Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 10 मार्क्सवाद
- आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन की बात करने वाला मार्क्स प्रथम विचारक नहीं है। मार्क्स से पहले ब्रिटेन व फ्रांस के विचारकों द्वारा समाजवादी विचार व्यक्त किए जा चुके थे।
- मार्क्स ने सर्वप्रथम वैज्ञानिक समाजवाद का प्रतिपादन कर समाजवाद (साम्यवादी) की स्थापना हेतु विश्लेषण पर आधारित एक व्यावहारिक योजना प्रस्तुत की।
- मार्क्सवाद का अभिप्राये:
- 19वीं शताब्दी में जर्मनी में कार्ल मार्क्स तथा फ्रेडरिक एंजिल्स नामक दो महान विचारक हुए। इन दोनों ने जिस दृष्टिकोण अथवा विचारधारा का प्रतिपादन किया उसे विश्व में मार्क्सवाद से नाम से जाना जाता है।
- मार्क्सवाद में वैज्ञानिक व दार्शनिक पहलू का चिन्तन मुख्यतः एन्जिल्स ने और राजनीतिक पहलू का चिन्तन प्रमुखत: मार्क्स ने किया।
- मार्क्स ने ऐतिहासिक अध्ययन के आधार पर समाजवाद का प्रतिपादन किया है। इसीलिए मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवादी भी कहा जाता है। कार्ल मार्क्स के अलावा एंजिल्स, लेनिन, स्टालिन कॉटसी, रोजा, लक्जमबर्ग, डॉहस्की, माओ, ग्राम्शी, जार्ज ल्यूकाज आदि अन्य प्रमुख माक्र्सवादी हैं।
कार्ल मार्क्स-जीवन परिचय:
- क्रान्तिकारी और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स का जन्म 1818 ई. में एक यहूदी परिवार में हुआ। इनके पिता हेनरिक मार्क्स थे जो पेशे से वकील थे।
- 1841 ई. में कार्ल मार्क्स ने जेना विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इनकी फ्रेडरिक ऐन्जिल्स से मित्रता इतिहास प्रसिद्ध है। 14 मार्च 1883 ई. में मार्क्स का लन्दन में देहान्त हो गया।
मार्क्स के दर्शन के स्रोत:
- मार्क्स के दर्शन के स्रोत को निम्नलिखित तरह से समझा जा सकता है
- मार्स ने समाज के विकास के लिए हीगल की द्वन्द्वात्मक पद्धति को अपनाया।
- मार्क्स ने ब्रिटिश अर्थशास्त्रियों रिकार्डो, एडम स्मिथ आदि के श्रम के मुख्य सिद्धांत को ग्रहण किया। इनके आधार पर उसने अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत प्रतिपादित किया।
- समाजवाद विषयक विचारों को मार्क्स ने फ्रांसीसी चिंतन से प्राप्त किया। मार्क्स को प्रभावित करने में सेण्ट साइमन, चाल्र्स फोरियर आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
- तत्कालीन पूँजीवादी समाज के शोषणवादी चरित्र ने भी मार्क्स को क्रान्तिकारी विचार प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया था।
मार्क्स की प्रमुख रचनाएँ:
कार्ल मार्क्स की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
- द पावर्टी ऑफ फिलोसॉफी (1844)
- दि इकोनॉमिकी एण्ड फिलोसॉफिकल मेन्यूसिक्रिप्ट (1844)
- द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो (1848)
- क्लास स्ट्रगल इन फ्राँस
- द क्रिटिक ऑफ पॉलिटीकल इकोनॉमी
- वेल्यू, प्राइज एण्ड प्रॉफिट
- दास कैपिटल (वोल्यूम I, II, III) (1894)
- द सिविल वार (1871)
- द गोथा प्रोग्राम
- एंजिल्स के साथ मिलकर ‘द होली फैमिली (1875), जर्मन आइडिओ लॉजी
- द कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो आदि
