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RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 4 स्वतंत्रता एवं समानता

August 6, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 4 स्वतंत्रता एवं समानता

स्वतंत्रता:

  • स्वतंत्रता मानव जीवन का एक विशेष लक्षण एवं व्यक्ति की मूल प्रवृत्ति है।
  • स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए मनुष्य सदैवे संघर्षशील रहा है।
  • स्वतंत्रता का अंग्रेजी रूपान्तरण शब्द ‘लिबर्टी’ (Liberty) लैटिन भाषा के शब्द लिबर (Liber) से बना है। जिसका अर्थ है-बन्धनों का अभाव या मुक्ति।
  • संसद का इतिहास स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष का इतिहास रहा है।
  • स्वतन्त्रता आन्दोलन में बाल गंगाधर तिलक का नारा था-“स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।
  • स्वतन्त्रता अन्य साध्यों की प्राप्ति हेतु साधन मात्र नहीं अपितु यह स्वयं सर्वोच्च साध्य है।

स्वतंत्रता का अर्थ एवं परिभाषा:

  • स्वतंत्रता में यह तथ्य सन्निहित है कि मनुष्य के कार्यों पर किसी प्रकार की बाधा न हो और वह अपनी इच्छानुसार प्रत्येक कार्य कर सके।
  • स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में दो तरह की विचारधाराएँ विद्यमान हैं-एक, बन्धनों का अभाव और दूसरा युक्तियुक्त बन्धनों का होना।
  • नकारात्मक अर्थ में स्वतंत्रता वह स्थिति है जिसमें कोई बंधन नहीं होता है अर्थात व्यक्ति को मनमानी करने की छूट हो।
  • व्यक्तिवादी विचारक स्वतंत्रता के नकारात्मक अर्थ का समर्थन करते हैं।
  • स्वतंत्रता का सकारात्मक अर्थ यह है कि व्यक्ति को अपनी उन्नति के लिए कुछ अधिकार एवं अवसर प्राप्त हैं। जिससे वह अपने व्यक्तित्व का अधिक से अधिक विकास कर सके।
  • महात्मा गाँधी स्वतन्त्रता को नियन्त्रण के अभाव के रूप में नहीं अपितु व्यक्तित्व के विकास की अवस्था की। प्राप्ति के रूप में देखते हैं।

स्वतंत्रता के विविध रूप/प्रकार:

  • स्वतन्त्रता के विविध रूप हैं; जैसे-प्राकृतिक स्वतन्त्रता, निजी/व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, नागरिक स्वतन्त्रता, राजनीतिक स्वतन्त्रता, आर्थिक स्वतन्त्रता, धार्मिक स्वतन्त्रता, नैतिक स्वतन्त्रता, सामाजिक स्वतन्त्रता, राष्ट्रीय स्वतन्त्रता और संवैधानिक स्वतन्त्रता। .

स्वतंत्रता के लिए आवश्यक शर्ते:

  • स्वतंत्रता के लिए आवश्यक प्रमुख शर्ते हैं-व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति निरन्तर जागरूकता, समाज में लोकतांत्रिक भावनाओं का पनपना, आर्थिक दृष्टि से समतामूलक समाज, पक्षपातरहित कानून का शासन, निष्पक्ष जनमत, समाज में शांति व सुरक्षा का वातावरण एवं स्वतंत्र न्यायपालिका आदि।

स्वतंत्रता के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ:

  • स्वतंत्रता के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ हैं-अपनी स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता का अभाव, अशिक्षा, निर्धनता व संसाधनों का अभाव, अराजकता का वातावरण, राष्ट्रविरोधी तत्व एवं आतंकवाद आदि।

समानता:

  • समानता की अवधारणा की उत्पत्ति विशेषाधिकार प्रथा के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुई।

समानता का अर्थ:

  • समानता उस परिस्थिति का नाम है जिसके कारण सभी व्यक्तियों को अपने अस्तित्व के विकास हेतु समान अवसर प्राप्त हो सकें तथा साथ ही सामाजिक विषमता के कारण उत्पन्न होने वाली असमानताओं को समाप्त किया जा सके।
  • समाज में समस्त व्यक्तियों को एक समान किए जाने की अवधारणा सम्भव नहीं है।

समानता के आधारभूत तत्व:
समानता के आधारभूत प्रमुख तत्व हैं-

  • समान लोगों के साथ समान व्यवहार करना ।
  • सभी लोगों को विकास के समान अवसर प्राप्त हों
  • समाज व राज्य समस्त लोगों के साथ समान आचरण एवं व्यवहार करें।
  • प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान महत्व प्राप्त हो।
  • मानवीय गरिमा तथा अधिकारों को समान संरक्षण प्राप्त हो।
  • समाज में किसी भी व्यक्ति के साथ किसी आधार पर भेदभाव न हो।

