• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • RBSE Model Papers
    • RBSE Class 12th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 10th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 8th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 5th Board Model Papers 2022
  • RBSE Books
  • RBSE Solutions for Class 10
    • RBSE Solutions for Class 10 Maths
    • RBSE Solutions for Class 10 Science
    • RBSE Solutions for Class 10 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 10 English First Flight & Footprints without Feet
    • RBSE Solutions for Class 10 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 10 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 10 Physical Education
  • RBSE Solutions for Class 9
    • RBSE Solutions for Class 9 Maths
    • RBSE Solutions for Class 9 Science
    • RBSE Solutions for Class 9 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 9 English
    • RBSE Solutions for Class 9 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 9 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 9 Physical Education
    • RBSE Solutions for Class 9 Information Technology
  • RBSE Solutions for Class 8
    • RBSE Solutions for Class 8 Maths
    • RBSE Solutions for Class 8 Science
    • RBSE Solutions for Class 8 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 8 English
    • RBSE Solutions for Class 8 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
    • RBSE Solutions

RBSE Solutions

Rajasthan Board Textbook Solutions for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12

  • RBSE Solutions for Class 7
    • RBSE Solutions for Class 7 Maths
    • RBSE Solutions for Class 7 Science
    • RBSE Solutions for Class 7 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 7 English
    • RBSE Solutions for Class 7 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 6
    • RBSE Solutions for Class 6 Maths
    • RBSE Solutions for Class 6 Science
    • RBSE Solutions for Class 6 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 6 English
    • RBSE Solutions for Class 6 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 5
    • RBSE Solutions for Class 5 Maths
    • RBSE Solutions for Class 5 Environmental Studies
    • RBSE Solutions for Class 5 English
    • RBSE Solutions for Class 5 Hindi
  • RBSE Solutions Class 12
    • RBSE Solutions for Class 12 Maths
    • RBSE Solutions for Class 12 Physics
    • RBSE Solutions for Class 12 Chemistry
    • RBSE Solutions for Class 12 Biology
    • RBSE Solutions for Class 12 English
    • RBSE Solutions for Class 12 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit
  • RBSE Class 11

RBSE Class 9 Hindi अपठित गद्यांश एवं पद्यांश

May 20, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi अपठित गद्यांश एवं पद्यांश

‘अपठित’ की परिभाषा – गद्य एवं पद्य का वह अंश जो पहले कभी नहीं पढ़ा गया हो, ‘अपठित’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में ऐसा उदाहरण जो पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकों से न लेकर किसी अन्य पुस्तक या भाषा-खण्ड से लिया गया हो, अपठित अंश माना जाता है।

अपठित’ का महत्व – प्रायः विद्यार्थी पाठ्यक्रम में निर्धारित गद्य व पद्य अंशों को तो हृदयंगम कर लेते हैं, किन्तु जब उन्हें पाठ्यक्रम के अलावा अन्य अंश पढ़ने को मिलते हैं या पढ़ने पड़ते हैं तो उन्हें उन अंशों को समझने में परेशानी आती है। अतएव अपठित अंश के अध्ययन द्वारा विद्यार्थी सम्पूर्ण भाषा-अंशों के प्रति तो समझ विकसित करता ही है, साथ ही उसे नये-नये शब्दों को सीखने का भी अच्छा अवसर मिलता है। ‘अपठित’ अंश विद्यार्थियों में मौलिक लेखन की भी क्षमता उत्पन्न करता है।

अपठित : 
निर्देश – अपठित अंशों पर तीन प्रकार के प्रश्न पूछ जाएँगे।
(क) विषय-वस्तु का बोध
(ख) शीर्षक का चुनाव
(ग) भाषिक संरचना।

विशेष – पहले आप पूरे अवतरण को 2-3 बार पढ़कर उसके मर्म को समझने का प्रयास करें। तभी आप उक्त तीनों प्रकार के प्रश्नों के उत्तर सरलतापूर्वक दे पाएँगे। आपके अभ्यास के लिए कुछ अपठित अंश यहाँ दिए जा रहे हैं।