मार्क्स की रचनाओं से सम्बन्धित कुछ तथ्य:
मार्क्स की रचनाओं से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित है
- Das Capital (1867) का पूरा नाम-“A Contribution to the Critique of Political Economy” (1859) है। दास कैपिटल का पहला खण्ड मार्क्स ने बाकी दो खण्ड मार्क्स की मृत्यु के पश्चात् एंजेल्स ने लिखा।
- Das Capital (1867) में मार्क्स ने मूल आर्थिक नियमों का विश्लेषण किया।
- The Civil War in France (1871) में राज्य पर विचार दिया तथा इन्होंने The Communist Manifesto (1848) के विचारों में संशोधित किया।
- पुदो ने “The Philosophy of Poverty” (1847) नामक पुस्तक लिखी, जिसके जवाब में मार्क्स ने “The Poverty of Philosophy” (1847) नामक पुस्तक लिखी इसमें मार्क्स ने वर्ग की सकारात्मक परिभाषा दी। “
- टेलर ने मार्क्स की रचना “The Communist Manifesto” (1848) को बाइबिल या कुरान की भाँति पवित्र कहा।
- The German Ideology (1845) में द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत दिया।
मार्क्स के प्रमुख विचार अथवा मार्क्सवाद की मूल मान्यताएँ:
मार्क्सवाद की मूल मान्यताएँ इस प्रकार हैं
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद
- इतिहास की भौतिकवादी या आर्थिक व्याख्या
- वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
- अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
- मार्क्स का राज्य सिद्धांत
- प्रजातन्त्र, धर्म व राष्ट्र के सम्बन्ध में धारणा
- मार्क्सवादी पद्धति, कार्यक्रम (क्रान्ति)
मार्क्सवाद को समझने अथवा जानने के प्रमुख आधार तीन हैं-
- उत्पादन प्रणाली
- उत्पादन के साधन
- उत्पादन सम्बन्ध।
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद:
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त मार्क्स के सम्पूर्ण चिन्तन का मूल आधार है। मार्क्स ने द्वन्द्ववाद का विचार हीगल की द्वन्द्वात्मक पद्धति से ग्रहण किया, जबकि भौतिकवाद का दृष्टिकोण फायरबाख से प्राप्त किया।
- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद’ में ‘द्वन्द्वात्मक’ शब्द सृष्टि के विकास से जुड़ा है जबकि भौतिकवाद ‘सृष्टि के मूल तत्व’ को सूचित करता है।
द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया:
- द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया के अनुसार समाज की प्रगति प्रत्यक्ष न होकर एक टेढ़े-मेढ़े तरीके से हुई है जिसके तीन अंग हैं-वाद, प्रतिवाद और संवाद।
- भौतिकवाद- हीगल सृष्टि का मूल तत्व चेतना या विश्वात्मा को मानता है, जबकि मार्क्स सृष्टि का मूल तत्व जड़ को मानता है।
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की विशेषताएँ:
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताओं में से कुछ निम्नलिखित हैं
- द्वन्द्वावाद के अनुसार विश्व स्वतंत्र है और असम्बन्ध वस्तुओं का देर या संग्रह मात्र नहीं है वरन् समग्र इकाई है। जिसकी समस्त वस्तुएँ परस्पर निर्भर हैं।
- वस्तुओं में गुणात्मक परिवर्तन क्यों होते हैं इसका उत्तर मार्क्स हीगल की विचारधारा के आधार पर ही देता है।
