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RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 11 गाँधीवाद

August 6, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 11 गाँधीवाद

  • गाँधीजी के विचारों और आदर्शों का ही दूसरा नाम गाँधीवाद है। वर्तमान में, गाँधीजी के इन्हीं विचारों तथा आदर्शों को ”गाँधी दर्शन”, ‘गाँधीवादी राजनीतिक दर्शन” तथा ”गाँधीवाद” इत्यादि नामों से जाना जाता है।
  • गाँधी स्वयं किसी ‘वाद’, सम्प्रदाय या सिद्धान्त में विश्वास नहीं करते थे और न ही अपने पीछे किसी प्रकार का ‘वाद’ छोड़ना चाहते थे। उनका तरीका प्रयोगात्मक अनुभववादी तथा वैज्ञानिक था।

गाँधी व उनके जीवन मूल्य:

  • गाँधी जी राजनीति को पवित्र करना चाहते थे तथा उसे धर्म और न्याय पर आधारित करना चाहते थे। गाँधी व्यक्ति में प्रेम और स्वतन्त्रता का संचार करना चाहते थे; व्यक्ति को पुरुषार्थ का महत्त्व समझना चाहते थे।
  • बी.पी. सीतारमैया के शब्दों में, ‘गाँधीवाद सिद्धान्तों का, मतों का, नियमों का, विनियमों को और आदेशों का समूह नहीं है। वह जीवन शैली या जीवन दर्शन है। यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है तथा मनुष्य के जीवन तथा समस्याओं लिए प्राचीन समाधान प्रस्तुत करता है।’

गाँधीवाद विचारों का एक समूह मात्र:

  • गाँधीजी ने जीवन की भिन्न-भिन्न समस्याओं पर परिस्थितिजन्य विचार व्यक्त किये हैं। उनका नाम किसी एक ‘ विचार से सम्बन्धित नहीं किया जा सकता है। गाँधीजी के आदर्शों के जो आधार थे- सत्य, अहिंसा, प्रेम भ्रातृभाव।
  • गाँधीजी समूहवादी विचारक थे उनके विचारों में भारतीय व पाश्चात्य दोनों श्रेणी के विचारकों के विचारों का प्रभाव दिखाई देता है। वह महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, सुकरात, थोरो, क्रोपोटकिन एवं रस्किन के विचारों से प्रभावित थे।
  • गाँधीजी आध्यात्मिक समाजवाद के प्रतिपादक थे, इसलिए उन्होंने इतिहास की आध्यात्मिक व्याख्या की थी। उन्होंने केवल भौतिक कार्यकलापों या भौतिकवाद को सभ्यता व सँस्कृति का वाहक नहीं माना। उन्होंने गहन आन्तरिक विकास पर बल दिया।
  • गाँधीजी मार्क्स की इतिहास की भौतिक व्याख्या, वर्ग संघर्ष और हिंसा के प्रयोग के घोर विरोधी थे, वे केवल कार्यों में बल्कि विचारों और भावनाओं में भी हिंसा को स्वीकार नहीं करते थे।
  • गाँधीजी ने अपने विचारों की व्याख्या अंपनी रचनाओं विशेषकर हिन्द स्वराज्य, आत्मकथा और पत्रिकाओं विशेषकर हरिजन, यंग इण्डिया, इण्डियन ओपीनियन, नवजीवन, आर्यन पथ और अनेक भाषणों में की है।

गाँधीवाद के स्रोत:

  • गाँधीजी के विचारों पर चार प्रकार के प्रभाव नजर आते हैं-
    • धार्मिक ग्रन्थों का प्रभाव,
    • दर्शन का प्रभाव,
    • सुधारवादी आन्दोलनों का प्रभाव और
    • सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव।
  • गाँधीजी के विचारों पर अनेक दार्शनिकों का प्रभाव था जिनमें से मुख्य हैं- जॉन रस्किन, हेनरी डेविड थोरो, लियो टॉलस्टाय व सुकरात।
  • भारत की असहाय अवस्था और गरीबी का प्रभाव भी गाँधी जी के विचारों पर पड़ा जो उनके समाजवादी विचारों को आधार था।