अपठित गद्यांश :
(1) नमो मात्रे पृथिव्यै। नमो मात्रे पृथिव्यै। (माता पृथ्वी को प्रणाम है। माता पृथ्वी को प्रणाम है।) जन के हृदय में इस सूत्र का अनुभव ही राष्ट्रीयता की कुंजी है। इंसी भावना से राष्ट्र-निर्माण के अंकुर उत्पन्न होते हैं। यह प्रणाम-भाव ही भूमि और जन का दृढ़ बन्धन है। जो जन पृथ्वी के साथ माता और पुत्र के सम्बन्ध को स्वीकार करता है, उसे ही पृथ्वी के वरदानों में भाग पाने का अधिकार है। माता के प्रति अनुराग और सेवा-भाव पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य है। माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इसी प्रकार पृथ्वी पर बसने वाले सब जन बराबर हैं। उनमें ऊँच और नीच का भाव नहीं है। जो मातृ-भूमि के हृदय के साथ जुड़ा हुआ है वह समान अधिकार का भागी है।

सभ्यता और रहन-सहन की दृष्टि से जन एक-दूसरे से आगे-पीछे हो सकते हैं, किन्तु इस कारण से मातृ-भूमि के साथ उनका जो सम्बन्ध है उसमें कोई भेद-भाव उत्पन्न नहीं हो सकता। पृथ्वी के विशाल प्रांगण में सब जातियों के लिये समान क्षेत्र है। समन्वय के मार्ग से भरपूर प्रगति और उन्नति करने का सबको एक जैसा अधिकार है। किसी जन को पीछे छोड़कर राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता। अतएव राष्ट्र के प्रत्येक अंग की सुध हमें लेनी होगी। राष्ट्र के शरीर के एक भाग में यदि अंधकार और निर्बलता का निवास है तो समग्र राष्ट्र का स्वास्थ्य उतने अंश में असमर्थ रहेगा। इस प्रकार समग्र राष्ट्र जागरण और प्रगति की एक जैसी उदार भावना से संचालित होना चाहिए।

प्रश्न:
1. राष्ट्रीयता की कुंजी, क्या है ?
2. भूमि और जन का सम्बन्ध अचेतन और जड़ कब बना रहता है ?
3. पृथ्वी के वरदानों में भाग पाने का अधिकार किसे
4. ‘राष्ट्रीय’ में ‘ता’ प्रत्यय जोड़ने पर ‘राष्ट्रीयता’ शब्द बना है, इसी प्रकार ‘ता’ प्रत्यय जोड़कर दो शब्द बनाइए।
5. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:

  1. भूमि को माता के समान मानना ही राष्ट्रीयता की कुंजी है।
  2. माता और पुत्र का भाव न रहने पर भूमि और जन का सम्बन्ध अचेतन और जड़ बना रहता है।
  3. पृथ्वी के साथ माता और पुत्र का सम्बन्ध मानने वाले व्यक्ति को पृथ्वी के वरदानों में भाग पाने का अधिकार मिलता है।
  4. निकट + ता – निकटता, विविध + ता – विविधता।
  5. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है- ‘भूमि और जन का सम्बन्ध’।

(2) हर राष्ट्र को अपने सामान्य काम-काज एवं राष्ट्रव्यापी व्यवहार के लिए किसी एक भाषा को अपनाना होता है। राष्ट्र की कोई एक भाषा स्वाभाविक विकास और विस्तार करती हुई अधिकांश जन-समूह के विचार-विनिमय और व्यवहार का माध्यम बन जाती है। इसी भाषा को वह राष्ट्र, राष्ट्रभाषा का दर्जा देकर, उस पर शासन की स्वीकृति की मुहर लगा देता है। हर राष्ट्र की प्रशासकीय-सुविधा तथा राष्ट्रीय एकता और गौरव के निमित्त एक राष्ट्रभाषा का होना परम आवश्यक होता है। सरकारी काम-काज की केन्द्रीय भाषा के रूप में यदि एक भाषा स्वीकृत न होगी तो प्रशासन में नित्य ही व्यावहारिक कठिनाइयाँ आयेंगी। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में भी राष्ट्र की निजी भाषा का होना गौरव की बात होती है। एक राष्ट्रभाषा के लिए सर्वप्रथम गुण है-

उसकी व्यापकता’। राष्ट्र के अधिकांश जन-समुदाय द्वारा वह बोली तथा समझी जाती हो। दूसरा गुण है- ‘उसकी समृद्धता’। वह संस्कृति, धर्म, दर्शन, साहित्य एवं विज्ञान आदि विषयों को अभिव्यक्त करने की सामर्थ्य रखती हो। उसका शब्दकोष व्यापक और विशाल हो और उसमें समयानुकूल विकास की सामर्थ्य हो। यदि निष्पक्ष दृष्टि से विचार किया जाए तो हिन्दी को ये सभी योग्यताएँ प्राप्त हैं। अत: हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा होने की सभी योग्यताएँ रखती है।

