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RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

August 6, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

शक्ति:

  • शक्ति राजनीति विज्ञान की एक केन्द्रीय अवधारणा है।
  • प्राचीन भारतीय चिंतन में ‘दण्ड’ के रूप में शक्ति की अवधारणा को स्वीकार किया गया है। मनु, कौटिल्य और शुक्र आदि ने शक्ति के विभिन्न तत्वों पर प्रकाश डाला है।
  • यूरोपीय चिंतन में मैकियावली को प्रथम शक्तिवादी विचारक माना जाता है।
  • आधुनिक राजनीति विज्ञान के प्रमुख प्रणेता चार्ल्स मेरियम ने शक्ति के विविध पक्षों की व्याख्या की है।
  • शक्ति की अवधारणा को स्पष्ट करने में कैटलिन, लासवेल, कैप्लान, मार्गे-भाऊ, मेकाइवर, आर्गेन्सकी, बायर्सटेड आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

शक्ति को बल और प्रभाव से भेद:

  • सामान्यतया शक्ति और बल को एक ही माना जाता है लेकिन वास्तव में दोनों राजनीति विज्ञान की भिन्न-भिन्न अवधारणाएँ हैं। शक्ति प्रछन्न बल है और बल प्रकट शक्ति ।
  • शक्ति और प्रभाव में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों में अनेक समानताएँ एवं असमानताएँ होती हैं।
  • शक्ति व प्रभाव दोनों एक-दूसरे को सबलता प्रदान करते हैं। प्रभाव शक्ति उत्पन्न करता है तथा शक्ति प्रभाव को।
  • शक्ति दमनात्मक होती है और उसके पीछे कठोर भौतिक बल का प्रयोग होता है जबकि प्रभाव मनोवैज्ञानिक होता

शक्ति के रूप:

  • शक्ति के विविध रूप हैं:
  • (i) राजनीतिक शक्ति
    (ii) आर्थिक शक्ति,
    (iii) विचारधारात्मक शक्ति।
  • सामान्यतया राजनीतिक शक्ति का प्रयोग सरकार के विभिन्न अंग यथा व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका करते हैं।
  • आर्थिक शक्ति का सम्बन्ध उत्पादन के साधनों एवं धन-सम्पदा पर स्वामित्व से है। आर्थिक शक्ति अनेक प्रकार से राजनीतिक शक्ति को प्रभावित करती है।
  • विचारधारात्मक शक्ति लोगों के सोचने, समझने के ढंग को प्रभावित करती है।

शक्ति की संरचना:

  • शक्ति की संरचना के सम्बन्ध में चार महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं
  • (i) वर्ग प्रभुत्व का सिद्धान्त
    (ii) विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत
    (iii) नारीवादी सिद्धान्त
    (iv) बहुलवादी सिद्धान्त। |
  • वर्ग प्रभुत्व का सिद्धान्त मार्क्सवाद की देन है जिसकी मूल मान्यता है कि आर्थिक आधार पर समाज दो विरोधी | वर्ग यथा-बुर्जुआ वर्ग व सर्वहारा वर्ग में विभक्त है।
  • विशिष्ट वर्गीय सिद्धान्त के अनुसार समाज शक्ति के आधार पर दो वर्गों यथा विशिष्ट वर्ग एवं सामान्य वर्ग में बंटा होता है।
  • नारीवादी सिद्धांत का मत है कि समाज में शक्ति के विभाजन का आधार लैंगिक है। समाज की समस्त शक्ति पुरुष वर्ग के पास है जो महिलाओं के ऊपर अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं।
  • बहुलवादी सिद्धांत के अनुसार समाज में सम्पूर्ण शक्ति किसी एक वर्ग के हाथ में न होकर अनेक समूहों में बँटी होती है।

सत्ता:

  • प्राचीनकाल से ही राजनीति विज्ञान में सत्ता की अवधारणा का विशेष महत्व रहा है। इसे प्राधिकार भी कहा जाता
  • सत्ता किसी व्यक्ति, संस्था, नियम व आदेश का ऐसा गुण है, जिसके कारण उसे सही मानकर स्वेच्छा से उसके निर्देशों का पालन किया जाता है।

सत्ता पालन के आधार:

  • सत्ता का पालन करने के पीछे विश्वास, एकरूपता, लोकहित एवं दबाव जैसे आधार छिपे होते हैं।

सत्ता के रूप:

  • प्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन रूप बताए हैं यथा-परम्परागत सत्ता, करिश्माई सत्ता एवं कानूनी, तर्कसंगत सत्ता।
  • सत्ता को देश के संवैधानिक कानूनों एवं वहाँ की संस्कृति, मूल्यों, परम्पराओं व नैतिक अवधारणाओं आदि के सापेक्ष रहकर ही कार्य करना पड़ता है।

वैधता:

  • वैधता शासक व शासितों के मध्य विद्यमान सहमति है। राजनीति विज्ञान की एक अवधारणा के रूप में वैधता का सम्बन्ध कानून मात्र से नहीं होता वरन् शासन व शासित के ऐसे मूल्यों एवं विश्वास से भी है जो शासन को न्याय संगत बनाते हैं।
  • आधुनिक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जनता की सहभागिता को राज्य की वैधता का प्रमाण माना जाता है।
  • वैधता वास्तव में शक्ति और सत्ता के बीच की कड़ी है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की वैधता को बनाए रखने के लिए प्रयत्न करने होते हैं।
  • शक्ति, सत्ता एवं वैधता की अवधारणाएँ एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। शक्ति के अभाव में समाज में शांति, व्यवस्था न्याय व खुशहाली की स्थापना असम्भव है।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 2 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • शक्ति — एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के कार्य एवं मस्तिष्क के ऊपर नियंत्रण करने की क्षमता को शक्ति कहते हैं अर्थात् दूसरों को नियंत्रित करने एवं उन्हें वांछित उद्देश्यों में लगाने की क्षमता। इसके अतिरिक्त व्यक्ति समूह एवं राज्य के बीच सम्बन्धों को बनाए रखने की क्षमता को भी शक्ति कहते हैं।
  • वैधता — वैधता का अर्थ उस सहमति या स्वीकृति से है जो लोगों द्वारा राजनीतिक व्यवस्था के सम्बन्ध में दी जाती है। यह शासक व शासितों के मध्य विद्यमान सहमति है। यदि किसी राजनीतिक व्यवस्था या संस्था को लोगों की ऐसी स्वीकृति या सहमति नहीं होती है तो उस व्यवस्था में वैधता की कमी हो जाती है।
  • बल — जब शक्तिधारक दण्ड का प्रयोग करके अन्य व्यक्तियों के व्यवहार में अपने अनुकूल परिवर्तन करता है तब शक्ति के इस प्रकार को बल कहते हैं।
  • प्रभाव — यह एक अमूर्त व नैतिक तत्व है। इसे अपने अस्तित्व के लिए शक्ति के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती है। यह एक मानसिक क्रिया होने के कारण विचार के रूप में प्रकट होता है।
  • राजनीतिक शक्ति — राजनीतिक शक्ति से आशय है समाज के मूल्यवान संसाधनों यथा पद, प्रतिष्ठा, कर, पुरस्कार व दण्ड आदि का समाज के विभिन्न समूहों में वितरण ।
  • आर्थिक शक्ति — आर्थिक शक्ति का अर्थ उत्पादन के साधनों एवं धन सम्पदा पर स्वामित्व से है।
  • संसाधन — हमारे पर्यावरण में पाये जाने वाला वह पदार्थ या तत्व जिसमें मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता हो।
  • विचारधारात्मक शक्ति — विचारधारात्मक शक्ति का अर्थ विचारों के उस समूह से है जिसके आधार पर हमारे दृष्टिकोण का विकास होता है।
  • व्यवस्थापिका – जनता के प्रतिनिधिओं की सभा जिसके पास देश का कानून बनाने का अधिकार होता है।
  • कार्यपालिका — अधिकार प्राप्त लोगों की संस्था जो देश के संविधान वे कानून के आधार पर प्रमुख नीति बनाती है, निर्णय लेकर उसे लागू करने का कार्य करती है।
  • न्यायपालिका — ऐसी संस्था जिसके पास न्याय करने व कानूनी विवादों को निपटाने का अधिकार होता है। देश की समस्त अदालतों को न्यायपालिका के नाम से जाना जाता है।