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद प्राकृतिक जगत की आर्थिक तत्वों के आधार पर व्याख्या करता है और पदार्थ को समस्त विश्व की नियन्त्रक शक्ति के रूप में।
द्वन्द्वात्मक विकास के नियम:
द्वन्द्वात्मक विकास के नियम में निम्नलिखित तीन नियम समाहित हैं-
- विपरीत की एकता और संघर्ष का नियम
- परिणाम से गुण की ओर परिवर्तन
- निषेध का निषेध नियम।
ऐतिहासिक भौतिकवाद:
- मार्क्सवाद के अन्तर्गत ऐतिहासिक भौतिकवाद को द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के पूरक सिद्धान्त के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मार्क्स की धारणा है कि मानव इतिहास में होने वाले विभिन्न परिवर्तन और घटनाएँ आर्थिक कारणों से होती हैं।
- मार्क्स ने मानव इतिहास के विकास पर आर्थिक कारणों का प्रभाव स्पष्ट करने के लिए छ: अवस्थाओं का उल्लेख किया है
- आदिम साम्यवादी अवस्था
- दास अवस्था
- सामन्ती अवस्था
- पूँजीवादी अवस्था
- सर्वहारा वर्ग का अधिनायक
- साम्यवादी अवस्था
- मार्क्स के अनुसार समाज के दो भाग होते हैं-
- आधार
- अधिरचना
- मार्क्स के अनुसार अर्थव्यवस्था व प्रणाली पर जिसका नियंत्रण होता है उसे शोषक वर्ग कहते हैं। जो वर्ग शोषक वर्ग के अधीन कार्य करता है उसे शोषित वर्ग कहते हैं।
इतिहास की आर्थिक व्याख्या के निष्कर्ष:
- इतिहास की आर्थिक व्याख्या के निष्कर्ष के महत्वपूर्ण बिन्दुओं में कुछ प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं
- मानव जीवन व सभ्यता का विकास ईश्वर या महापुरुष के विचारों व कार्यों का परिणाम नहीं होते हैं सामाजिक परिवर्तन के निश्चित नियम हैं और इस प्रक्रिया का संचालक आर्थिक तत्व है।
- प्रत्येक युग में सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था पर उसी का नियन्त्रण रहता है जिसका आर्थिक व्यवस्था पर नियन्त्रण होता है।
- आदिम साम्यवाद को छोड़कर पूँजीवाद तक वर्ग संघर्ष विद्यमान रहता है।
इतिहास की आर्थिक व्याख्या की आलोचना:
मार्क्स द्वारा इतिहास की आर्थिक व्याख्या की आलोचना भी की गई जो इस प्रकार है
- आर्थिक तत्व पर अधिक व अनावश्यक बल।
- आर्थिक आधार पर सभी ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या संभव नहीं।
- इतिहास निर्धारण में संयोग तत्व की उपेक्षा।
- मानवीय इतिहास के कार्यक्रम का निर्धारण संभव नहीं।
- राजनीतिक सता का एकमात्र आधार आर्थिक सता नहीं
- आर्थिक सम्बन्धों को राजनीतिक शक्ति द्वारा बदला जाता है।
- इतिहास की धारणा का राज्य विहीन समाज पर आकर रुकना संभव नहीं।
वर्ग संघर्ष का सिद्धांत:
- मार्क्स का द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद व अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त वर्ग संघर्ष के सिद्धांत पर आधारित हैं।
- वर्ग- मार्क्स की दृष्टि में जिस समूह के आर्थिक हित होते हैं उसे वर्ग कहते हैं जैसे-श्रमिक, पूँजीपति आदि।
- संघर्ष- इसका व्यापक अर्थ असंतोष, रोष व असहयोग है।
वर्ग संघर्ष की आलोचना:
वर्ग संघर्ष की आलोचना के महत्वपूर्ण बिन्दु इस प्रकार हैं
- एकांगी व दोषपूर्ण
- सामाजिक जीवन का मूल तत्व सहयोग है संघर्ष नहीं।
- समाज में केवल । दो वर्ग ही नहीं होते हैं।
- सामाजिक व आर्थिक वर्ग में अन्तर होता है।
