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RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 23 राज्य स्तरीय एवं स्थानीय शासन, 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन के सन्दर्भ में वर्तमान स्वरूप

August 8, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 23 राज्य स्तरीय एवं स्थानीय शासन, 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन के सन्दर्भ में वर्तमान स्वरूप

राज्य प्रशासन:

  • भारत एक प्रभुत्ता-संपन्न समाजवादी, धर्म निरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक गणराज्य है जो एकात्मक सुविधाओं के साथ संरचना में संघीय देश है।
  • देश के संवैधानिक प्रमुख (राष्ट्रपति) के परामर्श हेतु एक मंत्री परिषद् होती है जिसका प्रमुख देश का प्रधानमंत्री होता है।
  • राज्यों में राज्यपाल के परामर्श हेतु एक मंत्रिपरिषद् होती है जिसका मुखिया राज्य का मुख्यमंत्री होता है।
  • भारत में जिस संसदीय शासन प्रणाली को केन्द्र में अपनाया गया है, उसी प्रकार राज्यों में भी संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है।
  • केन्द्र के समान राज्य में भी इस तरह की व्यवस्था प्रचलित है-एक औपचारिक और दूसरी वास्तविक कार्य पालिका। जिस प्रकार केन्द्र में वास्तविक कार्यपालिका प्रधानमंत्री होता है उसी प्रकार राज्य में वास्तविक कार्यपालिका मुख्यमंत्री होता है।
  • राज्य में संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता है जो केन्द्र में राष्ट्रपति की भाँति राज्य को नाममात्र का कार्यपालक होता है।
  • राज्यपाल के नाम पर ही राज्य के शासन का संपूर्ण कार्य संचालित किया जाता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में राज्यपाल के पद का वर्णन मिलता है।
  • अनुच्छेद 154 में वर्णित है कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी।
  • अनुच्छेद 155 के अंतर्गत भारत का राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल को नियुक्त करता है।
  • राज्यपाल विधानसभा में बहुमत दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है।
  • केन्द्र की भाँति राज्य के प्रशासनिक ढाँचे को विभागों में विभाजित किया गया है।
  • विभाग का प्रमख कैबिनेट मंत्री होता है जिसको परामर्श व तकनीकी सलाह प्रदान करने के लिए एक प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति की जाती है। वह सरकारर की नीतियों के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार होता है।
  • राज्य प्रशासन को विभिन्न जिलों में विभाजित किया गया है।
  • जिला प्रशासन का प्रमुख दायित्व कानून व्यवस्था को बनाए रखना, राजस्व एकत्र करना तथा विकास कार्यों को क्रियान्वित करना होता है।
  • भारत में लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने का भार जिलाध्यक्ष के ऊपर है।
  • स्थानीय स्वशासन व जिला प्रशासन के बीच की कड़ी जिलाध्यक्ष को ही कहा जाता है।
  • जिलाध्यक्ष अब भारत के लोक विकेन्द्रीकृत संरचना का मुख्य अभिकर्ता वे समन्वयकर्ता है।

राज्य प्रशासन की विशेषताएँ:

राज्य प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ हैं-

  • स्वतंत्र अस्तित्व
  • अलग संविधान का अभाव
  • आपातकाल में केन्द्र प्रशासन के अधीन
  • केन्द्र पर निर्भर
  • जनसहभागिता पर आधारित
  • सचिवालय-राज्य प्रशासन की धुरी
  • प्रमुख प्रशासकों का अखिल भारतीय सेवाओं में चयनित होकर आना
  • स्थानीय प्रशासन राज्य प्रशासन के अधीन
  • राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति का प्रतिनिधि।।

राज्य का वैधानिक प्रधान:

  • राज्यपाल हमारे संविधान में केन्द्र के समान राज्यों में भी संसदीय शासन प्रणाली अपनाने के फलस्वरूप राज्य का वैधानिक प्रधान राज्यपाल को बनाया गया है।
  • राज्यपाल नाममात्र की शक्तियों का प्रयोग करता है। वास्तविक शक्तियों का प्रयोग मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल करता है।

राज्यपाल की स्थिति:

  • राज्यपाल को राज्य के शासन से संबंधित सभी मामलों के विषय में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
  • राज्यपाल राज्य के एडवोकेट जनरल की नियुक्ति करता है। वह राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में राज्यपाल से परामर्श लिया जाता है तथा उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्यपाल जिला जजों की नियुक्ति करता है।
  • अनुच्छेद 161 के अनुसार राज्य के राज्यपाल को राज्य की कार्यपालिका क्षेत्राधिकार के अंतर्गत कानूनों के विरुद्ध अपराध करने वाले व्यक्तियों के दंड को कम करने, स्थगित करने, बदलने तथा क्षमा करने का अधिकार है।
  • राज्यपाल राज्य विधानसभा में एक सदस्य आंग्ल भारतीय मनोनीत कर सकता है, यदि वह समझे कि विधानसभा में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • राज्यपाल विधानपरिषद् में 1/6 सदस्य ऐसे मनोनीत कर सकता है जिन्होंने शिक्षा, साहित्य सेवा, विज्ञान व कला आदि में विशेष योगदान दिया हो।
  • राज्यपाल को राज्य विधानमंडल के सत्र बुलाने तथा विधानसभा को भंग करने का अधिकार प्राप्त है।
  • विधानसभा द्वारा पारित किसी विधेयक पर राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है।
  • राज्यपाल साधारण विधेयक को अपने सुझावों के साथ विधानमंडल को लौटा सकता है।
  • प्रत्येक वित्तीय वर्ष का विवरण तैयार करना व उसे विधानसभा में प्रस्तुत करवाना राज्यपाल का कार्य है।
  • राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई भी धन विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
  • राज्यपाल अनुपूरक अनुदान की माँग भी प्रस्तुत कर सकता है।
  • राज्यपाल की स्वीकृति के बिना राज्य के राजस्व की कोई राशि व्यय नहीं की जा सकती। राज्यपाल को राज्य की संचित निधि में से खर्च करने का अधिकार है, परंतु उसके द्वारा किए गए खर्च के लिए विधानसभा की स्वीकृति आवश्यक है।

मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद्:

  • मुख्यमंत्री राज्य का वास्तविक कार्यपालक होता है।
  • मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है लेकिन मंत्री परिषद् का निर्माण, विघटन तथा विभाग आवंटन आदि मुख्यमंत्री में निहित है।
  • प्रत्येक मंत्री मुख्यमंत्री की इच्छापर्यन्त पद पर रहता है। मुख्यमंत्री उससे कभी भी इस्तीफा माँग सकता है या उसे राज्यपाल द्वारा बर्खास्त करवा सकता है। मंत्रिपरिषद की बैठक की तिथि वे स्थान मुख्यमंत्री तय करता है।
  • मुख्यमंत्री ही मंत्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
  • मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल इस आधार पर करता है कि उसके पास विधानमंडल में बहुमत की शक्ति है।
  • त्रिशंकु विधानसभा या अस्पष्ट बहुमत की स्थिति में राज्यपाल मुख्यमंत्री के लिए चयन में स्वविवेक का प्रयोग कर सकता है।
  • मुख्यमंत्री विधानसभा में अपना बहुमत रहते हुए राज्यपाल को कभी भी विधानसभा भंग करने की सलाह दे सकता है।
  • भारत में केन्द्र की तरह राज्यों में भी संसदीय शासन प्रणाली है जिसके अनुसार मंत्रिपरिषद ही राज्य की वास्तविक शासन प्रमुख होती है। मंत्रिपरिषद का मुखिया मुख्यमंत्री होता है।
  • मुख्यमंत्री के परामर्श से राज्यपाल मंत्रिपरिषद का गठन करता है तथा उसके परामर्श से ही उसे पदमुक्त करता है।
  • 91 वें संशोधन द्वारा राज्य मंत्रिपरिषद की संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों की अधिकतम 15 प्रतिशत निश्चित कर दी गई है।
  • मुख्यमंत्री ही अपनी मंत्रिपरिषद का आकार तय करता है, जिसमें तीन स्तरीय मंत्री होते हैं-कैबिनेट, राज्य तथा उपमंत्री। कभी-कभी संसदीय सचिव भी नियुक्त किए जाते हैं।

स्थानीय स्वशासन:

  • देश में स्थानीय स्वशासन के दो स्तर विद्यमान हैं-पहला ग्रामीण स्थानीय शासन जिसे ‘पंचायती राज’ के नाम से जानते हैं व दूसरा शहरी स्थानीय शासन है।
  • इतिहासकार ‘अल्टेकर’ ने भारतीय गाँवों को छोटे-छोटे गणराज्यों की संज्ञा दी है।
  • 1957 ई. में बलवंत राय मेहता समिति ने सम्पूर्ण देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली को लागू करने की सिफारिश की।
  • त्रिस्तरीय प्रणाली 73 वां संविधान संशोधन अधिनियम सभी राज्यों के लिए त्रिस्तरीय संस्थागत ढाँचे का प्रावधान करता है।
  • मेहता समिति की सिफारिश लागू करने वाला राजस्थान पहला राज्य बना। राजस्थान में मेहता समिति द्वारा सुझाए गए त्रिस्तरीय स्वरूप को अपनाया गया।

पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु गठित समितियाँ:
पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु गठित समितियाँ हैं-

  • बलवंत राय मेहता समिति (1957)
  • अशोक मेहता समिति
  • जी.वी. के राव समिति (1985)
  • एल.एम. सिंघवी समिति (1986)
  • पी.के. श्रृंगन समिति (1988)

73 वाँ संविधान संशोधन अधिनियत की प्रमुख विशेषताएँ:

  • ग्राम स्तर पर वार्ड पंच एवं सरपंच, खंड स्तर पर मंडल सदस्य व जिला स्तर पर जिला परिषद् के सदस्यों का जनता द्वारा सीधे निर्वाचन का प्रावधान किया गया है।
  • 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम सभी संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों के आरक्षण की व्यवस्था करता है।
  • यह अधिनियम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति हेतु जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • यह अधिनियम राज्य विधानमंडलों को इसके लिए भी अधिकृत करता है कि वे इन संस्थाओं में पिछड़े वर्गों के लिए भी आरक्षण व्यवस्था कर सकें।
  • पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव प्रक्रिया के नियमित व निष्पक्ष संचालन हेतु एक निर्वाचन आयोग का गठन किया जाएगा।
  • पंचायत राज संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए प्रत्येक 5 वर्ष बाद वित्त आयोग का गठन किया जाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायतों को संगठित कर, उन्हें ऐसी शक्तियाँ, राज्य द्वारा दिए जाने का प्रावध शान करता है, जो उन्हें शक्तिशाली बनाती हैं।

74 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम:

  • • 74 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम के तहत शहरी निकायों में तीन तरह की संस्थाएँ कार्य करेंगी।
    • नगर पंचायत,
    • नगर परिषद,
    • नगर निगम।
  • शहरी निकायों का कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया हैं किंतु अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा इन्हें समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है।
  • शहरी निकायों के कार्यों एवं शक्तियों में वृद्धि के लिए संविधान की 12 वीं अनुसूची में 18 विषय शामिल किए गए हैं।
  • राजस्थान में इन नगरीय निकायों के अतिरिक्त छावनी बोर्ड, टाउन एरिया कमेटी, अधिसूचित क्षेत्र समितियाँ आदि भी कार्य कर रही हैं।

अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियां एवं संबंधित घटनाएँ:

1957 ई. — बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया, जिन्होंने सम्पूर्ण देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू करने की सिफारिश की।
1959 ई. — मेहता समिति की सिफारिश लागू करने वाला राजस्थान पहला राज्य बना तथा 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर जिले में पं. जवाहर लाल नेहरू (प्रधानमंत्री) द्वारा इसका उद्घाटन किया गया।
1960 ई. — 1960 के दशक में पंचायती राज को देश के विभिन्न राज्यों ने अपनाया किंतु राज्यों द्वारा गठित इन संस्थाओं में स्तरों की संख्या, उनका कार्यकाल तथा निर्वाचन के तरीकों आदि में समानता नहीं थी।
1977 ई. — पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु अशोक मेहता समिति का गठन किया गया।
1985 ई. — पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु जी.वी.के. राव समिति का गठन किया गया।
1986 ई. — इस वर्ष पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु एल.एम. सिंघवी समिति का गठन किया गया था।
1988 ई. — इस वर्ष पी. के.थंगन समिति का गठन किया गया।
1992 ई. — 73 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 संसद द्वारा पारित किया गया। नगरों में स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने व उसे सक्रिय बनाने के लिए 1992 ई. में ही संविधान संशोधन संसद द्वारा पारित कर एक कानून बनाया गया था।
1993 ई. — 73 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 24 अप्रैल 1993 को प्रभाव में आया। इस अधिनियम के लिए जो संयुक्त प्रवर समिति बनी उसके अध्यक्ष राजस्थान से सांसद श्री नाथूराम मिर्धा थे। 24 अप्रैल को इसीलिए पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। 74 वाज्ञ संविधान संशोधन अधिनियम 1 जून 1993 से लागू हुआ। इस कानून के तहत शहरी निकायों में तीन तरह की संस्थाएं कार्य करेंगी।
2004 ई. — सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 5 नवम्बर 2004 के निर्णय में महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि किसी मंत्री के खिलाफ अगर प्राथमिक तौर पर कोई मामला बनता है। तो राज्यपाल उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे सकता है। भले ही मंत्रि परिषद ने इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया हो।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 23 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • प्रभुत्व सम्पन्न — इसका अर्थ है कि भारत पूर्ण रूप से स्वतंत्र राज्य है। वह आतंरिक तथा विदेशी मामलों में किसी अन्य विदेशी शक्ति के अधीन नही है।
  • समाजवादी-इसका गठन आय, प्रतिष्ठा एवं जीवन-यापन के स्तर में किसी भी विषमता को दूर करने से है।
  • धर्म निरपेक्ष — इसका अर्थ है कि भारत, भारत के क्षेत्र में न धर्म विरोधी है और न ही धर्म का प्रचारक बल्कि वह तटस्थ हैं जो सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है।
  • लोकतांत्रिक — इसका आशय है कि भारत में राजसत्ता का प्रयोग जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि करते हैं तथा वे जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। संविधान सभी को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय का आश्वासन देता है।
  • गणराज्य — इसका अर्थ है कि भारत में राज्याध्यक्ष या सर्वोच्च व्यक्ति वंशानुगत न होकर निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। भारत के राष्ट्रापति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप में जनता द्वारा होता है।
  • राज्यपाल — राज्य का संवैधानिक प्रमुख/राज्य में राज्यपाल के नाम से ही शासन का संपूर्ण कार्य संचालित होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में राज्यपाल का पद वर्णित है ।
  • मुख्यमंत्री — राज्य की वास्तविक कार्यपालिका का मुखिया। राज्य विधानसभा में बहुमत दल/दलों के नेता को राज्यपाल, मुख्यमंत्री नियुक्त करता है।
  • विधानसभा — राज्य विधानसभा का निम्न सदन/ विधानसभा के सदस्यों को एम.एल.ए. के नाम से जाना जाता है।
  • जिला — राज्य प्रशासन की एक इकाई। राज्य के प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्य प्रशासन को विभिन्न जिलों में विभाजित किया जाता है। राजस्थान में 33 जिलें है। | 10. 73 वाँ संविधान संशोधन — ग्रामीण स्थानीय स्वशासन से सम्बद्ध। इसे 1992 में संसद द्वारा पारित किया गया जो 24 अप्रैल 1993 को प्रभाव में आया। यह संविधान संशोधन सभी राज्यों के लिए त्रिस्तरीय संस्थागत ढाँचों का प्रावधान करता है। यथा