  • उदारवाद — यह एक राजनीतिक दर्शन है जो व्यक्ति की स्वायत्तता, संवैधानिक राज्य, प्रति संवेदी सरकार, व्यक्ति के अधिकार व स्वतंत्रताएँ, स्वतंत्र प्रेस, कानून का शासन, निष्पक्ष न्यायपालिका आदि का समर्थ करता है।
  • सत्ता — संवैधानिक प्राधिकरण द्वारा व्यक्ति के ऊपर प्रयोग की जाने वाली शक्ति को सत्ता कहते हैं। सत्ता निर्णय लेने, आदेश देने एवं उनका पालन करवाने की शक्ति, स्थिति या अधिकार है, जिसे अधीनस्थों द्वारा स्वीकार कर लिया गया है और संगठनात्मक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अधीनस्थों द्वारा जिसका पालन आवश्यक होता है।
  • राष्ट्रवाद — राष्ट्रवाद एक ऐसी धारणा है जो उन लोगों में उत्पन्न होती है जिनका देश, प्रजाति, साहित्य, इतिहास, भाषा, धर्म, राजनीतिक आकांक्षाएँ तथा आर्थिक हित एक समान होते हैं।
  • मार्क्सवाद — यह मजदूर वर्ग का राजनीतिक दर्शन है जो समानता, सामाजिक न्याय, समस्त प्रकार के शोषण की समाप्ति, प्रत्येक एवं सबके लिए रोजगार के साथ नियोजित अर्थव्यवस्था की वकालत करता है। इसका प्रतिपादन कार्लमार्क्स ने किया था।
  • दबाव समूह — समान हित वाले लोगों के समूह को दबाव समूह कहा जाता है। ये अपने हितों को प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं और आन्दोलन करते हैं।
  • राजनीतिक दल — राजनीतिक दल लोगों का एक ऐसा समूह होता है जो चुनाव लड़ने तथा सरकार में राजनीतिक हिस्सेदारी (सत्ता) प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्य करता है।
  • समाजवाद — समाजवाद अंग्रेजी भाषा के शब्द सोशिलिज्म (socialism) का हिंदी पर्याय है। सोशिलिज्म शब्द की उत्पत्ति ‘सोशियस’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ समाज होता है। इस दृष्टि से समाजवाद वह विचारधारा है जिसका सम्बन्ध समाज से है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, “समाजवाद वह नीति अथवा सिद्धांत है जिसका उद्देश्य केन्द्रीय लोकतांत्रिक सत्ता द्वारा सम्पत्ति का अधिक अच्छा वितरण और उत्पादन करना है।
  • एकात्म मानववाद — इस विचारधारा के प्रतिपादक पं. दीनदयाल उपाध्याय थे। इनके द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद का दर्शन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अध्यात्म, कर्म और राजनीति का अनुठा समन्वय है। पं. दीनदयाल के एकात्मवाद के अनुसार मानव के लिए स्वतंत्रता एवं समता दोनों आवश्यक हैं। सम्पूर्ण विश्व का केन्द्र मानव होना चाहिए। भौतिक उपकरण मानव के सुख के साधन हैं, साध्य नहीं।
  • माओवादी — चीनी क्रांति के नेता माओ की विचारधारा का अनुसरण करने वाले साम्यवादी । माओवादी श्रमिकों और किसानों के शासन को स्थापित करने के लिए सशस्त क्रान्ति के माध्यम के सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।
  • नक्सलवादी विचारधारा — 1967 ई. में पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलवादी क्षेत्र में प्रारम्भ विचारधारा। तोड़-फोड़ व हिंसा में विश्वास रखने वाली यह विचारधारा चीन के माओवाद से प्रभावित है।
  • मताधिकार — मत (वोट) देने का अधिकार। भारत में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति को वोट देने का अधिकार है। यह नागरिक की वह शकित होती है जिसके द्वारा वह लोकतंत्र की स्थापना करता है।
  • समाज — यह एक ऐसी सामाजिक संस्था है जिसमें सामाजिक रिश्तों का एक जाल बुना होता है। समाज एक संस्था होने के साथ-साथ सामाजिक सम्बन्धों की कड़ी भी है। यह मानवीय सम्बन्धों का समुच्चय होता है।