- क्रान्ति श्रमिक वर्ग की बजाय बुद्धिजीवी वर्ग से सम्भव।
- समस्त इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास नहीं।
अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत:
- उपयोगिता मूल्य व विनिमय मूल्य का अन्तर अतिरिक्त मूल्य है।
- माक्र्स के अनुसार अतिरिक्त मूल्य के समाज पर अग्रलिखित प्रभाव दृष्टिगत होते हैं-
- श्रमिकों की दयनीय दशा
- सर्वहारा क्रान्ति का कारण
- अतिरिक्त जनसंख्या का कारण ।
अलगाव का सिद्धांत:
मार्क्स के अनुसार पूँजीवाद के कारण मनुष्य अलगाव का शिकार हो गया। इस अलगाव को इस प्रकार से समझा। जा सकता है-
- उत्पादन प्रणाली से अलगाव
- पर्यावरण से अलगाव
- साथियों से अलगाव
- स्वयं से अलगाव।
पूँजीवाद का विश्लेषण व भविष्य सम्बन्धी धारणा:
- मार्क्स पूँजीवादी व्यवस्था का विश्लेषण करता है तथा उसके भविष्य की धारणा को स्पष्ट करता है कि पूँजीवाद लाभ के लिए उत्पादन करता है व इसमें परस्पर दो विरोधी वर्गों का हित पाया जाता है।
राज्य व शासन सम्बन्धी धारणा:
- कार्लमार्क्स राज्य को एक वर्गीय संस्था मानता है। मार्क्स के अनुसार राज्य की उत्पत्ति ही वर्ग विभेद है।
- मार्क्स के अनुसार राज्य शोषण का यंत्र रहा है।
- मार्क्स द्वारा प्रतिपादित राज्य व शासन सम्बन्धी धारणा की आलोचना भी हुई है। आलोचकों के अनुसार
- राज्य एक वर्गीय संगठन नहीं है वरन् यह एक नैतिक संगठन है।
- वर्तमान में राज्य सर्वहारा वर्ग का शत्रु न होकर मित्र है जो सर्वहारा के कल्याण हेतु कार्य करता है।
- राज्य अस्थायी नहीं वरन् स्थायी है।
- मार्क्स द्वारा राज्य विलुप्त होने की धारणा कपोल-कल्पित है।
लोकतन्त्र, धर्म और राष्ट्रवाद के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की धारणा:
- मार्क्स लोकतन्त्र, धर्म और राष्ट्रवाद, इन तीनों को शोषित वर्ग के शोषण का साधन मानता है और धर्म को अफीम की संज्ञा प्रदान करता है क्योंकि उसके अनुसार यह (धर्म) श्रमिकों का शोषण करता है।
- मार्क्स के अनुसार मजदूरों का कोई देश नहीं होता है। इसलिए वह सम्पूर्ण विश्व के मजदूरों को एक होने का संदेश देता है।
- मार्स राष्ट्रवाद की अवधारणा को भी व्यर्थ बताता है।
मार्क्सवाद की आलोचना:
विभिन्न वस्तुस्थितियों के आधार पर मार्क्सवाद की आलोचना हुई है। सम्बद्ध आलोचना को हम इस प्रकार समझ सकते हैं
- पूँजीपतियों में संघर्ष नहीं
- श्रमिक वर्ग के लिए सुविधाएँ
- मार्क्स की भविष्यवाणी सफल नहीं हुई कि औद्योगिक तथा तकनीकी ज्ञान से सर्वहारा वर्ग के सदस्य संख्या में वृद्धि की है
- आर्थिक संकट की पुनरावृत्ति नहीं हुई है।
राजनीतिक चिन्तन में मार्क्सवाद का योगदान:
- राजनीतिक चिन्तन में मार्क्सवाद के योगदान को हम अग्रलिखित तरह से समझ सकते हैं
- मार्क्सवाद विभिन्न विचारधाराओं को आधार प्रदान करता है।
- उदारवाद को चुनौती
- मार्क्सवाद समाजवाद की एक व्यवहारिक व वैज्ञानिक योजना प्रस्तुत करता है।
- मार्क्सवाद ने श्रमिक वर्ग में एक नवीन जागृति उत्पन्न की।
- मार्क्स समाज का यथार्थवादी चित्रण प्रस्तुत करता है।
निष्कर्ष:
मार्क्स द्वारा समाजवाद लाने का एक ठोस तथा सुसंगत कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया जिसने निम्न में एक नई हलचल पैदा कर दी