समानता के प्रकार:
समानता के प्रमुख प्रकार हैं-

  • नागरिक समानता,
  • राजनीतिक समानता,
  • प्राकृतिक समानता,
  • सामाजिक समानता,
  • आर्थिक समानता,
  • कानूनी समानता,
  • सांस्कृतिक समानता,
  • अवसर की समानता,
  • शिक्षा की समानता।

स्वतंत्रता और समानता में सम्बन्ध:

  • स्वतंत्रता और समानता के सम्बन्ध कर में दो प्रकार की विचारधारा प्रचलित है-प्रथम विचारधारा इन्हें परस्पर विरोधी मानती है वहीं दूसरी विचारधारा इन्हें परस्पर पूरक मानती है।
  • कुछ विचारक स्वतंत्रता व समानता को परस्पर विरोधी मानते हैं। उनका मानना है कि प्रकृति में ही असमानता विद्यमान है।
  • योग्य और अयोग्य में समानता स्थापित करने का कोई औचित्य नहीं है तथा न ही वास्तविक रूप से समानता स्थापित की जा सकती है।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 4 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • स्वतन्त्रता — स्वतन्त्रता का शाब्दिक अर्थ है-बन्धनों को अभाव। लास्की के अनुसार-स्वतन्त्रता से मेरा अभिप्राय उस वातावरण को कायम रखना है जिसमें व्यक्ति को अपने पूर्णत्व का अवसर प्राप्त हो ।
  • नकारात्मक स्वतंत्रता — नकारात्मक स्वः’ का अर्थ है कि व्यक्ति के कार्यों पर किसी प्रकार की रुकावटन हो।
  • सकारात्मक स्वतंत्रता — सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ है-व्यक्ति अपनी उन्नति के लिए कुछ परिस्थितियों का निर्माण करे जो उसके विकास के साथ-साथ साथी नागरिकों के लिए भी ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित कर सकें।
  • प्राकृतिक स्वतंत्रता — प्राकृतिक स्वतंत्रता का अर्थ हैं कि व्यक्ति पर किसी प्रकार का कोई बंधन न हों और मनमानी करने की स्वछन्दता हो ठीक उसी प्रकार जैसे कि जंगल में पशुओं की होती है।
  • आर्थिक स्वतंत्रता — आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि व्यक्ति का आर्थिक स्तर ऐसा होना चाहिए कि वह बिना वित्तीय चुनौतियों का सामना किए स्वयं व अपने परिवार का जीवन निर्वाह कर सके।
  • नागरिक स्वतंत्रता — नागरिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि व्यक्ति कानूनों की सीमा में रहकर अपने अधिकरों का उपयोग करे। |
  • राजनीतिक स्वतंत्रता — राजनीतिक स्वतंत्रता का आशय है कि लोगों की सरकार के संचालन में भागीदारी होनी चाहिए। |
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता — इसका आशय यह कि व्यक्ति को अपने निजी जीवन के कार्यों में स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए।
  • धार्मिक स्वतंत्रता — इसका आशय यह है कि व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, आस्था व आचरण की छूट होनी चाहिए।
  • सामाजिक स्वतंत्रता — इसका आशय कानून के समक्ष समता व समान कानूनी संरक्षण प्राप्त होने से है।
  • कानून — राज्य अपने सदस्यों के लिए जो निर्देशात्मक नियम बनाता है, उन्हें कानून या विधि कहते हैं। कानून का पालन राज्य के सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य होता है।
  • समानता – समानता से अभिप्राय है-लिंग, जाति, धर्म, वर्ग, धनवान या निर्धन को बिना किसी भेदभाव के सबको शासन की ओर से समान अवसर मिलें।
  • लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र – राष्ट्रपति लिंकन के अनुसार-लोकतन्त्र जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन होता है। स्पष्टतः लोकतन्त्र वह शासन व्यवस्था है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी होती है।
  • अधिकार – अधिकार व्यक्ति को वह दावा है जिसकी स्वीकृति समाज और राज्य द्वारा मिली हुई होती है।
  • संस्कृति – संस्कृति एक समग्र जीवन पद्धति है। जीवन को कल्याणमय बनाने के लिए जिन परम्पराओं, प्रथाओं, कला, साहित्य, धर्म और व्यवहारों का सृजन किया जाता है, वे सब संस्कृति के अन्तर्गत आते हैं।
  • वर्ण – वर्ण शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में आर्यों ने आर्य तथा दासों में भेद करने के लिए किया था। बाद में इनका प्रयोग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इन चार सामाजिक वर्गों के लिए किया जाने लगा।
  • धर्म – भारतीय विचारधारा में धर्म से अभिप्राय कर्त्तव्य से है। भारत में इसे कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण तथा सद्गुण के अर्थ के में मान्यता प्राप्त है। |
  • वर्ग – वर्ग समाज में ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनकी लगभग समान हैसियत होती है।
