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Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 6 राजनीतिक संस्कृति
- राजनीतिक संस्कृति एक समाजशास्त्रीय अवधारणा है। यह राजनीति के प्रति लोगों की धारणाओं एवं अभिवृत्तियों का नाम है।
- सामान्य जीवन पद्धति और दृष्टिकोण का विकास सामान्य संस्कृति है। राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति के राजनीतिक शासकीय दृष्टिकोण से सम्बन्धित है।
राजनीतिक संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा:
- राजनीतिक संस्कृति के सम्बन्ध में आमण्ड एवं पावेल, डेविड ईस्टर्न, स्पिरो, लूसियन पाई तथा सिडनी बर्बा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए हैं।
- विकासशील देशों के सन्दर्भ में राजनीतिक संस्कृति की सर्वप्रथम अवधारणा आमण्ड व पॉवेल ने प्रस्तुत की।
- राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक व्यवस्था के प्रति सदस्यों की मनोवृत्तियों की अभिव्यक्ति, प्रतिक्रिया एवं अपेक्षा हैं।
राजनीतिक संस्कृति के निर्धारक तत्व:
- इतिहास, धार्मिक विश्वास, भौगोलिक परिस्थितियाँ, सामाजिक-आर्थिक परिवेश, विचारधाराएँ, शिक्षा, भाषा तथा रीति-रिवाज आदि राजनीतिक संस्कृति के प्रमुख निर्धारक तत्व हैं।
- किसी भी व्यवस्था की राजनीतिक संस्कृति का निर्माण एवं विकास उस देश की ऐतिहासिक परम्पराओं व प्रचलित मूल्यात्मक प्रणालियों के द्वारा ही होता है।
- धर्म राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- देश की भौगोलिक स्थिति, उपलब्ध संसाधन, जनसंख्या की प्रकृति की उस देश की राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- देश की सामाजिक, धार्मिक, जातिगत विभिन्नता, औद्योगीकरण व रूढ़िवादिता आदि से भी राजनीतिक संस्कृति की प्रकृति निर्धारित होती है।
- राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में विचारधाराओं का प्रभाव महत्वपूर्ण होता है।
- वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति, मीडिया व प्रेस, शिक्षा का स्तर, भाषा, रीतिरिवाज आदि राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
राजनीतिक संस्कृति की विशेषताएँ:
- राजनीतिक संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ-उसका समन्वयकारी स्वरूप, नैतिक मूल्यों के प्रति समर्पण, विचारों का अमूर्त स्वरूप तथा गतिशीलता आदि हैं।
राजनीतिक संस्कृति और लोकतंत्र:
- सन् 1950-60 के दशक में विभिन्न विचारकों ने अपने देश की राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन राजनीतिक संस्कृति उपागम द्वारा प्रारम्भ किया।
- लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली के लिए उचित एवं उपयुक्त सामाजिक परिवेश राजनीतिक संस्कृति के द्वारा ही विकसित किया जा सकता है।
- राजनीति संस्कृति वे लोकतंत्र के मध्य सम्बन्धों पर सर्वप्रथम आनुभविक अनुसंधान गेब्रियल आमण्ड व सिडनी बर्बा ने 1963 ई. में लिखित प्रसिद्ध रचना “The civic culture; Political attitudes and Democracy in five nations” में प्रस्तुत किया।
राजनीतिक संस्कृति के प्रकार:
- आमण्ड ने चार प्रकार की राजनीतिक संस्कृतियों का उल्लेख किया है-आंग्ल अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था, महाद्वीपीय यूरोपीय राजनीतिक व्यवस्था, गैर-पश्चिमी अथवा पूर्व औद्योगिक राजनीतिक व्यवस्था तथा सर्वाधिकारवादी राजनीतिक व्यवस्था।
- वाइसमैन ने तीन प्रकार की विशुद्ध राजनीतिक संस्कृतियों यथा संकुचित, पराधीन, सहभागी एवं तीन मिश्रित राजनीतिक संस्कृतियों यथा संकुचित पराधीन, सहभागी तथा संकुचित सहभागी राजनीतिक संस्कृति का उल्लेख किया है।
राजनीतिक संस्कृति व राजनीतिक समाजीकरण:
- राजनीतिक समाजीकरण के द्वारा राजनीतिक संस्कृति के गुणों, विश्वासों एवं मनोवेगों को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाया जाता है।
- राजनीतिक समाजीकरण के द्वारा ही राजनीतिक प्रणाली नए दबाव और तनावों को झेलने की सहनशक्ति विकसित कर लेती है।
राजनीतिक संस्कृति का महत्व:
- राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा के परिणामस्वरूप शोधकर्ताओं का केन्द्रबिन्दु औपचारिक संस्थाओं के स्थान पर राजनीतिक समाज बन गया।
- राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा ने अध्ययन में विवेकता लाने का प्रयास किया है।