  • राजतंत्रात्मक व्यवस्था — ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें राजा वंशानुगत होता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में प्रभुसत्ता का वास एक व्यक्ति में होता है।
  • लोकतांत्रिक व्यवस्था — ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें प्रभुसत्ता का वास समस्त जनता में होता है। ऐसी शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक व्यवस्था कहलाती है।
  • करिश्माई सत्ता — जब शक्तिशाली नेताओं अथवा अधिकारियों के आदेशों का पालन अधीनस्थों द्वारा केवल उन नेताओं अथवा अधिकारियों में असीम श्रद्धा के कारण किया जाता है तो उसे करिश्माई सत्ता कहते हैं।
  • कर्त्तव्य — कर्त्तव्य से तात्पर्य उन कार्यों से है जिन्हें करने के लिए व्यक्ति नैतिक रूप से प्रतिबन्धित होता है। किसी विशेष कार्य के करने या न करने के सम्बन्ध में व्यक्ति के उत्तरदायित्व को ही कर्तव्य कहा जा सकता है। भारतीय संविधान में नागरिकों के लिए 11 मूल कर्तव्यों का प्रावधान किया गया है।
  • जनमत — किसी विषय पर आम जनता की राय/विचार।
  • अधिनायक तंत्र — ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें सत्ता एक व्यक्ति या एक दल में केन्द्रित होती है। जिसके पास निरंकुश प्रभुसत्ता होती है। समस्त राजनीतिक शक्तियों का स्रोत उसकी इच्छा होती है तथा उसका क्षेत्र असीमित होता है। वह किसी अन्य शक्ति के प्रति उत्तरदायी नहीं रहता है।
  • लोकतंत्र — लोकतंत्र शासन का वह रथ है जिसमें शासन की सत्ता जनता के हाथ में रहती है और जिसका प्रयोग जनता स्वयं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करती है।
  • क्रांति — अचानक होने वाली ऐसी कार्यवाही जो गैरकानूनी तरीके अथवा शक्ति के द्वारा सरकार या शासन में परिवर्तन करने के लिए विद्रोह के रूप में प्रकट होती है। उदाहरण- फ्रांस की क्रान्ति, 1857 की भारत की क्रान्ति आदि।
  • संस्कृति — किसी व्यक्ति, जाति, राष्ट्र आदि की वे समस्त बातें जो उनके मन, रुचि, आचार-विचार, कला-कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास की सूचक होती हैं, संस्कृति कहलाती हैं।
  • तख्तापलट — वर्तमान शासक को बलपूर्वक सत्ता से हटा देना। इस प्रकार का कार्य अधिकांशतः तानाशाही सरकारों के विरुद्ध आम जनता द्वारा शांतिपूर्ण या हिंसक प्रदर्शन द्वारा किया जाता है। पाकिस्तान में अधिकांशतया लोकतांत्रिक सरकारों का तख्ता पलट सेना करती है।
  • नारीवाद — एक विचारधारा को महिलाओं व पुरुषों के समान अधिकारों व अवसरों में विश्वास रखती है। |
  • चअर्स मेरियम — आधुनिक राजनीति विज्ञान के प्रमुख प्रणेता। इन्होंने शक्ति के विविध पक्षों की व्याख्या की। इन्हें व्यवहारवाद उपागम का बौद्धिक पिता कहा जाता है। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है-‘न्यू आस्पेक्टस ऑफ पोलिटिक्स’।। |
  • कैटलिन — प्रसिद्ध राजनीति विज्ञानी, इन्होंने राजनीति विज्ञान को शक्ति के विज्ञान के रूप में प्रतिपादित किया।
  • लासवेल — प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक। इनके अनुसार राजनीतिक ज्ञान का दायरा शक्ति से अनिवार्यतः जुड़ा हुआ है।
  • मार्गेन्थाऊ — अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के यथार्थवादी सिद्धान्तकार। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रों के मध्य राजनीति में अपने विचार व्यक्त किए। इनका मत था कि ‘राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष’ है।
  • मेकाइवर — प्रसिद्ध राजनीतिविज्ञानी। इन्होंने राज्य के लिए शक्ति के महत्व को प्रतिपादित किया। |