  • न्याय – न्याय एक व्यवस्था है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे से जुड़ा हुआ है। कानूनी रूप में न्याय से तात्पर्य उन सिद्धान्तों तथा प्रक्रियाओं से है जिसका अनुपालन करना व्यक्ति के लिए अनिवार्य है। | (20) संविधानवाद – संविधानवाद संविधान पर आधारित विचारधारा है जिसका मूल मन्तव्य यह है कि शासन संविधान में उल्लिखित नियमों एवं विधियों के अनुसार चले। उस पर नियन्त्रण रहे जिससे समाज और राज्य के आदर्श और मूल्य सुरक्षित रहें। |
  • भौलिक अधिकार – वे अधिकार जो व्यक्तियों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं, जिनका उल्लेख संविधान में होता है और जिन्हें राज्य का संरक्षण प्राप्त होता है, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।
  • वैश्वीकरण – प्रत्येक देश का अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूँजी तथा बौद्धिक सम्पदा का अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान वैश्वीकरण कहलाता है।
  • जनमत/लोकमत – जनमत का अर्थ है-जनता का मत। वस्तुतः जनमत स्वयं सचेत समुदाय का किसी सामान्य अभिप्राय के प्रश्न के ऊपर विवेकपूर्ण सामाजिक विवेचन के बाद लिया गया सामाजिक निर्णय है।
  • विधि का शासन – कानून का शासन। यह कल्याणकारी राज्य की विशेषता होती है।
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 में उल्लिखित मूल अधिकार । इस अधिकार के अन्तर्गत व्यवस्था है कि यदि नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है तो वह न्यायालय से समुचित उपचार पाने के लिए प्रार्थना-पत्र दे सकता है।
  • कानून के समक्ष समानता – इसका आशय बिना किसी भेदभाव के नागरिकों को कानून के समक्ष समान समझना है जिससे विधि के शासन
  • की स्थापना हो सके।
  • कानून का समान संरक्षण – इसका आशय एक जैसे लोगों से कानून का एक जैसा व्यवहार से है। अर्थात् सभी व्यक्तियों के लिए समान कानून, समान न्यायालय व एक जैसे गुनाह के लिए समान दण्ड की व्यवस्था ।
  • संप्रभु/संप्रभुता – यह राज्य की सर्वोच्च शक्ति होती है। जैलिनेक के अनुसार, “सम्प्रभुता राज्य का वह गुण है। जिसके कारण वह अपनी इच्छा के अतिरिक्त किसी दूसरे की इच्छा या बाहरी शक्ति के आदेश से नहीं बँधता है।”
  • उपनिवेशवाद – वह धारणा जिसके अन्तर्गत शक्तिशाली राष्ट्रों द्वारा कमजोर व पिछड़े राष्ट्रों पर आधिपत्य को सभ्यता के विकास के आधार पर औचित्यपूर्ण माना जाता था एवं अधीनस्थ राष्ट्रों का आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक शोषण किया जाता था।
  • हॉब्स (1588 ई.-1679. ई.) – ये निरंकुश राजतन्त्र के समर्थक थे। इन्होंने राज्य की उत्पति के सम्बन्ध में सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।
  • रूसो (1712 ई.-1779 ई.) – राज्य की उत्पति के सम्बन्ध में इन्होंने सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का समर्थन किया था। इन्होंने व्यक्तिवाद, आदर्शवाद एवं अद्वैतवादी लोकप्रिय सम्प्रभुता के विविध सिद्धान्तों की नवीन व्याख्या की थी।
  • जे. एस. मिल (1806 ई.-1873 ई.) – जे. एस. मिल उपयोगितावाद के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने स्वतन्त्रता, प्रतिनिधि शासन आदि के सम्बन्ध में अपने महत्वपूर्ण विचार दिये हैं।
  • स्पेन्सर (1820 ई.-1903 ई.) – स्पेन्सर प्रतिभाशाली समाजशास्त्री थे। इन्होंने प्राणिशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर समाज का विश्लेषण किया था। इन्होंने सावयवी एकता तथा सामाजिक उविकास के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।
  • लास्की (1893ई.-1950 ई.) – लास्की उदारवादी विचारधारा के पोषक थे। इन्होंने सम्प्रभुता, अधिकार, स्वतन्त्रता, समानता तथा सम्पत्ति के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किये थे।
  • पेन – एक राजनीतिक विचारक जिनके अनुसार स्वतंत्रता उन बातों को करने का अधिकार है, जो दूसरों के अधिकारों के विरुद्ध नहीं होती।
  • गेटिल – प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक। इन्होंने स्वतंत्रता को उन अधिकारों के अन्तर्गत माना जिन्हें राज्य अपने नागरिकों के लिए उत्पन्न करता है व उनकी रक्षा करता है।
  • रिचि – प्रसिद्ध इतिहासकार। इन्होंने स्वतंत्रता के अधिकार को बहुत महत्वपूर्ण माना। |
  • बाल गंगाधर तिलक – प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी। ये आजीवन अंग्रेजों से देश की स्वतंत्रता हेतु संघर्ष करते रहे। इनका नारा था कि “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।

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