    • ग्राम पंचायत
    • पंचायत समिति
    • जिला परिषद
  • 74वाँ संविधान संशोधन — शहरी स्थानीय स्वशासन से सम्बद्ध। 1992 ई. में संविधान का 24 वाँ संविधान संशोध इन संसद द्वारा पारित कर एक कानून बनाया गया जो 1 जून 1993 में लागू हुआ। इस कानून के तहत तीन प्रकार की संस्थाएँ कार्य कर रही हैं यथा
    • नगर पंचायत
    • नगर परिषद
    • नगर निगम ।।
  • लोककल्याणकारी राज्य — ऐसा राज्य जो अपने नागरिकों के अधिकतम कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहता है। लोककल्याणकारी राज्य कहलाता है । पं. जवाहर लाल नेहरू के अनुसार, “सबको समान अवसर प्रदान करना, अमीरों और गरीबो के बीच अंतर मिटाना और सर्वसाधारण के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना, लोककल्याणकारी राज्य के आधारभूत तत्व। हैं।
  • मंत्रिमण्डल — केन्द्र/राज्य मंत्रिपरिषद के कैबिनेट स्तर के मंत्रियों के समूह को मंत्रिमण्डल कहते हैं। वस्तुतः संविधान द्वारा जो शक्तियाँ राष्ट्रपति को सौंपी गयी है उनका वास्तविक प्रयोग मंत्रिमण्डल द्वारा ही किया जाता है।
  • दल-बदल — चुनावों में किसी दल विशेष के टिकट पर चुने जाने के पश्चात् उस राजनीतिक दल को छोड़कर अन्य किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाना, दल बदल कहलाता है।
  • क्षेत्रीय दल — वह दल जिसका प्रभाव किसी विशेष क्षेत्र अथवा राज्य में होता है तथा वे उस क्षेत्र के निवासियों के लिए कार्य करते हैं, क्षेत्रीय दल कहलाते हैं।
  •  संसदीय शासन प्रणाली — वह शासन प्रणाली जिसमें वास्तविक कार्यपालिका अपने समस्त कार्यों के लिए कानूनी रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होता है, संसदीय शासन प्रणाली कहलाती है।
  • प्रशासनिक सुधार आयोग — देश की प्रशासनिक व्यवस्था में परिक्षण हेतु सन् 1966 ई. में संघीय सरकार ने एक पूर्ण शक्ति प्राप्त आयोग की स्थापना की जिसे प्रशासनिक सुधार आयोग का नाम दिया गया। इस आयोग के प्रथम अध्यक्ष मोरार जी देसाई थे। प्रशासनिक सुधार के अनुसार एक व्यक्ति को एक ही बार राज्यपाल नियुक्त किया जाना चाहिए।
  • एडवोकेट जनरल — महाधिवक्ता। यह राज्य का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है। इसकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। महाधिवक्ता को राज्य के विधानमंडलों के सदनों की कार्यवाहियों के मामले में बोलने का अधिकार है किन्तु मतदान का अधिकार नहीं है।
  • राज्य लोकसेवा आयोग — संविधान के अनुचछेद 316 के तहत गठित आयोग। इसके अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करता है। यह राज्यों एवं अधीनस्थ सेवा के अधिकारियों की भर्ती का कार्य करता है।
  • राज्य विधानमंडल/राज्य विधायिका — राज्य में कानून निर्माण करने वाली संस्था को राज्य विधान मंडल/राज्य विधायिका कहते हैं। इसके दो सदन हैं-
    • विधानसभा
    • विधानमंडल। भारत के राज्यों में द्विसदनीय व शेष राज्यों में एक सदनीय विधानमंडल है।
  • विधेयक — प्रस्तावित कानून के प्रारूप को विधेयक कहते हैं।
  • मत विधेयक — किसी कर को लगाने, घटाने, बढ़ाने एवं सरकारी कोष से किसी राशि को निकालने व जमा कराने आदि से संबंधित विधेयकों को धन विधेयक कहते हैं।
  • राज्य संचित निधि — सरकार को मिलने वाले सभी राजस्वों एवं सरकार द्वारा दिए ऋणों की वसूली में जो धन प्राप्त होता है, उसे राज्य संचित निधि में एकत्रित किया जाता है। सरकार का समस्त व्यये इससे ही किया जाता है। जब तक विधानसभा की स्वीकृति नही मिल जाती तब तक इस निधि में से कोई भी राशि व्यय नही जा सकती।
  • मंत्रिपरिषद — संविधान के अनुच्छेद 74(1) के अनुसार राष्ट्रपति के अपने कार्यों के संचालन करने में सहायता एवं परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसको अध्यक्ष प्रधानमंत्री होगा। मंत्रिपरिषद के सदस्य या तो निर्वाचित सांसद होते हैं अथवा उन्हें 6 माह के अंदर किसी सदन का सदस्य निर्वाचित होना पड़ता है। आम बोलचाल की भाषा में मंत्रिपरिषद व सरकार दोनों को एक दूसरे का पर्यायवाची माना जाता है।
  • अविश्वास प्रस्ताव — यह प्रस्ताव सरकार के विरुद्ध विपक्षी दल/दलों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यदि यह प्रस्ताव लोकसभा/राज्य के मामले में विधानसभा में पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।