- मार्क्स के विचारों को आधार बनाकर माओत्से तुंग ने चीन में क्रान्ति के माध्यम से 1949 ई. में साम्यवादी शासन की स्थापना की।
- मार्क्सवाद के कारण लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा का उदय हुआ।
- अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं संबंधित घटनाएँ
अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं संबंधित घटनाएँ:
वर्ष — घटनाक्रम
1. सन् 1818 ई. — क्रांतिकारी तथा वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स का जन्म सन् 1818 ई. में जर्मनी के एक यहूदी परिवार में हुआ था।
2. सन् 1841 ई.1841 ई. — में मार्क्स ने जेना विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी।
3. सन् 1843 ई. सन् 1843 ई. — में 25 वर्ष की आयु में मार्क्स का विवाह जैनी से हुआ था।
4. सन् 1844 ई. — (a) मार्क्स की पुस्तक “The Poverty of Philosophy’ प्रकाशित हुई थी।
(b) 1844 ई. में The Economic and Philosophical menuscript भी प्रकाशित हुई थी।
5. सन् 1847 ई. — प्रदों ने “The Philosophy of Poverty” नामक पुस्तक लिखी, जिसके जवाब में मार्क्स ने “The Poverty of Philosophy” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें मार्क्स ने वर्ग की सकारात्मक परिभाषा दी।
6. सन् 1848 ई. — मार्क्स की पुस्तक “The Communist manifesto” प्रकाशित हुई।
7. सन् 1859 ई. — A Contribution to the critique of Political Economy” प्रकाशित हुई।
8. सन् 1867 ई. — मार्स ने अपनी पुस्तक “Das Capital” में मूल आर्थिक नियमों का विश्लेषण किया ।
9. सन् 1871 ई.— The Civil war in france’ पुस्तक प्रकाशित हुई थी।
10. सन् 1875 ई. — मार्स ने अपने मित्र ऐंजिल्स के साथ मिलकर “The Holy family” पुस्तक लिखी।
11. सन् 1883 ई. — वर्ष 1883 ई. में कार्ल मार्क्स का निधन हो गया।
12. सन् 1899 ई. — बर्नस्टीन ने अपनी पुस्तक विकासवादी समाज” (1899) तथा कॉटस्की ने अपनी पुस्तक “सर्वहारा की तानाशाही” में माक्र्सवाद के वर्ग संघर्ष, क्रांति तथा सर्वहारा की तानाशाही के सिद्धान्तों को शांतिपूर्ण एवं संवैधानिक सुधार के आधारों पर अनुचित बताया था।
13. सन् 1923-24 ई. — नव-मार्क्सवाद अलगाव के सिद्धान्त से प्रभावित है। यह तथ्य ल्यूकाज’ के द्वारा 1923-24 में सर्वप्रथम सामने लाया गया।
14. सन् 1940 ई. — रोजा लक्जेमबर्ग ने अपनी पुस्तक रूसी क्रांति (1940) में शासन पर जन नियंत्रण के अभाव और प्रेस की स्वतंत्रता के अभाव के कारण मार्क्सवाद की आलोचना की।
RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 10 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
- मार्क्स — इनका पूरा नाम ‘कार्ल मार्क्स’ है। सन् 1818 में इनका जन्म एक यहूदी परिवार में हुआ। फ्रेडरिक ऐन्जिल्स । से इनकी मित्रता इतिहास प्रसिद्ध है। इनका देहांत 14 मार्च 1883 ई. को हुआ ।
- माक्र्सवाद — माक्र्स ने जो सिद्धांत प्रतिपादित किया उसे मार्क्सवाद के नाम से जाना जाता है। माक्र्स ने सर्वप्रथम वैज्ञानिक समाजवाद का प्रतिपादन कर समाजवाद (साम्यवादी) की स्थापना हेतु विश्लेषण पर आधारित एक व्यावहारिक योजना प्रस्तुत की। .