प्रश्न:
1. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
2. राष्ट्रभाषा की आवश्यकता क्यों होती है ?
3. राष्ट्रभाषा का आविर्भाव कैसे होता है ?
4. एक राष्ट्रभाषा न होने से क्या कठिनाई होती है ?
5. ‘विज्ञान’ शब्द किस शब्द और उपसर्ग से बना है ?
उत्तर:

  1. गद्यांश का शीर्षक है- ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी’।
  2. राष्ट्र की प्रशासकीय सुविधा, राष्ट्रीय एकता एवं गौरव के लिए राष्ट्रभाषा आवश्यक होती है।
  3. जब कोई भाषा अधिकांश जन-समूह के विचार-विनिमय और व्यवहार का माध्यम बन जाती है तब इस भाषा को शासन द्वारा राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाता है। इस प्रकार राष्ट्रभाषा का आविर्भाव होता है।
  4. एक राष्ट्रभाषा न होने से प्रशासनिक कार्य, शिक्षा, व्यवसाय और जन-सम्पर्क में बाधा पड़ती है।
  5. ‘विज्ञान’ शब्द ‘ज्ञान’ शब्द में ‘वि’ उपसर्ग लगाकर बना है।

(3) प्रत्येक व्यक्ति अपनी उन्नति और विकास चाहता है। और यदि एक की उन्नति और विकास, दूसरे की उन्नति और विकास में बाधक हो, तो संघर्ष पैदा होता है और यह संघर्ष तभी दूर हो सकता है जब सबके विकास के पथ अहिंसा के हों। हमारी सारी संस्कृति का मूलाधार इसी अहिंसा तत्व पर स्थापित रहा है। जहाँ-जहाँ हमारे नैतिक सिद्धान्तों का वर्णन आया है, अहिंसा को ही उनमें मुख्य स्थान दिया गया है। अहिंसा का दूसरा नाम या दूसरा रूप त्याग है।

श्रुति कहती है- ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः’। इसी के द्वारा हम व्यक्ति-व्यक्ति के बीच का विरोध, व्यक्ति और समाज के बीच का विरोध, समाज और समाज के बीच का विरोध, देश और देश के बीच के विरोध को मिटाना चाहते हैं। हमारी सारी नैतिक चेतना इसी तत्त्व से ओत-प्रोत है। इसलिए हमने भिन्न-भिन्न विचारधाराओं, धर्मों और सम्प्रदायों को स्वतंत्रतापूर्वक पनपने और भिन्न-भिन्न भाषाओं को विकसित और प्रस्फुटित होने दिया, भिन्न-भिन्न देशों की संस्कृतियों को अपने में मिलाया। देश और विदेश में एकसूत्रता, तलवार के जोर से नहीं, बल्कि प्रेम और सौहार्द से स्थापित की।

प्रश्न:
1. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
2. संघर्ष कब पैदा होता है ?
3. संघर्ष कैसे दूर हो सकता है ?
4. हम विभिन्न वर्गों के बीच उत्पन्न होने वाले विरोधों को किसके द्वारा मिटाना चाहते हैं ?
5. ‘नैतिक’ शब्द का संधि विच्छेद करिए।
उत्तर:

  1. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक ‘ भारतीय संस्कृति’।
  2. जब एक के विकास और उन्नति में दूसरे का विकास और उन्नति बाधक बनते हैं तो संघर्ष उत्पन्न होता है।।
  3. सबका विकास अहिंसापूर्वक होने से संघर्ष दूर हो सकता है।
  4. हम विभिन्न वर्गों के विरोधों को अहिंसा या त्याग-भावना से मिटाना चाहते हैं।
  5. नीति + इक।