निष्कर्ष:
- राजनीतिक संस्कृति तुलनात्मक राजनीतिक संस्थाओं के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण विचारधारा है।
RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 6 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
- राजनीतिक संस्कृति — राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का ही एक भाग होती है। एक व्यक्ति अथवा सम्पूर्ण समाज का राजनीतिक व्यवस्था के प्रति जो आग्रह होता है, उसे ही सामूहिक रूप से राजनीतिक संस्कृति कहा जाता है। किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों की उस राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अभिवृत्तियों, विश्वासों, प्रतिक्रियाओं और अपेक्षाओं के साथ-साथ ही सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था से ही इस व्यवस्था की राजनीतिक संस्कृति का निर्माण होता है।
- राजनीतिक संस्कृति के परिवर्त्य — राजनीतिक संस्कृति को निर्धारित करने वाले तत्व/घटक/नियामक/चर।
- ज्ञानात्मक अभिमुखीकरण — इस परिवर्त्य (चर) के माध्यम से व्यक्ति स्वयं को राजनीतिक संस्कृति में भाग लेने के लिए तैयार करने का कार्य करता है।
- भावनात्मक अभिमुखीकरण — इसका सम्बन्ध व्यक्ति की भावनाओं से होता है जिसके कारण वह राजनीतिक गतिविधियों से लगाव या अलगाव, पसंदगियाँ या नापसंदगियाँ रखने लग जाता है। |
- मूल्यांकनात्मक अभिमुखीकरण — इसके माध्यम से व्यक्ति राजनीतिक क्रियाओं अथवा राजनीतिक नियमों एवं समस्याओं पर अपने मत का निर्माण करता है तथा राजनीति को अर्थ प्रदान करता है।
- राजनीतिक व्यवस्था — राजनीतिक व्यवस्था उन सभी बातों का संयुक्त रूप है जो एक समाज में शान्ति, सुरक्षा व व्यवस्था बनाये रखने में सहयोग देती हैं। व्यवस्थापिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका इसी के अन्तर्गत आती हैं।
- राज्य — राजनीति विज्ञान में एक निश्चित सीमा में बिना किसी बाहरी नियंत्रण के एक गठित सरकार के अधीन संगठित लोगों के समुदाय को राज्य कहा जाता है।
- उदारवाद — आधुनिक युग की वह विचारधारा जो स्वतंत्रता व समानता पर बल देती है उदारवाद कहलाती है।
- लोकतन्त्र/जनतन्त्र — वह शासन व्यवस्था जिसमें जनता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने जनप्रतिनिधि का चयन करती है। लिंकन के अनुसार-“लोकतन्त्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है।”
- पुँजीवाद — पूँजीवाद वह आर्थिक प्रणाली है जिसमें देश के आर्थिक संसाधनों पर कुछ गिने-चुने निजी व प्रभावी व्यक्तियों का आधिपत्य होता है और वे उसका निजी स्वार्थ में उपयोग करते हैं।
- नैतिक मूल्य — नैतिकता, आचार-विचार व आदर्शों आदि से सम्बन्धित मूल्य को नैतिक मूल्य कहते हैं।
- राजनीतिक मूल्य — राजनीति से सम्बन्धित मूल्य-मताधिकार, लोकतन्त्रीय व्यवस्था की पवित्रता से सम्बन्धित मूल्य राजनीतिक मूल्य हैं।
- सामाजिक मूल्य — सामाजिक मूल्यों का सम्बन्ध सामाजिक जीवन से होता है। पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन आर्थिक जीवन आदि से सम्बन्धित मूल्य सामाजिक मूल्य हैं। |
- धर्म — व्यापक अर्थ में धर्म का सम्बन्ध कर्तव्यों से लिया जाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से धर्म मानवोपरि शक्तियों के प्रति अभिवृत्तियों को कहते हैं।
- राजनीतिक दल — राजनीतिक दल समान विचारधारा वाले लोगों का एक समूह होता है जो चुनाव लड़ने और राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्य करता है।
- अभिजन संस्कृति/अभिजनवादी संस्कृति — सत्ता में रहते हुए सरकारी निर्णयों में सहभागी एवं उत्तरदायी वर्ग की संस्कृति को अभिजन/अभिजनवादी संस्कृति कहते हैं।
- जनसंस्कृति/जनसाधारण की संस्कृति — वे लोग जिनके हाथ में सत्ता नहीं होती और न ही सरकारी निर्णयों में इनकी विशेष सहभागिता होती है। इनकी आकांक्षाएँ, आशाएँ, व्यवहार एवं कार्य पद्धति अलग प्रकार की होती है। ये लोग जन साधारण की संस्कृति से सम्बन्ध होते हैं।
- उपनिवेश — जब एक राज्य का नागरिक समुदाय दूसरे देश में जाकर इस तरह बस जाए कि मूलदेश में तथा नई बस्ती के बीच प्राय: स्वामी-सेवक स्तर का प्रशासनिक तथा सांविधानिक नाता बना रहे तब इस नई बस्ती को उपनिवेश कहा जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् उपनिवेश का अर्थ सामान्यतया वह क्षेत्र हो गया है जो अनेक राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक नीतियों से अपेक्षाकृत अधिक विकसित देश के अधीन है। एशिया तथा अफ्रीका के पिछड़े देश विभिन्न दशाओं में पश्चिमी देशों के अधीन रहे हैं।