- हीगल — पाश्चात्य विचारक। इन्हें द्वन्द्वात्मक दर्शन का प्रणेता माना जाता है।
- फ्रेडरिक एंजिल्स — कार्ल मार्क्स के मित्र। मार्क्सवाद में इन्होंने मुख्यतया वैज्ञानिक एवं दार्शनिक पहलू का अध्ययन किया।
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद — यह कार्ल मार्क्स के सम्पूर्ण चिन्तन का आधार है। ‘द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद’ में दो शब्द हैं। ‘द्वन्द्वात्मक’ उस प्रक्रिया को स्पष्ट करता है जिसके अनुसार सृष्टि का विकास हो रहा है। दूसरा शब्द ‘भौतिकवाद’ सृष्टि के मूल तत्व को सूचित करता है।
- द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया — कार्ल मार्क्स के अनुसार समाज की प्रगति प्रत्यक्ष न होकर एक टेढ़े-मेढ़े तरीके से हुई है जिसके तीन अवयव हैं- वाद, प्रतिवाद तथा संवाद । इन तीनों का संश्लेषण ही द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया है।
- भौतिकवाद — दार्शनिक दृष्टिकोण से जहाँ हीगल सृष्टि का मूलतत्व चेतना या विश्वात्मा को मानता है वहीं कार्ल मार्क्स सृष्टि का मूल तत्व ‘जड़’ की मानता है। मार्क्सवादी दर्शन में यही भौतिकवाद है।
- ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद — कार्ल मार्क्स की धारणा है कि मानव इतिहास में होने वाले विभिन्न परिवर्तन और घटनाएँ आर्थिक कारणों से होती हैं। मार्क्सवादी दृष्टिकोण से यही ऐतिहासिक भौतिकवाद है।
- आधार — मार्क्स के अनुसार समाज के दो भागों में से पहला भाग। इसमें मार्क्स अर्थव्यवस्था व उत्पादन प्रणाली को सम्मिलित करता है।
- अधिरचना — मार्क्स के अनुसार समाज के दो भागों में से दूसरा भाग। इसमें मार्क्स सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक व्यवस्था को सम्मिलित करता है।
- शोषक वर्ग — मार्क्स के अनुसार अर्थव्यवस्था व प्रणाली पर जिसका नियन्त्रण होता है उसे शोषक वर्ग कहते हैं। शोषित वर्ग- जो वर्ग शोषक वर्ग के अधीन कार्य करता है उसे शोषित वर्ग कहते हैं।
- वर्ग — काल मार्क्स के अनुसार जिस समूह के आर्थिक हित होते हैं, उसे वर्ग कहते हैं। यथा- श्रमिक, पूँजीपति इत्यादि।
- संघर्ष — इसका व्यापक अर्थ रोष, असन्तोष व असहयोग से है।
- कम्युनिस्ट मैन्यूफेस्टो — कार्ल मार्क्स ने कम्युनिस्ट मैन्यूफेस्टो में ही वर्ग संघर्ष, द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद एवं ऐतिहासिक भौतिकवाद का सिद्धान्त प्रतिपादित किया ।
- अतिरिक्त मूल्य — उपयोगिता मूल्य एवं विनिमय मूल्य का अन्तर अतिरिक्त मूल्य है। अतिरिक्त मूल्य पूँजीपति अपने पास रखता है।
- नवमार्क्सवाद — यह सर्वप्रथम 1923-1924 में जार्ज ल्यूकाज द्वारा प्रतिपादित किया गया। यह पूँजीवाद की तुलना में सामंतवाद को अच्छा बताता है।
- पूँजीवाद — कार्ल मार्क्स के अनुसार इस व्यवस्था में लाभ के लिए उत्पादन किया जाता है। इसमें परस्पर दो विरोधी वर्गों का हित पाया जाता है।
- राज्य — कार्ल मार्क्स राज्य को एक वर्गीय संस्था मानता है। इसके अनुसार राज्य शोषण का मन्त्र रहा है। शासन- कार्ल मार्क्स के अनुसार शासन शोषक वर्ग की शोषित वर्ग के शोषण में सहायता करता है।
- सर्वहारा वर्ग — कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्ग। इसके अन्तर्गत उसने शोषित वर्ग को सम्मिलित किया।
- बुर्जुआ वर्ग — कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्ग। इसके अन्तर्गत उसने शोषक वर्ग को सम्मिलित किया।
- लेनिन — इसके द्वारा 1917 ई. में सोवियत संघ में साम्यवादी शासन की स्थापना की गई।
- माओत्से तुंग — इसके द्वारा चीन में क्रान्ति के माध्यम से 1949 ई. में साम्यवादी शासन की स्थापना की गई।
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