दक्षिण अक्रीका गाँधी जी के प्रयोगों की प्रयोगशाला:

  • दक्षिण अफ्रीका गाँधीजी के प्रयोग की प्रयोगशाला थी वहीं पर उनकी धार्मिक चेतना का विकास हुआ, वहीं पर उन्होंने पश्चिम के लेखकों की विचारधाराओं का अध्ययन किया।
  • गाँधीजी के राजनीतिक दर्शन सत्याग्रह का विकास, श्वेत जातिवाद के प्रतिरोध में हुआ तथा उसका प्रारम्भिक प्रयोग भी उन्होंने वहीं किये । वहीं पर उनमें नि:स्वार्थ मानव सेवा की भावना पैदा हुई।

राजनीति का आध्यात्मीकरण:

  • गाँधीजी के लिए धर्म और राजनीति एक ही कार्य के दो नाम है। उनका विश्वास है कि राजनीति का उद्देश्य धर्म के उद्देश्य की तरह, उन सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन लाना है, जो अन्याय, अत्याचार तथा शोषण पर आधारित है तथा समाज में न्याय तथा न्यायपरायणता की व्यवस्था करना है।

साध्य और साधनों की पवित्रता:

  • गाँधीजी के विचारों की यह विशेषता है कि इनमें साध्य और साधन में कोई भिन्नता नहीं। वह कहा करते थे, मेरे | जीवन दर्शन में कोई भिन्नता नहीं।
  • गाँधीजी के लिए अपवित्र साधनों का प्रयोग तो दूर उनकी कल्पना भी त्याज्य थी। गाँधीजी छल,कपट, हत्या और पशु बल के द्वारा स्वराज्य प्राप्त करने के इच्छुक नहीं थे।
  • मानव प्रकृति- प्रत्येक दर्शन मानव की परिभाषा या मानव प्रकृति के विश्लेषण से ही आरम्भ होता है। कुछ के लिए जैसे मैक्यावली तथा हाब्स, मानव को झगड़ालू, स्वार्थी तथा ईष्र्यालु तथा वहीं रुसो ने शान्त एवम् न्यायप्रिय माना।
  • अहिंसा — अहिंसा का अर्थ है मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न देना अर्थात् किसी का दिल न दुखाना। अहिंसक व्यक्ति प्रेम, दया, क्षमा, सहानुभूति और सत्य की मूर्ति होता है। उसका कोई शत्रु नहीं होता।
  • सत्याग्रह की उत्पत्ति — सत्याग्रह शब्द की उत्पत्ति गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में की थी। इंग्लैण्ड और दक्षिण अफ्रीका में चल रहे निष्क्रिय प्रतिरोध में भेद दिखाने के लिए भी इस शब्द की उत्पत्ति की गई थी।
  • सत्याग्रह का अर्थ — साधारण भाषा में सत्याग्रह बुराई को दूर करने अथवा विवादों को अहिंसक तरीकों से दूर करने का तरीका है। साधारण भारतीय नागरिक के लिए यह भारतीयों की अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध स्वन्त्रता की लड़ाई का तरीका था।

असहयोग तथा उसके स्वरूप:

  • गाँधीजी के अनुसार बुराई के साथ असहयोग करना न केवल व्यक्ति का कर्तव्य है बल्कि उसका धर्म भी है। असहयोग निम्नलिखित रुप धारण कर सकता है।
  • हड़ताल- विरोध स्वरूप कार्य को स्वेच्छापूर्वक बन्द करने को हड़ताल कहते हैं। हड़ताल स्वेच्छापूर्वक तथा अन्तः शुद्ध के लिए आत्मोत्सर्ग है जो अनुचित मार्ग पर जाने वाले विरोधी का हृदय परिवर्तन करने वाली होती है।’
  • सामाजिक बहिष्कार- सामाजिक बहिष्कार एक बहुत पुरानी परम्परा है जिसका उद्भव जातियों के उदय के साथ हुआ । यह निषेधात्मक है और एक ऐसा भयंकर दण्ड हैं जिसका प्रयोग बड़े प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। जिस व्यक्ति का बहिष्कार किया जाता है उसे समाज द्वारा एक प्रकार का दण्ड दिया जाता है।
  • धरना — धरना देने का उद्देश्य ‘‘विचारों को बदलने” से है। यह अनिवार्य रूप से शान्तिमय होना चाहिए। इसमें असभ्यता का व्यवहार, जोर जबर्दस्ती, धमकी का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
  • हिजरत — जब व्यक्ति या जन समूह के पास न तो आत्मा की शक्ति हो और न उसके पास हिंसा की शक्ति (अस्त्र-शास्त्र की शक्ति) हो तो उस समय हिजरत की क्रिया की जाती है।
  • ‘‘गाँधीजी ने आत्म — सम्मान को बचाने के लिए सन् 1928 में वारदोली और सन् 1939 में लिम्बड़ीं, जूनागढ़ और विठ्ठलगढ़ के सत्याग्रहियों को अपने घर छोड़ने की सलाह दी थी।
  • सविनय अवज्ञा — सविनय अवज्ञा सत्याग्रह की महत्त्वपूर्ण शाखा है। इसका अभिप्राय अनैतिक कानून को भंग करना है। यह एक प्रकार की अहिंसक क्रान्ति है। गाँधीजी ने इसे पूर्ण प्रभावी और सशस्त्र क्रान्ति का रक्तहीन स्थापन्न कहा है।
  • उपवास — उपवास ऐसा कष्ट है जिसे व्यक्ति अपने ऊपर स्वयं लागू करते है। यह सत्याग्रह के शस्त्रागार में सबसे शक्तिशाली अस्त्र है।

गाँधीजी के आर्थिक विचार:

  • गाँधीजी का आर्थिक समस्याओं पर दृष्टिकोण उद्धारक था और उनके सुझाव समय, आवश्यकता और मानवता की दृष्टि से प्रेरित होते थे। उनके ये सुझाव वास्तविकता और स्वयं के अनुभव पर आधारित थे।

वर्तमान समय और गाँधी:

  • गाँधीजी के अनुसार यन्त्रों पर निर्भरता दु:खदायी है। यन्त्र के बारे में गाँधीजी के विचार रस्किन, टॉलस्टाय और आर.सी. दत्ता के विचारों से प्रभावित थे।
  • गाँधीजी ने पूँजीवाद की भर्त्सना कड़े शब्दों में की है। उनका विश्वास है कि पूँजीवाद ने दरिद्रता, बेरोजगारी, शोषण और साम्राज्यवाद की भावनाओं को बढ़ावा दिया है। उनके लिए पूँजी का एकत्रीकरण अनैतिक है।

आर्थिक-सामाजिक विषमताओं को दूर करने के गाँधीजी के सुझाव:

  • अस्तेय और अपरिग्रह — गाँधीजी ने अस्तेय को अहिंसा तथा सत्य के सहायक व्रत के रूप में स्वीकार किया है। अस्तेय का सामान्य अर्थ है चोरी न
  • करना — अर्थात कोई वस्तु अथवा धन उसके स्वामी की बिना आज्ञा के लेना। उन्होंने शारीरिक, मानसिक, वैचारिक व आर्थिक सभी प्रकार की चोरी से सदा दूर रहने को ही अस्तेय माना।
  • गाँधीजी अपरिग्रह को केवल धन संचय न करने तक ही सीमित नहीं रखा है, प्रत्युत भविष्य के लिए किसी भी | रूप में किसी भी प्रकार का संचय न करने को ही अपरिग्रह माना है।
  • ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त — वर्तमान आर्थिक असन्तोष को समाप्त करने के लिए गाँधीजी ने तो पश्चिमी अर्थ-व्यवस्था को पसन्द करते थे, क्योंकि यह व्यवस्था पूँजीवाद पर आधारित होने से शोषण, प्रतिद्वन्द्विता और संघर्ष को जन्म देती है और न ही पूर्वी समष्टिवादी अर्थ व्यवस्था को पसन्द करते थे।
  • गाँधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्धान्त के अनुसार पूंजीपति (जिसके पास आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति है) अपनी आवश्यकतानुसार ही सम्पत्ति का प्रयोग करे व शेष सम्पत्ति का वह ट्रस्टी बन जाए व उसे जनकल्याण के कार्यों में लगाए।