(4) पड़ोस सामाजिक जीवन के ताने-बाने का महत्त्वपूर्ण आधार है। दरअसल पड़ोस जितना स्वाभाविक है, उतना ही सामाजिक सुरक्षा के लिए तथा सामाजिक जीवन की समस्त आनंदपूर्ण गतिविधियों के लिए आवश्यक भी है। पड़ोसी का चुनाव हमारे हाथ में नहीं होता, इसलिए पड़ोसी के साथ कुछ न कुछ सामंजस्य तो बिठाना ही पड़ता है। हमारा पड़ोसी अमीर हो या गरीब, उसके साथ संबंध रखना सदैव हमारे हित में ही होता है। आकस्मिक आपदा व आवश्यकता के समय पड़ोसी ही सबसे अधिक विश्वस्त सहायक हो सकता है।

प्रायः जब भी पड़ोसी से खटपट होती है, तो इसलिए कि हम आवश्यकता से अधिक पड़ोसी के व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक जीवन में हस्तक्षेप करने लगते हैं। पड़ोसी के साथ कभी-कभी तब भी अवरोध पैदा हो जाते हैं जब हम आवश्यकता से अधिक उससे अपेक्षा करने लगते हैं। ध्यान रखना चाहिए कि जब तक बहुत जरूरी न हो, पड़ोसी से कोई चीज माँगने की नौबत ही न आए। आपको परेशानी में पड़ा देख पड़ोसी खुद ही आगे आ जाएगा।

प्रश्न:
1. पड़ोसी का सामाजिक जीवन में क्या महत्त्व है ?
2. कैसे कह सकते हैं कि पड़ोसी के साथ सामंजस्य बिठाना हमारे हित में है ?
3. पड़ोसी से खटपट के प्रायः क्या कारण होते हैं ?
4. इस गद्यांश को उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
5. जातिवाचक संज्ञा ‘बच्चा’ से भाववाचक संज्ञा बनाइए।
उत्तर:

  1. पड़ोसी सामाजिक – जीवन का महत्वपूर्ण आधार है। पड़ोसी से सामाजिक-सुरक्षा और दैनिक-जीवन के आनंद जुड़े होते हैं।
  2. पड़ोसी से सामंजस्य बनाए रखना सदा लाभदायक होता है। संकट के समय पड़ोसी ही सबसे पहले काम आता है।
  3. पड़ोसी से खटपट के प्रमुख कारण, उसके निजी जीवन में हस्तक्षेप करना, बार-बार वस्तुएँ माँगना तथा बच्चों की शरारतें आदि होते हैं।
  4. गद्यांश का शीर्षक – ‘पड़ोस का महत्व’।
  5. जातिवाचक संज्ञा ‘बच्चा’ से बना भाववाचक संज्ञा शब्द है-‘बचपन।

(5) प्राचीन काल में जब धर्म – मजहबे समस्त जीवन को प्रभावित करता था, तब संस्कृति के बनाने में उसका भी हाथ था; किन्तु धर्म के अतिरिक्त अन्य कारण भी सांस्कृतिक-निर्माण में सहायक होते. थे। आज मजहब का प्रभाव बहुत कम हो गया है। अन्य विचार जैसे राष्ट्रीयता आदि उसका स्थान ले रहे हैं। राष्ट्रीयता की भावना तो मजहबों से ऊपर है। हमारे देश में दुर्भाग्य से लोग संस्कृति को धर्म से अलग नहीं करते हैं.। इसका कारण अज्ञान और हमारी संकीर्णता है। हम पर्याप्त मात्रा में जागरूक नहीं हैं।

हमको नहीं मालूम है कि कौन-कौन-सी शक्तियाँ काम कर रही हैं और इसका विवेचन भी ठीक से नहीं कर पाते कि कौन-सी मार्ग सही है? इतिहास बताता है कि वही देश पतनोन्मुख हैं जो युग-धर्म की उपेक्षा करते हैं और परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हैं। परन्तु हम आज भी अपनी आँखें नहीं खोल पा रहे हैं। परिवर्तन का यह अर्थ कदापि नहीं है कि अतीत की सर्वथा उपेक्षा की जाए। ऐसा हो भी नहीं सकता। अतीत के वे अंश जो उत्कृष्ट और जीवन-प्रद हैं उनकी तो रक्षा करनी ही है; किन्तु नये मूल्यों को हमको स्वागत करना होगा तथा वह आचार-विचार जो युग के लिए अनुपयुक्त और हानिकारक हैं, उनका परित्याग भी करना होगा।

प्रश्न:
1. मजहब का स्थान अब कौन ले रहा है ?
2. हमारे देश में संस्कृति और धर्म को लेकर क्या भ्रम
3. इतिहास के अनुसार कौन-से देश पतन की ओर जाते
4. गद्यांश को उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
5. उपेक्षा’ का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:

  1. मजहब का स्थान अब राष्ट्रीयता आदि विचार ले रहे हैं।
  2. हमारे देश में संस्कृति और धर्म को एक ही समझा जाता है, जो भ्रम है।
  3. जो देश समय के अनुसार स्वयं को नहीं बदलते हैं, उनका पतन हो जाता है।
  4. उपयुक्त शीर्षक – धर्म, संस्कृति और राष्ट्रीयता।
  5. विलोम शब्द – उपेक्षा-अपेक्षा।

अपठित पद्यांश : 
(1) सच हमें नहीं सच तुम नहीं
सच है महज संघर्ष ही।
संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम।
जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृंत से झर के कुसुम।
जो लक्ष्य भूल रुका नहीं।
जो हार देख झुका नहीं।
जिसने प्रणय पाथेय माना जीत उसकी ही रही।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे।
जो है जहाँ चुपचाप अपने-आप से लड़ता रहे।
जो भी परिस्थितियाँ मिलें।
काँटे चुनें, कलियाँ खिलें।
हारे नहीं इंसान, है संदेश जीवन का यही।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

प्रश्न:
1. कवि के अनुसार सच क्या है ?
2. ‘जो नत हुआ सो मृत हुआ’-का क्या आशय है ?
3. जीत किसकी होती है ?
4. इस कविता में छाँटकर कोई दो विलोम शब्द लिखिए।
5. कविता का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:

  1. कवि के अनुसार केवल संघर्ष ही सच है।
  2. संघर्ष से डरकर जो पीछे हट जाता है, उसको जीवन का आनन्द नहीं मिलता।
  3. अपने लक्ष्य पर डटे रहने वाले तथा हार से भी न डरने वाले की जीत होती है।
  4. कविता में प्रयुक्त विलोम शब्द-हार-जीत।
  5. कविता का उपयुक्त शीर्षक है-संघर्ष ही जीवन है।

(2) क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो। उसको क्या, जो दन्तहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो ? सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है, बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है। जहाँ नहीं सामर्थ्य शोध की, क्षमा वहाँ निष्फल है। गरल-चूँट पी जाने का। मिस है, वाणी का छल है।

प्रश्न:
1. क्षमा किस सर्प को शोभा देती है ?
2. सहनशीलता, क्षमा और दया को संसार कब पूजता है ?
3. क्षमा कब निष्फल हो जाती है ?
4. पद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए
5. ‘निष्फल’ का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:

  1. जिस सर्प के पास विष होता है, उसी को क्षमा करना शोभा देता है।
  2. संसार इन गुणों को तभी पूजता है जब उनको धारण करने वाला मनुष्य पराक्रमी होती है।
  3. जब क्षमा करने वाले व्यक्ति में अपराधी से बदला लेने की सामर्थ्य नहीं होती तो उसकी क्षमा निष्फल होती है।
  4. पद्यांश का शीर्षक ‘क्षमा करने की सामर्थ्य’।
  5. निष्फल का विलोम शब्द ‘सफल’ है।

(3) पावस ऋतु थी पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार।
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल।
गिरि के गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर।
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर।
है झांक रहे नीरव नभ पर

प्रश्न:
1. प्रथम पंक्ति में किस ऋतु का वर्णन है ?
2. वर्षा ऋतु में प्रकृति का रूप कैसा लग रहा है ?
3. पर्वत की वर्षाकालीन शोभा किसमें दिखाई दे रही है?
4. इस पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
5. ‘गिरि का गौरव गाकर’ में अलंकार लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रथम पंक्ति में वर्षा ऋतु का वर्णन है।
  2. वर्षा ऋतु में प्रकृति पल-पल में अपना रूप बदल रही है।
  3. पर्वत की वर्षाकालीन शोभा नीचे बने विशाल ताल के जल में दिखाई दे रही है।
  4. पद्यांश का उचित शीर्षक है-‘पावस ऋतु’।
  5. ‘गिरि का गौरव गाकर’ में अनुप्रास अलंकार है।

(4) यह मनुज, ब्रह्माण्ड का सबसे सुरम्य प्रकाश,
कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश।
यह मनुज, जिसकी शिखा उद्दाम,
कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम।
यह मनुज जो सृष्टि का श्रृंगार,
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।
व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,
पर न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।
श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,
श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीति।
एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान,
तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी वही विद्वान,
और मानव भी वही।