- माक्र्सवाद — साम्यवाद का प्रबल समर्थन मार्स महोदय ने किया था। अतएव साम्यवाद को ही मार्क्सवाद कहा जाता है। यह सामाजिक न्याय से ओत-प्रोत, पूँजीवादी अत्याचारों के विरुद्ध न्याय के सिद्धान्त का समर्थन करता है।
- अधिनायकवाद — अधिनायकवाद से आशय एक व्यक्ति के उस शासन से है, जो बलपूर्वक सत्ता पर एकाधिकार कर लेता है। एवं सत्ता की अनियन्त्रित रूप से प्रयोग करता है। इस प्रकार के शासन में जनता की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है एवं मीडिया पर शासन पूर्ण नियंत्रण रहता है। इसे निरंकुश तंत्र भी कहा जाता है। अधिनायकवाद आधुनिक तानाशाही व्यवस्था है।
- सर्वाधिकारवाद — सर्वाधिकारवाद वह शासन व्यवस्था है जिसमें राज्य सर्वशक्तिमान होता है। इस व्यवस्था के अनुसार राज्य कोई गलती नहीं करता। मनुष्य के जीवन पर राज्य का अधिकार होता है।
- प्रथम-विश्वयुद्ध — सन् 1914 से 1918 के बीच प्रथम विश्वयुद्ध हुआ था।
- द्वितीय-विश्वयुद्ध — सन् 1939 से 1945 के मध्य द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ। 1945 में नागासाकी और हिरोशिमा (जापान) पर परमाणु बम गिराये गये थे।
- विकासशील देश — एक विकासशील देश वह है जिसमें प्रति व्यक्ति वास्तविक आय 37,000 प्रतिवर्ष अमेरिका तथा कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा पश्चिमी यूरोप के देशों की प्रति व्यक्ति आय से कम हो।
- विकसित देश — विकसित देश वे हैं जिनमें प्रति व्यक्ति वास्तविक आय १ 37,000 प्रति व्यक्ति (वार्षिक) से अधिक हो। इनमें संसाधनों के भरपूर उपयोग की तकनीकी क्षमता निहित होती है।
- तृतीय विश्व (तीसरी दुनिया) — अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के कुछ देशों ने सोवियत व अमेरिकी सैन्य-शक्ति गुटों से अलग गुटनिरपेक्षता नीति का समर्थन किया। इन्हें तृतीय विश्व या तीसरी दुनिया के देश कहा गया।
- समाजवाद — इस व्यवस्था में उत्पत्ति के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व न होकर सामाजिक स्वामित्व होता है। समाजवादी प्रणाली में केन्द्रीय नियोजन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- औद्योगीकरण — वह प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत उद्योगों के विकास के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हुए कारखानों, संयंत्रों आदि की स्थापना पर बल दिया जाता है, औद्योगीकरण कहलाती है।
- संस्कृति — मानव के जीवनयापन का तरीका संस्कृति कहलता है। इसके अन्तर्गत मानव के रहन-सहन, आचार-विचार, पहनावा, नृत्यकला, संगीत, धार्मिक विश्वास, दर्शन, भाषा व साहित्य आदि को सम्मिलित किया जाता है।
- सत्ता — संवैधानिक प्राधिकरण द्वारा व्यक्ति के ऊपर प्रयोग की जाने वाली शक्ति को सत्ता कहते हैं। जिस शक्ति का प्रयोग सरकार के प्रतिनिधि, पुलिस व न्यायाधीश करते हैं, उसे उचित शक्ति प्रयोग कहा जाता है। एक डकैत द्वारा किया जाने वाला शक्ति प्रयोग गैरकानूनी होता है जबकि सरकार द्वारा किया जाने वाला शक्ति प्रयोग वैध होता है।
- आमण्ड व पॉवेल — प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक। इन्होंने व्यक्ति में राजनीतिक उद्देश्यों के प्रति जागृति और उसके अनुरूप कार्यों के निष्पादन को ही राजनीतिक संस्कृति माना है। इन्होंने 1963 में एक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी जिसका नाम था-‘दि सिविक कल्चर : पोलिटिकल एटीट्यूड्स एण्ड डेमोक्रेसी इन फाइव नेशन्स”।
- सिडनी बर्बा — प्रसिद्ध राजनीति विज्ञानी। इन्होंने राजनीतिक संस्कृति में आनुभविक विश्वास, अभिव्यात्मक प्रतीक एवं मूल्य निहित मानें।
- लुसियन पाई — एक राजनीति शास्त्री। इन्होंने राजनीतिक संस्कृति का सम्बन्ध अभिवृत्तियों, विश्वासों व भावनाओं के समूह से माना।
- काहनर — प्रसिद्ध राजनीति विज्ञानी। इन्होंने सत्ता में सैन्य भूमिका के आधार पर राजनीतिक संस्कृतियों का नियमन किया।
- सामान्य संस्कृति — सामान्य जीवन पद्धति व दृष्टिकोण को सामान्य संस्कृति कहते हैं।
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