स्वदेशी:

  • गाँधीजी स्वदेशी की परिभाषा किसी रूप में संकीर्ण नहीं थी। वह केवल उन विदेशी वस्तुओं को स्वीकार करते थे जो घरेलू या भारतीय उद्योगों को अधिक कुशल बनाने में अनिवार्य है। वह वस्तुओं के विनिमय और अन्तराष्ट्रीय व्यापार में विश्वास करते थे।
  • गाँधीजी भारत को विश्व से अलग नहीं करना चाहते थे, वह तो केवल स्वावलम्बन पर बल देते थे। वह विदेशी पूँजी और तकनीकी ज्ञान से भी समझौता कर सकते थे यदि उन्हें भारतीय नियन्त्रण में रखा जाए।
  • खादी का अर्थशास्त्र- भारत के आर्थिक पुनर्निर्माण की गाँधीवादी योजना में खादी के अर्थशास्त्र का मुख्य स्थान है। गाँधीजी का विश्वास था कि आर्थिक संकट की समस्या को हल करने के लिए खादी अर्थात् चरखा बहुत ही प्राकृतिक सरल, सस्ता और व्यावहारिक तरीका है।
  • खादी राजनीतिक दृष्टिकोण से संगठन और जन-सम्पर्क का आन्दोलन भी था, स्वन्त्रता संग्राम में तो यह राष्ट्रवादियों के लिए एकता प्रदर्शन का प्रतीक बन गया जिसे प्रत्येक भारतीय आसानी से समझ सकता था।

गाँधीजी के आर्थिक विचारों का मूल्यांकन:

  • गाँधीजी के आर्थिक विचारों की यह कह कर आलोचना की गई है कि वे अव्यावहारिक हैं; ये मानव प्रकृति के ‘एक पहलू पर ही बल देते हैं तथा उसकी भौतिक आवश्यकताओं की उपेक्षा करते हैं।
  • खादी का सिद्धान्त न केवल वर्तमान परिस्थितियों में गलत है बल्कि यह तकनीकी ज्ञान ही उपलब्धियों की उपेक्षा भी करते हैं। ये विचार इतिहास की गति से अनभिज्ञ भी हैं।
  • गाँधीजी का ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त अव्यावहारिक है क्योंकि यह सिद्धान्त वस्तुनिष्ठ क्षेत्र में परिवर्तन लाने के स्थान पर व्यक्तिनिष्ठ क्षेत्र में परिवर्तन लाने पर बल देता है।
  • गाँधीजी ने यन्त्रों की भर्त्सना की है। परन्तु यन्त्रों को अस्वीकार करना ‘‘उत्पत्ति के नियम की भर्त्सना है।” यन्त्रों से उत्पन्न होने वाली जिन आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा नैतिक समस्याओं का वर्णन गाँधीजी ने किया है। वे वास्तव में यन्त्रों के कारण पैदा नहीं होतीं बल्कि यन्त्रों की गलत व्यवस्था, उत्पत्ति और वितरण की गलत प्रणालियों और नगरों की गलत योजनाओं से पैदा होती हैं।

गाँधीजी के राजनीतिक विचार:

  • गाँधीजी ने अपने आदर्श अहिंसक समाज की रूपरेखा स्पष्ट रूप से तैयार नहीं की थी जिस प्रकार कि प्लेटो, रूसो तथा कार्ल मार्क्स ने अपने आदर्श समाज की रूप रेखा तैयार की थी।
  • गाँधीजी ने स्पष्ट लिखा है कि ”मैं पहले से ही यह नहीं बता सकता कि पूर्णतया अहिंसा पर आधारित शासन कैसा होगा ।” फिर भी उनकी पुस्तक हिन्द स्वराज्य से और उनके द्वारा समय-समय पर भाषणों, लेखों, वक्तव्यों, भेंटों में व्यक्त किये गये विचारों से उनके आदर्श समाज की कल्पना की जा सकती है।
  • गाँधीजी ने मर्यादित राज्य की आवश्यकता को स्वीकार कियां गाँधीजी ने ऐसे राज्य का विरोध किया जो विशुद्ध रूप से राजनीति व सत्ता का प्रतिनिधत्व करता है। यदि राज्य संगठित हिंसा का अनैतिक संस्था है।
  • गाँधीजी ने ”सीमित राज्य की स्थापना पर बल दिया है। उनकी दृष्टि में राज्य का कार्य केवल विशुद्ध राजनीति करना ही नहीं है अपितु इससे भी कहीं अधिक उच्च, श्रेष्ठ व कल्याणकारी होता है। गांधीजी राज्य की शक्ति में अत्यधिक अभिवृद्धि के पक्षधर नहीं हैं।

गाँधीज़ी की देन:

  • गाँधीजी दर्शन में सभी विचार संश्लिष्ट हैं- अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, धर्म सभी एक दूसरे से सम्बद्ध हैं और नये विचारों से सामंजस्य का द्वार इसमें सर्वदा खुला है।
  • गाँधीजी ने राजनीति का आध्यात्मीकरण किया और राजनीतिक शब्द में नीति अर्थात् धर्म पर बल दिया।
  • गाँधीजी की राजनीति शास्त्र की सबसे बड़ी देन हैं- सत्याग्रह का पूर्ण सिद्धान्त। यह अहिंसा पर आधारित है। जहाँ अब तक विश्व के पास अन्याय को दूर करने का युद्ध के रूप में एक ही विकल्प था वहाँ गाँधीजी ने युद्ध के विकल्प के रूप में सत्याग्रह के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया।

गाँधीजी के विचारों का मूल्यांकन:

  • गाँधीजी के विचार नैतिक नियमों- सत्य, अहिंसा, प्रेम, सहानुभूति करके ही गाँधीजी के विचारों की आलोचना की जा सकती है।
  • युद्ध ने केवल युद्ध को ही जन्म दिया है, शान्ति को नहीं। यही कारण है कि गाँधीजी के विचारों का समर्थन करने वाले उनके विचारों को न केवल सर्वकालिक बल्कि सर्वदेशीय भी मानते हैं।
  • कोई ऐसा क्षेत्र नहीं- व्यक्ति, समाज, राष्ट्र, अन्तर्राष्ट्रीय-जहाँ गाँधीजी के विचारों ने सत्य, अहिंसा, प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, बलिदान और त्याग का पाठ नहीं सिखाया।
  • दूसरी ओर, जो लेखक गाँधीजी के विचारों की आलोचना करते हैं वे इन्हें अव्यावहारिक, अवैज्ञानिक, एक पक्षीय मौलिकतारहित, काल्पनिक, कोरे आदर्शवाद, समाज को पीछे धकेलने वाले पूँजीवाद के समर्थक, वर्ग भेद को स्थाई रखने वाले, इत्यादि बताते हैं।

निष्कर्ष:

  • महात्मा गाँधी के विचार पूर्णता, मानवता, जीवन मूल्य और राष्ट्रीय अस्मिता से ओत-प्रोत रहे हैं, जो हर युग और समय के सापेक्ष में अपनी अनुकूलता सिद्ध करते हैं।

महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

  • 20 मार्च 1937- गाँधी ने ‘हरिजन सेवक’ में लिखा- ‘मनुष्य-मनुष्य के बीच असमानता का और ऊँच-नीचपन का विचार बुरा है। पर इस बुराई को मैं मनुष्य के हृदय से तलवार के बल नहीं निकालना चाहता हूँ।
  • 1928- गाँधी जी ने बारदोली के सत्याग्रहियों को अपना आत्म-सम्मान बचाने के लिये घर छोड़ने की सलाह दी।
  • 1939- गाँधी जी ने लिम्बड़ी, जूनागढ़ और विठ्ठलगढ़ के सत्याग्रहियों को हिजरत अर्थात् आत्म सम्मान के लिये घर छोड़ने की सलाह दी।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 11 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • व्यक्तिवाद — यह व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं व्यक्तिगत आत्म- निर्भरता पर बल देने वाला दर्शन है। यह राज्य के सीमित अधिकारों, मुक्त बाजार व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का समर्थन करता है।
  • आदर्शवाद — यह विचारधारा मानव तथा उसके व्यक्तित्व के विकास एवं आध्यात्मिक मूल्यों को जीवन का लक्ष्य स्वीकार करता है।
  • समाजवाद — समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और विकास समाज के नियन्त्रण के अधीन | रहते हैं। यह व्यवस्था निजी सम्पत्ति
  • का विरोध करती है। इसके अनुसार संपत्ति का उत्पादन एवं वितरण समाज के हाथों में होना चाहिए।
  • उदारवाद — इसमें मनुष्य को एक विवेकशील प्राणी मानते हुए सामाजिक संस्थाओं को मनुष्य की सूझबूझ व सामूहिक प्रयास का परिणाम समझा जाता है। जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। यह दर्शन व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का समर्थन करता है। वर्तमान में यह विश्व की सर्वाधिक मान्य विचारधारा है।
  • अनुदारवाद — यह विचारधारा पारम्परिक मान्यताओं का अनुकरण आस्था के आधार पर करती है। इसमें तार्किकता का कोई महत्व नहीं होता। इसमें नवीन विचारों का विरोध किया जाता है।
  • राष्ट्रवाद — यह एक जटिल व बहुआयामी विचारधारा है। यह राष्ट्र के प्रति निष्ठा, उसकी प्रगति और उसके प्रति नियम-आदर्शों का बनाये रखने का सिद्धान्त है।
  • अन्तर्राष्ट्रवाद — यह एक ऐसा राजनीतिक सिद्धान्त है जो राष्ट्रों व लोगों के मध्य अधिक राजनीतिक व आर्थिक सहयोग का समर्थन करता है। इसके समर्थक चाहते हैं कि विश्व के लोग राष्ट्रीय, राजनीतिक, सांस्कृति व जातीय दृष्टिकोण से एक हो जाये जिससे कि अपने सामान्य हितों को आगे बढ़ा सके।
  • सर्वोदयवाद — गाँधीजी के द्वारा प्रतिपादित सर्वोदय दर्शन में सभी के उदय अर्थात् कल्याण की भावना | निहित है। यह सम्पूर्ण जीवन का पर्याय है।
  • मानवतावाद — यह मानव मूल्यों पर आधारित दर्शन है। इसका अर्थ है कि संपूर्ण मानव जाति में प्रेम, दया, करुणा व सहानुभूति की नैतिक भावना रहे। यह विचारधारा मनुष्यों के मध्य किसी भी आधार पर भेदभाव का विरोध करती है।
  • अध्यात्मवाद — अध्यात्मवाद आत्मा को जगत का मूल मानता है। इसके प्रतिपादकों की मान्यता है कि | आत्मा का शरीर से स्वतन्त्र अस्तित्व होता है। अध्यात्म का अर्थ है अपने अंदर के चेतन तत्व को जानना।
  • अस्तेय — अस्तेय जैन धर्म के पंच-महाव्रत में से एक है। इसका अर्थ है चोरी न करना अर्थात् कोई वस्तु अथवा धन उसके स्वामी की आज्ञा के बिना न लेना। गाँधीजी ने अस्तेय को सत्य व अहिंसा के सहायक व्रत के रूप में स्वीकार किया।