प्रश्न:
1. कवि ने मनुष्य को ब्रह्माण्ड की सबसे सुन्दर रचना क्यों बताया है ?
2. कवि ने सृष्टि का श्रृंगार किसे बताया है ?
3. मनुष्य का परिचय और श्रेय कवि किसे नहीं मानता ?
4. पद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
5. इस पद्यांश में ‘मनुष्यं’ के कौन-कौन से पर्यायवाची शब्द आए हैं ? लिखिए।
उत्तर:

  1. मनुष्य के पास सबसे अधिक विकसित शरीर, बुद्धि और भाषा है। वह सभ्यता और संस्कृति का निर्माता
  2. कवि ने मनुष्य को सृष्टि का श्रृंगार बताया है।
  3. आकाश से पाताल तक सब कुछ जान लेना, मनुष्य का परिचय और श्रेय नहीं है।
  4. उपयुक्त शीर्षक ‘मानव का श्रेय’ है।
  5. मनुष्य के पर्यायवाची हैं – मनुज, मानव, नर।

(5) मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
हैं फूल रोकते, काँटे मुझे चलाते,
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते,
सच कहता हूँ मुश्किलें न जब होती हैं,
मेरे पग तब चलने में भी शरमाते,
मेरे संग चलने लगें हवाएँ जिससे,
तुम पथ के कण – कण को तूफान करो।
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
फूलों से मग आसान नहीं होता है,
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है,
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी,
है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है,
मैं बसा सकें नव स्वर्ग धरा पर जिससे,
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो।

प्रश्न:
1. पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
2. ‘मग’ के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
3. प्रगति कब होती है ?
4. विनाश या निर्माण का परस्पर क्या सम्बन्ध है ?
5. इस कविता की प्रेरणा क्या है ?
उत्तर:

  1. पद्यांश का उचित शीर्षक-बाधाओं से संघर्ष करो।’
  2. पर्यायवाची शब्द-मग-पथ, मार्ग।
  3. पग-पग पर अवरोध आने पर ही प्रगति होती है।
  4. विनाश होने पर ही निर्माण होता है। विनाश के बाद ही निर्माण सम्भव है।
  5. इस कविता की प्रेरणा है कि हमें जीवन में आने वाली बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए, उनका दृढ़तापूर्वक मुकाबला करना चाहिए।
RBSE Solutions for Class 9 Hindi

Share this:

  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)
  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on Facebook (Opens in new window)

Related

Filed Under: Class 9

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Recent Posts

  • RBSE Class 5 Hindi रचना पत्र लेखन
  • RBSE Solutions for Class 9 Science Chapter 2 पदार्थ की संरचना एवं अणु
  • RBSE Solutions for Class 5 Hindi परिवेशीय सजगता
  • RBSE Solutions for Class 5 Hindi Chapter 14 स्वर्ण नगरी की सैर
  • RBSE Solutions for Class 5 Hindi Chapter 17 चुनाव प्रक्रिया कब, क्या व कैसे?
  • RBSE Class 5 Hindi व्याकरण
  • RBSE Solutions for Class 5 Hindi Chapter 16 दृढ़ निश्चयी सरदार
  • RBSE for Class 5 English Vocabulary One Word
  • RBSE Solutions for Class 5 Environmental Studies Manachitr
  • RBSE Solutions for Class 9 Maths Chapter 1 वैदिक गणित Additional Questions
  • RBSE Class 5 English Vocabulary Road Safety

Footer

RBSE Solutions for Class 12
RBSE Solutions for Class 11
RBSE Solutions for Class 10
RBSE Solutions for Class 9
RBSE Solutions for Class 8
RBSE Solutions for Class 7
RBSE Solutions for Class 6
RBSE Solutions for Class 5
RBSE Solutions for Class 12 Maths
RBSE Solutions for Class 11 Maths
RBSE Solutions for Class 10 Maths
RBSE Solutions for Class 9 Maths
RBSE Solutions for Class 8 Maths
RBSE Solutions for Class 7 Maths
RBSE Solutions for Class 6 Maths
RBSE Solutions for Class 5 Maths
RBSE Class 11 Political Science Notes
RBSE Class 11 Geography Notes
RBSE Class 11 History Notes

Copyright © 2025 RBSE Solutions