को राजधर्म के रूप में मान्यता दी।
- कुषाणों का कार्यकाल सम्पन्नता व समृद्धि का काल था।
- कनिष्क ने तक्षशिला के सिरमुख नगर की भी स्थापना की थी।
- कनिष्क के शासनकाल में विभिन्न केन्द्रों में मूर्तिकला की तीन प्रमुख शैलियों का विकास हुआ-मथुरा, अमरावती एवं गान्धार।।
- गान्धार शैली का आर्विभाव कनिष्क के शासनकाल की एक बड़ी देन थी।
- कनिष्क का दरबार विद्वानों, दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों का पोषक था।
- अश्वघोष नामक दरबारी कवि जिसने बुद्धचरित महाकाव्य की रचना की, कनिष्क के काल की महान विभूति था।
- शून्यवाद, सापेक्षवाद व माध्यमिक सूत्र के प्रवर्तक नागार्जुन कनिष्क के दरबार की एक अन्य महान विभूति थे। इन्हें । भारतीय आइन्सटीन भी कहा जाता है।
- महर्षि चरक व सुश्रुत कनिष्क के राजवैद्य थे।
- कुषाणों के काल में स्थल मार्गों एवं नदी मार्गों के विकास ने जहाँ आन्तरिक व्यापार में वृद्धि की वहीं समुद्री मार्गों ने विदेशी व्यापार को सुदृढ़ता प्रदान की।
- कुषाणों के काल में भारत का व्यापार चीन, रोम, बर्मा, जावा, सुमात्रा, चम्पा आदि देशों के साथ होता था।
- मुद्रा का व्यापक प्रचलन कुषाणों के काल की सबसे बड़ी देन है। कुषाण शासकों ने बड़ी संख्या में सोने के सिक्के चलाए।
- बौद्ध अनुश्रुतियों में कनिष्क की तुलना अशोक से की गई है।
- कनिष्क के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी नाग, मालव और कुणिद वंश विशाल साम्राज्य को अक्षुण्ण न रख सके।
- हूण मध्य एशिया की एक खानाबदोश व बर्बर जाति थी।
- भारत में हूणों का प्रवेश पश्चिमी सीमा से 450 ई. में हुआ।
- भारत में गुप्त सम्राट स्कन्दगुप्त को हूणों का सामना करना पड़ा।
- गुप्तों की शक्ति क्षीण होने के पश्चात् हूणों के राजा तोरमाण ने आर्यावर्त को विजित करके भारत में स्थायी निवास बनाया।
- यशोवर्मन और बालादित्य ने 528 ई. में मिलकर हूणों का सामना कर उन्हें परास्त किया।
- अंत में हूण भारतीय संस्कृति के रीति-रिवाजों को आत्मसात करके इसकी मुख्य धारा में विलीन हो गए।
अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ
कालावधि — घटना/विवरण
327 ई. पू. — मकदूनिया के शासक सिकन्दर ने भारत की ओर प्रस्थान किया।
325 ई. पू. — भारत के बड़े भू-भाग को विजित कर सिकन्दर का भारत से प्रस्थान।
323 ई. पू. — ईरान में सिकन्दर की मृत्यु।
306 ई. पू. — एण्ट्रयोकस तृतीय ने भारत के विरुद्ध एक अभियान का नेतृत्व किया।
185 ई. पू. — अन्तिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ को मारकर पुष्यमित्र ने शुंग वंश की स्थापना की।
166 ई. पू. — एंटीयोकस ने यूनाने में भारतीय वस्तुओं की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया।
165 ई. पू. — चीन की यू-ची जाति को हूणो द्वारा उनकी मातृभूमि से खदेड़ दिया गया।
57 ई. पू. — विक्रम संवत् का आरम्भ।
56 ई. पू. — उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शकों पर निर्णायक विजय।
50 ई. पू.-500 ई. पू. — भारत में एक नवीन शैली गान्धार कला का विकास।
78 ई. — कनिष्क का राज्यारोहण तथा शक संवत का आरम्भ।
78 ई. पू.-101 ई. पू. — कुषाण वंश के प्रतापी शासक कनिष्क का शासन काल।
124 ई. पू. — गौतमी पुत्र शातकर्णी ने शक शासक नहपान का वध कर दिया।
130 ई.-150 ई. — शक शासक रुद्रदमन प्रथम का शासन काल।
150 ई. — रुद्रदमन प्रथम ने जूनागढ़ अभिलेख जारी किया।
450 ई. — भारत में हूणों का प्रवेश।
528 ई. — यशोवर्मन एवं बालदित्य ने मिलकर हूणों का सामना किया तथा उन्हें परास्त किया।
महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली एवं महत्वपूर्ण व्यक्ति
- सिकन्दर — मकदूनिया का शासक जिसने 327 ई. में भारत की ओर प्रस्थान किया।
- राजा पोरस — पौरव राज्य का शासक जिसकी निर्भीकता से सिकन्दर प्रसन्न हुआ।
- मेनाण्डर-इण्डो — ग्रीक शासकों में सबसे महान शासक।।
- अश्वघोष— कनिष्क के दरबार का कवि जिसने बुद्ध चरित महाकाव्य की रचना की।
- नागार्जुन — कनिष्क के काल के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं वैज्ञानिक जो शून्यवाद, सापेक्षवाद व माध्यमिक सूत्र के प्रवर्तक थे।
- वसुमित्र — कनिष्क द्वारा आयोजित चतुर्थ बौद्ध संगीति का अध्यक्ष।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय — महान गुप्त सम्राट जिसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
- रुद्रदमन प्रथम — शक शासकों में सबसे महान शासक जिसने 150 ई. में जूनागढ़ अभिलेख जारी किया तथा सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया।
- कुजुलकेडफिसिज — कुषाण वंश का संस्थापक।
- कनिष्क — कुषाण वंश का सबसे प्रतापी शासक जिसने बौद्ध धर्म को राजाश्रय दिया तथा चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया।
- चरक और सुश्रुत — कनिष्क के दरबार के राजवैद्य।।
- स्कन्दगुप्त — गुप्त सम्राट जिंसने हूणों को हराया।
- तोरमाण — प्रतापी हूण शासक।
- मौर्योत्तर काल — मौर्यों के पतन से गुप्त वंश के आविर्भाव तक का काल ।
- इण्डो ग्रीक — विदेशी शासक जिन्हें हिन्द यवन भी कहा जाता है; जैसे-यूनानी।
- गांधार कला — भारतीय और यूनानी मिश्रण से बनी एक नवीन शैली।
- महाविभाष — सम्पूर्ण बौद्ध साहित्य तथा त्रिपिटकों पर लिखी टीका।।
- रेशम मार्ग — वह मार्ग जिसके द्वारा रेशम चीन से मध्य एशिया होते हुए रोमन साम्राज्य तक पहुँचता था।
- हूण — मध्य एशिया की एक खानाबदोश तथा बर्बर जाति।।
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