  • अपरिग्रह — अपरिग्रह भी जैन धर्म के पंच महाव्रत में से एक है। इसका अर्थ है आवश्यकता से अधिक संचय न करना गाँधीजी ने अपरिग्रह को केवल धन संचय तक ही सीमित नहीं रखा वरन् किसी भी प्रकार का संचय न करने को अपरिग्रह माना ।
  • अहिंसा — अहिंसा का अर्थ है मन, वचन व कर्म से किसी को कष्ट न देना अर्थात् किसी का दिल न दुखाना। गाँधीजी ने लक्ष्य प्राप्ति हेतु अहिंसा का मार्ग अपनाने का सन्देश दिया।
  • सत्याग्रह — सत्याग्रह बुराई को दूर करने अथवा विवादों को अहिंसक तरीको से दूर करने का तरीका है। गाँधीजी के आग्रह पर भारतीय नागरिकों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध स्वतन्त्रता संघर्ष में यह तरीका अपनाया।
  • असहयोग — यह सत्याग्रह के तरीकों में से ही एक है। इसका अर्थ है असत्य व अहितकर के साथ असहयोग करना। गाँधीजी ने औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध इसी अस्त्र का प्रयोग किया।
  • हिजरत — हिजरत वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने निवास स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर चला जाता है। ऐसा अपने आत्म सम्मान को बचाने के लिये किया जाता है।
  • कार्ल मार्क्स — कार्ल मार्क्स जर्मन दार्शनिक और समाजशास्त्री थे। वह वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे। उनके अनुसार समाज में दो वर्ग हैं- पूँजीपति वर्ग एवं श्रमिक वर्ग । इनके मध्य वर्ग संघर्ष बना रहता है।
  • गाँधीजी — गाँधीजी भारत व भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख राजनीतिक व आध्यात्मिक नेता थे। उन्होंने अहिंसा के सिद्धान्त के आधार पर सत्याग्रह की नींव रखी।
  • लाओत्से — प्राचीन चीन के एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वह एक लेखक भी थे। उनकी विचारधाराओं पर आधारित धर्म को ताओ धर्म कहते हैं। लाओ का अर्थ है ‘आदरणीय वृद्ध’ एवं सू का अर्थ है गुरु।
  • कन्फ्यूशियस — एक चीनी सुधारक थे। उनके समय में चीन में झोऊ वंश था। कन्फ्यूशियस ने अपनी शिक्षाओं से व्याप्त अराजकता को दूर किया। जॉन रस्किन — वह 19वीं सदी के विचारक थे। उनकी पुस्तक ‘अनटू दि लास्ट’ (unto the last) पढ़ने के बाद गाँधीजी ने कहा ‘अब ये वह नहीं रह
  • गये जो इस पुस्तक को पढ़ने से पहले थे। उन्होंने पुस्तक के शीर्षक का अनुवाद ‘अन्त्योदय’ के रूप में किया। इसी अन्त्योदय को गाँधीजी ने बाद में सर्वोदय के रूप में परिभाषित किया।
  • हेनरी डेविड थोरो — अमेरिका के विख्यात समाज सुधारक थे। वह सविनय अवज्ञा आन्दोलन के जनक थे। गाँधीजी ने उन्हीं की प्रेरणा से यह आन्दोलन भारत में आरम्भ किया था। थोरो की प्रसिद्ध पुस्तक ‘Walder’ थी।
  • लियो टॉलसटाय — 19 वीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक थे। उनका जन्म रुस में हुआ था। उन्होंने रुढ़िवादी समाज में सत्य व ज्ञान की ज्योति फैलाई।
  • सुकरात — यूनानी दार्शनिक थे। इन्हें पाश्चात्य दर्शन का जनक भी कहा जाता है।
  • स्वामी विवेकानन्द — वेदान्त के विख्यात अध्यात्मिक गुरु थे। 1893 में विश्व सर्वधर्म सम्मेलन, शिकागो में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

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