  • आर्गेन्सकी — प्रमुख राजनीतिक चिंतक । राजनीति विज्ञान में शक्ति के महत्व को प्रतिपादित किया। इनका मत था कि शक्ति दूसरे के आचरण को अपने लक्ष्यों के अनुसार प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
  • महात्मा गाँधी — बापू के नाम से विख्यात । देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनके विचारों को संकलित एवं क्रमबद्ध करके गाँधीवाद नामक राजनतिक विचारधारा को मान्यता प्राप्त हुई।
  • हेनरी फियोल — प्रमुख राजनीति शास्त्री। इन्होंने सत्ता को परिभाषित करते हुए बताया कि यह आदेश देने का अधिकार और आदेश का पालन करवाने की शक्ति है।
  • वायर्सटेड — प्रमुख राजनति विज्ञानी जिनका मत था कि सत्ता शक्ति के प्रयोग का संस्थात्मक अधिकार है।
  • पं. जवाहर लाल नेहरू — स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री। इन्होंने पंचशील सिद्धांत का प्रतिपादन किया तथा गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इन्होंने ‘डिस्कवरी ऑफ इण्डिया’ नामक पुस्तक लिखी।
  • इन्दिरा गाँधी — स्वतंत्र भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री रहीं। भारत रत्न में सम्मानित नेता। इन्हें भारत में करिश्माई सत्ता का उदाहरण माना जाता है।
  • मनु — प्राचीन भारत के महान विधिनिर्माता। इनके द्वारा बनायी गयी विधियों का संग्रह ‘मनुस्मृति’ नामक ग्रन्थ के रूप में है। मनु ने राज्य के देवीय उत्पत्ति के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
  • कौटिल्य — चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु एवं उसकी सहायता से मौर्य वंश की स्थापना करने वाले प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एवं अर्थशास्त्री। इनके द्वारा रचित ग्रन्थ अर्थशास्त्र आज भी महत्वपूर्ण है। इनको विष्णुगुप्त व चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है। इनके अनुसार राज्य धर्म के द्वारा प्रजा के व्यवहार को नियंत्रित करता है।
  • शुक्र — शुक्राचार्य के नाम से विख्यात । इनके द्वारा शुक्रनीतिसार’ रचा गया है। यह एक प्राचीन वैदिक ऋषि थे। महाकवि दण्डी के ‘दशकुमार’ चरितम् में नीतिकारों की नामावली में सर्वप्रथम शुक्राचार्य का स्मरण किया गया है।
  • टामस हॉब्स — इंग्लैण्ड निवासी प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक। इन्होंने अपनी पुस्तक लेवियाशन के माध्यम से राज्य और राजनीति के क्षेत्र में शक्ति के महत्व को प्रतिपादित किया। राज्य उत्पत्ति के सामाजिक समझौता सिद्धांत के जनक।
  • अटल बिहारी वाजपेयी — भारत के पूर्व प्रधानमंत्री। भारत रत्न से सम्मानित यह नेता करिश्माई सत्ता के उदाहरण माने जाते हैं।
  • नरेन्द्र मोदी — भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री। इन्हें करिश्माई सत्ता का उदाहरण माना जा सकता है।
  • मैक्स वेबर — प्रसिद्ध जर्मन समाज वैज्ञानिक। इन्होंने सत्ता के तीन रूप बताए। इन्होंने नौकरशाही मॉडल का प्रतिपादन किया।
  • मैकियावली — यूरोपीय चिंतन में प्रथम शक्तिवादी विचारक। इन्हें ‘पुनर्जागरण का शिशु’ कहा जाता है। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द प्रिंस’ एवं ‘डिस्कोर्सेज’ हैं। मैकियावली के चिंतन का केन्द्रीय विषय राज्य है जो राजा की शक्ति के रूप में अभिव्यक्त होता है। |
  • वर्ग — संघर्ष-दो वर्गों-आर्थिक रूप से ताकतवर बुर्जुआ वर्ग तथा आर्थिक रूप से दुर्बल सर्वहारा वर्ग के मध्य चलने वाले मनमुटाव, विरोध व संघर्षको वर्ग-संघर्ष कहते हैं।

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