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RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 13 पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधन

August 7, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 13 पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधन

  • भारतीय संस्कृति में प्रकृति को माता कहा गया है क्योंकि वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के जीवों का पालन-पोषण करती है। अतः इसका संरक्षण करना नैतिक कर्तव्य है।
  • हमारे वेदों, पुराणों व उपनिषदों तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थों में पेड़-पौधों व जन्तुओं के सामाजिक महत्व को बताते हुए पारिस्थितिकी से जोड़ा गया है।

पर्यावरण का भारतीय परिप्रेक्ष्य:

  • सबसे प्राचीन वेद है- ऋग्वेद । इसमें सबसे अधिक मनुष्य एवं उसके पर्यावरण को महत्व दिया गया है।
  • हमारे ऋषियों व मुनियों ने वृक्षों तथा वनों के महत्व को बताते हुए उनके संरक्षण पर बल दिया। ऋग्वेद में वर्णित है कि किस प्रकार कुछ पौधे औषधि के रूप में तथा कुछ धार्मिक अवस्था की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, उदाहरणार्थ–पीपल, तुलसी, बिल्व, ढाक, पलाश, दूर्वा व कुश
  • महान अर्थशास्त्री चाणक्य ने कहा था कि-साम्राज्य की स्थिरता पर्यावरण की स्वच्छता पर निर्भर करती है।
  • जैन धर्म में अहिंसा को परम धर्म मानते हुए जीव संरक्षण को आवश्यक बताया गया है।
  • 21 सितम्बर, 1730 को राजस्थान के खेजड़ली गाँव में बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने अमृता देवी के नेतृत्व में | खेजड़ी वृक्षों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति यह कहते हुए दे दी कि यदि हमारे सिर के बदले वृक्ष जीवित रहता है तो हम इसके लिए तैयार हैं।’ इस घटना से स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति के हृदय में पर्यावरण संरक्षण समाहित है।

पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता:

  • आधुनिक वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी प्रगति के युग में जहाँ एक ओर विकास हो रहा है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ रहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट 2016 के अनुसार विकासशील देशों की 1.20 अरब जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। विश्व में 97 प्रतिशत जल महासागर व समुद्रों के खारे जल के रूप में विद्यमान है जो दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अनुपयुक्त है।

पर्यावरण प्रदूषण:

  • पर्यावरण प्रदूषण कई प्रकार का होता है जैसे कि वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, खनिज प्रदूषण, रेडियोएक्टिव प्रदूषण एवं मृदा प्रदूषण आदि।
  • वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं-शहरों का असीमित विस्तार, औद्योगिकीकरण में वृद्धि, परिवहन साधनों का विकास, विलासिता के साधनों में वृद्धि। इन विभिन्न कारणों से वायुमण्डल में हानिकारक गैसें मिश्रित हो रही हैं।
  • ओजोन परत वायुमण्डल के समताप मंडल में 11 से 35 किमी. ऊँचाई तक घने आवरण के रूप में पाई जाती है। | यह परत सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है । इसी कारण इस परत को सुरक्षा कवच भी कहा जाता है। क्लोरो-फ्लोरोकार्बन (सी.एफ.सी.)का एक अणु समतापमंडल के एक लाख ओजोन अणुओं को नष्ट कर सकता है। अण्टार्कटिका व दक्षिणी ध्रुव पर पाया जाने वाला ओजोन छिद्र सम्पूर्ण विश्व के लिए हानिकारक है।
  • सन् 1990 की अन्तर्राष्ट्रीय बैठक में विकासशील देशों ने निर्णय लिया कि वे सन् 2000 तक सी.एफ. सी. का उत्पादन बन्द कर देंगे। विकासशील देशों को इसके लिये दस वर्षों की छूट दी गई।
  • वायु प्रदूषण को रोकने हेतु अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाना चाहिए, उद्योगों की चिमनियाँ ऊँचाई पर हों, पेट्रोल कारों में कैटेलिटिक कनवर्टर हो, जीवाश्म ईंधन के स्थान पर सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा का प्रयोग किया जाए।
  • प्रतिवर्ष 16 सितम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस मनाया जाता है।
  • ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से हमारे वातावरण में वायुमण्डल का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है।
  • जल में ठोस कार्बनिक, अकार्बनिक पदार्थ, रेडियोएक्टिव तत्व, उद्योगों का कचरा व सीवेज का दूषित जल | मिलने से जल प्रदूषित हो जाता है।
  • अतिसार, पेचिश, हैजा व टायफाइड जैसी बीमारियाँ जल प्रदूषण से उत्पन्न होती हैं।
  • मृदा प्रदूषण के कई कारण हैं; जैसे-अम्लीय वर्षा, उर्वरकों का अधिक प्रयोग व रासायनिक छिड़काव आदि। रासायनिक खादों के स्थान पर कम्पोस्ट खाद एवं हरी खाद का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • नाभिकीय प्रयोगों से रेडियोधर्मी प्रदूषण निरन्तर बढ़ रहा है। इससे प्राणियों की कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, कैंसर हो जाता है, समय से पूर्व बाल सफेद होने लगते हैं एवं समुद्री जीव-जन्तु नष्ट हो जाते हैं।
  • पॉलीथीन या प्लास्टिक थैले में मुख्यतया जाइलीन, एथिलीन आक्साइड व बेंजीन का प्रयोग होता है जो कि स्वास्थ्य के लिये घातक हैं। प्लास्टिक के गलने में लगभग 400 वर्ष लग जाते हैं।
  • ग्लोबल वार्मिंग अथवा वैश्विक तापमान आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड व क्लोरो-फ्लोरो कार्बन जैसी ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से पृथ्वी का । तापमान निरन्तर बढ़ रहा है।