  • मंत्री — सरकार में विभिन्न विभागों के मुखिया, मंत्री कहलाते हैं।
  • दलीय सचेतक — मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त। मुख्यमंत्री अपने दल में एकता और अनुशासन बनाए रखने के लिए इनके माध्यम से नियंत्रण रखता है।
  • स्थानीय स्वशासन — स्थानीय स्वशासन से आशय स्थानीय स्तर के उस शासन से है, जिसमें शासन का संचालन उन संस्थाओं द्वारा किया जाता है जो जनता द्वारा चुनी जाती हैं तथा जिन्हें केन्द्रीय राज्य शासन के नियंत्रण में रहते हुए नागरिकों की स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकार एवं दायित्व प्राप्त होते हैं।
  • पंचायती राज — ग्रामीण स्थानीय स्वशासन से सम्बन्धित व्यवस्था को पंचायती राज के नाम से जाना जाता है।
  • जिला परिषद — ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की सर्वोच्च इकाई, इसका अध्यक्ष जिला प्रमुख कहलाता है।
  • ग्राम पंचायत — ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की निचली इकाई इसका अध्यक्ष सरपंच कहलाता है।
  • राज्य वित्त आयोग — पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा हेतु प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात् गठित आयोग।।
  • पंचायत समिति — ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की मध्यवर्ती इकाई। इसका अध्यक्ष प्रधान कहलाता है।
  • सरपंच — ग्राम पंचायत के मुखिया को सरपंच कहा जाता है। इसका चुनाव पचांयत क्षेत्र की जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप में किया जाता है।
  • प्रधान — पंचायत समिति के अध्यक्ष को प्रधान कहा जाता है।
  • जिला प्रमुख — जिला परिषदों के अध्यक्षों को जिला प्रमुख कहते हैं।
  • राज्य निर्वाचन आयोग — राज्य में स्थानीय स्वशासन संस्थाओं का चुनाव कराने वाली संस्था।
  • नगर पंचायत — शहरी स्थानीय स्वशासन की निचली इकाई। इसे राजस्थान में नगरपालिका कहा जाता है। 10 हजार से 1 लाख तक ही जनसंख्या वाले नगरों में इसकी स्थापना की जाती है।
  • नगर परिषद — एक लाख से तीन लाख तक की जनसंख्या वाले शहरों में नगर परिषद की स्थापना की जाती है। इसके अध्यक्ष को सभापति कहते हैं।
  • नगर निगम — तीन लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में स्थापित शहरी स्थानीय स्वशासन की संस्था। इसका अध्यक्ष महापौर कहलाता है।
  • चेयरमैन — नगर पालिका के अध्यक्ष को चेयरमैन कहा जाता है।
  • सभापति — नगर परिषद के अध्यक्ष को सभापति कहते है।
  • महापौर — नगर निगम के अध्यक्ष को महापौर (मेयर) कहा जाता है।
  • छावनी बोर्ड — जिस क्षेत्र में सैनिक इकाई रूप से रहते है वहाँ के प्रशासन के लिए छावनी बोर्ड का का गठन किया जाता है। ये केन्द्रीय सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करते हैं। इसके कार्य नगरपालिका के समान होते हैं।
  • सीतारमैय्या जी — स्वतंत्रता के पश्चात् कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष। इन्होंने राज्यपाल के पद पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि राज्यपाल का कार्य अतिथियों की इज्जत करने, उनकों पान, भोजन, दावत देने के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
  • बलवंत राय मेहता — लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार द्वारा गठित समिति के अध्यक्ष। इन्होंने अपनी रिपोर्ट में पूरे देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली को लागू करने की सिफारिश की।
  • नाथूराम मिर्धा — 73 वां संविधान संशोधन अधिनियम के लिए संयुक्त प्रवर समिति के अध्यक्ष।
  • टाउन एरिया कमेटी — छोटे, विकासशील कस्बों के प्रशासन के लिए गठित। यह एक उपनगरपालिका की । आधिकारिक इकाई है और इसे सीमित नागरिक सेवा के लिए जल निकासी, सड़कों, मार्गों के व्यवस्था की जिम्मेदारी दी। जाती है। इसे राज्य विधानमंडल के एक अलग अधिनियम द्वारा गठित किया जाता है।
  • अधिसूचित क्षेत्र समिति- — इस प्रकार की समितियों का गठन दो प्रकार के क्षेत्र के प्रशासन के लिए किया जाता है-
    • औद्योगीकरण के कारण विकासशील कस्बा
    • वह कस्बा जिसने अभी तक नगरपालिका के गठन की आवश्यक शर्ते पूरी नहीं की हो लेकिन राज्य सरकार द्वारा वह महत्वपूर्ण माना जाए।
  • इसे सरकारी राजपत्र में समाहित कर अधिसूचित किया जाता है इसलिए इसकी शक्तियाँ नगरपालिका की शक्तियों के समान है।

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