प्राकृतिक संसाधन:

  • प्राकृतिक संसाधन प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिए गए अमूल्य उपहार हैं जैसे कि जल संसाधन, खनिज संसाधन, वन संसाधन, खाद्य संसाधन व ऊर्जा संसाधन आदि।
  • जल सम्पूर्ण जीव जगत का आधार है। जल की न्यूनता व अधिकता दोनों ही हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं।
  • पृथ्वी में खनन द्वारा खनिज प्राप्त कर इन्हें भौतिक व रासायनिक क्रियाओं द्वारा शुद्ध किया जाता है।
  • खनिज दो प्रकार के होते है-
    • धात्विक खनिज
    • अधात्विक खनिज।
  • पेड़-पौधे मनुष्य के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं। भारतीय संस्कृति में वनों व वृक्षों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
  • राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश के लगभग 33 प्रतिशत भाग पर वन होने चाहिए।
  • विश्व की तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को भरपेट भोजन प्रदान करना आज की सबसे बड़ी चुनौती है।
  • हरित क्रांति ने देश में सघन कृषि को बढ़ावा दिया। इसमें रासायनिक उर्वरक, कीटनाशी, खरपतवारनाशी तथा कवकनाशी रसायनों का भरपूर प्रयोग हुआ है।
  • भारतीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के अनुसार सिंचाई परियोजनाओं के प्रभाव से मृदा के लवणों की मात्रा बढ़ रही है।
  • ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों में खनिज कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैसें, जल विद्युत व आणविक विद्युत आते हैं। जबकि गैर-परम्परागत स्रोतों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा व बायो गैस को सम्मिलित किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक चिंतन:

  • जलवायु परिवर्तन पर प्रथम वैश्विक चिन्तन 5 से 16 जून 1972 के मध्य स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुआ। इस सम्मेलन की 20 वीं वर्षगाँठ पर 3-14 जून 1992 को रियो डि जनेरियो (ब्राजील) में पृथ्वी शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ।

भारतीय संविधान व पर्यावरण संरक्षण:

  • भारतीय संविधान निर्माताओं ने पर्यावरण को संवैधानिक स्तर पर मान्यता प्रदान की है। 42 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियमों को संविधान के
  • भाग 4 में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों व मूल कर्तव्यों में सम्मिलित किया गया है।
  • भारतीय संसद ने पर्यावरण से सम्बन्धित निम्नलिखित अधिनियम पारित किए हैं-
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
    • वायु प्रदूषण (निवारण व नियंत्रण) अधिनियम 1981
    • जल प्रदूषण (निवारण व नियंत्रण) अधिनियम 1974 संशोधन 1988
    • वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 संशोधन।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार प्रदूषण के निर्धारित मानदण्डों का प्रथम बार उल्लंघन करने पर 5 वर्ष की कैद व एक लाख जुर्माना होगा तथा निरंतर उल्लंघन करने पर 7 वर्ष की कैद पर्यावरण संरक्षण पर न्यायपालिका ने भी समय-समय पर कुछ महत्वपूर्ण निर्णय दिये हैं।
  • राष्ट्रीय पशु बाघ व पक्षी मोर के शिकार पर सम्बन्धित अपराधी को 10 वर्ष तक कारावास का प्रावधान है।
  • उपभोक्ता संस्कृति में उद्योगपति अपने निजी लाभ के लिए जो वस्तुएँ बाजार में बेचते हैं उसके प्रति ग्राहकों को आकर्षित करने के लिये उनके नामों में कृत्रिम इच्छाओं को जागृत कर देते हैं। ग्राहकों को लगता है कि इन चीजें के बिना काम नहीं चल सकता।

महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

21 सितम्बर 1730 — राजस्थान के खेजड़ली गाँव के बिश्नोई समाज के 363 लोगों द्वारा खेजड़ी वृक्षों की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दे देना।
2 मई 1989 — विश्व के 80 राष्ट्रों ने ओजोन परत की रक्षा हेतु प्रभावी कदम उठाने के लिये सहमति दी।
16 सितम्बर 1987 — मॉण्ट्रियल प्रोटोकॉल लागू।
5-16 जून 1972 — स्टॉकहोम (स्वीडन) में प्रथम बार वैश्विक स्तर पर पर्यावरण सम्मेलन।
9 सितम्बर 1972 — वन्य जीव संरक्षण अधिनियम को भारतीय संसद द्वारा पारित किया जाना।
10-18 मई 1982 — नैरोबी (केन्या) में पर्यावरण सम्मेलन
23 मई 1986 — पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को 1986 को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति प्रदान की गयी।।
3-14 जून 1992 — रियो डि जनेरियो (ब्राजील) में संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी शिखर सम्मेलन ।
सन् 1995 — जलवायु परिवर्तन पर प्रथम संयुक्त सम्मेलन का बर्लिन (जर्मनी) में आयोजन।
सन् 2013 — उत्तराखण्ड में भीषण बाढ़, व्यापक जनधन की हानि।
1-14 दिसम्बर 2014 — जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कोप-20 का लीमा (पेरू) में आयोजन।
30 नवम्बर-12 दिसम्बर 2015 — जलवायु परिवर्तन पर पेरिस (फ्रांस) में सम्मेलन का आयोजन।
2 अक्टूबर 2016 — भारत ने पेरिस समझौते का क्रियान्वयन आरम्भ किया।
5 जून — विश्व पर्यावरण दिवस।
22 अप्रैल — पृथ्वी दिवस
16 सितम्बर — विश्व ओजोन दिवस/अन्तर्राष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस।
28 जुलाई — वन महोत्सव।।
22 मार्च — विश्व जल दिवस।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 13 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • पारिस्थितिकी — यह जीव विज्ञान की एक शाखा है जिसे अंग्रेजी में इकोलॉजी (Ecology) कहते हैं। इसमें जीव समुदायों का उनके वातावरण के साथ पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
  • बिश्नोई-बीस नौ — बिश्नोई, जो 29 सूत्रों में विश्वास करते हैं। बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने अमृता देवी के नेतृत्व में 21 सितम्बर 1730 को राजस्थान के खेजड़ली गाँव में वृक्षों की सुरक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दी। |
  • प्रौद्योगिकी — प्रौद्योगिकी व्यावहारिक व औद्योगिक कलाओं और प्रयुक्त विज्ञान से संबंधित अध्ययन का समूह है। आधुनिक सभ्यता के विकास में प्रौद्योगिकी का बहुत अधिक योगदान है।
  • ग्लोबल वार्मिंग — पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि होना ‘ग्लोबल वार्मिंग’ या ‘वैश्विक तापमान’ कहलाता है। इस तापमान वृद्धि का प्रमुख कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना है। इसके कई कारण हैं जैसे कि वृक्षों की कटाई, जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल, परिवहन में गैसोलिन का प्रयोग आदि।
  • प्रदूषण — पर्यावरण में दूषित पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण से वायु, जल, मृदा आदि अवांछित तत्वों के प्रवेश से दूषित हो जाते हैं तथा जीव-जन्तुओं को हानि पहुँचाते हैं।
  • स्मॉग — स्मॉग दो शब्दों स्मोक( धुआँ) व फॉग (कोहरे) से मिलकर बना है। इसके कारण साँस लेना मुश्किल हो जाता है। यह दो कारणों से बनता है-प्रथम वायु में सल्फर ऑक्साइड घनीभूत होने पर, द्वितीय, वाहनों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड व हाइड्रोकार्बन धुएँ के कारण।।
  • ओजोन परत — समताप मंडल में 11 से 36 किमी. ऊँचाई पर स्थित ओजोन का घना आवरण ओजोन परत कहलाता है। यह पृथ्वी और पर्यावरण के लिए एक प्रकार का सुरक्षा कवच है जो सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को हम तक पहुँचने से रोकता है।
  • पराबैंगनी किरणें — सूर्य के प्रकाश की इन किरणों में ऊर्जा की मात्रा बहुत अधिक होती है जिससे शरीर की त्वचा झुलस जाती है। ओजोन परत इन किरणों को अवशोषित कर पृथ्वी पर आने से रोकती है।
  • सी.एफ.सी. — (क्लोरो-फ्लोरोकार्बन) यह एक कार्बनिक यौगिक है। इसका प्रयोग रेफ्रिजरेटरों व एयर कंडीशनरों में विशेष रूप से होता है। सी.एफ.सी. ओजोन परत के क्षरण व ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है।
  • जीवाश्म ईंधन — यह मृत पेड़-पौधों व जानवरों के अवशेषों से तैयार प्राकृतिक ईंधन है। ये जीवाश्म अवशेष करोड़ों-करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी की सतह के नीचे दबे रहे तथा ताप व दाब के प्रभाव से रासायनिक क्रिया के बाद ये कोयले, तेल व गैस में बदल गए। |
  • ग्रीन हाउस— यह पौधे तैयार करने हेतु ऊष्मारोधी पदार्थों से निर्मित दीवारों व काँच से निर्मित छत वाला कक्ष होता है। प्रकाश व ऊर्जा इस कक्ष में प्रवेश कर सकते हैं किन्तु बाहर न निकल सकते है।
  • प्राकृतिक संसाधन — प्रकृति से प्राप्त विभिन्न पदार्थ या तत्व जिनका कोई मानवीय उपयोग होता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। ये प्रकृति द्वारा दिए गए निशुल्क उपहार हैं; उदाहरणार्थ– वायु, पेड़ पौधे, मृद व जल आदि।
  • धात्विक खनिज — इन खनिजों को खानों से अयस्क के रूप में प्राप्त करके इन्हें रासायनिक क्रियाओं द्वारा शुद्ध रूप में प्राप्त किया जाता है। उदाहरणार्थ-लोहा, ताँबा, जस्ता, चाँदी, सोना आदि।
  • अधात्विक खनिज — इन खनिजों को खानों से निकालने के बाद परिष्कृत नहीं किया जाता है वरन् उसी रूप में उपयोग में लाया जाता है; उदाहरणार्थ-पन्ना, चूना, पत्थर, नमक, संगमरमर आदि। |
  • हरित क्रान्ति — हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति से है। भारत में हरित क्रान्ति 1966-67 में आरंभ हुई। इससे खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता आई तथा व्यावसायिक कृषि को प्रोत्साहन मिला।
  • एन्थेसाइट — यह कोयले की एक प्रमुख किस्म है। यह एन्थ्रेसाइट सबसे अधिक ऊर्जायुक्त होने के कारण सर्वोत्तम किस्म का कोयला माना जाता है। इसमें 90 प्रतिशत तक कार्बन पाया जाता है।
  • पनबिजली (जल विद्युत) — बड़ी नदियों में उपयुक्त स्थानों पर बाँध बनाकर पानी की तेज धारा निकालकर इससे विद्युत टरबाइने घुमाई जाती हैं। इस तरह उत्पन्न विद्युत को पनबिजली या जल विद्युत कहते हैं। |
  • सोते (चतपद) — भूगर्भ में कई स्थानों पर 3-15 किमी गहराई पर काफी उष्ण चट्टानें पाई जाती हैं। इस प्रभाव के कारण कई स्थानों पर गर्म जल के स्रोत पाये जाते हैं, इन्हें सोते या चतपदह कहते हैं। इस भूगर्भीय उष्णता का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
  • बायोगैस — पशुओं के गोबर, मूत्र व पौधे के कूड़े-करकट को सड़ाकर गोबर गैस बनाई जाती है। इसमें 50-60 प्रतिशत मीथेन गैस पाई जाती है। इस गैस को पाइप लाइन द्वारा एल.पी.जी. चूल्हों तक पहुँचाया जाता है।
  • भूस्खलन — पर्वतीय ढाल पर किसी भी चट्टान का गुरुत्व के कारण नीचे खिसकना भूस्खलन कहलाता है।
  • मृदा अपरदन — प्राकृतिक अथवा मानवीय कारणों से मृदा की ऊपरी उपजाऊ मृदा का स्थानान्तरित होना मृदा अपरदन कहलाता है। इससे कृषि उत्पादन में भारी कमी आती है।
  • उपभोक्तावाद — उपभोक्तावाद एक आर्थिक प्रक्रिया है जिसका सीधा संबंध इस बात से है कि समाज में व्याप्त प्रत्येक तत्व उपभोग करने योग्य है। अतः उसे आवश्यक वस्तु के रूप में बाजार में स्थापित किया जाना चाहिये जिससे अधिकाधिक ग्राहक आकर्षित हो सकें।
  • पर्यावरण — पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त आवरण जिसमें भौतिक, रासायनिक व जैविक दशाओं का समावेश होता है, पर्यावरण कहलाता है।
  • अम्लीय वर्षा — उद्योग धन्धों, मोटर वाहनों के निकलते धुएँ से वायु में कार्बन डाई-ऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रस आक्साइड इकट्ठी रहती है। ये गैसें वर्षा के पानी व वायुमण्डलीय जलवाष्प से अभिक्रिया करके अम्लों का निर्माण करती है। यह अम्ल वर्षा के जल के साथ पृथ्वी पर आता है, इसे अम्लीय वर्षा कहते हैं।
  • सूखा — सूखी एक प्राकृतिक आपदा है। यह वह अवस्था है जब किसी क्षेत्र में बहुत कम वर्षा के कारण पेयजल, खाद्यान्न एवं रोजगार की कमी हो जाती है।
  • बाढ़ — किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक जलमग्न रहना बाढ़ कहलाती है।
  • खनन — पृथ्वी में अपेक्षाकृत अधिक गहराई से भूमिगत खनिजों, धातुओं तथा धात्विक खनिजों को बाहर निकालने की क्रिया खनन कहलाती है।
  • सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) — एक निश्चित समयावधि में किसी देश की अर्थव्यवस्था में संपूर्ण उत्पादों की माप सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाती है।
  • ग्लेशियर — गतिशील हिम को ग्लेशियर या हिमानी या हिमनद कहते हैं।
  • नाभिकीय ऊर्जा — परमाणु खनिजों; यथा- यूरेनियम व थोरियम आदि के उपयोग से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा या परमाणु ऊर्जा कहते हैं।
  • मरुस्थलीयकरण — भौतिक व मानवीय क्रियाकलापों द्वारा उपजाऊ भूमि के बंजर व रेतीली भूमि में परिवर्तित होने की प्रक्रिया मरुस्थलीकरण कहलाती है।
  • क्रांति — अचानक होने वाली ऐसी कार्यवाही जो गैर कानूनी तरीके अथवा शक्ति के द्वारा सरकार या शासन में परिवर्तन के लिए विद्रोह के रूप में प्रकट होती है।
  • डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन — प्रसिद्ध भारतीय कृषि वैज्ञानिक, इन्होंने बताया है कि सिंचाई परियोजनाओं के प्रभाव से मृदा में लवणों की मात्रा बढ़ जाती है।

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